Saturday, 18 November 2023

आर्थिक अपराधियों को हथकड़ी न लगाईं जाए

क्या आर्थिक अपराधियों को हथकड़ी लगाईं जानी चाहिए यह प्राश्न कईं बार उठ चुका है। अब संसद की एक समिति ने कहा है कि आर्थिक अपराधों के लिए हिरासत में लिए गए लोगों को बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराधों के आरोपियों की तरह हथकड़ी नहीं लगाईं जानी चाहिए। भाजपा सांसद ब्रजलाल की अध्यक्षता वाली गृह मामलों से संबंधित स्थायी संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह अनुशंसा की है। समिति की रिपोर्ट प्रास्तावित कानून भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस- 2023), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस-2023) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए-2023) से संबंधित है। गत 11 अगस्त को लोकसभा में पेश किए गए ये तीन विधेयक कानून बनने पर भारतीय दंड संहिता, 1860 दंड प्राव््िराया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की जगह लेंगे। समिति की रिपोर्ट गत शुव््रावार को राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को सौंपी गईं। संसदीय समिति के अनुसार, उसे लगता है कि हथकड़ी का उपयोग गंभीर अपराधों के आरोपियों को भागने से रोकने और गिरफ्तारी के दौरान पुलिस अधिकारियों एवं कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिाित करने के लिए चुनिदा जघन्य अपराधों तक सीमित है। बहरहाल, समिति का मानना है कि आर्थिक अपराध को इस श्रेणी में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। उसने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि ‘आर्थिक अपराध शब्द’ में अपराधों की एक विस्तृत श्रंखला शामिल है। इस श्रेणी के अंतर्गत आने वाले सभी मामलों में हथकड़ी लगाना उपयुक्त नहीं हो सकता है। समिति ने कहा कि इसलिए समिति सिफारिश करती है कि खंड 43(3) को आर्थिक अपराध शब्द हटाने के लिए उपयुक्त रूप से संशोधित किया जा सकता है। बीएनएसएस के खंड 43(3) में कहा गया है, पुलिस अधिकारी अपराध की प्रावृत्ति और गंभीरता को ध्यान में रखते हुए किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय हथकड़ी का उपयोग कर सकते हैं, जो आदतन अपराधी है, जो हिरासत से भाग गया है या जिसने संगठित अपराध, आतंकवादी वृत्य का अपराध, नशीली दवाओं से संबंधित अपराध किया है। वुछ लोगों का मानना है कि बेशक आचरण को देखकर गंभीर से गंभीर (अपराध) में दोषसिद्धि व्यक्ति के प्राति भी कानून नरमी बरतता रहा है और आचरणगत व्यवहार के प्राति संजीदगी दिखाने पर कानून की समाज के प्राति संवेदनशीलता भी दिखाईं पड़ती है, लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि यह मामला केवल आचरण भर का नहीं है। ज्यादातर आर्थिक अपराध जानबूझकर किया गया अपराध होता है और नियोजित तरीके से अंजाम दिया जाता है। ऐसे अपराधी के प्राति नरमी सोच से परे है। इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि ऐसे अपराध में ज्यादातर वांछित देश से ही भाग

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