एक ऐतिहासिक फैसले
में सऊदी अरब में महिलाओं को ड्राइविंग की इजाजत मिल गई है। दुनिया में सऊदी अरब एकमात्र
ऐसा देश था जिसमें महिलाओं के गाड़ी चलाने पर प्रतिबंध लगा हुआ था। मंगलवार को आया
शाही आदेश अगले ग्रीष्म से लागू होगा लेकिन महिलाओं द्वारा गाड़ी चलाने के अधिकार के
लिए आंदोलन शुरू करने के तकरीबन 30 साल
बाद यह फैसला आया है। सऊदी अरब में महिलाओं के गाड़ी चलाने पर प्रतिबंध पहले चलन के
रूप में था, जिसे यहां की सरकार ने 1990 में कानूनी रूप दे दिया। यहीं से इसका विरोध शुरू हुआ। महिलाओं को ड्राइविंग
का हक दिलाने के लिए दुनियाभर में प्रदर्शन किए गए थे। पहली बार छह नवम्बर
1990 को 47 महिलाओं ने सार्वजनिक रूप से इस कानून
का बहिष्कार किया। उन्होंने विरोध में रियाद प्रांत की सड़कों पर गाड़ी चलाई। जिसके
बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद वरिष्ठ इस्लामिक विद्वानों की परिषद ने
फतवा जारी कर महिलाओं के ड्राइविंग पर रोक लगा दी। फतवे में महिलाओं के ड्राइविंग को
अशुभ और नकारात्मक परिणामों को आमंत्रण देने वाला बताया गया था। यह कहा गया कि इससे
महिलाओं की नजदीकी पुरुषों के साथ बढ़ेगी। वे विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षित होंगी।
इसका विरोध करने वाली महिलाओं को गिरफ्तार किया जाने लगा और उनके पासपोर्ट तक जब्त
किए जाने लगे। इसके बावजूद महिलाएं इस कानून के खिलाफ आवाज उठाती रहीं। विरोध ने
2011 में अभियान का रूप ले लिया। अभियान का नाम दिया गया वूमैन टू ड्राइव
मूवमेंट। अभियान के तहत दर्जनों महिलाओं ने गाड़ी चलाते हुए अपना वीडियो बनाया और उसे
सोशल मीडिया पर शेयर किया। इसके बाद सोशल मीडिया पर अभियान फैलता चला गया। इस बीच
2011 में एक सरकारी रिपोर्ट जारी की गई जिसमें कहा गया कि महिलाओं को
अगर ड्राइविंग की इजाजत दी जाती है तो इससे उनकी वर्जिनिटी खत्म हो जाएगी। यह रिपोर्ट
सऊदी अरब के शूरा प्रांत ने जारी की थी। महिलाओं के विरोधी स्वर तेज होने लगे। उनका
कहना था कि प्रतिबंध की मूल वजह है कि सरकारें चाहती हैं कि महिलाओं को पुरुषों की
देखरेख में रखा जाए और उन्हें आजाद न किया जाए। पुरुषों को भी महिलाओं की इस आजादी
पर आपत्ति थी। तीन अक्तूबर 2011 को बीबीसी से बात करते हुए
25 साल के युवा नवाफ ने कहा थाöअगर महिलाओं को
ड्राइविंग की इजाजत दी जाएगी तो वह अपनी मर्जी से कहीं भी जा सकती हैं। यह पाबंदी सऊदी
अरब की नहीं बल्कि इस्लाम को बचाने के लिए है। आज वह ड्राइविंग की इजाजत मांगेंगीं।
कल छोटे कपड़े पहनने की इजाजत मांगने लगेंगीं। महिलाएं सोशल मीडिया पर लामबंद होना
शुरू हुईं। फेसबुक पर ड्राइविंग के समर्थन में कई पेज बनाए गए। वूमैन टू ड्राइव इनमें
से प्रमुख फेसबुक पेज था। अभियान ट्विटर और यूट्यूब पर भी अपने पांव पसारने लगा।
26 अक्तूबर 2013 को एक नया अभियान शुरू किया गया
जिसका समर्थन 11 हजार महिलाओं ने किया। धीरे-धीरे अभियान को पुरुषों का भी साथ मिलने लगा। महिलाओं के बढ़ते विरोध ने सऊदी
शाही सरकार को इस पर सोचने को मजबूर कर दिया और अंतत उन्हें ड्राइविंग की इजाजत दी
गई। आदेश के मुताबिक टैफिक नियमों के कई प्रावधानों को लागू किया जाएगा जिसमें महिलाओं
और पुरुषों के लिए एक जैसे ड्राइविंग लाइसेंस जारी करना भी शामिल है। सऊदी अरब सामाजिक
कार्यकर्ता लुजैन अल हकलौल को एक दिसम्बर 2014 में कार चलाने
के आरोप में सऊदी अरब पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। इसके विरोध में पेशे से पत्रकार
मायसा अल अमौदी भी हकलौल के समर्थन में गाड़ी चलाती हुए सीमा पर जा पहुंची और पुलिस
ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया। दोनों को जेल में बंद कर दिया गया। उस दौरान कोर्ट
ने यह आदेश दिया था कि इन महिलाओं पर रियाद की उस अदालत में मुकदमा चलाया जाए जो आतंकवादी
मामलों को देखती है। इसके बाद अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थान एमनेस्टी इंटरनेशनल
समेत पूरी दुनिया के मानवाधिकार संगठनों ने सऊदी अरब की तीखी आलोचना की। आखिरकार
73 दिनों की कैद के बाद लुजैन को रिहा किया, लेकिन
तब तक महिलाओं के अधिकार का मामला एक मुहिम बन चुका था। गाड़ी चलाने के लिए बहरहाल
दोनों महिलाओं पर आतंकवादी निरोधी अदालत में मुकदमा चलेगा। 25 साल की लुजैन और 33 साल की अमौदी आदेश के खिलाफ अपील
करेंगी। सारी दुनिया में सऊदी सरकार की महिलाओं को ड्राइविंग करने की इजाजत देने की
तारीफ हो रही है।
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