Sunday 29 October 2017

बॉलीवुड में अब सितारे नहीं, कहानी और पटकथा चलेगी

हमारे जीवन में पैसे के मूल्य व महत्व को लेकर पिछले 60 सालों में क्या-क्या परिवर्तन आए हैं इसका हमें अपनी प्रदर्शित हिन्दी फिल्मों से थोड़ा-सा पता चलता है। आजादी के बाद बॉलीवुड में कई परिवर्तन हुए हैं। दर्शकों की पसंद बदली है, फिल्मों का कंटेंट बदला है। अगर हम 50 60 के दशकों पर गौर करें तो नायक गरीबी से पैदा होता या गरीबी उस पर थोप दी जाती और उसके हीरो होने का सबूत यह होता कि वह अकसर सिर्फ इतना कमाता कि जिन्दा रह सके और ऐसा करने में वह हमेशा ईमानदार रहता। फिल्म की पृष्ठभूमि ग्रामीण हो या शहरी, यही बात लागू होती थी। पैसा सिर्फ विलेन या खलनायक के पास होता था, जो रईस बने रहने व शोषण करने के लिए हर हथकंडा अपनाता था। फिल्म के कंटेंट पर, कहानी पर ज्यादा ध्यान रहता था बनिस्पत उसकी बॉक्स ऑफिस पर। पर आज के युग में सब बदल रहा है। कहानी, क्रिप्ट पर ध्यान कम है, स्टारों पर पैसों की कमाई पर ज्यादा है। आज फिल्म उद्योग करोड़ों रुपए का धंधा बन गया है। पर अगर हम इस वित्तवर्ष की पहली छमाही बॉलीवुड के लिए बॉक्स ऑफिस के लिहाज से नजर डालें तो पाएंगे कि इसमें काफी सुस्ती है। इस दौरान केवल सात फिल्में ही हिट्स की श्रेणी में दाखिल हो पाईं, जबकि करीब 70 हिन्दी फिल्में एक अप्रैल से 30 सितम्बर के दौरान रिलीज हुईं। इनमें ए और बी दोनों कैटेगरी की फिल्में शामिल हैं। इससे भी अहम बात यह है कि खान (सलमान और शाहरुख) दोनों ही सिनेमा हॉल्स तक दर्शकों को नहीं ला पाए। सलमान की ट्यूबलाइट और शाहरुख की जब हैरी मेट सेजल को दर्शकों से ठंडा रिस्पांस मिला। जिन फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया उनकी कहानी, क्रिप्ट जबरदस्त थी। केवल टॉयलेट ः एक प्रेम कथा और जुड़वा-2 में ही अक्षय कुमार और वरुण धवन जैसे बड़े कलाकार थे। अन्य हिट फिल्मों में हिन्दी मीडियम, शुभ मंगल सावधान, बरेली की बर्फी, सचिन ः अ बिलियन ड्रीम्स, न्यूटन और लिपस्टिक अंडर माय बुर्का में बड़े सितारे नहीं थे। धर्मा प्रॉडक्शन के सीओ अपूर्व मेहता ने कहाöफिल्म इंडस्ट्री के लिए 2017 एक ऐतिहासिक साल रहा है। इसने साबित कर दिया कि केवल स्टार पॉवर ही किसी फिल्म की सफलता की गारंटी नहीं है। हमने देखा है कि आडियंस अलग-अलग तरह की फिल्मों को आज स्वीकार कर रही है, सीधे तौर पर कंटेंट पूरी तरह से बॉक्स ऑफिस का बादशाह बनकर उभरा है। पिछले कुछ समय से हिन्दी फिल्मों की प्रॉड्क्शन व टेक्निकल स्किल पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। बाहुबली में हमने जो टेक्निकल इफैक्ट्स देखे वह किसी भी हॉलीवुड पिक्चर से बराबरी करते हैं। फिल्म का साइज और स्केल अब अहमियत नहीं रखते। जब तक हमारे पास अच्छी कहानी नहीं होगी, जिसे अच्छे से कहा जाए, तब तक दर्शक किसी फिल्म को तवज्जो नहीं देंगे। दर्शकों ने न केवल खान को खारिज किया, बल्कि उन्होंने ए-लिस्टर्स की दूसरी फिल्मों को भी बुरी तरह नकार दिया। इनमें अमिताभ बच्चन की सरकार-3, सुशांत सिंह की राब्ता, सिद्धार्थ मल्होत्रा की ए जेंटलमैन और सोनाक्षी सिन्हा की नूर शामिल हैं। दर्शक सितारों की बजाय अच्छे कंटेंट को अब पसंद करते हैं। लोग या तो जबरदस्त पटकथा वाली फिल्म चाहते हैं या फिर बेहतरी विजुअल इफैक्ट्स को पसंद करते हैं। फिल्मों में म्यूजिक महत्वपूर्ण है पर अच्छा म्यूजिक भी फिल्म की सफलता की गारंटी नहीं देती। इस साल की पहली छमाही में फ्लॉप होने वाली अन्य फिल्मों में बेगम जान, मेरी प्यारी बिन्दु, मॉश, जग्गा जासूस, पोस्टर ब्वॉय, सिमरन, डैडी, लखनऊ सेंट्रल, भूमि, हसीना दारकर, बादशाहो, मुन्ना माइकल और हॉफ गर्लफ्रेंड प्रमुख हैं। फिल्म वाले देश की राजनीति व राजनीतिक मुद्दों पर कड़ी नजर रखते हैं। खासकर दक्षिण भारत में। वह जनता को प्रभावित करने वाले विवादास्पद मुद्दों को भी दर्शाने से कतराते नहीं। हाल ही में दक्षिण भारत के फिल्म अभिनेता विजय की फिल्म पर्सल इस साल की सबसे बड़ी तमिल रिलीज मानी जा रही है। फिल्म ने तमाम विवादों के बावजूद बॉक्स ऑफिस पर पहले तीन दिनों में ही करीब 100 करोड़ रुपए कमा लिए। खास बात यह है कि विजय की चार फिल्में सौ करोड़ क्लब में शामिल हो चुकी हैं। यही नहीं, तमिलनाडु में यह फिल्म सुपर स्टार रजनीकांत की कव्वाली के रिकार्ड को पार कर चुकी है। वहीं फिल्म में जीएसटी से जुड़ा सीन विवादों में है। इसमें हीरो विजय कह रहे हैं ः सिंगापुर में सात प्रतिशत जीएसटी है, फिर भी वहां मुफ्त मेडिकल सुविधाएं हैं। भाजपा के लोगों को यह डायलॉग गवारा नहीं। भाजपा नेता इस दृश्य को हटाने की मांग कर रहे हैं। पर सवाल यह है कि जब सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म को क्लियरेंस दे दी है तो अब आंदोलन का मतलब क्या? कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, उनके वरिष्ठ सहयोगी पी. चिदम्बरम, द्रमुक के कार्यकारी अध्यक्ष एमके स्टालिन, जाने-माने अभिनेता कमल हासन, तमिल फिल्म प्रोड्यूसर्स परिषद और तमिल सिनेमा इंडस्ट्री के प्रतिनिधियों ने हालांकि इस मुद्दे पर फिल्म से जुड़े लोगों का समर्थन किया है। यह अच्छी बात है कि दर्शक अब सितारों से ज्यादा फिल्म की कहानी, पटकथा इत्यादि को पसंद करने लगे हैं। इससे हमारी फिल्मों का स्तर बढ़ेगा।

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