Saturday 28 October 2017

दांव पर गुजराती अस्मिता व गुजरात मॉडल

हिमाचल प्रदेश में चुनाव की घोषणा के 13 दिन बाद बुधवार को गुजरात विधानसभा चुनावों की तारीखें भी घोषित हो गई। इस बार भी दो चरणों में चुनाव होगा। नौ दिसम्बर को 89 सीटों पर और 14 दिसम्बर को बाकी 93 सीटों पर वोटिंग होगी। नतीजे हिमाचल के साथ 18 दिसम्बर को ही घोषित होंगे। देश में जीएसटी लागू होने के बाद यह पहला चुनाव होगा। विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि गुजरात में चुनाव तिथियों की घोषणा देर से इसलिए की गई ताकि भाजपा को फायदा पहुंचाया जा सके। हालांकि चुनाव आयोग ने हिमाचल के साथ गुजरात में मतदान देर से कराने की सफाई दी है। गुजरात विधानसभा का चुनावी बिगुल बजने के साथ ही सत्तारूढ़ भाजपा, सियासत की सबसे मजबूत पीएम मोदी-भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी और विपक्ष खासकर कांग्रेस की अग्निपरीक्षा का दौर शुरू हो गया है। चुनाव नतीजा न सिर्फ आगामी लोकसभा चुनाव को तय करेगा, बल्कि देश की भावी राजनीति की पटकथा लिखने की शुरुआत भी करेगा। चूंकि सवाल सत्ताधारी भाजपा और विपक्ष दोनों के लिए करो या मरो का है, इसलिए इस चुनाव के लिए दोनों ही पक्षों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद भाजपा ने 21 विधानसभा चुनाव लड़े हैं। इनमें से भाजपा को 12 जगहों पर जीत मिली है। सफलता का यह आंकड़ा किसी को भी सुकून दे सकता है। हालांकि एक तरह से कहें तो दिसम्बर में होने वाले गुजरात चुनाव भाजपा ही नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी के लिए 2014 के बाद से सबसे अहम चुनाव हैं। गुजरात में भाजपा जब उतरेगी तब 2014 के बाद यह ऐसा पहला राज्य होगा जहां पार्टी की बहुमत की सरकार चल रही है। री-इलैक्शन में जीत की कोशिश में जुटी भाजपा को यहां सहयोगियों का साथ भी नहीं है। 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद भाजपा आंध्रप्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, सिक्किम, तेलंगाना, जम्मू-कश्मीर, असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, गोवा, मणिपुर, पंजाब, झारखंड, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव लड़ चुकी है। मोदी और शाह के शीर्ष पर रहने के दौरान भाजपा ने 21 विधानसभा चुनावों में से 12 में जीत दर्ज की है। इन 21 में से 14 राज्यों में कांग्रेस या कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार थी, लेकिन री-इलैक्शन में इनके पास केवल दो राज्योंöअरुणाचल प्रदेश और पुडुचेरी में ही सत्ता बची है। दिसम्बर में होने जा रहे गुजरात विधानसभा चुनावों का असर देशव्यापी होगा। भाजपा जहां लोकसभा चुनाव के समय से ही मोदी के चेहरे के साथ गुजरात की अस्मिता के सवाल पर चुनाव मैदान में है वहीं मुख्य विपक्षी कांग्रेस सूबे में करीब ढाई दशक से काबिज भाजपा के खिलाफ पहली बार जातिगत समीकरणों को अपने पक्ष में करने में जुटी है। राज्य में चुनाव से ठीक पहले कद्दावर नेता शंकर सिंह वाघेला को खो चुकी कांग्रेस हालिया तीन प्रमुख आंदोलनों के कारण चर्चा में आए युवा चेहरों को साधने में जुटी है। इस क्रम में पार्टी को ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर को साधने में मदद मिली तो पार्टी नेता (दलित) जिग्नेश और पाटीदार नेता हार्दिक पटेल को साधने की ओर बढ़ रही है। कांग्रेस को पता है कि गुजरात की हार न सिर्फ विपक्ष की भावी संभावनाओं पर पानी फेरेगी, बल्कि जल्द ही पार्टी की कमान संभालने जा रहे उपाध्यक्ष राहुल गांधी के भविष्य पर भी प्रश्नचिन्ह लगा देगी। कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं का अंदरखाते मानना है कि वह इस चुनाव में भाजपा को सत्ता से बेदखल शायद न कर सके, लेकिन सीटों की संख्या बढ़ी तो इसे राहुल के नेतृत्व में पार्टी की मजबूती के संकेत के रूप में लिया जाएगा। राज्यसभा चुनाव में सोनिया के करीबी अहमद पटेल की जीत से पार्टी का मनोबल बढ़ा है। अल्पेश ठाकोर के साथ आने से हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी के जुड़ने की संभावना से समीकरण बदल रहा है। गुजरात के प्रभारी व पार्टी महासचिव अशोक गहलोत ने पार्टी हाई कमान द्वारा राजस्थान से बाहर दी गई जिम्मेदारी को निभाने में पूरी ताकत लगा रखी है। यह चुनाव तय करेगा कि पीएम मोदी की ताकत और बढ़ेगी या यहां से घटेगी। इस चुनाव में भाजपा का गुजरात मॉडल भी दांव पर है। कुल मिलाकर घमासान होगा, देखें किसका पलड़ा भारी होता है? अगर सर्वेक्षणों की बात करें तो वह भाजपा को जिताए बैठे हैं?

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