Tuesday, 31 October 2017

हिमाचल में भी भाजपा का भरोसा मोदी पर

गुजरात विधानसभा के चुनाव की गहमागहमी में हम हिमाचल प्रदेश के चुनावों को तो भूल ही गए हैं। हिमाचल विधानसभा चुनाव में नौ नवम्बर को वोट पड़ने हैं यानि कि मुश्किल से 10 दिन बचे हैं। फिलहाल यहां कांग्रेस का राज था। वीरभद्र सिंह कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे और अगले चुनाव में भी हो सकते हैं। हिमाचल का इतिहास ऐसा रहा है कि यहां हर पांच साल में सरकारें बदलती हैं। भाजपा ने एक बार फिर 73 वर्षीय प्रेम कुमार धूमल पर दांव लगाया है। पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार और स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा की उम्मीदों पर फिर पानी फिर गया है। पार्टी ने दो निर्दलीय और तीन कांग्रेसी नेताओं को टिकट दिया है जबकि चार वर्तमान विधायकों का टिकट काटा गया है। कांग्रेस छोड़कर आए पंडित सुखराम के पुत्र अनिल शर्मा को भी भाजपा ने टिकट दिया है। कांग्रेस के दो बागियोंöविजय ज्योति सेन को कुसुम्पति से और प्रमोद शर्मा को शिमला ग्रामीण से टिकट दिया है। दो निर्दलीयों महेश्वर सिंह को कुल्लू से और थियोग से राकेश शर्मा को। छह महिलाओं को भी मैदान में उतारा गया है। गुजरात की तरह हिमाचल विधानसभा चुनाव में भाजपा का अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इर्द-गिर्द रहेगा। प्रधानमंत्री लगभग आधा दर्जन रैलियां करेंगे। उनकी पहली सभा दो या तीन नवम्बर को होगी। इस बीच भाजपा नेतृत्व ने राज्य के नेताओं को सख्त निर्देश दिए हैं कि प्रचार के दौरान वह किसी नेता को बतौर मुख्यमंत्री पेश न करें। हिमाचल में कांग्रेस की तरह भाजपा को भी बागियों की समस्या से जूझना पड़ रहा है। पार्टी करीब आधा दर्जन बागियों को मनाने में जुटी है। इसके अलावा राज्य में अंदरूनी गुटबाजी भी एक बड़ी समस्या है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा के खेमों में तनातनी बरकरार है। कांग्रेस ने हिमाचल विधानसभा चुनाव के लिए समन्वय समिति का गठन किया है। पार्टी महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने बताया कि विद्या स्टोक्स की अध्यक्षता में गठित समिति के अन्य सदस्य हैंöमुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और प्रदेशाध्यक्ष सुखविन्दर सिंह सुक्खू। राज्य में बदलाव का माहौल होने के बावजूद भाजपा की चिन्ता का विषय जीएसटी है। इसे लेकर लोगों में नाराजगी है। हालांकि पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में जीएसटी पर स्थिति साफ करेंगे और उसके बाद माहौल बेहतर हो जाएगा। राहुल गांधी, सोनिया गांधी सहित कैप्टन अमरिन्दर सिंह व अन्य वरिष्ठ नेता भी कांग्रेस की ओर से चुनावी प्रचार में उतरेंगे। पर भाजपा का सारा दारोमदार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर टिका है।

-अनिल नरेन्द्र

अब महाकालेश्वर मंदिर में शिवलिंग पर सिर्फ आरओ जल

बारह ज्योतिर्लिंगों में शामिल उज्जैन के महाकाल शिवलिंग पर अब सिर्फ आरओ वॉटर के पानी से जलाभिषेक होगा। शिवलिंग में हो रहे क्षरण के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को नए नियमों को मंजूरी दे दी। इन नियमों के तहत प्रसाद में पंचामृत में शक्कर के स्थान पर खांडसारी का उपयोग शुरू कर दिया गया है। मंदिर में शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए आरओ के पानी का नल भी लगा दिया गया है। दरअसल महाकाल शिवलिंग के क्षरण (छोटा होना) को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। इस पर अदालत ने पुरातत्व विभाग, भूवैज्ञानिकों और अन्य विशेषज्ञों की टीम को जांच करने का निर्देश दिया था। उज्जैन निवासी सारिका गुरु द्वारा दायर याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ज्योलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण की देहरादून, भोपाल और इंदौर टीमें गठित कर महाकाल शिवलिंग के क्षरण की जांच के लिए टीम भेजी थी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व प्रसिद्ध भस्म आरती में कंडे की भस्म चढ़ाई जाती है जिससे शिवलिंग का क्षरण हो रहा है। इसके अलावा महाकाल मंदिर में शिवलिंग पर जो जल चढ़ाया जा रहा है, उसमें कीटाणु हैं और वह प्रदूषित भी है, इसलिए पानी की मात्रा को कम किया जाए। कोर्ट ने इन आठ सुझावों पर अमल करने को कहा है। श्रद्धालु शिवलिंग पर 500 मिली से अधिक जल नहीं चढ़ा सकते। शिवलिंग पर सिर्फ आरओ का पानी ही चढ़ाया जा सकेगा। भस्म आरती के दौरान शिवलिंग को सूखे सूती कपड़े से पूरी तरह ढंका जाएगा। अभी तक सिर्फ 15 दिनों के लिए शिवलिंग को आधा ढंका जाता रहा था। शिवलिंग पर चीनी पाउडर लगाने की इजाजत नहीं होगी। खांडसारी के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाएगा। अभिषेक के लिए हर श्रद्धालु को तय मात्रा में दूध या पंचामृत चढ़ाने की अनुमति होगी। नमी से बचने के लिए ड्रापर व पंखे लगाए जाएंगे और बेल पत्र व फूल-पत्तियां शिवलिंग के ऊपरी भाग पर चढ़ेंगी। शाम पांच बजे अभिषेक पूरा होने के बाद शिवलिंग की पूरी सफाई होगी और इसके बाद सिर्फ सूखी पूजा होगी। अभी तक सीवर के लिए रही तकनीक चलती रहेगी क्योंकि सीवर ट्रीटमेंट प्लांट के बनने में एक साल लगेगा। क्यों लगी रोक और मौजूदा व्यवस्था में हुआ परिवर्तन? दरअसल महाकाल ज्योतिर्लिंग को पहुंच रहे नुकसान को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। कमेटी ने गर्भगृह में श्रद्धालुओं की संख्या सीमित करने, जल और दूध से बने पंचामृत की मात्रा कम करने जैसी कई सिफारिशें की थीं। महाकाल पर आरओ के जल से अभिषेक के फैसले पर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद जल्द ही जजों से मिलेगी। हालांकि अखाड़ा परिषद ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करने की बात तो कही है, लेकिन इस फैसले को अव्यावहारिक भी बताया है। परिषद अध्यक्ष श्री महंत नरेंद्र गिरि ने बयान में कहा कि धार्मिक मामलों में फैसला सुनाने से पहले न्यायाधीशों को धर्माचार्यों से सुझाव भी लेने चाहिए। यह करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़ा मामला है। लोग अपनी मनोकामना पूरी होने पर दो बाल्टी या इससे अधिक जल से अभिषेक करने की मन्नत करते हैं। शहद और दही आदि से भी अभिषेक किया जाता है। जनमानस की अपनी धार्मिक भावना है और सबको इसका अधिकार है। ऐसे में आधा लीटर आरओ का जल लाने के लिए कैसे बाध्य किया जा सकता है। महाकाल मंदिर में पूजा के विधान पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुनाने वाले जस्टिस अरुण मिश्र ने इस मंदिर में पंडों की शान-शौकत पर भी कड़ी टिप्पणी की। जस्टिस ने जब मंदिर का जायजा लिया तो पाया कि इन पंडों का रहन-सहन किसी राजे-महाराजे से कम नहीं है। यहां तक कि विदेशी टूरिस्ट भी यह देखकर अचरज में पड़ जाएं। जस्टिस मिश्र ने यहां पंडों के बीच गुटीय राजनीति पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि पंडे भक्तों में भी मतभेद करते हैं। वे भक्तों की हैसियत देखकर उनसे बर्ताव करते हैं। वीवीआईपी विदेशियों और आम लोगों से पेश आने का उनका तरीका और उनके लिए पूजा भी अलग-अलग होती है। इस तरह का पूजा विधि में बदलाव पहली बार लाया गया है।

Sunday, 29 October 2017

सिकुड़ता आईएस ः राजधानी रक्का भी आजाद हुआ

दुनियाभर में आतंक का सबब बन चुका इस्लामिक स्टेट सिकुड़ता जा रहा है। सीरिया और इराक से संगठन के सरगनाओं को खदेड़ा जा चुका है, जिसके बाद वह नई जमीन तलाशने में जुट गया है। अमेरिकी समर्थक लड़ाकों ने घोषणा की है कि सीरिया के रक्का को आजाद करा लिया गया है। रक्का आईएस का गढ़ व मुख्यालय माना जाता था। आतंकी संगठन ने पिछले तीन साल से यहां अपना कब्जा जमाया हुआ था। सीरियाई डेमोक्रेटिक फोर्स के प्रवक्ता तालल सीलो ने इसे ऐतिहासिक उपलब्धि बताया है। एसडीएफ कुर्द और अरब लड़ाकों का गठबंधन है। इस युद्ध में कुर्द महिलाएं फ्रंट पर आकर आईएस आतंकियों से मोर्चा ले रही थीं। रक्का की सड़कों पर सेना के जवान और आम लोगों ने आईएस से छुटकारा पाने पर जश्न मनाया। आईएस ने रक्का को अपनी राजधानी घोषित कर रखा था। चार साल से उसका रक्का पर कब्जा था। इसके अलावा देइर रज-जोट शहर में आईएस का कब्जा अभी भी है। यह मौसुल और रक्का को जोड़ता है। यहां पर रूस लगातार हमले कर रहा है। पर अभी भी आईएस के पास सीरिया के तीन सबसे बड़े ऑयल फील्डöओमर, तानाक और अल तइम हैं। इनमें 13,500 बैरल प्रतिदिन तेल निकालने की क्षमता है। मायादिन शहर आईएस का प्रशासनिक केंद्र है। फरात नदी के किनारे बसे शहरों में अभी भी आईएस का कब्जा है। यह सामरिक तौर पर अहम है। यहीं से वो सीरिया और इराक में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देता है। वैसे बता दें कि आईएस का दायरा एक लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र से सिमटकर 20 हजार वर्ग किलोमीटर रह गया है। इन ढाई सालों में रेवन्यू प्रति माह 527 करोड़ रुपए से घटकर 100 करोड़ रह गया है। 2015 में आईएस का सीरिया और इराक की 126 जगहों पर कब्जा था। इनमें से 86 इलाकों को मुक्त करा लिया गया है। आईएस के हाथों से रक्का, मौसुल, फलूजा, रामादी, कोबानी, तिकरित, अल अधर जैसे 10 बड़े शहरों को भी मुक्त करा लिया गया है। खबर है कि आईएस अब लीबिया को अपना अस्थायी गढ़ बनाने की तैयारी में है। सितम्बर माह में लीबिया के पड़ोसी देश ट्यूनीशिया और मिस्र में आईएस के चार सैल का भंडाफोड़ किया गया था। क्लेरियन प्रोजेक्ट के विशेषज्ञ रैन मेयर का कहना है कि यह कहना मुश्किल है कि आईएस का अगला ठिकाना कहां होगा? मगर हम अंदाजा लगा सकते हैं कि सीरिया और इराक से भगाए जाने के बाद वे लीबिया की तरफ जा सकते हैं। फिलीपींस, मलेशिया, यमन और पाकिस्तान व अफगानिस्तान में भी आईएस की पहुंच बन चुकी है। पर चिन्ता का विषय यह है कि आईएस के सिकुड़ने के बावजूद दुनियाभर में इनसे जुड़े संगठन आतंकी हमले करने में कामयाब हो रहे हैं। बगदादी के मरने की कई बार खबरें आई हैं पर वह गलत साबित हुई हैं। बगदादी आज भी जिन्दा है।

-अनिल नरेन्द्र

बॉलीवुड में अब सितारे नहीं, कहानी और पटकथा चलेगी

हमारे जीवन में पैसे के मूल्य व महत्व को लेकर पिछले 60 सालों में क्या-क्या परिवर्तन आए हैं इसका हमें अपनी प्रदर्शित हिन्दी फिल्मों से थोड़ा-सा पता चलता है। आजादी के बाद बॉलीवुड में कई परिवर्तन हुए हैं। दर्शकों की पसंद बदली है, फिल्मों का कंटेंट बदला है। अगर हम 50 60 के दशकों पर गौर करें तो नायक गरीबी से पैदा होता या गरीबी उस पर थोप दी जाती और उसके हीरो होने का सबूत यह होता कि वह अकसर सिर्फ इतना कमाता कि जिन्दा रह सके और ऐसा करने में वह हमेशा ईमानदार रहता। फिल्म की पृष्ठभूमि ग्रामीण हो या शहरी, यही बात लागू होती थी। पैसा सिर्फ विलेन या खलनायक के पास होता था, जो रईस बने रहने व शोषण करने के लिए हर हथकंडा अपनाता था। फिल्म के कंटेंट पर, कहानी पर ज्यादा ध्यान रहता था बनिस्पत उसकी बॉक्स ऑफिस पर। पर आज के युग में सब बदल रहा है। कहानी, क्रिप्ट पर ध्यान कम है, स्टारों पर पैसों की कमाई पर ज्यादा है। आज फिल्म उद्योग करोड़ों रुपए का धंधा बन गया है। पर अगर हम इस वित्तवर्ष की पहली छमाही बॉलीवुड के लिए बॉक्स ऑफिस के लिहाज से नजर डालें तो पाएंगे कि इसमें काफी सुस्ती है। इस दौरान केवल सात फिल्में ही हिट्स की श्रेणी में दाखिल हो पाईं, जबकि करीब 70 हिन्दी फिल्में एक अप्रैल से 30 सितम्बर के दौरान रिलीज हुईं। इनमें ए और बी दोनों कैटेगरी की फिल्में शामिल हैं। इससे भी अहम बात यह है कि खान (सलमान और शाहरुख) दोनों ही सिनेमा हॉल्स तक दर्शकों को नहीं ला पाए। सलमान की ट्यूबलाइट और शाहरुख की जब हैरी मेट सेजल को दर्शकों से ठंडा रिस्पांस मिला। जिन फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया उनकी कहानी, क्रिप्ट जबरदस्त थी। केवल टॉयलेट ः एक प्रेम कथा और जुड़वा-2 में ही अक्षय कुमार और वरुण धवन जैसे बड़े कलाकार थे। अन्य हिट फिल्मों में हिन्दी मीडियम, शुभ मंगल सावधान, बरेली की बर्फी, सचिन ः अ बिलियन ड्रीम्स, न्यूटन और लिपस्टिक अंडर माय बुर्का में बड़े सितारे नहीं थे। धर्मा प्रॉडक्शन के सीओ अपूर्व मेहता ने कहाöफिल्म इंडस्ट्री के लिए 2017 एक ऐतिहासिक साल रहा है। इसने साबित कर दिया कि केवल स्टार पॉवर ही किसी फिल्म की सफलता की गारंटी नहीं है। हमने देखा है कि आडियंस अलग-अलग तरह की फिल्मों को आज स्वीकार कर रही है, सीधे तौर पर कंटेंट पूरी तरह से बॉक्स ऑफिस का बादशाह बनकर उभरा है। पिछले कुछ समय से हिन्दी फिल्मों की प्रॉड्क्शन व टेक्निकल स्किल पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। बाहुबली में हमने जो टेक्निकल इफैक्ट्स देखे वह किसी भी हॉलीवुड पिक्चर से बराबरी करते हैं। फिल्म का साइज और स्केल अब अहमियत नहीं रखते। जब तक हमारे पास अच्छी कहानी नहीं होगी, जिसे अच्छे से कहा जाए, तब तक दर्शक किसी फिल्म को तवज्जो नहीं देंगे। दर्शकों ने न केवल खान को खारिज किया, बल्कि उन्होंने ए-लिस्टर्स की दूसरी फिल्मों को भी बुरी तरह नकार दिया। इनमें अमिताभ बच्चन की सरकार-3, सुशांत सिंह की राब्ता, सिद्धार्थ मल्होत्रा की ए जेंटलमैन और सोनाक्षी सिन्हा की नूर शामिल हैं। दर्शक सितारों की बजाय अच्छे कंटेंट को अब पसंद करते हैं। लोग या तो जबरदस्त पटकथा वाली फिल्म चाहते हैं या फिर बेहतरी विजुअल इफैक्ट्स को पसंद करते हैं। फिल्मों में म्यूजिक महत्वपूर्ण है पर अच्छा म्यूजिक भी फिल्म की सफलता की गारंटी नहीं देती। इस साल की पहली छमाही में फ्लॉप होने वाली अन्य फिल्मों में बेगम जान, मेरी प्यारी बिन्दु, मॉश, जग्गा जासूस, पोस्टर ब्वॉय, सिमरन, डैडी, लखनऊ सेंट्रल, भूमि, हसीना दारकर, बादशाहो, मुन्ना माइकल और हॉफ गर्लफ्रेंड प्रमुख हैं। फिल्म वाले देश की राजनीति व राजनीतिक मुद्दों पर कड़ी नजर रखते हैं। खासकर दक्षिण भारत में। वह जनता को प्रभावित करने वाले विवादास्पद मुद्दों को भी दर्शाने से कतराते नहीं। हाल ही में दक्षिण भारत के फिल्म अभिनेता विजय की फिल्म पर्सल इस साल की सबसे बड़ी तमिल रिलीज मानी जा रही है। फिल्म ने तमाम विवादों के बावजूद बॉक्स ऑफिस पर पहले तीन दिनों में ही करीब 100 करोड़ रुपए कमा लिए। खास बात यह है कि विजय की चार फिल्में सौ करोड़ क्लब में शामिल हो चुकी हैं। यही नहीं, तमिलनाडु में यह फिल्म सुपर स्टार रजनीकांत की कव्वाली के रिकार्ड को पार कर चुकी है। वहीं फिल्म में जीएसटी से जुड़ा सीन विवादों में है। इसमें हीरो विजय कह रहे हैं ः सिंगापुर में सात प्रतिशत जीएसटी है, फिर भी वहां मुफ्त मेडिकल सुविधाएं हैं। भाजपा के लोगों को यह डायलॉग गवारा नहीं। भाजपा नेता इस दृश्य को हटाने की मांग कर रहे हैं। पर सवाल यह है कि जब सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म को क्लियरेंस दे दी है तो अब आंदोलन का मतलब क्या? कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, उनके वरिष्ठ सहयोगी पी. चिदम्बरम, द्रमुक के कार्यकारी अध्यक्ष एमके स्टालिन, जाने-माने अभिनेता कमल हासन, तमिल फिल्म प्रोड्यूसर्स परिषद और तमिल सिनेमा इंडस्ट्री के प्रतिनिधियों ने हालांकि इस मुद्दे पर फिल्म से जुड़े लोगों का समर्थन किया है। यह अच्छी बात है कि दर्शक अब सितारों से ज्यादा फिल्म की कहानी, पटकथा इत्यादि को पसंद करने लगे हैं। इससे हमारी फिल्मों का स्तर बढ़ेगा।

Saturday, 28 October 2017

सवाल सिनेमाघरों में राष्ट्रगान पर खड़े होने का

सिनेमा हॉलों में राष्ट्रगान बजाए जाने व खड़ा होने के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट के रुख में बदलाव एक तरह से इस बात का सबूत है कि किसी लोकतांत्रिक देश में जिम्मेदार संस्थाएं भी अपनी गलती को सुधार सकती हैं। अभी मात्र 11 माह पूर्व यानि 30 नवम्बर 2016 को दिए अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पूरे देश के सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाया जाए और इस दौरान वहां मौजूद सभी लोगों को राष्ट्रगान के सम्मान में खड़ा होना अनिवार्य होगा। इसी से जुड़ते एक मामले पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस खानविलकर और जस्टिस चन्द्रचूड़ की खंडपीठ ने केंद्र सरकार की इस अपील को ठुकरा दिया कि उसे अपने पिछले फैसले में कोई फेरबदल नहीं करना चाहिए। अदालत ने साफ कर दिया कि राष्ट्रीय प्रतीकों से जुड़े कानून में कोई भी फेरबदल करने की जवाबदेही सरकार पर है और उसे अदालत के अंतरिम फैसले से प्रभावित हुए बगैर अपना यह दायित्व निभाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि अगर कोई व्यक्ति राष्ट्रगान के लिए खड़ा नहीं होता है तो ऐसा नहीं माना जा सकता कि वह कम देशभक्त है। समाज को नैतिक पहरेदारी की आवश्यकता नहीं है, जैसी टिप्पणी करते हुए खंडपीठ ने कहा कि अगली बार सरकार चाहेगी कि लोग सिनेमाघरों में टी-शर्ट और शॉर्ट्स में नहीं आएं क्योंकि इसमें राष्ट्रगान का अपमान होगा। पीठ ने कहा कि वह सरकार को अपने कंधे पर रखकर बंदूक चलाने की अनुमति नहीं देगी। सुप्रीम कोर्ट का यह ताजा विचार अपने पहले के फैसले से ज्यादा बुद्धिमतापूर्ण और विवेकशील है। दरअसल सिनेमाघर मनोरंजन स्थल होते हैं और यहां लोग किसी से गंभीर संवाद करने नहीं आते हैं। यहां आने वाले सिर्फ मौज-मस्ती, आनंद लेने और समय बिताने के लिए अपने मनोरंजन और फिल्म का मजा उठाने आते हैं। इसलिए ऐसे हल्के-फुल्के स्थलों पर राष्ट्रगान बजाने और उसके सम्मान में दर्शकों को खड़ा करने के लिए किसी भी प्रकार की कानूनी बाध्यता राष्ट्रगान में निहित गंभीरता को प्रभावित करने के समान है। वैसे भी इस बात को देखने वाला कौन है, क्या मशीनरी है कि राष्ट्रगान के दौरान हॉल में मौजूद सभी दर्शक खड़े हो रहे हैं? सभ्य समाज राज्य को उसके अधिकारों को सीमित करने का अधिकार देता है। अलबत्ता राज्य को इतना विवेकशील तो होना ही पड़ेगा कि वह इस बात को देखे कि मनुष्य की स्वतंत्रता के अधिकार को सीमित करने का औचित्य क्या है? अदालत ने अब गेंद केंद्र सरकार के पाले में डाल दी है। देखना होगा कि सरकार अब इस मामले में आगे क्या करती है।

-अनिल नरेन्द्र

दांव पर गुजराती अस्मिता व गुजरात मॉडल

हिमाचल प्रदेश में चुनाव की घोषणा के 13 दिन बाद बुधवार को गुजरात विधानसभा चुनावों की तारीखें भी घोषित हो गई। इस बार भी दो चरणों में चुनाव होगा। नौ दिसम्बर को 89 सीटों पर और 14 दिसम्बर को बाकी 93 सीटों पर वोटिंग होगी। नतीजे हिमाचल के साथ 18 दिसम्बर को ही घोषित होंगे। देश में जीएसटी लागू होने के बाद यह पहला चुनाव होगा। विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि गुजरात में चुनाव तिथियों की घोषणा देर से इसलिए की गई ताकि भाजपा को फायदा पहुंचाया जा सके। हालांकि चुनाव आयोग ने हिमाचल के साथ गुजरात में मतदान देर से कराने की सफाई दी है। गुजरात विधानसभा का चुनावी बिगुल बजने के साथ ही सत्तारूढ़ भाजपा, सियासत की सबसे मजबूत पीएम मोदी-भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी और विपक्ष खासकर कांग्रेस की अग्निपरीक्षा का दौर शुरू हो गया है। चुनाव नतीजा न सिर्फ आगामी लोकसभा चुनाव को तय करेगा, बल्कि देश की भावी राजनीति की पटकथा लिखने की शुरुआत भी करेगा। चूंकि सवाल सत्ताधारी भाजपा और विपक्ष दोनों के लिए करो या मरो का है, इसलिए इस चुनाव के लिए दोनों ही पक्षों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद भाजपा ने 21 विधानसभा चुनाव लड़े हैं। इनमें से भाजपा को 12 जगहों पर जीत मिली है। सफलता का यह आंकड़ा किसी को भी सुकून दे सकता है। हालांकि एक तरह से कहें तो दिसम्बर में होने वाले गुजरात चुनाव भाजपा ही नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी के लिए 2014 के बाद से सबसे अहम चुनाव हैं। गुजरात में भाजपा जब उतरेगी तब 2014 के बाद यह ऐसा पहला राज्य होगा जहां पार्टी की बहुमत की सरकार चल रही है। री-इलैक्शन में जीत की कोशिश में जुटी भाजपा को यहां सहयोगियों का साथ भी नहीं है। 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद भाजपा आंध्रप्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, सिक्किम, तेलंगाना, जम्मू-कश्मीर, असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, गोवा, मणिपुर, पंजाब, झारखंड, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव लड़ चुकी है। मोदी और शाह के शीर्ष पर रहने के दौरान भाजपा ने 21 विधानसभा चुनावों में से 12 में जीत दर्ज की है। इन 21 में से 14 राज्यों में कांग्रेस या कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार थी, लेकिन री-इलैक्शन में इनके पास केवल दो राज्योंöअरुणाचल प्रदेश और पुडुचेरी में ही सत्ता बची है। दिसम्बर में होने जा रहे गुजरात विधानसभा चुनावों का असर देशव्यापी होगा। भाजपा जहां लोकसभा चुनाव के समय से ही मोदी के चेहरे के साथ गुजरात की अस्मिता के सवाल पर चुनाव मैदान में है वहीं मुख्य विपक्षी कांग्रेस सूबे में करीब ढाई दशक से काबिज भाजपा के खिलाफ पहली बार जातिगत समीकरणों को अपने पक्ष में करने में जुटी है। राज्य में चुनाव से ठीक पहले कद्दावर नेता शंकर सिंह वाघेला को खो चुकी कांग्रेस हालिया तीन प्रमुख आंदोलनों के कारण चर्चा में आए युवा चेहरों को साधने में जुटी है। इस क्रम में पार्टी को ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर को साधने में मदद मिली तो पार्टी नेता (दलित) जिग्नेश और पाटीदार नेता हार्दिक पटेल को साधने की ओर बढ़ रही है। कांग्रेस को पता है कि गुजरात की हार न सिर्फ विपक्ष की भावी संभावनाओं पर पानी फेरेगी, बल्कि जल्द ही पार्टी की कमान संभालने जा रहे उपाध्यक्ष राहुल गांधी के भविष्य पर भी प्रश्नचिन्ह लगा देगी। कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं का अंदरखाते मानना है कि वह इस चुनाव में भाजपा को सत्ता से बेदखल शायद न कर सके, लेकिन सीटों की संख्या बढ़ी तो इसे राहुल के नेतृत्व में पार्टी की मजबूती के संकेत के रूप में लिया जाएगा। राज्यसभा चुनाव में सोनिया के करीबी अहमद पटेल की जीत से पार्टी का मनोबल बढ़ा है। अल्पेश ठाकोर के साथ आने से हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी के जुड़ने की संभावना से समीकरण बदल रहा है। गुजरात के प्रभारी व पार्टी महासचिव अशोक गहलोत ने पार्टी हाई कमान द्वारा राजस्थान से बाहर दी गई जिम्मेदारी को निभाने में पूरी ताकत लगा रखी है। यह चुनाव तय करेगा कि पीएम मोदी की ताकत और बढ़ेगी या यहां से घटेगी। इस चुनाव में भाजपा का गुजरात मॉडल भी दांव पर है। कुल मिलाकर घमासान होगा, देखें किसका पलड़ा भारी होता है? अगर सर्वेक्षणों की बात करें तो वह भाजपा को जिताए बैठे हैं?

Friday, 27 October 2017

एक बार फिर आबे का दांव सीधा पड़ा

जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे अपने साहसिक फैसलों के लिए जाने जाते हैं और मध्यावधि चुनाव कराने का उनका साहसी फैसला कितना सही था यह चुनावी नतीजों से पता चल रहा है, जिसमें उनकी अगुआई वाले गठबंधन को दो-तिहाई बहुमत मिला है। रविवार को हुए मध्यावधि चुनाव के परिणाम बताते हैं कि आबे का दांव सीधा बैठा। इसी के साथ शिंजो आबे के सबसे ज्यादा समय तक प्रधानमंत्री रहने की संभावना बनी है। जापान के आम चुनाव के नतीजे अनुमान के मुताबिक बेशक आए हैं पर इन नतीजों को सिर्फ आबे की लोकप्रियता और उनकी पार्टी के प्रभाव का प्रमाण मानना सही नहीं होगा। आबे की आसान और जोरदार जीत के पीछे सबसे बड़ी वजह रही विपक्ष की तरफ से कोई चुनौती न होना। विपक्ष के नाम पर दो नई पार्टियां थीं जो मुख्य विपक्ष यानि डेमोक्रेटिक पार्टी के विघटन से हाल ही में वजूद में आईं। इन दोनों में सत्तारूढ़ पार्टी को गंभीर चुनौती न दे सकने का न आत्मविश्वास था, न तैयारी थी बल्कि दोनों में होड़ लगी थी किसको ज्यादा सीटें मिलें। जीत को लेकर कोई अनिश्चतता न होने के बावजूद इस चुनाव को काफी उत्सुकता से देखा जा रहा था। उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षणों से उत्पन्न खतरों के  बीच हुए इस चुनाव के नतीजों का सिर्फ जापान के लिए ही महत्व नहीं है, बल्कि इससे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में नई रणनीति भी देखने को मिल सकती है। शिंजो आबे ने इससे पहले 2014 में भी निचले सदन का कार्यकाल पूरा होने से पहले चुनाव कराया था और उसमें भी उन्हें सफलता मिली थी, लेकिन इस बार परिस्थितियां बिल्कुल अलग थीं। उत्तर कोरिया ने पिछले महीने दो मिसाइलें दागी थीं, जोकि जापानी द्वीप होक्काइदो के ऊपर से होकर समुद्र में जा गिरी थीं। यही नहीं, उत्तर कोरिया ने जापान को समुद्र में डुबा देने तक की भी धमकी दे रखी है। दरअसल जापान अमेरिका का सहयोगी है, इस नाते उत्तर कोरिया का तानाशाह, सिरफिरा किम जोंग उसे अपना शत्रु मानता है। जापान और उत्तर कोरिया के बीच न तो आर्थिक संबंध हैं और न ही राजनयिक। यूं तो जापान की सेना दुनिया की अत्याधुनिक सामरिक साधनों से लैस सेनाओं में गिनी जाती है, पर उपर्युक्त अनुच्छेद यह इजाजत नहीं देता कि जापानी सेना बाहर जाकर लड़े। आबे और एलडीपी का मानना है कि दूसरे विश्वयुद्ध में उठाए गए नुकसान के बाद किया गया यह प्रावधान अब प्रासंगिक नहीं रह गया है, इसलिए इसमें बदलाव की जरूरत है। लेकिन क्या आबे अब यह कर पाएंगे? संविधान संशोधनों के लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की शर्त पूरी करनी होगी पर क्या वह विपक्ष को इसके लिए तैयार कर पाएंगे?

-अनिल नरेन्द्र

भारतीय वायुसेना का सबसे बड़ा टचडाउन

लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे पर अब तक के सबसे बड़े परिचालन अभ्यास में भारतीय वायुसेना ने मंगलवार को एक साथ 16 लड़ाकू विमान उतारकर दुनिया को अपनी ताकत दिखाई। सबसे ताकतवर लड़ाकू विमानों में शामिल जगुआर, सुखोई और मिराज फाइटर्स ने जहां टचडाउन किया, वहीं पहली बार 15 गरूड़ कमांडो को लेकर 35 हजार किलो वजनी हरक्यूलिस सी-130जे ग्लोबमास्टर ने भी सफल लैंडिंग की। तीन घंटे उन्नाव के बागरमऊ में लड़ाकू विमानों का रोमांच देख लोग रोमांचित हो उठे। एक के बाद एक 17 युद्धक विमानों का एक साथ लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे पर उतरना हमें एक साथ कई संदेश देता है। यह प्रदर्शन हमें बताता है भारतीय वायुसेना की तैयारियों का, उस सड़क का, जिस पर ध्वनि की गति से तेज चलने वाले ये बमवर्षक उतरे। बेशक यह पहली बार नहीं था जब वायुसेना के विमान एक्सप्रेस-वे पर उतरे पर निश्चित रूप से यह हमारे देश के इंफ्रास्ट्रक्चर के बारे में बहुत कुछ बताता है। इस तरह की कवायद हमें न सिर्फ सेना की तैयारियों को एक नया विस्तार देती है, बल्कि सेना में आम नागरिकों के भरोसे को भी कई तरह से बढ़ाती है। एयर ट्रैफिक पर नजर रखने के लिए अस्थायी एयर ट्रैफिक कंट्रोल रूम बनाया गया था। ऑपरेशनल एक्सरसाइज का संयोजन बीकेटी एयरफोर्स स्टेशन के ग्रुप कैप्टन जे. सुआरस ने किया जबकि मध्य एयर कमान मुख्यालय के सीनियर एयर स्टाफ एयर मार्शल एएस बुटोला लैंडिंग-ट्रैफिक के अवलोकन के लिए पहुंचे थे। आपातकाल स्थिति में एयरबेस की जगह एक्सप्रेस-वे व हाइवे का प्रयोग किया जा सके यह था मकसद इस प्रदर्शन का। जंग के दौरान सबसे पहले एयरबेस की रनवे और एयरपोर्ट पर ही सबसे पहले हवाई हमले करके तबाह करने का दुश्मन का इरादा होता है ताकि फाइटर प्लेन वहां से उड़ान न भर सकें। सबसे पहले द्वितीय महायुद्ध में जर्मनी में हिटलर ने ऐसी सड़कें बनाई थीं जिन्हें ऑटोबॉन के नाम से जाना जाता है जहां आपातकाल में लडाकू विमान उड़ान भर सकें और लैंडिंग कर सकें। मंगलवार को जो युद्धक विमान एक्सप्रेस-वे पर उतरे उनमें मिराज, सुखोई और जगुआर जैसे बमवर्षक तो थे ही, साथ ही सुपर हरक्यूलिस जैसा मालवाहक सैनिक विमान भी शामिल था। हरक्यूलिस की खूबी यह है कि जरूरत पड़ने पर इससे 200 कमांडो को कहीं भी पहुंचाया जा सकता है। यहां तक कि उन्हें पैराशूट के जरिये भी उतारा जा सकता है। आने वाले समय में वायुसेना इसी तरह की सड़कों पर झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों में इसी प्रकार की एक्सरसाइज कर सकती है। भारतीय वायुसेना को बधाई।

Thursday, 26 October 2017

क्या नवाज शरीफ का राजनीतिक भविष्य खतरे में है?

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने 67 वर्षीय नवाज शरीफ को बेईमानी के लिए अयोग्य करार दिया था। न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि   उनके एवं उनके बच्चों के खिलाफ पनामा पेपर्स घोटाला मामले में भ्रष्टाचार मामले में केस दर्ज किए जाएं और उन पर आरोप तय किए जाएं। नतीजन नवाज शरीफ को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इस मामले में मानना पड़ेगा कि पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट अन्य देशों में आगे रहा। पनामा घोटाले में तो बहुत से नामी-गिरामी व्यक्तियों का नाम आया है पर कार्रवाई सबसे पहले पाकिस्तान में हुई है। चाहे इनके पीछे कई शक्तियां लगी हों पर दुनिया को यह तो पाक ने दिखा ही दिया कि उनके देश में ज्यूडिशरी स्वतंत्र और ताकतवर है। शीर्ष अदालत द्वारा 28 जुलाई को पनामा पेपर्स कांड में शरीफ को प्रधानमंत्री पद से अयोग्य करार दिया था। तीन दिन पहले पाकिस्तान की भ्रष्टाचार निरोधक एक अदालत ने अपदस्थ प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर भ्रष्टाचार के तीसरे मामले में आरोप तय किए। यह मामला फ्लैगशिप इंवेस्टमेंट्स और दूसरी विदेशी कंपनियों से जुड़ा हुआ है। यहां की जवाबदेही अदालत ने शरीफ की अनुपस्थिति में उन पर आय से ज्यादा संपत्ति रखने के मामले में आरोप तय किए और उनके अधिवक्ता जाफिर खान को आरोप पढ़कर सुनाया। यह मामला, राष्ट्रीय जवाबदेही अदालत द्वारा गठित 8 सितंबर के शरीफ के खिलाफ दर्ज कराए गए धनशोधन और भ्रष्टाचार के तीन मामलों में से एक है। न्यायाधीश मुहम्मद बशीर द्वारा पढ़े गए आरोपों पर खान ने शरीफ की ओर से दलील दी कि शरीफ निर्दोष हैं। शरीफ अपनी बीमार पत्नी कुलसुम के साथ लंदन में हैं। कुलसुम नवाज गले के कैंसर से पीड़ित है और उनकी अब तक तीन सर्जरी हो चुकी हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण नवाज शरीफ को रिकार्ड तीसरी बार अपना पद छोड़ना पड़ा था। उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद से हटने के लिए भी विवश किया गया, हालांकि उन्होंने पार्टी की कमान अपने हाथ में रखी और अपने वफादार शाहिद खान अब्बासी को प्रधानमंत्री बना दिया। पांच सदस्यीय निर्वाचन दल के अध्यक्ष जाफर इकबाल ने कहा कि श्री शरीफ पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज की केन्द्राrय कार्यकारी समिति द्वारा निर्विरोध चुने गए हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी प्रमुख के रूप में श्री शरीफ का पुनर्निर्वाचन उन लोगों को गलत ठहराते हुए उन्हें राजनीतिक दायरे में वापस ले आया है, जिसका कहना था कि वह अब प्रासंगिक नहीं रह गए हैं। आने वाले दिन नवाज शरीफ के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण और चुनौती पूर्ण होंगे। अगर उन पर लगे आरोप साबित हो जाते हैं तो उनको सजा भी मिल सकती है और जेल भी जा सकते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

गुजरात में भाजपा अपने तरकश से सारे तीर आजमाने पर मजबूर

 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस तरह से बार-बार गुजरात में तूफानी दौरे कर रहे हैं और ताबड़तोड़ परियोजनाओं का उद्घाटन कर रहे हैं उससे साफ लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी गुजरात विधानसभा चुनाव परिणामों को लेकर चिंतित जरूर है। इससे यह भी जाहिर होता है कि भाजपा अपना गढ़ बचाने के लिए अपने तरकश से सारे तीर चलाने पर उतारू है। गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखें किसी भी समय घोषित हो सकती हैं। कायदे से तो हिमाचल प्रदेश के चुनावों के साथ ही वहां की भी तारीखें घोषित हो जानी चाहिए थीं, पर ऐसा नहीं हुआ। कयास लगाए जा रहे हैं कि निर्वाचन आयोग पर दबाव बना कर सरकार ने गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखें टलवाईं, क्योंकि आचार संहिता लागू हो जाने के बाद परियोजनाओं के उद्घाटन आदि पर विराम लग जाता। गुजरात में पिछले बीस वर्षों से भाजपा सत्ता में है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कांग्रेस को मिल रहे रिसपांस और पाटीदार, दलितों व ओबीसी व मुस्लिम मिलाकर इस बार वहां बदलाव की सुगबुगाहट की झलक दे रहे हैं। स्वाभाविक ही है कि इससे भाजपा की बेचैनी बढ़ी है। भाजपा अभी तक विकासवाद के नारे के साथ गुजरात की सत्ता में काबिज थी पर जिस तरह से पाटीदार, दलित, मुस्लिम व अन्य पिछड़े समुदाय के लोगों ने नाराजगी जाहिर की है उससे लग रहा है कि 2017 का विधानसभा चुनाव विकास की बजाय जातीय समीकरणों पर ज्यादा निर्भर रहेगा। नोटबंदी और जीएसटी भी बड़े मुद्दे हैं। जीएसटी लागू होने के बाद सबसे अधिक विरोध का स्वर सूरत के व्यापारियें की  तरफ से उभरा है इसलिए भाजपा का जनाधार माने जाने वाले व्यापारी वर्ग में भी सेंध लगने की आशंका है। जिस तरह से कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को गुजरात में रिसपांस मिल रहा है उससे लगता है कि गुजरात में पिछड़ी हुई कांग्रेस में फिर से जान आ रही है। राहुल ने लगता है कि अपनी शैली और भाषण का मजमून दोनों बदले हैं। उनका यह जुमला कि जीएसटी का मतलब गब्बर सिंह टैक्स जनता को बहुत पसंद आ रहा है। जिस राहुल गांधी को सबसे कमजोर नेता माना जा रहा था, उनकी रैलियों और भाषणों में लोग दिलचस्पी लेने लगे है। बीजेपी गुजरात मॉडल को दुनियाभर में प्रचारित करती रही हैं लेकिन विपक्षी जिस तरह से गुजरात मॉडल को दरकिनार करने में लगे हुए हैं उससे भाजपा के लिए चुनौती बढ़ती नजर आ रही है। दूसरा कुछ चेहरों के सामने आने से चुनाव के समीकरण और दिलचस्प होने वाले हैं। जहां पाटीदारों पर दांव खेलने की कोशिश होगी वहीं दलित आबादी में भी सेंध लगाने का प्रयास होना स्वाभाविक ही है। असल में पाटीदारों के अलावा गुजरात में दलित आबादी की भी संख्या सात फीसदी के आसपास है, जो चुनाव के दौरान हर पार्टी के लिए महत्व रखेगी। इसके अलावा गुजरात में जिस तरह आरक्षण, शराबबंदी, बेरोजगारी और दलित  उत्पीड़न का मामला जोर पकड़ रहा है, उससे तो यही लगता है कि गुजरात में अभी मौलिक सुविधाओं का अभाव है। उधर मौलिक सुविधाओं को लेकर चुनाव होगा तो निश्चित तौर पर बीजेपी  यहां कटघरे में नजर आएगी, क्योंकि मौलिक सुविधाओं के अलावा गुजरात मॉडल को मुद्दा नहीं बनाया जा सकता है। इस बीच पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, दलित  नेता जिग्नेश मेवाणी और ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर के कांग्रेस से जुड़ने की खबरों से भाजपा की परेशानी बढ़ गई है। अल्पेश ठाकोर ने कांग्रेस से हाथ मिला लिया है। गुजरात में अब तक के चुनावों का समीकरण तो यही बताता है कि जिधर पटेल, दलित और अन्य पिछड़ी जातियों का झुकाव होता है चुनाव में जीत उसी पार्टी की होती है पर दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात चुनाव को अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है। वह इतनी आसानी से तो गुजरात  अपने हाथों से जाने नहीं देंगे। वह मौजूदा माहौल को अपने पक्ष में पलटने में कितने सफल होते हैं यह तो 18 दिसंबर के बाद ही पता चलेगा।

Wednesday, 25 October 2017

किम जोंग ः कभी भी परमाणु युद्ध छिड़ सकता है

एक सिरफिरा तानाशाह आज पूरी दुनिया के लिए खतरा बना हुआ है। मैं बात कर रहा हूं उत्तर कोरिया के पागल तानाशाह किम जोंग की। उत्तर कोरिया ने संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में धमकी दी है कि किसी भी वक्त परमाणु युद्ध छिड़ सकता है। संयुक्त राष्ट्र में उत्तर कोरिया के उप-उच्चायुक्त किम इन जोंग ने यह धमकी संयुक्त राष्ट्र समिति के समक्ष दी। किम जोंग ने यह कहकर कि कोरियाई प्रायद्वीप पर तनाव इतना बढ़ चुका है कि उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच कब परमाणु युद्ध छिड़ जाए, कुछ कहना मुश्किल है। एक नासमझ या सनकपन की हद तक जा चुका इंसान कितना खतरनाक हो सकता है यह किम जोंग की हरकतों से पता चलता है। किम जोंग ने संयुक्त राष्ट्र की निस्त्राrकरण समिति के समक्ष कहा कि उनका देश इकलौता ऐसा देश है जिसके खिलाफ अमेरिका ने परमाणु हमला करने की धमकी दी है। उन्होंने आरोप लगाया कि अमेरिका की सरकार उनके शासन के खिलाफ गुप्त ऑपरेशन चलाने की कोशिश में है। याद रहे कि उत्तर कोरिया अब एक पूर्ण परमाणु सम्पन्न देश बन चुका है। यह अब वह किसी से छिपा नहीं रहा कि उसके पास ऐसे घातक हथियार, परमाणु बम, इंटर-कान्टिनेंटल मिसाइल मौजूद है जिसकी मार अमेरिका तक कर सकता है। उपर वाला न करे अगर कोई परमाणु युद्ध होता है तो उसके घातक नतीजों से पूरा विश्व प्रभावित हो सकता है। उधर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी कम सिरफिरे नहीं हैं। पिछले दिनों डोनाल्ड ट्रंप ने भी उत्तर कोरिया को पूरी तरह तबाह करने की धमकी दे डाली। यही नहीं, ट्रंप ने किम को रॉकेट मैन, मैड मैन और सनकी जैसे विशेषणों से भी नवाजा और कहा था कि अराजक अपराधियों के गिरोह से घिरा रॉकेट मैन अपने और अपने शासन के आत्मघाती मिशन पर निकल चुका है। अमेरिका बार-बार चीन पर दबाव बना रहा है कि वह किम जोंग को नियंत्रण में रखे। अमेरिका का मानना है कि उत्तर कोरिया की परमाणु उन्नति के पीछे चीन का ही योगदान है और चीन ही किम जोंग को उकसा रहा है। चीन ने भी दिखावे के लिए उत्तर कोरिया से शांति बनाए रखने की अपील की है। पर हमें याद रखना चाहिए कि किम जोंग जैसे सनकी तानाशाह किसी से डरा नहीं करते। ऐसे में, नहीं भूलना चाहिए कि कोई ऐसी चूक ही उसे इस कदर न उकसा दे कि हमेशा ट्रिगर पर अंगुली लगाए बैठा यह शख्स कोई ऐसी हरकत न कर बैठे, जो पूरे विश्व को भुगतना पड़े। चिन्ता की बात यह है कि ऐसे पागल तानाशाह को लंबे समय तक उसके सूरत--हाल पर भी नहीं छोड़ा जा सकता। हम उम्मीद करते हैं कि चीन सहित उत्तर कोरिया के नजदीक अन्य देश किम जोंग को समझाने का प्रयास करेंगे कि उसे अमेरिका से टकराने की जिद छोड़नी होगी और अपने देश के विकास पर ध्यान देना होगा।
-अनिल नरेन्द्र


वसुंधरा राजे सरकार का हिटलरी फरमान

सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को अभयदान देने वाला जो अध्यादेश राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार लाई है उसका विरोध होना स्वाभाविक ही है। राजस्थान सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय दंड संहिता में संशोधन किया है, जिसके बाद जज, मजिस्ट्रेट एवं लोक सेवकों के खिलाफ परिवाद पर प्रसंज्ञान, पुलिस जांच या मामले की मीडिया रिपोर्टिंग से पहले सरकार से मंजूरी लेनी होगी। सोमवार को राजस्थान विधानसभा का सत्र शुरू होते ही गृहमंत्री गुलाब चन्द कटारिया ने यह विधेयक सदन में पेश किया। राजस्थान सरकार के इस विधेयक का समर्थन करना मुश्किल है। इसके बाद अब मौजूदा और पूर्व न्यायाधीशों, मजिस्ट्रेटों और सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ पुलिस या न्यायालय में शिकायत करने के लिए सरकार की अनुमति लेनी होगी। ड्यूटी के दौरान यदि सरकारी कर्मचारी या कर्मचारियों के खिलाफ कोई शिकायत की जाती है तो सरकार की अनुमति के बिना प्राथमिकी दर्ज नहीं हो सकती। इसके लिए छह महीने की समयसीमा है। सबसे आश्चर्यजनक तो यह है कि पाबंदी मीडिया पर भी लागू होगी। सरकार की अनुमति के बगैर अगर कोई इस बारे में कुछ प्रकाशित करता है या दिखाता है तो दो साल की सजा का प्रावधान है। इस अध्यादेश जिसे राजस्थान सरकार कानूनी रूप देना चाहती है पर कई सवाल खड़े होते हैं। एक तो यही है कि किसी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत होने पर जांच के लिए छह महीने का समय क्यों मिलना चाहिए? इस दौरान तो आरोपी सरकारी अधिकारी अपने खिलाफ सारे सबूत मिटा डालेंगे। इससे तो भ्रष्ट कर्मचारियों के उलटे हितों की रक्षा ही होगी। चूंकि अगले साल राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में इस तरह का अध्यादेश लागू करने का मकसद भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप देना भी हो सकता है और अपनी छवि पाक-साफ बनाए रखना भी। जब भ्रष्टाचार के मामले सामने नहीं आएंगे तो वसुंधरा सरकार को स्वाभाविक ही उसका चुनावी लाभ मिलेगा। यही नहीं, इस आपराधिक कानून (राजस्थान संशोधन) अध्यादेश 2017 के अनुसार कोई भी मजिस्ट्रेट किसी भी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ जांच का आदेश नहीं देगा जो एक जज या मजिस्ट्रेट या सरकारी कर्मचारी है या था। आखिर ऐसे अध्यादेश/विधेयक का औचित्य क्या है? सरकार का तर्क है कि इससे सरकारी कर्मी निर्भीक होकर अपने दायित्व का पालन कर सकेंगे। मुकदमों के भय से सरकारी अधिकारी-कर्मचारी प्राय निर्णय करने से बचते हैं। किन्तु सरकारी कर्मियों को उनके दायित्व पालन में निर्भीकता के लिए सरकार बनने के करीब चार साल बाद अध्यादेश की आवश्यकता आखिर क्यों पड़ी? कहा जा रहा है कि सरकारी अधिकारियों ने इसकी मांग मुख्यमंत्री के सामने रखी थी। क्या इसका मतलब है कि इन चार सालों में सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों ने अपने दायित्व का पालन ठीक से नहीं किया? ऐसे समय जब देश में यह वातावरण है कि जो सरकारी अधिकारी-कर्मचारी जनता की सेवा के अपने दायित्व का ठीक से पालन नहीं करते, समय पर अपना काम पूरा नहीं करते, साधारण काम के लिए भी कई अधिकारी अनुचित मांग करते हैं, उन्हें दंडित किया जाना चाहिए या उन्हें संरक्षण दिया जाना चाहिए? वसुंधरा राजे सरकार का यह कदम उलटी गंगा बहाने वाला है। पीयूसीएल (पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टाज) इस अध्यादेश के खिलाफ अदालत में जा रही है और एकाधिक विधि विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कानून व विधेयक कानून की कसौटी पर नहीं टिकेगा। प्रेस की स्वतंत्रता का भी सवाल है। राजस्थान सरकार प्रेस को भी अपनी ड्यूटी करने से रोकना चाहती है। एडिटर्स गिल्ड ने भी इसकी कड़ी आलोचना की है। शिकायत लेकर मीडिया के पास जाने का भी कोई लाभ नहीं होगा। यह अध्यादेश किसी मामले में संबंधित अधिकारी-कर्मचारी के नाम, पता, तस्वीर और परिवार की जानकारी के प्रकाशन और प्रचार तक पर रोक लगाता है। इसका उल्लंघन करने वाले को दो साल की सजा हो सकती है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर कोई अखबार किसी सरकारी कर्मी के बारे में कुछ छापता है या टीवी पर प्रसारित करता है तो वह दंड का भागी होगा। इतने व्यापक संरक्षण से तो वे और निरंकुश होंगे वैसे भी यह लोकतांत्रिक प्रणाली के खिलाफ है।

Tuesday, 24 October 2017

शी जिनपिंग के तख्तापलट की साजिश

एक वरिष्ठ चीनी अधिकारी का दावा है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को हटाने की साजिश का पर्दाफाश हुआ है। इस अधिकारी ने दावा किया है कि कम्युनिस्ट पार्टी में ऊंचे ओहदे पर बैठे कुछ सदस्यों ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग के हाथों से सत्ता छीनने की साजिश की थी। भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़ी गई शी जिनपिंग की मुहिम के बाद पार्टी के इन सदस्यों को या तो गिरफ्तार कर लिया गया या जेल में डाल दिया गया। पार्टी के बड़े नेता और चायना सिक्यूरिटी रेगुलेटरी कमीशन के चेयरमैन ल्यू शियू ने यह सनसनीखेज खुलासा पार्टी की 19वीं कांग्रेस की बैठक से इतर चर्चा के दौरान किया। हांगकांग के अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के अनुसार ल्यू ने बताया कि पार्टी के अंदर असंतुष्ट नेताओं ने सत्ता हथियाने के लिए यह साजिश रची थी। उनमें पार्टी की पोलित ब्यूरो स्टैंडिंग कमेटी की सदस्यता के दावेदार सुन झेनसाई और उनकी पत्नी भी शामिल थीं। झेनसाई के खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हुए तत्काल प्रभाव से पार्टी से निलंबित कर दिया गया। झेनसाई के खिलाफ इस कार्रवाई ने चीन के लोगों को बो शिलाई की याद दिला दी। पांच साल पहले जिनपिंग को चुनौती देने वाले शिलाई फिलहाल जेल की सलाखों के पीछे आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। बता दें कि शी जिनपिंग ने 18 अक्तूबर को पार्टी कांग्रेस का उद्घाटन करते हुए अपने साढ़े तीन घंटे के भाषण में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का जिक्र किया था। भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई में अब तक 10 लाख अधिकारियों को सजा दिलवाने के बाद पार्टी और प्रशासन पर जिनपिंग की पकड़ काफी मजबूत हुई है। इसके अलावा चीनी जनता में भी उनकी छवि चमकी है। भ्रष्टाचार के मामलों में अब तक 3453 भगोड़ों को भी गिरफ्तार किया जा चुका है। मामले पर नजर रखने वाले कुछ जानकारों का कहना है कि इस मुहिम का उद्देश्य शी जिनपिंग के प्रतिद्वंद्वियों को रास्ते से हटाना था। लेकिन इस ताजा दावे ने कम्युनिस्ट पार्टी की छवि पर सवाल पैदा कर दिए हैं और पार्टी में सत्ता को लेकर चल रहे संघर्ष को दुनिया के सामने रख दिया है। इस मुहिम के बारे में कई लोगों को लगा कि कई गिरफ्तारियां राजनीति से प्रेरित थीं और जिनपिंग की पूरी ताकत हथियाने की रणनीति का हिस्सा है। इससे पहले शी जिनपिंग ने पार्टी के भीतर सत्ता को लेकर संघर्ष की खबरों से इंकार किया था। गुरुवार को चीन के सिक्यूरिटी कमीशन के प्रमुख ल्यू शियू ने पार्टी के छह वरिष्ठ सदस्यों के नाम जाहिर किए जिन्हें उन्होंने अत्यधिक लालची और बेहद भ्रष्ट कहा और कहा कि इन लोगों ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को खत्म करने की कोशिश की और तख्तापलट करने की साजिश की। ल्यू ने आगे कहा कि शी जिनपिंग ने इन समस्याओं को सुलझा लिया है और पार्टी और देश के लिए एक बड़े खतरे को खत्म करने में कामयाबी हासिल कर ली है। फिलहाल शी जिनपिंग सेफ हैं?

-अनिल नरेन्द्र

आईएमएफ द्वारा आर्थिक सुधारों के तीन सुझाव

भारत की अनुमानित आर्थिक विकास दर घटाने के एक सप्ताह बाद आईएमएफ (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष) ने भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में जो टिप्पणियां की हैं वे उत्साह बढ़ाने के साथ-साथ बेहतरी की दिशा में कदम उठाने के लिए प्रेरित करने वाली भी हैं। आईएमएफ ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है। इस विश्व संगठन की प्रमुख क्रिस्टिना लेगार्ड ने साफ-साफ कहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर है और नोटबंदी तथा जीएसटी जैसे महत्वपूर्ण आर्थिक फैसलों के कारण छोटी अवधि में भले ही विकास दर प्रभावित हुई हो लेकिन मध्यम व दीर्घावधि में इसका लाभ मिलना तय है। गौरतलब है कि इससे पहले आईएमएफ ने खासकर नोटबंदी से अर्थव्यवस्था के प्रभावित होने की बात कहते हुए आर्थिक विकास दर में लगभग एक प्रतिशत की कमी आने की आशंका जाहिर की थी। आईएमएफ ने भारत के लिए त्रिपक्षीय ढांचागत सुधार दृष्टिकोण अपनाने का सुझाव भी दिया है। इसमें को-ऑपरेटिव बैंकिंग क्षेत्र को कमजोर हालत से बाहर निकालना, राजस्व संबंधी कदमों के माध्यम से वित्तीय एकीकरण को जारी रखना और श्रम एवं उत्पाद बाजार की क्षमता को बेहतर करने के लिए सुधार शामिल हैं। आईएमएफ में एशिया प्रशांत विभाग के उपनिदेशक केनेथ कांग ने कहा कि एशिया का परिदृश्य अच्छा है और यह मुश्किल सुधारों के साथ भारत को आगे ले जाने का महत्वपूर्ण अवसर है। भारत के लिहाज से को-ऑपरेटिव और बैंकिंग क्षेत्र के कमजोर हालत से बाहर निकालकर उनकी सेहत सही करना बहुत जरूरी है। लेबर और प्रोडक्ट मार्केट की क्षमता में और सुधार की जरूरत है। राजस्व संबंधी कदमों के जरिये फिस्कल कंसोलिडेशन को जारी रखना भी जरूरी है। कृषि सुधारों को आगे बढ़ाना होगा। उधर औद्योगिक मंडल फिक्की के अध्यक्ष पंकज पटेल ने भारतीय रिजर्व बैंक की नीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि यह उद्योग जगत के अनुकूल नहीं हैं और नीतिगत दरों में कटौती नहीं करके रिजर्व बैंक की आर्थिक वृद्धि में बाधा उत्पन्न कर सकता है। गौरतलब है कि चार अक्तूबर को अपनी मौद्रिक नीति की समीक्षा में रिजर्व बैंक ने नीतिगत ब्याज दरों को छह प्रतिशत के पूर्व स्तर पर बनाए रखा जबकि चालू वित्त वर्ष के लिए उसने देश की आर्थिक वृद्धि के अनुमान को घटाकर 6.7 प्रतिशत कर दिया। पटेल ने कहा कि इस तरह के कदम विकास विरोधी हैं। पत्रकारों के एक समूह से पटेल ने कहा कि रिजर्व बैंक उचित व्यवहार नहीं कर रहा है। महिलाओं के लिए ज्यादा मौके पैदा करने की जरूरत है जिससे अर्थव्यवस्था के मजबूत होने के साथ-साथ सामाजिक विकास भी होगा। चूंकि एशिया में बेहतर आर्थिक विकास की संभावनाएं बनी हुई हैं, ऐसे में ढांचागत सुधारों को लागू कर भारत इसका फायदा उठा सकता है।

Sunday, 22 October 2017

अब सांप के जहर का काला कारोबार

पश्चिम बंगाल की सीमा सशस्त्र बल (एसएसबी) ने कोबरा सांप के सफेद जहर के काले कारोबार के अब बड़े नेटवर्क का खुलासा किया है। पैसे के लिए नए-नए धंधों का पर्दाफाश हो रहा है। एसएसबी की 63वीं बटालियन वारासात ने विशेष सूचना के आधार पर वन विभाग व कोलकाता पुलिस के नार्को सेल की संयुक्त टीम ने तीन लोगों को गिरफ्तार कर उनसे करीब नौ पौंड जहर बरामद किया। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत सौ करोड़ रुपए आंकी गई है। गिरफ्तार अभियुक्तों में नारायण दास (26), दबो ज्योति बोस (43) व बुद्धदेव खन्ना (40) तीनों पश्चिम बंगाल के रहने वाले हैं। एसएसबी के मुताबिक जब्त जहर कोबरा का तरल, क्रिस्टल व पाउडर के रूप में तीन जारों में एकत्रित किया गया था। चिकित्सा के लिए इसका इस्तेमाल होना था। इसे कैंसर के इलाज व मादक दवाओं में इस्तेमाल किया जाता है। बरामद जहर को वन विभाग को सौंप दिया गया है। पकड़े गए तीनों तस्कर एक अंतर्राष्ट्रीय गिरोह के सदस्य हैं। यह गिरोह पड़ोसी देश में सांप के जहर का कारोबार करता है। इस जहर की सिलीगुड़ी कॉरिडोर के रास्ते चीन में तस्करी की जानी थी। इससे पहले भी एसएसबी ने 70 करोड़ रुपए के जहर के साथ दो लोगों को गिरफ्तार किया था। सफेद जहर के इस काले कारोबार के अंतर्राष्ट्रीय गिरोह के तार कई देशों में फैले हुए हैं। एसएसबी ने सिर्फ तीन जार पकड़े हैं, अभी भी 33 जार जहर गायब है। इसकी कीमत 1100 करोड़ रुपए है। पकड़ा गया जहर फ्रांस से तस्करी करके साउथ-ईस्ट एशिया में किसी देश में जहाज के जरिये भेजा जा रहा था। इस जहाज को बीच समुद्र (हाई सी) में बांग्लादेशी लूटेरों ने कोई कीमती सामान समझकर लूट लिया। बांग्लादेश से यह जहर कोलकाता पहुंचा और सिलीगुड़ी कॉरिडोर से चीन पहुंचाने की तैयारी थी। सिलीगुड़ी कॉरिडोर जिसे चिकन नैक भी कहते हैं, यहां पर तीन देशों की सीमाएं मिलती हैं। इसमें नेपाल, भूटान व बांग्लादेश शामिल है। वन विभाग के सूत्रों के अनुसार एक सांप से प्वाइंट दो ग्राम जहर एक महीने में निकाला जा सकता है। बरामद जहर नौ पौंड यानि करीब तीन किलो छह सौ ग्राम है और 33 जार अभी भी गायब हैं। हजारों सांपों से यह जहर निकाला गया होगा। जहरीले सांप की केवल चार प्रजाति भारत में हैं। इसमें कोबरा, किंग कोबरा, करेर व वारपर शामिल हैं। जहरीले सांपों की 216 प्रजाति भारत में पाई जाती हैं। सिलीगुड़ी कॉरिडोर जहर तस्करों के लिए स्वर्ग बन गया है।

-अनिल नरेन्द्र

जब त्रेता युग में राम वन से लौटे होंगे तो अयोध्या में ऐसा ही नजारा होगा

अयोध्या ने बहुत-सी दीपावली देखीं पर इस दीपावली अयोध्या बदली-बदली-सी दिखी। हर तरफ उत्साह था, उमांग थी। हर आंखें इंतजार में डूबी हुई थीं। त्रेता युग में भगवान राम वन से जब लौटे होंगे तो कुछ ऐसा ही नजारा रहा होगा, जिसकी वहां मौजूद आंखें गवाही दे रही होंगी। स्वच्छ-निर्मल, सजी-संवरी अयोध्या बिना बोले ही बहुत कुछ कह रही थी। शायद यह दुनिया को संदेश दे रही थी कि शासन-सत्ता संकल्प ले ले तो आज भी भारत में रामराज्य उतारना असंभव नहीं। कलाकारों और रामभक्तों का जोश देखते ही बनता था। सब राममय हो गए। 14 बरस के वनवास से लौटे भगवान राम का जब सीएम योगी आदित्यनाथ ने राज्याभिषेक किया तो हर आंख से खुशी की अश्रुधाराएं बह निकलीं। दीपोत्सव कार्यक्रम के लिए कई दिन पहले से ही अयोध्या को सजाने-संवारने का काम शुरू हो गया था। मुख्य मार्ग समेत एक-एक गली को चमकाया गया। अयोध्या की दीपावली इस बार सबसे अलग थी। सबसे भव्य रही। सुनहरे रंगों से सजी यह प्राचीन नगरी में कहीं इंद्रधनुषी रंगोली तो कहीं संगीत के स्वर सुने जा सकते थे। कहीं भजन तो कहीं नृत्यों की प्रस्तुतियां। अंधेरे में कंदील हवाओं से लड़ रहे थे। पूरी अयोध्या दीपों से विशेष तौर पर सजाई गई। अयोध्या में पहली बार ऐसा हुआ है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरयू के किनारे राम की पैड़ी पर दो लाख दीप जलाकर विश्व रिकार्ड बना रहे थे और इसे पुराना स्वरूप दे रहे थे। राजनीतिक कार्यक्रमों से अलग उत्तर प्रदेश का आम नागरिक भी कम उत्साहित नहीं था। सैकड़ों की तादाद में लोगों ने रामलला के दर्शन किए। 14 बरस बाद प्रदेश की सत्ता में लौटी भाजपा ने इस बार कलियुग की छोटी दीपावली के दिन को त्रेता युग के संयोग से जोड़कर सियासी संदेश देने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। त्रेता युग की तरह भगवान राम, सीता और लक्ष्मण के 14 बरसों के बाद वनवास से अयोध्या वापस आने वाले दिन को उल्लास, उत्साह व उमंग की परिकल्पना के सहारे संजीव बनाते हुए प्रतीकों के सहारे एजेंडे को धार दी गई। शोभा यात्रा निकालकर, पुष्पक विमान की तरह हेलीकॉप्टर से भगवान राम, सीता और लक्ष्मण को सरयू के तट पर राम कथा पार्क के बगल में लाकर तथा स्वागत करके, त्रेता में वशिष्ठ की तरह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथों अभिषेक कराकर और आकाश से पुष्पवर्षा के प्रसंग को साकार करने के लिए हेलीकॉप्टर का प्रयोग करके भाजपा सरकार यह संदेश भी देने में सफल हो गई कि वह न तो राम को भूली है और न ही अयोध्या को। आयोजन से लेकर भाषण तक में यह साफ हो गया कि भाजपा ने अतीत से बहुत कुछ सीखा है। उसे पता है कि सत्ता में आने के बाद अयोध्या को भूलना उस पर कितना भारी पड़ चुका है, इसलिए दीपावली के बहाने भाजपा ने यह जताने की कोशिश की गई कि इस बार वह अपने सरोकारों की अनदेखी नहीं करने वाली। अयोध्या, मथुरा व काशी तथा राम, शिव व कृष्ण उसकी ताकत हैं। इसलिए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने यह कहा कि सिर्फ अयोध्या ही नहीं बल्कि हिन्दुत्व के सरोकारों से जुड़े सभी स्थानों का अयोध्या जैसा ही विकास होगा। शायद इसलिए उन्होंने विंध्याचल, शाकम्भरी देवी, देवी पाटन, नौमिषारण्य आदि को दिव्यता व भव्यता देने की बात की। अयोध्या यात्रा में योगी श्रीराम जन्मभूमि दर्शन को नहीं गए। उन्होंने मंदिर की भी बात नहीं की। पर उन्होंने यह कहा कि आपकी भावना का सम्मान होगा। संकेतों में न सिर्फ अपना बल्कि भाजपा की केंद्र व राज्य सरकार का संकल्प सार्वजनिक कर दिया। कुल मिलाकर इस पूरे आयोजन के सहारे भाजपा ने न सिर्फ निकट भविष्य का एजेंडा सेट कर दिया है बल्कि लोकसभा चुनाव के लिए भी आक्रामक रुख के साथ मैदान में उतरने का अपना इरादा जाहिर कर दिया है। अगले लोकसभा चुनाव में हिन्दुत्व फिर से बड़ा मुद्दा होगा।

Saturday, 21 October 2017

वन-वूमैन विकीलीक्स डैफनी की कार बम से हत्या

जब सिस्टम फेल होता है तो अंत तक लड़ने वाला व्यक्ति पत्रकार ही होता है और सबसे पहले मारा जाने वाली भी पत्रकार होता है। माल्टा में पनामा पेपर्स से मशहूर हुए सनसनीखेज दस्तावेजों को सार्वजनिक करने वाली पत्रकार ब्लॉगर डैफनी कैरुआना गैलीजिया की एक कार बम धमाके में हत्या कर दी गई। द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार डैफनी की सोमवार को उस वक्त मौत हो गई जब उनकी कार प्यूजो 108 को एक शक्तिशाली विस्फोट से उड़ा दिया गया। डैफनी कैरुआना को हाल ही में अमेरिकी समाचार संस्था पॉलिटिको द्वारा वन-वूमैन विकिलीक्स के रूप में वर्णित किया गया था। कहा जाता है कि वह एक ऐसी ब्लॉगर थीं जिनकी पोस्ट को देश में सभी समाचारों को मिलाकर जितनी प्रसार संख्या बनती है, उससे भी अधिक लोगों द्वारा पढ़ा जाता था। उनके नए खुलासे ने माल्टा के प्रधानमंत्री जोसेफ मस्कट और उनके दो सबसे करीबी सहयोगियों पर आरोप लगाए थे। खुलासे में तीन व्यक्तियों को बाहरी कंपनियों से जोड़ा गया और कहा गया कि वह माल्टा के पासपोर्ट को बेच रहे थे और उनको अजरबैजान सरकार की ओर से भुगतान किया जा रहा था। डैफनी किसी मीडिया संस्थान से नहीं जुड़ी हुई थीं। सिर्फ `रनिंग कमेंट्री' नाम से ब्लॉग लिखती थीं। माल्टा की आबादी 4.5 लाख है। चार लाख लोग डैफनी के ब्लॉग पढ़ते थे। दो बजकर 35 मिनट पर डैफनी ने अंतिम ब्लॉग शे ब्री के बारे में पोस्ट किया और कार लेकर निकलीं। इसके 35 मिनट बाद ही कार में विस्फोट हो गया। माल्टा के प्रधानमंत्री जोसेफ ने बयान जारी कर कहा कि हत्याकांड में उनका हाथ नहीं है। मस्कट ने कहाöये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है। डैफनी राजनीतिक और व्यक्तिगत तौर पर मेरी आलोचकों में से एक थीं। पर इन बातों का हत्या से कोई संबंध नहीं। डैफनी के बेटे मैथ्यू भी पत्रकार हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखाöमेरी मां कानून और इसे तोड़ने वालों के बीच हमेशा खड़ी रहीं। इसलिए मारी गईं। पीएम जोसेफ मस्कट की शे ब्री और पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। वह डैफनी की हत्या के जिम्मेदार हैं। वैसे पुलिस ने इस हत्या की जांच शुरू कर दी है। हालांकि अभी तक किसी ने इस हत्या की जिम्मेदारी नहीं ली है। बता दें कि कुछ समय पहले दुनिया में सबसे अधिक गोपनीयता से काम करने वाली पनामा की कंपनी मौसाक फोंसेका के लाखों कागजात लीक हो गए थे। पनामा पेपर्स से 52 देशों के भ्रष्टाचार उजागर हुए थे। पाकिस्तान में तो नवाज शरीफ और उनके परिवार पर पनामा पेपर्स को लेकर कार्रवाई भी शुरू हो गई है। पनामा पेपर्स में रूस के राष्ट्रपति पुतिन के एक करीबी सहयोगी के संदिग्ध मनी लांड्रिंग गिरोह का भी पता चला था। इससे जुड़े ज्यादातर मामले धन के मालिकों की पहचान छिपाने, धन के स्रोत छिपाने, काले धन को सफेद करने और कर चोरी के हैं। एक और ईमानदार पत्रकार शहीद हो गया है।

-अनिल नरेन्द्र

हिन्द की शान ताजमहल पर नफरत की सियासत?

दुनियाभर में मोहब्बत की निशानी के रूप में अपनी पहचान रखने वाले और दुनिया के सात अजूबों में शामिल आगरा का ताजमहल आज एक गैर जिम्मेदार भाजपा विधायक की बकवास के कारण बिना वजह विवादों का विषय बना हुआ है। गौरतलब है कि मेरठ के सरधना से भाजपा विधायक संगीत सोम ने कहा था कि गद्दारों के बनाए ताजमहल को इतिहास में जगह नहीं मिलनी चाहिए। यह भारतीय संस्कृति पर धब्बा है। ताजमहल बनाने वाले मुगल शासक ने उत्तर प्रदेश और हिन्दुस्तान से सभी हिन्दुओं का सर्वनाश किया था। ऐसे शासकों और उनकी इमारतों का नाम अगर इतिहास में होगा तो वह बदला जाएगा। ऐसा बेहूदा बयान संगीत सोम ने क्यों दिया? माना जा रहा है कि पार्टी में कुछ दिनों से अलग-थलग चल रहे संगीत सोम ने चर्चा में रहने के लिए ऐसा विवादित बयान दिया है। साथ ही खुद के खिलाफ पार्टी विरोधी काम करने के आरोप में कार्रवाई करने की जिला संगठन की सिफारिश को रोकने का दबाव बनाने के लिए सोची-समझी रणनीति के तहत यह विवादित बयान दिया है। दरअसल जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में सोम ने भाजपा विरोधी उम्मीदवार का समर्थन किया था। हालांकि जिसे उन्होंने समर्थन दिया वह हार गया। इसको लेकर भाजपा जिलाध्यक्ष शिवकुमार राणा ने प्रदेश नेतृत्व को पत्र लिखकर सोम के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की थी। संगीत सोम उग्र सांप्रदायिक बयानों के लिए जाने जाते हैं। ताजमहल के बारे में उन्होंने जो कुछ कहा वह उनके खास तरह के मिजाज का ही इजहार लगता है। लेकिन इस सिलसिले की शुरुआत हुई इस खबर से कि उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग ने राज्य के पर्यटन स्थलों की सूची से ताजमहल को हटा दिया है। इस पर विवाद उठना ही था। स्वाभाविक ही राज्य सरकार की काफी किरकिरी हुई। और अगर भाजपा के लोग सोचते हैं कि ऐसे बयानों से विवादों में उन्हें सियासी फायदा होगा तो उनकी यह धारणा गलतफहमी ही साबित होगी। ताजमहल के साथ पूरे देश की भावनाएं जुड़ी हुई हैं, वे इसे दुनियाभर को आकर्षित करने वाली एक ऐसी धरोहर के तौर पर देखते हैं जिस पर उन्हें नाज है। उत्तर प्रदेश इस पर फख्र करता आया है कि ताजमहल उनके पास है। यह भारत की स्थापत्य और कला-कारीगरी का एक बेमिसाल नमूना है। मुट्ठीभर लोग ही होंगे जो इसे धर्म या संप्रदाय के चश्मे से देखें। मजे की बात यह है कि खुद भाजपा सरकार के संस्कृति मंत्री महेश शर्मा, संगीत सोम जैसे लोगों की राय से इत्तेफाक नहीं रखते। दो दिन पहले ही उन्होंने कहा कि ताजमहल को पर्यटन स्थलों की सूची से हटाए जाने का कोई सवाल ही नहीं है, यह दुनिया के सात अजूबों में शामिल है और देश की चन्द सबसे खूबसूरत धरोहरों में शुमार है। भारत घूमने आने वाला शायद ही कोई पर्यटक ऐसा हो जो ताजमहल का दीदार न करना चाहे। ताजमहल हो लाल किलाöये धरोहर हमारी विरासत का अटूट हिस्सा हैं और इनकी ऐतिहासिकता पर नए सिरे से कुछ कहने-सुनने से वह हकीकत नहीं बदलेगी, जो इतिहास के पन्नों में इनके बारे में अरसे से दर्ज है। चुनावी राजनीतिक फायदे-नुकसान के नजरिये से कुछ नेतागण इन पर कोई टिप्पणी करते हैं तो उन्हें समझना होगा कि ऐसी बयानबाजी खुद उनकी राजनीति को ज्यादा दूर नहीं ले जाएगी। बल्कि यह हो सकता है कि ऐसे नेता अपने बिगड़ैल बयानों की वजह से जनता में अपनी जमीन खो बैठें। भाजपा अनुशासन का दम भरती है। फिर क्या कारण हैं कि उनके एक विधायक को ऐसा बेहूदा बयान देने की खुली छूट दी जा रही है। यह भी देखना बाकी है कि संगीत सोम पर पार्टी आलाकमान क्या कार्रवाई करती है?

Thursday, 19 October 2017

क्या गुरदासपुर हार से बीजेपी आलाकमान कोई सबक लेगा?

गुजरात, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा व राजस्थान में प्रस्तावित चुनावों की रणनीति पर अमल कर रहे पीएम मोदी तथा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को पंजाब में भाजपा की लगातार गिर रही साख पर चितिंत होना चाहिए। गुरदासपुर लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस की बड़ी जीत को बीजेपी के लिए करारा झटका माना जा रहा है। हालांकि पार्टी के नेताओं को लग रहा है कि उसकी वजह पार्टी इकाई में चल रही गुटबाजी और राष्ट्रीय नेतृत्व की बेरुखी भी है। पार्टी के भीतर भी यह आंकलन किया जा रहा है कि इस हार का पंजाब की राजनीति पर दूरगामी असर पड़ेगा क्योंकि राज्य में बीजेपी और कमजोर हो गई है। बीजेपी के लिए चिंता का विषय यह भी होना चाहिए कि हिमाचल प्रदेश में चुनाव सिर पर है और हिमाचल का एक बड़ा हिस्सा पंजाब के गुरदासपुर के बार्डर से जुड़ा हुआ है, जहां इस उपचुनाव का सीधा असर पड़ सकता है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह की बढ़ती लोकप्रियता को कांग्रेस हिमाचल में भी जरूर भुनाने का प्रयास करेगी। पंजाब की तरह से ही हिमाचल प्रदेश से भी बहुत संख्या में लोग सेना में हैं। कैप्टन भी सेना से जुड़े रहे हैं और सैनिकों व उनके परिजनों के हक में आवाज बुलंद करते रहे हैं। ऐसे में यह माना जा रहा है कि चुनाव प्रचार के मैदान में उनकी मौजूदगी हिमाचल के कांग्रेसी किले को बचाने में मददगार साबित हो सकती है। गुरदासपुर उपचुनाव बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि उसके पास यह अवसर था कि वह इस सीट को फिर से जीतकर कांग्रेस की राज्य सरकार की असफलताओं को उजागर कर सकती थी लेकिन पार्टी इसमें नाकाम रही है। बीजेपी के एक सीनियर लीडर के मुताबिक हार से ज्यादा बीजेपी के लिए हार का अंतर है। लगभग दो लाख वोटें का अंतर बड़ा अंतर माना जाता है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि इस उपचुनाव में खुद पार्टी के आला नेताओं ने कोई दिलचस्पी नहीं ली। यहां तक कि कोई राष्ट्रीय स्तर का नेता इस उपचुनाव में प्रचार करने तक नहीं गया। इस उपचुनाव में भाजपा-अकाली के बीच फांक नजर आई। पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल एक बार भी चुनाव प्रचार के लिए नहीं गए। उधर कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह से लेकर नवजोत सिंह सिद्धू सहित बड़े नेता लगातार अपने उम्मीदवार के पक्ष में चुनाव प्रचार करते रहे। इससे भी कांग्रेस के प्रति लोगों में सकारात्मक संदेश गया। उधर विधानसभा चुनाव में शिकस्त के बाद आम आदमी पार्टी दावा करती रही कि पंजाब में उसकी लहर थी और केंद्र सरकार की राह पर वोटिंग मशीनों  में गड़बड़ी करके उसे हराया गया, उसे भी अब अपनी जनाधार की हकीकत का पता चल गया होगा। इस उपचुनाव में भाजपा की हार के पीछे एक बड़ा कारण नोटबंदी और फिर जीएसटी लागू होने के बाद किसानों और कारोबारियों पर पड़ रहे प्रतिकूल प्रभाव को लेकर उनकी नाराजगी को भी माना जा रहा है। क्या बीजेपी आलाकमान चिंतित है?

-अनिल नरेन्द्र

एक दीया हमारे बहादुर शहीदों की याद में

सभी पाठकों को दीपावली के शुभ अवसर की बधाई। उम्मीद करते हैं कि आप सभी के लिए यह शुभ हो। जहां हम दीवाली को बड़े गर्व और जोश के साथ मनाते हैं वहीं यह बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है। हम सब अपने परिजनों के साथ दीए जलाते हैं पर इस दीवाली हम एक दीया उन शहीदों की याद में जलाएं जिन्होंने हमारी आजादी और सुरक्षा के लिए अपने प्राण कुर्बान किए। शहीदों को हम इस तरह श्रद्धांजलि दें। शहीदों को याद कर हमारी आंखें नम हो जाती हैं तो उनकी जांबाजी के किस्सों से हम गौरवान्वित हो जाते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह बहादुर जवान 24 घंटे हर मौसम में सीमा पर मुस्तैदी से डटे रहते हैं ताकि लोग अपने घरों में चैन की नींद सो सकें। आए दिन यह जवान दुश्मनों के दांत खट्टे करते हैं। उनके जीवन से हम सबको प्रेरणा लेने की जरूरत है। सूबेदार मेजर बंता सिंह ने 1987 में सियाचिन में बर्फीले तूफान के बीच 1500 फीट चढ़ाई कर पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार गिराया था। इसी तरह सूबेदार योगेन्द्र सिंह ने कारगिल युद्ध के दौरान अपने अदम्य साहस का परिचय दिया था। कारगिल युद्ध के दौरान वे कमांडो फरक प्लाटून के सदस्य थे और टाइगर हिल के तीन बंकरों को दुश्मनों के कब्जे से मुक्त कराया था। नायब सूबेदार संजय कुमार सिंह  ने भी कारगिल युद्ध के दौरान अपनी वीरता का परिचय दिया था। हमें ऐसे वीर सैनिकों को हर समय जेहन में रखना होगा, जिससे कि हमारी सेना को लगे कि पूरा देश उनके साथ है। देश की सुरक्षा में सीमा पर हमारी रक्षा करने के दौरान सैकड़ों जवानों ने अपने प्राणों की आहूति दी। हर स्कूल में बच्चों को जवानों की वीरता के बारे में बताया जाए ताकि वह उनके जीवन व बहादुरी से प्रेरणा ले सकें और देश की सुरक्षा के लिए आगे आएं। मोमबत्ती जलाकर शहीदों के प्रति आभार प्रकट करें और कहें कि वीर जवानों की मुस्तैदी और उनके बलिदान की वजह से ही हम सभी खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं। हम लोगों के लिए गर्व की बात है कि हम ऐसे देश में हैं जिसका इतिहास वीर बलिदानों से भरा पड़ा है। आप सबको दीवाली की शुभकामनाएं। पटाखे जलाने से परहेज करें। प्रदूषण की समस्या अत्यंत गंभीर है। धुएं से जीना दुश्वार हो रहा है। पटाखों के बिना भी दीवाली मनाई जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश को छोड़िए यह हमारा भी तो फर्ज है कि हम ऐसे वातावरण पैदा करें जिससे हमारे बच्चों की सेहत न बिगड़े और वह खुली स्वच्छ हवा में सांस ले सकें।

Wednesday, 18 October 2017

दहेज प्रताड़ना और कानून

ढाई महीने पहले सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बैंच ने जो फैसला दिया था कि दहेज प्रताड़ना मामले में तुरन्त गिरफ्तारी नहीं होगी, उस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बैंच ने दोबारा विचार करने का फैसला किया है। अदालत ने कहा कि दहेज प्रताड़ना मामले में दिए फैसले में जो सेफगार्ड दिया गया है उससे वह सहमत नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बैंच ने कहा कि इस मामले में दो जजों की बैंच ने 27 जुलाई को जो आदेश पारित किया था जिसमें तत्काल गिरफ्तारी पर रोक संबंधी जो गाइडलाइंस बनाई हैं उससे वह सहमत नहीं हैं। हम कानून नहीं बना सकते बल्कि उसकी व्याख्या कर सकते हैं। अदालत ने कहा कि ऐसा लगता है कि 498ए के दायरे को हल्का करना महिला को इस कानून के तहत मिले अधिकार के खिलाफ जाता है। बता दें कि 27 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके गोयल और जस्टिस यूयू ललित की बैंच ने राजेश शर्मा बनाम स्टेट ऑफ यूपी के केस में गाइडलाइंस जारी किए थे और इसके तहत दहेज प्रताड़ना के केस में गिरफ्तारी से सेफगार्ड दिया गया था। कोर्ट ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले अनरेश कुमार बनाम बिहार स्टेट के मामले में व्यवस्था दी थी कि बिना किसी ठोस कारण के गिरफ्तारी न हो यानि गिरफ्तारी के लिए सेफगार्ड दिए थे। लॉ कमीशन ने भी कहा था कि मामले को समझौतावाद बनाया जाए। निर्दोष लोगों के मानवाधिकार को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। अनचाही गिरफ्तारी और असंवेदनशील छानबीन के लिए सेफगार्ड की जरूरत बताई गई क्योंकि ये समस्याएं बदस्तूर जारी हैं। दहेज केस में पहले भी ऐतिहासिक फैसले हुए हैं। दो जुलाई 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सात साल तक की सजा के प्रावधान वाले मामले में पुलिस सिर्फ केस दर्ज होने की बिनाह पर गिरफ्तार नहीं कर सकती बल्कि उसे गिरफ्तारी के लिए पर्याप्त कारण बताना होगा। हमने देखा है कि एक तरफ दहेज प्रताड़ना को लेकर अंधाधुंध गिरफ्तारियां हो रही हैं दूसरी तरफ इससे दहेज हत्याएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। पूरे के पूरे परिवार के सदस्य अंदर कर दिए जा रहे हैं और उनकी जमानत भी आसानी से नहीं होती। पुलिस के हाथों एक ऐसा हथियार आ गया है जिसका वह दबाकर दुरुपयोग कर रही है। यह जरूरी है कि अगर दहेज प्रताड़ना की कोई शिकायत महिला करती है तब उसकी बारीकी से छानबीन होनी चाहिए, सिर्फ आरोप लगाना ही काफी नहीं है। कुछ महिलाएं इसको ब्लैकमेल का हथियार बना लेती हैं। दूसरी ओर दुख से कहना पड़ता है कि तमाम सख्ती के बावजूद दहेज प्रताड़ना, दहेज हत्याओं पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। पर क्या कानून से ही इस समस्या का समाधान संभव है? जब तक हमारा समाज अपने विचार और सोच नहीं  बदलता यह समस्या समाप्त होने वाली नहीं है।

-अनिल नरेन्द्र

दीपावली और राहुल की ताजपोशी से पहले गुरदासपुर का तोहफा

कांग्रेस ने बरसों बाद भाजपा से गुरदासपुर का किला छीन लिया। इस सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने इतनी जबरदस्त सेंध लगाई कि भाजपा भारी अंतर से हारी और पंजाब की सियासत में घुस चुकी आम आदमी पार्टी की जमानत भी नहीं बची। रविवार को हुई मतगणना में कांग्रेस के सुनील जाखड़ ने भाजपा के सवर्ण सलारिया को एक लाख 93 हजार 219 वोटों के भारी अंतर से हराया। साल 1952 से लेकर 2014 तक हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का ही इस सीट पर दबदबा था लेकिन उसके बाद भाजपा फिल्म अभिनेता विनोद खन्ना को ले आई और कांग्रेस की परंपरागत सीट छीन ली। विनोद खन्ना ने अपने आखिरी चुनाव में साल 2014 में इलाके के मजबूत कांग्रेसी दिग्गज प्रताप बाजवा को एक लाख 36 हजार वोटों के अंतर से हराया है। गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा को गुरदासपुर की हार की एक बड़ी वजह थी योग्य उम्मीदवार को न चुनना। दिवंगत सांसद विनोद खन्ना की पत्नी कविता खन्ना की जगह पार्टी ने विवादास्पद छवि के उद्योगपति सवर्ण सिंह सलारिया पर भरोसा जताया और यही उससे चूक हो गई। वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में विनोद खन्ना को शराबी बताने वाले सलारिया उनके निधन से उपजी सहानुभूति को भी वोटों में तब्दील नहीं कर सके। चुनाव प्रचार के दौरान सलारिया से जुड़े रेप के एक पुराने मामले में भी उनके प्रति नकारात्मक माहौल पैदा किया। खन्ना के निधन के बाद पार्टी की राज्य इकाई इस सीट से उनकी विधवा कविता खन्ना को उम्मीदवार बनाना चाहती थी, मगर पार्टी नेतृत्व ने सलारिया पर भरोसा जताया और यह गलती पार्टी आलाकमान की भारी पड़ी। दूसरी ओर सुनील जाखड़ यह उपचुनाव जीतने से पहले तीन बार अबोहर विधानसभा सीट से चुनाव जीत चुके हैं। अबोहर सीट पर उन्होंने 2002, 2007 और 2017 में जीत हासिल की थी। वह पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री डॉ. बलराम जाखड़ के बेटे हैं और किसान नेता हैं। पंजाब की गुरदासपुर लोकसभा सीट और केरल की वेंगारा विधानसभा सीट पर उपचुनाव नतीजों ने कांग्रेस को चार दिन पहले ही दीपावली के जश्न में डुबो दिया है। 2014 के बाद भाजपा ने यह दूसरी लोकसभा सीट गंवाई है। इससे पहले नवम्बर 2015 में रतलाम-झाबुआ सीट भी कांग्रेस ने जीती थी। मनोबल बढ़ाने वाली यह जीत कांग्रेस को ऐसे समय मिली है जब एक तरफ राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी की तैयारी हो रही है जबकि दूसरी तरफ हिमाचल और गुजरात में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। लोकसभा और विधानसभा की एक-एक सीट के उपचुनाव नतीजों को पूरे देश का मूड नहीं माना जा सकता पर राजनीति में छोटे मौके भी शगुन का काम करते हैं। अगर कांग्रेस हारती तो राहुल पर एक और हार का ठीकरा फूटता जिसका असर उनके आत्मविश्वास पर पड़ता। अब वह विजेता के रूप में हिमाचल और गुजरात में चुनावी अभियान का नेतृत्व कर सकेंगे। राहुल की ताजपोशी से ठीक पहले यह अच्छा शगुन आया है। कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि पंजाब की तरह अगर पार्टी ने हिमाचल और गुजरात में एकजुट होकर चुनाव लड़ा तो जीत के अच्छे आसार बन सकते हैं। इस नतीजे से कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा है। पार्टी इस जीत को जीएसटी, बढ़ती बेरोजगारी और किसानों की नाराजगी के तौर पर देख रही है। पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ की इस जीत का फायदा पार्टी यूपी और राजस्थान में होने वाले उपचुनाव में भी उठाने की तैयारी कर रही है। गुजरात के साथ आयोग यूपी और गोरखपुर, फूलपुर और राजस्थान की अलवर, अजमेर सीट पर चुनाव घोषित कर सकता है। लोकसभा चुनाव के बाद से लगातार छोटे-बड़े चुनावों में हार का सामना कर रही कांग्रेस के लिए गुजरात में राज्यसभा सीट पर जीत के बाद छोटी-छोटी जीतों की राह में यह बड़ी कामयाबी मानी जा रही है। गुरदासपुर में मिली जीत टॉनिक से कम नहीं मानी जा रही। दरअसल कांग्रेस हाई कमान की हमेशा से इच्छा रही है कि जब राहुल गांधी पार्टी की कमान संभालें तो उनके आसपास सफलता का माहौल रहे। वह पार्टी को जीत का मनोबल और हौसला देते दिखें जिससे वह अपनी लीडरशिप को निर्विवाद तौर पर स्थापित कर सकें।

Tuesday, 17 October 2017

दो राज्यों के चुनाव एक साथ करा नहीं सकते तो पूरे देश के कैसे?

चुनाव आयोग ने बृहस्पतिवार को हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव की घोषणा कर दी, जबकि गुजरात की विधानसभा चुनाव की घोषणा के लिए अभी इंतजार करना होगा। हालांकि चुनाव आयोग ने यह कहा है कि गुजरात चुनाव के लिए मतदान हिमाचल की मतगणना से पहले करा लिया जाएगा। चुनाव आयोग ने अकेले हिमाचल के चुनाव की घोषणा करके विवाद जरूर खड़ा कर दिया। यह स्वाभाविक भी है। उम्मीद की जा रही थी कि हिमाचल और गुजरात के विधानसभा चुनावों की तारीखें एक साथ घोषित होंगी। लेकिन निर्वाचन आयोग ने हिमाचल के लिए मतदान की तारीख नौ नवम्बर तो घोषित कर दी पर गुजरात की बाबत कहा कि तारीख बाद में घोषित की जाएगी। आयोग के इस फैसले पर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। पार्टी ने सवाल किया है कि लोकसभा और देश की तमाम विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की वकालत करने वाले प्रधानमंत्री और तमाम भाजपा नेताओं को अब बताना चाहिए कि जब उन्हें दो राज्यों में एक साथ चुनाव कराना गवारा नहीं है, तो समूचे देश में एक साथ चुनाव कराने की बात वे किस मुंह से करते हैं। आखिर यह बहुत से लोगों को खटक क्यों रहा है? इसलिए कि यह नियम और परिपाटी के विरुद्ध है। जिन राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल पूरा होने में छह महीने से अधिक का अंतर नहीं होता, उनके चुनावों की घोषणा आयोग एक साथ करता आया है। जबकि हिमाचल प्रदेश और गुजरात की विधानसभाओं का कार्यकाल पूरा होने में बस दो हफ्ते का अंतर है। कांग्रेस ने यह भी आरोप लगाया है कि ऐसा प्रधानमंत्री के कहने पर किया जा रहा है। कांग्रेस के आरोप को एक सिरे से खारिज भी नहीं किया जा सकता। उसने वर्षों तक देश पर शासन किया है। हो सकता है कि कांग्रेस अपने पुराने अनुभवों के आधार पर इस तरह का आरोप लगा रही हो। फिर भी विश्वास नहीं होता कि चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक, स्वतंत्र संस्था प्रधानमंत्री या केंद्र सरकार के इशारे पर काम करेगी। यह जरूर है कि लोकतंत्र में परंपराओं का विशेष महत्व होता है। किसी विशेष परिस्थिति में ही परंपराओं की अनदेखी की जानी चाहिए। हालांकि मुख्य चुनाव आयुक्त ने सफाई दी है कि गुजरात में  बाढ़ के कारण सड़कें टूटी हैं और बचाव एवं राहत कार्य चल रहा है। लेकिन चुनाव आयोग की इस सफाई में ज्यादा दम नजर नहीं आता, शायद ही इस पर कोई विश्वास करेगा। इसमें दो राय नहीं है कि गुजरात चुनाव की घोषणा न होने का भाजपा को फायदा मिल सकता है। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री की आगामी 16 अक्तूबर को गुजरात यात्रा आरंभ हो रही है और इस बात की पूरी संभावना है कि वह अपनी सभा में कई नई योजनाओं का शिलान्यास करेंगे। चूंकि चुनाव घोषणा के बाद यहां आदर्श चुनाव संहिता लागू हो जाती इसलिए गुजरात विधानसभा के चुनाव की तिथि को टाला गया है।

-अनिल नरेन्द्र

क्या इस बार गुजरात भाजपा के लिए वॉकओवर होगा

हिमाचल प्रदेश विधानसभा के चुनाव इसी महीने होने वाले हैं और अगले माह गुजरात के। गुजरात में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार चरम पर आ रहा है। सत्ताधारी पार्टी भाजपा किसी भी तरह यह मौका नहीं खोना चाहती। पिछले महीने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने गुजरात का दौरा किया था, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दो दिवसीय दौरे के दौरान 12 हजार करोड़ रुपए की योजनाओं का उद्घाटन किया, शिलान्यास किया। अब वो 16 अक्तूबर को फिर से गुजरात जाने वाले हैं। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी लगातार गुजरात का दौरा कर रहे हैं। दोनों पार्टियों ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है। अगर हम हाल की कुछ घटनाओं पर नजर डालें तो क्या यह गुजरात की राजनीति पर असर डाल सकती हैं? अमित शाह के बेटे जय शाह अचानक विवादों में आ गए हैं। एक न्यूज वेबसाइट ने जय शाह की कंपनी का टर्नओवर एक साल के अंदर 16 हजार गुणा बढ़ने का दावा किया है। इसके बाद से विपक्षी दल इस मामले की जांच की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस के प्रवक्ता कपिल सिब्बल ने वेबसाइट में प्रकाशित खबर का हवाला देते हुए आरोप लगाया है कि 2015-16 में जय शाह की कंपनी का सालाना टर्नओवर 50 हजार रुपए से बढ़कर 80.5 करोड़ रुपए तक पहुंचने की जांच होनी चाहिए। अमित शाह ने कांग्रेस को चुनौती दी है कि वह जय शाह के खिलाफ सबूत पेश करें, महज आरोप लगाने से काम नहीं चलेगा। पर देखना यह होगा कि विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा बनता है या नहीं? इसके अलावा गुजरात के आणंद जिले में एक अक्तूबर को गरबा आयोजन में शामिल होने पर एक समूह ने एक 19 वर्षीय दलित युवक प्रकाश सोलंकी की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। इससे पहले गांधी नगर जिले के कलोल के लिबोदरा गांव में मूछ रखने पर 17 और 24 साल के दो युवकों के साथ मारपीट हुई थी। दशहरे के दिन अहमदाबाद में 300 दलित परिवारों ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था। इस घटना को लेकर सत्ताधारी भाजपा निशाने पर है। राज्य की कुल आबादी छह करोड़ 38 लाख के करीब है, जिनमें दलितों की आबादी 35 लाख 92 हजार के करीब है। यह जनसंख्या का 7.1 प्रतिशत है। गुजरात में अगस्त के महीने में हुए राज्यसभा चुनाव में अहमद पटेल की जीत से भाजपा को करारा झटका लगा था। पार्टी ने इस चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी लेकिन अंतिम समय में अहमद पटेल ने बाजी मार ली। भाजपा राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस को हराकर उसका मनोबल तोड़ना चाहती थी। अहमद पटेल की जीत के बाद गुजरात में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल जरूर बढ़ गया है। गुजरात में पाटीदार आरक्षण का मामला अभी तक शांत नहीं हुआ है। पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के संयोजक हार्दिक पटेल राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं। वह अपनी मांगें मानने वाली किसी भी पार्टी के साथ जाने की बात कर चुके हैं। वहीं पाटीदारों में भाजपा को लेकर गुस्सा बना हुआ है। अमित शाह तक को पाटीदार युवाओं का विरोध झेलना पड़ा था। जैसे ही अमित शाह ने सभा को संबोधित करना शुरू किया वैसे ही कुछ युवाओं ने नारे लगाने शुरू कर दिए थे। इसके बाद हार्दिक पटेल ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने उन युवाओं को पीटा है। आम आदमी पार्टी की हार्दिक पटेल से नजदीकियां बढ़ती दिख रही हैं। पाटीदारों का गुजरात में दबदबा रहा है। हालांकि पाटीदार आरक्षण मामले के बाद यह समुदाय सत्ताधारी पार्टी का विरोध करता रहा है। कांग्रेस से निकले शंकर सिंह बाघेला पाटीदारों का कुछ वोट अपनी ओर खींचने की कोशिश जरूर करेंगे। लेकिन आरक्षण न मिलने और हार्दिक पटेल को जेल होने को लेकर उपजी पाटीदारों की नाराजगी का नुकसान भाजपा को हो सकता है। एक जुलाई से लागू हुए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के बाद देश में आर्थिक मंदी की खबरें लगातार आ रही हैं। गुजरात के कपड़ा व्यापारियों में जीएसटी लगने को लेकर नाराजगी बनी हुई है। सूरत में जुलाई में टेक्सटाइल ट्रेडर्स ने जीएसटी के विरोध में भव्य प्रदर्शन भी किया था। उन्होंने जीएसटी के कारण कपड़ा महंगे होने और व्यापार पर असर पड़ने की चिन्ता जताई थी। वहीं इस साल जून के अंत तक 682 टेक्सटाइल मिलें बंद हो गई थीं। बाजार में मंदी की वजह से बेरोजगारी बढ़ने और महंगाई की मार के चलते और भाजपा की गुजरात सरकार के खिलाफ एंटी-इंकम्बेंसी फैक्टर की वजह से भाजपा की गुजरात में राह आसान नहीं होगी।

Sunday, 15 October 2017

रॉक स्टार से सुनारिया जेल ः सीन नम्बर दो

गुरमीत राम रहीम सिंह की फिल्मी कहानी तब शुरू हुई जब उन्हें दो साध्वियों से बलात्कार करने के आरोप में दोषी पाया गया और उन्हें 20 साल की सजा हुई। अब इसी फिल्म का दूसरा सीन देखने को मिल रहा है। गुरमीत राम रहीम की कथाकथित पुत्री व राजदार हनीप्रीत इंसा ने स्वीकार कर लिया है कि 25 अगस्त की पंचकूला हिंसा में उसकी अहम भूमिका थी। सूत्रों का कहना है कि तीन दिन की रिमांड बढ़ने के बाद हनीप्रीत थोड़ी टूटी है और उसने दंगे की साजिश में खुद के शामिल होने की बात कबूली है। सूत्र यह भी बता रहे हैं कि हनीप्रीत ने इस दौरान न केवल देशभर के डेरा समर्थकों बल्कि इंटरनेशनल कॉल के जरिये विदेश में रहने वाले डेरे के करीबियों से भी कई अहम जानकारियां साझा कीं। हालांकि सबूत न होने पर पुलिस अधिकारी इसकी पुष्टि करने से बच रहे हैं। पुलिस के सामने तमाम सच्चाई बयां करने की बात हनीप्रीत अदालत में भी कह चुकी है। छह दिनों की रिमांड के दौरान उसने टुकड़ों में गुनाह कबूले हैं, जिसके सबूत जुटाने में एसआईटी जुटी हुई है। पंचकूला पुलिस की एसआईटी के मुताबिक हनीप्रीत ने कबूला है कि 17 अगस्त को सिरसा डेरे में हुई मीटिंग की अध्यक्षता उसी ने की थी। इसी मीटिंग में ही पंचकूला में दंगों की साजिश रची गई थी। डेरा समर्थकों को पहले ही पंचकूला पहुंचने को कहा गया और सेक्टर-23 में तैयारी रखने को कहा गया। उपद्रवियों को एंट्री और बाहर निकलने का प्लान हनीप्रीत के लैपटॉप में तैयार हुआ। तय हुआ कि अहम रोल निभाने वाले वाट्सएप कॉलिंग के जरिये कांटैक्ट में रहेंगे, नॉर्मल कॉलिंग का प्रयोग नहीं करेंगे। डेरा सच्चा सौदा राम रहीम की राजदार हनीप्रीत इंसा ने माना है कि 25 अगस्त को अगर राम रहीम को कोर्ट से रिहा कर दिया जाएगा तो पंचकूला में सत्संग होगा। सारी प्लानिंग कोर्ट के फैसले पर टिकी थी। मैप पर मार्किंग करने, ब्लैक मनी से फंडिंग कराने, देश के खिलाफ वीडियो वायरल करने के साथ ही कई जुर्म कबूले हैं। दंगे में ब्लैक मनी का प्रयोग हुआ। इसे व्हाइट करने के लिए हनीप्रीत ने फर्जी दस्तावेज बनाने को कहा था। करीब पांच करोड़ रुपए हनीप्रीत ने चमकौर इंसा के हाथों खुद भिजवाए। हरियाणा पुलिस की रिमांड में हनीप्रीत ने कई खुलासे किए हैं। लैपटॉप, मोबाइल की जानकारी के बाद अब हनीप्रीत ने एक और बड़ा खुलासा किया है। दरअसल 25 अगस्त के दिन राम रहीम को पुलिस के चंगुल से छुड़ाने का एक बड़ा प्लान तैयार किया गया था। जिसके तहत उसे छुड़ाकर विदेश भेजना था। हालांकि हरियाणा पुलिस की मुस्तैदी के चलते यह प्लान कामयाब नहीं हो सका। राम रहीम को उम्मीद थी कि सुरक्षाकर्मी उसे पुलिस की गिरफ्त से छुड़वा लेंगे। फिर उसे सिरसा डेरा मुख्यालय या किसी सुरक्षित जगह पर पहुंचा दिया जाएगा। हनीप्रीत राम रहीम को विदेश भगाने की पूरी तैयारी कर चुकी थी। प्रतीक्षा कीजिए फिल्म के अगले सीन का।

-अनिल नरेन्द्र

आखिर आरुषि और हेमराज की हत्या तो हुई है

नौ साल पहले दुनियाभर को झकझोर देने वाला आरुषि-हेमराज हत्याकांड एक बार फिर चर्चा में है। सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा दोषी करार दिए गए आरुषि के माता-पिता को बृहस्पतिवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हत्याकांड के आरोपों से बरी कर दिया। अदालत के इस फैसले ने यह सवाल फिर से खड़ा कर दिया है कि आखिर दोनों की हत्या किसने और क्यों की? साढ़े चार साल तक राज्य पुलिस के साथ ही सीबीआई की दो टीमों ने जांच की। पांच लोग गिरफ्तार किए गए। पुलिस व सीबीआई की जांच में अलग-अलग नतीजे निकले और लगा कि शायद देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री से पर्दा उठ गया। पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राजेश और नूपुर तलवार को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। और तो और आरुषि मर्डर केस  पर अब तक दो फिल्में बन चुकी हैं। लेकिन दोनों फिल्में किसी नतीजे तक नहीं पहुंच पाईं। जनवरी 2015 में आई फिल्म रहस्य और उसी साल आई फिल्म तलवार में देश को झकझोरने वाली इस मर्डर मिस्ट्री के तमाम सिरों को पकड़ने का प्रयास किया गया था। मनीष गुप्ता निर्देशित फिल्म रहस्य में केके मेनन, टिस्का चोपड़ा और आशीष विद्यार्थी जैसे मंझे हुए कलाकारों ने अभिनय किया था तो तलवार की क्रिप्ट जाने-माने निर्देशक विशाल भारद्वाज ने महीनों की रिसर्च के बाद लिखी थी। फिल्म को मेघना गुलजार ने निर्देशित किया था। इनमें आरुषि मर्डर मिस्ट्री को रीक्रिएट करने का प्रयास किया गया था। मर्डर की रात क्या-क्या हुआ होगा, मर्डर में किन हथियारों का इस्तेमाल किया गया होगा, मामले कैसे खुले आदि बिन्दुओं के तह में जाने का प्रयास किया गया था, लेकिन दोनों फिल्में किसी नतीजे (कंक्लूजन) तक नहीं पहुंच सकीं। फिल्म रहस्य का तो तलवार दम्पति ने काफी विरोध भी किया था। बाद में मनीष गुप्ता ने सफाई देते हुए कहा कि फिल्म सस्पेंस ड्रामा है। इसका आरुषि मर्डर से सीधा ताल्लुक नहीं है। मर्डर मिस्ट्री पर पत्रकार अविरुक सेन की किताब आरुषि भी काफी चर्चा में रही। इस किताब में अविरुक सेन ने सीबीआई की जांच प्रक्रिया पर कई सवाल खड़े किए हैं और सिलसिलेवार इसे बयान किया है। दूसरी तरफ एक अन्य पत्रकार ने भी घटना पर कातिल जिन्दा हैöएक थी आरुषि नाम से किताब लिखी है। इसमें पूरी घटना की पड़ताल करने की कोशिश की गई है। 10वीं में पढ़ रही आरुषि 16 मई 2008 को अपने कमरे में मृत पाई गई थी और उसके अगले दिन डेंटिस्ट तलवार दम्पति के उसी घर की छत से उनके नौकर हेमराज का शव बरामद हुआ था। इस दोहरे हत्याकांड ने नोएडा की उस मध्यवर्गीय आवासीय कॉलोनी को ही नहीं, बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था और मीडिया ने इसे सनसनीखेज हत्याकांड को इतनी तवज्जो दी कि एकाधिक बार तो आईपीएल से भी कहीं अधिक रेटिंग इसकी रिपोर्टिंग को मिली। इलाहाबाद हाई कोर्ट की खंडपीठ में शामिल दो जजों ने अपना अलग-अलग फैसला सुनाया। आदेश में कहा गया कि सीबीआई इस हत्याकांड में नूपुर दम्पति की संलिप्तता संदेह से परे साबित करने में असमर्थ रही ः सिर्फ शक के आधार पर किसी को सजा नहीं दी जा सकती। संभावना है कि सीबीआई इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी क्योंकि असल सवाल तो आज भी बना हुआ है। शुरू से ही विचित्र मोड़ों के लिए चर्चित इस मामले में तीन-तीन जांचों के बावजूद बुनियादी सवालों के जवाब आज तक नहीं मिले। सच पूछा जाए तो तलवार दम्पति को न तो सजा देने का कोई पुख्ता सबूत था, न ही उन्हें निर्दोष मानने का कोई ठोस आधार। उनकी रिहाई सिर्फ न्यायशास्त्र के इस मूल सिद्धांत के तहत हुई है कि सौ अपराधी भले ही छूट जाएं पर एक भी निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए। पर आरुषि और हेमराज की हत्या तो हुई है। सवाल वहीं का वहीं है कि हत्यारा या हत्यारे आखिर कौन हैं? क्या इस मर्डर मिस्ट्री से कभी भी पर्दा उठेगा?

Saturday, 14 October 2017

बढ़ती महंगाई और पिसती जनता

जब वस्तु एवं सेवा टैक्स यानि जीएसटी लगाया गया था तो कहा गया था कि इससे वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें घटेंगी। मगर इसके तो शुरुआती चरण में ही महंगाई पिछले पांच महीने के ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है। प्याज समेत सब्जियों एवं अन्य खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेजी के चलते अगस्त महीने में थोक मूल्य आधारित मुद्रास्फीति बढ़कर चार महीने के उच्च स्तर 3.24 प्रतिशत पर पहुंच गई। हालांकि अनेक आम उपभोक्ता वस्तुओं पर करों की दर काफी कम रखी गई है। इसके बावजूद खुदरा बाजार में वस्तुओं की कीमतें बढ़ी हैं। कहा जा रहा है कि जीएसटी का शुरुआती चरण होने की वजह से बहुत सारे खुदरा कारोबारी भ्रम में हैं और वे अपने ढंग से वस्तुओं की कीमतें बढ़ा रहे हैं। पर थोक मूल्य सूचकांक में महंगाई की दर बढ़कर 3.36 प्रतिशत पर पहुंच गई तो यह केवल भ्रम के चलते नहीं हुआ है। रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली गैस, फलों व सब्जियों की कीमतें बढ़ी हैं, खानपान तैयार भोजन पर करों की दोहरी मार के चलते महंगाई बढ़ रही है। ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि केंद्रीय कर-प्रणाली लागू होने के बाद भी अगर महंगाई पर काबू नहीं पाया गया तो इससे पार पाने के क्या उपाय होने चाहिए? देश में अर्थव्यवस्था की सुस्ती ने समस्या और बढ़ा दी है। बेरोजगारी के बढ़ते आंकड़ें परेशान करने वाले हैं। उद्योग बंद हो रहे हैं, बाजार में ग्राहक गायब हैं। त्यौहारों का सीजन सिर पर है और दुकानें खाली पड़ी हैं। आज या तो जनता के पास पैसे का अभाव है या फिर उनको महीने के खर्च पूरे करने के बाद कुछ पैसा बचता ही नहीं है। नोटबंदी के फैसले के बाद अनेक कारोबार पहले ही प्रभावित हो चुके थे। उसके बाद जीएसटी लागू होने से बहुत सारे कारोबारियों के लिए लालफीताशाही सिरदर्द बनी हुई है। सरकार थोक मूल्य सूचकांक के आधार पर महंगाई का स्तर मामूली है, जबकि खुदरा बाजार में वस्तुओं की कीमतें उससे कई गुना ज्यादा होती हैं। जीएसटी परिषद कर-प्रणाली को व्यावहारिक बनाने का प्रयास अगर नहीं करेगा तो महंगाई और विकास दर दोनों को साधना कठिन बना रहेगा। बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी आज यह देश की जनता के सामने सबसे बड़ा सवाल बने हुए हैं। सरकार को इस ओर जल्द ध्यान देना होगा क्योंकि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में रोटी, कपड़ा और मकान आज भी प्राथमिकता रखते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

18 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ यौन संबंध रेप माना जाएगा

नाबालिग पत्नी के साथ संबंध बनाना अब दुष्कर्म यानि रेप माना जाएगा। भले ही संबंध पत्नी की सहमति से बनाए गए हों। अभी तक ऐसे मामलों में दुष्कर्म के आरोप से बचाने वाली आईपीसी की धारा 375(2) के अपवाद को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया है। इस अपवाद के तहत 15 से 18 साल तक से संबंध बनाना दुष्कर्म नहीं माना जाता था। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि 18 साल की उम्र की पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना रेप माना जाएगा। कोर्ट के अनुसार नाबालिग पत्नी इस घटना के एक साल के अंदर शिकायत दर्ज कर सकती है। कोर्ट ने माना कि बलात्कार संबंधी कानूनों में अपवाद अन्य अधिनियमों के सिद्धांतों के प्रति विरोधाभासी है। यह बच्ची के अपने देह पर सम्पूर्ण अधिकार व स्वनिर्णय के अधिकार का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मदन बी. लोकुर और दीपक गुप्ता की बैंच ने बुधवार को सरकार की दलीलें खारिज करते हुए कहाöसंबंध बनाने के लिए तय 18 साल की आयु घटाना असंवैधानिक है। सरकार की दलील थी कि इस फैसले से सामाजिक समस्या पैदा होगी। बैंच ने यह फैसला एनजीओ इंडिपेंडेंट थॉट की याचिका पर दिया। कोर्ट ने कहा कि शादीशुदा नाबालिग लड़की वस्तु नहीं है। उसे गरिमा से जीने का हक है। संसद ने ही कानून बनाया है कि 18 साल से कम उम्र की छोटी बच्ची संबंधों की सहमति नहीं दे सकती। संसद ने ही बाल विवाह को भी अपराध माना है। उसी बच्ची का विवाह होने पर पति संबंध बनाए तो यह अपराध नहीं है? ये बेतुका है। जेजे एक्ट, पॉस्को, बाल विवाह कानून और आईपीसी को एक जैसा बनाएं। विशेषज्ञों का कहना है कि सभी धर्मों पर लागू होगा यह फैसला। पुराने मामलों में नहीं। यह फैसला बाल विवाह पर सीधा असर डालेगा। कानूनन लड़की के लिए 18 साल और लड़के के लिए 21 साल की उम्र विवाह के लिए तय है। वहीं परिवार कल्याण विभाग के सर्वेक्षण से उजागर होता है कि कानूनी पाबंदियों के बावजूद अभी भी 27 प्रतिशत नाबालिग बच्चियों के विवाह हो रहे हैं। इस फैसले का सीधा प्रभाव यह होगा कि मुकदमे और सजा के डर से लोग बच्चियों को अपनी बहू बनाने में संकोच करेंगे। देश के कई इलाकों में आज भी बाल विवाह प्रचलित है। खासकर लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर दी जाती है। 2016 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक देश में तकरीबन 27 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र में हो जाती है। 2005 के नेशनल हेल्थ सर्वे में यह आंकड़ा तकरीबन 47 प्रतिशत था यानि सिर्फ 10 वर्षों में 18 साल से कम उम्र वाली लड़कियों की शादी में 20 प्रतिशत गिरावट आई है और नए कानून के डर से उम्मीद की जाती है कि इस प्रक्रिया में और तेजी आएगी। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश मानते हुए अब राज्य सरकारों को बाल विवाह रोकने के लिए कठोर कदम उठाने चाहिए। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2005 के अनुसार देश में  दो करोड़ 30 लाख बालिकावधु मौजूद हैं।