Saturday 29 June 2024
47 दिन में कैसे परिपक्व हो गए आकाश?
बसपा सुप्रीमो मायावती अपने चौंकाने वाले फैसलों के लिए जानी जाती हैं। सभी हैरान हुए थे जब उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को लोकसभा चुनाव के बीच में 7 मई को अपने उत्तराधिकारी और राष्ट्रीय को-ऑर्डिनेटर के पद से हटा दिया था। तब उन्होंने परिपक्वता आने तक पद से हटाने की बात कही थी। अब ठीक 47 दिन बाद रविवार को हुई बसपा की राष्ट्रीय बैठक में आकाश को फिर से आशीर्वाद दिया और पहले की तरह अपना उत्तराधिकारी और राष्ट्रीय को-ऑर्डिनेटर के पद पर बहाल कर दिया। राजनीतिक गलियारों में यही सवाल उठ रहा है कि आखिर 47 दिन में आकाश आनंद कैसे परिपक्व हो गए? उनको क्यों हटाया गया और फिर बहाल कर दिया गया? ऐसा करने के पीछे रणनीति क्या है या कोई मजबूरी है। इससे लोकसभा चुनाव में बसपा को बड़ा झटका लगा है और वह अपने कैडर वोट को भी नहीं बचा सकी है। बसपा के लिए यह सबसे बुरा दौर है, बहन जी ने आकाश आनंद को फिर से क्यों बहाल किया? पार्टी सूत्रों कहा कहना है कि आकाश की वापसी तो होनी ही थी। लोकसभा चुनाव के बाद प्रमुख पदाधिकारियें और को-आर्डिनेटरों से बहन जी ने जब फीडबैक लिया, उसमें भी यही बात आई कि आकाश को चुनाव के बीच से हटाने से ज्यादा नुकसान हुआ है। आकाश को खासतौर से युवा पसंद करते हैं। बीएसपी के पास अब खुद मायावती के अलावा पहले की तरह बड़े चेहरे नहीं हैं, ऐसे में आकाश वह चेहरा हो सकते हैं। खासतौर से जब कांग्रेस में राहुल और प्रियंका गांधी हैं और समाजवादी पार्टी में अखिलेश जैसे चेहरे हैं। ऐसे में आकाश के साथ युवा जुड़ेंगे। उधर आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर खुद बड़े अंतर से जीते हैं। उनके साथ भी युवा जुड़ रहे हैं। ऐसे में खतरा यह भी है कि कहीं बसपा के कैडर वोट और युवा उधर न चले जाएं। ढलती उम्र के साथ ही पार्टी के खिसकते जनाधार को देखते हुए मायावती को अब युवा भतीजे आकाश आनंद से ही चमत्कार की बड़ी उम्मीद है। वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव में दो दशक पुराने 2007 के नतीजे दोहराने के लिए मायावती ने आकाश पर बड़ा दांव लगाया है। 2006 में कांशीराम के न रहने के बाद 2007 के विधानसभा चुनाव में जिस बसपा ने 30.43 प्रतिशत वोट और 206 विधायकों के साथ पहली बार राज्य में बहुमत की सरकार बनाई थी। उसका इस समय न लोकसभा और न ही राज्यसभा में कोई सदस्य है। विधानसभा में भी सिर्फ एक सदस्य है, जबकि विधान परिषद में कोई सदस्य नहीं है। पार्टी के तेजी से खिसकते जनाधार का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि 18वीं लोकसभा के चुनाव में इसको सिर्फ 9.39 प्रतिशत वोट हासिल हुए। एक बात साफ है कि वंचित समाज से भी अब बहन जी का पहले जैसा जादू नही रहा। इसका बड़ा कारण यह माना जाता है कि मायावती ने गलत समय पर गलत फैसले किए। बसपा केन्द्राrय कार्यकारिणी की बैठक में लोकसभा चुनाव में हार के कारणों पर समीक्षा की गई। इनमें कहा गया कि विपक्षी दलों ने संविधान बचाओ जैसे मुद्दों को लेकर जो प्रचार किया वह दलितों को भा गया। बसपा का पर्दे के पीछे भाजपा का साथ देना और इंडिया गठबंधन के साथ न आना भी बहनजी को बहुत भारी पड़ा। देखना, यह होगा कि क्या बसपा अब अपने खोए हुए वोट बैंक को वापस ला सकेगी?
-अनिल नरेन्द्र
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