Wednesday 25 April 2018

मसला बीसीसीआई को आरटीआई के तहत लाने का

विधि आयोग ने गत सप्ताह सिफारिश की है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के दायरे में लाया जाना चाहिए। आयोग ने आगे कहा कि यह लोक अधिकार की परिभाषा में आता है और इसे सरकार से अच्छा-खासा वित्तीय लाभ भी मिलता है। सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2016 में आयोग से इस बारे में सिफारिश करने के लिए कहा था (उसने पूछा था कि क्रिकेट बोर्ड को सूचना का अधिकार कानून के तहत लाया जा सकता है या नहीं) आयोग ने सरकार से कहा है कि बीसीसीआई को आरटीआई के तहत लाना बोर्ड को पारदर्शी बनाने की दिशा में बड़ा कदम हो सकता है। आयोग का कहना है कि बीसीसीआई सरकारी संस्था की तरह है। अन्य खेल संघों की तरह बीसीसीआई भी खेल संघ है। जब दूसरे खेल संघ आरटीआई के दायरे में आ सकते हैं तो बीसीसीआई कैसे बच सकती है? चूंकि विधि आयोग की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं होतीं इसलिए कहना मुश्किल है कि सरकार विधि आयोग की रिपोर्ट को लेकर किस नतीजे पर पहुंचती है, लेकिन यह किसी से छिपा नहीं कि संप्रग सरकार के समय भी खेल विधेयक के जरिये बीसीसीआई को जवाबदेही बनाने की पहल परवान नहीं चढ़ी थी। बीसीसीआई सूचना का अधिकार कानून के दायरे में आने से इस आधार पर बचती रही है कि वह एक निजी संस्था है। यह एक कमजोर तर्प है, क्योंकि एक तो बीसीसीआई के तहत क्रिकेटर देश का प्रतिनिधित्व करते हैं और दूसरे उसे टैक्स में रियायत के अतिरिक्त परोक्ष तौर पर सरकारी सुविधाएं भी मिलती हैं। भ्रष्टाचार और कामकाज के तरीकों को लेकर बीसीसीआई लंबे समय से विवादों में है। न्यायमूर्ति मुद्गल समिति ने 2014 में अपनी रिपोर्ट में बीसीसीआई में सुधार की जरूरत बताई थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बोर्ड में सुधार के लिए पूर्व प्रधान न्यायाधीश आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता में समिति बनाई। लोढ़ा समिति ने बोर्ड में गंभीर खामियां पाई थीं और उसे भ्रष्टाचार और राजनीतिक दखल से मुक्त करने के बारे में सिफारिश की थी। लोढ़ा समिति ने कहा था कि क्रिकेट बोर्ड एक सार्वजनिक संस्था है, समिति ने कहा था कि इसके फैसलों में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी है। तभी से बोर्ड को आरटीआई के दायरे में लाने की कवायद चल रही है। इस मामले में विधि आयोग का यह निष्कर्ष तो सही है कि अन्य खेल संगठनों की तरह बीसीसीआई भी है और उसे भी इन संगठनों की तरह सूचना का अधिकार कानून के दायरे में आना चाहिए, लेकिन इस कानून के दायरे में आने का मतलब यह कतई नहीं होना चाहिए कि देश की इस सबसे धनी खेल संस्था का सरकारीकरण होना चाहिए। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आज अगर भारतीय क्रिकेट दुनिया के शीर्ष पर है तो यह बीसीसीआई की वजह से है।

-अनिल नरेन्द्र

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