Friday, 27 April 2018

जब हमारे माननीय ही महिला अपराध के आरोपी हों?

 महिलाओं और बच्चियों के प्रति बढ़ते अपराध के खिलाफ पूरे देश व समाज में गुस्सा है और सख्त कानून बनाने की मांग कर रही है। एसोसिएशन ऑफ डेमोकेटिक रिफॉर्म की हाल में प्रकाशित रिपोर्ट की मानें तो जिन विधायिकाओं पर कानून बनाने की जिम्मेदारी है, उनमें 48 माननीय ऐसे बैठे हैं जो खुद महिलाओं के खिलाफ अपराध के मुकदमों का सामना कर रहे हैं। चिन्ताजनक स्थिति यह है कि तीन सांसद (दो लोकसभा और एक राज्यसभा) महिला अपराध के आरोपी हैं। 45 विधायक महिला उत्पीड़न के आरोपी होने के बावजूद विभिन्न विधानसभाओं में मौजूद हैं। तीन विधायकों पर तो बलात्कार जैसे गंभीर आरोपों के तहत मुकदमे चल रहे हैं। महाराष्ट्र विधानसभा में 12 विधायक मौजूद हैं जिन पर महिला अपराध का मुकदमा चल रहा है। पश्चिम बंगाल में ऐसे विधायकों की संख्या 11 है। बिहार विधानसभा में दो विधायक महिलाओं के खिलाफ अपराध का मुकदमा लड़ रहे हैं। ओडिशा और आंध्र विधानसभा में पांच-पांच दागी विधायक हैं तो झारखंड और उत्तराखंड में तीन-तीन विधायक हैं। कैसे-कैसे अपराधöमहिलाओं के सम्मान को क्षति पहुंचाने की कोशिश, अपहरण, महिला को जबरदस्ती शादी के लिए मजबूर करना। दुष्कर्म, पति या रिश्तेदारों द्वारा प्रताड़ित करना, वेश्यावृत्ति के लिए नाबालिग की खरीद-फरोख्त आदि। कोई भी राजनीतिक दल ऐसे अपराधों में पीछे नहीं है। पिछले पांच सालों में 327 महिला अपराध करने के आरोपियों को विभिन्न पार्टियों ने टिकट दिए। 118 प्रत्याशी, महिलाओं के खिलाफ अपराध का मुकदमा लड़ते हुए चुनाव में उतरे। पांच वर्षों में पार्टियों ने 26 ऐसे प्रत्याशियों को मैदान में उतारा जिन पर दुष्कर्म का गंभीर मामला चल रहा था। रिपोर्ट में बताया गया कि उन्होंने यह आंकड़े कैसे निकाले। 776 सांसदों में से 768 सांसदों की ओर से हलफनामा जमा कराया गया। इस हलफनामे का विश्लेषण किया गया। 4120 विधायकों में से 4077 विधायकों द्वारा दिए गए हलफनामे की भी बारीकी से जांच की गई और निष्कर्ष निकाला गया। यह अत्यंत दुख की बात है कि जब हमारे जनप्रतिनिधि ही ऐसे चरित्र के होंगे तो यह देश को न्याय कैसे दिला सकेंगे? जनप्रतिनिधि हजारों-लाखों मतदाता को रिप्रसेंट करता है और उसका चरित्र बेदाग होना चाहिए, कम से कम महिला उत्पीड़न के मामले में तो होना ही चाहिए। पर दुखद बात यह है कि हर राजनीतिक दल एक ही बात को देखता है कि यह प्रत्याशी चुनाव जीत सकता है या नहीं? अगर वह जीत सकता है तो उसके सारे अपराध नजरंदाज कर दिए जाते हैं। इसमें चुनाव आयोग को पहल करनी होगी। ऐसे गंभीर अपराधियों को चुनाव लड़ने से वंचित किया जाना चाहिए।
-अनिल नरेन्द्र

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