Tuesday, 11 June 2024

विशेष राज्य का दर्जा क्यों चाहते हैं?


18वीं लोकसभा के चुनाव के बाद अब भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन की सरकार बन गई है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 240 सीटें जीती हैं। लेकिन अपने बूते पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर पाने के कारण उसे जद (यू) और टीडीपी (तेलुगुदेशम पार्टी) की मदद से सरकार बनाई है। आंध्र प्रदेश में लोकसभा के साथ विधानसभा के लिए भी चुनाव हुए हैं। चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी ने राज्य में 135 सीटें जीती हैं। अब यहां चंद्रबाबू नायडू एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग एक दशक से भी अधिक समय से की जा रही है। दिलचस्प बात ये है कि कांग्रेस के घोषणापत्र में आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा देने का वादा किया गया था। अब जब भाजपा को चंद्रबाबू नायडू और तेलुगु देशम पार्टी की जरूरत है तो उम्मीद है कि चंद्रबाबू नायडू राज्य को विशेष दर्जा देने की बड़ी मांग करेंगे। इसके साथ ही भाजपा को समर्थन देने का ऐलान कर चुके नीतीश कुमार के बिहार में भी विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग करेंगे। माना जा रहा है कि नीतीश कुमार भी भाजपा के सामने बिहार के लिए ये मांग रख सकते हैं। ऐसे में ये सवाल पूछा जा सकता है कि किसी राज्य को दिए जाने वाला स्पेशल स्टेटस आखिर क्या है और इससे विशेष राज्य का दर्जा पाने वाले स्टेट के लिए क्या बदल जाता है? भारत के संविधान में ऐसे स्पेशल स्टेटस का कोई प्रावधान नहीं है। भारत में 1969 में गाडगिल कमेटी की सिफारिश के तहत विशेष राज्य के दर्जे की संकल्पना अस्तित्व में आई। इसी साल असम, नागालैंड और जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया। गाडगिल कमेटी के फार्मूले के तहत स्पेशल कैटेगिरी का स्टेटस पाने वाले राज्य के लिए संघीय सरकार की सहायता और टैक्स छूट में प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया था। स्पेशल स्टेटस पाने वाले राज्य के लिए एक्साइज ड्यूटी में भी महत्वपूर्ण छूट दिए जाने का प्रावधान किया गया था ताकि वहां बड़ी संख्या में कंपनियां मैनुफैक्चरिंग फैसिलिटीज स्थापित कर सकें। स्पेशल स्टेटस सामाजिक और आर्थिक, भौगोलिक कठिनाइयों वाले राज्यों को विकास में मदद के लिए दिया जाता है। इसके लिए अलग-अलग मापदंड निर्धारित किए गए हैं। वर्तमान में भारत में 11 राज्यों को इस तरह के विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया है। इनमें असम, नागालैंड, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और तेलंगाना शामिल हैं। तेलंगाना राज्य के गठन के बाद राज्य को आर्थिक रूप से मदद करने के लिए उसे यह दर्जा दिया गया था। अन्य राज्यों की तुलना में विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को केंद्र से मिलने वाली सहायता में कई लाभ मिलते हैं। केंद्र प्रायोजित योजनाओं के मामले में विशेष दर्जा रखने वाले राज्यों को 90 फीसदी धनराशि मिलती है, जबकि अन्य राज्यों के मामले में यह अनुपात 60 से 70 फीसदी है। इसके अलावा विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त राज्यों को सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क, आयकर और कार्पोरेट कर में रियायतें मिलती हैं। इन राज्यों को दरों के सकल बजट का 30 प्रतिशत हिस्सा मिलता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि ऐसे राज्यों को मिलने वाली धनराशि अगर बच जाती है तो उसका उपयोग अगले वित्त वर्ष में किया जा सकता है जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था को लाभ होगा। एक बार विशेष दर्जे का पिटारा खुल गया तो पता नहीं यह कैसे रूकेगा?

-अनिल नरेन्द्र

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