मनमोहन सिंह की कैबिनेट में अंतर्विरोध और टकराव का आरोप लगाने वाली भाजपा खुद भी ऐसी ही स्थिति में घिरी हुई है। भारतीय जनता पार्टी की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक आरम्भ हो गई है। पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी के आग्रह के बावजूद गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित कर्नाटक और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा और रमेश पोखरियाल निशंक बैठक में शामिल नहीं हुए। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने हालांकि यह कहा था कि पार्टी कोशिश कर रही है कि मोदी बैठक में शामिल हों। कुछ ही लोग शायद इस तर्प को मानेंगे कि मोदी नवरात्र के व्रत रख रहे हैं इसलिए बैठक में नहीं आए। असल कारण कुछ और ही है। 8 सितम्बर को पार्टी के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने अचानक देशव्यापी रथ यात्रा निकालने का ऐलान कर दिया था। इससे भाजपा नेतृत्व भी हतप्रभ रह गया था। इस ऐलान के साथ ही ये कयास लगने लगे कि आडवाणी की इस रथ यात्रा का उद्देश्य एक बार फिर पीएम इन वेटिंग का संदेश देना है। संघ ने 2009 के चुनाव में हार के बाद श्री आडवाणी को पीछे करके नम्बर दो के नेताओं को आगे करने की योजना बनाई। इसमें नरेन्द्र मोदी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और खुद नितिन गडकरी शामिल थे पर आडवाणी की अचानक रथ यात्रा की घोषणा ने यह समीकरण बिगाड़ दिए। आडवाणी की यात्रा का सबसे ज्यादा झटका गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को लगा। लम्बे समय तक उनकी पहचान आडवाणी के खास सिपहसालार के रूप में रही है। लेकिन अब मोदी बड़े उस्ताद बन गए हैं। कुछ मायनों में वह अपने आपको पार्टी से ऊपर समझने लगे हैं। भाजपा सूत्रों के अनुसार भाजपा में प्रधानमंत्री पद के इन दो भावी दावेदारों मोदी और आडवाणी के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है। आडवाणी की प्रस्तावित रथ यात्रा मोदी को रास नहीं आ रही है। इसी के चलते उन्होंने भी आडवाणी की तर्ज पर पिछले दिनों अहमदाबाद में एक बड़ा राजनीतिक शो कर डाला था। राज्यपाल के खिलाफ हाल ही में गुजरात में आयोजित मोदी की रैली में आडवाणी समेत किसी भी बड़े नेता ने हिस्सा नहीं लिया था। अहमदाबाद में मोदी उपवास का जिस तरह प्रचार किया गया उससे पार्टी का शीर्ष नेतृत्व खुश नहीं है। उनका मानना है कि मोदी खुद को भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पेश कर रहे हैं। उधर संघ ने आडवाणी पर दबाव डाला कि वह यह स्पष्ट कर दें कि उनकी यात्रा से उनकी प्रधानमंत्री की उम्मीदवारी से कुछ लेना-देना नहीं है। संघ के नागपुर स्थित मुख्यालय में नेतृत्व से मुलाकात के बाद श्री आडवाणी ने घोषणा की कि वह प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को लेकर यह रथ यात्रा नहीं कर रहे। सबसे पहले नरेन्द्र मोदी ने ही उनकी यात्रा का विरोध किया था। सूत्रों के मुताबिक जब आडवाणी ने उनसे इस यात्रा के बारे में बात की तो मोदी ने अपनी आदत के मुताबिक उनसे दो टूक पूछ लिया कि इससे क्या फायदा? आप हासिल क्या करना चाहते हैं? इतना ही नहीं, मोदी ने गुजरात से यात्रा शुरू करने में मदद करने में अपनी असमर्थता तक जता दी। आखिरकार श्री आडवाणी ने अपनी रथ यात्रा बिहार से शुरू करने का फैसला किया। इसके पीछे एक और उद्देश्य भी नजर आता है। शायद आडवाणी जी एनडीए की तर्ज की राजनीति को बढ़ावा देना चाहते हैं। पहले भी उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना की तारीफ करके उसी लाइन पर चलने का प्रयास किया था जिस पर अटल जी चलते थे। आडवाणी की कोशिश है कि वह एनडीए की तर्ज पर फिर केंद्र में सरकार बनाएं और उसका नेतृत्व करें। इस उद्देश्य का न तो संघ समर्थन करेगा और न ही मोदी सरीखे नेता जिनकी पहचान हिन्दुत्व नेता की है। श्री आडवाणी की प्रस्तावित रथ यात्रा को लेकर जो विवाद आरम्भ हुआ है, यह थमने वाला नहीं। भाजपा नेतृत्व में इस समय जबरदस्त महत्वाकांक्षाओं का टकराव है और इसे इस रथ यात्रा ने फोकस में लाकर खड़ा कर दिया है। उधर कांग्रेस नेतृत्व में घमासान हो रहा है, रही-सही कसर भाजपा की अंतर्पलह ने पूरी कर दी है।
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