Sunday, 22 April 2018

चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग का नोटिस

कई दिनों से चल रही सुगबुगाहट के बाद कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाने का फैसला किया है। सात दलों के नेताओं के दस्तखत वाली अर्जी राज्यसभा के सभापति को सौंप दी गई है। यह पहली बार है जब देश के सबसे बड़े जज के खिलाफ महाभियोग चलाने का प्रस्ताव लाया गया है। राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू को 71 सदस्यों के दस्तखत वाले महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस देने के बाद इन दलों ने कहा कि संविधान और न्यायपालिका की रक्षा के लिए हमें भारी मन से यह कदम उठाना पड़ा है। कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल ने 12 जनवरी की चार जजों की प्रेस कांफ्रेंस का जिक्र करते हुए कहा कि हम चाहते हैं कि ज्यूडिशियरी का मामला अंदर ही सुलझ जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने दावा किया कि इस कदम का जस्टिस लोया मामले और अयोध्या केस की सुनवाई से कोई संबंध नहीं है। महाभियोग क्या है? महाभियोग वो प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों को हटाने के लिए किया जाता है। इसका जिक्र संविधान के अनुच्छेद 61, 124(4)(5), 217 और 218 में मिलता है। महाभियोग प्रस्ताव सिर्प तब लाया जा सकता है जब संविधान का उल्लंघन, दुर्व्यवहार या अक्षमता साबित हो गए हों। नियमों के मुताबिक महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है। लेकिन लोकसभा में इसे पेश करने के लिए कम से कम 100 सांसदों के दस्तखत और राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों के दस्तखत जरूरी होते हैं। इसके बाद अगर उस सदन के स्पीकर या अध्यक्ष उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लें। वे इसे खारिज भी कर सकते हैं। तो तीन सदस्यों की एक समिति बनाकर आरोपों की जांच करवाई जाती है। उस समिति में एक सुप्रीम कोर्ट के जज, एक हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और एक ऐसे प्रख्यात व्यक्ति को शामिल किया जाता है जिसे स्पीकर या अध्यक्ष उस मामले के लिए सही मानें। अगर यह प्रस्ताव दोनों सदनों में लाया गया है तो दोनों सदनों के अध्यक्ष मिलकर एक संयुक्त जांच समिति बनाते हैं। दोनों सदनों में प्रस्ताव देने की सूरत के बाद में तारीख में दिया गया प्रस्ताव रद्द माना जाता है। जांच पूरी हो जाने के बाद समिति अपनी रिपोर्ट स्पीकर या अध्यक्ष को सौंप देती है और उसे अपने सदन में पेश करते हैं। अगर जांच में पदाधिकारी दोषी साबित हों तो सदन में वोटिंग कराई जाती है। प्रस्ताव पारित होने के लिए उसे सदन के कुल सांसदों का बहुमत या वोट देने वाले सांसदों में से कम से कम दो-तिहाई का समर्थन मिलना जरूरी है। अगर दोनों सदनों में यह प्रस्ताव पारित हो जाए तो इसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाता है। किसी जज को हटाने का अधिकार सिर्प राष्ट्रपति के पास है। आज तक किसी जज को नहीं हटाया गया। भारत में आज तक किसी जज को महाभियोग लाकर हटाया नहीं गया क्योंकि इससे पहले के सारे मामलों में कार्यवाही कभी पूरी नहीं हो सकी। या तो प्रस्ताव को बहुमत नहीं मिला, या फिर जजों ने उससे पहले ही इस्तीफा दे दिया। हालांकि इस पर विवाद है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जज वी. रामास्वामी को महाभियोग का सामना करने वाला पहला जज माना जाता है। उनके खिलाफ मई 1993 में महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया था। यह प्रस्ताव लोकसभा में गिर गया क्योंकि उस वक्त सत्ता में मौजूद कांग्रेस ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया और प्रस्ताव को दो-तिहाई बहुमत नहीं मिला। कोलकाता हाई कोर्ट के जज सोमैत्र सेन देश के दूसरे ऐसे जज थे जिन्हें 2011 में अनुचित व्यवहार के लिए महाभियोग का सामना करना पड़ा। यह भारत का अकेला ऐसा महाभियोग का मामला है जो राज्यसभा में पास होकर लोकसभा तक पहुंचा। हालांकि लोकसभा में इस पर वोटिंग होने से पहले ही जस्टिस सेन ने इस्तीफा दे दिया। उसी साल सिक्किम हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पीडी दिनाकरन के खिलाफ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी लेकिन सुनवाई के कुछ दिन पहले ही दिनाकरन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। 2015 में गुजरात हाई कोर्ट के जस्टिस जेपी पार्दीवाला के खिलाफ जाति से जुड़ी अनुचित टिप्पणी करने के आरोप में महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी लेकिन उन्होंने उससे पहले ही अपनी टिप्पणी वापस ले ली। 2015 में ही मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस एसके गंगेल के खिलाफ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी लेकिन जांच के दौरान उन पर लगे आरोप साबित नहीं हो सके। आंध्रप्रदेश/तेलंगाना हाई कोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी के खिलाफ 2016 और 2017 में दो बार महाभियोग लाने की कोशिश की गई लेकिन इन प्रस्तावों को कभी जरूरी समर्थन नहीं मिला। महाभियोग के नोटिस पर कांग्रेस के भीतर ही गंभीर मतभेद उठते दिखे। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सलमान खुर्शीद ने कहा कि मैं इस फैसले में शामिल नहीं हूं। वहीं कांग्रेस के पूर्व प्रभारी हरिकेश बहादुर ने कहा कि सिर्प मतभेद ही महाभियोग शुरू करने का आधार नहीं हो सकता। हमें लगता है कि कांग्रेस और विपक्ष भी जानते हैं कि जस्टिस मिश्रा के खिलाफ महाभियोग सफल नहीं हो सकता पर अगर इस प्रस्ताव पर बहस हो गई तो उन्हें अपनी सारी बातें कहने का मौका मिल जाएगा और उसके  बाद भी अगर प्रस्ताव गिर जाता है तो कोई बात नहीं विपक्ष जो चाहता था वह तो हो ही गया होगा। पर अभी तो सिर्प नोटिस दिया है, यह स्वीकार होता है या नहीं इस पर भी बड़ा प्रश्नचिन्ह है।

-अनिल नरेन्द्र

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