Friday 28 October 2011

सर्वशिक्षा अभियान की सच्चाई


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 28th October 2011
अनिल नरेन्द्र
मेरा भारत महान। सारी दुनिया में इस समय भारत का डंका बज रहा है। कहा जाता है कि भारत की अर्थव्यवस्था मौजूदा समय में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है पर जमीनी हकीकत जब हम देखते हैं तो थोड़ा दुःख जरूर होता है कि आज भी एजुकेशन जैसा महत्वपूर्ण क्षेत्र इतना पिछड़ा है? शिक्षा का अधिकार कानून और सर्वशिक्षा अभियान के बावजूद पिछले वर्ष करीब 82 लाख बच्चों का स्कूलों में दाखिला नहीं हो पाया है। इतनी ही नहीं, स्कूलों की दुर्गति का आलम यह है कि लड़कियों के 41 फीसदी स्कूलों में शौचालय तक नहीं है। राज्यों में प्राइमरी शिक्षा पर समीक्षा करने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल की अध्यक्षता में राज्यों के शिक्षा मंत्रियों की हुई बैठक में बच्चों के स्कूलों पर गहन समीक्षा हुई। छह से 14 वर्ष तक के बच्चों को अनिवार्य रूप से स्कूलों में भेजने के लिए शिक्षा का अधिकार कानून लागू किया गया था। इसके लागू होने के एक वर्ष से ज्यादा का समय बीत जाने के बावजूद प्राइमरी शिक्षा की स्थिति संतोषजनक नहीं है। स्कूलों और शिक्षकों का अभाव तो अलग विषय है। हालत यह है कि अब सर्वशिक्षा अभियान की भी हवा निकल गई है और केंद्र सरकार को उसी से मिलता-जुलता नया अभियान चलाने का फैसला लेना पड़ा मगर इसमें फर्प यह होगा कि इसे गैर सरकारी तंत्र से चलाया जाएगा। अब प्राइमरी स्कूलों में इस तंत्र का सीधा दखल रहेगा। इस तंत्र के स्वयंसेवकों का काम होगा कि वह स्कूल और समाज के बीच सेतु का काम करें। यदि किसी गांव में कोई बच्चा स्कूल नहीं जा रहा है तो उसकी जानकारी इलाके के स्कूल को देनी होगी और बच्चे के घर वालों को जागरूक करना होगा कि वे अपने बच्चे को स्कूल भेजें। सिब्बल ने बताया कि इस अभियान का नाम `शिक्षा का हक' रखा गया है। जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री 11 नवम्बर को करेंगे। इस अभियान के तहत 13 लाख स्कूलों को शामिल किया जाएगा जिनके प्रधानाचार्यों को प्रधानमंत्री की अपील जारी की जाएगी, जिसका संदेश होगा कि वे किसी भी बच्चे को स्कूल जाने से वंचित न होने दें। कपिल सिब्बल ने राज्यों के शिक्षा मंत्रियों से कहा कि वे प्राइमरी स्कूलों की दशा ठीक करें। उन्होंने कई राज्यों में अब भी शिक्षा का अधिकार कानून लागू न करने पर खेद व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि एक वर्ष से कई बार राज्यों से अनुरोध किया जा चुका है मगर केवल 18 राज्यों ने ही इस कानून को लागू किया है। महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, गुजरात और तमिलनाडु जैसे कई बड़े राज्य ऐसे हैं जिन्होंने इस कानून को अब तक लागू नहीं किया है। इसके चलते लाखों बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं। स्कूलों के भवनों की दुर्गति और शिक्षकों की कमी पर भी ध्यान देना अतिआवश्यक है। इस समय करीब 44 लाख शिक्षक पूरे देश में काम कर रहे हैं। हमें इस बात की खुशी है कि श्री कपिल सिब्बल ने इस कटु सत्य को उजागर करने की हिम्मत दिखाई। हम उम्मीद करते हैं कि वह दिन पूरे देश में जल्द आएगा जब हर गांव में कोई भी बच्चा स्कूल जाने से वंचित नहीं होगा।
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