Saturday, 11 November 2023
अदालत के पैसले को सरकार खारिज नहीं कर सकती
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश डीवाईं चन्द्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि विधायिका अदालत के पैसले में खामी को दूर करने के लिए नया कानून लागू कर सकती है, लेकिन उसे सीधे खारिज नहीं कर सकती है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने राजधानी में एक कार्यंव्रम में कहा कि न्यायाधीश इस बात पर ध्यान नहीं देते कि जब वे मुकदमों का पैसला करेंगे तो समाज क्या कहेगा। उन्होंने कहा कि सरकार की निर्वाचित शाखा व न्यायपालिका में यही फर्व है। उन्होंने कहा कि जजों को जनता सीधे नहीं चुनती, यह कोईं कमजोरी नहीं है बल्कि न्यायपालिका की एक ताकत है। यही कारण है कि न्यायपालिका पैसला देते वक्त विधायिका का कार्यंपालिका की तरह जनता के प्रति सीधे जवाबदेह नहीं होती बल्कि संविधान के प्रति उत्तरदायी होती है। न्यायाधीश संवैधानिक मूल्यों का पालन करते हैं। उन्होंने कहा- इसकी एक सीमा है कि अदालत का पैसला आने पर विधायिका क्या कर सकती है और क्या नहीं कर सकती है। अगर किसी विशेष मुद्दे पर पैसला दिया जाता है तो विधायिका उस खामी को दूर करने के लिए नया कानून लागू कर सकती है। विधायक यह नहीं कर सकती कि हमें लगता है कि पैसला गलत है और इसलिए हम पैसले को खारिज करते हैं। विधायिका किसी भी अदालत के पैसले को सीधे खारिज नहीं कर सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि न्यायाधीश मुकदमों का पैसला करते समय संवैधानिक नैतिकता को ध्यान में रखते हैं, न कि सामाजिक नैतिकता को। इस साल कम से कम 72 हजार मुकदमों का समाधान किया गया है और अभी डेढ़ महीना बाकी है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्यायपालिका में प्रदेश स्तर पर सकरात्मक बाधाएं हैं। उन्होंने कहा कि यदि समान अवसर उपलब्ध होंगे तो अधिक महिलाएं न्यायपालिका में आएंगी। दरअसल, लोकातंत्रिक व्यवस्था के इन दोनों महत्वपूर्ण अंगों विधायिका और न्यायपालिका का गठन भिन्न तरीकों से होता है और दोनों के साथ ही लोकतंत्र के तीसरे अंग कार्यंपालिका को मिलाकर अपने दायित्व का निर्वहन करना होता है। दायित्वों में भिन्नता के साथ ही लोकतांत्रिक व्यवस्था के इन तीनों अंगों से अपेक्षाएं और तकाजे भी सिरे से भिन्न होते हैं। जाहिर है कि ऐसे में तीनों अंग एक ही दिशा में सोचें या एक ही सुर में बोलें, सिरे से जरूरी नहीं है और तीनों अंगों के विन्यास के मद्देनजर उन्हें एक ही कोण से चीजों को देखना भी नहीं चाहिए।
सीजेआईं ने इस तरफ संकेत भी किया है कि सुप्रीम कोर्ट जनता की अदालत है जिसका मकसद जनता की शिकायतों को समझना है।
समाज के विकास के लिए कानूनी सिद्धांतों का दृढ़ता से अनुपालन करना है। जजों को सीधे जनता नहीं चुनती, लेकिन यह न्यायपालिका की कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी ताकत है, उस पर दायित्व है कि दूसरों की अपेक्षा व आंकाक्षाओं के अनुरूप नहीं बल्कि उसके पैसलों में संविधान के प्रति जवाबदेही दुखद है। दरअसल पिछले वुछ समय से देखा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के पैसलों को पलटने के लिए सरकार नया कानून बनाकर इसे निरस्त करने का प्रयास कर रही है। शायद इसीलिए जस्टिस चंद्रचूड़ ने सरकार को चेताया है कि वह हमारे पैसले को निरस्त नहीं कर सकती।
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