Sunday 1 April 2018

कलम के सिपाहियों पर कातिलाना हमला

एक बार फिर कलम के सिपाहियों पर कातिलाना हमले हो रहे हैं। एक ही दिन सोमवार को दो पत्रकारों की हत्या हुई, एक बिहार में और एक मध्यप्रदेश में। इन वारदातों से पता चलता है कि आज के माहौल में पत्रकारों का काम कितना जोखिमभरा हो गया है। मध्यप्रदेश की वारदात में भिंड के एक टीवी पत्रकार को रेत ढोने वाले ट्रक से कुचल कर मार डाला गया। उधर बिहार के आरा में मामूली विवाद के बाद एक पत्रकार और उनके साथी पर स्कार्पियो कार चढ़ा दी गई। मध्यप्रदेश की वारदात में पत्रकार ने पुलिस महानिदेशक, पुलिस महानिरीक्षक, भिंड के पुलिस अधीक्षक व मानवाधिकार आयोग को कई बार आवेदन देकर रेत माफिया से अपनी जान को खतरा बताया था और सुरक्षा की मांग की थी। भिंड के पुलिस अधीक्षक प्रशांत खरे ने बताया कि पुलिस ने संदीप को कुचलने वाले ट्रक चालक रणवीर यादव उर्प गेंदा (24) को गिरफ्तार कर लिया है। संदीप शर्मा को रेत ले जाने वाले खाली ट्रक ने भिंड के सिटी कोतवाली पुलिस थाने के सामने सड़क पर सोमवार को कथित रूप से कुचल दिया था, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई थी। इस मामले को गंभीर बताते हुए लोकसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक व पार्टी के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इसकी तत्काल सीबीआई जांच की मांग की थी। मारे गए टीवी पत्रकार संदीप शर्मा (35) ने अपना कर्तव्य निभाते हुए पुलिस और माफिया गठजोड़ के खिलाफ कई खबरें लिखी थीं, इसलिए वे इनकी आंख की किरकिरी बने हुए थे। निडरता के साथ पत्रकारिता करने वालों पर ऐसे हमले निन्दनीय हैं और हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हैं। भारत जैसे देश में पत्रकार कितने सुरक्षित हैं, पिछले दो साल में हुई घटनाएं यह बताने के लिए काफी हैं। जून 2015 से नवम्बर 2017 तक 12 पत्रकार मारे गए। इनमें वे पत्रकार भी हैं जिनकी आवाज कुछ कट्टरपंथी सहन नहीं कर पा रहे थे। पत्रकारों पर इस तरह के हमले उन्हें निडर होकर काम करने से रोकने की कोशिश है। कैसी विडंबना है कि एक तरफ भ्रष्टाचार रोकने के वादे और दावे रोजाना जोरशोर से यह राजनेता करते हैं और दूसरी तरफ भ्रष्टाचार उजागर करने वालों की जान हमेशा खतरे में रहती है। पत्रकारों की सुरक्षा के लिए बनी अंतर्राष्ट्रीय समिति कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने अपनी रिपोर्ट में आगाह किया है कि भारत में पत्रकारों को काम के दौरान पूरी सुरक्षा नहीं मिल पाती और जो पत्रकार भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने में जुटे हैं, उनकी जान खतरे में बनी रहती है। भारत में कानून का शासन चलेगा या माफिया का?

-अनिल नरेन्द्र

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