Thursday 13 October 2011

उठ गया संगीत का रोशन आफताब

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 13th October 2011
अनिल नरेन्द्र
गजल गायिकी के सरताज जगजीत सिंह अब नहीं रहे। उनका सोमवार सुबह मुंबई के लीलावती अस्पताल में निधन हो गया। 23 सितंबर को उनको ब्रेन हेमरेज के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था और वह तभी से कोमा में थे। वह 70 साल के थे। जगजीत सिंह के शोक संतृप्त परिवार में उनकी पत्नी चित्रा सिंह ही रह गई हैं। 1990 में उनके बेटे विवेक का सड़क दुर्घटना में निधन हो गया था। तब से जगजीत कभी भी उभरे नहीं। अंदर ही अंदर उनको बेटे की मृत्यु का गम खा गया। मंगलवार को उनका अंतिम संस्कार मरीन लाइन्स के चंदनवाड़ी विद्युत शवदाह गृह में कर दिया गया। अंतिम किया उनके भाई करतार सिंह धीमन ने की। अंतिम संस्कार के समय मौजूद रहने वाले लोगों में गीतकार गुलजार, जावेद अख्तर समेत कई बालीवुड की हस्तियां मौजूद थीं। राजस्थान के श्री गंगानगर में जन्मे जगजीत सिंह बीती सदी के सातवें और आठवें दशक में गजल को दरबारी परम्परा से निकालकर आम आदमी के करीब लाए। उन्होंने नूरजहां, तलत महमूद और मेंहदी हसन जैसे दिग्गजों के दौर में गजल गायकी के क्षेत्र में कदम रखा। जगजीत ने गजल को भारतीय संगीत की शास्त्रीय परंपरा से थोड़ा अलग पेश किया जिसे लोगों ने खूब सराहा। जगजीत की बीमारी और मृत्यु पर सारे देश में जैसी पतिकिया हुई उससे यह पता चलता है कि वह कितने लोकपिय थे। उनकी लोकपियता इस पीढ़ी में तब हुई थी जब गजल गायन की लोकपियता का दौर एक तरह से खत्म सा हो गया था। अगर हम यह कहें कि दरअसल भारत में गजल की लोकपियता का दौर जगजीत के साथ शुरू हुआ तो शायद गलत न होगा। उनके पहले भारत में बेगम अख्तर और तलत महमूद जैसे दिग्गज थे और पाकिस्तान के गायक मेंहदी हसन और गुलाम अली का पभाव था। लेकिन उनके चाहने वाले सीमित लोग थे। जगजीत सिंह ने गजल को भारतीय आम जनता में लोकपिय बनाया बल्कि गजल सुनना एक फैशन हो गया। जिस समय जगजीत ने संगीत की दुनिया में पवेश किया उस समय मेंहदी हसन की तूती बोलती थी और जगजीत ने शुरुआत में मेंहदी हसन के पभाव में गाना शुरू किया। यह एक अजीब बात है कि बाद के वर्षों में पाकिस्तानी कलाकारों के विरोध में सबसे ज्यादा मुखर आवाज उन्हीं की थी। शायद अपनी पाकिस्तान यात्रा में हुए कटु अनुभवों ने उन्हें तल्ख बना दिया था। जल्दी ही उन्होंने अपनी निजी शैली विकसित की, जिसमें गजल के साथ आधुनिक आर्केस्ट्रा का कल्पनाशील और संयत इस्तेमाल शमिल था। जगजीत सिंह की सुरीली आवाज ने गजल गायकी को आम लोगों तक लोकपिय बना दिया। गायक होने के साथ-साथ जगजीत सिंह बहुत अच्छे संगीत निदेशक भी थे, अपनी गजलों की धुनें वह खुद ही बनाते थे। उन्होंने कई फिल्मों का संगीत निर्देशन भी किया। जगजीत सिंह का जाना एक ऐसी क्षति है जिसे पूरा नहीं किया जा सकता। उन्होंने गजल को सीमित दायरे से निकालकर आम आदमी तक पहुंचाया। उन्होंने ऐसी भाषा दी जो आज के युवाओं को समझ आ सके। यही वजह है कि जगजीत के दीवानों की फहरिस्त में हर उम्र के श्रोता शामिल हैं। जगजीत सिंह को अमिताभ बच्चन ने इन शब्दों में श्रद्धांजलि दीः जगजीत सिंह की मखमली आवाज अब दुनिया से शांत हो गई। गजल सम्राट का जाना संगीत उद्योग और उनके चाहने वालों के लिए एक बड़ी क्षति है। उनके निधन से संगीत और गजल की दुनिया का सूनापन भरना मुश्किल है। मैं उनके लिए ईश्वर से पार्थना करता हूं। अलविदा जगजीत।
Anil Narendra, Daily Pratap, Ghazal, Jagjit Singh, Vir Arjun

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