रविवार को हर कांग्रेसी ने राहत की सांस ली होगी जब महात्मा गांधी व शास्त्राr जयंती पर लगभग दो महीने के बाद श्रीमती सोनिया गांधी को देखा। विदेश में सर्जरी कराने के बाद पहली बार किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में सोनिया गांधी ने भाग लिया। विदेश में सर्जरी कराने के बाद सितम्बर माह में सोनिया गांधी भारत लौट आई थीं। लेकिन मीडिया के सामने अभी तक मुखातिब नहीं हुई थीं। उनकी सेहत को लेकर मीडिया में कई तरह की अटकलें लगाई जाती रही हैं। देखने में सोनिया ठीक-ठाक लग रही थीं। थोड़ी कमजोर जरूर लगीं पर कुल मिलाकर पहले की तरह ही आत्मविश्वास से भरी दिखाई दे रही थीं। लाल कृष्ण आडवाणी सहित कई नेताओं ने उनकी कुशल मंगल होने के बारे में पूछा। फिर सोनिया ने संसद के केंद्रीय कक्ष में महात्मा गांधी और दिवंगत प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्राr के चित्र पर श्रद्धासुमन अर्पित करने के कार्यक्रम में भी भाग लिया। करीब 15 मिनट चले इस कार्यक्रम में कई नेता उनकी कुशलक्षेम पूछने के लिए पहुंचे थे। विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने सोनिया से पूछा कि अब आपने पूरी तरह से जिम्मेदारियां निभाना शुरू कर दिया हैं? सोनिया ने हंसते हुए उनका धन्यवाद करते हुए उत्तर दिया `हां'। कांग्रेस पार्टी प्रवक्ता राशिद अलवी ने कहा कि श्रीमती गांधी पूरी तरह से स्वस्थ हैं और पार्टी का 2014 का अगला लोकसभा चुनाव भी उन्हीं की अगुवाई में लड़ा जाएगा। सोनिया गांधी ने अब पूरी तरह फार्म में आकर पार्टी संबंधी जिम्मेदारियों को सम्भालना शुरू कर दिया है। गुरुवार को पार्टी के दो वरिष्ठ मंत्रियों के बीच विवाद जैसे राष्ट्रीय मसले को सुलझाने के बाद शुक्रवार को वह पूरी तरह प्रादेशिक और क्षेत्रीय मामलों में सक्रिय हो गईं। सोनिया महाराष्ट्र, राजस्थान और तेलंगाना के मसलों पर सरकार और पार्टी के कार्यकर्ताओं से रूबरू हुईं। सबसे पहले उनकी मुलाकात महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण और पार्टी के महाराष्ट्र अध्यक्ष माणिक राव गावित से हुई। इसके बाद सोनिया ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात की। भंवरी देवी मामले में और भरतपुर दंगों के बारे में की गई कार्रवाई का मुख्यमंत्री से तफ्सील से ब्यौरा लिया।
सोनिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस में चल रही उठापटक और सरकार की गिरती छवि को सम्भालना होगा। केंद्र में सत्ता में रहने के बावजूद कांग्रेस और सरकार इन दिनों अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। केंद्र के अलावा उसकी राज्य सरकारें भी गम्भीर संकटों से घिरी हुई हैं और सबसे दुःखद बात यह है कि सोनिया के अलावा शायद ही और कोई इन्हें सही कर सके और पार्टी को पार लगा सके। कांग्रेस के 125 साल के इतिहास में यह पहली बार है कि उसके ज्यादातर बड़े नेता विवादों और भ्रष्टाचार के घेरे में फंसे हैं। केंद्र सरकार की लोकप्रियता अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। राज्यों में भी पार्टी की सेहत संतोषजनक नहीं। कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ आंध्र प्रदेश इन दिनों केंद्र सरकार की तरह सबसे बुरी हालत में है। अलग तेलंगाना के गठन को लेकर उसकी पूर्ण बहुमत वाली किरण रेड्डी सरकार दो फाड़ होने की कगार पर है। राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार भी बुरे दौर में है, स्वयं मुख्यमंत्री गहलोत के तथा उनके संबंधियों पर जमीन आवंटन में भारी धांधली के आरोप लग रहे हैं। राज्य में सांप्रदायिक दंगे हो रहे हैं जिसके चलते नरेन्द्र मोदी के खिलाफ कांग्रेस की आक्रमण की धार तो पुंद हो ही रही है, साथ ही पार्टी की धर्मनिरपेक्ष छवि भी धूमिल हो रही है। इसके अलावा भंवरी देवी का पता नहीं चल रहा है। सरकार के वरिष्ठ मंत्री महिपाल मदेरणा सीधे कठघरे में है। दिल्ली में शीला दीक्षित सरकार भी केंद्र सरकार की तरह भारी जनाक्रोश झेल रही है। राष्ट्रमंडल खेल घोटालों के अलावा महंगाई की मार ने दिल्ली की कांग्रेस सरकार को जनता का दुश्मन नम्बर वन बना दिया है। हरियाणा सरकार के लिए अरविन्द केजरीवाल सिरदर्द बने हुए हैं। अन्ना हजारे अपना पहला प्रयोग हिसार संसदीय सीट पर होने वाले उपचुनाव से कर रहे हैं। सोनिया गांधी के संसदीय सीट पर भी वह सर्वेक्षण करा रहे हैं। गोवा से भी खनन घोटाले की खबरों ने दिल्ली में बैठे आकाओं का सिरदर्द बढ़ा दिया है। केंद्र का तो बहुत ही बुरा हाल है। गृहमंत्री पी. चिदम्बरम के बाद स्वयं प्रधानमंत्री 2जी स्पेक्ट्रम मामले की जांच की चपेट में हैं। कुल मिलाकर सरकार और पार्टी के सामने कई चुनौतियां और समस्याएं हैं जिन्हें सोनिया गांधी को सुलझाना होगा। मैडम खुद भी इन हालातों से दुःखी होंगी। भगवान उन्हें अच्छी सेहत बख्शे और वह इन मुंह फाड़ती चुनौतियों का हिम्मत, साहस और संयम से मुकाबला कर सकें।
सोनिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस में चल रही उठापटक और सरकार की गिरती छवि को सम्भालना होगा। केंद्र में सत्ता में रहने के बावजूद कांग्रेस और सरकार इन दिनों अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। केंद्र के अलावा उसकी राज्य सरकारें भी गम्भीर संकटों से घिरी हुई हैं और सबसे दुःखद बात यह है कि सोनिया के अलावा शायद ही और कोई इन्हें सही कर सके और पार्टी को पार लगा सके। कांग्रेस के 125 साल के इतिहास में यह पहली बार है कि उसके ज्यादातर बड़े नेता विवादों और भ्रष्टाचार के घेरे में फंसे हैं। केंद्र सरकार की लोकप्रियता अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। राज्यों में भी पार्टी की सेहत संतोषजनक नहीं। कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ आंध्र प्रदेश इन दिनों केंद्र सरकार की तरह सबसे बुरी हालत में है। अलग तेलंगाना के गठन को लेकर उसकी पूर्ण बहुमत वाली किरण रेड्डी सरकार दो फाड़ होने की कगार पर है। राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार भी बुरे दौर में है, स्वयं मुख्यमंत्री गहलोत के तथा उनके संबंधियों पर जमीन आवंटन में भारी धांधली के आरोप लग रहे हैं। राज्य में सांप्रदायिक दंगे हो रहे हैं जिसके चलते नरेन्द्र मोदी के खिलाफ कांग्रेस की आक्रमण की धार तो पुंद हो ही रही है, साथ ही पार्टी की धर्मनिरपेक्ष छवि भी धूमिल हो रही है। इसके अलावा भंवरी देवी का पता नहीं चल रहा है। सरकार के वरिष्ठ मंत्री महिपाल मदेरणा सीधे कठघरे में है। दिल्ली में शीला दीक्षित सरकार भी केंद्र सरकार की तरह भारी जनाक्रोश झेल रही है। राष्ट्रमंडल खेल घोटालों के अलावा महंगाई की मार ने दिल्ली की कांग्रेस सरकार को जनता का दुश्मन नम्बर वन बना दिया है। हरियाणा सरकार के लिए अरविन्द केजरीवाल सिरदर्द बने हुए हैं। अन्ना हजारे अपना पहला प्रयोग हिसार संसदीय सीट पर होने वाले उपचुनाव से कर रहे हैं। सोनिया गांधी के संसदीय सीट पर भी वह सर्वेक्षण करा रहे हैं। गोवा से भी खनन घोटाले की खबरों ने दिल्ली में बैठे आकाओं का सिरदर्द बढ़ा दिया है। केंद्र का तो बहुत ही बुरा हाल है। गृहमंत्री पी. चिदम्बरम के बाद स्वयं प्रधानमंत्री 2जी स्पेक्ट्रम मामले की जांच की चपेट में हैं। कुल मिलाकर सरकार और पार्टी के सामने कई चुनौतियां और समस्याएं हैं जिन्हें सोनिया गांधी को सुलझाना होगा। मैडम खुद भी इन हालातों से दुःखी होंगी। भगवान उन्हें अच्छी सेहत बख्शे और वह इन मुंह फाड़ती चुनौतियों का हिम्मत, साहस और संयम से मुकाबला कर सकें।
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