Tuesday, 14 November 2023
निगरानी के लिए विशेष पीठ बनाएं
इस सम्पादकीय और पूर्व के अन्य संपादकीय देखने के लिए अपने इंटरनेट/ब्राउजर की एड्रेस बार में टाइप करें पूूज्://हग्त्हाह्ंत्दु.ंत्दुेज्दू.म्दस् उच्चतम न्यायालय ने एक अहम पैसले के तहत उच्च न्यायालयों को जन प्रातिनिधियों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमों की निगरानी के लिए एक विशेष पीठ गठित करने का निर्देश दिया ताकि उनका शीघ्र निपटारा सुनिाित किया जा सके। इस आदेश का मकसद नेताओं के खिलाफ 5000 से अधिक आपराधिक मामलों में त्वरित सुनवाईं है। शीर्ष अदालत ने विशेष अदालतों से यह भी कहा कि वे दुर्लभ और बाध्यकारी कारणों को छोड़कर ऐसे मामलों की सुनवाईं स्थगित न करें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन मामलों की निगरानी के लिए विशेष पीठ की अध्यक्षता या तो मुख्य न्यायाधीश खुद करें या किसी पीठ को नामित करें। इन मामलों को लेकर अधिकारिक संख्या तैयार करें और एक वेब समूह बने जिसमें स्थिति का विवरण हो कि कहां कितने मामले लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाईंकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश जिला जजों से इस मामलों के निस्तारण के लिए समय-समय पर रिपोर्ट लेते रहें। पीठ ने कहा कि इस वेबसाइट में लगातार एमपी, एमएलए के खिलाफ लंबित मामलों का ब्यौरा डाला जाए। दरअसल सांसदों और विधायकों के खिलाफ बढ़ते हुए आपराधिक मामलों को देखने हुए सुप्रीम कोर्ट नेही केन्द्र सरकार को उन सभी राज्यों में विशेष एमपी-एमएलए कोर्ट बनाने का आदेश दिया था जहां पर इन सब प्रातिनिधियों के खिलाफ वुल 65 से अधिक मामले लंबित थे। गंभीर अपराधों में आरोप तय होते ही चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट आगे सुनवाईं करके आदेश जारी करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अब राज्य सरकारें, सांसदों और विधायकों पर चल रहे आपराधिक मामले खुद वापिस नहीं ले सवेंगी। इसके लिए संबंधित राज्य के हाईंकोर्ट की मंजूरी लेनी होगी।
आपराधिक मामलों में सजा पाने वाले सांसदों और विधायकों को हमेशा के लिए चुनाव लड़ने से रोकने के लिए दायर याचिका पर सुनवाईं के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही। पीठ ने सितम्बर 2020 के बाद सांसदों, विधायकों के वापस लिए गए मामले दोबारा खोलने को भी कहा है, चीफ जस्टिस डीवाईं चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने वकील अश्विनी वुमार उपाध्याय की जनहित याचिका पर ऐसे केस जल्द निपटाने के लिए मौत की सजा या उम्र वैद वाले मामलों को प्राथमिकता देने समेत कईं निर्देश जारी किए। पीठ ने कहा, मुख्य न्यायाधीश प्रातिनिधियों के लिए नामित अदालतों के संबंध में स्वत, संज्ञान मामला दर्ज करेंगे। मामलों को वे विशेष पीठ के समक्ष सूचीबद्ध कर सकते हैं, जिसमें मुकदमे पर रोक के आदेश पारित किए गए हैं, ताकि केस की शुरुआत व समापन के लिए रोज के आदेशों को पारित किया जाना सुनिाित हो सके। शीर्ष कोर्ट ने बताया कि ऐसे मामलों के लिए देशभर की ट्रायल अदालतों के लिए एक समान दिशा-निर्देश बनाना उसके लिए मुश्किल होगा। ऐसे में प्राभावी निगरानी के उपाय विकसित करने की जिम्मेदारी हाईंकोर्ट को दे दी है। पीठ ने कहा यह इसलिए उचित भी है, क्योंकि वही न्यायिक व प्राशासनिक स्तर पर इन केसों से निपट रहे हैं और हर जिला अदालतों की स्थिति को अच्छे से जानते हैं।
—— अनिल नरेन्द्र
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