Wednesday 29 September 2021

सवाल पेगासस की निष्पक्ष जांच का

लोकतंत्र में किसी भी मोर्चे पर संदेह की गुंजाइश न्यूनतम होनी चाहिए। इसी दिशा में सुप्रीम कोर्ट की ओर से आया संकेत स्वागतयोग्य है कि पेगासस मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट एक विशेषज्ञ समिति गठित करेगा। प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ से इस मामले में स्वतंत्र जांच का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर अगले हफ्ते आदेश जारी होने की उम्मीद है। वैसे बेहतर यही होता कि केंद्र सरकार अपने ही स्तर पर मामले को आगे नहीं बढ़ने देती। इस तकनीकी विशेषज्ञ समिति के सदस्यों की नियुक्ति भी शीर्ष अदालत द्वारा की जाएगी। शीर्ष अदालत का इरादा जांच समिति के संबंध में आदेश इसी सुनवाई में पारित करने का था, लेकिन कुछ उन लोगों के जिन्हें अदालत समिति में रखना चाहती थी व्यक्तिगत कारणों से समिति का सदस्य बनने से इंकार कर देने के कारण ऐसा नहीं हो पाया। प्रधान न्यायाधीश उस पीठ का नेतृत्व कर रहे हैं, जिसके पास उन याचिकाओं का एक पूरा समूह है, जिनमें गैर-कानूनी जासूसी की जांच अदालत की निगरानी में कराने की मांग की गई थी। अदालत ने 13 सितम्बर को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। जहां तक केंद्र सरकार की बात है, तो उसने यह सार्वजनिक करने से इंकार कर दिया था कि उसकी एजेंसियों ने इजरायली कंपनी के सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया है या नहीं? सरकार के ऐसे जवाब के बाद सुप्रीम कोर्ट के पास कोई विकल्प नहीं रह गया था कि वह स्वयं जांच समिति गठित करे। अब सुप्रीम कोर्ट की इस पहल से जहां न्यायपालिका के प्रति विश्वास में बढ़ोत्तरी होगी, वहीं सरकारी एजेंसियों के साथ टकराव में भी वृद्धि हो सकती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि किसी तरह का संवैधानिक संकट पैदा न हो। ध्यान रहे, सरकार अगर जांच को रोकेगी तो उसे लोगों को जवाब देना पड़ेगा। बड़ा सवाल यह नहीं कि किन लोगों की जासूसी की गई, बड़ी चिंता यह है कि क्या विदेशी सॉफ्टवेयर का मनमाना इस्तेमाल हुआ। सॉफ्टवेयर इस्तेमाल का फैसला किसने लिया? प्रधान न्यायाधीश का संकेत इस मायने में महत्वपूर्ण है कि खुद सरकार ने 13 सितम्बर को ही सुनवाई के दौरान निजता के हनन के आरोपों की जांच करने के लिए विशेष समिति बनाने का प्रस्ताव दिया था। सरकार का कहना था कि वह जो समिति बनाएगी वो सर्वोच्च न्यायालय के प्रति जवाबदेह होगी। याचिकाकर्ता का कहना था कि सरकार को खुद जांच समिति बनाने की इजाजत क्यों दी जाए? तब सरकार ने भरोसा दिलाया था कि समिति पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होगा। सरकार की यह पेशकश तब सामने आई थी जब शीर्ष अदालत ने निजता के हनन के आरोपों पर कड़ा रुख अपनाते हुए उससे विस्तृत हलफनामा देने को कहा था। सरकार इस मामले में राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर विस्तृत हलफनामा देने से इंकार कर रही थी। इस मामले में सरकार पर इजरायली कंपनी एनएसओ के पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिये राजनेताओं, वकीलों, सरकारी अफसरों और पत्रकारों की अवैध तरीके से जासूसी करने का आरोप लगाते हुए जांच की मांग की गई थी। सरकार ने सुरक्षा का हवाला देते हुए अदालत को अधिक विवरण देने से इंकार कर दिया था। अदालत का यह विचार था कि निजता के हनन का आरोप जिन व्यक्तियों ने लगाया है, उनके आरोपों की जांच से राष्ट्रीय सुरक्षा का कोई लेना-देना नहीं है। इस मामले में संदेह तब बढ़ा जब अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बनने के बाद इजरायली कंपनी ने साफ कह दिया था कि उसने अपना सॉफ्टवेयर सरकारी एजेंसियों के अलावा किसी को नहीं बेचा।

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