गुजरात के आईपीएस अफसर संजीव भट्ट पिछले कुछ दिनों से चर्चा का विषय बने हुए हैं। गुजरात के यह विवादास्पद पुलिस अधिकारी जो आजकल सस्पैंड हैं। दरअसल एक हीरो हैं या एक विलेन। कांग्रेस की नजरों में वह हीरो हैं। संजीव भट्ट कांग्रेस के उम्मीदवार बनते जा रहे हैं और कांग्रेस का एक वर्ग यहां तक कहने लगा है कि संजीव भट्ट की गिरफ्तारी मोदी सरकार के अन्त की शुरुआत हो सकती है। इस वर्ग का कहना है कि बदले की भावना से भट्ट के खिलाफ की जा रही बदले की कार्रवाई मोदी सरकार को भारी पड़ेगी। दरअसल नरेन्द्र मोदी कांग्रेस की आंख की किरकिरी बने हुए हैं और कांग्रेस को हमेशा कोई ऐसा मुद्दा जरूर चाहिए होता है जिससे वह मोदी पर हमला कर सके। कभी मोदी के उपवास में आडवाणी सहित दूसरे बड़े भाजपा नेताओं की अनुपस्थिति को हवा दी जाती है तो कभी आडवाणी की गुजरात से अपनी यात्रा शुरू न करने को मुद्दा बनाया जाता है। पीएम पद की दावेदारी को लेकर भाजपा में चल रहे घमासान को उछाला जाता है। अब संजीव भट्ट मामले को तूल दिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि मोदी सरकार बदले की भावना से काम कर रही है और संजीव भट्ट को इसलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि वह मोदी के खिलाफ खुले आरोप लगा रहे हैं। भट्ट की पत्नी ने केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम को एक पत्र लिखकर कहा है कि गुजरात पुलिस उनके पति के साथ आतंकवादियों जैसा व्यवहार कर रही है। अपने पत्र में उन्होंने राज्य सरकार पर यह भी आरोप लगाया है कि वह भट्ट को जमानत न मिल पाने से बचाने के लिए हर हथकंडा अपना रही है। कुछ दिन पहले भट्ट की पत्नी श्वेता ने चिदम्बरम को एक और पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने अपने पति की जान को खतरा बताया था।
सवाल यह है कि संजीव भट्ट क्या एक निष्ठावान, ईमानदार, साफ छवि के पुलिस अधिकारी हैं जिन्हें मोदी सरकार जानबूझ कर निशाना बना रही है, बदला ले रही है क्योंकि उन्होंने मोदी के खिलाफ अभियान चला रखा है या फिर वह एक दागदार अफसर हैं जो अपनी गतिविधियों के पर्दाफाश होने से इसलिए हमला कर रहे हैं ताकि उनके खिलाफ लगे आरोपों से बचा जा सके? संजीव भट्ट के पुलिस रिकार्ड पर अगर हम नजर डालें तो पाएंगे कि उन पर समय-समय पर गम्भीर आरोप लगते रहे हैं। 30 अक्तूबर 1990 को जामनगर जिले के जमोधपुर तालुक में एक सांप्रदायिक दंगा हुआ। इसमें 133 लोगों को गिरफ्तार किया गया। विश्व हिन्दू परिषद के एक कार्यकर्ता प्रभुदास वेशनानी छूटने के 11 दिन बाद पुलिस हिरासत में मर गए। क्योंकि पुलिस ने उनकी जरूरत से कहीं ज्यादा पिटाई कर दी थी। उनके बड़े भाई अमृत लाल वेशनानी ने हिरासत में मौत संबंधी जो मुकदमा किया उसमें प्रमुख आरोपी तत्कालीन जिला पुलिस अधीक्षक संजीव भट्ट को बनाया। जामनगर के तत्कालीन अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एनटी सोलंकी ने भट्ट के खिलाफ एक गिरफ्तारी वारंट भी जारी किया था। भट्ट के खिलाफ गुजरात सीआईडी ने सीआरपीसी की धारा 197 के तहत अभियोग चलाने के लिए बाकायदा राज्य सरकार से अनुमति भी मांगी थी। लेकिन 1995 में मोदी सरकार ने अदालत में भट्ट का बचाव किया, अदालत ने यह केस बन्द करने की सरकार की याचिका को ठुकराते हुए कहा कि मामला चलाने योग्य है इसलिए इसे बन्द नहीं किया जा सकता। लेकिन मोदी सरकार ने 1996 की उस याचिका को वापस ले लिया। अब भी अदालती कार्रवाई भट्ट के खिलाफ जारी है। संजीव भट्ट का एक और कुत्सित चेहरा है। 1995 में वे अहमदाबाद जिला पुलिस अधीक्षक थे। वहीं एक सत्र न्यायाधीश आरके जैन थे। उनकी बहन के एक किरायेदार थे जिनके खिलाफ मुकदमा चल रहा था। किन्तु किरायेदार मुकदमा जीत गए और घर खाली कराने के सभी कानूनी रास्ते बन्द हो गए। न्यायाधीश जैन ने संजीव भट्ट से घर किसी भी तरीके से खाली करवाने की अपील की। भट्ट ने किरायेदार को बुलाया और घर खाली करने को कहा और उसे कहा कि यदि उसने घर खाली नहीं किया तो उसे परिणाम भुगतने होंगे। फिर वही हुआ जिसका डर था। संजीव भट्ट ने किरायेदार के घर पर नॉरकोटिक्स रखवाकर उसे गिरफ्तार करवा दिया और गिरफ्तार होते ही जबरन घर खाली करा दिया। बाद में जिला जज की अदालत में किरायेदार ने वाद पेश किया तो उसमें संजीव भट्ट को भी वादी बनाया। संजीव भट्ट के खिलाफ एक लाख 50 हजार का अर्थदण्ड लगा जिसका भुगतान, आपको सुनकर आश्चर्य होगा, राज्य सरकार ने किया और वह पैसा भट्ट के वेतन से किश्तों में कटता रहा। इस निलंबित आईपीएस अधिकारी की मोदी सरकार से खुंदक और उसके विरोधियों से साठगांठ पुरानी है। ऐसे कई उदाहरण हैं जिससे साबित होता है कि कांग्रेस संजीव भट्ट को मोदी सरकार और खुद मुख्यमंत्री के खिलाफ उकसाती रही है और उकसा रही है। संजीव भट्ट का रिकार्ड अदालतों के सामने है। हो सकता है कि अगले विधानसभा चुनाव में वह कांग्रेस के एक उम्मीदवार भी बनें। अब आप खुद फैसला कर लें कि क्या संजीव भट्ट एक ईमानदार, साफ छवि के व्यक्ति हैं जिसे मोदी सरकार जानबूझ कर टारगेट बना रही है या फिर वह कांग्रेस की शतरंजी चाल में एक मोहरे हैं?
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सवाल यह है कि संजीव भट्ट क्या एक निष्ठावान, ईमानदार, साफ छवि के पुलिस अधिकारी हैं जिन्हें मोदी सरकार जानबूझ कर निशाना बना रही है, बदला ले रही है क्योंकि उन्होंने मोदी के खिलाफ अभियान चला रखा है या फिर वह एक दागदार अफसर हैं जो अपनी गतिविधियों के पर्दाफाश होने से इसलिए हमला कर रहे हैं ताकि उनके खिलाफ लगे आरोपों से बचा जा सके? संजीव भट्ट के पुलिस रिकार्ड पर अगर हम नजर डालें तो पाएंगे कि उन पर समय-समय पर गम्भीर आरोप लगते रहे हैं। 30 अक्तूबर 1990 को जामनगर जिले के जमोधपुर तालुक में एक सांप्रदायिक दंगा हुआ। इसमें 133 लोगों को गिरफ्तार किया गया। विश्व हिन्दू परिषद के एक कार्यकर्ता प्रभुदास वेशनानी छूटने के 11 दिन बाद पुलिस हिरासत में मर गए। क्योंकि पुलिस ने उनकी जरूरत से कहीं ज्यादा पिटाई कर दी थी। उनके बड़े भाई अमृत लाल वेशनानी ने हिरासत में मौत संबंधी जो मुकदमा किया उसमें प्रमुख आरोपी तत्कालीन जिला पुलिस अधीक्षक संजीव भट्ट को बनाया। जामनगर के तत्कालीन अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एनटी सोलंकी ने भट्ट के खिलाफ एक गिरफ्तारी वारंट भी जारी किया था। भट्ट के खिलाफ गुजरात सीआईडी ने सीआरपीसी की धारा 197 के तहत अभियोग चलाने के लिए बाकायदा राज्य सरकार से अनुमति भी मांगी थी। लेकिन 1995 में मोदी सरकार ने अदालत में भट्ट का बचाव किया, अदालत ने यह केस बन्द करने की सरकार की याचिका को ठुकराते हुए कहा कि मामला चलाने योग्य है इसलिए इसे बन्द नहीं किया जा सकता। लेकिन मोदी सरकार ने 1996 की उस याचिका को वापस ले लिया। अब भी अदालती कार्रवाई भट्ट के खिलाफ जारी है। संजीव भट्ट का एक और कुत्सित चेहरा है। 1995 में वे अहमदाबाद जिला पुलिस अधीक्षक थे। वहीं एक सत्र न्यायाधीश आरके जैन थे। उनकी बहन के एक किरायेदार थे जिनके खिलाफ मुकदमा चल रहा था। किन्तु किरायेदार मुकदमा जीत गए और घर खाली कराने के सभी कानूनी रास्ते बन्द हो गए। न्यायाधीश जैन ने संजीव भट्ट से घर किसी भी तरीके से खाली करवाने की अपील की। भट्ट ने किरायेदार को बुलाया और घर खाली करने को कहा और उसे कहा कि यदि उसने घर खाली नहीं किया तो उसे परिणाम भुगतने होंगे। फिर वही हुआ जिसका डर था। संजीव भट्ट ने किरायेदार के घर पर नॉरकोटिक्स रखवाकर उसे गिरफ्तार करवा दिया और गिरफ्तार होते ही जबरन घर खाली करा दिया। बाद में जिला जज की अदालत में किरायेदार ने वाद पेश किया तो उसमें संजीव भट्ट को भी वादी बनाया। संजीव भट्ट के खिलाफ एक लाख 50 हजार का अर्थदण्ड लगा जिसका भुगतान, आपको सुनकर आश्चर्य होगा, राज्य सरकार ने किया और वह पैसा भट्ट के वेतन से किश्तों में कटता रहा। इस निलंबित आईपीएस अधिकारी की मोदी सरकार से खुंदक और उसके विरोधियों से साठगांठ पुरानी है। ऐसे कई उदाहरण हैं जिससे साबित होता है कि कांग्रेस संजीव भट्ट को मोदी सरकार और खुद मुख्यमंत्री के खिलाफ उकसाती रही है और उकसा रही है। संजीव भट्ट का रिकार्ड अदालतों के सामने है। हो सकता है कि अगले विधानसभा चुनाव में वह कांग्रेस के एक उम्मीदवार भी बनें। अब आप खुद फैसला कर लें कि क्या संजीव भट्ट एक ईमानदार, साफ छवि के व्यक्ति हैं जिसे मोदी सरकार जानबूझ कर टारगेट बना रही है या फिर वह कांग्रेस की शतरंजी चाल में एक मोहरे हैं?
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