दुनिया का सबसे सम्पन्न माना जाने वाला देश अमेरिका आजकल मंदी के दौर से गुजर रहा है। आर्थिक मंदी का सामना कर रहे अमेरिका में ओबामा पशासन की नीतियों के खिलाफ जनता सड़कों पर उतर आई है। गैर-बराबरी और कारपोरेट भ्रष्टाचार को लेकर शनिवार-रविवार को सैकड़ों पदर्शनकारियों ने न्यूयार्प के ब्रुकलिन ब्रिज पर कब्जा कर लिया। इससे शनिवार को कई घंटों तक ट्रैफिक जाम हो गया। पुलिस ने 700 से ज्यादा पदर्शनकारियों को हिरासत में लेने का दावा किया है। न्यूयार्प के वित्तीय इलाके `वाल स्ट्रीट पर कब्जा करो' मुहिम के तहत पिछले कुछ हफ्तों से अमेरिका के कई शहरों में आंदोलन चल रहे हैं। कई मजदूर संगठनों ने इस मुहिम को समर्थन दिया है। दो हफ्ते पहले मैनहेटन के एक पार्प पर पदर्शनकारियों ने कब्जा किया था। शनिवार सुबह मैनहेटन से निकली रैली ब्रुकलिन ब्रिज पर पहुंची तो वहां ट्रैफिक जाम हो गया। पशासनिक अधिकारियों ने घंटों तक ब्रिज बंद रखा। पदर्शनकारियों का आरोप है कि सरकार पूंजीपतियों के हितों का ज्यादा ध्यान रख रही है। कुछ जगहों पर इसे पूंजीवादी व्यवस्था के विरोधियों का एक गठबंधन भी बताया जा रहा है। बोस्टन में बैंक ऑफ अमेरिका के कार्यालय के बाहर शनिवार को पदर्शन हुआ। राइट टू द सिटी ने इस पदर्शन का आयोजन किया था। यह पदर्शन सरकार व बैंकों की नीतियों और कारपोरेट लालच के खिलाफ था। हजारों लोग इसमें शामिल हुए। अरब देशों में लोकतंत्र के लिए हुई कांतियों से पेरित मुहिम की वेबसाइट पर कहा गया है कि कम से कम 50 पदर्शनकारी गिरफ्तार हुए हैं। `ऑकुपाई वाल स्ट्रीट' ने कहा कि हम सभी नस्लों के लोग हैं। हम बहुमत में हैं। हम 99 पतिशत हैं। अब हम चुप नहीं बैठेंगे। हम मौजूदा आर्थिक और राजनीतिक माहौल से असंतुष्ट हैं, इसी का विरोध कर रहे हैं। न्यूयार्प के इस पदर्शन की तुलना मिस्र की राजधानी काहिरा के तहरीर चौक से की जा रही है जहां से अरब स्पिंग नामक वह आंदोलन शुरू हुआ जिसने पश्चिम एशिया और उत्तरी अफीका के कुछ देशों में पबल परिवर्तन करवा दिया। जाहिर है, वाल स्ट्रीट कब्जा करो जैसे करीब 21 जगह चल रहे आंदोलन का मकसद अमेरिका पशासन का तख्ता पलटना तो नहीं है क्योंकि भारत की तरह अमेरिका भी लोकतंत्र का गढ़ है बल्कि अमेरिका पशासन द्वारा बड़े-बड़े बैंकों के मालिकों और कारपोरेट जगत के दिग्गजों के खिलाफ है जिन्हें सरकार बेल आउट पैकेज देकर कर्ज संकट से उबारती है। सड़कों पर उतरे वे लोग हैं जिनकी पढ़ाई-लिखाई पूर्ण हो रही है, मगर जिन्हें दूर-दूर तक नौकरियों की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। यह युवा वर्ग समाज के उस तबके का पतिनिधित्व करता है जो कर्ज लेकर पढ़ा है और आज यह कर्जा लौटाने में उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। न ही इनके परिवारों में इतनी आर्थिक क्षमता है कि वह कर्ज वापस कर सकें। यह वर्ग मानता है कि बड़ी-बड़ी कारपोरेट कंपनियों का लालच देश को डुबा रहा है और सरकार इन्ही की मदद कर रहा है। यह आंदोलन अमेरिकन आर्थिक व्यवस्था के लिए एक चुनौती बनकर उभरे हैं। जिस ढंग से यह आंदोलन अमेरिका के शहरों में फैला है उससे साफ है कि अमेरिका के मौजूदा वित्तीय और आर्थिक मॉडल पर ही गंभीर संकट नहीं है बल्कि आधुनिक पूंजीवादी सिस्टम पर भी संकट है जिससे हैव्स और हैव नाट्स में अंतर बढ़ता जा रहा है।
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