Saturday, 29 June 2024

47 दिन में कैसे परिपक्व हो गए आकाश?

बसपा सुप्रीमो मायावती अपने चौंकाने वाले फैसलों के लिए जानी जाती हैं। सभी हैरान हुए थे जब उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को लोकसभा चुनाव के बीच में 7 मई को अपने उत्तराधिकारी और राष्ट्रीय को-ऑर्डिनेटर के पद से हटा दिया था। तब उन्होंने परिपक्वता आने तक पद से हटाने की बात कही थी। अब ठीक 47 दिन बाद रविवार को हुई बसपा की राष्ट्रीय बैठक में आकाश को फिर से आशीर्वाद दिया और पहले की तरह अपना उत्तराधिकारी और राष्ट्रीय को-ऑर्डिनेटर के पद पर बहाल कर दिया। राजनीतिक गलियारों में यही सवाल उठ रहा है कि आखिर 47 दिन में आकाश आनंद कैसे परिपक्व हो गए? उनको क्यों हटाया गया और फिर बहाल कर दिया गया? ऐसा करने के पीछे रणनीति क्या है या कोई मजबूरी है। इससे लोकसभा चुनाव में बसपा को बड़ा झटका लगा है और वह अपने कैडर वोट को भी नहीं बचा सकी है। बसपा के लिए यह सबसे बुरा दौर है, बहन जी ने आकाश आनंद को फिर से क्यों बहाल किया? पार्टी सूत्रों कहा कहना है कि आकाश की वापसी तो होनी ही थी। लोकसभा चुनाव के बाद प्रमुख पदाधिकारियें और को-आर्डिनेटरों से बहन जी ने जब फीडबैक लिया, उसमें भी यही बात आई कि आकाश को चुनाव के बीच से हटाने से ज्यादा नुकसान हुआ है। आकाश को खासतौर से युवा पसंद करते हैं। बीएसपी के पास अब खुद मायावती के अलावा पहले की तरह बड़े चेहरे नहीं हैं, ऐसे में आकाश वह चेहरा हो सकते हैं। खासतौर से जब कांग्रेस में राहुल और प्रियंका गांधी हैं और समाजवादी पार्टी में अखिलेश जैसे चेहरे हैं। ऐसे में आकाश के साथ युवा जुड़ेंगे। उधर आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर खुद बड़े अंतर से जीते हैं। उनके साथ भी युवा जुड़ रहे हैं। ऐसे में खतरा यह भी है कि कहीं बसपा के कैडर वोट और युवा उधर न चले जाएं। ढलती उम्र के साथ ही पार्टी के खिसकते जनाधार को देखते हुए मायावती को अब युवा भतीजे आकाश आनंद से ही चमत्कार की बड़ी उम्मीद है। वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव में दो दशक पुराने 2007 के नतीजे दोहराने के लिए मायावती ने आकाश पर बड़ा दांव लगाया है। 2006 में कांशीराम के न रहने के बाद 2007 के विधानसभा चुनाव में जिस बसपा ने 30.43 प्रतिशत वोट और 206 विधायकों के साथ पहली बार राज्य में बहुमत की सरकार बनाई थी। उसका इस समय न लोकसभा और न ही राज्यसभा में कोई सदस्य है। विधानसभा में भी सिर्फ एक सदस्य है, जबकि विधान परिषद में कोई सदस्य नहीं है। पार्टी के तेजी से खिसकते जनाधार का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि 18वीं लोकसभा के चुनाव में इसको सिर्फ 9.39 प्रतिशत वोट हासिल हुए। एक बात साफ है कि वंचित समाज से भी अब बहन जी का पहले जैसा जादू नही रहा। इसका बड़ा कारण यह माना जाता है कि मायावती ने गलत समय पर गलत फैसले किए। बसपा केन्द्राrय कार्यकारिणी की बैठक में लोकसभा चुनाव में हार के कारणों पर समीक्षा की गई। इनमें कहा गया कि विपक्षी दलों ने संविधान बचाओ जैसे मुद्दों को लेकर जो प्रचार किया वह दलितों को भा गया। बसपा का पर्दे के पीछे भाजपा का साथ देना और इंडिया गठबंधन के साथ न आना भी बहनजी को बहुत भारी पड़ा। देखना, यह होगा कि क्या बसपा अब अपने खोए हुए वोट बैंक को वापस ला सकेगी? -अनिल नरेन्द्र

राहुल गांधी बने नेता प्रतिपक्ष

कांग्रेस ने मंगलवार को ऐलान किया कि राहुल गांधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष होंगे। 2004 में चुनावी राजनीति में आए राहुल तब से ही कोई पद लेने से बचते रहे थे। यहां तक कि पार्टी प्रमुख के पद से भी इस्तीफा दे दिया था। लेकिन अब राहुल अनिच्छुक नेता की छवि तोड़ते दिख रहे हैं। राहुल ने नेता प्रतिपक्ष का पद ले लिया है और बुधवार को उन्होंने लोकसभा में अपनी बात भी रखी। 10 साल बाद लोकसभा को नेता प्रतिपक्ष मिला है। बुधवार को लोकसभा में बतौर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पहली बार बोले। उन्होंने ओम बिरला से फिर लोकसभा स्पीकर बनने पर बधाई देते हुए कहा, जाहिर है कि सरकार के पास राजनीति शक्ति है लेकिन विपक्ष भी भारत के लोगों की आवाज का प्रतिनिधित्व कर रहा है। इस बार विपक्ष भारत के लोगों की आवाज का प्रतिनिधि ज्यादा दमदार तरीके से कर रहा है। विपक्ष आपको संसद चलाने में मदद करेगा। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि सहयोग भरोसे के साथ होना चाहिए। विपक्ष की आवाज संसद में सुनाई दे यह बहुत जरूरी है। हमें पूरी उम्मीद है कि विपक्ष की आवाज संसद में दबाई नहीं जाएगी। राहुल गांधी को करोड़ों देशवासियों ने इस उम्मीद से चुना है कि वह जनता के मुद्दे संसद में जोर-शोर से उठाएंगे। इस सरकार के तेवर पहले जैसे ही हैं। आज भी यह सरकार वैसे ही चलने की कोशिश कर रही है जैसे पिछली लोकसभा में चली थी। सीटें बेशक कम हुई हो पर तेवर वहीं है। प्राप्त संकेतों से साफ है कि डर के सहारे, ईडी के सहारे, सीबीआई के सहारे, आयकर के सहारे यह वैसे ही चलेंगे। राहुल व तमाम प्रतिपक्ष इसका कैसे मुकाबला करेगा? अरविंद केजरीवाल का उदाहरण हमारे सामने है। हेमंत सोरेन का केस किसी से छिपा नहीं। राहुल नेता प्रतिपक्ष हैं न कि सिर्फ कांग्रेस नेता। अब उन्हें पूरे प्रतिपक्ष का ध्यान रखना होगा। अरविंद केजरीवाल व हेमंत सोरेन जैसे केसों के खिलाफ पूरी ताकत से विरोध करना होगा। पार्टी हित से ऊपर उठकर संविधान की रक्षा करनी होगी। यह फिर से डर और भय का जो वातावरण पिछली सरकार ने बनाया था उसका कड़ा मुकाबला करते हुए उन्हें फेल करना होगा। जिन मुद्दों से संविधान, महंगाई, बेरोजगारी, पेपर लीक होने, ईडी और अन्य एजेंसियों का दुरुपयोग रोकने को संसद में जोर-शोर से उठाना होगा। भय और डर के वातावरण से देश को कैसे निजात दिलाई जाए इस पर रणनीति तैयार करनी होगी। राहुल गांधी के लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता बनने से संसद और संसद के बाहर उनका कद बढ़ेगा। इंडिया गठबंधन के घटक दलों के बीच लोकसभा में तालमेल बैठाना होगा। संसद में दोनों सदनों में प्रतिपक्ष एक रणनीति बनाकर भले हम पर ध्यान देना होगा। नेता प्रतिपक्ष शैडो प्रधानमंत्री होता है, पूरे विपक्ष का न सिर्फ नेतृत्व करता है बल्कि कई जरूरी नियुक्तियों में पीएम के साथ बैठता है। पीएम की सोच और अप्रोच में कोई बदलाव नजर नहीं आता। राहुल कैसे एडजस्ट करेंगे यह देखना होगा। काम चलाऊ रिश्ते कायम कर पाना राहुल गांधी के लिए चुनौती होगी। विपक्ष के नेता की सबसे बड़ी व महत्वपूर्ण भूमिका संयुक्त संसदीय समितियों और चयन समितियों में होती है। चयन समितियां प्रर्वतन निदेशालय (ईडी), सीबीआई, केन्द्राrय सतर्कता आयोग, केन्द्राrय सूचना आयोग, लोकपाल, ये चुनाव आयुक्तों और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जैसे काफी महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियां करती है। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने मीडिया से कहा था, मैंने राहुल गांधी को पीछे छोड़ दिया है, अब मैं वो राहुल गांधी नहीं हूं।

Wednesday, 26 June 2024

चर्च में घुसकर पादरी का गला रेता, फायरिंग


रूस के उत्तरी काकेशस स्थित दागिस्तान में रविवार को हथियार बंद हमलावरों ने चर्च और सिनेगॉग (यहूदियों का प्रार्थना स्थल) को निशाना बनाया। इस हमले में 15 पुलिसकर्मियों समेत कई आम लोगों के मारे जाने की खबर है। पुलिस की जवाबी कार्रवाई में 6 हमलावर मारे गए हैं। हथियारबंद लोगों ने रूस के उत्तरी प्रांत में स्थित दागिस्तान के डर्बेंट और मखचकाला में उस वक्त हमला किया, जब लोग एक प्राचीन त्यौहार मना रहे थे। हमला करने वालों की पहचान नहीं हो पाई लेकिन इस इलाके में पहले भी हमले होते रहे हैं। मरने वालों में पुलिसकर्मियों के अलावा चर्च के पादरी, सिक्युरिटी गार्ड जैसे लोग भी शामिल हैं। दागिस्तान इस हमले से पहले भी खबरों में रह चुका है। बीते साल अक्तूबर महीने में मखचकाला शहर के एयरपोर्ट में कुछ लोग घुस गए थे और इसरायल की राजधानी तेल अवीव से आए लोगों की तलाश कर रहे थे। ये सभी फिलस्तीनी समर्थक थे जो यहूदी विरोधी नारेबाजी कर रहे थे। इस घटना का वीडियो भी सामने आया था, जिसमें देखा गया था कि कैसे सैकड़ों लोग एयरपोर्ट टर्मिनल पर यहूदी विरोधी नारेबाजी कर रहे थे। कुछ लोग फिलस्तीनी झंडे लिए हुए हैं और अल्लाह अकबर के नारे लगा रहे हैं, रूस की जांच कमेटी ने इसे आतंकवादी कृत्य बताते हुए कहा है कि उसने दागिस्तान में हमले की आपराधिक जांच शुरू कर दी है। दागिस्तान रूस का एक बड़ी मुस्लिम आबादी वाला प्रांत है जो चेचेन्या के पड़ोस में है। हमले में मरने वाले पादरी की पहचान फादर निकोले के रूप में हुई है। वे 66 साल के थे। इसके पहले अधिकारियों ने बताया था कि हमलावरों ने उनका गला रेत दिया था। इसके साथ ही चर्च के बाहर तैनात एक सुरक्षा गार्ड की भी हत्या कर दी। रूसी यहूदी कांग्रेस ने बताया है कि डर्बेंट और मखचकाला में एक-एक सिनेगॉग पर हमला किया गया है। डर्बेंट के सिनेगॉग में जब हमला किया गया उसके 40 मिनट पहले प्रार्थना हो चुकी थी और वहां कोई मौजूद नहीं था। हमलावरों ने सिनेगॉग की बिल्डिंग में आग लगा दी। इस दौरान बाहर खड़े पुलिसकर्मी और सुरक्षा गार्ड हमले में मारे गए। रूसी यहूदी कांग्रेsस ने कहा कि मृतकों और घायलों की सही संख्या के बारे में अभी नहीं बताया जा सकता है। भौगौलिक रूप से बेहद खूबसूरत नजर आता हो दागिस्तान लेकिन अंदर से उतना ही अस्थिर है। 9वीं शताब्दी से ही दागिस्तान में स्थिरता नहीं देखी गई है। जार का शासन हो या फिर स्टालिन का दौर इस प्रांत के लोगों ने हमेशा मुश्किलों का ही सामना किया है। इस्लामिक ताकतों ने इस इलाके में अपनी मौजूदगी हमेशा दर्ज करवाई है। सामंतवाद के दौर के बाद इस्लाम दागिस्तान में खूब फैला। इस जगह पर तकरीबन 3000 मस्जिदों में इस्लामी संस्थान और स्कूल हैं। साल 2012 के एक सर्वे के मुताबिक 83 प्रतिशत लोग इस्लाम को मानने वाले हैं। दागिस्तान में बीते कुछ दशकों में ऐसा देखा गया है कि इस्लामिक उग्रवादी संगठन सभी सुरक्षा बलों के साथ संघर्ष करते रहे हैं, लेकिन 7 अक्टूबर 2023 से शुरू हुए इजरायल और फिलस्तीन के युद्ध के बाद दागिस्तान में यहूदियों पर हमले तेज हुए हैं। यहां की बहुसंख्यक आबादी सुन्नी मुसलमानों की है। दागिस्तान प्रसिद्ध इस्लामी योद्धा इमाम शमील का जन्म स्थान भी है।

-अनिल नरेन्द्र

कौन होगा भाजपा का नया अध्यक्ष?


प्रधानमंत्री मोदी ने अपने नए मंत्रिमंडल में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को भी जगह दी है। नड्डा को कैबिनेट मंत्री बनाए जाने के बाद अब भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की चर्चा तेज हो गई है। नड्डा का कार्यकाल इसी साल जनवरी में खत्म हो चुका है। लोकसभा चुनाव तक विस्तार दिया गया था जो अब चंद दिनों में खत्म होने वाला है। इस बीच एक खबर यह भी मीडिया में आई कि भाजपा इस साल 4 राज्यों (महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा और जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव तक जेपी नड्डा को अध्यक्ष बनाए रख सकती है। मोदी जी और अमित शाह चाहते हैं कि नया भाजपा अध्यक्ष उनकी पसंद का हो। पर यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को शायद स्वीकार नहीं है। संघ ने लगता है कि फैसला कर लिया है कि भाजपा का नया अध्यक्ष उनकी सहमति से बने। वह नहीं चाहता कि मोदी-शाह अपनी मर्जी से फैसला थोपें। दरअसल संघ से प्राप्त संकेतों से लगता है कि उन्होंने यह फैसला कर लिया है कि पार्टी (भाजपा) को मोदी-शाह की जोड़ी से पार्टी को दूर किया जाए। मोदी-शाह अपनी सरकार चलाएं और पार्टी संघ के इशारों पर चले, यह संघ की मंशा है। वह मोदी-शाह की जोड़ी का सरकार और पार्टी दोनों पर फुल कंट्रोल नहीं चाहती। क्योंकि उनका मानना है कि भाजपा उस ढंग से काम नहीं कर रही जैसे उसे करना चाहिए। वैसे पिछले दिनों मोदी-शाह के इशारे पर जेपी नड्डा ने संघ को स्पष्ट संकेत दे दिया था कि अब भाजपा को संघ की जरूरत नहीं है। वाजपेयी के टाइम पर पार्टी कमजोर थी और उसे संघ की जरूरत थी। पर अब भाजपा बहुत बड़ी पार्टी बन गई है और उन्हें संघ की जरूरत नहीं है। संघ अपना सांस्कृतिक कार्यक्रम चलाए। भाजपा अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया में थोड़ा समय लग सकता है, क्योंकि पार्टी के संगठन चुनाव भी जल्द शुरू होंगे जिनके पूरा होने में समय लग सकता है। ऐसे में संभव है कि केंद्रीय संसदीय बोर्ड तब तक नड्डा को अध्यक्ष बनाए रखकर कार्यकारी अध्यक्ष की नियुक्ति कर सकता है। दोनों ही स्थितियों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भूमिका अहम होगी। संघ सीधे तौर पर भाजपा के कामकाज में दकल नहीं देता है, लेकिन संघ का अनुषांगिक संगठन होने के नाते भाजपा संगठन का ताना-बाना संघ ही बुनता है। संघ से आए पूर्णकालिक प्रचारक भाजपा में संगठन महामंत्रियों की भूमिका निभाते हैं। चाहे वह केंद्रीय स्तर पर हों या राज्यों में भाजपा का चुनावी राजनीतिक नेतृत्व कोई भी करे, लेकिन संगठन की रीढ़ में संघ ही रहता है। हाल के चुनाव में भाजपा और संघ के बीच समन्वय की कमी उभरी है। अब संघ की केरल में होने वाली समन्वय बैठक में जब भाजपा के अध्यक्ष भी हिस्सा लेने जाएंगे तब आगे की चर्चा हो सकती है। सूत्रों के अनुसार संघ भाजपा के अध्यक्ष के रूप में ऐसे व्यक्ति को पसंद कर सकता है जो न केवल संघ पृष्ठभूमि से हो, बल्कि संगठन को लेकर सजग और कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलने वाला हो। संघ नहीं चाहता है कि संगठन का मुखिया सरकार को पिछलग्गू दिखे। अभी किसी एक नाम पर विचार नहीं हुआ है। हालांकि चर्चा में जो नाम है वह भी रहेंगे लेकिन फैसला किस पर होगा, इसे लेकर संघ और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के बीच अभी मंथन होना बाकी है।

Tuesday, 25 June 2024

8 लोकसभा सीटों की ईवीएम जांच होगी


इलैक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को लेकर खींचतान जारी है। चुनाव परिणामों पर संदेह जताते हुए राजनीतिक दलों की ओर से ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायत करते हुए केंद्रीय चुनाव आयोग से जांच की मांग की गई है। आयोग ने एक जून 2024 को जारी एसओपी के तहत मिले कुल 11 शिकायत पत्रों का संज्ञान लेते हुए छह राज्यों में आठ संसदीय सीटों के 92 पोलिंग स्टेशनों जबकि आंध्र प्रदेश और ओडिशा राज्य विधानसभा की कुल तीन सीटों के 26 पोलिंग बूथों पर ईवीएम की जांच के आदेश जारी किए हैं। तेलगांना, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में तीन लोकसभा सीटों के 66 पोलिंग स्टेशनों पर ईवीएम की शिकायत भाजपा ने की थी। लोकसभा चुनाव में हरियाणा की करनाल और फरीदाबाद सीट से भाजपा ने जीत दर्ज की। करनाल सीट पर जीत दर्ज कर मनोहर लाल खट्टर केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्री जबकि फरीदाबाद से जीते कृष्णपाल गुर्जर को केन्द्राrय राज्य मंत्री बनाया गया है। उधर आंध्र प्रदेश और ओडिशा की तीन विधानसभा सीट के लिए भी ईवीएम सत्यापन के लिए आवेदन किए गए हैं। हरियाणा की दोनों सीटों पर ईवीएम सत्यापन के लिए कांग्रेस की तरफ से आवेदन किए गए हैं। करनाल लोकसभा सीट के चार मतदान केंद्र जबकि फरीदाबाद के पलवल मतदान केंद्र पर ईवीएम जांच के लिए आवेदन किए गए हैं। दोनों सीट पर कांग्रेस प्रत्याशियों की तरफ से शिकायतें दी गई हैं। तमिलनाडु की दो सीट (वेल्लोर और विरुधुनगर) से भाजपा और डीएमके प्रत्याशी ने ईवीएम सत्यापन के लिए आवेदन किए हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की एक-एक सीट पर आवेदन मिले हैं। छत्तीसगढ़ की कांकेर, महाराष्ट्र के अहमदनगर, तेलंगाना के जाहिराबाद और आंध्र प्रदेश के विजयनगरम सीट के केंद्रों पर ईवीएम सत्यापन के लिए आवेदन किया गया है। लोकसभा की कुल आठ में से भाजपा को तीन सीट पर जबकि कांग्रेस को 2 सीट पर जीत मिली। तीन सीटें दूसरे राजनीतिक दलों के खातों में आई। आयोग के अनुसार छह प्रदेशों की आठ संसदीय सीटों के लिए ईवीएम सत्यापन की मांग की गई है। निर्वाचन आयोग की ओर से एक जून को जारी मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के अनुसार, दूसरे और तीसरे स्थान पर आने वाले प्रत्याशी को ईवीएम सीट के लिए 47,200 रुपए का भुगतान करना होगा। संबंधित मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के अनुसार, ईवीएम बनाने वाली कंपनियां भारत इलैक्ट्रानिक्स लिमिटेड (बीईएल) और इलैक्ट्रानिक्स कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ने 40,000 रुपए और 18 फीसदी जीएसटी की राशि तय की है। अब चुनाव याचिका के स्टेटस की पुष्टि के आधार पर ईवीएम निर्माता द्वारा एसओपी का पालन कर कार्यक्रम जारी कर चार सप्ताह के भीतर ईवीएम की जांच शुरू कराई जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह प्रक्रिया पहली बार शायद हो रही है। देखें जांच में क्या निकलता है।

-अनिल नरेन्द्र

सैकड़ों हाजियों की दर्दनाक मौत


सऊदी अरब में हज यात्रा के दौरान सैकड़ों हाजियों की दुखद मौत की घटना हो गई है। इनमें से ज्यादातर लोगों की मौत का कारण अत्यधिक गर्मी बनी है, क्योंकि लोगों को 51 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान का सामना करना पड़ा। समाचार एजेंसी एएफपी ने एक अरब राजनयिक के हवाले से बताया कि हज यात्रा के दौरान अकेले मिस्र के 658 लोग मारे गए हैं। इंडोनेशिया का कहना है कि उसके 200 से ज्यादा नागरिकों की मौत हुई है, वहीं भारत ने 98 लोगों के मरने की जानकारी दी है। इसके अलावा पाकिस्तान, मलेशिया, जॉर्डन, ईरान, सेनेगल, ट्यूनीशिया, सूडान और इराक से स्वायत्त कुर्दिस्तान क्षेत्र ने भी मौतों की पुष्टि की है। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका का मानना है कि हज यात्रा के दौरान कई अमेरिकी भी मारे गए हैं। हज मुसलमानों का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। यह इस्लाम की पांच मौलिक बुनियादों में से एक है। यह शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम हर मुसलमान के लिए फ़र्ज़ या ज़रूरी है। यही वजह है कि हर साल एक तय समय पर दुनिया भर से मुस्लिम देशों के लाखों पुरुष और महिलाएं हज करने के लिए सऊदी अरब के शहर मक्का में जुटते हैं। सऊदी अरब का कहना है कि इस साल करीब 18 लाख लोगों ने हज यात्रा की है। एएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक मरने वालों में आधे ज्यादा लोगों ने तीर्थयात्री की तरह रजिस्ट्रेशन नहीं किया था, जिसके कारण उन्हें वातानुकूलित टेंट और बसों जैसी सुविधाएं नहीं मिल पाईं। सऊदी अरब ने हज यात्रा के दौरान हुई मौतों पर अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है। अब बात करते हैं कि उन कारणों की जिसकी वजह से हज यात्रियों की इतनी तादाद में मौत हुई। हज यात्रियों को अत्यधिक गर्मी के अलावा शारीरिक श्रम भी करना पड़ता है। बड़ी-बड़ी खुली जगहों में रुकना पड़ता है जिसके कारण गर्मी ज्यादा लगती है। माना जा रहा है कि सऊदी अरब में इस बार बहुत ज्यादा गर्मी पड़ रही है। वहां चल रही हीटवेल के कारण इतनी बड़ी संख्या में हज यात्रियों की मौत हुई है। हज यात्रियों में कई बुजुर्ग और अस्वस्थ भी होते हैं। कई रिपोर्ट्स ऐसी आई हैं कि जिसमें कहा गया है कि सऊदी अधिकारियों के कुप्रबंधन ने स्थिति को और खराब कर दिया। स्थिति यह हो गई है कि तीर्थयात्रियों के लिए पहले से तय जगहों पर भी यात्रियों को मुश्लिकों का सामना करना पड़ा। 38 साल की अमीना (बदला हुआ नाम) पाकिस्तान में इस्लामाबाद की रहने वाली हैं। वह कहती हैं- मक्का में जिन टेंटों में हम रुके हुए थे, वे एयर कंडीशनर नहीं थे। जो कूलर वहां लगाए गए थे, उनमें ज्यादातर समय पानी होता ही नहीं था और शिकायत करने पर अधिकारी सुनते ही नहीं थे। एक प्राइवेट ग्रुप के लिए हज यात्रा का आयोजन करने वाले मोहम्मद आचा ने बीबीसी को बताया कि गर्मियों के दौरान एक सामान्य हज यात्री को दिन में करीब 15 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। इसकी वजह से उन्हें हीट स्ट्रोक, थकान और पानी की कमी की सामना करना पड़ता है। हर साल हज के दौरान होने वाली मौतों का कुछ लोगों के लिए एक कारण यह है कि कई यात्री जीवन भर की बचत करने के बाद, अपने जीवन के अंतिम समय में हज पर जाते हैं। कई मुसलमान इस उम्मीद में भी मक्का जाते हैं कि अगर किसी वजह से उनकी मौत हुई तो वह हज को दौरान होगी, क्योंकि पवित्र शहर में मरना और वहां दफन होना, किसी आशीर्वाद से कम नहीं माना जाता। ऐसे में मरने वालों की पहचान और उन्हें दफन करने जैसे मामलों का सभी तरह का खर्च सऊदी अरब सरकार ही उठाती है।

Saturday, 22 June 2024

थैंक्यू प्रधानमंत्री जी

महा विकास अघाड़ी के नेताआंs की शनिवार को मुंबई में बैठक हुई। इसमें लोकसभा चुनाव में मिली जीत और आगामी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की तैयारियों की चर्चा की गई। इस दौरान नेताओं ने भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर जमकर हमला बोला। कहा, हम एमवीए के वास्ते राजनीतिक माहौल को अनुकूल बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को धन्यवाद देते हैं। हाल में ही संपन्न लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने 13 सीटे जीतीं, जो 2019 में राज्य में जीती गई एक मात्र सीट से काफी बड़ी छलांग है, जबकि शिव सेना (यूबीटी) को 9 और राकांपा (शरद चंद्र पवार) को 8 सीटें मिलीं। यूबीटी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने शनिवार को कहा कि यह सिर्फ शुरुआत है। विपक्षी गठबंधन राज्य में आने वाले विधानसभा चुनाव भी जीतेगा। एमवीए में शिव सेना (उद्धव) कांग्रेस और एनसीपी शामिल हैं। तीनों दलों ने इस साल के अंत में होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों के लिए रणनीति बनाने के लिए यह बैठक की थी। ठाकरे ने साउथ मुंबई में एमवीए के घटक दलों के नेताओं शरद पवार और कांग्रेस के पृथ्वीराज चह्वाण के साथ ज्वाइंट प्रेस कांफ्रेंस की। उद्धव ठाकरे ने उन अटकलों को सिरे से खारिज कर दिया कि वे भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए में वापस ज सकते हैं। ठाकरे ने पूछा मान लीजिए कि मैं पाला बदलने की योजना बना रहा हूं तो क्या मैं इन लोगों (पवार और चह्वाण) के साथ बैठकर इसकी घोषणा करूंगा? ठाकरे और शरद पवार दोनों ने अपनी-अपनी पार्टियों के बागी नेताओं को वापस लेने की संभावना से इंकार किया। जून 2022 में एकनाथ शिंदे के विद्रोह के बाद शिवसेना विभाजित की गई, जो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने, जबकि पिछले साल जुलाई में अजित पवार के 8 विधायकों के साथ राज्य सरकार में शामिल होने के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी दो गुटों में टूट गई। लोकसभा चुनावों में एमवीए के अच्छे प्रदर्शन के बाद ऐसी अटकलें हैं कि प्रतिद्वंद्वी गुटों के कुछ नेता वापस लौटना चाहते हैं। उद्धव ठाकरे ने कहा कि राज्य के लोगों ने दिखा दिया कि भाजपा के विजेता होने का मिथक कितना खोखला है। उन्होंने कहा कि महा विकास अघाड़ी के लिए लोकसभा चुनाव की जीत अंत नहीं, बल्कि शुरुआत है। उद्धव ने कहा कि केन्द्र सरकार अब राजग सरकार है और यह देखना बाकी है कि ये कितने दिन तक चलती है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने एमवीए को अप्राकृतिक गठबंधन बताकर मजाक उड़ाया था। उन्होंने पूछा कि केंद्र में गठबंधन को अब क्या कहेंगे? उन्होंने कहा कि देशभक्त लोगों ने विपक्षी गठबंधन को वोट दिया और उनमें मुसलमान और मराठी भाषी दोनों शामिल थे। उत्तर प्रदेश में भाजपा की हार पर ठाकरे ने कहा कि लोकसभा परिणामों ने भगवान राम को भाजपा मुक्त बना दिया है। ठाकरे से केन्द्राrय मंत्री अमित शाह के पिछले भाषणों का भी जिक्र किया, जिसमें उन्होंने टीडीपी प्रमुख चन्द्र बाबू नायडू और जदयू नेता नीतीश कुमार के साथ गठबंधन की किसी भी संभावना से इंकार किया था, दोनों ही अब नरेन्द्र मोदी की सरकार का समर्थन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक तरफ हमारी सीटें बढ़ी हैं वहीं भाजपा जिसकी पिछले चुनाव में संख्या 23 थी (2019) में वह घटकर 2024 में 9 रह गई हैं। -अनिल नरेन्द्र

पहली बार चुनावी राजनीति में कदम रखेंगी

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा केरल के वायनाड लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगी। यह पहली बार है जब प्रियंका गांधी सीधी चुनावी रण में उतरेंगी। गांधी-नेहरू परिवार की चौथी पीढ़ी की सदस्य प्रियंका अब तक कांग्रेस के लिए सक्रिय रूप से चुनाव प्रचार करती रही हैं। हालांकि 2019 में उनके सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने के बाद से ही वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ उनके चुनावी मैदान में उतरने की चर्चाएं लगनी शुरू हो गई थीं। लोकसभा के चुनाव में राहुल गांधी वायनाड और रायबरेली दोनों ही सीट से जीते थे। उन्होंने वायनाड सीट छोड़ने का फैसला किया और वहां से प्रियंका को चुनावी मैदान में उतारने का निर्णय किया। हालांकि इस बार 52 वषीय प्रियंका को अमेठी सीट से उतारने की चर्चा जोर-शोर से चली थी, जो गांधी परिवार की पारंपरिक सीट है। लेकिन अंतिम समय में गांधी परिवार के भरोसेमंद किशोरी लाल शर्मा को अमेठी से कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया गया। किशोरी लाल शर्मा ने श्रीमती स्मृति ईरानी को करारी शिकस्त दी। वायनाड से प्रत्याशी बनाए जाने की घोषणा के बाद प्रियंका ने कहा कि मैं बिल्कुल भी नर्वस नहीं हूं। मैं वायनाड का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम होने पर बहुत खुश हूं। मैं बस इतना कहूंगी कि मैं वायनाड के लोगों को राहुल की कमी महसूस नहीं होने दूंगी। प्रियंका का चुनावी मैदान में उतारने के पीछे कांग्रेस की सोची-समझी रणनीति के तहत लिया गया फैसला माना जा रहा है। पार्टी के वरिष्ठ नेता ने कहा कि जब राहुल गांधी ने रायबरेली से नामांकन किया था तभी तय हो गया था कि अगर राहुल गांधी दोनों सीटों से जीतते हैं तो प्रियंका वायनाड से लड़ेंगी। इसके पीछे दो अहम कारण हैं। राहुल गांधी अगर रायबरेली सीट छोड़ते हैं तो अभी उस राज्य से बेहतर संदेश नहीं जाता जहां से पार्टी ने अभी तुरंत बेहतर प्रदर्शन किया। साथ ही पार्टी उस राज्य को नहीं छोड़ना चाहती थी जहां 2019 और 2024 दोनों जगहों से पार्टी को लोगों का सपोर्ट मिला। पार्टी को लगता है कि वहां अगले दो साल में होने वाले विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। साथ ही दfिक्षण हाल में कांग्रेस का मजबूत गढ़ साबित हुआ है। यही कारण है कि राहुल गांधी को सीट छोड़ने के बाद पार्टी के पास गांधी परिवार से ही कोई उम्मीदवार देना राजनीतिक मजबूरी थी। पिछले कुछ वर्षों से कांग्रेस महासचिव के रूप में काम कर रही प्रियंका गांधी पार्टी की स्टार प्रचारक बनी हैं। चुनाव में उनकी सभाओं की मांग राज्यों में तेजी से बढ़ने लगी है। तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में आक्रामक प्रचार का लाभ कांग्रेस को मिला। तभी से पार्टी ने माना कि न सिर्फ प्रियंका गांधी आम लोगों से कनेक्ट कर रही हैं बल्कि उनके प्रचार का लाभ यह होता है कि वह महिला वोटरों से बेहतर तरीके से संवाद कर लेती हैं। प्रियंका गांधी पार्टी के अंदर क्राइसिस मैनेजमेंट को संभालने वाली भी बनी हैं। कई मौकों पर उन्होंने हस्तक्षेप कर चीजों को ठीक किया है। हालांकि 2022 में प्रियंका को उत्तर प्रदेश में पार्टी की जिम्मेदारी मिली थी, लेकिन तब पार्टी कुछ खास नहीं कर पाई थी। पार्टी ने कहा कि उस वक्त की जमीनी तैयारी का लाभ अब मिल रहा है। राहुल अब खासकर हिंदी बेल्ट में पार्टी को मजबूत करेंगे तो वहीं प्रियंका दfिक्षण भारत में पार्टी के वर्चस्व को बढ़ाने का प्रयास करेंगी। प्रियंका को इस बात का ध्यान रखना होगा कि भाजपा उन्हें हराने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देगी।

Thursday, 20 June 2024

मोदी की जीत का अंतर इतना कम क्यों हुआ?


बनारस में नरेन्द्र मोदी की जीत का अंतर महज एक लाख 52 हजार पर सिमट जाने की चर्चा थम नहीं रही है। मोदी की जीत का अंतर इतना कम तब रहा जब दर्जन भर केंद्रीय मंत्रियों ने बनारस में डेरा डाल रखा था। 2019 में मोदी बनारस से लगभग 4 लाख 80 हजार मतों के अंतर से जीते थे। कई लोगों का मानना है कि इस बार अगर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी बनारस में और अधिक गंभीरता से चुनाव लड़ती तो मोदी को हराया भी जा सकता था। खुद राहुल गांधी ने भी मंगलवार को रायबरेली में कहा कि अगर बनारस में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ मेरी बहन प्रियंका गांधी होती तो वह चुनाव दो-तीन लाख के अंतर से जीत जातीं। यानि कांग्रेस भी इस बात को मान रही है कि उसने बनारस में मोदी के कद की तुलना में ठीक उम्मीदवार नहीं उतारा था। पिछली कई बार से कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय चुनाव हार रहे थे और कांग्रेस ने चौथी बार भी उन्हीं पर दांव लगाया। बनारस के इस गंगा घाट की सीढ़ियों पर जैसे-जैसे छाया पसर रही है। वैसे-वैसे आसपास के मल्लाह अपने-अपने घरों से निकल कर सीढ़ियों पर बैठ जाते हैं और इंतजार करते हैं कि लोग आएंगे और नांव से गंगा नदी की सैर करने को कहेंगे। घंटों बैठे रहते हैं कोई नहीं आता। ढलती शाम के साथ गौरी शंकर निषाद की निराशा और बढ़ने लगती है, क्योंकि कोई कमाई नहीं हुई और उन्हें चिंता सता रही है कि आज घर का राशन-पानी कहां से आएगा। गंगा नदी में ये क्रूज चलवा रहे हैं। ऑनलाइन बुकिंग हो रही है, सरकार को टैक्स मिल रहा है और हम भूखे मर रहे हैं। बात केवल क्रूज की नहीं है, मणिकर्णिका घाट से इन्होंने बाबा विश्वनाथ मंदिर तक कॉरिडोर बनाया। हम लोग मणिकर्णिका घाट पर अपनी दुकान लगाकर मछली बेचते थे। कॉरिडोर बनने से दुकाने हटा दी गई और कहा गया कि सबको एक-एक दुकान मिलेगी....जब दुकान बन गई तो हमसे कहा गया कि एक दुकान के लिए 25 लाख रुपए देने होंगे। भला हम गरीब 25 लाख रुपए कहां से लाते? बुनकर भी खुलकर नरेन्द्र मोदी की नीतियों की आलोचना करते हैं। लक्ष्मी शंकर राजभर पहले पावरलूम मशीन से बनारसी साड़ी बनाते थे लेकिन अब वह पिछले पांच सालों से रिक्शा चला रहे हैं। गरीबी और हाड़तोड़ मेहनत के कारण राजभर 55 की उम्र में 85 साल के लगते हैं। राजभर कहते हैं कि बनारसी साड़ी अब सूरत में बन रही है और वहीं से बनकर बनारस में आ रही है। यहां के कारीगर बेकार हो गए हैं। हमारा हुनर जंग खा रहा है और बनारसी साड़ी कभी ब्रैंड के रूप में जानी जाती थी, उसे गुजरातियों ने हड़प लिया। बनारस में नरेन्द्र मोदी की जीत का अंतर कम होने के सवाल पर बनारस के लोग कहते हैं कि रोड और कारिडोर से पेट नहीं भरेगा। रोजगार कहां है? महंगाई आसमान छू रही है। हर महीने पेपर लीक हो रहे हैं। बनारस के लोगों का कहना है कि शहर का विकास का काम पूरी तरह से गुजरातियों के हाथ में आ गया है। मोदी को भाजपा ने हराया है। जिन 300 घरों को तोड़ा जाएगा उनमें 99 प्रतिशत घर उनके हैं जो मोदी-मोदी करते रहते हैं। आंकड़ों से स्पष्ट है ]िक 2024 में मोदी के खिलाफ बनारस में विपक्षी वोट बिल्कुल नहीं बंटा और इनका सीधा असर मोदी की जीत के अंतर पर पड़ा। बनारस में 5 विधानसभा क्षेत्र हैं, रोहनिया, वाराणसी उत्तर, वाराणसी दक्षिण, वाराणसी कैंट और सेवा पुरी। इन सभी विधानसभा क्षेत्रों में 2019 की तुलना में नरेन्द्र मोदी का वोट कम हुआ है और अजय राय का वोट ब़ढ़ा है। इस बार विपक्षी वोट एकजुट होकर कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय के साथ रहा और इसका सीधा असर मोदी की जीत के अंतर पर पड़ा।

-अनिल नरेन्द्र

स्पीकर पद को लेकर सियासी गतिविधियां तेज


लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव को लेकर सियासी गतिविधियां तेज हो गई हैं। माना जा रहा है कि तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) स्पीकर का पद चाहती है। एनडीए में शामिल जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने स्पीकर पद के लिए भाजपा उम्मीदवार का समर्थन करने की बात कही है। वहीं शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के नेता संजय राउत ने रविवार को कहा कि अगर सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार खड़ा करती है तो विपक्षी गठबंधन (इंडिया) के सभी सहयोगी उसके समर्थन सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगे। उधर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि लोकसभा का नया अध्यक्ष कौन होगा, इसका निर्णय राजनीतिक दल मिलकर करेंगे। इसका फैसला उनके हाथ में नहीं है और इस बारे में उनकी कोई भूमिका नहीं है। राउत ने मुंबई में पत्रकारों से बातचीत में दावा किया कि लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव महत्वपूर्ण होगा और अगर भाजपा को यह पद मिलता है तो वह सरकार का समर्थन करने वालों दलों, तेदेपा, जद (यू) तथा चिराग पासवान व जयंत चौधरी के राजनीतिक संगठनों को तोड़ देगी। उन्होंने दावा किया, हमें अनुभव है कि भाजपा उन लोगों को धोखा देती है जो उसका समर्थन करते हैं। शिव सेना और एनसीपी के उदाहरण हमारे सामने हैं। राउत ने कहा, मैंने सुना है कि तेदेपा अपना उम्मीदवार खड़ा करना चाहती है। अगर ऐसा होता है तो इंडिया गठबंधन के सहयोगी इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे और यह सुनिश्चित करने की कोशिश करेंगे कि विपक्षी गठबंधन के सभी सहयोगी तेदेपा को समर्थन दें। नियम के मुताबिक विपक्ष को उपाध्यक्ष का पद मिलना चाहिए। उन्होंने दावा किया कि राजग सरकार स्थिर नहीं है। लोकसभा चुनाव के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कुछ नेताओं द्वारा भाजपा के बारे में दिए गए हालिया बयानों के बारे में पूछे जाने पर राउत ने कहा कि अगर आरएसएस अतीत की गलतियों को सुधारना चाहती है तो यह अच्छा है। हम घटनाक्रम पर नजर रख रहे हैं। राउत ने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) संसदीय दल की बैठक में चुना गया था। न कि भाजपा संसदीय दल की बैठक में। भाजपा संसदीय दल की बैठक नहीं हुई। अगर भाजपा संसदीय दल की बैठक में नेतृत्व का मुद्दा आता तो नतीजे अलग हो सकते थे। इसलिए राजग संसदीय दल की बैठक में मोदी को नेता चुना गया। सरकार के गठन के बाद अब केन्द्र ने जहां एक तरफ कामकाज शुरू कर दिया है तो वहीं कई रणनीतियों को लेकर बैठकों का दौर भी जारी है। इसी कड़ी में रविवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के घर संसद सत्र को लेकर बड़ी बैठक हुई। बैठक में जेपी नड्डा, अश्विनी वैष्णव, किरण रिजिजू, ललन सिंह, चिराग पासवान मौजूद रहे। सवाल है कि इस बैठक का एजेंडा और वजह क्या थी? कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव जीतकर एनडीए ने सरकार तो बना ली है। नरेन्द्र मोदी तीसरा बार पीएम बन गए हैं और कैबिनेट मंत्रियों के पोर्ट फोलियो भी बन चुके हैं। अब बचा है एक आखिरी काम, लोकसभा स्पीकर का चयन। भाजपा नेताओं और एनडीए के लिए ये भी किसी चुनौती से कम नहीं है। उल्लेखनीय है कि पिछली बार ओम बिरला ने स्पीकर की गद्दी संभाली थी, क्या वही इस बार भी यह कुर्सी संभालेंगे? मौजूदा सरकार में अभी इस गद्दी पर कौन काबिज होगा, उसका चयन नहीं हो सका है। फैसला जल्द करना होगा क्योंकि सत्र जल्द ही शुरू हो रहा है।

Tuesday, 18 June 2024

मोदी जी की बढ़ती चुनौतियां


 मोदी जी तीसरी बार प्रधानमंत्री तो बन गए जोड़-तोड़ के पर उनकी चुनौतियां खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। आनन-फानन में मोदी जी ने बगैर भाजपा संसदीय बोर्ड की औपचारिक बैठक बुलाई जिसमें पार्टी के नेता को चुनना होता है। एनडीए की बैठक बुलाकर अपने आपको पीएम घोषित करवा लिया। पर इससे मोदी जी की चुनौतियां कम नहीं हुईं। आज वह कई मोर्चों पर घिरे हुए हैं। आज हम सिर्फ दो मोर्चों की बात करेंगे। पहला भाजपा के अंदर से आ रही चुनौतियां और दूसरा भाजपा और संघ के रिश्तों की। भाजपा के अंदर इस समय घमासान मचा हुआ है। टिकटों के बंटवारे को लेकर असंतोष से अंदरखाते एक-दूसरे को हरवाने का दौर चल रहा है। यह किसी से अब छिपा नहीं कि मोदी जी की सबसे बड़ी हार उत्तर प्रदेश में हुई है। कहां तो 75 सीटें जीतने की बात हो रही थी कहां पार्टी 240 सीटों पर अटक गई जो बहुमत से 32 सीटें कम हैं। उत्तर प्रदेश में हार के कारण भाजपा केन्द्र में मोदी-03 सरकार नहीं बना सकी। अब यह विवाद चर्म पर है कि उत्तर प्रदेश में हार का जिम्मेदार कौन है? एक तरफ अमित शाह हैं तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। अमित शाह योगी को हार का जिम्मेदार ठहरा रहे हैं जबकि योगी कह रहे हैं कि टिकटों के बंटवारे से लेकर पूरा अभियान तो आपने दिल्ली से चलाया तो इसमें मैं कैसे जिम्मेदार हुआ? अगर कोई जिम्मेदार है तो वह आप हैं, दिल्ली है। दरअसल मोदी-शाह बहुत दिनों से योगी को पद से हटाना चाहते हैं क्योंकि वह समझते हैं कि मोदी-शाह की जोड़ी का विकल्प अगर पार्टी के अंदर अब बचा है तो वह योगी हैं। योगी हटने को तैयार नहीं। अब तो योगी का पलड़ा और भी भारी हो गया है क्योंकि खबर आई है कि सर संघ चालक मोहन भागवत ने गोरखपुर में योगी से मुलाकात की है और उनकी पीठ पर हाथ रख दिया है। आने वाले दिनों में देखें यह महाभारत क्या रंग लाता है। दूसरा मोर्चा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने खोल दिया है। लोकसभा चुनाव के बाद सबसे ज्यादा चर्चा आरएसएस के बयानों की है। भाजपा के प्रदर्शन पर पहला मुखर प्रश्न संघ से जुड़ी पत्रिका आर्गनाइजर ने उठाया। उसके बाद सरसंघ चालक मोहन भागवत ने इशारों में कई चेतावनियां दे डाली। मैंने भागवत जी के बयान का पहले भी जिक्र किया था, इसलिए यहां दोहराऊंगा नहीं और अब संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य व वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार ने तीखे सवाल उठा दिए हैं। आरएसएस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार ने 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर कहा कि राम सबके साथ न्याय करते हैं। भाजपा को लेकर उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि जो पूर्ण हक मिलना चाहिए, जो शक्ति मिलनी चाहिए, वो भगवान ने अहंकार के कारण रोक दी। उन्होंने कहा, जो अहंकारी हो गए हैं, उन्हें 240 पर रोक दिया, जिनकी राम में आस्था नहीं थी, उन सबको मिलाकर 234 पर रोक दिया। यह प्रभु का न्याय है। इंद्रेश कुमार गुरुवार को जयपुर के पास कानोता में रामरथ अयोध्या यात्रा दर्शन पूजन समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि राम सबके साथ न्याय करते हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव को ही देख लीजिए। जिन्होंने राम की भक्ति की, लेकिन धीरे-धीरे अहंकार आ गया। उस पार्टी को सबसे बड़ी पार्टी घोषित कर दिया। उनको जो पूर्ण हक मिलना चाहिए, जो शक्ति मिलनी चाहिए, वो भगवान ने अहंकार के कारण रोक दी। उन्होंने कहा कि जिन्होंने राम का विरोध किया, उन्हें बिल्कुल भी शक्ति नहीं दी। इन में से किसी को भी शक्ति नहीं दी। सब मिलकर (इंडिया ब्लाक) भी नंबर-1 नहीं बने, नंबर 2 पर खड़े हैं। इसलिए प्रमुख का न्याय विचित्र नहीं है, सत्य है, बड़ा आनन्ददायक है जिस पार्टी ने भक्ति की, अहंकार आया, उस पार्टी को 240 पर रोक दिया, पर सबसे बड़ी बना पार्टी दिया। जिन्हें राम के प्रति आस्था नहीं थी, उन सबको मिलकर 234 पर रोक दिया। उन्होंने कहा कि तुम्हारी अनास्था की यही दंड है, तुम सफल नहीं हो सकते। अयोध्या (फैजाबाद) से भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह की हार पर इंद्रेश कुमार ने कहा कि जो राम की भक्ति करे, फिर अहंकार करे, जो राम का विरोध करे उसका अकल्याण अपने आप हो गया। लल्लू सिंह ने जनता पर जुल्म किए थे, तो राम जी ने कहा कि पांच साल आराम करो। अगली बार देख लेंगे। गौरतलब है कि इससे पहले सरसंघ चालक मोहन भागवत ने भी 10 जून को नागपुर में संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग के समापन में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को निशाने पर लिया था। भागवत ने कहा था कि जो मर्यादा का पालन करते हुए कार्य करता है, गर्व करता है, किन्तु लिप्त नहीं होता, अहंकार नहीं करता, वही सही अर्थों में सेवक कहलाने का अधिकारी है, उन्होंने कहा कि जब चुनाव होता है तो मुकाबला जरूर होता है। इस दौरान दूसरों को पीछे धकेलना भी होता है, लेकिन इसकी एक सीमा होती है। यह मुकाबला झूठ पर आधारित नहीं होना चाहिए। अब देखना यह है कि मोदी जी संघ के सामने झुकते हैं या अपने चिरअंदाज में अकड़े रहते हैं।

-अनिल नरेन्द्र


Saturday, 15 June 2024

दलितों के नगीना बने चंद्रशेखर

नगीना सीट से सांसद बने चंद्रशेखर दलितों के नए नगीना बन गए हैं क्या? लोकसभा चुनाव में दलित नेता चंद्रशेखर आजाद ने उत्तर प्रदेश की नगीना (सुरक्षित) सीट पर भाजपा के ओम कुमार को डेढ़ लाख से भी ज्यादा वोटों से हराकर जीत हासिल की है। इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के उम्मीदवार सुरेन्द्र पाल सिंह चौथे नंबर पर रहे जिन्हें महज 13000 वोट ही मिले। यह अहम है क्योंकि साल 2019 में बसपा प्रत्याशी गिरिश चंद्र ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी। तब समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 36 साल के चंद्रशेखर की इस जीत के कई मायने हैं। खासतौर पर बहुजन समाज पार्टी की राजनीति के लिए जो इस चुनाव में खाता तक नहीं खोल पाई। एक बहन जी के शुभचिंतक का कहना था कि मायावती की राष्ट्रीय राजनीति में धीरे-धीरे अप्रासंगिक होना और चंद्रशेखर की जीत ने उन्हें यह मौका दिया है कि पूरे भारत में अपना संगठन मजबूत करें। गौतम नगर के गांव बादलपुर में जन्मी मायावती के राजनीतिक सफर में यह सबसे बुरा दौर है। पार्टी की कमान संभालने के बाद से लेकर अब तक यह पहला मौका है, जब पार्टी का मतप्रतिशत दहाई तक भी नहीं पहुंचा सका। प्रदेश में किसी सीट पर जीतना तो दूर रहा वह मुख्य लड़ाई में भी नहीं आ सकीं। बसपा सुप्रीमों के अपने घर गौतमबुद्ध नगर में भी बसपा प्रत्याशी कामयाब नहीं हो सका। अब जहां बसपा का कोई भी सदस्य नई लोकसभा में नहीं होगा और प्रदेश में भी वर्तमान में बसपा का एक ही विधायक है। वर्ष 2024 में बसपा का अपने दमखम पर चुनाव लड़ना घातक साबित हुआ। इस चुनाव में बसपा को सिर्फ 9.39 प्रतिशत ही वोट मिले और वह एक भी सीट नही जीत सकीं। किसी भी सीट पर बसपा मुख्य लड़ाई में नहीं आई। अब बहन जी को नए सिरे से नीति बनानी होगी और अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी करनी होगी। नतीजे बताते हैं कि मायावती को अपनी जीत के जिस वोट बैंक पर भरोसा था, वह अब चंद्रशेखर के पाले में जाता दिख रहा है। नगीना में चंद्रशेखर को 5,12,552 वोट मिले, जबकि बसपा प्रत्याशी सुरेन्द्र पाल सिंह को महज 13272 वोट ही हासिल हुए। साफ है कि जाटवों ने भी बसपा को वोट नहीं दिया नगीना के अलावा डुमरियागंज सीट पर भी आजाद समाज पार्टी ने बसपा उम्मीदवार से अधिक वोट हासिल किए हैं, जो दलितों की भविष्य की बदलती राजनीति का संकेत दे रही है। डुमरियागंज में आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी उमर सिंह चौधरी को 81305 वोट मिले, जबकि बसपा प्रत्याशी मोहम्मद नदीम को महज 35,936 वोट ही हासिल हुए। चंद्रशेखर के तेवर दलित युवाओं को हमेशा आकर्षित करते हैं। खुद मायावती भी चन्द्रशेखर रावण की राह में तमाम रोड़े अटकाने के प्रयास करती रही हैं। मायावती के मुकाबले उन तक आसान पहुंच दलितों में उन्हें लोकप्रिय बनाती है, बसपा सुप्रीमों का कार्यकर्ताओं से दूरी बनाकर रखना, पार्टी पदाधिकारियों से अपनी सुविधानुसार मिलना और चुनावों में शिकस्त मिलने के बाद किसी पर कार्रवाई नहीं करना अब उनके समर्थकों को रास नहीं आ रही है। यही वजह है कि बसपा के वोट बैंक में लगातार गिरावट आ रही है। अब चंद्रशेखर संसद जा रहे हैं, उत्तर भारत में दलित युवा उनके साथ संगठित हो चुके हैं और अब उनको मौका मिला है तो अब उनसे अपने संगठन विस्तार की अपेक्षा है। -अनिल नरेन्द्र

मोहन भागवत की नसीहत

क्या भाजपा और उसके वैचारिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। संघ प्रमुख ने नागपुर में आयोजित कार्यकर्ता विकास वर्ग-द्वितीय के समापन समारोह में कई बातों की बात की। पहले बात करते हैं कि सर संघचालक ने कहा क्या-क्या? मणिपुर में एक वर्ष बाद भी शांति स्थापित नहीं होने पर भागवत ने सोमवार को चिंता व्यक्त की और कहा कि संघर्ष प्रभावित पूर्वोत्तर राज्य की स्थिति पर प्राथमिकता के साथ विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मणिपुर पिछले एक साल से शांति स्थापित होने की प्रतीक्षा कर रहा है। दस साल पहले मणिपुर में शांति थी। ऐसा लगता है कि वहां बंदूक संस्कृति खत्म हो गई है, लेकिन राज्य में अचानक हिंसा बढ़ गई है। आरएसएस प्रमुख ने कहा कि अशांति या तो भड़की या भड़काई गई लेकिन मणिपुर जल रहा है और लोग इसकी तपिश का सामना कर रहे हैं। हाल में हुए लोकसभा चुनावों के बारे में भागवत ने कहा कि नतीजे आ चुके हैं और सरकार बन चुकी है इसलिए क्या और कैसे हुआ आदि पर अनावश्यक चर्चा से बचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि संघ कैसे हुआ, क्या हुआ जैसी चर्चाओं में शामिल नहीं होता है। संगठन केवल मतदान की आवश्यकता के बारे में जागरुकता उत्पन्न करने का अपना कर्तव्य निभाता है। सर संघचालक ने कहा कि चुनाव सहमति बनाने की बड़ी प्रक्रिया है। संसद में किसी भी प्रश्न के दोनों पहलुओं पर चर्चा होती है। यह एक व्यवस्था है। वास्तव में सहमति बने, इसलिए संसद है। किंतु चुनाव प्रचार में एक-दूसरे को लताड़ना, तकनीक का दुरुपयोग, झूठ प्रसारित करना... यह ठीक नहीं है। चुनाव के आवेश से मुक्त होकर देश के सामने उपस्थित समस्याओं पर विचार करना होगा। जिस प्रकार प्रचार के दौरान समाज में मनमुटाव की शंका उत्पन्न हुई इसका ख्याल नहीं रखा गया। संघ को अनावश्यक इसमें घसीटा गया... यह अनुचित है। समाज ने अपना मत दे दिया। चुनाव में हम भी लगते हैं। इस बार भी लगे। परंतु सब काम मर्यादा का पालन करते हुए करते हैं। संघ प्रमुख ने चुनावी बयानबाजी से ऊपर उठकर राष्ट्र के सामने आने वाली समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर बल दिया। हम श्री मोहन भागवत जी की नसीहतों की सराहना करते हैं। देर से ही सही पर सही बातें कहीं। पर आपने एक साल तक क्यों इंतजार किया? मणिपुर तो एक साल से जल रहा था, यह आपने अब क्यों कहा? क्या आप चुनाव परिणाम का इंतजार कर रहे थे या फिर जब आपने देखा कि भाजपा 240 पर अटक गई तब जाकर आपको साहस आया ये सब बोलने का? क्या आप मोदी से डरते हैं। पूरे चुनाव में मोदी जी ने हिंदू-मुसलमान किया। प्रधानामंत्री ने चुनाव प्रसार के दौरान 421 बार मंदिर-मस्जिद और समाज बांटने की बात की। उन्होंने 224 बार मुस्लिम, अल्पसंख्यक जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। आपने तो एक बार भी उन्हें ऐसा करने से नहीं रोका? बीते लोकसभा चुनाव में आरएसएस और भाजपा के बीच मनमुटाव साफ दिख रहा था। जेपी नड्डा ने तो खुले आम कह दिया था कि भाजपा को आरएसएस की जरूरत नहीं है। आपने तब क्यों नहीं रिएक्ट किया? भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने संघ की चर्चा तक नहीं की और प्रधानमंत्री ने भी पूरे चुनाव में मोदी की गारंटी के नाम पर चुनाव लड़ा। क्या यह सही नहीं कि संघ ने इस चुनाव में खुलकर काम नहीं किया? कुछ लोगों का तो यह भी मानना है कि आज भी संघ और मोदी एक हैं। आप जनता के गुस्से को देख रहे हैं। समझ रहे हैं और उन्हें शांत करने का प्रयास तो नहीं कर रहे हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि मोदी सरकार में संघ ने अपने लोगों को हर जगह फिट कर रखा है और मलाई खा रहे हैं। फिर भी हम भागवत जी के विचारों का स्वागत करते हैं।

Thursday, 13 June 2024

स्मृति ईरानी के हारने की वजह


लोकसभा चुनाव को लेकर सबसे चौंकाने वाले परिणाम उत्तर प्रदेश के रहे। इंडिया गठबंधन ने सारे अनुमान और एग्जिट पोल को गलत साबित कर दिया और भाजपा के अकेले पूर्ण बहुमत हासिल करने की राह में रोड़ा डाल दिया। वैसे तो उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर एनडीए और इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी के बीच कई रोचक चुनाव देखने को मिले पर इस बार राज्य में एक सीट ऐसी थी जिस पर चुनाव शुरू होने से पहले से लेकर आने वाले परिणाम तक सभी की नजरें टिकी हुई थीं। यह थी अमेठी की सीट। जहां कांग्रेस के पुराने कार्यकर्ता नेता किशोरी लाल शर्मा ने भाजपा सरकार की बड़बोली अहंकारी मंत्री स्मृति ईरानी को एक लाख 66 हजार से ज्यादा मतों से हराया। इंडिया गठबंधन खासकर प्रियंका गांधी ने किशोरीलाल शर्मा को चुनाव जिताने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी। प्रियंका गांधी ने न केवल रायबरेली में बड़े भाई राहुल गांधी के लिए पूरी मेहनत की बल्कि अमेठी में किशोरी लाल के लिए भी उतनी मेहनत के साथ काम किया। स्थानीय लोगों का कहना है कि स्मृति ईरानी ने 2019 में जब राहुल गांधी को हराया था। उसके बाद से राहुल गांधी ने अमेठी आना बंद कर दिया था। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों के बीच ऐसी चर्चा भी होने लगी थी कि राहुल गांधी ने हमेशा के लिए यह सीट छोड़ दी है। नामांकन के अंतिम दिन तक सस्पेंस बनाए रखने के बाद तीन मई की सुबह इंडिया गठबंधन ने अमेठी से किशोरी लाल शर्मा को कांग्रेस का प्रत्याशी बनाया। बेशक किशोरी लाल शर्मा पिछले 40 साल से अमेठी, रायबरेली से जुड़े रहे थे पर ]िकसी को अंदाजा नहीं था कि उन्हें स्मृति ईरानी के खिलाफ उतारा जाएगा। किशोरी लाल के आने से सारा दबाव स्मृति ईरानी पर आ गया। राजनीति के जानकारों का मानना है कि अमेठी की जनता में मोदी सरकार में मंत्री स्मृति ईरानी को लेकर खासी नाराजगी भी थी। जनता में स्मृति ईरानी के व्यवहार को लेकर रोष था। स्मृति ईरानी केंद्र सरकार में मंत्री थीं लेकिन उन्होंने पिछले पांच सालों में विकास का कोई ठोस काम नहीं किया। इसके साथ-साथ महंगाई और बेरोजगारी को लेकर भी जनता ने इस बार स्मृति का साथ नहीं दिया। वहीं गौरीगंज के निवासी ने दावा किया कि स्मृति ईरानी ने कोई काम नहीं किया। जनता को इनसे बड़ी उम्मीद थी कि ये मंत्री हैं, क्षेत्र में बहुत काम होगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। स्मृति ईरानी की हार का एक कारण यह भी है कि प्रधानमंत्री ने जिस तरह से भैंसे और मंगलसूत्र जैसे बयान दिए उससे जनता में नाखुशी थी। 2019 में राहुल गांधी की हार के बाद से अमेठी की जनता क्षुब्ध थी। लोगों को अहसास हुआ कि उसने बहकावे में आकर हीरा खो दिया और प्लास्टिक की तरफ हाथ बढ़ा दिया। एक अन्य युवक ने कहा जायस कस्बे में एक महिला अस्पताल है जोकि बंद पड़ा है लेकिन कोई पूछने नहीं आया। क्षेत्र की महिलाओं के इलाज के लिए बड़ी समस्या है लेकिन स्मृति ईरानी ने सांसद रहते हुए इसके लिए कुछ नहीं किया। एमबीए के एक छात्र स्मृति ईरानी की हार की वजह गिनाते हैं। उन्होंने जनता से कनेक्ट नहीं किया। जब भी दौरे पर आती थीं वो जनता से नहीं मिलती थीं। कुछ चंद लोगों से घिरी रहती थीं। बीते पांच सालों में राहुल गांधी, सोनिया गांधी की आलोचना के सिवा उन्होंने कोई काम नहीं किया था। स्मृति ईरानी का कोई काम धरातल पर नहीं दिखा और पिछले पांच सालें में सिर्फ अमेठी की ही नहीं बल्कि पूरे देश की जनता भारतीय जनता पार्टी से ऊब चुकी है। दूसरी ओर किशोरी लाल शर्मा अमेठी के गांव-गांव तक जानते हैं और उन्होंने उनसे कभी संपर्क नहीं तोड़ा।

-अनिल नरेन्द्र

लोकसभा को 10 साल बाद मिलेगा नेता प्रतिपक्ष


2024 के लोकसभा चुनाव में जहां मोदी जी वापस एनडीए के साथ सत्ता में तीसरी बार आए वहीं कांग्रेsस और तमाम विपक्ष का प्रदर्शन भी शानदार रहा। एक मजबूत लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है कि विपक्ष भी मजूबत हो। इस बार के चुनाव में सबसे अच्छी बात यह हुई है कि विपक्ष भी अच्छी तादाद में आया है। इनका अच्छी तादाद में आना इसलिए भी जरूरी था क्योंकि सत्तापक्ष का चाल चलन बदलने वाला नहीं दिखता। बेशक वह बैसाखियों पर टिकी हुई है पर नए मंत्रिमंडल के गठन से लगता है कि कुछ बदलने वाला नहीं। जैसे भाजपा सरकार पिछले दस सालों से चल रही थी वैसे ही अगले सालों में चलने की संभावना है। वहीं दहशत का राज ईडी, सीबीआई, आयकर विभाग के छापे, सब कुछ वैसा ही होगा। इन परिस्थितियों में विपक्ष की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। कांग्रेस ने इस चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया है। उन्होंने अपनी सीटें बढ़ाकर 99 कर ली है। यह कम लोगों को पता होगा कि इस चुनाव में सबसे बड़ी जीत कांग्रेस के असम के ढुबरी लोकसभा सीट से इकोबुल हुसैन ने दर्ज की है। वह दस लाख वोट से अधिक से जीते हैं। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के दिग्गज नेता बदरूद्दीन अजमल को दस लाख 12 हजार 476 वोटों से हराया। दस साल के लंबे समय के बाद लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का औहदा मिलेगा और यह अवसर कांग्रेस पार्टी को मिलेगा। मौजूदा लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के घटक दलों की सीटों की संख्या बढ़ने के साथ ही निचले सदन को 10 साल के बाद विपक्ष का नेता (एलओपी) मिलेगा। पिछले दस साल से यह पद खाली था। राहुल गांधी ने पिछले दस सालों में बहुत मेहनत की है। चुनाव के दौरान खरगे, सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी के जोरदार प्रचार अभियान के लिए वह सराहना के पात्र हैं। चुनाव के दौरान कांग्रेsस ने बेरोजगारी, महंगाई, महिलाओं के मुद्दे और सामाजिक न्याय जैसे कई अहम मुद्दे उठाए। इन मुद्दों को अब संसद के अंदर भी प्रभावी ढंग से उठाने की आवश्यकता है। संसद में इस अभियान का नेतृत्व करने के लिए राहुल गांधी सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति हैं। विस्तारित कांग्रेस की डब्ल्यूसीपी की बैठक में एक प्रस्ताव पास किया गया जिसमें राहुल गांधी से नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी संभालने का आग्रह किया गया। राहुल गांधी की बड़ी भूमिकाओं को लेकर पार्टी नेता तो हमेशा आवाज बुलंद करते रहे हैं। लेकिन अबकी बार कांग्रेस कार्य समिति की ओर से आधिकारिक प्रस्ताव पारित किए जाने से साफ है कि लोकसभा में नेता विपक्ष के लिए राहुल गांधी पार्टी के एकमात्र पसंद हैं। राहुल गांधी ने कार्यसमिति के सदस्यों के विचार सुने और कहा कि वह इस बारे में जल्द फैसला करेंगे। नेता प्रतिपक्ष होने के कई फायदे भी हैं। वह जो कुछ भी लोकसभा में कहेंगे उसको सदन की कार्रवाई से हटाया नहीं जा सकता। जैसा कि पिछले सदन में ओम बिरला ने किया था। इसके साथ-साथ नेता प्रतिपक्ष को कैबिनेट रैंक मिलता है और वह तमाम सुविधाएं मिलती है जो किसी कैबिनेट मंत्री को मिलती है। कहां तो राहुल गांधी की सदस्यता रद्द कर दी गई थी। सांसदी छीन ली गई थी। अब हिसाब-किताब बराबर करने का अवसर आया है। इस निरंकुश सरकार को लोकतंत्र की खातिर रोकना अति आवश्यक है और यह काम राहुल से बेहतर कोई नहीं कर सकता है। संगठन का काम मल्लाकार्जुन पर छोड़ दें जो बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। हमारी राय में राहुल को यह पद स्वीकारना चाहिए।

Tuesday, 11 June 2024

विशेष राज्य का दर्जा क्यों चाहते हैं?


18वीं लोकसभा के चुनाव के बाद अब भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन की सरकार बन गई है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 240 सीटें जीती हैं। लेकिन अपने बूते पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर पाने के कारण उसे जद (यू) और टीडीपी (तेलुगुदेशम पार्टी) की मदद से सरकार बनाई है। आंध्र प्रदेश में लोकसभा के साथ विधानसभा के लिए भी चुनाव हुए हैं। चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी ने राज्य में 135 सीटें जीती हैं। अब यहां चंद्रबाबू नायडू एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग एक दशक से भी अधिक समय से की जा रही है। दिलचस्प बात ये है कि कांग्रेस के घोषणापत्र में आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा देने का वादा किया गया था। अब जब भाजपा को चंद्रबाबू नायडू और तेलुगु देशम पार्टी की जरूरत है तो उम्मीद है कि चंद्रबाबू नायडू राज्य को विशेष दर्जा देने की बड़ी मांग करेंगे। इसके साथ ही भाजपा को समर्थन देने का ऐलान कर चुके नीतीश कुमार के बिहार में भी विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग करेंगे। माना जा रहा है कि नीतीश कुमार भी भाजपा के सामने बिहार के लिए ये मांग रख सकते हैं। ऐसे में ये सवाल पूछा जा सकता है कि किसी राज्य को दिए जाने वाला स्पेशल स्टेटस आखिर क्या है और इससे विशेष राज्य का दर्जा पाने वाले स्टेट के लिए क्या बदल जाता है? भारत के संविधान में ऐसे स्पेशल स्टेटस का कोई प्रावधान नहीं है। भारत में 1969 में गाडगिल कमेटी की सिफारिश के तहत विशेष राज्य के दर्जे की संकल्पना अस्तित्व में आई। इसी साल असम, नागालैंड और जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया। गाडगिल कमेटी के फार्मूले के तहत स्पेशल कैटेगिरी का स्टेटस पाने वाले राज्य के लिए संघीय सरकार की सहायता और टैक्स छूट में प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया था। स्पेशल स्टेटस पाने वाले राज्य के लिए एक्साइज ड्यूटी में भी महत्वपूर्ण छूट दिए जाने का प्रावधान किया गया था ताकि वहां बड़ी संख्या में कंपनियां मैनुफैक्चरिंग फैसिलिटीज स्थापित कर सकें। स्पेशल स्टेटस सामाजिक और आर्थिक, भौगोलिक कठिनाइयों वाले राज्यों को विकास में मदद के लिए दिया जाता है। इसके लिए अलग-अलग मापदंड निर्धारित किए गए हैं। वर्तमान में भारत में 11 राज्यों को इस तरह के विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया है। इनमें असम, नागालैंड, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और तेलंगाना शामिल हैं। तेलंगाना राज्य के गठन के बाद राज्य को आर्थिक रूप से मदद करने के लिए उसे यह दर्जा दिया गया था। अन्य राज्यों की तुलना में विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को केंद्र से मिलने वाली सहायता में कई लाभ मिलते हैं। केंद्र प्रायोजित योजनाओं के मामले में विशेष दर्जा रखने वाले राज्यों को 90 फीसदी धनराशि मिलती है, जबकि अन्य राज्यों के मामले में यह अनुपात 60 से 70 फीसदी है। इसके अलावा विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त राज्यों को सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क, आयकर और कार्पोरेट कर में रियायतें मिलती हैं। इन राज्यों को दरों के सकल बजट का 30 प्रतिशत हिस्सा मिलता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि ऐसे राज्यों को मिलने वाली धनराशि अगर बच जाती है तो उसका उपयोग अगले वित्त वर्ष में किया जा सकता है जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था को लाभ होगा। एक बार विशेष दर्जे का पिटारा खुल गया तो पता नहीं यह कैसे रूकेगा?

-अनिल नरेन्द्र

30 लाख करोड़ रुपए का कथित घोटाला


जनादेश 2024 का एक बहुत अच्छा परिणाम यह आया है कि 2024 की लोकसभा में विपक्ष बहुत बड़ी संख्या में आया है। एक स्वतंत्र और स्वच्छ लोकतंत्र के लिए जहां एक स्थाई सत्तापक्ष जरूरी होता है, वहीं एक मजबूत विपक्ष भी होता है। मजबूत विपक्ष इसलिए जरूरी है ताकि वह सत्तापक्ष को मनमानी करने से रोक सके और संवैधानिक तौर तरीकों से चले। विपक्ष ने सवाल उठाने अभी से आरंभ कर दिए हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुरुवार को आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री व गृहमंत्री द्वारा दी गई शेयर खरीदने की सलाह और फिर चुनाव के बाद झूठे नतीजे (एग्जिट पोल) पूर्व सर्वेक्षण के कारण शेयर बाजार में सबसे बड़ा घोटाला हुआ है। इसमें निवेशकों के 30 लाख करोड़ रुपए डूब गए। उन्होंने कहा कि इस कृत्य में प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और नतीजा पूर्व सर्वेक्षण करने वालों की भूमिका की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया जाए। वहीं, राहुल गांधी के सवालों के बाद भाजपा ने पलटवार किया है। भाजपा नेता पीयूष गोयल ने कहा कि राहुल गांधी अभी भी लोकसभा चुनाव में मिली हार से उभर नहीं पाएं हैं और अब वह बाजार के निवेशकों को गुमराह करने की साजिश रच रहे हैं। गोयल ने दावा किया कि घरेलू निवेशकों ने वास्तव में पैसा बनाया, जबकि नुकसान विदेशी निवेशकों को उठाना पड़ा। राहुल गांधी ने संवाददाताओं से कहा, पहली बार हमने नोट किया कि चुनाव के समय प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और वित्त मंत्री ने शेयर बाजार पर टिप्पणी की... फिर एक जून को झूठे नतीजे (एग्जिट पोल) पूर्व सर्वेक्षण आए। उन्होंने दावा किया कि भाजपा के आतंरिक सर्वेक्षण में 220 सीट मिल रही थी। लेकिन नतीजा पूर्व सर्वेक्षण में ज्यादा सीटें दिखाई गई। राहुल ने कहा, तीन जून को शेयर बाजार सारे रिकार्ड तोड़ देता है। चार जून को खटाक से नीचे चला जाता है। इस दिन हजारों करोड़ रुपए का निवेश किया गया। खुदरा निवेशकों के 30 लाख करोड़ रुपए डूब गए। इसमें प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और नतीजा पूर्व सर्वेक्षण करने वालों की भूमिका की जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भाजपा नेताओं के पास जानकारी थी कि भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिल रहा है और वे जानते थे कि 3-4 जून को क्या होने वाला है। लेकिन भाजपा नेताओं की वजह से निवेशकों को करीब 30 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। उन्होंने कहा कि इस वजह से हजारों लाखों करोड़ रुपए का चुने हुए लोगों को फायदा हुआ है। जब राहुल से सवाल किया गया कि क्या आप इस मामले में कोर्ट जाएंगे या थाने में? राहुलö जो भी हुआ, वह नार्मल नहीं है। वित्त मंत्री, गृहमंत्री और पीएम ने अडाणी जी के चैनल के जरिए इंटरव्यू देकर बाजार में निवेश का मैसेज दिया था। इसके बाद ही लोगों ने निवेश किया था। अभी तो हम जेपीसी की मांग कर रहे हैं। ताकि लोगों को इस मामले का पता चल सके। स्कैम हुआ है। पीएम और गृहमंत्री ने सीधे कहा कि पेपर मार्केट ऊपर जाएगा। पीएम ने साफ कर दिया कि शेयर खरीदना चाहिए। जब प्रधानमंत्री और गृहमंत्री इस तरह की बात करते हैं तो जनता में विश्वास बढ़ता है। इन्हें मालूम था कि 300-400 सीट का रिजल्ट नहीं है, फिर भी मार्केट को अस्थिर करने की कोशिश की। विपक्ष पहले से ज्यादा मजबूत हुआ है। ऐसे में हम दबाव डालेंगे। इससे दूसरा नतीजा आएगा। ये अडाणी मामले से बड़ा केस है। इसकी जांच होनी चाहिए।

Saturday, 8 June 2024

भाजपा विजय रथ को रोका अखिलेश यादव ने


एक जून को आखिरी चरण के मतदान के बाद जब शनिवार एग्जिट पोल आए तो ऐसा लगा कि उत्तर प्रदेश में लड़ाई एकतरफा है। लेकिन जब 4 जून को गिनती हुई तो पता चला कि भाजपा का विजय रथ अखिलेश यादव ने रोक दिया है। समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में 62 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और कांग्रेस ने 17 सीटों पर। समाजवादी पार्टी 62 में से 37 सीटें जीती और कांग्रेस को 17 में से 6 पर जीत मिली। 2019 के आम चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश से 62 सीटें मिली थीं, बीएसपी को 10, सपा को 5, अपना दल (सोनेलाल) को दो और कांग्रेस को एक सीट मिली थी। चुनाव परिणाम से पहले गृहमंत्री और भाजपा के चाणक्य 75 सीटें जीतने का दावा कर रहे थे। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बड़ी मुश्किल से लगभग डेढ़ लाख वोट से ही जीते जबकि शुरुआती गिनती में वह पीछे चल रहे थे। उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य है, जहां से सत्ता और विपक्ष दोनों की अहम हस्तियां मैदान में थीं। बनारस से मोदी जी तो रायबरेली से राहुल गांधी और कन्नौज से अखिलेश यादव। अखिलेश यादव ने न केवल एक शानदार चुनाव ही लड़ा, साथ ही उम्मीदवारों के चयन से लेकर जनता को प्रभावित करने वाले मुद्दे भी जबरदस्त तरीके से उठाए। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में आर्थिक तंगी, खेती-किसानी और संविधान को कमजोर करने का मुद्दा भी उठाया। दोनों पार्टियों ने लोगों के बीच आरक्षण का मुद्दा भी उठाया। एक विश्लेषक का कहना था कि मुझे लग रहा था कि भाजपा को कम से कम 50 सीटें तो मिल जाएंगी। लेकिन 33 सीटों पर सिमटना बताता है कि पीएम मोदी और अमित शाह के घमंड को लोगों ने नकार दिया। दलितों, पिछड़ी जातियों और उदार लोकतंत्र में भरोसा रखने वाले आम लोगों को विपक्षी पार्टियां समझाने में कामयाब रहीं कि मोदी और मजबूत हुए तो संविधान खतरे में पड़ जाएगा। अमित शाह जिन्हें भाजपा का चाणक्य कहा जाता है को युवा अखिलेश ने ऐसी मात दी कि उम्र भर याद रखेंगे। अखिलेश यादव ने इस बार पुराना गढ़ तो भाजपा से छीना ही, बुंदेलखंड भी कब्जा लिया। यादव बैंक की सीटों के साथ ही बुंदेलखंड में भी तीन प्रत्याशियों को जिता दिया। दो मंत्रियों को हराने की ताकत दिखाकर मध्यप्रदेश ने समीकरण साधे इसका परिणाम यह हुआ कि लंबे समय बाद हर सीट पर तेजी से साइकिल दौड़ती नजर आई। वह गठबंधन के जरिए कमल को कई जगह उखाड़ने में भी सफल हुए और अपनी सीट पर अपने ही रिकार्ड को फिर से दोहराया। इसके साथ ही मुलायम द्वारा यूपी में बनाए रिकार्ड को भी तोड़ दिया। अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 2004 में यूपी से 35 सांसदों को जिताया था। यह उनके साथ ही पार्टी का भी रिकार्ड था। 20 साल बाद अखिलेश ने इस रिकार्ड को तोड़ते हुए यूपी से 37 प्रत्याशियों को जिताया, इनमें से एक वह खुद भी हैं। उन्होंने कन्नौज सीट पर एक और रिकार्ड बनाया। 1996 से अब तक इस सीट पर उनके अलावा कोई भी प्रत्याशी ऐसा नहीं रहा जिसने एक लाख या उससे अधिक के इतर से प्रतिद्वंद्वी को हराया हो। इस बार अखिलेश ने कन्नौज से 1,70,922 मतों से जीत हासिल की। मोदी जी के रथ को अगर किसी ने रोका है तो वह हैं अखिलेश यादव। -अनिल नरेन्द्र

बैसाखियों की सरकार


प्राप्त संकेतों से यही लग रहा है कि मोदी जी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। पर इस बार वह भाजपा के प्रधानमंत्री नहीं होंगे बल्कि एनडीए के प्रधानमंत्री होंगे। बेशक मोदी जी ने पंfिडत जवाहर लाल नेहरू के तीन बार प्रधानमंत्री बनने का रिकार्ड बराबर कर लिया है। पर मोदी जी न तो अटल बिहारी वाजपेयी हैं और न ही गठबंधन सरकार चलाने के आदि हैं। पंडित जवाहर लाल नेहरू बहुमत में तीनों बार थे। जबकि मोदी जी तीसरी बार अल्पमत में है। मोदी जी का जो रिकार्ड पिछले दशक से ज्यादा का रहा है तो वह तानाशाह की तरह सरकार चलाते रहे हैं। जहां न तो कोई उनका मंत्री विरोध कर सकता हो न ही किसी नौकरशाह की वह सुनते हों। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मोदी जी अब अपने सहयोगियों, गठबंधन के साथियों की सुनने पर मजबूर होंगे? अपने बल पर सरकार न बना पाने में वो अपने सहयोगी दलों पर पूरी तरह आश्रित होंगे और यह उनके स्वभाव में नहीं हैं। अपने लंबे राजनीतिक करियर में नरेन्द्र मोदी ने कभी गठबंधन सरकार का नेतृत्व नहीं किया है। इस बार भाजपा को अकेले दम खम पर बहुमत हासिल नहीं है। उसे सरकार चलाने के लिए हर समय सहयोगी दलें पर निर्भर रहना पड़ेगा। पिछली दो सरकारों के समय भाजपा के पास स्पष्ट बहुमत था, इसलिए उसे इस बात की चिंता नहीं थी कि सहयोगी दल किसी मोड़ पर उसकी बांह मरोड़ सकते हैं। इस बार वैसी निश्चिंतता नहीं रहेगी। एक तनी हुई रस्सी पर संतुलन साधते हुए चलने जैसा होगा। जरा-सा भी असंतुलन खतरनाक हो सकता है। फिर जो दो दलों तेलुगू देशम पार्टी और जद (एकी) के पास सरकार चलाने के लिए निर्णायक सीटें हैं, उनके साथ संतुलन साधना सबसे अहम होगा। 15 वर्ष मुख्यमंत्री और 10 वर्ष प्रधानमंत्री रहते हुए एक छत्र राज करने के आदि हो चुके नरेन्द्र मोदी का अब गठबंधन सरकार के साथ का सामना होगा। उन्हें गठबंधन दलों की मांगे माननी होंगी और एक तरफा निर्णय लेने के बजाए सामूहिक निर्णय लेना होगा। प्रधामनंत्री का पहली बार गठबंधन से सामना हो रहा है। इससे पहले भी एनडीए तो था लेकिन वह नाम मात्र का था। न तो कोई संयोजक था न ही एनडीए की बैठकें होती थीं क्योंकि भाजपा का पूर्ण बहुमत था। इस बार एनडीए में शामिल टीडीपी, जदयू और चिराग पासवान मोलभाव की स्थिति में हैं। मोदी जी को शपथ लेने की इतनी जल्दी है कि उन्होंने परम्परा को भी पीछे छोड़ दिया। परम्परा यह रही है कि चुनाव परिणाम आने के बाद सबसे पहले पार्टी की संसदीय दल की बैठक होती है जिसमें चुने सांसद अपना नेता चुनते हैं जो कि प्रधानमंत्री बनता है। पर इस बार मोदी जी को इतनी जल्दी थी या घबराहट थी कि उन्होंने सबसे पहले एनडीए की बैठक बुला ली और अपने आपको प्रधानमंत्री घोषित करवा लिया। फोटो भी सुबूत के तौर पर खिंचवा दी। यह गठबंधन की सरकार, बैसाखियों की सरकार कितने दिन चलेगी यह ऊपर वाला ही जानता है। इस सरकार में इतने विरोधाभास हैं कि यह कभी भी किसी भी मोड़ पर गिर सकती है और हो सकता है कि देश को एक बार फिर आम चुनाव का सामना करना पड़े। अभी तो सौदेबाजी चल रही है। बारगेनिंग चल रही है, घटक दलों ने कड़ी शर्तें रखी हैं सुनने में आ रहा है। खैर, अगर सब कुछ सुलझ भी जाता है तो भी यह कहना मुश्किल है कि यह बैसाखियों की सरकार कितनी और कैसे चलेगी। यह समय ही बताएगा।

Friday, 7 June 2024

मोदी जी यह आपकी नैतिक हार है


2024 का लोकसभा चुनाव ऐतिहासिक चुनाव रहा। यह स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। इसने तानाशाही पर अंवुश लगाया, संविधान को बचाया, भय का वातावरण समाप्त किया, सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग पर अंवुश लगाया, न्यायालयों को खुली हवा में सांस लेने का अवसर दिया। आज अगर मोदी जी का यह हाल है तो इसके लिए वह खुद जिम्मेदार हैं। उनका अहंकार चरम पर पहुंच गया था। मैं बायोलॉजिकल नहीं हूं, मैं अकेला सब पर भारी, एक-एक को देख लूंगा। मंगलसूत्र छीन लेंगे, चैन छीन लेंगे, ज्यादा बच्चे पैदा करने वालों को आपकी संपत्ति बांट देंगे, आतंकवादियों को दे देंगे। न जाने ऐसे कितने निम्न स्तर के जुमले मोदी जी ने इस चुनाव में कहे। आपने अयोध्या में आधे-अधूरे राम मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रातिष्ठा की जो शास्नें के विरुद्ध थी। चारों शंकराचार्यो ने इसका विरोध किया पर आपने सबको नजरअंदाज कर दिया। हम राम को लाएं है राम हमें लाएंगे। राम ने आपको आईंना दिखा दिया। राम मंदिर की प्राण प्रातिष्ठा के बाद मोदी जी को उम्मीद थी कि इसका लाभ उन्हें और भाजपा को मिलेगा। नतीजा यह हुआ कि भाजपा न केवल पैजाबाद (अयोध्या) से हार गईं बल्कि राम मंदिर के इर्द गिर्द की सभी लोकसभा सीटों पर हार गईं। अयोध्या मंडल में आपका रिपोर्ट कार्ड जीरो रहा। अबकी बार 400 पार का नारा आपने बड़े जोरों शोरों से दिया था। उसका परिणाम यह निकला कि दलितों, पिछड़ों, गरीबों, आदिवासियों व अत्यन्त पिछड़ों को यह विश्वास हो गया कि आपको चार सौ सीटें इसलिए चाहिए कि आप संविधान बदल सके और आरक्षण खत्म कर दें। आप अग्निवीर योजना लाए और युवाओं को चार साल में रिटायर कर दिया। फिर आपके एक सांसद पुरुषोत्तम रुपाला ने क्षत्रियों, राजपूतों के खिलाफ ऐसा बयान दिया जिसका असर गुजरात से लेकर हरियाणा, राजस्थान तक हुआ। आप दूसरे दलों को तोड़कर नेताओं को लाए । दलबदलू भाजपा में आए 56 में से 22 ही जीत सके। आपने वर्षो से भाजपा की तपस्या कर रहे कार्यंकर्ताओं और नेताओं को नजरअंदाज कर इन दल बदलुओं को प्राथमिकता दी। नतीजा सामने है। आप अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों तक को नहीं बचा सके। मोदी सरकार के चार वैबिनेट मंत्रियों सहित 18 मंत्री चुनाव हार गए। अमेठी से स्मृति ईंरानी को भी उनका अहंकार, बदतमीजी ले डूबी। आपने राष्ट्रीय स्वयं संघ को भी ठेंगा दिखा दिया। बीच चुनाव में आपके राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कह दिया कि भाजपा को संघ की अब जरूरत नहीं है। वाजपेयी की सरकार के समय हम (भाजपा) सक्षम नहीं थी।

पर अब हम बहुत बड़े हो गए हैं, हमें संघ की जरूरत नहीं। इसका परिणाम हुआ कि संघ के कार्यंकर्ता जो आपकी रीढ़ होते थे घर बैठ गए और आपके वोटरों को घर से बाहर नहीं निकाल सके। संघ में इस बात की भी नाराजगी थी कि उनकी कोईं सुन नहीं रहा। कार्यंकर्ताओं की न सुनने की शिकायत सिर्प संघ को ही नहीं थी, भाजपा कार्यंकर्ताओं में भी थी। इसी वजह से मतदान प्रातिशत भी कम हुआ।

मोदी जी ने आपने तमाम चुनाव में कोईं राष्ट्रीय मुद्दा नहीं दर्शाया। आप विरासत के नैरेटिव पर ही पंस गए। आपने यह बताने की कोशिश नहीं की आपकी दस साल की उपलब्धियां क्या है? दूसरी ओर तीन विपक्षी युवाओं ने आपकी हवा खराब कर दी। राहुल गांधी, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव आपकी पिच पर नहीं खेले। वह अपने मुद्दों पर टिके रहे। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और भारत न्याय यात्रा ने तमाम विपक्ष को संजीवनी दी। कांग्रोस ने जो घोषणा पत्र बनाया, उसकी काट मोदी जी आप नहीं कर सके। जनता के बीच महंगाईं, बेरोजगारी, सामाजिक न्याय, संविधान बचाओ घर कर गया। विपक्ष ने पूरी लोकसभा का नैरेटिव सेट कर दिया और आप उसकी काट नहीं कर सके। आप मोदी की गारंटी ही करते रहे। एक जगह भी आपने यह नहीं कहा कि भाजपा की गारंटी। दरअसल आप अपनी ही पाटा से बहुत ऊपर उठ गए। आप अपने आपको भगवान मानने लगे।

आपके वफादार कभी तो आपको विष्णु का अवतार बताते, तो कभी भगवान जगननाथ आपके शिष्य हैं बताते रहे। आपकी अपनी लोकप््िरायता का यह हाल है कि दो चुनावों में वाराणसी से लगातार भारी अंतर से जीतते रहे आप इस बार सिर्प 1,52,513 वोटों से ही जीत सके। 2019 में आप 4,79,505 वोटों से 2014 में 3,71,784 वोटों से जीते थे। आपके प्रातिद्वंद्वी अजय राय बेशक हार गए पर उन्होंने भी 4,61,457 वोट पाए। लगातार दो लोकसभा चुनाव में हार के बाद इस चुनाव में कांग्रोस बेहतर प्रादर्शन करने में सफल रही। पाटा 99 सीटों पर जीती। राहुल, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, ममता बनजा, एके स्टालिन एक परिपक्व नेता के तौर पर इस चुनाव में उभरे हैं। अब देशवासी खुली सांस ले सकते हैं, न तो ईंडी का डर होगा, न सीबीआईं और न ही आयकर विभाग का। जजों को भी भय के वातावरण से छुटकारा मिलेगा। सो वुल मिलाकर मोदी जी यह आपकी नैतिक हार है जिसे आपको स्वीकार करना चाहिए। बेशक जोड़-तोड़ जिसमें आप माहिर हैं सरकार तो बना लें पर आपकी अहंकारी राजनीति श्री राम ने समाप्त कर दी है। जय श्रीराम।

—— अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 4 June 2024

लोकसभा ही नहीं सुक्खू सरकार के भाग्य का भी फैसला


आगामी एक जून को हिमाचल प्रदेश की चार लोकसभा सीटों के साथ छह विधानसभा सीटों के लिए भी उपचुनाव हुए हैं। ये सीटें सुक्खू सरकार के भविष्य का फैसला भी तय करेंगी। भाजपा का दावा है कि चार जून को सुक्खू सरकार गिर जाएगी और वहां भी डबल इंजन की सरकार होगी। हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू लोकसभा चुनाव के प्रचार से ज्यादा विधानसभा चुनाव के प्रचार में जुटे हुए थे, क्योंकि उनकी कुर्सी का फैसला इन्हीं छह विधानसभा सीटों पर निर्भर कर रहा है। कुछ महीने पहले कांग्रेस के छह विधायकों ने अपनी ही सरकार गिराने की कोशिश की थी और भाजपा में मिल गए थे। तब तो किसी तरह से सुक्खू की सरकार बच गई, क्योंकि उस वक्त विधानसभा अध्यक्ष ने इन विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी थी। इसी कारण छह सीटें खाली हो गई थीं। और अब उनका चुनाव भी लोकसभा सीटों के साथ हो हुआ। 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 68 विधानसभा में से 40 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी और भाजपा 25 सीटों पर ही सिमट गई थी। तीन सीट निर्दलीयों ने जीती थी। लेकिन हाल में कांग्रेस में विद्रोह हो गया और छह विधायकों ने बगावत कर दी, जिसके कारण सुक्खू सरकार अल्पमत में आ गई। बगावत करने वालो को मुख्यमंत्री ने कहा था कि यह बिकाऊ हैं। सरकार बनाने के लिए 35 सीटों की आवश्यकता है। वैसे तो तीन निर्दलीय विधायकों ने भी सुक्खू सरकार को समर्थन दिया था, लेकिन जब कांग्रेस के विधायकों ने बगावत की तो इन तीनों निर्दलीयों ने भी समर्थन वापस ले लिया था। अब यदि छह सीटें भाजपा जीत गई तो तीन निर्दलीय विधायक भाजपा को समर्थन देने के लिए बैठे हैं। सुक्खू सरकार के पास अभी 34 विधायक हैं और विधानसभा की संख्या भी 68 से घटकर 62 रह गई है। इन छह सीटों पर चुनाव होने के बाद यदि सभी छह सीटें कांग्रेस हार गई तो उसकी 34 सीटें रह जाएंगी। भाजपा के पास 31 सीटें हो जाएंगी और तीन निर्दलीयों का समर्थन लेकर उनकी संख्या 34 होगी। ऐसी स्थिति में भाजपा आपरेशन लोटेस चला सकती है और कांग्रेस खेमें में एक बार फिर सेंधमारी कर सकती है। अगर कांग्रेस के एक-दो विधायक भी विश्वासमत के दौरान गैर हाजिर हो गए तो सुक्खू सरकार का गिरना तय है। इसमें एक और पेंच है सुक्खू सरकार में मंत्री विक्रमादित्य सिंह मंडी से चुनाव लड़ रहे हैं। यदि वह चुनाव जीत जाते हैं तो उनकी भी सीट खाली हो जाएगी। ऐसे में विधानसभा में कांग्रेस की संख्या घटकर 33 हो जाएगी और भाजपा गठबंधन की संख्या 34 हो जाएगी ऐसे में मुख्यमंत्री सुक्खू सभी छह सीटें जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक हुए हैं। सुक्खू विक्रमादित्य के चुनाव प्रचार में कम ही जा रहे थे। क्योंकि विक्रमादित्य ने ही सुक्खू सरकार को गिराने वाले विद्रोह का नेतृत्व किया था। उन्होंने दिल्ली में भाजपा नेताओं से मुलाकात भी की थी। लेकिन किसी तरह सरकार बच गई। यहां राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार किया और अब चुनाव तक प्रियंका गांधी ने मोर्चा संभाला हुआ था।

-अनिल नरेन्द्र

अमेरिका में क्या जेल से राष्ट्रपति चुनाव लड़ सकते हैं?


अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पोर्न स्टार का मुंह बंद रखने के लिए जो रकम दी थी, उसके लिए अपने व्यावसायिक रिकॉर्ड में लगातार हेराफेरी की। उन्हें भरोसा था कि वह कभी भी पकड़े नहीं जाएंगे लेकिन वह बच नहीं सके। राष्ट्रपति चुनाव से पहले अदालत के इस फैसले से अमेरिकी राजनीति में हलचल तेज है। यह मामला 2016 में उनके अमेरिका का राष्ट्रपति चुने जाने से पहले का है। हालांकि हश मनी मामले में ट्रंप अपनी अपील के बारे में योजना बना रहे हैं और 11 जुलाई को सजा सुनाए जाने का इंतजार कर रहे हैं, जिसमें जेल के साथ ही भारी जुर्माना लगाया जा सकता है। ट्रंप मामले में खुद पोर्न स्टार स्टॉर्मी डेनियल्स समेत 22 लोगों ने गवाही दी। अदालत के 12 ड्यूटी मेंबर ने इस मामले में छह सप्ताह तक सुनवाई की और ट्रंप को दोषी पाया। हालांकि वह खुद को बेकसूर बता रहे हैं। 2016 में जब ट्रंप राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ में थे तो उन्होंने स्टॉर्मी को मुंह बंद रखने के लिए 1.30 लाख डॉलर का भुगतान किया था, जो उनके वकील ने पोर्न स्टार को दिए। इस मामले में 11 चेक पर हस्ताक्षर किए गए और ट्रंप के पूर्व वकील माइकल कोहेन की कंपनी में जमा किए गए। आरोप है कि ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद कोहेन को पैसे वापस लौटाए। इसके लिए उन्होंने दस महीने तक उसे कई चैक दिए। उन्होंने रिकार्ड में इसे लीगल फीस दिखाया। ट्रंप ने न्यूयार्क बिजनेस रिकार्ड में गलत जानकारी दी। 5 अप्रैल 2023 को पूर्व अमेरिकी मैनहेट्टन की कोर्ट में 34 आरोप तय किए गए थे। ट्रंप और स्टॉर्मी की मुलाकात जुलाई 2006 में एक गोल्फ टूर्नामेंट के दौरान हुई थी। उस समय स्टॉर्मी महज 27 साल की थीं। बाद में दोनों डिनर पर मिले और दोनों में संबंध बने। अपनी किताब में स्टार्मी ने इसका जिक्र किया है। राष्ट्रपति जो बाइडन के चुनाव प्रचार अभियान ने जूरी के फैसले का स्वागत किया। बाइडन और हैरिस 2024 कम्युनिकोसन के निदेशक माइकल टायलर ने कहा हमने न्यूयार्क में देखा कि कानून से ऊपर कोई नहीं है। पोर्न स्टार को पैसे के भुगतान को छिपाने के दोषी डोनाल्ड ट्रंप की राष्ट्रपति की उम्मीदवारी पर कोई खतरा नहीं है। अगर उन्हें 5 नवम्बर से पहले जेल की सजा भी हो जाती हैं जब भी वह चुनाव लड़ सकेंगे। 15 नवम्बर को होने वाले चुनाव में ट्रंप अगर जीतते हैं तो उन्हें जेल में ही शपथ दिलाई जा सकती है। आपराधिक मामलों में सजा के लिए कोर्ट ने 11 जुलाई की तिथि तय की है। हालांकि ट्रंप ने कोई हिंसक अपराध नहीं किया है। वे पहली बार दोषी पाए गए हैं। अमेरिका में यह दुर्लभ है कि बिना किसी आपराधिक इतिहास वाले लोगों को केवल व्यावसायिक रिकार्ड में हेराफेरी करने के लिए न्यूयार्क में जेल की सजा सुनाई जाए। जुर्माने की सजा अधिक आम है। ट्रंप ने उनके खिलाफ फैसला सुनाए जाते ही कहा, यह शर्मनाक है। यह एक विवादित न्यायाधीश की ओर से की गई दोषपूर्ण, भ्रष्ट सुनवाई थी। असली फैसला 5 नवम्बर को लोग सुनाएंगे। वे जानते हैं कि यहां क्या हुआ और हर कोई जानता है कि यहां क्या हुआ। मैं निर्दोष हूं। मैं अपने देश के लिए लड़ रहा हूं। मैं अपने संविधान के लिए लड़ रहा हूं। हमारे पूरे देश में इस समय धांधली हो रही है। ट्रंप ने आरोप लगाया कि बाइडन प्रशासन ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को नुकसान पहुंचाने के लिए ऐसा किया है। वहीं बाइडन ने जूरी के फैसले का स्वागत किया है।

Saturday, 1 June 2024

क्या निशिकांत दुबे को चौथी बार जीत मिलेगी


भारत में हो रहे लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में एक जून को जिन सीटों पर प्रत्याशियों की किस्मत तय होगी, उनमें झारखंड की गेड्डा सीट भी है। संथाल परगना की इस सीट से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के निशिकांत दुबे जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं। भाजपा ने उन्हें चौथी बार फिर से टिकट दिया है। उनका मुकाबला इसी सीट पर चार बार चुनाव हार चुके इंडिया गठबंधन के कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप यादव से है। इनके बीच सीधी टक्कर है। उन्हें झारखंड मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रीय जनता दल और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी जैसे दलों का समर्थन हासिल है। वे इस सीट से एक बार सांसद रह चुके हैं। झारखंड सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। निर्दलीय प्रत्याशी अभिषेक आनंद झा इसे त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वे अपनी कोशिश में कितने कारगर होंगे, यह बहुत हद तक देवघर के पंडा समाज के वोटरों पर निर्भर करता है। गोड्डा में करीब 20 लाख मतदाता हैं। लोकसभा क्षेत्र में कुल छह विधानसभा सीटें, देवघर, गोड्डा, मधुपुर, पोडैयाहार, महागामा और जरमुंडी आती हैं। इनमें से चार पर इंडिया गठबंधन का कब्जा है। पिछले विधानसभा चुनाव में सिर्फ दो सीटों पर भाजपा जीती थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में निशिकांत दुबे ने तब झारखंड विकास मोर्चा के प्रदीप यादव को पौने दो लाख से भी अधिक वोटों से हराया था। इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी प्रदीप यादव के लिए कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी, मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन, बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव जैसे नेताओं की सभाएं हो चुकी हैं। निशिकांत दुबे के लिए गृहमंत्री अमित शाह, असम के मुख्यमंत्री हिंमता बिस्वा शर्मा, शिवराज सिंह चौहान, बाबूलाल मरांडी सरीखे नेता जनसभाएं और रोड शो कर चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 28 मई को दुमका में एक जनसभा को संबोधित किया। इस रैली में गोड्डा समेत संथाल परगना क्षेत्र की तीनों लोकसभा सीटों के प्रत्याशी मौजूद रहे। देवघर में प्रसिद्ध बाबा वैद्यनाथ मंदिर के पास रहने वाले 90 वर्षीय कृष्णा प्रसाद साहू खुद को हालांकि कांग्रेसी बताते हैं। वह कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का रवैया तानाशाहों वाला है। इसके बावजूद वे भाजपा प्रत्याशी निशिकांत दुबे की प्रशंसा करते हैं। उन्होंने कहा, नरेन्द्र मोदी की पार्टी भाजपा से होने के बावजूद मेरे एमपी निशिकांत दुबे को लोगों का समर्थन है। उन्होंने गोड्डा में रेलवे परिचालन शुरू करवाया, देवीपुर में एम्स बनवाया, देवघर एयरपोर्ट बना, सड़कें बनी। हम विकास को नजरंदाज नहीं कर सकते। भाजपा के प्रत्याशी निशिकांत दुबे आश्वस्त हैं कि इस चुनाव में उनकी जीत होगी और देशभर में भाजपा को 400 सीटों से अधिक मिलेंगी। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप यादव का दावा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने इलेक्ट्रोरल बांड के जरिए सबसे बड़ा घोटाला किया। उद्योगपतियों से कथित तौर पर पैसे की उगाही की, इसलिए भाजपा का चुनाव में हारना तय है। वह कहते हैं कि निशिकांत दुबे के खिलाफ अंडर करंट है। भाजपा गोड्डा में तो हारेगी ही, पूरे देश में उनका सफाया होने जा रहा है। पिछली बार निशिकांत दुबे ने प्रदीप यादव को रिकार्ड मतों से हराया था। देखें, इस बार क्या होता है।

      -अनिल नरेन्द्र

अफजाल अंसारी बनाम पारसनाथ राय


सिटी स्टेशन के सामने दुकान पर चाय पी रहे आशुतोष राय गाजीपुर के सियासी मिजाज के सवाल पर अबरार कासिफ का ये शेर उछाल देते हैं। वह कहते हैं बस ऐसा ही है अपना गाजीपुर। यहां की गलियों में आपको वोटर नहीं मिलते। यहां मिलते हैं तो सिर्फ भूमिहार, ब्राह्मण, यादव, राजभर, राजपूत, दलित, हिंदू और मुसलमान। यहां टिकट भी जाति और धर्म के नाम पर मिलते हैं। यानि सिक्के के दोनों ओर जाति और धर्म ही मिलेगा। समीकरणों के समझने के लिए चुनावी बातों से पहले समर के योद्धाओं की चर्चा जरूरी है। भगवा खेमे ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के करीबी माने जाने वाले पारसनाथ राय पर दांव लगाया है। वहीं, 2019 में बसपा की टिकट पर सांसद बने दिवंगत मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी बदली परिस्थितियों में इस बार साइकिल पर सवार हैं। बसपा से डा. उमेश सिंह गौतम मैदान में हैं। गाजीपुर की फिजा में जिस तरह के सवाल हैं, उन सवालों पर मतदाताओं के जैसे बोल हैं, उन सबका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करें तो साफ हो जाता है कि यहां भाजपा और सपा के बीच सीधा मुकाबला है। अलबत्ता, बसपा लड़ाई को त्रिकोणीय बनने की कोशिश में जुटी हुई है। परमवीर चक्र विजेता मेजर अब्दुल हमीद की धरती गाजीपुर का जिक्र आते ही लोगों को याद आतें हैं विश्वनाथ सिंह गहमरी। 1962 में सांसद बने गहमरी ने सिर्फ मिर्जापुर ही नहीं, पूरे पूर्वांचल के हालात, भुखमरी, बेरोजगारी के दर्द को जिस तरह से संसद में रखा था वह सब कुछ लोगों की जुबा पर होता है। भुखमरी की पीड़ा को रखते हुए उन्होंने कहा था स्थिति ऐसी है कि क्षेत्र की एक बड़ी आबादी के लिए बैल के गोबर से निकला अनाज ही भोजन का एक मात्र सहारा है। यह सब सुन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर हर सदस्य की आंखें नम हो गई थीं। अब आमजन के सियासी मिजाज और अंदाज की बात चुनावी माहौल के सवाल पर लंका तिराहे पर मिले एक व्यक्ति कहते हैं भाजपा प्रत्याशी को तो कोई पहचानता तक नहीं है। कब तक मोदी-योगी के नाम पर वोट मिलेंगे। इस पर पास बैठे एक अन्य व्यक्ति ने तंज कसते हुए कहा हां, माफिया को तो सब पहचानते हैं, उनके नाम पर वोट दिया जाएगा। पलटवार करते हुए पहले व्यक्ति कहते हैं। वह माफिया नहीं थे, गरीबों के मसीहा थे। इस पर दूसरा व्यक्ति कहता है मेरी जेब से सौ रुपए निकालकर किसी को दस रुपए दे देना, इसे मसीहा नहीं कहते। दरअसल यहां बात मुख्तार अंसारी की हो रही है। इन लोगें का कहना है कि भले ही मुख्तार की दुखद मौत हो चुकी हो, पर चुनाव तो मुख्तार अंसारी के नाम पर ही लड़ा जा रहा है। वहीं कुछ लोग मनोज सिन्हा के रेल राज्यमंत्री रहने के दौरान गाजीपुर में हुए विकास कार्यों को गिनाते हुए कहते हैं, पारसनाथ राय को पहचानें या न पहचानें कमल के फूल को तो सब पहचानते हैं और वोट उसी को मिलेगा। मनोज सिन्हा के करीबी कहे जाने वाले पारसनाथ राय को टिकट देकर भाजपा ने सबको चौंका दिया था। टिकट की घोषणा हुई तो पारसनाथ राय अपने स्कूल में पढ़ा रहे थे, तब उन्होंने कहा था मैंने तो टिकट के लिए कोई आवेदन नहीं किया था। यह टिकट मनोज सिन्हा ने दिलवाया।