हमारे समाज में पारिवारिक दृष्य तेजी से बदलता जा रहा है। महंगाई के कारण आज माता-पिता दोनों को काम करना पड़ता है ताकि घर की रोजी-रोटी चल सके, जिनको आर्थिक समस्या नहीं उन्हें अपने बच्चों के लिए फुरसत नहीं। वह अपने ही कार्यों में इतने मसरूफ हैं कि बच्चों पर उनका ध्यान न के बराबर है। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। आए दिन हम सुनते हैं कि एक छोटे से बच्चे ने यह कर दिया, वह कर दिया। बच्चों की अब टीवी देखने की आदत ज्यादा बन गई है। तरह-तरह के सीरियल देखते हैं। इनका उनके दिमाग पर असर पड़ता है और कभी-कभी तो वह वही हरकतें करने की कोशिश करते हैं जो सीरियल में देखते हैं। पिछले दो दिनों में तीन ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनमें छोटे बच्चे इन्वाल्व हैं। इन तीनों घटनाओं में एक बात समान है। बच्चों का असामान्य हिंसक व्यवहार। आखिर हमारे बच्चे किस मनोदिशा में जी रहे हैं जिसमें साथियों से न तो प्यार है और न ही शिक्षकों के पति सम्मान। पहली घटना राजधानी दिल्ली के ख्याला गांव की है। 12 साल के एक बच्चे के हाथ तमंचा (कट्टा) लग गया और उसने चोर-सिपाही के खेल में अपने दोस्त जो उससे दो साल छोटा था (10 साल) को गोली मार दी। बच्चे की मौत हो गई। पुलिस ने इस किशोर को बाल सुधार गृह भेजकर दोनों बच्चों के पिता को गिरफ्तार कर लिया है। आरोप है कि गोली चलाने वाले बच्चे के पिता ने ही घर में कट्टा रखा और वारदात के बाद उसे नजफगढ़ नाले में फेंक दिया। रघुवीर नगर निवासी राजेश्वर का बेटा सरकारी स्कूल में छठी कक्षा में पढ़ता है। मैं समझता हूं कि इस केस में बच्चे से ज्यादा कसूरवार उसका पिता है जिसने कट्टा ऐसे स्थान पर रखा जहां से बच्चा आसानी से उसे उठाकर ले गया। चोर-सिपाही खेल तो सभी बच्चे खेलते हैं। बच्चे को क्या पता कि यह असली गन है या नकली? दूसरा किस्सा खुर्जा का है। क्लास में पसंदीदा सीट पर बैठने को लेकर हुए झगड़े में 12वीं कक्षा के एक छात्र ने बड़ी बेहरमी से दातों से साथी का कान काट लिया और सड़क पर फेंक दिया। रेलवे कॉलोनी निवासी अजय गौतम का बेटा नवनीत एक स्कूल में इंटर का छात्र है। तीसरा किस्सा सहारनपुर का है। अध्यापक के जरा से डांटने पर गुस्साए छात्र ने उन्हें चाकू से हमला कर लहूलुहान कर डाला और भाग खड़ा हुआ। छात्र को निष्कासित कर उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी गई है। बड़गांव के आदर्श इंटर कॉलेज की कक्षा 11 के अध्यापक जगदेव सिंह का पहला पीरियड था। कक्षा में उल्टी-सीधी पड़ी कुर्सियां सही करने को कहा तो छात्र सुमित ने ऐसा करने से मना कर दिया। अध्यापक ने उसे डांटा तो उसने चाकू निकाल कर टीचर पर हमला कर दिया। ऐसी घटनाएं आज सारे देश में हो रही हैं। तेजी से बदलते सामाजिक वातावरण में माता-पिता के पास, टीचरों के पास बच्चों के लिए समय घटता जा रहा है। उन्हें सही क्या है और गलत क्या है यह समझाने वाला कोई नहीं। रही सही कसर टीवी निकाल देता है। दुखद पहलू यह है कि इस व्यवस्था में सुधार होने की सम्भावना भी नजर नहीं आती।
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