Thursday, 19 April 2018

मक्का मस्जिद धमाके का जिम्मेदार कौन है?

हैदराबाद स्थित मक्का मस्जिद में 18 मई, 2007 को हुए भीषण विस्फोट के मामले में ग्यारह साल बाद एनआईए ने सोमवार को स्वामी असीमानंद समेत पांच आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया जो कि न्यायिक पकिया में देरी का एक उदाहरण है ही साथ में चौंकाने वाली बात यह भी है कि फैसले के कुछ घंटे में ही एनआईए विशेष आतंकरोधी अदालत के जज रवीन्द्र रेड्डी ने इस्तीफा दे दिया। जज रेड्डी ने हालांकि बताया कि उन्होंने निजी कारणें से इस्तीफा दिया है और इसका फैसले से कोई लेना-देना नहीं है। वह कुछ समय से इस्तीफा देने पर विचार कर रहे थे। जज रवीन्द्र रेड्डी इस्तीफा देने के बाद छुट्टी पर चले गए हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक वह दो माह में रिटायर होने वाले थे। नियुक्ति के मामले में राजभवन के सामने धरना देने के लिए उन्हें दो साल पहले सस्पैंड भी किया गया था वहीं एक केस में नियमों के उलट जमानत देने को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप में सीबीआई उनके खिलाफ जांच भी कर रही है। स्वामी असीमानंद समेत पांचों आरोपियों को बरी किए जाने के बाद यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर इस मस्जिद में विस्फोट किसने किया? चूंकि अदालत ने यह पाया कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में नाकाम रहा इसलिए ऐसे सवाल भी उठेंगे कि क्या एनआईए ने अपना काम सही ढंग से नहीं किया? ऐसे सवालों के बीच इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि 11 वर्ष पुराने इस मामले की जांच के पारंभ में स्थानीय पुलिस ने हरकतुल जिहाद नामक आतंकी संगठन को विस्फोट के लिए जिम्मेदार माना और कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया, लेकिन इसके बाद जब मामला सीबीआई के पास आया तो उसने हिंदू संगठनों के कुछ सदस्यों को अपनी गिरफ्त में लिया। इसी के साथ तत्कालीन यूपीए सरकार की ओर से भगवा और हिंदू आतंकवाद का जुमला उछाल दिया गया। इस फैसले से स्वामी असीमानंद और उनके साथियों को राहत तो मिली ही है, भाजपा और संघ परिवार को कांग्रेस और यूपीए पर हमला करने का मौका भी मिल गया है, जिसके कार्यकाल में मक्का मस्जिद, अजमेर दरगाह और समझौता एक्सपेस में हुए आतंकी हमलों के बाद संघ से जुड़े संगठनों पर आरोप लगाए गए थे। भूलना नहीं चाहिए कि यूपीए सरकार के समय इन मामलों के आरोपी बनाए गए संघ परिवार से जुड़े रहे असीमानंद, कर्नल पुरोहित, साध्वी पज्ञा जैसे अनेक लोगों को एक-एक कर राहत मिलती जा रही है। क्या सीबीआई और एनआईए यूपीए सरकार के दबाव में काम कर रही थी? क्या एनआईए ने राजनीतिक दबाव में असीमानंद और अन्य लोगों के खिलाफ मामला बनाया था? वह इन लोगों के खिलाफ सुबूत क्यों नहीं जुटा पाई? असीमानंद और अन्य लोगों को 11 वर्षों तक यातनाएं और अपमान झेलना पड़ा, उसकी भरपाई कैसे होगी और भरपाई करेगा कौन? दूसरी ओर कांग्रेस का आरोप है कि एनआईए की जांच पक्षपाती है। गुलाम नबी आजाद ने कहा कि सभी जांच एजेंसी केन्द्र सरकार की कठपुतली बन गई हैं। सलमान खुर्शीद ने कहा कि दर्जनों गवाह मुकर गए हैं। इस पर सवाल तो खड़े होते ही हैं? भाजपा पवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि पी. चिदंबरम और सुशील शिंदे जैसे नेताओं ने भगवा आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल कर हिंदुओं का अपमान किया है। इसके लिए सोनिया और राहुल गांधी माफी मांगें। पर मूल सवाल अब भी वही है कि मक्का मस्जिद में बम धमाके का जिम्मेदार आखिर है कौन? इस धमाके में 9 लोगों की मौत हो गई थी और 58 घायल हुए थे। यह मामला तब तक शांत नहीं होगा जब तक कसूरवारों की पहचान नहीं होती और उन्हें अपने किए की सजा नहीं मिलती।

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