Thursday 2 November 2023

मामला गुमनामी चुनावी बांड का

उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पर्टियों के राजनीतिक वित्त पोषण के लिए चुनावी बांड योजना की वैधता को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर 31 अक्टूबर से सुनवाईं करना शुरू कर दी है। चुनावी बांड योजना को 2 जनवरी 2018 को अधिसूचित किया गया था। इसे राजनीतिक वित्त पोषण में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत पार्टियों को नकद चंदे के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया गया था। योजना के प्रावधानों के अनुसार चुनावी बांड भारत की नागरिकता रखने वाले व्यक्ति या भारत में स्थापित संस्थान द्वारा खरीदे जा सकते हैं। इसे कोईं व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से खरीद सकता है। प्रधान न्यायाधीश डीवाईं चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ कांग्रेस नेता जया ठावुर और मार्क्‍सवादी पार्टी (माकपा) द्वारा दायर याचिका सहित चार याचिकाओं पर सुनवाईं कर रही है। पीठ के अन्य सदस्य न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवईं, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति अचेत मिश्रा हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर को कहा था कि उठाए गए मुद्दों के महत्व के मद्देनजर और संविधान के अनुच्छेद 145 (4) के आलोक में विषय को कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष रखा जाएगा। न्यायालय ने 10 अक्टूबर को गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फार डेमोव्रेटिक राइट्स (एडीआर) की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण की इन दलीलों पर गौर किया गया था कि 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए बांड योजना शुरू होने से पहले इस विषय पर निर्णय की जरूरत है। करीब छह साल बाद अंतत: चुनावी बांड का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 31 अक्टूबर को सुना। सन 2017 में बजट प्रस्तुत करते हुए सरकार ने इसे फाइनेंशियल एक्ट के रूप में मनी बिल कहकर पारित करवाया था। तत्कालीन वित्त मंत्री ने इस कानून का उद्देश्य चुनावी पंडिंग में पारदर्शी लाना बताया था। यह बिल स्वर्गीय अरुण जेटली ने संसद में पेश किया था। दुख से कहना पड़ता है कि उद्देश्यों से भटकर इसने उल्टा इसकी पारदर्शिता को उलझा दिया है। कानून के अनुसार कोईं भी व्यक्ति या संस्था एसबीआईं द्वारा जारी बांड खरीद कर दलों को दे सकती है। न तो दाता को बताना होगा कि उसने किस दल को बांड दिया, न ही दल बताने के लिए मजबूर है। चूंकि एसबीआईं इसे जारी करती है लिहाजा सरकार को पता रहता है कि किस कारपोरेट ने किस दल को कितना पंड दिया है। यानी न तो वोटर को पता चलता है और न ही विपक्षी दलों को लेकिन सरकार सब जानती है। आरटीआईं से पता चला कि भाजपा को इन पांच वर्षो में (2018 से जब बांड कानून की अधिसूचना जारी हुईं) 90 प्रतिशत बांड मिले और इनमें 90 प्रतिशत सबसे ऊपर के बांड (एक करोड़ रुपए प्रति बांड) थे, यानी कापोरेट ने ही इसमें पंड दिया। कानून में बदलाव कर दान की सीमा खत्म की गईं जिससे कोईं भी वंपनी कितनी भी राशि तक दान कर सकती है। दूसरा भारत में रजिस्टर्ड विदेशी वंपनियां भी मर्यांदित बांड खरीद सकती हैं। क्या सुप्रीम कोर्ट इन तताम पहलुओं को देखेगा? ——अनिल नरेन्द्र

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