Tuesday 25 October 2011

कश्मीर से एएफएसपीए हटाने की मांग


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 24th October 2011
अनिल नरेन्द्र
जम्मू-कश्मीर से सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम हटाने को लगता है कि एक बार फिर उच्चस्तर पर चर्चा और इसे हटाने की गलती करने का प्रयास शुरू हो चुका है। कश्मीर नीति हमेशा से इस सरकार की ढुलमुल रही है। कश्मीर के मुद्दे पर नियुक्त तीन वार्ताकारों की सिफारिशों को आधार बनाकर केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम भी काफी हद तक यह दांव खेलने का मन बना चुके हैं। पिछले साल राज्य के कुछ हिस्सों से सैनिकों को हटाने और उसके बाद से राज्य में हालात सामान्य रहने का एक प्रयोग भी सफल माना जा रहा है। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, उनके पिता एवं केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला और अलगाववादी नेता इस मुद्दे पर एक हैं। यह सभी चाहते हैं कि राज्य से सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम हटाया जाए जबकि सेना की राय इसके खिलाफ है। एक तरह से इस मुद्दे पर जम्मू-कश्मीर सरकार, गृह मंत्रालय एक तरफ है, रक्षा मंत्रालय और सेना दूसरी तरफ। क्या कोई सुरक्षा कर्मी दोनों हाथों को पीठ पीछे रखकर खूंखार, बंदूकधारी आतंकियों का मुकाबला कर सकता है? और अगर उसके हाथों में बंदूक देकर उसे सामने से फायर करने वाले पर गोली न चलाने का हुक्म दिया जाए तो वह क्या लड़ाई करेगा। कुछ ऐसी ही स्थिति उमर अब्दुल्ला अपने राज्य में चाहते हैं और चिदम्बरम उनकी हां में हां मिला रहे हैं। सेना का कहना है कि इन अधिकारों के बिना कश्मीर में आतंक का मुकाबला बहुत मुश्किल है। एक वरिष्ठ सेना अधिकारी ने कहा कि आप खुद सोचें जिन आतंकवादियों के मुकाबले में आपको खुद पचड़े में पड़ने का खतरा हो तो आप उनसे मुकाबला कैसे कर सकते हैं। क्या आप जिस आतंकी का मुकाबला करने जा रहे हैं क्या वह आप पर फूल बरसाएगा? सेना मुख्यालय के सूत्रों का कहना है कि सीमापार अभी भी 50 से अधिक आतंकी शिविर चल रहे हैं। इतना ही नहीं, सीमापार करीब 100 से अधिक आतंकी घुसपैठ के लिए तैयार बैठे हैं। घुसपैठ से लेकर आतंकी हमलों का भी खतरा बना हुआ है। फिर आतंकी पहले की तुलना में हर साल `हाई टेक' होते जा रहे हैं। आतंकियों के पास न केवल उच्चस्तर के हथियार, नाइफ, कटर, इलैक्ट्रॉनिक उपकरण मिल रहे हैं बल्कि उच्च तकनीकी से तैयार किए विस्फोटकों आदि को तैयार करने में माहिर हो रहे हैं। आतंकियों का प्रशिक्षण भी कमांडो स्तर का हो रहा है और वे भारतीय भाषाओं को सीखकर आते हैं। एक नया फैक्टर जिसका हमें ध्यान रखना होगा वह यह है कि पाक अधिकृत कश्मीर में बहुत से चीनी सैनिक मौजूद हैं जो इन आतंकियों को हर सम्भव मदद दे रहे हैं। ऐसे में जम्मू-कश्मीर के इस सीमावर्ती राज्य में सेना के सामने लगातार चुनौतियां बढ़ रही हैं। आज अगर जम्मू-कश्मीर में थोड़ी-सी शांति है तो वह सेना की प्रभावी रणनीति के कारण है। सेना के अधिकारों में कटौती की मांग करने वालों के सामने देश की सुरक्षा से ज्यादा अपने वोट बैंक की नीति ज्यादा हावी लग रही है। उमर अब्दुल्ला अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं। केंद्र सरकार को उनकी हर मांग पर हां में हां नहीं मिलानी चाहिए। गृह मंत्रालय को रक्षा मंत्रालय से गम्भीरता से इस मुद्दे पर विचार करना चाहिए और जो भी फैसला लेना है वह देश हित में होना चाहिए, महज किसी राजनीतिक दल की वोट बैंक रणनीति को बढ़ाने के लिए नहीं होना चाहिए। देश की सुरक्षा सर्वोपरि है।
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