Thursday, 29 February 2024

रूसी सेना में भारतीय युवक


कुछ भारतीय युवा ये सोचकर मुश्किल में फंस गए कि रूस जाकर वो लाखों रुपए कमा सकेंगे। उनका दावा है कि एजेंटों ने उन्हें नौकरी के नाम पर बुलाया और फिर उनकी भर्ती रूसी सेना में करा दी। हाल के दिनों में कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर और तेलंगाना से 16 लोग रूस गए हैं। हाल के दिनों में खबर आई कि रूस-यूक्रेन में रूसी सैनिकों के साथ भारतीय नागरिक भी हैं। जो उनके साथ युद्ध के मैदान में तैनात हैं। रूस में फंसे लोगों के अनुसार एजेंटों ने उनसे कहा था कि उन्हें रूस में हेल्पर और सिक्युरिटी से जुड़ी नौकरियां दी जाएंगी सेना में नहीं। इस नेटवर्क में दो एजेंट रूस में थे और दो भारत में। फैसल खान नाम का एक और एजेंट दुबई में था जो इन चार एजेंटों के संयोजक के तौर पर काम कर रहा था। फैसल खान बाबा ब्लाग्स नाम से एक यूट्यूब चैनल चलाता है। वो जो वीडियो पोस्ट करते हैं उनमें वो दावा करते हैं कि रूस में हेल्पर के तौर पर काम कर अच्छी कमाई की जा सकती है। इस तरह वो युवाओं को इन नौकरियों की तरफ आकर्षित करते हैं। नौकरी की तलाश कर रहे युवाओं के लिए वीडियो में फोन नंबर दिए गए हैं जहां वो उनसे सम्पर्क कर सकते हैं। इन एजेंटों ने कुल 35 लोगों को रूस भेजने की योजना बनाई थी। पहले बैच में 3 लोगों को 9 नवम्बर 2023 को चेन्नई से शारजाह भेजा गया। शारजाह से इन्हें 12 नवम्बर को रूस की राजधानी मॉस्को ले जाया गया। 16 नवम्बर को फैसल खान ने 6 भारतीयों को और फिर सात भारतीयों को रूस पहुंचाया। इनसे कहा गया था कि उन्हें हेल्पर के तौर पर काम करना होगा, सैनिकों के तौर पर नहीं। कुछ दिनों की ट्रेनिंग दी गई जिसके बाद उन्हें 24 दिसम्बर 2023 को सेना में शामिल कर लिया गया। ये मामला तब सामने आया जब रूस गए भारतीय युवाओं का लम्बे समय तक अपने परिवारों से संपर्क नहीं हो सका और हाल के दिनों में उनके कुछ वीडियो सामने आए जिनमें ये युवा हताशा में मदद मांगते दिखे। वो वीडियो वायरल भी हुए। एक वीडियो में तेलंगाना के सूफीयान और कर्नाटक के सैय्यद इलियास हुसैन, मोहम्मद समीर अहमद कहते हैं, हमें सिक्युरिटी हेल्पर के तौर पर नौकरी दी गई थी लेकिन सेना में शामिल कर लिया गया। रूसी अधिकारी हमें फ्रंटलाइन तक लेकर आए। हमें यहां युद्ध के मैदान में तैनात कर दिया गया। बाबा ब्लॉग के एजेंट ने हमारे साथ धोखा किया है। भारतीयों को झांसा देकर रूस ले जाया गया है। उन्हें युद्ध लड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है। सुरक्षा सहायक पदों पर भर्ती कराने की बात कहकर भारतीयों को यूक्रेन-रूस सीमा पर तैनात करने की धोखाधड़ी में कई भारतीय एजेंट शामिल हैं। सूत्रों के अनुसार यूक्रेन के साथ जंग में रूस की ओर से करीब 100 भारतीय लड़ रहे हैं। बाबा ब्लॉग के मुताबिक इन एजेंटों ने उनसे प्रति उम्मीदवार 2.5 लाख रुपए लिए जिसे मोइनुद्दीन के खाते में ट्रांसफर किए गए। यूक्रेनी सेना के ड्रोन हमले में पहली बार एक भारतीय की मौत हुई है। गुजरात के सूरत के 28 वर्षीय हेमिल मंगुसिया को सुरक्षा सहायक की नौकरी का झांसा दिया गया था। सूत्रों से पता चला है कि हेमिल रूस-यूक्रेन सीमा के डोनेस्क क्षेत्र में थे, जहां बुधवार को ड्रोन हमला हुआ था। हमले में हेमिल को सिर पर कई चोटें आईं जिससे उनकी मौत हो गई। रूस में फंसे कर्नाटक के समीर अहमद ने कहा जब ड्रोन हमला हुआ तब मैं भी वहां था। हम खुदाई कर रहे थे, उसी समय हमला हुआ। मैं भारत सरकार से आग्रह करता हूं कि वह हमें जल्द से जल्द बचाएं और उन एजेंटों के खिलाफ कार्रवाई करें जिन्होंने हमें धोखा दिया।

-अनिल नरेन्द्र

दिल्ली की सीटों पर सहमति तो बन गई है पर. . .?


लोकसभा चुनाव में वोट बंटवारे को रोकने के मकसद से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सातों सीटों पर हाथ तो मिला लिया है लेकिन चुनाव जीतने के लिए दोनों ही पार्टियों को अभी कई और चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। दोनों पार्टियों ने जीत का दावा किया है। हालांकि यह राह आसान नहीं दिखती। क्योंकि, 2019 के आंकड़े बताते हैं कि भाजपा को कुल जितने वोट मिले, वह आप और कांग्रेस को कुल मिले वोटों से 16.3 फीसदी ज्यादा हैं। गठबंधन के तहत दिल्ली में कांग्रेस को उत्तर-पूर्वी, चांदनी चौक और उत्तरी-पश्चिमी सीट मिली है। कांग्रेस को तीन में से दो सीटों के मुस्लिम बहुल सीट का ख्याल रखा गया है। आंकड़े बताते हैं कि यह वोट बैंक 2019 के लोकसभा, 2020 के विधानसभा और फिर 2022 के एमसीडी चुनाव में कांग्रेsस के साथ जुड़ा रहा। उत्तर-पूर्वी सीट पर मुस्तफाबाद, सीलमपुर, बाबरपुर मुस्लिम बहुल्य सीट है। इस संसदीय सीट पर 23 फीसदी और चांदनी चौक में 16 फीसदी से अधिक मुस्लिम वोट हैं। आम आदमी पार्टी ने जो चार सीटें ली हैं, उसके पीछे अलग-अलग कारण हैं, नई दिल्ली संसदीय सीट पर खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का विधानसभा क्षेत्र है, दिल्ली सरकार के दो मंत्री इसी लोकसभा में आते हैं। इसी तरह दक्षिणी दिल्ली में कांग्रेस के पास कोई मजबूत नेता नहीं था तो आप ने यह सीट अपने पास रखी। आतिशी दक्षिणी दिल्ली कोटे की मंत्री हैं। इसके अलावा पूर्वी दिल्ली आप के पास है। यहां पर मनीष सिसोदिया के विधानसभा क्षेत्र के अलावा कोंडली, त्रिलोकपुरी जैसी आरक्षित सीटें भी है जहां पर पार्टी मजबूत स्थिति में है। अगर वोट प्रतिशत पर नजर डालें तो नई दिल्ली लोकसभा सीट पर 2019 में भाजपा की मीनाक्षी लेखी को 54.77 प्रतिशत वोट मिला था जबकि कांग्रेस के अजय माकन को 26.91 प्रतिशत और आप के बृजेश गोयल को 16.23 प्रतिशत। कांग्रेस और आप के वोट प्रतिशत मिलाकर भी भाजपा से कम रहा। वहीं वेस्ट दिल्ली में भाजपा के प्रवेश वर्मा को 60.05 प्रतिशत वोट मिले जबकि कांग्रेस के महाबल मिश्रा को 19.92 प्रतिशत और आप के बलवीर जाखड़ को 17.47। दक्षिण लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के रमेश बिधूड़ी को 56.58, कांग्रेस के विजेन्द्र को 13.55 और आप के राघर चड्ढा को 26.34 प्रतिशत वोट मिले। नार्थ वेस्ट में भाजपा के हंसराज हंस को 60.49 कांग्रेsस के राजेश लिलौठिया 16.88, आप के गुग्गन सिंह को 21.01 प्रतिशत वोट मिले। उत्तर-पूर्वी दिल्ली क्षेत्र से भाजपा के मनोज तिवारी 53.90, कांग्रेस की शीला दीक्षित 28.85, आप के दिलीप पांडे 13.06 प्रतिशत वोट मिले। पूर्वी दिल्ली से भाजपा के गौतम गंभीर 55.35, कांग्रेस के अरविंदर लवली 24.24 और आपकी आतिशी को 17.44 प्रतिशत वोट मिले। चांदनी चौक में भाजपा के डा. हर्षवर्धन को 52.94, कांग्रेस के जेपी अग्रवाल को 29.67 और आप के पंकज गुप्ता को 14.74 प्रतिशत वोट मिले। गठबंधन तो हो गया है पर वोट प्रतिशत कैसे बढ़ाएंगे आप और कांग्रेस गठबंधन? इस पर विशेष ध्यान देना होगा। अगर यह गठबंधन भाजपा को कोई चुनौती देना चाहता है तो दोनों पार्टियों के लिए कार्यकर्ताओं में समन्वय बनाने की भी चुनौती रहेगी। यही नहीं, दोनों पार्टियों के नेता एक दूसरे के उम्मीदवारों को विजयी बनाने में किस हद तक अपनी भूमिका निभाएंगे इस पर भी चुनाव नतीजे प्रभावित होंगे। कुल मिलाकर गठबंधन तो हो गया है पर इसे प्रभावी ढंग से सही मायने में जमीन पर उतारने की चुनौती जरूर होगी

Tuesday, 27 February 2024

जिस फैसले पर मणिपुर जला, वह रद्द


करीब 11 महीने पहले मणिपुर हाईकोर्ट के जिस फैसले के बाद मणिपुर में हिंसा भड़की, 200 से ज्यादा लोगों की जान गई, हजारों घायल हुए और 50 हजार से ज्यादा लोगों को जान बचाने के लिए अपना घर छोड़ना पड़ा उसी फैसले को हाईकोर्ट ने संशोधित कर दिया है। गुरुवार को जस्टिस गोलपेई गैफुलशिल की बैंच ने पिछले आदेश से एक पैराग्राफ हटाया। उन्होंने कहा कि यह पैराग्राफ सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बैंच देने के रुख के खिलाफ था। दरअसल 27 मार्च 2023 को अपने फैसले में जस्टिस एमबी मुरलीधरन ने एक पैराग्राफ लिखा था, जिसमें उन्होंने मणिपुर सरकार से कहा था कि मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने पर विचार करे। इस सुझाव के बाद राज्य में कुकी जे समुदाय आक्रोषित हुआ और 3 मई में हिंसा भड़की, जो अब तक भी जारी है, Eिहसा के बीच ही हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ पुर्नविचार याचिका लगाई गई जिस पर अब फैसला आया है। राज्य की 53 फीसदी मैतेई आबादी है जो हिन्दू है और घाटी में रहते हैं। मणिपुर की राजधानी इंफाल में ही 57 फीसद आबादी रहती है। बाकी की 43 फीसदी पहाड़ी इलाकों में आबादी रहती है। गौरतलब हैं कि मैतेई को एसटी सूची में शामिल करने के बाद कुकी आदिवासियों वाले इलाके चूराचांदपुर तनाव की शुरुआत होकर राज्यभर में हिंसक आंदोलन फैल गया था, जो इस फैसले का विरोध कर रहे थे। इन हिंसक झड़पों में अब तक दो सौ से ज्यादा लोगों की जानें जा चुकी हैं। हजारों बुरी तरह घायल हैं, जिनमें ज्यादातर कुकी बताए जाते हैं। इस दरम्यान लगातार हिंसा, बवाल व बंद के चलते राज्य की शांति व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित रही। अब भी पूर्वोत्तर के इस राज्य में खूनी हिंसा जारी है। न्यायमूर्ति गाइघुल शिल ने अपने फैसले में कहा कि ये आदेश कानून की गलत धारणा के तहत पारित किया गया था क्योंकि याचिकाकर्ता तथ्य और कानून के बारे में अपनी गलतफहमी के कारण रिट याचिका की सुनवाई के समय अदालत की उचित सहायता करने में विफल रहे। मणिपुर में पिछले साल तीन मई से बुकी जनजाति और मैतेई समुदाय के बीच हिंसक संघर्ष जारी है। करीब 32 लाख जनसंख्या वाले इस छोटे से राज्य में मैतेई समुदाय एसटी का दर्जा मांग रही है ताकि वो एसटी संरक्षित इलाकों में जमीन का अधिकार हासिल कर सके। इस हिंसा की वजह से कुकी जनजाति और मैतेई समुदाय के बीच ऐसी खाई पैदा हो गई है कि छोटी से छोटी बात को लेकर आशंका जाहिर की जाती है कि कहीं ये प्रदेश में लगी आग में घी डालने का काम न कर दे। हालांकि कोर्ट के इस ताजा आदेश के बाद प्रदेश में अब तक किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं दिखी है। लोकसभा चुनाव करीब आने के कारण सरकार को यूटर्न की जरूरत पड़ी। देखा जाए तो कोर्ट के गलत फैसले से असल खामियाजा तो नागरिकों को भुगतना पड़ा है। राज्य कई महीनों से अशांत हैं। विरोध करना जनता का अधिकार है। यह सरकार की नेक नियति पर है कि वह फौरी तौर पर निर्णय ले, आरोपित जनता व अराजक तत्वों को काबू करते हुए शांतिपूर्ण तरीके से मध्यस्थता की जानी चाहिए। देर सही पर अंतत अदालत ने खुद के फैसले को पलटकर राज्य में शांति बहाली का महत्वपूर्ण कदम उठाया है।

-अनिल नरेन्द्र

बसपा सांसदों में बेचैनी


लोकसभा चुनावों को लेकर मायावती की बहुजन समाज पार्टी यानि बसपा के सांसदों में बेचैनी की खबरें आ रही हैं। अंग्रेजी के अखबार द इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट पेश की है। उत्तर प्रदेश में बसपा किसी गठबंधन का फिलहाल हिस्सा नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मायावती की पार्टी के कई सांसद दूसरी पार्टियों के संपर्क में हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों में बसपा ने यूपी में 10 सीटें जीती थी। राज्य में बीजेपी के बाद बसपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी। सपा ने गाजीपुर से अफजाल अंसारी को टिकट दे दिया है। अफजाल अंसारी 2019 में बीएसपी के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीते थे। अमरोहा से सांसद दानिश अली को पार्टी ने पहले ही सस्पेंड कर दिया था। माना जा रहा है कि वो कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। दानिश अली राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान मणिपुर में भी मौजूद थे। बसपा सांसदों की मुश्किल सपा ने बुधवार को जो सीट शेयरिंग का फार्मूला शेयर किया, उसमें अमरोहा से कांग्रेस लड़ सकती है। दानिश अली जमीन पर सक्रिय बताए जा रहे हैं। रिपोर्ट में लिखा है, मायावती तक पहुंचना मुश्किल है, ऐसे में बसपा के आठ सांसद ये तय नहीं कर पा रहे हैं कि उनको टिकट मिलेगी भी या नहीं। सूत्रों ने अखबार को बताया कि इन सांसदों से बसपा ने अब तक चुनावी तैयारियों के संबंध में कोई संपर्क नहीं किया है। बसपा के सांसद सपा, बीजेपी और कांग्रेस में संभावनाएं तलाश रहे हैं। इस बारे में पूछे जाने पर पार्टी के सेंट्रल कार्डिनेटर रायजी गौतम ने टिप्पणी करने से इंकार कर दिया है। बसपा के एक सांसद ने कहा कि मैं संगठन की बैठक में भी नहीं बुलाया जाता हूं तो मुझे दूसरे विकल्पों को देखना होगा। जौनपुर से बसपा सांसद श्याम सिंह यादव दिसम्बर 2022 में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में श]िमल हुए थे। हालांकि बाद में यादव ने कहा कि वो निजी हैसियत से यात्रा में शामिल हुए थे। सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि बसपा का कम से कम एक सांसद राष्ट्रीय लोकदल यानि आरएलडी के संपर्क में है। पश्चिमी यूपी से एक और बसपा सांसद बीजेपी के संपर्क में है। एक और सांसद के सहयोगियों ने बताया है कि वो बीजेपी की पुष्टि का इंतजार कर रहे हैं। सहयोगियों ने बताया कि अगर बसपा और बीजेपी दोनों ने टिकट नहीं दिया तो ये निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। लालगंज लोकसभा सीट बसपा सांसद संगीता आजाद के पति से जब इस बारे में पूछा गया तो वो बोले - बहनजी के नियम और सिद्धांत हैं। वो उसी के अनुसार काम करती हैं। बीते साल संगीता आजाद अपने पति के साथ पीएम मोदी से मिली थीं। अंबेडकर नगर से सांसद रितेश पांडे ने कहा, अभी तो मैं जहां हूं, वहीं हूं। मैं अपने नेता के आदेश का इंतजार कर रहा हूं। 2012 के बाद से बसपा ढलान पर है। हालांकि 2019 में 10 सीटें जीतकर मायावती ने अपनी ताकत दिखाई थी। इस चुनाव में बसपा सपा के साथ चुनावी मैदान में उतरी थी। 2014 में बसपा जब अकेली लड़ी थी, तब वो एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। 2019 लोकसभा चुनाव के बाद बसपा ने सपा से अपनी राहें अलग कर ली थीं और 2022 विधानसभा चुनावों में अकेले मैदान में थी। इस चुनाव में बसपा सिर्फ एक सीट जीत सकी थी। मायावती ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले। जानकारों का कहना है कि वह चुनाव की तिथियों का इंतजार कर रही हैं। इनकी घोषणा होते ही वह अपना प्लान बनाएंगी।

Saturday, 24 February 2024

एलेक्सी नवेलनी की जेल में मौत

बीते एक दशक से रूस के सबसे महत्वपूर्ण विपक्षी नेता रहे एलेक्सी नवेलनी की जेल में मौत हो गई है। जेल विभाग के अधिकारियों ने इसकी जानकारी दी। एलेक्सी नवेलनी को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के मुखर विरोधियों में शुमार किया जाता था। वे 19 साल की जेल में सजा काट रहे थे। जिस मुकदमे में उन्हें ये सजा दी गई थी, उसे राजनीति से प्रेरित बताया जाता था। पिछले साल एलेक्सी नवेलनी को आर्कटिक सर्किल जेल में स्थानांतरित कर दिया गया था। इसे रूस की सबसे सख्त जेलों में गिना जाता है। यामालो नेनेट्स जिले की प्रिजन सर्विस (जेल विभाग) के अधिकारियों ने बताया कि शुक्रवार को टहलने के बाद एलेक्सी नवेलनी अस्वस्थ महसूस कर रहे थे। जेल विभाग ने एक बयान जारी कर कहा कि एलेक्सी नवेलनी ने तुरंत ही अपनी चेतना लगभग खो दी। आपातकालीन मेडिकल टीम को फौरन बुलाया गया। मेडिकल टीम ने उनकी स्थिति में सुधार लाने की पूरी कोशिश की लेकिन इसमें कामयाब नहीं हो पाए। रूसी समाचार एजेंसी तास की रिपोर्ट के अनुसार एलेक्सी नवेलनी की मौत के कारणों का पता लगाया जा रहा है। एलेक्सी नवेलनी के वकील लियोनिड सोलोव्योव ने रूसी मीडिया से कहा है कि वे फिलहाल इस पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे। उनके यूट्यूब चैनल पर जारी एक वीडियो को सौ करोड़ से अधिक बार देखा गया था। वो रूस की सबसे बड़े राजनीतिक दल पुतिन की पार्टी यूनाइडेट रशिया को ठगों और चोरों की पार्टी बताते थे और उन्होंने बीते सालें में कई फिल्में जारी कर उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए थे। कई सालों से एलेक्सी नवेलनी रूस की राजनीति में अधिक पारदर्शिता की मांग और विपक्षी उम्मीदवारों को चुनाव में मदद करते रहे। वो साल 2013 में मास्को के मेयर पद के लिए खड़े हुए थे और दूसरे नम्बर पर आए थे। उसके बाद उन्होंने राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने की कोशिश की लेकिन आपराधिक मुकदमों की वजह से उन पर रोक लगा दी गई। वो इन मुकदमों को राजनीति से प्रेरित बताते थे। अगस्त 2020 में एलेक्सी नवेलनी साइबेरिया का दौरा कर रहे थे और खोजी रिपोर्ट तैयार कर रहे थे। वो यहां स्थानीय चुनावों में विपक्षी उम्मीदवारों का प्रचार भी कर रहे थे। इस दौरान ही उन्हें जहर दिया गया। वो बाल-बाल बच गए। बाद में उन्हें इलाज के लिए जर्मनी ले जाया गया जहां पता चला कि उन पर रूस में बने नर्व एजेंट नोविचोक से हमला किया गया था। एलेक्सी नवेलनी ने रूस की खुफिया एजेंसियों पर जहर देने के आरोप लगाए थे। रिपोर्टों के मुताबिक उन्होंने रूस की खुफिया एजेंसी एफएसबी के एक एजेंट को झांसे में लेकर हमले के बारे में जानकारी भी जुटा ली थी। एक फोन कॉल में जिसे एलेक्सी नवेलनी ने रिकार्ड किया था और बाद में यूट्यूब पर पोस्ट भी किया था, एजेंट को कोंस्टेंटिन कुदर्यावासेव ने उन्हें बताया था कि उनके अंडरपैंट में नोविचोक एजेंट रखा गया था। उन्हें चेताया गया था कि रूस लौटना उनके लिए सुरक्षित नहीं होगा। लेकिन एलेक्सी नवेलनी ने किसी की नहीं सुनी और कहा कि वो राजनीतिक प्रवासी बनना पसंद नहीं करेंगे। वो बर्लिन से मास्को लौट आए। उन्हें एयरपोर्ट पर ही हिरासत में ले लिया गया। हिरासत में एलेक्सी नवेलनी की मौत अब बहुत बड़ा मुद्दा हो गया है। मरने से पहले उन्होंने लोगों से सड़कों पर निकलकर प्रदर्शन कर उनकी रिहाई के लिए दबाव बनाने को भी कहा था। -अनिल नरेन्द्र

अग्निवीरों को नियमित लाभ मिले

संसद की रक्षा मामलों से संबंधित स्थायी समिति ने सिफारिश की है कि सेवा के दौरान जान गंवाने वाले अग्निवीरों के पfिरवारों को नियमित सैन्य कर्मियों की तरह सभी लाभ मिलने चाहिए। समिति ने ऐसे परिवारों को दी जाने वाली अनुग्रह राशि को प्रत्येक श्रेणी में 10 लाख रुपए तक बढ़ाने का सुझाव दिया है। मौजूदा प्रावधानों के तहत देश के लिए अपनी जान का बलिदान देने वाले अग्निवीरों के पfिरवार पेंशन जैसे नियमित लाभ के पात्र भी नहीं हैं। संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि किसी अग्निवीर का देश के लिए बलिदान वैसा ही है, जैसा एक नियमित सैन्यकर्मी का है। इसलिए सेवा के दौरान अपनी जान गंवाने वाले अग्निवीरों के परिवारों को भी समान लाभ दिए जाने चाहिए। केन्द्र सरकार ने जून 2022 में तीनों सेनाओं में कर्मियों की अल्पकालिक भर्ती के लिए अग्निवीर यानी अग्निपथ भर्ती योजना शुरू की है। इसमें साढ़े 17 वर्ष से 22 वर्ष की आयु के युवाओं को चार साल के लिए भर्ती करने का प्रावधान है। इनमें से 25 फीसदी कर्मियों की सेवा आगे बढ़ाने का प्रावधान है। रक्षा मंत्रालय की ओर से संसदीय समिति को बताया गया कि सैनिकों की मृत्यु के मामलों की विभिन्न श्रेणियों के लिए अनुग्रह राशि अलग-अलग होती है। कर्तव्य पालन के दौरान दुर्घटनाओं, आतंकवादियों व असमाजिक तत्वों की हिंसा के कारण मृत्यु होने पर 25 लाख रुपए की अनुग्रह राशि दे दी जाती है। सीमा पर होने वाली लड़ाइयों और उग्रवादियों, आतंकवादियों व समुद्री डाकुओं के खिलाफ कार्रवाई में होने वाली मौत के मामले में 35 लाख रुपए का मुआवजा राशि दी जाती है। इसके अलावा युद्ध में दुश्मन की कार्रवाई के दौरान मृत्यु होने पर मुआवजे के रूप में 45 लाख रुपए की राशि दी जाती है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सरकार को इस प्रत्येक श्रेणी में अनुग्रह राशि को 10 लाख रुपए तक बढ़ाने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। किसी भी श्रेणी के तहत न्यूनतम राशि 35 लाख रुपए और अधिकतम 55 लाख रुपए होनी चाहिए। ससंदीय समिति ने कहा, सेवा के दौरान जान गंवाने वाले अग्निवीर का बलिदान कम नहीं होता। सरकार को संसदीय समिति की सिफारिशों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। हाल ही में एक अग्निवीर की ड्यूटी के दौरान मृत्यु हो गई। पर उसे किसी प्रकार का मुआवजा नहीं मिला। इससे अग्निवीरों में काफी रोष था। उम्मीद की जाती है कि अग्निवीर जो अपनी जान की बाजी देश के लिए लगा रहे हैं उन्हें उनका पूरा हक मिलना चाहिए।

Thursday, 22 February 2024

चुनावी धांधली पर पाकिस्तान में बवाल

पाकिस्तान में आठ फरवरी को आम चुनाव हुआ था। इतने दिन बीतने के बाद अभी तक कोई सरकार नहीं बन पाई है। जाहिर है कि किसी भी सियासी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला इसलिए गठबंधन सरकार बनाने के प्रयास जारी हैं। आम चुनाव में धांधली का पर्दाफाश होने के बाद बवाल मच गया है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी के कार्यकर्ता व समर्थक सड़कों पर उतर गए हैं। देशव्यापी प्रदर्शन में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) कार्यकर्ताओं की कई शहरों में पुलिस के साथ झड़पें हुई हैं। पाकिस्तान अखबार डॉन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार लाहौर में पीटीआई समर्थक विरोध दर्ज कराने के लिए शनिवार को प्रेस क्लब व पार्टी के जेल रोड कार्यालय के बाहर एकत्र हुए। उन्होंने जमकर नारेबाजी की और चुराए हुए जनादेश की बहाली की मांग की। वे पोलिंग एजेंट की मौजूदगी में फिर से मतगणना कराने और परिणामों में सुधार की भी मांग कर रहे थे। पीटीआई समर्पित उम्मीदवार रहे सलमान अकरम रजा को गिरफ्तार कर लिया गया है। हालांकि बाद में उन्हें छोड़]िदया गया। सोशल मीडिया पर प्रसारित वीडियो क्लिप में पुलिसकर्मी जेल रोड पर पीटीआई कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले वकील को घसीटते हुए दिखाई दे रहे हैं। पीटीआई के एक अन्य उम्मीदवार रहे अली इजाज बहर को भी बुजुर्गों, महिलाओं और एक बच्चे के साथ गिरफ्तार किया गया। पंजाब प्रांत के कई सीटों में पुलिस ने पीटीआई के नेताओं, पूर्व उम्मीदवारों, कार्यकर्ताओं व समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया। डॉन की रिपोर्ट के अनुसार इमरान के आह्वान पर जमा हुए पीटीआई कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी की और खूब बवाल मचाया। पाकिस्तान में सियासी संकट गहरा गया है। पाकिस्तान के निर्वाचन आयोग ने एक शीर्ष प्रशासनिक अधिकारी की और से लगाए उन आरोपों की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित की है जिसमें कहा गया था कि जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी के साथ रावलपिंडी में चुनाव में न्यायपालिका और निर्वाचन आयोग की राह पर धांधली की गई। रावलपिंडी के पूर्व आयुक्त लियाकत अली यसर ने आरोप लगाया कि शहर में जो उम्मीदवार हार रहे थे, उन्हें जिताया गया। उन्होंने दावा किया कि रावलपिंडी में 13 उम्मीदवारों को जबरदस्ती विजेता घोषित किया गया। उन्होंने बताया कि कुछ उम्मीदवार 70,000 वोटों से लीड कर रहे थे उन्हें भी हटाया दिखाया गया। उनका यह बयान ऐसे वक्त आया है जब इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने आठ फरवरी को हुए चुनाव में धांधली और पार्टी को मिले जनादेश को छीने जाने के खिलाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। समाचार डॉन में प्रकाशित एक खबर में बताया गया है कि रावलपिंडी के पूर्व आयुक्त ने कहा, मैं इस गड़बड़ी की पूरी जिम्मेदारी लेता हूं और बता रहा हूं कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और मुख्य न्यायाधीश इसमें पूरी तरह शामिल है। मुद्दे ने चुनाव परिणामों में हेरफेर की जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उधर रावलपिंडी के नवनियुक्त आयुक्त सैफ अनवर ने आम चुनाव में अनियमितताओं को सिरे से खारिज कर दिया। -अनिल नरेन्द्र

तेजस्वी और राहुल गांधी की जोड़ी

शुक्रवार को कांग्रेsस नेता राहुल गांधी के साथ आरजेडी के तेजस्वी यादर भी भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल हुए। राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान गुरुवार को दूसरी बार बिहार पहुंचे थे। पिछले महीने यानि जनवरी में भी राहुल गांधी दो दिनों के लिए बिहार के सीमाचंल इलाके में पहुंचे थे। उस दौरान 29 जनवरी को आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और 30 जनवरी को तेजस्वी यादव को ईडी ने पूछताछ के लिए बुलाया था। शुक्रवार को रोहतास में राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में तेजस्वी यादव ने इस बात का जिक्र और दावा भी]िकया कि उन्हें राहुल गांधी की सभा में शामिल होने से रोकने के लिए ही प्रवर्तन निदेशालय ने घंटों पूछताछ के लिए बैठा रखा था। यानि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में 16 फरवरी को पहली बार राष्ट्रीय जनता दल का कोई शीर्ष नेता शामिल हुआ है। बिहार में पिछले महीने 28 जनवरी को ही नीतीश कुमार ने महागठबंधन का साथ छोड़कर एनडीए से हाथ मिला लिया था। इस तरह से बिहार में आने वाले लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के सामने बड़ी चुनौती होगी। बिहार विधानसभा में नीतीश सराकर के फ्लोर टेस्ट के दौरान तेजस्वी यादव ने दावा किया था कि वो बिहार में नरेन्द्र मोदी को रोक कर दिखाएंगे। बिहार ने साल 2020 sमें हुए विधानसभा चुनावों में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी (75 सीटें) बनकर उतरी थी। तेजस्वी यादव ने लालू प्रसाद यादव के बिना ही खुद को और पार्टी के बिहार में ताकतवर बनाए रखा है। लालू औ तेजस्वी को हमेशा से बिहार के एक वर्ग की सहानुभूति मिली है। मुस्लिम, यादव और मंडल समर्थकों का वर्ग है जो लालू के साथ खड़ा है। लालू को सजा हुई तो उसमें भी लालू के समर्थक उनके साथ खड़े नजर आए। यह इतना बड़ा समर्थन है की बिहार में बीजेपी आज तक अकेले लालू को हटा नहीं पाई है। बिहार में यह समर्थन अब तेजस्वी के साथ है। तेजस्वी के साथ जातीय समीकरण के अलावा भी युवाओं का एक वर्ग नजर आता है और नीतीश के पाला बदलने से उनकी सहानुभूति तेजस्वी के साथ बड़ी है। बिहार में राहुल गांधी ने तेजस्वी यादव को ड्राइविंग सीट दे दी है और यह कहा जाता है कि बिहार में तेजस्वी यादव किसी भी गठबंधन के लिए बड़ी चुनौती होंगे। विधानसभा चुनाव में तेजस्वी के सामने बूढ़ा घोड़ा या थका हुआ घोड़ा हो सकता है। जब]िक लोकसभा चुनाव में राहुल और मोदी है। मोदी के लिए यह तीसरा चुनाव होगा। इस]िलए उनके लिए भी यह चुनाव बहुत आसान नहीं होगा। माना जाता है कि बिहार में जेडीयू के विपक्षी गठबंधन से निकलने के बाद कांग्रेsस और आरजेडी मिलकर सेक्यूलर और मुस्लिम वोटों का विभाजन रोक सकते हैं। जातिगत सर्वे के मुताबिक राज्य में 17 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। तेजस्वी और राहुल की मुलाकात की एक खास तस्वीर में राहुल गांधी और तेजस्वी एक ही गाड़ी में सवार हैं और ड्राइविंग सीट पर तेजस्वी यादव हैं। यह एक सांकेतिक तस्वीर है कि बिहार में विपक्ष का नेतृत्व तेजस्वी करेंगे और कांग्रेस सहयोगी की भूमिका में होगी। यही नहीं विपक्ष के इंडिया गठबंधन में हाल में जो कुछ हुआ उससे सबक लेते हुए कांग्रेस तेजस्वी यादव को काफी महत्व और सम्मान भी देती दिख रही है। तेजस्वी और हालु दोनों इस बात की एहमियत जानते हैं कि बिहार में युवाओं के लिए रोजगार एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है। राहुल ने सेना में अगेन वोट का मुद्दा उठाया। राहुल-तेजस्वी की जोड़ी क्या गुल खिलाती है।

Tuesday, 20 February 2024

गुप्त चंदा वोटर्स से विश्वासघात


लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक दूरगामी ऐतिहासिक फैसले में 2018 में लाए गए इलेक्टोरल बांड योजना को असंवैधानिक बताते हुए तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने आदेश दिया कि इलेक्टोरल बांड खरीदने वाले, इसे भुनाने वालों और इससे मिली राशि को 13 मार्च तक सार्वजनिक किया जाए। दरअसल, इस योजना के तहत सियासी दलों को 1 करोड़ रुपए या इससे गुणांक में चंदा देने वालों का नाम गोपनीय रखने की छूट थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि गुप्त चंदा वोटर्स से विश्वासघात है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बांड को अज्ञात रखना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लघंन है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा]िक राजनीतिक पार्टियों को आर्थिक मदद से उसके बदले में कुछ और प्रबंध करने की व्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है। उन्होंने कहा कि काले धन पर काबू पाने का एकमात्र तरीका इलेक्टोरल बांड नहीं हो सकता है। इसके और भी कई विकल्प हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को राजनीतिक पार्टियों को मिले इलेक्टोरल बांड की जानकारी देने का निर्देश दिया है। राजनीतिक दलों को मिले चंदे पर कोर्ट ने कहा है कि एसबीआई चुनाव आयोग को जानकारी मुहैया कराएगा और चुनाव आयोग इस जानकारी को 31 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा। फैसला सुनाने वाली बेंच में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी परदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र हैं। जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने फैसले की तारीफ की है। प्रशांत भूषण ने कहा कि इस फैसले से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूती मिलेगी। इस फैसले का हमारे लोकतंत्र पर लंबा असर पड़ेगा। कोर्ट ने बांड स्कीम को खारिज कर दिया है। इस स्कीम में ये नहीं पता लगता था कि किसने कितने रूपए के बांड खरीदे और किसे दिए। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे सूचना के अधिकार का उल्लघंन माना है। इसे लेकर जो संशोधन किया गया था, जिसके तहत कोई कंपनी किसी भी राजनीतिक दल को कितना भी पैसा दे सकती है। कोर्ट ने वो भी रद्द कर दिया है। प्रशांत भूषण ने कहा, कोर्ट ने कहा कि ये चुनावी लोकतंत्र के खिलाफ है क्योंकि ये बड़ी कंपनियों को केवल प्लेइंग फील्ड खत्म करने का मौका देती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जो भी पैसा इस स्कीम के तहत जमा किया गया है, वो भारतीय स्टेट बैंक चुनाव आयोग को दे और आयोग की तरफ से इसकी जानकारी आम लोगों को मुहैया कराई जाएगा। पारदर्शिता के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि फैसला सूचना के अधिकार की जीत है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इलेक्टोरल बांड के जरिए मिलने वाले अज्ञात असीमित कार्पोरेट फंडिंग पर रोक लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के अंतरिम आदेश के बाद से खरीदे गए इलेक्टोरल बांड का विवरण सार्वजनिक करने का निर्देश दिया है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालत ने सर्वसम्मति से फैसला दिया है। उन्होंने कहा कि इस पर एक राय उनकी थी और एक जस्टिस संजीव खन्ना की। लेकिन निष्कर्ष को लेकर सभी की सहमति थी। इलैक्टोरल बांड के खिलाफ जो याचिकाएं दायर की गई थी, उनमें कहा गया था कि यह सूचना के अधिकार का उल्लघंन है। इसके साथ ही यह भी कहा गया था कि कार्पोरेट फंडिंग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के खिलाफ है। चुनाव में खर्चों और पारदर्शिता पर नजर रखने वाली संस्था एसोसिएशन फोर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानि एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार 2022-23 में कार्पोरेट डोनेशन का 90 फीसदी बीजेपी को मिला। 2022-23 में राष्ट्रीय पार्टियों ने 850.438 करोड़ रुपए चंदा मिलने की घोषणा की थी। इसमें केवल बीजेपी को 719.85 करोड़ रुपए मिले थे और कांग्रेस को 79.92 करोड़ रुपए। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में आठ साल से ज्यादा वक्त से लंबित था और इस पर सभी की निगाहें इसलिए भी टिकीं थी क्योंकि इस मामले का नतीजा साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर बड़ा असर डाल सकता है। इस मामले पर सुनवाई शुरू होने से पहले भारत के अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने इस स्कीम का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि ये स्कीम राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले चंदों में साफ धन के इस्तेमाल को बढ़ावा देनी है। साथ ही अटार्नी जनरल ने शीर्ष अदालत के सामने तर्क दिया था कि नागरिकों को उचित प्रतिबंधों के अधीन हुए बिना कुछ भी और सब कुछ जानने का सामान्य अधिकार नहीं हो सकता है। इस बात का संदर्भ उस तर्क से जुड़ा हुआ है। जिसके तहत ये मांग की जा रही है कि राजनीतिक पार्टियों को ये जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए कि उन्हें कितना धन चंदे के रूप में किससे मिला है? निर्वाचन आयोग ने 2019 में चुनावी बांड योजना को सुविधाजनक बनाने के लिए राजनीतिक फंडिग से जुड़े कई कानूनों में बदलावों पर सुप्रीम कोर्ट में चिंता व्यक्त की थी। आयोग ने कहा था कि इससे पारदर्शिता पर गंभीर असर होगा। आयोग ने 27 मार्च 2019 को हलफनामा दायर कर बताया था कि इस मुद्दे पर उसने केंद्र सरकार को भी लिखा है। निर्वाचन आयोग ने यह भी कहा था कि विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) 2010 में बदलाव से राजनीतिक दलों को अनियमित विदेशी फंडिग की अनुमति मिलेगी, जिससे भारतीय नीतियां विदेशी कंपनियों से प्रभावित हो सकती हैं। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा है कि फैसला लोकतंत्र के लिए वरदान है। इससे लोगों का लोकतंत्र में विश्वास बढ़ेगा और विश्वास बहाल होगा। पिछले पांच-सात वर्षों में सुप्रीम कोर्ट का यह सबसे ऐतिहासिक निर्णय है। वहीं पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा का कहना था कि चुनाव आयोग ने हमेशा पारदर्शिता पर जोर दिया है। आयोग का यह लगातार रुख रहा है कि सिस्टम और अधिक पारदर्शी होना चाहिए। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्ण मूर्ति ने कहा फैसला स्वच्छ लोकतंत्र के हित में है। चुनावी बांड योजना राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता के लिए सही नहीं है। आप कैसे जानेंगे कि यह साफ पैसा है या गंदा पैसा? सरकार के काला धन रोकने के दावे को समानुपतिकता और दोहरी समानुपतिकता के न्यायिक सिद्धांतों के तराजू पर खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, चुनावों में मतदाता सही निर्णय ले इसके लिए राजनीतिक दलों को चंदे के बारे में जानकारी मिलना जरूरी है। इससे गवर्नेंस में खुलापन आएगा। यह आगामी चुनाव में बड़ा मुद्दा बन सकता है।

- अनिल नरेन्द्र

Saturday, 17 February 2024

भारत रत्न और चुनावी समीकरण


कर्पूरी ठाकुर और लालकृष्ण आडवाणी के बाद मोदी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्रियों पीवी नरसिम्हा राव, चौधरी चरण सिंह और भारत में हरित क्रांति के अगुवा कहे जाने वाले कृषि वैज्ञानिक डॉ. एमएस स्वामीनाथन को भी भारत रत्न देने का ऐलान किया। भारत रत्न देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। चौधरी चरण सिंह देश के छठे प्रधानमंत्री थे। हालांकि उनका कार्यकाल काफी छोटा रहा था। 25 जुलाई 1979 को प्रधानमंत्री की शपथ लेने के 170 दिनों बाद ही उन्हें पद छोड़ना पड़ा था क्योंकि वह सदन में अपनी सरकार का बहुमत साबित नहीं कर पाए थे। चौधरी चरण सिंह किसान नेता थे। पीवी नरसिम्हा राव देश के 10वें प्रधानमंत्री थे। 21 जून 1991 से 16 मई 1996 तक प्रधानमंत्री रहे नरसिम्हा राव को भारतीय अर्थव्यवस्था को खोलने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने भारत में बड़े आर्थिक सुधारों को अंजाम दिया। डॉ. एमएस स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति का अगुवा माना जाता है। उन्होंने 1960 और 1970 के दशक में भारतीय कृषि में बेहद क्रांतिकारी तकनीकों को आजमाया और खाद्य सुरक्षा का लक्ष्य हासिल करने में अहम भूमिका निभाई। सिर्फ एक पखवाड़े के भीतर ही कर्पूरी ठाकुर, लालकृष्ण आडवाणी, पीवी नरसिम्हा राव और चौधरी चरण सिंह को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान को चुनावी राजनीति से जोड़ा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं, प्रधानमंत्री का दांव पूरी तरह चुनावी है। चुनाव आते ही कर्पूरी ठाकुर याद आ गए। जिन आडवाणी को राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जाने तक नहीं दिया गया, उन्हें भारत रत्न दे दिया गया। मोदी जी ने पिछले दिनों परिवारवाद पर बयान दिया और कांग्रेस को एक परिवार की पार्टी बताने की कोशिश की। विश्लेषकों को मानना है कि शायद मोदी नरसिम्हा राव के लिए भारत रत्न का ऐलान करके ये जताना चाहते हैं कि कांग्रेस सिर्फ परिवार को तवज्जों देती है। भाजपा ये दिखाना चाहती है कि नरसिम्हा राव काबिल प्रधानमंत्री थे लेकिन सोनिया गांधी ने उनका अपमान किया। भाजपा जताना चाहती है कि कांग्रेस सिर्फ परिवारवाद की वजह से जिन काबिल प्रधानमंत्री का अपमान कर रही थी, भाजपा उनका सम्मान कर रही है। विश्लेषक यह भी कहते हैं कि मोदी इस बार 400 सीटों के पार की बात कर रहे हैं। लेकिन राम मंदिर, साम्प्रदायिकता के प्रचार, कल्याणकारी योजनाओं की डिलीवरी और भारी भरकम प्रचार-प्रसार के बावजूद वो अलग-अलग समुदायों को खुश करने के लिए भारत रत्न दे रहे हैं। उनका मानना है कि भाजपा अगर छोटी-छोटी पार्टी से गठबंधन की कोशिश करती दिख रही है तो ये साफ है कि उसे कहीं न कहीं चुनाव में झटका लगने की आशंका सत्ता रही है। शायद ये चुनावी गोलबंदी इसलिए की जा रही है। भारत रत्न देने का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 18 (1) में है। 1954 में इस पुरस्कार की स्थापना हुई और नियमों के मुताबिक एक साल में तीन ही पुरस्कार दिए जाते हैं लेकिन मोदी सरकार ने इस बार देश की पांच हस्तियों को भारत रत्न देने का ऐलान किया है। विश्लेषक कहते हैं कि ये भारत रत्न नहीं चुनाव रत्न है। ये चुनावी समीकरण साधने के लिए दिए गए हैं। कर्पूरी ठाकुर को सम्मान देने के लिए नीतीश कुमार की सरकार पलट गई। उसी तरह चौधरी चरण सिंह के ऐलान के बाद आरएलडी के जयंत चौधरी भाजपा गठबंधन में आ गए। स्वामीनाथन को भारत रत्न देने का ऐलान कर उन्होंने प्रतीकवाद की राजनीति की है। वह कह रहे हैं जो लोग किसानों के सबसे बड़े हितैषी थे उनको हमारी सरकार ने देश का सर्वोच्च सम्मान दे दिया। किसानों को और क्या चाहिए। एमएस स्वामीनाथन का सम्मान करना और उनकी सिफारिशों को न लागू करना एक तरह की प्रतीकवाद की राजनीति ही कही जाएगी।

      -अनिल नरेन्द्र


किसानों का दिल्ली चलो मार्च


करीब दो साल (2020-21) पहले किसानों ने जब अपने आंदोलन के तहत दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाला था, तब लगभग पूरे एक साल प्रदर्शन के बाद सरकार के साथ कुछ बिंदुओं पर सहमति बनी और किसान वापस चले गए थे। मगर अब एक बार फिर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी के लिए कानून की मांग सहित कई अन्य मुद्दों के साथ किसानों ने दिल्ली चलो के नारे के साथ प्रदर्शन शुरू कर दिया है। फसलों पर एमएसपी की कानूनी गारंटी के अलावा किसानों की ओर से कई जटिल मुद्दे जोड़ देने से आंदोलन लम्बा खिंचने की आशंका है। रोड जाम करने के बाद अब रेल जाम करने की भी बात हो रही है। सवाल यह है कि आखिर किसानों के पिछले आंदोलन के बाद सरकार के साथ हुए समझौते का क्या स्वरूप था और उसमें बनी सहमति को जमीन पर उतारने को लेकर ऐसी गंभीरता क्यों नहीं दिखी कि किसानों को फिर से सड़क पर उतरने की नौबत आई। गौरतलब है कि दो वर्ष पहले किसानों के ऐतिहासिक आंदोलन के बाद केन्द्र सरकार को संसद में पारित तीन कृषि कानूनों को रद्द करना पड़ा था। तब सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गारंटी देने का वादा किया था। मगर किसानों की शिकायत है कि सरकार ने अपने वादे पूरे नहीं किए। अब किसानों के ताजा आंदोलन के बाद फिर से जो हालात पैदा हो रहे हैं, अगर उसे लेकर सही नीति नहीं अपनाई गई तो अव्यवस्था फिर से पैदा हो जाएगी। बता दें कि पिछले किसान आंदोलन में 750 से ज्यादा किसानों की जानें गई थीं। क्या हैं किसान संगठनों की प्रमुख मांगे इस बार? किसान एमएसपी पर कानून बनाने, स्वामीनाथन आयोग की सभी सिफारिशों को लागू करने, सभी फसलों के लिए एमएसपी घोषित करने और उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में कथित तौर पर किसानों को कुचलकर मारने के दोषियों पर कार्रवाई समेत अन्य मांगों को लेकर अड़े हैं। सरकार से बातचीत हुई है पर बातचीत बेनतीजा रही है। किसानों के दो बड़े संगठनों संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा ने 13 फरवरी को दिल्ली चलो का नारा दिया था। पंजाब किसान मजदूर संघर्ष समिति के महासचिव सरवन सिंह पंढेर ने घोषणा की थी कि जल्द फिर पंजाब, हरियाणा बार्डर पार करके हरियाणा में दाखिल होने की कोशिश की जाएगी। पंजाब-हरियाणा की शंभू सीमा पर पुलिस ने किसानों पर ड्रोन से आंसू गैस के गोले बरसाए। ड्रोन से एक मिनट में आंसू गैस के 20 से 25 गोले बरसाए गए। पुलिस ने किसानों पर रबर की गोलियां भी चलाई। अब यह आंदोलन राजनीतिक शक्ल लेता जा रहा है। आप, कांग्रेस, एसपी और लेफ्ट पार्टियों के समर्थन से आंदोलन को और ऊर्जा मिल गई है। दूसरी तरफ ऐन चुनाव के मौके पर भाजपा सरकार आंदोलन को जल्द खत्म कराने के लिए कई तरह से अंदरुनी कोशिशों में लगी है, भाजपा में माना जा रहा है कि आंदोलन की वजह से उत्तर भारत में लोगों को परेशान होने से कारोबारी, दैनिक ऑफिस जाने वालों से लेकर अन्य आम लोगों को भी परेशानी होगी। इससे आंदोलनकारियों और उनके समर्थक सियासी दलों का समर्थन कमजोर होगा। लेकिन लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान आंदोलन, एक तरफ आंसू गैस के गोले, लाठी चार्ज और दूसरी तरफ से पत्थरबाजी, रोड-रेल रोको से अड़चन पैदा हो सकती हैं। उम्मीद की जाती है कि जल्द इस मसले का हल निकलेगा और किसान घर लौटेंगे।

Thursday, 15 February 2024

पाकिस्तान में खंडित जनादेश

काफी अनिश्चितता, राजनीतिक नौंटकी, लंबी कानूनी लड़ाई और हिंसक घटनाओं के बीच आखिरकार पाकिस्तान में अगली सरकार बनाने की जोर अजमाइश चल रही है। पाकिस्तान के आम चुनाव में खंडित जनादेश आने के बाद राजनीतिक दलों ने गठबंधन सरकार के गठन के प्रयासों को तेज कर दिया है। नेशनल असेंबली की 265 सीटों में बहुमत के लिए किसी राजनीतिक दल को 133 सीटें जीतने की जरूरत होती है। इतनी सीटें किसी भी दल को नहीं मिली। पाक निर्वाचन आयोग ने रविवार को 265 में से 264 सीटों के अंतिम परिणाम घोषित किए। इमरान के पीटीआई समर्थित निर्दलीय उम्मीदवारों ने 101 सीटों पर जीत दर्ज की। तीन बार के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएलएन) 75 सीट जीतकर तकनीकी तौर पर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। बिलावल जरदारी भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) को 54 सीटें मिली हैं। विभाजन के दौरान भारत से आए उर्दू भाषी लोगों की मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट-पाकिस्तान (एमक्यूएम-पी) को 17 सीटें हासिल हुई हैं। बता दें कि सरकार बनाने के लिए कम से कम 133 सीटों की जरूरत होगी। पूर्व राष्ट्रपति व पीपीपी के नेता आसिफ अली जरदारी भुट्टो ने पीपीपी के सामने अपने बेटे व पार्टी के मुखिया बिलावल जरदारी भुट्टो को प्रधानमंत्री बनाने के लिए मांग रख दी है। पीएमएल-एन प्रमुख व पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने शनिवार को पाकिस्तान को कठिन दौर से निकालने के लिए गठबंधन सरकार बनाने का आह्वान किया है। देश के शक्तिशाली सेना प्रमुख जनरल असिम मुनीर ने शनिवार को एकीकृत सरकार बनाने का आग्रह किया। इसके साथ ही उन्होंने गठबंधन सरकार बनाने में मदद करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की अपील का भी समर्थन किया। असिम मुनीर ने आम चुनाव के परिणाम घोषित होने के बाद शनिवार को राजनीतिक नेतृत्व से अनुरोध किया कि वे निजी हितों से ऊपर उठकर शासन करने और जनता की सेवा के लिए संभावित प्रयास करें। आम चुनाव के परिणामों के अनुसार देश त्रिशंकु संसद की ओर बढ़ रहा है। एक दिन पहले पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने मिलीजुली सरकार बनाने का आह्वान किया था। ऐसा लगता है कि शरीफ को सेना का समर्थन प्राप्त है, जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी द्वारा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवारों ने गुरुवार को हुए मतदान में नेशनल असेम्बली में 101 सीटों पर जीत हासिल की। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और एक-दूसरे के कट्टर प्रतिद्वंद्वी नवाज शरीफ और इमरान खान दोनों ने शुक्रवार को चुनाव में जीत की घोषणा की। चुनाव में शरीफ की पार्टी ने बतौर पार्टी सबसे अधिक सीटें जीती हैं। वहीं जेल में बंद इमरान खान के समर्थकों ने सबसे अधिक सीटें जीती हैं। जेल में बंद इमरान खान ने एआई (कृत्रिम मेघा) की मदद से एक वीडियो संदेश भेजकर आम चुनाव में जीत का दावा करते हुए अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी नवाज शरीफ को मूर्ख व्यक्ति करार दिया। उधर चुनावी नतीजों के बाद शनिवार को इमरान खान को अदालत से बड़ी राहत मिली। रावलपिंडी में आतंकवाद विरोधी अदालत ने इमरान खान को 9 मई के दंगों से संबंधित 12 मामलों में जमानत दे दी। पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को 13 मामलों से जमानत मिली। -अनिल नरेन्द्र

व्हाइट पेपर बनाम ब्लैक पेपर

कांग्रेस और भाजपा के बीच ताजा बयानबाजी में अर्थव्यवस्था एक अहम मुद्दा बन गई है। साल 2004 से 2014 के बीच कांग्रेस के नेतृत्व वाली युनाइटेड प्रोग्रेसिव अलांयस (यूपीए) सरकार के दौरान आर्थिक क्षेत्र में प्रदर्शन पर भाजपा की नेतृत्व वाली नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) ने एक श्वेत पत्र (व्हाइट पेपर) जारी किया है। इसमें उसने 2004 से 2014 तक के वक्त को विनाशकाल कहा है। वहीं इसकी तुलना 2014 से लेकर 2023 के दौर से की है जिसे उसने अमृतकाल कहा है। वहीं एनडीए के इस फैसले के जवाब में कांग्रेस ने 10 साल अन्याय काल के नाम से एक ब्लैक पेपर जारी किया है जिसमें 2014 से लेकर 2024 के बीच की बात की गई है। दोनों ही दस्तावेज 50 से 60 पन्ने के हैं और इनमें आंकड़ें, चार्ट की मदद से आरोप और दावे किए गए हैं। कांग्रेस के अनुसार उसका दस्तावेज सत्ताधारी भाजपा के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक अन्यायों पर केंfिद्रत है जबकि सरकार का जारी श्वेत पत्र यूपीए सरकार की आर्थिक गलतियों पर रोशनी डालने तक सीमित है। अर्थव्यवस्था को लेकर कांग्रेस का कहना है कि पीएम मोदी का कार्यकाल भारी बेरोजगारी, नोटबंदी और आधे-अधूरे तरीके से गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) व्यवस्था लागू करने जैसे विनाशकारी आर्थिक फैसलों, अमीरों-गरीबों के बीच बढ़ती खाई और निजी निवेश के कम होने का गवाह रहा है। दूसरी तरफ भाजपा ने बेड बैंक लोन में उछाल, बजट घाटे से भागना, कोयला से लेकर 2जी स्पेक्ट्रम तक हर चीज के आवंटन में घोटालों की एक श्रृंखला और फैसला लेने में अक्षमता जैसे कई आरोप कांग्रेस पर लगाए हैं। भाजपा का कहना है कि इसकी वजह से देश में निवेश की गति धीमी हुई है। विभिन्न विश्लेषणों से शायद ये पता चले के दोनों ही पार्टियां एक-दूसरे के बारे में जो दावे कर रही हैं, कुछ हद तक वो सही बातें भी हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि दोनों ओर के आरोपों में कुछ सच्चाई है। दोनों ने बुरे फैसले लिए, कांग्रेस ने टेलीकॉम और कोयला में और भाजपा ने नोटबंदी और जीएसटी में। लेकिन यूपीए बनाम एनडीए के 10 वर्षों के तुलनात्मक आर्थिक आंकड़ों पर एक नजर डालने से दोनों के प्रदर्शन की मिली-जुली तस्वीर सामने आती है। आर्थिक विकास ः लेकिन सच यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था पर वैश्विक आर्थिक संकट के मुकाबले कोविड महामारी के कहर का असर अधिक था। इसलिए ताज्जुब नहीं कि एनडीए सरकार के दौरान एक दशक का जीडीपी औसत कम रहा। कोविड ने अर्थव्यवस्था के सामने जो समस्याएं पैदा की वो बहुत बड़ी थी। इस महामारी ने इस दशक के दौरान कुछ सालें के लिए अर्थव्यवस्था की गति को धीमा कर दिया। इस सरकार ने बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और अन्य चीजों के अलावा अंतिम पायदान तक प्रशासन में सुधार करके आने वाले सालों में तेजी से विकास की नींव रखी है। निर्यात में वृद्धि दर एनडीए के मुकाबले यूपीए के दौरान तेज थी ये दोनों ही कई कारणों की वजह से है, जैसे भूमि अधिग्रहण और फैक्ट्रियों के लिए पर्यावरण की मंजूरी मिलने में मुश्किलें। लंबे समय से देश को मैनुफ्कैचरिंग और निर्यात वृद्धि कम रही, हालांकि इसके कई कारण रहे। मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) पर प्रदर्शन के मामले में भी एनडीए का प्रदर्शन यूपीए के मुकाबले कम ही है। आर्थिक नीति निर्धारण भी एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है जो अलग-अलग सरकारों के बीच चलती रहती है, जिसमें सरकार अपनी पूर्ववर्ती सरकार से विरासत में अच्छे-बुरे काम मिलते हैं। कभी-कभी एक सरकार द्वारा की गई पहल या कदम को आने वाली सरकार आगे बढ़ाती है और मजबूत करती है और कभी-कभी पूर्ववर्ती सरकार की नीति को बदल देती है।

Tuesday, 13 February 2024

लिव-इन और यूसीसी

इस सम्पादकीय और पूर्व के अन्य संपादकीय देखने के लिए अपने इंटरनेट/ब्राउजर की एड्रेस बार में टाइप करें पूूज्://हग्त्हाह्ंत्दु.ंत्दुेज्दू.म्दस् सहजीवन यानि बिना विवाह के युवा जोड़ों के साथ रहने पर लंबे समय से बहस होती रही है। समाज का एक बड़ा हिस्सा अनुसित मानता है। मगर निजता के संवैधानिक अधिकारों के चलते इस पर कानूनी अंवुश लगाना विवादों से घिरा हुआ है। अब उत्तराखंड सरकार ने सहजीवन को अवैध तो करार नहीं दिया है। मगर मर्यांदित करने का प्रायास जरूर किया है। समान नागरिक संहिता विधेयक में ुउसने एक प्रावधान सहजीवन को लेकर भी शामिल किया है। उत्तराखंड विधानसभा ने यूनिफार्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता या यूसीसी) को मंजूरी दे दी है। इस नए बिल के एक अहम प्रावधान के अनुसार धर्म, लिग और सेक्स को लेकर व्यक्ति की पसंद की परवाह किए बगैर राज्य के सभी निवासियों पर समान पर्सनल लॉ लागू होगा। हालांकि वुछ आदिवासी समुदायों को इस बिल के दायरे से बाहर रखा गया है। बिल के इस एक प्रावधान ने इस पूरे बिल से अधिक ध्यान खींचा है। भारत के अधिकतर हिस्सों में अब भी साथ में रह रहे अविवाहित जोड़ों को पसंद नहीं किया जाता। इस तरह के रिश्तों को आमतौर पर लिव-इनरिलेशनशिप कहा जाता है। इस नए बिल के तहत एक पुरुष और एक महिला जोड़े को पार्टनर्स कहा गया है। नए बिल के अनुसार इस तरह के जोड़े को अपने लिव-इन रिलेशनशिप के बारे में रजिस्ट्रार को बयान देना होगा, जो इस मामले में तीस दिनों के भीतर जांच करेंगे। जांच के दौरान जरूरी होने पर पार्टनर्स को और अधिक जानकारी या सबूत पेश करने को कहा जा सकता है। लिव-इन रिलेशनशिप के बारे में दिए बयान को रजिस्ट्रार स्थानीय पुलिस के साथ साझा करेंगे और अगर जोड़े में किसी एक पार्टनर की उम्र 21 साल से कम हुईं तो उनके अभिभावकों को भी सूचित किया जाएगा। अगर जांच के बाद अधिकारी संतुष्ट हैं तो वो एक रजिस्टर में पूरी जानकारी दर्ज करेंगे और जोड़े को सर्टिफिकेट जारी करेंगे। ऐसा न होने पर पार्टनर्स को सर्टिफिकेट न जारी करने के कारणों के बारे में बताया जाएगा। बिल के अनुसार अगर जोड़े में एक पार्टनर शादीशुदा है या नाबालिग है या फिर रिश्ते के लिए जोरजबरदस्ती या फिर धोखाधड़ी सहमति ली गईं है तो रजिस्ट्रार लिव-इन रिलेशनशिप की रजिस्ट्री करने से इंकार कर सकते हैं। जानकारी दिए बगैर अगर कोईं जोड़ा एक महीने से अधिक तक लिव-इन रिलेशनशिप में रहता है तो इस मामले में उन्हें तीन महीने की जेल, 10 हजार रुपए का जुर्माना या दोनों ही हो सकते हैं। सहजीवन को मर्यांदित बनाने के पीछे सरकार की मंशा समझी जा सकती है। दरअसल, पिछले वुछ वर्षो में बिना विवाह के साथ रह रहे प्रोमी युगल के बीच अनबन और विच्छेद की अनेक अप््िराय घटनाएं हो चुकी हैं। कईं लड़कियों की बेरहमी से हत्या कर दी गईं। सहजीवन संबंधी प्रावधान में स्पष्ट उल्लेख है कि पंजीकरण के बाद साथ रहने वाले प्रोमी युगल के संबंधों को कानूनी रूप से वैध माना जाएगा और महिला को वे सभी अधिकार प्राप्त होंगे, जो विवाह के बाद प्राप्त होते हैं। मगर निजता के समर्थक वुछ लोगों को यह कानून नैतिक निगरानी रखने का प्रायास लग सकता है। निजता के अधिकार की रक्षा अवश्य होनी चाहिए, मगर इस अधिकार की आड़ में या इसका बेजा फायदा उठाते हुए अगर वुछ लोग समाज और व्यवस्था के सामने मुश्किल पैदा करते हैं तो उन्हें अनुशासित करने की जिम्मेदारी से भला कोईं राज्य वैसे बच सकता है। —— अनिल नरेन्द्र

हम तो तीन ही मांग रहे हैं

मांग रहे हैं उत्तर प्रादेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रातिष्ठा का जिव््रा करते हुए काशी और मथुरा की तरफ इशारा किया और कहा कि अयोध्या का मुद्दा जब लोगों ने देखा तो नंदी बाबा ने भी इंतजार किए बगैर रात में बैरिकेड तोड़वा डाले और अब हमारे वृष्ण कन्हैया भी कहा मानने वाले हैं। मुख्यमंत्री ने किसी का नाम लिए बगैर कहा कि पांडवों ने कौरवों से सिर्प पांच गांव मांगे थे लेकिन सैंकड़ों वर्षो से यहां की आस्था केवल तीन (अयोध्या, काशी और मथुरा) के लिए बात कर रही है। योगी आदित्यनाथ ने विपक्ष पर हमला करते हुए सवाल किया कि सनातन धर्म की आस्था के तीन प्रामुख स्थलों अयोध्या, काशी और मथुरा का विकास आखिर किस मंशा से रोका गया था। योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा में भाग लेते हुए अपने संबोधन में कहा, सदियों तक अयोध्या वुत्सित मंशा के लिए अभिशप्त थी और वह एक सुनियोजित तिरस्कार भी झेलती रही। लोक आस्था और जनभावनाओं के साथ ऐसा खिलवाड़ संभवत: दूसरी जगह देखने को नहीं मिला होगा। अयोध्या के साथ अन्याय हुआ। मुख्यमंत्री ने कहा, भारत के अंदर लोक आस्था का अपमान हो, बहुसंख्यक समाज गिड़गिड़ाए, यह पहली बार देखने को मिला। दुनिया देख रही है कि स्वतंत्र भारत में यह काम पहले होना चाहिए था। वर्ष 1947 में प्रारंभ होना चाहिए था और इस आस्था के लिए बारबार गुहार लगाता रहा। उन्होंने कहा हमने जो कहा सो किया। जो संकल्प लिया उसकी सिद्धि भी की। हम केवल बोलते नहीं हैं, करते हैं। उन्होंेने कहा कि हम मानते हैं कि मंदिर का विवाद न्यायालय में था लेकिन वहां की सड़कों को तो चौड़ा किया जा सकता था। वहां के घरों का पुनरुद्धार किया जा सकता था। अयोध्यावासियों को बिजली आपूर्ति की जासकती थी। वहां स्वच्छता की व्यवस्था तो की जा सकती थी। वहां स्वास्थ्य की बेहतर सुविधाएं की जा सकती थीं। वहां हवाईं अड्डा बनाया जा सकता था। सवाल यह है कि भाजपा इस मुद्दे पर वैसे आगे बढ़ेगी? इस सवाल पर पाटा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, जब हम राम मंदिर का प्रास्ताव लाए थे, तब हालात अलग थे। हम विपक्ष में थे इसलिए हमें लम्बी अदालती कार्रवाईं से होकर गुजरना पड़ा। अब वेंद्र और यूपी दोनों जगह हम सरकार में हैं। हम मुस्लिम पक्षों से बात करके हल निकालने की कोशिश करेंगे। यूपी सरकार जन्मभूमि को लेकर कानून भी बना सकती है। अदालत जाने का विकल्प सबसे आखिरी होगा? श्रीवृष्ण जन्मभूमि को लेकर प्रास्ताव के सवाल पर पाटा नेताओं का कहना है कि यह एक बड़ा संकल्प है और आने वाले वुछ साल में यह पाटा के शीर्ष नेतृत्व के सत्ता संतुलन का कारक बन सकता है। एक विचार यह है कि पाटा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की तरफ से प्रास्ताव लाया जाए। दूसरा विचार यह है कि राज्य इकाईं प्रास्ताव लाए, जिसका अनुमोदन राष्ट्रीय परिषद करे। तीसरा विचार यह है कि धार्मिक या सांस्वृतिक संगठनों की तरफ से प्रास्ताव लाकर भाजपा से मांग पूरी करने को कहा जाए और फिर उस पर राष्ट्रीय परिषद की मुहर लगाईं जाए।

Saturday, 10 February 2024

क्यों भाई चाचा हां भतीजा


चाचा को झटका, भतीजा ही असली। भारतीय निर्वाचन आयोग ने मंगलवार को फैसला दिया कि अजीत पवार के नेतृत्व वाला खेमा ही असली राकांपा है। इसके साथ ही अजीत पवार और राकांपा संस्थापक शरद पवार गुट के बीच पार्टी पर दावे को लेकर जारी विवाद भी समाप्त हो गया। आयोग के इस फैसले को अजीत के चाचा शरद पवार के लिए एक ही झटके के रूप में देखा जा रहा है। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने संवाददाताओं से कहा कि उनके नेतृत्व वाली राकांपा को राज्य के अधिकांश विधायकों के साथ-साथ जिला अध्यक्षों का भी समर्थन प्राप्त है। 50 विधायक हमारे साथ हैं। लोकतंत्र में बहुमत मायने रखता है। यही कारण है कि निर्वाचन आयोग ने हमें पार्टी का नाम और चिह्न आबंटित किया है। वहीं राकांपा के शरद पवार खेमे की सांसद सुप्रिया सुले ने आयोग के फैसले को अदृश्य ताकत की जीत और महाराष्ट्र व मराठी लोगों के खिलाफ एक साजिश करार दिया। उन्होंने कहा कि यह लोकतंत्र की हत्या है। चुनाव आयोग ने अपने आदेश में कहा कि अजीत पवार के नेतृत्व वाले समूह को राकांपा का चुनाव चिह्न दीवार घड़ी आबंटित किया गया है। इसलिए उनके गुट को पार्टी का नाम और उससे जुड़ा चुनाव चिह्न इस्तेमाल करने का अधिकार है। छह महीने में 10 से अधिक सुनवाई के बाद आयोग ने शरद पवार को भी नई पार्टी के नाम की तीन प्राथमिकताएं सुझाने के लिए बुधवार दोपहर तीन बजे तक का समय दिया। आयोग ने पाया कि विधायकों का बहुमत अजीत के पक्ष में है। हालांकि दोनों गुट पार्टी संविधान और संगठनात्मक चुनावों के बाहर करते हुए मिले। आयोग ने यह भी पाया कि दोनों गुटों में पदों पर नियुक्ति चुनाव प्रक्रिया अपनाने के बजाए अपने सदस्यों को नामांकित कर दी गई। जो पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र के विरुद्ध है। शरद के संगठनात्मक बहुमत के दावे में गंभीर विसंगिताओं के कारण उसे विश्वसनीय नहीं माना गया और अजीत गुट के पक्ष में निर्णय सुनाया गया। आयोग ने महाराष्ट्र में राज्यसभा की छह सीटों के लिए चुनाव की समय सीमा को ध्यान में रखते हुए शरद गुट से नई पार्टी के लिए तीन नामों का सुझाव मांगा है। उधर सुप्रिया सुले ने कहा कि पार्टी कार्यकर्ता शरद पवार के साथ हैं और पवार फिर से पार्टी का निर्माण करेंगे। शरद पवार गुट के एक और नेता जयंत पाटिल ने कहा कि पार्टी सुप्रीम कोर्ट का रुख करेगी। राकांपा नेता ने चंडीगढ़ मेयर चुनाव में उच्चतम न्यायालय द्वारा कि गई टिप्पणी का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि वह चंडीगढ़ मेयर चुनाव के संबंध में लोकतंत्र की हत्या की अनुमति नहीं दे सकता। आयोग ने यह भी कहा कि सियासी दलों को आंतरिक मामलों में पारदर्शिता रखने की जरूरत है। आयोग उम्मीद करता है, दल संगठनात्मक चुनावों व आतंरिक लोकतंत्र की जायज प्रक्रिया अपनाएंगे। समय आ गया है कि दल पार्टी संविधान को सार्वजनिक करें। किसी भी तरह के बदलाव अंदरूनी चुनाव में उतरे उम्मीदवारों का ब्यौरा, चुनाव की तारीखों, समय व स्थान के बारे में बताएं।

- अनिल नरेन्द्र

लोकतंत्र की हत्या स्वीकार नहीं


सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को चंडीगढ़ मेयर चुनाव में कथित धांधली के कारण दोबारा मतदान की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई की। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने वह वीडियो भी देखा जिसमें कथित तौर पर निर्वाचन अधिकारी अनिल मसीह मतपत्रों से छेड़छाड़ करते दिख रहे हैं। वीडियो देखकर कोर्ट ने बेहद सख्त लहजे में कहा, यह साफ देखा जा सकता है कि निर्वाचन अधिकारी मतपत्रों को खराब कर रहे हैं। कोई ऐसा कैसे कर सकता है? हम यह देखकर हैरान है। यह लोकतंत्र का मजाक है, लोकतंत्र की हत्या है। कोर्ट ने पूछा निर्वाचन अधिकारी कैमरे की ओर क्यों देख रहे हैं और भगोड़े की तरह क्यों भाग रहे हैं? उन्हें बताएं कि अब सुप्रीम कोर्ट उन पर नजर रख रहा है। मामले की अगली सुनवाई 12 फरवरी को होगी। सीजेआई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ आप के मेयर पद के प्रत्याशी कुलदीप कुमार की याचिका पर सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ मेयर चुनाव से जुड़े दस्तावेज हरियाणा हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार के पास जमा करने का आदेश दिया। मतपत्र वीडियोग्राफी सुरक्षित रखने का आदेश देते हुए कहा, मेयर चुनाव की पूरी प्रक्रिया का वीडियो पेश किया जाए। चीफ जस्टिस ने हाईकोर्ट पर सवाल उठाते हुए कहा, मामले में अंतरिम आदेश की जरूरत थी, जिसे देने में हाईकोर्ट विफल रहा। हाईकोर्ट ने मतपत्र सुरक्षित रखने का आदेश नहीं दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने नगर निगम की किसी भी कार्रवाई पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट न sकहा, हम इस तरह से लोकतंत्र की हत्या नहीं होने देंगे। देश में स्थिरता लाने वाली सबसे बड़ी ताकत चुनाव प्रक्रिया की पवित्रता है। अगर जरूरत पड़ी तो हम चंडीगढ़ मेयर पद का चुनाव दोबारा करवाने पर भी विचार करेंगे। कोर्ट ने चंडीगढ़ प्रशासन की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, निर्वाचन अधिकारी से कहिए कि हमें बताएं कि उन्होंने ऐसा क्यों किया? हम उन्हें नोटिस जारी कर रहे हैं। उनको अगली सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद रहना होगा। चुनाव आप-कांग्रेस ने मिलकर लड़ा। इनके मेयर प्रत्याशी को 20 और भाजपा को 16 वोट मिले। निर्वाचन अधिकारी ने आप-कांग्रेस के 8 वोट रद्द कर भाजपा को विजयी घोषित किया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का कहना था कि वीडियो में एकतरफा तस्वीर दिखाई गई है। आग्रह है कि कोर्ट को पूरे रिकार्ड देखने के बाद ही व्यापक दृष्टिकोण अपनाकर फैसला देना चाहिए। चुनाव में मतदान की प्रक्रिया और नतीजों में गड़बड़ी की शिकायतें लंबे समय से आती रही हैं। आजकल ईवीएम को लेकर भी भारी विवाद छिड़ा हुआ है। अतीत में मतपत्रों के जरिए होने वाले चुनावों में घोटालों को देखते हुए ईवीएम से मतदान की व्यवस्था बनी। मगर जब इस ईवीएम में धांधली होने की शिकायतें आने लगी तो इसको बैन करने की मांग जोरों पर उठ रही हैं। अगर चुनाव प्रक्रिया में ही स्वच्छता और पारदर्शिता सुनिश्चित नहीं की जाएगी, तो उसके नतीजों के आधार पर बने शासन के केंद्रों को कैसे लोकतांत्रिक और ईमानदार कहा जा सकता है? इसलिए सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी की अपनी अहमीयत है कि देश में स्थिरता लाने की सबसे एहम शक्ति चुनाव प्रक्रिया की शुचिता है। अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अंतरिम आदेश क्या देता है? क्योंकि हाल में देखा गया है कि टिप्पणियां तो बहुत सख्त होती हैं पर फैसला उसके विपरीत ही आता है। उम्मीद करते है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले को सख्ती से निपटेगा और चुनावों का निष्पक्ष, स्वतंत्र और पारदिर्शता बनाने का फैसला देगी।

Thursday, 8 February 2024

इराक और सीरिया पर अमेरिकी हमले


अमेरिका और ब्रिटेन ने यमन में 13 जगहों पर हूती विद्रोहियों के 36 ठिकानों पर संयुक्त हमले किए हैं। अमेरिका की ओर से शुक्रवार के दिन सीरिया और इराक में 85 लक्ष्यों पर हमले किए गए। उसकी ओर से यह पलटवार अमेरिकी सैनिक अड्डें पर खतरनाक ड्रोन हमले के बाद किया गया। ब्रिटेन के रक्षामंत्री ग्रांट शैप्स ने कहा कि हाल के हमले के बाद लाल सागर में हूती विद्रोही मनमानी नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह हमला सुरक्षा के लिए है न कि तनाव बढ़ाने के लिए। यमन के हूती विद्रोहियों ने नवम्बर में लाल सागर में व्यापारिक समुद्री जहाजों को निशाना बनाना शुरू कर दिया था, जिससे अंतर्राष्ट्रीय सप्लाई क्षेत्र प्रभावित हुई थी। हूती विद्रोहियों को ईरान का समर्थन हासिल है। शिपिंग कंपनियों ने लाल सागर का इस्तेमाल बंद कर दिया है। यहां से आमतौर पर लगभग 15 फीसदी अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यापार होता है। ये शिपिंग कंपनियां अब लाल सागर के बदले दक्षिण अफ्रीका के आसपास एक लंबे रास्ते का इस्तेमाल कर रही हैं। हूती विद्रोहियों का कहना है कि वह फलस्तीनियों के साथ एकजुटता जताने के लिए इजराइल से जुड़े समुद्री जहाजों को निशाना बना रहे हैं लेकिन ऐsसे बहुत से समुद्री जहाजों का इजराइल से कोई संबंध नहीं है। हालांकि यह ईरान पर सीधा हमला नहीं था। वाशिंगटन का कहना है कि अब पूर्व की हाल की अस्थिरता के पीछे अधिकतर ईरान की ताकत शामिल रही है। इराक और सीरिया में सात जगहों पर 85 लक्ष्यों को निशाना बनाया गया था। यह हमले ईरान समर्थक मिलिशिया और उनके ईरानी समर्थक कुद्रस फोसेर्ज (शक्तिशाली ईरानी रिवाल्युशनरी गार्ड्स) की क्षमताओं को कम करने के मकसद से किए गए थे। वाशिंगटन इस युद्ध में होने वाले अपने नुकसान का अंदाजा खुद लगाएगा। लेकिन यह संभावित तौर पर लड़ाकों की मौत से अधिक उन्हें तितर-बितर करने के लिए था। कई दिनों तक अपने इरादों को टेलीग्राफ के जरिए उजागर करते हुए वाशिंगटन ने कुद्रस फोर्सेस और उनके स्थानीय सहयोगियों को नुकसान वाले इलाकों से निकलने का समय दिया था। वाशिंगटन ने यह स्पष्ट किया कि वह ईरान के साथ सीधा टकराव नहीं चाहता है, शुक्रवार की कार्रवाई 28 जनवरी को जार्डन में तीन अमेरिकी सैनिकों की मौत के बाद इसलिए हुई कि आगे फिर अमेरिकियों को निशाना न बनाया जाए। बहरहाल इन हमलों का मकसद विशुद्ध रूप से सैनिक कार्रवाई तक सीमित नहीं था। उसने इराक की बेलिस्टिक मिसाइल और ड्रोन प्रोग्राम से कथित तौर पर शामिल कंपनियों के साथ ईरानी रिवाल्युरानरी गार्ड्स की साइबर इलेक्ट्रानिक कमांड के छह अधिकारियों पर भी पाबंदी लगाई। तीन दिन पहले ईरानी समर्थन प्राप्त इराकी मिलिशिया में से एक हिज्बुल्लाह के नेता ने कहा था कि उसने अमेरिकी सैनिकों के खिलाफ कार्रवाई स्थगित कर दी है जो इस बात का संभावित संकेत है कि ईरान पहले ही तनाव से बचने के लिए कोशिश कर रहा है लेकिन जबकि अमेरिका ने जवाबी हमला किया है तो क्या तेहरान अपनी रणनीति बदल सकता है। ईरान ने कहा कि वह अमेरिका से युद्ध नहीं चाहता लेकिन मध्यपूर्व में अपने सहयोगियों-हिज्बुल्लाह से लेकर यमन में हूती विद्रोहियों तक के जरिए जवाब देने के लिए उसके पास कई विकल्प हैं।

-अनिल नरेन्द्र

महाराष्ट्र सरकार के गिरोहों में लड़ाई


महाराष्ट्र के ठाणे जिले में भूमि विवाद के कारण मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के एक नेता को गोली मारकर घायल करने के आरोप में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक विधायक को गिरफ्तार किया गया है। शिवसेना के नेता की हालत नाजुक बनी हुई है। अधिकारियों ने शनिवार को यह जानकारी दी। उधर अदालत ने गिरफ्तार भाजपा विधायक गणपत गायकवाड को 14 दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने महेश गायकवाड के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी लेने के लिए अस्पताल का दौरा किया। उन्होंने घटना को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। वहीं उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने गोलीबारी की घटना को गंभीर बताते हुए इसकी उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए। वहीं शिवसेना (उद्धव ठाकरे) ने रविवार को आरोप लगाया कि महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में fिगरोहों के बीच लड़ाई छिड़ गई है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को समझना चाहिए कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की राज्य इकाई अन्य दलों को तोड़कर उनके नेताओं को इसमें शामिल करने के कारण कमजोर हो गई है। उद्धव ठाकरे के पुत्र एवं शिवसेना (उद्धव) के नेता आदित्य ठाकरे ने भी आरोप लगाया कि महाराष्ट्र में गिरोहों के बीच लड़ाई का नेतृत्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे कर रहे हैं। शुक्रवार देर रात भाजपा विधायक गणपत गायकवाड द्वारा शिवसेना (शिंदे गुट) के नेता महेश गायकवाड पर पुलिस थाने के अंदर की गई गोलीबारी, दोनों के बीच लंबे समय से चल रहे संपत्ति विवाद के साथ बढ़ती राजनीतिक रस्साकशी का नतीजा था। इस गोलीबारी में घायल महेश गायकवाड का इलाज चल रहा है और गोली चलाने वाला गणपत गायकवाड गिरफ्तार हो चुका है। अतिरिक्त पुलिस आयुक्त दत्तात्रेय शिंदे ने मीडिया को बताया कि कल्याण से भाजपा विधायक गणपत गायकवाड ने शुक्रवार रात उल्लासनगर इलाके में हिल लाइन पुलिस थाने में वरिष्ठ निरीक्षक के कक्ष के अंदर शिवसेना की कल्याण इकाई के प्रमुख महेश गायकवाड पर गोलियां चला दी। उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र में आपराधियों का साम्राज्य स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। महेश गायकवाड को पहले एक स्थानीय अस्पताल ले जाया गया जहां से उन्हें ठाणे स्थित एक निजी चिकित्सा केन्द्र ले जाया गया। अतिरिक्त पुलिस आयुक्त दत्तात्रेय शिंदे के मुताबिक गणपत गायकवाड का बेटा जमीन संबंधी विवाद के सिलसिले में शिकायत दर्ज कराने पुलिस थाने आया था तभी महेश गायकवाड अपने लोगों के साथ वहां पहुंचा। बाद में गणपत गायकवाड भी थाने पहुंचे। विधायक और शिवसेना नेता के बीच झगड़े के दौरान गणपत गायकवाड ने वरिष्ठ निरीक्षक के कक्ष के अंदर महेश गायकवाड पर गोलियां चला दीं। गणपत गायकवाड ने एक समाचार चैनल से कहा कि हां, मैंने खुद (उन्हें) गोली मारी। मुझे कोई पछतावा नहीं है। अगर मेरे बेटे को थाने के अंदर पुलिस के सामने पीटा जा रहा है तो मैं क्या करूंगा? मैंने पांच गोलियां चलाई। गणपत गायकवाड ने कहा कि यदि एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री हैं तो महाराष्ट्र में केवल अपराधी पैदा होंगे। आज उन्होंने मुझे जैसे भले आदमी को अपराधी बना दिया। उन्होंने हमले को आत्मरक्षा में उठाया कदम बताया। उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार के किसी सहयोगी का नाम लिए बिना कहा कि मौजूदा सरकार में गिरोहों के बीच युद्ध छिड़ गया है। 1990 के दशक में पिछली शिवसेना-भाजपा सरकार ने मुंबई में अंडरवर्ल्ड गिरोहों की कमर तोड़ दी थी।

Tuesday, 6 February 2024

तेजस्वी ने कहा खेला अभी बाकी है


राष्ट्रीय जनता दल नेता और बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार के एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से कुछ मिनट पहले राज्य के बदले सियासी घटनाक्रम पर पहली प्रतिक्रिया दी और कहा, अभी खेला शुरू हुआ है, खेला अभी बाकी है। बिहार में बीते कई दिन से सियासी हलचल जारी थी। नीतीश कुमार के पाला बदलने की अटकलें लगाई जा रही थीं लेकिन इस बीच न तो लालू कुछ बोले और न ही तेजस्वी ने अपनी चुप्पी तोड़ी। दोनों सार्वजनिक बयान देने से बच रहे हैं। एक टीवी एंकर ने तेजस्वी से इंटरव्यू के लिए समय मांगा तो तेजस्वी ने कहा कि विश्वास मत होने के बाद वह उनसे बात करेंगे। नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के ठीक पहले बहरहाल तेजस्वी यादव ने कहा कि गठबंधन से बाहर निकली नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइडेट को लेकर एक बड़ा दावा किया है। तेजस्वी यादव ने कहा, कि मैं जो कहता हूं वो करता हूं। आप लिख के ले लीजिए, जनता दल यूनाइटेड जो पार्टी है 2024 में ही खत्म हो जाएगी। तेजस्वी यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल बिहार विधानसभा की सबसे बड़ी पार्टी है। 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में राष्ट्रीय जनता दल के 79 विधायक हैं। कांग्रेस के 19 और कम्युनिस्ट पार्टियों के 16 विधायकों का भी समर्थन उनके साथ है। बिहार में बहुमत के लिए 122 विधायकों के समर्थन की दरकार है। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के 45 और बीजेपी के 78 विधायक हैं। हिंदुस्तानी आवामी मोर्चा (सेक्युलर) के चार विधायकों का समर्थन भी उनके साथ है यानि बहुमत की लकीर बहुत करीब है। इस बार नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की पार्टी साल 2022 में एक साथ आईं थीं। ये साथ करीब 17 महीने चला। तेजस्वी यादव ने कहा कि अब 17 साल (नीतीश जब से सीएम हैं) बनाम 17 महीने की तुलना होगी। तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को थका हुआ मुख्यमंत्री बताया। नीतीश कुमार के नेतृत्व में हाल ही में बनी सरकार में खींचतान आरंभ हो गई है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिन्दुस्तानी आवामी मोर्चा (हम) के नेता जतिन राम मांझी ने अपनी पार्टी के लिए अधिक हिस्सेदारी की मांग उठा दी है। मांझी ने शुक्रवार को कहा कि वह स्वर्ण जाति के उम्मीदवार के लिए एक और मंत्री पद चाहते हैं। उनके बेटे संतोष सुमन ने रविवार को राज्य में बनी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार में मंत्रीपद की शपथ ली थी। पूर्व मुख्यमंत्री ने संवाददाताओं से कहा राज्य में राजग की सरकार बनने से पहले मैंने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय से कहा था कि हम दो मंत्री पद चाहते हैं। अनुसूचित जाति से हमारा एक मंत्री है। अब हम चाहते हैं कि हमारी पार्टी से एक सवर्ण जाति के विधायक को मंत्रिमंडल में समायोजित किया जाए। बिहार में नीतीश कुमार को विश्वास मत हासिल करने में समस्या आ सकती है। खुद उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड के कुछ विधायक उनका बीजेपी के साथ जाने से खुश नहीं हैं। एक-दो ने तो खुलकर बयान भी दिया है। विश्लेषक कहते हैं कि जनता दल यूनाइटेड में कुछ विधायक पाला बदल सकते हैं। इसलिए शायद तेजस्वी यादव कहते हैं कि खेला तो अभी शुरू हुआ है, असल खेला तो अभी बाकी है।

- अनिल नरेन्द्र

झारखंड के फकीराना अंदाज वाला मुख्यमंत्री


पैरों में चप्पल, ढीली शर्ट-पैंट और सिर के बालों पर फैली सफेदी। चंपई सोरेन की यही पहचान है। वे सादगी से जीवन जीते रहे हैं चंपई सोरेन। अब चंपई सेरेन ने शुक्रवार को झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने चंपई को सीएम, कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम और राजद विधायक दल के नेता सत्यानंद को मंत्रीपरिषद की शपथ दिलाई। चंपई सोरेन को विधानसभा में 5 फरवरी को विश्वास मत हासिल करना था जो उन्होंने हासिल कर लिया। इसके लिए विधानसभा का दो दिवसीय विशेष सत्र बुलाया गया है। दूसरी ओर गठबंधन ने विधायकों को तोड़फोड़ से बचाने के लिए हैदराबाद भेज दिया था। गठबंधन ने गुरुवार को जारी वीडियो में 43 विधायकों का समर्थन दिखाया था। हेमंत सोरेन से प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की पूछताछ को लेकर ये संकेत मिलने लगे थे कि वो पद छोड़ सकते हैं। मीडिया रिपोर्टों में मंगलवार से नए सीएम के तौर पर हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन के नाम की अटकलें लगाई जा रही थीं। लेकिन बुधवार शाम नए नेता के तौर पर चंपई सोरेन का नाम सामने आया। पिछले बुधवार को हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और इस्तीफे के बाद चंपई को विधायक दल का नेता चुन लिया गया था और वह 43 विधायकों के समर्थन का पत्र राज्यपाल को सौंप चुके थे। लेकिन राजभवन से नई सरकार के गठन करने का समय नहीं मिलने से अनिश्चितता का माहौल बना हुआ था। झारखंड मुक्ति मोर्चा और गठबंधन के अन्य दलों में टूट की आशंका जाहिर की जा रही थी। राज्यपाल द्वारा शपथ ग्रहण न करवाने को लेकर तरह-तरह की अफवाहें उड़ने लगी थी। राज्यपाल की ओर से मुख्यमंत्री को शपथ दिलाने में हुई देरी पर शुक्रवार को लोकसभा में विपक्षी दलों ने काफी हंगामा किया। विपक्ष का कहना था कि बिहार में नीतीश कुमार को इस्तीफा देने के तुरन्त बाद नई सरकार के गठन के लिए आमंत्रित किया था। लेकिन झारखंड में ऐसा क्यों नहीं हुआ? चंपई सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के 67 वर्षीय नेता पार्टी प्रमुख शिबू सोरेन और उनके बेटे हेमंत सोरेन दोनों के विश्वसनीय रहे हैं। हेमंत सोरेन के मंत्रिमंडल में वे परिवहन और खाद्य व आपूर्ति विभाग का काम देख रहे थे। झारखंड राज्य गठन के आंदोलन में वे शिबू सोरेन के निकट सहयोगी रहे हैं। विधानसभा में वे सरायकेला सीट पर सात बार विधायक रहे हैं। 11 नवंबर 1956 को जन्मे चंपई सोरेन ने दसवीं तक की ही पढ़ाई की है। उल्लेखनीय है हेमंत सोरेन पर आदिवासी क्षेत्र की भूमि खरीद में कथित हेराफेरी का आरोप लगाया गया है। किसी राज्य के चुने हुए मुख्यमंत्री पर ऐसे आरोप लगाना वाकई संगीन मामला है और इसमें कतई संदेह नहीं कि इसकी कड़ी जांच होनी चहिए और अगर वे भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाते हैं तो कानून अपना काम करे पर गिरफ्तारी तभी होनी चाहिए जब आरोप सिद्ध हो जाए। जनता द्वारा चुनी गई सरकार के प्रमुख की गिरफ्तारी कोई सामान्य मामला नहीं है और इसका आधार स्पष्ट होना चाहिए। वैसे भी धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) में जमानत मुश्किल से मिलती है। हेमंत सोरेन को गिरफ्तार करके अगर इरादा झारखंड सरकार को गिराना था या राष्ट्रपति शासन लगाने का इरादा था तो यह चाल फेल हो गई। झारखंड मुक्ति मोर्चा गठबंधन सरकार बरकरार है। शायद यह सोचा गया होगा कि पूरे देश के आदिवासी भाजपा के खिलाफ न हो जाएं जिसका सीधा असर 2024 के लोकसभा चुनाव पर पड़ता इसलिए चंपई सोरेन को एक पूरे दिन प्रतीक्षा के बाद शपथ दिलाई गई।

Saturday, 3 February 2024

पीएफआईं के 15 कार्यंकर्ताओं को सजा-ए-मौत

इस सम्पादकीय और पूर्व के अन्य संपादकीय देखने के लिए अपने इंटरनेट/ब्राउजर की एड्रेस बार में टाइप करें पूूज्://हग्त्हाह्ंत्दु.ंत्दुेज्दू.म्दस् को सजा-ए-मौत केरल की एक अदालत ने दिसम्बर 2021 में अलप्पुझा में बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के नेता रंजीत श्रीनिवासन की हत्या के मामले में प्रातिबंधित संगठन पीएफआईं से जुड़े 15 लोगों को मंगलवार को मौत की सजा सुनाईं। अतिरिक्त जिला न्यायाधीश मावेलिक्कारा वीजी श्रीदेवी ने दोषियों को सजा सुनाईं। मारे गए श्रीनिवासन के परिवार और बीजेपी ने पैसले का स्वागत किया। पाटा ने श्रीनिवासन को महान शहीद बताते हुए कहा कि उन्हें आज न्याय मिल गया। बीजेपी को ओबीसी मोर्चा के प्रादेश सचिव श्रीनिवासन पर 19 दिसम्बर 2021 को उनके परिवार के सामने पीएफआईं और सोशल डेमोव््रोटिक पाटा ऑफ इंडिया (एसडीपीआईं) से जुड़े कार्यंकर्ताओं ने उनके घर पर बेहरहमी से हमला कर उनकी हत्या कर दी थी। अभियोजक के अनुसार अदालत ने पाया कि 15 में से आठ आरोपी सीधे-सीधे मामले में शामिल थे। अदालत ने चार लोगों को भी हत्या का दोषी पाया क्योंकि वे अपराध में सीधे तौर पर शामिल लोगों के साथ घातक हथियारों से लैस होकर घटनास्थल पर पहुंचे थे, जिसका उद्देश्य श्रीनिवासन को भागने से रोकना और उसकी चीखें सुनकर घर में प्रावेश करने वाले किसी व्यक्ति को रोकना था। अदालत ने इस अपराध की साजिश रचने वाले तीन लोगों को भी हत्या का दोषी पाया। नतीजतन अदालत ने मामले के सभी 15 आरोपियों को सजाए-मौत सुनाईं। रंजीत श्रीनिवासन की हत्या में दोषियों को सजा सुनाते समय कोर्ट ने अहम टिप्पणी की। अदालत ने कहा, यह एक सुनियोजित हत्या थी और इसकी तैयारी महीनों पहले शुरू हो गईं होगी। हमारा विचार है कि असहाय पीिड़त ने कभी भी आरोपी को उकसाया नहीं था और अपराध का अंजाम पूर्व नियोजित था। अदालत ने राज्य सरकार की रिपोर्ट पर भी विचार किया, जिससे पता चलता है कि दोषी व्यक्ति कट्टर अपराधी है और सुधार की कोईं संभावना नहीं है। इस बात की संभावना बहुत कम है कि आरोपियों को सुधारा जा सके और उनका पुनर्वास किया जा सके। उन्होंने अपने अपराध के लिए कोईं भी पाताप नहीं दिखाया। इसलिए, इसके सुधार और पुनर्वास की संभावना को कम करने वाली परिस्थिति नहीं माना जा सकता है। कोर्ट ने 242 पन्नों के आदेश में कहा, यह सच है कि यह दिखाने के लिए कोईं रिकार्ड नहीं है कि आरोपी को पहले दोषी ठहराया गया था। सबसे महत्वपूर्ण पहल यह है कि जघन्य अपराध सबसे सुरक्षित जगह यानि पीिड़त के घर में उसकी मां, पत्नी और नाबालिग बच्चे की उपस्थिति में किया गया था। यह सब अपराध की व््राूरता को दर्शाता है। मामले में दोषी करार दिए लोगों में नैसम, अजमल, अनूप, मोहम्मद असलम, अब्दुल कलाम, जफरुद्दीन, मनशाद, जसीबा राजा, नवास, समीर, नजीर, जाकिर हुसैन, शाजी पूवनथुंगल और शेरनाम अशरफ शामिल हैं। ये सभी पीएफआईं और सोशल डेमोव््रोटिक पाटा ऑफ इंडिया (एसडीपीआईं) से जुड़े हुए थे। श्रीनिवासन की पत्नी ने कहा था घटना की ईंमानदारी से जांच करने के लिए अभियोजन और जांच अधिकारियों के प्राति आभार व्यक्त करते हैं, जिसके चलते दोषियों को अधिकतम सजा हुईं। आखिरकार सत्य की जीत हुईं। ——अनिल नरेन्द्र

चंडीगढ़ मेयर का चुनाव : आठ वोट का खेला

आठ वोट का खेला बीजेपी ने मंगलवार को चंडीगढ़ मेयर चुनाव में जीत हासिल की।साथ मिलकर चुनाव में उतरी आम आदमी पाटा (आप) और कांग्रोस ने इस पर बवाल उठाए। बीजेपी उम्मीदवार मनोज सोनकर ने कांग्रोस समर्थित आम आदमी पाटा ने वुलदीप वुमार को हराया। सोनकर को 16 वोट मिले जबकि वुलदीप के पक्ष में 12 मत आए। 8 वोटों को अवैध घोषित कर दिया गया। आप ने पंजाब-हरियाणा हाईंकोर्ट में अजा दी है। मांग की गईं है कि चुनाव रद्द करें और रिटायर जज की देखरेख में दोबरा चुनाव हों। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविद केजरीवाल ने मंगलवार को कहा कि चंडीगढ़ मेयर चुनाव में दिन दहाड़े जिस तरह से बेईंमानी की गईं वह बेहद चिताजनक है। अगर, एक मेयर के चुनाव में ये लोग इतना गिर सकते हैं तो देश के चुनाव में तो ये किसी भी हद तक जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि बेईंमानी करके बीजेपी को जिता दिया गया। देश के लोकतंत्र के लिए ये गुंडागदा बेहद खतरनाक है। आज का दिन लोकतंत्र के लिए काला दिन है। चंडीगढ़ मेयर चुनाव में मेयर समेत सभी तीन पदों पर बीजेपी उम्मीदवार की जीत और कांग्रोस-आप गठबंधन के उम्मीदवार की हार के बाद केजरीवाल की यह प्रातिव््िराया आईं। उधर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने चंडीगढ़ मेयर चुनाव में इंडिया की हार पर कटाक्ष किया। उन्होंने कहा की उनके उम्मीदवार की हार से पता चलता है कि न तो उनका अंकगणित काम कर रहा है और न ही उनकी वैमिस्ट्री। अरविद केजरीवाल ने कहा कि पूरे देश ने देखा कि चंडीगढ़ मेयर के चुनाव में क्या हुआ। सभी ने देखा कि उन्होंने किस तरह वोट चुराये और अपने उम्मीदवार को बलपूर्वक जिताया। मुद्दा यह नहीं है कि मेयर कौन बनता है, लेकिन देश नहीं हारना चाहिए और लोकतंत्र नहीं हारना चाहिए। केजरीवाल ने कहा, कांग्रोस-आप गठबंधन के पास स्पष्ट बहुमत था और यह सीधा चुनाव था। आठ वोट या वुल वोटों का 25 प्रातिशत अवैध घोषित कर दिया गया यह किस तरह का चुनाव था? पंजाब के मुख्यमंत्री भगवत मान ने चुनाव में धोखाधड़ी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा इस दिन को हमारे देश के इतिहास में काले दिन के रूप में याद किया जाएगा। मेयर पद के लिए परिणाम घोषित होते ही विपक्षी गठबंधन इंडिया के दोनों दलों के पार्षदों ने हंगामा कर दिया।पंजाब के मुख्यमंत्री भगवत मान ने निर्वाचन अधिकारी अनिल मसीह पर काउंटिग के दौरान मतपत्रों पर वुछ निशान बनाकर उन्हें अवैध करार देने का आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया कि अनिल मसीह बीजेपी के अल्पसंख्यक प्राकोष्ठ के पदाधिकारी हैं जिन्हें निर्वाचन अधिकारी बनाया गया। मान ने कहा मेरी मांग है कि निर्वाचन अधिकारी के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज होने चाहिए। उन्होंने लोकतंत्र की हत्या की है।कांग्रोस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा लोकतांत्रिक व्यवस्था पर निर्लज्ज तरीके से कब्जा किया गया। मेयर चुनाव जीतने के लिए विपक्षी वोटों को अवैध घोषित करना दर्शाता है कि लोकतांत्रिक जनादेश को खत्म करना बीजेपी की दूसरी प्रावृति है। पवन खेड़ा ने कहा कि महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर बीजेपी के वृत्य पर कोईं आार्यं नहीं है। बीजेपी ने चंडीगढ़ में लोकतंत्र की हत्या के लिए 30 जनवरी का दिन चुना। मामला हाईंकोर्ट में है, देखें कोर्ट क्या कार्रवाईं करता है।

Thursday, 1 February 2024

अपने बूते बहुमत नहीं फिर भी मुख्यमंत्री

बिहार में सियासी पाला बदलकर सीएम नीतीश वुमार अब फिर से एनडीए का हिस्सा बन गए हैं। जितनी बार नीतीश वुमार ने भाजपा के साथ गठबंधन किया, साथ छोड़ा और फिर से गठबंधन किया, उसके लिए उनका नाम गिनीज बुक ऑफ रिकार्डस में दर्ज होने लायक है।

सबसे मजेदार बात यह है कि जनता दल (एकीवृत) के अध्यक्ष नीतीश वुमार ने खुद को एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित किया है, जिन्होंने सबसे लंबे समय तक बिहार में शासन किया। जबकि उनकी पाटा कभी भी अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर पाईं। अपने सहयोगियों के साथ नीतीश (72) की जल्द ही खटपट शुरू हो जाती है। यह उनका राजनीतिक कौशल है कि वे साझेदार बदल लेते हैं और मुख्यमंत्री की वुसा पर बने रहते हैं। उनके चार दशकों के राजनीतिक दौर में अवसरवादिता का आरोप और पलटू राम जैसे नामों के साथ नीतीश पर तंज कसा जाता रहा। हालांकि उनके ऐसे प्राशंसकों की भी कमी नहीं है जो उन्हें भ्रष्टाचार और भाईं-भतीजावाद से दूर रहने और धार्मिक बहुसंख्यक के आगे कभी नहीं झुकने वाला नेता करार देते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि नीतीश वुमार को इस बार ज्यादा आव््रामक बीजेपी का सामना करना होगा क्योंकि पीएम मोदी और अमित शाह बिहार जीतना चाहते हैं। बीजेपी नीतीश वुमार के साथ साझेदारी के लिए शायद इसलिए तैयार हुईं क्योंकि वो विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया को नुकसान पहुंचाना चाहती होगी। पाटा से जुड़े लोगों का कहना है कि बिहार में बीजेपी पूरा नियंत्रण अपने पास लेना चाहती है। एक बीजेपी नेता ने कहा, बिहार बीजेपी की आपत्तियों के बावजूद शीर्ष नेतृत्व नीतीश वुमार के साथ गया। ये जीतने के लिए झुकने वाली रणनीति है। इस बार बिहार नीतीश वुमार नहीं, बीजेपी चलाएगी। हालांकि मोदी और शाह लोकसभा चुनावों तक नीतीश वुमार के मामले में दखल नहीं देंगे ताकि चुनावों में बिहार से ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल की जा सवें। इस बार लगता है कि बीजेपी जेडीयू से सीटों पर लड़ेगी। 2019 चुनाव में बीजेपी और जेडीयू 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। बाकी 6 सीटों पर लोक जनशक्ति पाटा ने चुनाव लड़ा था। इस बार लगता है कि बीजेपी 20 से ज्यादा सीटों पर खुद लड़ेगी। पाटा के रणनीतिकारों का कहना है कि लोकसभा चुनाव के बाद बिहार में बीजेपी अपनी पकड़ मजबूत करने की शुरुआत करेगी ताकि नीतीश को किनारे किया जा सके। नीतीश वुमार 72 साल के हो चुके हैं। नीतीश अपने राजनीतिक करियर के ढलान पर हैं और बिना किसी मजबूत उत्तराधिकारी के हैं। बीजेपी का मानना है कि इन कारणों से नीतीश को किनारे करना आसान होगा। इस वक्त भी बिहार में जेडीयू की हालत बहुत अच्छी नहीं है। 243 सीटों वाले बिहार में जेडीयू के पास 44 विधायक हैं। वहीं बीजेपी के 78 विधायक हैं। अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में अगर बीजेपी जेडीयू से ज्यादा सीटें जीत ली तो वो मुख्यमंत्री की वुसा पर अपना दावा करेगी। बीजेपी के एक नेता ने कहा कि नीतीश को सम्मानजनक निकासी दी जाएगी और 2025 में उन्हें केन्द्र में जगह दी जा सकती है।
लगता है कि नीतीश ने बड़ा जुआ खेला है।
अनिल नरेंद्र ।

ज्ञानवापी में मस्जिद से पहले था मंदिर

पहले था मंदिर ज्ञानवापी परिसर की भारतीय पुरातत्व सव्रेक्षण (एएसआईं) की सव्रे रिपोर्ट के मुताबिक ज्ञानवापी बड़ा हिदू मंदिर था। सव्रे के दौरान 32 जगह मंदिर से संबंधित प्रामाण मिले हैं। पक्षकारों को जो सव्रे रिपोर्ट दी गईं है, वह 839 पेज की है। पािमी दीवार हिदू मंदिर का हिस्सा है। इसे आसानी से पहचाना जा सकता है जो स्तंभ मिले हैं, वो भी मंदिर के हैं।

उनका दोबारा इस्तेमाल किया गया है। मुकदमें के पक्षकारों ने सव्रे रिपोर्ट बृहस्पतिवार को सार्वजनिक कर दी। इसके मुताबिक, देवनगरी, ग्रांथों तेलगु व कन्नड़ भाषा में आलेख भी मिले हैं। जनार्दन, रुद्र और विश्वेश्वर के शिलालेख भी हैं। एक जगह महामुक्ति मंडप लिखा हुआ है, जिसे अहम साक्ष्य माना गया है। हिन्दु पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने बताया, एएसआईं ने माना है कि मंदिर सत्रहवीं शताब्दी में तोड़ा गया था।

इसकी तिथि 2 सितम्बर 1669 हो सकती है। हिन्दू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन के अनुसार, एएसआईं रिपोर्ट में कहा गया है कि 13वीं सदी में औरंगजेब ने विश्वनाथ मंदिर की संरचना को नष्ट कर मस्जिद का निर्माण कराया था। मंदिर के वुछ हिस्से में बदलाव कर पुन: इस्तेमाल किया गया। रिपोर्ट के अनुसार मासिर-ए-आलमगिरी में उल्लेख है कि 2 सितम्बर 1669 को सम्राट के आदेश पर औरंगजेब के अधिकारियों ने विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त किया था। ज्ञानवापी में मस्जिद निर्माण औरंगजेब के शासन के 20वें वर्ष यानि 1676-77 में किया गया।

बरामदे व अन्य हिस्सों की मरम्मत 1792-93 में की गईं। ज्ञानवापी में तहखाना बनाते समय मंदिर के स्तंभों का ही उपयोग किया गया था।

देवी-देवताओं की मूर्तियों व नक्काशी अंदर वास्तुशिल्प ज्ञानवापी के एस-2 तहखाने में पेंकी गईं मिट्टी के नीचे दबे पाए गए। ज्ञानवापी में 34 शिलालेख मिले हैं। जो पहले मौजूद हिन्दू मंदिर के पत्थर के हैं। अंदर की तरफ ललाटबिब, पक्षियों और विवृत छवि वाला छोटा प्रावेश द्वार है। बाहर की तरफ सजावट के लिए उकेरे जानवरों से पता चलता है कि पािमी दीवार हिदु मंदिर का शेष हिस्सा है। कला व वास्तुकला के आधार पर इस पूर्व संरचना को हिन्दु मंदिर के रूप में पहचाना जा सकता है। हिन्दु महिला वादी ने कहा, हिन्दू पक्ष का दावा सच साबित हुआ है।

विश्वेश्वर मंदिर ध्वस्त कर उसे मस्जिद का रूप दिया गया। अधिवक्ता जैन का दावा है कि मौजूदा वास्तुशिल्प अवशेष, दीवारों पर सजाए गए सांचे, वेंद्रीय कक्ष में कर्ण रथ व प्राति रथ मिले हैं। पािमी कक्ष की पूवी दीवार पर बड़ा सजाया प्रावेश द्वार है। ज्ञानवापी परिसर की दीवारों और अवशेष पर हिन्दु धर्म से जुड़े कईं शब्द व चित्र पूर्व में यहां मंदिर होने का साक्ष्य दे रहे हैं। मार्बल व बलुआ पत्थर के कईं शिवलिग और नदी संकेत दे रहे हैं कि यहां पूर्व में विधि-विधान से पूजा-पाठ होता रहा होगा। इसमें एक मार्बल पर 2.5 सेमी का शिवलिग सही स्थिति में मिला है। इसी प्राकार 8.5 सेमी लंबे, 5.5 सेमी ऊंचे व 4 सेमी चौड़े पत्थर का नंदी भी ठीक स्थिति में है। एएसआईं ने सव्रे रिपोर्ट में बाकायदा इसका उल्लेख भी किया है। एएसआईं की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि पिलर और स्तंभों पर अंकित प्याला (हिन्दु पौराणिक प्राणी) की कईं आवृतियों को न केवल काटा गया है। बल्कि उस पर पूल-पत्ती की श्रंखला बनाकर भ्रमिक करने की कोशिश भी की गईं है। रिपोर्ट में स्वास्तिक को लेकर बताया गया है कि यह दुनिया के सबसे प्राचीन प्रातीकों में एक माना जाता है। भारत में इस प्रातीक को हिन्दू शुभ मानते हैं। साथ ही भगवान शिव का त्रिशूल है। यह दिव्य प्रातीक व प्रायोग हिन्दुओं की ओर से किया जाता है।