Sunday, 29 April 2018

कास्टिंग काउच से संसद भी अछूती नहीं?

भारत के फिल्म जगत यानि बॉलीवुड में तो हमने कास्टिंग काउच के बारे में सुना है पर पहली बार हम यह सुन रहे हैं कि हमारी संसद में भी कास्टिंग काउच है। और यह बात और किसी ने नहीं कही बल्कि खुद एक कांग्रेसी नेता ने कही है। ताजा विवाद बॉलीवुड की जानी-मानी कोरियोग्राफर सरोज खान (69) ने टेलीविजन नेटवर्प और सोशल मीडिया पर वायरल हो रही मीडिया के साथ उनकी बातचीत के वीडियो के सामने आने पर कहा, यह चला आ रहा है बाबा आदम के जमाने से। हर लड़की के ऊपर कोई न कोई हाथ साफ करने की कोशिश करता है। सरकार के लोग भी करते हैं। तुम फिल्म इंडस्ट्री के पीछे क्यों पड़े हो? वो कम से कम रोटी तो देती है। रेप करके छोड़ तो नहीं देती। एक दो-तीन और चोली के पीछे जैसे गीतों के लिए मशहूर नेशनल अवॉर्ड विजेता कोरियोग्राफर ने कहा कि सुरक्षित रहने और ऐसी स्थितियों से बचने की जिम्मेदारी महिलाओं की है और फिल्म उद्योग को निशाना न बनाएं। उन्होंने कहाöयह लड़की के ऊपर है कि तुम क्या करना चाहती हो। तुम उसके हाथ में नहीं आना चाहती तो नहीं आओगी। तुम्हारे पास आर्ट है तो तुम क्या बेचोगी अपने आपको? फिल्म इंडस्ट्री को कुछ मत कहना, वो हमारा माई-बाप है। इस बयान से शायद प्रोत्साहित होकर कांग्रेसी नेता रेणुका चौधरी भी इस विवाद में कूद गईं। उन्होंने कहा कि हर जगह कास्टिंग काउच होता है और संसद भी इससे अछूती नहीं है। रेणुका चौधरी ने कहा कि कास्टिंग काउच की समस्या सिर्प फिल्म इंडस्ट्री में नहीं है, यह हर क्षेत्र में हो रहा है। यह कड़वी सच्चाई है। कांग्रेस नेता ने कहाöऐसा मत समझिए कि संसद इससे अछूती है या अन्य कार्यस्थल इससे बचे हुए हैं। यह ऐसा समय है जब भारत ने आवाज उठानी शुरू की है और कहा हैöमी टू। यानि, हम भारतीय अब कास्टिंग काउच को लेकर खुलकर सामने आ रहे हैं और बता रहे हैं कि उनके साथ भी ऐसा हुआ है। चौधरी ने कहाöसंसद में कास्टिंग काउच का मेरा आरोप गलत नहीं है। हमारे जनप्रतिनिधि इसी समाज से आते हैं और बाद में किसी महिला का अपमान करते हैं तो इससे समस्या खड़ी होती है। उन्होंने याद दिलाया कि कैसे पीएम मोदी ने राज्यसभा में उनकी हंसी पर टिप्पणी की थी और कहा था कि उनकी हंसी सुनकर उन्हें रामायण सीरियल की याद आती है। इसके बाद गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने वीडियो ट्वीट किया था जिसका आशय था कि उनकी हंसी रामायण की पात्र सुर्पनखा की तरह बताई जा रही है। श्रीमती रेणुका चौधरी अपने बोल्ड नजरिये और बयानों के लिए मशहूर हैं। संसद में कास्टिंग काउच का मतलब हम तो समझ नहीं सके शायद रेणुका जी और विस्तार से बताएंगी।
-अनिल नरेन्द्र


मौत के यह रेलवे फाटक

साफ-सुथरी धुली यूनिफॉर्म पहनकर, पीठ पर बस्ता और हाथ में पानी की बोतल लेकर अपने घरों से स्कूल के लिए निकले नौनिहाल कुछ ही देर में खून से लथपथ बेजान पड़े थे। बच्चों के मां-बाप पर तो दुख का पहाड़ तो टूटा ही मौके पर पहुंचे हर शख्स की आंख नम थी। 13 स्कूल के बच्चे स्कूल की बजाय मौत के दरवाजे पर पहुंच गए जब एक पैसेंजर ट्रेन ने उत्तर प्रदेश के बेहपुरवा में बिना फाटक वाली क्रॉसिंग पर इन बच्चों की स्कूल वैन को टक्कर मारी और मासूमों की जिन्दगी आरंभ होने से पहले ही खत्म हो गई। डिवाइन मिशन स्कूल में पढ़ने वाले इन बच्चों के स्कूल बैग, कॉपी-किताबें, पानी की बोतलें और टिफिन उनके मृत शरीर के आसपास बिखरे पड़े थे। उनकी सफेद यूनिफॉर्म उन्हीं के खून से लाल हो चुकी थी। सुबह करीब सवा सात बजे का वक्त था जब यह हादसा हुआ। इस टक्कर में हुई बच्चों की मौत आपराधिक लापरवाही के साथ ही संस्थागत नाकामी का भी मामला है। यदि वैन के ड्राइवर ने कान में ईयरफोन लगा रखे थे और उसने वहां मौजूद गेट मित्र की चेतावनी को नजरंदाज कर दिया था, इसके बावजूद सच यह है कि ऐसे हादसों के लिए मानवरहित रेलवे फाटक कहीं अधिक जिम्मेदार हैं। दो साल पहले जुलाई 2016 में उत्तर प्रदेश के ही भदोही में भी ऐसी ही एक स्कूल वैन मानवरहित रेलवे फाटक पर एक ट्रेन से टकरा गई थी, जिसमें अनेक बच्चों की मौत हो गई थी और उस समय भी यह बात सामने आई थी कि उस वाहन के ड्राइवर ने भी गेट मित्र की चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया था। इसका मतलब है कि रेलवे ने जो गेट मित्र तैनात करने की व्यवस्था की है, वह कारगर साबित नहीं हो रही है। यह भयानक हादसा बताता है कि रेलवे प्रशासन और राज्य प्रशासन किस कदर अपनी जिम्मेदारियों से आंखें मूंदे बैठे हैं। रेलमंत्री ने पिछले दिसम्बर में राज्यसभा में बताया था कि अगले साल यानि 2018 में गणेश चतुर्थी तक सभी मानवरहित फाटकों को खत्म कर दिया जाएगा। लेकिन इन मानवरहित रेलवे फाटकों पर आए दिन जिस तरह हादसे हो रहे हैं, उससे रेलवे प्रशासन के दावे और वादों पर सवालियाई निशान उठता है। वर्ष 2012 में अनिल काकोदर समिति ने पांच साल के भीतर सभी मानवरहित फाटकों को हटाने को कहा था। दूसरी ओर रेलवे का कहना है कि वहां तैनात क्रॉसिंग मित्र ने स्कूल वैन को रोकने को कहा, लेकिन उसका चालक ईयरफोन पर गाना सुन रहा था, इसलिए वैन को रोका नहीं। अगर सचमुच ऐसा है तो देशभर के स्कूलों के लिए यह हादसा एक सबक होना चाहिए कि वे चालकों को इसका सख्त आदेश दें कि गाड़ी चलाते समय ईयरफोन का उपयोग न करें। आखिर एक लापरवाही ने इतने नौनिहालों को हमसे छीन लिया। हालांकि सच्चाई तो जांच रिपोर्ट के बाद ही पता चलेगी। ऐसे हादसों से निपटने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने उपग्रह आधारित चिप प्रणाली विकसित की है जो मानवरहित रेलवे फाटकों पर लोगों को आगाह करेगी। फाटक से करीब पांच सौ मीटर पहले टूटर बजने लगेगा और फाटक के नजदीक लोग सचेत हो जाएंगे। लेकिन रेलवे इसे कब इस्तेमाल करेगा, यह कोई नहीं जानता। इस घटना ने स्कूली सुरक्षा मानकों को ठेंगा दिखा दिया है। वरना स्कूल क्या ऐसे लापरवाह ड्राइवर को रखता, जो गेट मित्र के मना करने के बाद भी फाटक पार करने लगा और हादसे को न्यौता दे बैठा। ज्यादातर छोटे शहरों और कस्बों में जहां रेलवे लाइनें गुजरती हैं, वहां सुरक्षा के लिहाज से कोई बंदोबस्त नहीं है। रेलवे को आधुनिक बनाने की बात हो रही है। बुलैट ट्रेन चलाने की बात हो रही है, यात्री सुविधाओं को प्रौद्योगिकी से लैस भी किया जा रहा है लेकिन मौजूदा रेल नेटवर्प की सुरक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। अगर इतने बड़े हादसे से भी रेलवे प्रशासन की नींद नहीं टूटती तो भगवान ही यात्रियों का मालिक है।


Saturday, 28 April 2018

अर्श से फर्श पर गिरने की आसाराम की कहानी

हमें न्यायालय पर पूरा भरोसा था, जो सच साबित हुआ है। हमारी बेटी बहुत हिम्मत वाली है। उसकी हिम्मत से ही हम इस ढोंगी बाबा को उसके किए की सजा दिला पाए हैं। यह कहना है पीड़िता के पिता का और यह बात कही उन्होंने आसाराम बापू के बारे में। बुधवार को जोधपुर की विशेष अदालत ने कथित संत आसाराम को एक नाबालिग लड़की से रेप करने के मामले में आजीवन कैद और एक लाख का जुर्माने की सजा सुना दी। एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के मामले में हुई गिरफ्तारी से आसाराम बापू का मायालोक तो करीब पांच साल पहले ही दरक गया था, अब उम्रकैद ने उनके गुनाहों को बाकी सजा काटने का पूरा इंतजाम कर उनके कथित आध्यात्मिक साम्राज्य के ताबूत में आखिरी कील ठोक दी है। पोक्सो समेत कुल 14 धाराओं में दोषी करारा दिए गए आसाराम को पूरी जिन्दगी जेल में बितानी होगी। स्पेशल जज ने कहाöआसाराम का अपराध घिनौना है, उसे मौत होने तक जेल में रहना होगा। यह निर्भया केस के बाद हुए कानूनी बदलाव का ही नतीजा है कि आसाराम को जिन्दगीभर के लिए जेल में रहने की सजा सुनाई गई है। आसाराम को रेप की जिन धाराओं में जीवनभर जेल की सजा हुई है, वे निर्भया केस के बाद जोड़ी गई थीं। इसके तहत गैंगरेप में 20 साल से लेकर मौत होने तक जेल में रहने का प्रावधान किया गया था। वही ऐसा शख्स रेप करता है जिस पर पीड़िता भरोसा करती थी तो 10 साल से तमाम उम्र का नियम बनाया गया। इन दोनों ही धाराओं में आसाराम को सजा दी गई है। अदालत का फैसला सुनते ही आसाराम रोने लगा, पगड़ी उतारकर 10 मिनट कुर्सी पर बैठा रहा। यह आसाराम के विरुद्ध अय्याशी का एक अकेला मामला नहीं है। बलात्कार के एक मामले में गुजरात में जारी सुनवाई पर फैसला आने ही वाला है। आसाराम पर हत्या के भी मामले हैं। संत कहलाते हुए भी उनके लिए घृणित कुकृत्यों पर अदालतों के कठोर रुख को देखते हुए आसाराम का अब छूटना असंभव लगता है यानि कि उनके गुनाहों ने वह गत बना दी कि वे अपनी स्वाभाविक गति को प्राप्त हो गए हैं और होते जा रहे हैं। इससे पहले गुरमीत राम रहीम के मामले में हरियाणा के पंचकुला में उनके कथित भक्तों की ओर से जो बवाल काटा गया था, उसे देखते हुए जोधपुर प्रशासन ने कड़ी सुरक्षा का इंतजाम किया था। आसाराम भी उन कथित धर्मगुरुओं की श्रेणी में आते हैं जिनके तमाम घटनाओं के बावजूद अनुयायियों के एक हिस्से में उनकी आस्था बनी रहती है। देश में ऐसे बाबाओं, संतों, महात्माओं की कमी नहीं है जो अपने शिष्यों की नजर में लगभग भगवान का स्थान पाकर भी घृणित कृत्यों को अंजाम देते रहते हैं। शिष्यों का समूह इन कथित धर्मगुरुओं के आभामंडल से इस कदर प्रभावित रहता है कि उनके बारे में कुछ भी नेगेटिव सुनने को तैयार नहीं होता। पर असुमल हरापालानी उर्प आसाराम का आभामंडल इनसे कहीं बड़ा था और उनके भक्तों में नामचीन राजनीतिक शख्सियतों से लेकर दिग्गज कारोबारी घराने के लोग तक शामिल थे। एक राज्य से दूसरे राज्य में पांव फैलाना, जमीन कब्जा कर आश्रम बनवाने और गैर-कानूनी धंधा करने से लेकर आपत्तिजनक गतिविधियों में लिप्त होने के बावजूद लंबे समय तक आसाराम आध्यात्मिक गुरु का चोला पहनकर लोगों को भरमाते रहे तो इसके पीछे ताकतवर भक्तों का हाथ भी था। जबकि आसाराम की कलई खोलने वाले पत्रकार से लेकर उन्हें गिरफ्तार करने की हिम्मत दिखाने वाली आईपीएस अधिकारी उनके और उनके भक्तों के निशाने पर रहे। आसाराम की हवस का शिकार बनी उस नाबालिग लड़की की बात करें तो उसका पूरा परिवार आसाराम में ऐसी श्रद्धा रखता था कि जब उस बच्ची ने आसाराम की गलत हरकतों की शिकायत की तो मां-बाप ने उलटा उसे ही डांट दिया। तारीफ होनी चाहिए उस लड़की के साहस की, जो मां-बाप की डांट-डपट के बावजूद आसाराम की काली करतूतों को बर्दाश्त करने को राजी नहीं हुई। वह न केवल आसाराम के चंगुल से भाग निकली बल्कि अपने मां-बाप को भी आसाराम की सच्चाई का यकीन दिलाया और उन्हें यह लंबी, कठिन लड़ाई लड़ने के लिए तैयार किया। आसाराम पर रेप के और मामले भी चल रहे हैं। इन मुकदमों के दौरान न केवल पीड़ित परिवारों को धमकाने की कोशिश होती रही है बल्कि गवाहों पर जानलेवा प्रयास होते रहे हैं। आसाराम प्रकरण वास्तव में धर्म, धर्मभीरुता का विवेकहीन विशाल अंध परिदृश्य, भक्तों की श्रद्धा-आस्था का दोहन करते ईश्वर के यह तथाकथित प्रतिनिधि, उनसे सत्ता के आशीर्वाद या कहें भक्तों का एकमुश्त वोट एक ही ठोर पा लाने की लालसा में भंवर जलाती हमारी राजनीति और उसकी देखादेखी बंदगी करती प्रशासनिक व्यवस्था का निर्लज्ज विमर्श है। इसने समुदायों के सही और गलत के विवेक को अस्थिर ही नहीं कभी-कभी गलत रास्ते पर डाला है। इस पंक्ति में आसाराम ही नहीं है, उनके साथ बेटे नारायण स्वामी, राम रहीम व दर्जनों अन्य कथाकथित धर्मगुरु शामिल हैं। ऐसे में अभिभावकों से यही अपील की जा सकती है कि वे इन कथित संत-महात्माओं में चाहे जितनी आस्था भी रखें, पर कम से कम अपने नाबालिग बच्चों को इनसे कोसों दूर रखें। उन्हें पढ़ाई-लिखाई के जरिये अपना व्यक्तित्व विकसित करने का पूरा मौका दें ताकि अपने जीवन से जुड़े बड़े फैसले वे खुद ही ले सकें। आम लोग ही सर्वशक्तिमान हैं और वही इन ढोंगियों की पोल खोल रहे हैं।

-अनिल नरेन्द्र

Friday, 27 April 2018

जब हमारे माननीय ही महिला अपराध के आरोपी हों?

 महिलाओं और बच्चियों के प्रति बढ़ते अपराध के खिलाफ पूरे देश व समाज में गुस्सा है और सख्त कानून बनाने की मांग कर रही है। एसोसिएशन ऑफ डेमोकेटिक रिफॉर्म की हाल में प्रकाशित रिपोर्ट की मानें तो जिन विधायिकाओं पर कानून बनाने की जिम्मेदारी है, उनमें 48 माननीय ऐसे बैठे हैं जो खुद महिलाओं के खिलाफ अपराध के मुकदमों का सामना कर रहे हैं। चिन्ताजनक स्थिति यह है कि तीन सांसद (दो लोकसभा और एक राज्यसभा) महिला अपराध के आरोपी हैं। 45 विधायक महिला उत्पीड़न के आरोपी होने के बावजूद विभिन्न विधानसभाओं में मौजूद हैं। तीन विधायकों पर तो बलात्कार जैसे गंभीर आरोपों के तहत मुकदमे चल रहे हैं। महाराष्ट्र विधानसभा में 12 विधायक मौजूद हैं जिन पर महिला अपराध का मुकदमा चल रहा है। पश्चिम बंगाल में ऐसे विधायकों की संख्या 11 है। बिहार विधानसभा में दो विधायक महिलाओं के खिलाफ अपराध का मुकदमा लड़ रहे हैं। ओडिशा और आंध्र विधानसभा में पांच-पांच दागी विधायक हैं तो झारखंड और उत्तराखंड में तीन-तीन विधायक हैं। कैसे-कैसे अपराधöमहिलाओं के सम्मान को क्षति पहुंचाने की कोशिश, अपहरण, महिला को जबरदस्ती शादी के लिए मजबूर करना। दुष्कर्म, पति या रिश्तेदारों द्वारा प्रताड़ित करना, वेश्यावृत्ति के लिए नाबालिग की खरीद-फरोख्त आदि। कोई भी राजनीतिक दल ऐसे अपराधों में पीछे नहीं है। पिछले पांच सालों में 327 महिला अपराध करने के आरोपियों को विभिन्न पार्टियों ने टिकट दिए। 118 प्रत्याशी, महिलाओं के खिलाफ अपराध का मुकदमा लड़ते हुए चुनाव में उतरे। पांच वर्षों में पार्टियों ने 26 ऐसे प्रत्याशियों को मैदान में उतारा जिन पर दुष्कर्म का गंभीर मामला चल रहा था। रिपोर्ट में बताया गया कि उन्होंने यह आंकड़े कैसे निकाले। 776 सांसदों में से 768 सांसदों की ओर से हलफनामा जमा कराया गया। इस हलफनामे का विश्लेषण किया गया। 4120 विधायकों में से 4077 विधायकों द्वारा दिए गए हलफनामे की भी बारीकी से जांच की गई और निष्कर्ष निकाला गया। यह अत्यंत दुख की बात है कि जब हमारे जनप्रतिनिधि ही ऐसे चरित्र के होंगे तो यह देश को न्याय कैसे दिला सकेंगे? जनप्रतिनिधि हजारों-लाखों मतदाता को रिप्रसेंट करता है और उसका चरित्र बेदाग होना चाहिए, कम से कम महिला उत्पीड़न के मामले में तो होना ही चाहिए। पर दुखद बात यह है कि हर राजनीतिक दल एक ही बात को देखता है कि यह प्रत्याशी चुनाव जीत सकता है या नहीं? अगर वह जीत सकता है तो उसके सारे अपराध नजरंदाज कर दिए जाते हैं। इसमें चुनाव आयोग को पहल करनी होगी। ऐसे गंभीर अपराधियों को चुनाव लड़ने से वंचित किया जाना चाहिए।
-अनिल नरेन्द्र

Thursday, 26 April 2018

55 महीने में सबसे महंगा पेट्रोल-डीजल

मुहावरा तो तेल की धार देखने का है, लेकिन हमारे यहां अक्सर तेल की धार ही देखी जाती है। पेट्रोल की कीमतें गत शुकवार को पिछले 55 महीने के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गईं। पेट्रोल 74.40 रुपए पति लीटर और डीजल की दरें सर्वाधिक उच्च स्तर पर 65.65 रुपए पति लीटर पहुंच गईं। इससे उपभोक्ताओं के ऊपर पड़ रहे दबाव को कम करने के लिए उत्पाद शुल्क में कटौती की मांग तेज होना स्वाभाविक ही है। डीजल की कीमत ने तो शुकवार को इतिहास बना दिया। इस समय जिस कीमत पर बाजार में डीजल मिल रहा है, उस कीमत पर वह इससे पहले कभी नहीं मिला। सार्वजनिक तेल वितरण कंपनियां पिछले साल जून से रोजाना पेट्रोल-डीजल की कीमतें संशोधित कर रही हैं। रविवार को जारी अधिसूचना के अनुसार पेट्रोल-डीजल की कीमतें 19-19 पैसे पति लीटर बढ़ा दी गई हैं। अधिसूचना में कहा गया है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कीमतें बढ़ने से घरेलू बाजार में भी वृद्धि करनी पड़ी है। इससे पहले शनिवार को भी पेट्रोल की कीमतें 13 पैसे पति लीटर और डीजल की कीमतें 15 पैसे पति लीटर बढ़ाई गई थीं। आम जनता की नजर से देखें तो आपत्ति यही है कि जब दुनिया के बाजारों में कच्चे तेलों की कीमत बहुत कम थी तो इसका लाभ भारतीय उपभोक्ताओं को नहीं मिला। शुरू में दाम भले ही घटे हों, लेकिन बाद में भी दुनिया के बाजार में इसकी कीमत भले ही जितनी भी नीचे आई हो, हमारे यहां इस पर भार बढ़ाकर पेट्रोल और डीजल के दाम को जस का तस रहने दिया गया। यानी फायदा तो मिला नहीं, अब जब दाम बढ़ रहे हैं तो इसका घाटा जरूर भारतीय उपभोक्ताओं को झेलना पड़ रहा है, एक उम्मीद यह बनी थी कि अगर पेट्रोल जीएसटी के दायरे में आ जाए तो इस पर लगने वाले तरह-तरह के टैक्स खत्म हो जाएंगे और फायदा उपभोक्ताओं को मिलेगा। लेकिन केंद्र और राज्यों की सरकारें अभी इसके लिए तैयार नहीं दिख रही हैं। वैश्विक स्तर पर कूड की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। शुकवार को ब्रैंट कूड ऑयल की कीमत 72.56 डॉलर पति बैरल पर पहुंच गई। यह कीमत 2013 के मुकाबले में सबसे ज्यादा है। उस समय यह 100 डॉलर पति बैरल पहुंच गई थी। यह सब कच्चे तेल की कम सप्लाई की वजह से हो रहा है। इसके अलावा अमेरिका और यूरोपियन यूनियन की ओर से ईरान पर फिर पतिबंध लगाने की संभावना और सीरिया में बढ़ते संघर्ष से कूड की सप्लाई और कम हो सकती है, इससे कूड ऑयल की कीमतों में और इजाफा होने की आशंका बढ़ती जा रही है। अगर केन्द्र और राज्य सरकारों ने पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में नहीं लिया तो उपभोक्ताओं की कमर और टूट जाएगी।

-अनिल नरेन्द्र

कर्नाटक में त्रिशंकु सरकार?

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में वोटिंग को महज 20 दिन बचे हैं। कर्नाटक में 12 मई को वोटिंग है। भाजपा-कांग्रेस और जेडी (एस) के उम्मीदवारों में नामांकन भरने की होड़ लगी हुई है। मंगलवार को इसका आखिरी दिन था। कांग्रेसी सीएम सिद्धरमैया 40 साल में कर्नाटक के पहले सीएम हैं जिन्होंने 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा किया है। इस दौरान 15 सीएम बने हैं। 5 बार राष्ट्रपति शासन लगा है। सिद्धरमैया का दावा है कि वह 165 चुनावी वोटों में से 156 पूरे कर चुके हैं। इस बार भी हर चुनाव की तरह लोक-लुभावने मुद्दे हैं। अब तक  विभिन्न न्यूज चैनल और एजेंसियां अपने-अपने ओपिनियन पोल जारी कर चुके हैं। अब तक 5 बड़े पोल आए हैं। इनमें से 4 में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलता दिख रहा है। सभी ने राज्य में त्रिशंकु सरकार का दावा किया है। भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटें की टक्कर दिखाई दे रही है। हालांकि भाजपा को पिछले चुनाव से ज्यादा सीटों पर फायदा होता दिख रहा है, वहीं कांग्रेस की सीटें कम दिखाई जा रही हैं। जेडी (एस) किंगमेकर की भूमिका में नजर आ रही है, सिर्प  सी-फोर वोटर ने अपने ओपिनियन पोल में कांग्रेस को 126 सीटें दी हैं। पांचों ओपिनियन पोल का औसत देखें तो भाजपा को 87, कांग्रेस को 100 और जेडी (एस) को 40 सीटें मिलती नजर आ रही हैं। सी-फोर वोटर ने भाजपा को सबसे कम 70 व एबीपी सीएसडीएस ने सबसे ज्यादा 95 सीटें दी हैं। कांग्रेस को सबसे कम 85 सीटें एबीपी सीएसडीएस ने दी हैं। कर्नाटक विधानसभा में 224 सीटें हैं और यह छह चुनावी क्षेत्रों में बंटी हैं। कर्नाटक के 8 बड़े मुद्दे हैं। किसान ः 56 पतिशत लोग खेती पर निर्भर हैं, 2013 से 2017 तक राज्य में करीब 3515 किसान आत्म हत्या कर चुके हैं। राज्य की 56 पतिशत आबादी खेती पर निर्भर है। भ्रष्टाचार कर्नाटक  सबसे भ्रष्ट राज्य है। भाजपा ने 3 रेड्डी बंधुओं में से 2 को टिकट दिया है। कांग्रेस ने भी भ्रष्टाचार में फंसे कइयों को टिकट दिया है। 20 राज्यों में हुए सर्वे में रिश्वत लेने में कर्नाटक नम्बर वन बताया गया है। कन्नड़ पहचान अलग झंडे को मान्यता, सीएम सिद्धरमैया राज्य में हमेशा हिंदी के विरोध और कन्नड़ को पाथमिकता देने में मुखर रहे हैं। उनकी सरकार कर्नाटक के लिए अलग ध्वज के बिल को भी पास कर चुकी है। हत्याएं ः पत्रकार गौरी लंकेश और एमएम कलबुर्गी के हत्यारों को पकड़ने में सिद्धरमैया सरकार के पति लोगों में नाराजगी है। भाजपा का भी कहना  है कि उसके कार्यकर्ताओं को भी राज्य में मारा जा रहा है। अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा ः राज्य में 18 से 20 फीसदी लिंगायत वोटर हैं। वे 100 सीटों पर असर डालते हैं। सिद्धरमैया ने चुनाव से ठीक पहले लिंगायत को अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा देने का बिल पास कर पस्ताव केंद्र को भेजा है। इसका लिंगायत समूह में असर जरूर होगा। हिन्दुत्व मक्का मस्जिद ब्लास्ट पर फैसला ः राज्य में केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े हिंदुत्व के बड़े चेहरे हैं। मक्का मस्जिद ब्लास्ट में कोर्ट का फैसला भाजपा के लिए ट्रंप कार्ड बन सकता है। पार्टी कांग्रेस को घेर रही है। भाजपा ने सोमवार को आरोप लगाया कि कर्नाटक का पशासन उसे खुलकर चुनाव पचार करने नहीं दे रहा है। वह चुनिंदा तरीके से नियमों को लागू कर रही है ताकि 12 मई को होने वाले विधानसभा चुनावों में सत्ताधारी कांग्रेस के पक्ष में स्थितियां बनाई जा सकें। भाजपा के कर्नाटक मामलों के पभारी महासचिव मुरलीधर राव ने बेंगलुरू में पत्रकारों को बताया, चुनाव पचार के दौरान पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को बीआर अंबेडकर की पतिमा पर माल्यार्पण करने की इजाजत नहीं दी गई और पार्टी कार्यकर्ताओं को अपने घरों पर पार्टी के झंडे फहराने की भी इजाजत नहीं है। देखें, 12 मई को क्या होता है?

Wednesday, 25 April 2018

मसला बीसीसीआई को आरटीआई के तहत लाने का

विधि आयोग ने गत सप्ताह सिफारिश की है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के दायरे में लाया जाना चाहिए। आयोग ने आगे कहा कि यह लोक अधिकार की परिभाषा में आता है और इसे सरकार से अच्छा-खासा वित्तीय लाभ भी मिलता है। सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2016 में आयोग से इस बारे में सिफारिश करने के लिए कहा था (उसने पूछा था कि क्रिकेट बोर्ड को सूचना का अधिकार कानून के तहत लाया जा सकता है या नहीं) आयोग ने सरकार से कहा है कि बीसीसीआई को आरटीआई के तहत लाना बोर्ड को पारदर्शी बनाने की दिशा में बड़ा कदम हो सकता है। आयोग का कहना है कि बीसीसीआई सरकारी संस्था की तरह है। अन्य खेल संघों की तरह बीसीसीआई भी खेल संघ है। जब दूसरे खेल संघ आरटीआई के दायरे में आ सकते हैं तो बीसीसीआई कैसे बच सकती है? चूंकि विधि आयोग की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं होतीं इसलिए कहना मुश्किल है कि सरकार विधि आयोग की रिपोर्ट को लेकर किस नतीजे पर पहुंचती है, लेकिन यह किसी से छिपा नहीं कि संप्रग सरकार के समय भी खेल विधेयक के जरिये बीसीसीआई को जवाबदेही बनाने की पहल परवान नहीं चढ़ी थी। बीसीसीआई सूचना का अधिकार कानून के दायरे में आने से इस आधार पर बचती रही है कि वह एक निजी संस्था है। यह एक कमजोर तर्प है, क्योंकि एक तो बीसीसीआई के तहत क्रिकेटर देश का प्रतिनिधित्व करते हैं और दूसरे उसे टैक्स में रियायत के अतिरिक्त परोक्ष तौर पर सरकारी सुविधाएं भी मिलती हैं। भ्रष्टाचार और कामकाज के तरीकों को लेकर बीसीसीआई लंबे समय से विवादों में है। न्यायमूर्ति मुद्गल समिति ने 2014 में अपनी रिपोर्ट में बीसीसीआई में सुधार की जरूरत बताई थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बोर्ड में सुधार के लिए पूर्व प्रधान न्यायाधीश आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता में समिति बनाई। लोढ़ा समिति ने बोर्ड में गंभीर खामियां पाई थीं और उसे भ्रष्टाचार और राजनीतिक दखल से मुक्त करने के बारे में सिफारिश की थी। लोढ़ा समिति ने कहा था कि क्रिकेट बोर्ड एक सार्वजनिक संस्था है, समिति ने कहा था कि इसके फैसलों में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी है। तभी से बोर्ड को आरटीआई के दायरे में लाने की कवायद चल रही है। इस मामले में विधि आयोग का यह निष्कर्ष तो सही है कि अन्य खेल संगठनों की तरह बीसीसीआई भी है और उसे भी इन संगठनों की तरह सूचना का अधिकार कानून के दायरे में आना चाहिए, लेकिन इस कानून के दायरे में आने का मतलब यह कतई नहीं होना चाहिए कि देश की इस सबसे धनी खेल संस्था का सरकारीकरण होना चाहिए। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आज अगर भारतीय क्रिकेट दुनिया के शीर्ष पर है तो यह बीसीसीआई की वजह से है।

-अनिल नरेन्द्र

मोदी की लंदन यात्रा में तिरंगे का अपमान

वैसे तो जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका व इंग्लैंड की यात्रा पर जाते हैं तो भारत के प्रधानमंत्री के खिलाफ मुट्ठीभर खालिस्तानी व कश्मीरी समर्थक विरोध प्रदर्शन करते हैं। मैं बहुत साल पहले श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के साथ अमेरिका, इंग्लैंड के दौरे पर गया था। तब भी ऐसे छोटे-मोटे प्रदर्शन हुए थे। पर इस बार जब गत सप्ताह पीएम मोदी लंदन गए तो वहां का प्रदर्शन बहुत उग्र था। हजारों की संख्या में सिख और कश्मीरियों ने जमकर नारेबाजी की। लंदन में पार्लियामेंट स्क्वायर पर अलगाववादियों ने भारत के राष्ट्रध्वज को जलाने का प्रयास किया। इसके लिए ब्रिटेन के विदेश विभाग ने भारत सरकार से माफी भी मांगी है। ब्रिटिश सरकार ने इस मामले की जांच के लिए लंदन मेट्रोपोलिटन पुलिस की विशेष टीम गठित की है। इस प्रकरण का असर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लंदन प्रवास के कार्यक्रमों पर पड़ा। विदेश मंत्रालय के अनुसार प्रधानमंत्री के प्रवास की अवधि में छह घंटे की कटौती की गई। राष्ट्रमंडल देशों के प्रमुखों के शिखर सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे मोदी की 10 राष्ट्राध्यक्षों के साथ द्विपक्षीय बैठकें होनी थीं। लेकिन उन्होंने आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैलकम टर्नबुल, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और सेशल्स के राष्ट्रपति डैनी फाउरे से ही द्विपक्षीय वार्ताएं कीं और वहीं से जर्मनी रवाना हो गए। लंदन की मेट्रोपोलिटन पुलिस ने वहां भारतीय उच्चायोग को जानकारी दी है कि सिख फेडरेशन यूके और पाकिस्तानी मूल के कश्मीरी अलगाववादी अहमद की अगुवाई में सक्रिय एक गुट ने प्रदर्शन किया। करीब पांच सौ प्रदर्शनकारियों में से कई को पहचाना गया है। जल्द ही गिरफ्तारी की उम्मीद है। राष्ट्रमंडल प्रमुखों की बैठक के मौके पर लंदन के पार्लियामेंट स्क्वायर में प्रथानुसार सभी देशों के झंडे कतार से लगाए गए थे। 18 अप्रैल को खालिस्तानी और कश्मीरी अलगाववादियों के एक गुट ने वहां प्रदर्शन के दौरान तिरंगा उतारकर अपने संगठनों के झंडे लगा दिए और तिरंगे को जला दिया। जिस तरह मोदी के समर्थक उनका इंतजार कर रहे थे, उसी तरह कुछ विरोधी भी। ब्रिटेन सरकार ने हालांकि कहा है कि शांतिपूर्ण ढंग से विरोध जताना हर किसी का अधिकार है। एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते ब्रिटिश सरकार की इस दलील को खारिज तो नहीं किया जा सकता लेकिन विरोध प्रदर्शन शांतिप्रिय होना चाहिए न कि हिंसात्मक। इसका अर्थ किसी देश का ध्वज जलाना या फाड़ना नहीं हो सकता। प्रदर्शनकारी अपने हाथों में तख्तियां लिए हुए थे और इन पर जो लिखा था उसे मैं दोहराना नहीं चाहता। वैसे भी वे जो कुछ कहना चाहते थे वह उनकी तख्तियों और उनके नारों से जाहिर हो रहा था।

Tuesday, 24 April 2018

क्या अब भी जज लोया मामले पर पूर्णविराम लगेगा?

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति लोया की मृत्यु पर दायर जनहित याचिकाओं को खारिज करते हुए जो टिप्पणियां की हैं वे काफी महत्वपूर्ण हैं। न्यायालय ने कहा कि राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति और चर्चा में आने के लिए जनहित याचिकाओं का इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे मामलों पर जिसको लेकर देशभर में तूफान खड़ा किया गया उसके सन्दर्भ में यदि न्यायालय ऐसी टिप्पणी कर रहा है तो इसका मतलब यही है कि जो मुद्दा था ही नहीं, उसे जानबूझ कर संदेहास्पद बनाया गया। विवाद शायद अभी भी खत्म न हो, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपनी तरफ से जस्टिस ब्रजगोपाल हरिकिशन लोया के मामले में पूर्णविराम लगा दिया है। अदालत का कहना है कि उनका निधन जिन परिस्थितियों में हुआ, उसकी स्वतंत्र जांच कराने की कोई जरूरत नहीं है। मामले में उठाई जा रही तमाम आपत्तियों को खारिज करते हुए प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ ने उन न्यायाधीशों की गवाही को महत्वपूर्ण माना जिनका कहना था कि जस्टिस लोया का निधन हृदय गति रुक जाने के कारण हुआ था। हालांकि तमाम राजनीतिक कारणों से कई लोग उनके निधन को रहस्यमय मान रहे थे और उसके लिए काफी बड़ा अभियान चलाया जा रहा था। तकरीबन साढ़े तीन साल पहले एक विवाह समारोह के लिए नागपुर गए जस्टिस लोया को यात्रा के दौरान ही दिल का दौरा पड़ा और तब से यह मुद्दा सुर्खियों में बना हुआ है। विवाद इसलिए भी बना है कि जस्टिस लोया उन दिनों शोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे थे जिसमें एक आरोपी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी थे। पूरे मामले में यही एक ऐसा कोण है जिसने इसे संवेदनशील बना दिया और जस्टिस लोया के निधन को बाकायदा एक राजनीतिक मुद्दा बनाकर इस पर सियासत शुरू हो गई। राजनीति इतनी हुई कि एक दिसम्बर 2014 को उनके निधन से लेकर अब तक शोहराबुद्दीन का मामला पीछे चला गया और जस्टिस लोया का निधन मुख्य मामला बन गया। मीडिया रिपोर्टों और उन पर आधारित याचिकाओं का कथा सूत्र यह था कि अमित शाह को क्लीन चिट देने के लिए तैयार न होने की कीमत जज लोया को चुकानी पड़ी। बहरहाल अब जब हमारे देश का सर्वोच्च न्यायालय अपने विवेक से सभी पहलुओं और उपलब्ध साक्ष्यों पर गौर करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा है कि जज लोया की मौत को संदिग्ध मानने का कोई कारण नहीं है तो यह बात यहीं खत्म हो जानी चाहिए। अब जब सभी पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट को लगा कि जज लोया की मृत्यु हार्ट अटैक से हुई और उसमें कोई साजिश नहीं थी तो फिर आपको, हमें इसे स्वीकार करने में हर्ज ही क्या है। किन्तु जब इरादा सच तक पहुंचने की जगह राजनीति साधने का हो तो ऐसे को यह स्वीकार नहीं करेंगे।
-अनिल नरेन्द्र


किम जोंग की घोषणा से विश्व ने राहत की सांस ली

बहुत दिनों की तनातनी के बाद अच्छी खबर अंतत आई है। नहीं तो एक समय ऐसे लग रहा था कि कहीं तीसरा विश्वयुद्ध ही न हो जाए। उत्तर कोरिया और अमेरिकी ब्लॉक में तो परमाणु युद्ध तक की नौबत आ गई थी। पर खतरा टल गया लगता है। उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन ने शनिवार को अपने फैसले से दुनिया को हतप्रभ कर दिया। शनिवार को उन्होंने घोषणा कीöउनका देश अब परमाणु व लंबी दूरी की मिसाइलों का परीक्षण नहीं करेगा। देश की परमाणु परीक्षण साइट पुंगेरी को भी बंद कर दिया जाएगा। किम के ऐलान पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट कर कहा है कि अब उत्तर कोरिया और परमाणु परीक्षण नहीं करेगा। पूरी दुनिया के लिए यह एक अच्छी खबर है, एक बड़ी प्रगति है। मैं किम जोंग के साथ होने वाली मुलाकात को लेकर भी उत्साहित हूं। वहीं दक्षिण कोरिया ने भी इस फैसले का स्वागत किया है। पिछले सात सालों में उत्तर कोरिया ने 89 मिसाइल परीक्षण किए हैं। उत्तर कोरिया का परमाणु केंद्र पुंगेरी है, जो 2006 से संचालित है। यहां 2016 और 2017 में हुए पांचवें और छठवें परीक्षण अहम थे। इन परीक्षणों में एक कॉम्पैक्ट न्यूक्लियर डिवाइस का इस्तेमाल हुआ था, जिसे किम, मध्यम, इंटर-मीडियम और इंटर-कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल पर लगाया जा सकता है। इन मिसाइलों की मारक क्षमता दूसरे विश्वयुद्ध में अमेरिका द्वारा नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम से दो-तीन गुना ज्यादा है। उत्तर कोरिया की बनाई गई 150 मिसाइलों में से सिर्प तीन ही अमेरिका तक न्यूक्लियर हमला कर सकती है। 33 साल में उत्तर कोरिया 150 से ज्यादा मिसाइल परीक्षण कर चुका है। इनमें आधे से ज्यादा किम जोंग ने 2011 में राष्ट्रपति बनने के बाद किए हैं। किम ने अपने सात साल के कार्यकाल में करीब 89 मिसाइलों का परीक्षण किया जबकि किम जोंग के दादा किम सेकंड सुंग ने 10 साल में 15 मिसाइलों का परीक्षण किया था। पिछले सात साल में उत्तर कोरिया ने छह परमाणु परीक्षण भी किए हैं। आखिर क्यों लिया किम ने यह फैसला? उत्तर कोरिया अपने हथियार कार्यक्रमों में तेजी से तकनीकी प्रगति कर चुका है। परमाणु हथियार कार्यक्रम चलाने के कारण उत्तर कोरिया पर संयुक्त राष्ट्र समेत तमाम देशों ने अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध लगा रखे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि वह अब अपने देश की अर्थव्यवस्था और दूसरे देशों से संबंध सुधारने पर ध्यान देना चाहता है। कुछ वक्त पहले विदेश यात्रा पर चीन गए और अपने विदेश मंत्री को रूस की यात्रा पर भेजा। अब अगर वह आगे और टेस्ट न करने के ऐलान के बदले ट्रंप के साथ बैठकर बातचीत का मौका हासिल कर रहे हैं तो यह बड़ी बात ही होगी क्योंकि यह काम उनके पिता या दादा भी नहीं कर सके। पूरे प्रकरण में अमेरिका और चीन के रुख की भी तारीफ करनी होगी। खैर, पूरे विश्व ने राहत की सांस ली है।

Sunday, 22 April 2018

चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग का नोटिस

कई दिनों से चल रही सुगबुगाहट के बाद कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाने का फैसला किया है। सात दलों के नेताओं के दस्तखत वाली अर्जी राज्यसभा के सभापति को सौंप दी गई है। यह पहली बार है जब देश के सबसे बड़े जज के खिलाफ महाभियोग चलाने का प्रस्ताव लाया गया है। राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू को 71 सदस्यों के दस्तखत वाले महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस देने के बाद इन दलों ने कहा कि संविधान और न्यायपालिका की रक्षा के लिए हमें भारी मन से यह कदम उठाना पड़ा है। कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल ने 12 जनवरी की चार जजों की प्रेस कांफ्रेंस का जिक्र करते हुए कहा कि हम चाहते हैं कि ज्यूडिशियरी का मामला अंदर ही सुलझ जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने दावा किया कि इस कदम का जस्टिस लोया मामले और अयोध्या केस की सुनवाई से कोई संबंध नहीं है। महाभियोग क्या है? महाभियोग वो प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों को हटाने के लिए किया जाता है। इसका जिक्र संविधान के अनुच्छेद 61, 124(4)(5), 217 और 218 में मिलता है। महाभियोग प्रस्ताव सिर्प तब लाया जा सकता है जब संविधान का उल्लंघन, दुर्व्यवहार या अक्षमता साबित हो गए हों। नियमों के मुताबिक महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है। लेकिन लोकसभा में इसे पेश करने के लिए कम से कम 100 सांसदों के दस्तखत और राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों के दस्तखत जरूरी होते हैं। इसके बाद अगर उस सदन के स्पीकर या अध्यक्ष उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लें। वे इसे खारिज भी कर सकते हैं। तो तीन सदस्यों की एक समिति बनाकर आरोपों की जांच करवाई जाती है। उस समिति में एक सुप्रीम कोर्ट के जज, एक हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और एक ऐसे प्रख्यात व्यक्ति को शामिल किया जाता है जिसे स्पीकर या अध्यक्ष उस मामले के लिए सही मानें। अगर यह प्रस्ताव दोनों सदनों में लाया गया है तो दोनों सदनों के अध्यक्ष मिलकर एक संयुक्त जांच समिति बनाते हैं। दोनों सदनों में प्रस्ताव देने की सूरत के बाद में तारीख में दिया गया प्रस्ताव रद्द माना जाता है। जांच पूरी हो जाने के बाद समिति अपनी रिपोर्ट स्पीकर या अध्यक्ष को सौंप देती है और उसे अपने सदन में पेश करते हैं। अगर जांच में पदाधिकारी दोषी साबित हों तो सदन में वोटिंग कराई जाती है। प्रस्ताव पारित होने के लिए उसे सदन के कुल सांसदों का बहुमत या वोट देने वाले सांसदों में से कम से कम दो-तिहाई का समर्थन मिलना जरूरी है। अगर दोनों सदनों में यह प्रस्ताव पारित हो जाए तो इसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाता है। किसी जज को हटाने का अधिकार सिर्प राष्ट्रपति के पास है। आज तक किसी जज को नहीं हटाया गया। भारत में आज तक किसी जज को महाभियोग लाकर हटाया नहीं गया क्योंकि इससे पहले के सारे मामलों में कार्यवाही कभी पूरी नहीं हो सकी। या तो प्रस्ताव को बहुमत नहीं मिला, या फिर जजों ने उससे पहले ही इस्तीफा दे दिया। हालांकि इस पर विवाद है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जज वी. रामास्वामी को महाभियोग का सामना करने वाला पहला जज माना जाता है। उनके खिलाफ मई 1993 में महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया था। यह प्रस्ताव लोकसभा में गिर गया क्योंकि उस वक्त सत्ता में मौजूद कांग्रेस ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया और प्रस्ताव को दो-तिहाई बहुमत नहीं मिला। कोलकाता हाई कोर्ट के जज सोमैत्र सेन देश के दूसरे ऐसे जज थे जिन्हें 2011 में अनुचित व्यवहार के लिए महाभियोग का सामना करना पड़ा। यह भारत का अकेला ऐसा महाभियोग का मामला है जो राज्यसभा में पास होकर लोकसभा तक पहुंचा। हालांकि लोकसभा में इस पर वोटिंग होने से पहले ही जस्टिस सेन ने इस्तीफा दे दिया। उसी साल सिक्किम हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पीडी दिनाकरन के खिलाफ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी लेकिन सुनवाई के कुछ दिन पहले ही दिनाकरन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। 2015 में गुजरात हाई कोर्ट के जस्टिस जेपी पार्दीवाला के खिलाफ जाति से जुड़ी अनुचित टिप्पणी करने के आरोप में महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी लेकिन उन्होंने उससे पहले ही अपनी टिप्पणी वापस ले ली। 2015 में ही मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस एसके गंगेल के खिलाफ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी लेकिन जांच के दौरान उन पर लगे आरोप साबित नहीं हो सके। आंध्रप्रदेश/तेलंगाना हाई कोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी के खिलाफ 2016 और 2017 में दो बार महाभियोग लाने की कोशिश की गई लेकिन इन प्रस्तावों को कभी जरूरी समर्थन नहीं मिला। महाभियोग के नोटिस पर कांग्रेस के भीतर ही गंभीर मतभेद उठते दिखे। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सलमान खुर्शीद ने कहा कि मैं इस फैसले में शामिल नहीं हूं। वहीं कांग्रेस के पूर्व प्रभारी हरिकेश बहादुर ने कहा कि सिर्प मतभेद ही महाभियोग शुरू करने का आधार नहीं हो सकता। हमें लगता है कि कांग्रेस और विपक्ष भी जानते हैं कि जस्टिस मिश्रा के खिलाफ महाभियोग सफल नहीं हो सकता पर अगर इस प्रस्ताव पर बहस हो गई तो उन्हें अपनी सारी बातें कहने का मौका मिल जाएगा और उसके  बाद भी अगर प्रस्ताव गिर जाता है तो कोई बात नहीं विपक्ष जो चाहता था वह तो हो ही गया होगा। पर अभी तो सिर्प नोटिस दिया है, यह स्वीकार होता है या नहीं इस पर भी बड़ा प्रश्नचिन्ह है।

-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 21 April 2018

आईपीएल का केज

आजकल आईपीएल अपने पूरे जलवे में है। विश्व की सबसे महंगी क्रिकेट लीग इंडियन प्रीमियर लीग टीवी का सबसे बड़ा शो बनती जा रही है। यह न केवल टीवी के दूसरे चैनलों के लिए ही चुनौती बन रही है बल्कि सिनेमाघरों में फिल्मों का भी इसने भट्ठा बिठा दिया है। सिनेमा हॉल आईपीएल से बुरी तरह प्रभावित हैं और कई सिनेमाओं में तो 50 प्रतिशत दर्शकों में ड्रॉप आ गया है। स्टार इंडिया के मुताबिक पिछले वर्ष 55 करोड़ लोगों ने आईपीएल मैच देखे थे जबकि इस बार चैनल और ऑनलाइन प्रसारण से यह आंकड़ा 70 करोड़ पार कर जाएगा। आईपीएल के इस सीजन के पहले मैच में शहरी युवाओं की व्यूरशिप 63.55 लाख इंंप्रैशंस (एक मिनट या इससे अधिक देखने वाले दर्शक) रही, जो पिछले वर्ष से 37 प्रतिशत अधिक है। टीवी दर्शकों का विश्लेषण करने वाली ब्रॉडकास्ट ऑडिएंस रिसर्च काउंसिल (बार्प) के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2017 में आईपीएल सीजन-10 के दौरान हिन्दी मनोरंजन चैनल्स की दर्शक संख्या में 14 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई वहीं मूवी चैनल्स की दर्शक संख्या में 12 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई क्योंकि सोनी मैक्स की व्यूरशिप हटा दें तो मूवी चैनल्स की दर्शक संख्या में गिरावट दर्ज की गई। इंडियन टेलीविजन डॉट कॉम के सीईओ और विश्लेषक अनिल वनवारी ने बताया कि आईपीएल के सीजन में टीवी चैनल्स पर विज्ञापन की दरें अवश्य बदलती हैं, खासतौर पर आईपीएल मैच दिखाने वाले चैनल पर। सूत्रों के मुताबिक आईपीएल के पिछले मैचों के प्रसारणकर्ता सोनी पिक्चर्स नेटवर्प के मुकाबले इस वर्ष स्टार इंडिया ने विज्ञापन दरें 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ा दी हैं। वनवारी कहते हैं कि यह रकम दो हजार करोड़ रुपए से अधिक हो सकती है। आईपीएल-10 सीजन में सोनी पिक्चर्स नेटवर्प ने प्रसारण से 1200 करोड़ रुपए कमाए थे। आईपीएल-10 की तुलना में सीजन-11 में विज्ञापन दरें 50 प्रतिशत से अधिक हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि स्टार विज्ञापनदाता को हिन्दी, अंग्रेजी के साथ ही बंगाली, तमिल, तेलुगू और कन्नड़ भाषाओं में 10 चैनल की सुविधा भी दे रहा है। स्टार इंडिया से जुड़े अधिकारी ने बताया कि स्टार आईपीएल शुरू होने से पहले ही करीब 90 प्रतिशत से अधिक ऑन एयर इंवेंट्री बेच चुका था और 70 स्पांसरशिप कर चुका है जिसमें 100 से अधिक ब्रैंड के विज्ञापन आए। गौरतलब है कि स्टार इंडिया ने आईपीएल मैचों के पांच साल के टीवी और डिजिटल मीडिया के ग्लोबल मीडिया अधिकार भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) से 16,357.5 करोड़ रुपए में खरीदे हैं। जबकि चीनी मोबाइल निर्माता कंपनी वीवो इलैक्ट्रॉनिक्स कॉर्प ने 2,199 करोड़ रुपए में पांच वर्ष के  लिए टाइटल स्पांसर करने का अधिकार खरीदा है।
-अनिल नरेन्द्र

स्वाति मालीवाल की जान अब खतरे में है

महामहिम रामनाथ कोविंद ने बुधवार को कठुआ बलात्कार और हत्या मामले को घृणित और शर्मनाक करार देते हुए इसकी निन्दा की। राष्ट्रपति ने कहा कि हमें इस बात पर आत्मचिन्तन करने की जरूरत है कि हम कैसा समाज विकसित कर रहे हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि बच्चों के खिलाफ होने वाली हिंसा मानवता के लिए बहुत चिंतित करने वाली बात है और बच्चों को सुरक्षा मुहैया कराने के लिए दृढ़ निश्चय की जरूरत है। उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लंदन में कहा कि दुष्कर्म तो दुष्कर्म है और इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। हाल की वारदातों पर उन्होंने कहा कि दुष्कर्म देश के लिए शर्म की बात है। भारत में बच्चियों से दुष्कर्म के मामले में बुधवार को दिन में लंदन की सड़कों पर प्रदर्शनों के बाद शाम को वेस्टमिस्टर के सेंट्रल हॉल में भारत की बात सबके साथ कार्यक्रम में मोदी ने कहा कि नन्हीं बच्ची से दुष्कर्म होना बहुत ही तकलीफदेह है। जब सभी मान रहे हैं कि बच्चियों के साथ दुष्कर्म होना काबिले बर्दाश्त नहीं और इस मुद्दे पर हमें राजनीति नहीं करनी चाहिए तो अनशन पर बैठी दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा स्वाति मालीवाल भी तो यही ही कह रही हैं। अनशन पर बैठी स्वाति की सातवें दिन हालत खराब हो रही है। स्वाति पिछले सात दिनों से सिर्प पानी के सहारे अनशन पर बैठी हैं। बीते सात दिनों में स्वाति से मिलने दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री व अन्य मंत्री के अलावा विभिन्न दलों के सांसद भी राजघाट पहुंचे हैं, लेकिन केंद्र सरकार की ओर से कोई अभी तक नहीं पहुंचा। स्वाति बेशक सत्तारूढ़ दल से अलग विचारधारा वाली पार्टी की हों पर जो बात या मांग वह कर रही हैं उस पर तो किसी को ऐतराज नहीं होना चाहिए। खुद प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि इस मुद्दे पर हमें राजनीति नहीं करनी चाहिए। स्वाति अनशन पर इसलिए बैठी हैं कि महिलाओं के साथ हो रहे रेप के मामलों में सख्त से सख्त कानून बने। उनकी सेहत में लगातार गिरावट आ रही है। लंबे वक्त तक अनशन ले सकता है जान। डाक्टरों का कहना है कि अगर जल्द स्वाति का अनशन नहीं टूटता तो कुछ भी हो सकता है। स्वाति ने भी जिद्द पकड़ रखी है। वह कहती हैं कि प्रधानमंत्री जिद्दी हैं तो मैं उनसे ज्यादा जिद्दी हूं। जब तक वह मेरी मांग नहीं मानेंगे तब तक मैं अपना अनशन नहीं तोड़ूंगी। हम स्वाति जी से कहना चाहते हैं कि वह इसे प्रतिष्ठा का सवाल न बनाएं। शायद ही पूरे देश में कोई ऐसा व्यक्ति हो जो आपकी मांगों का समर्थन न करता हो। पर आप यह हठ छोड़ दें कि पीएम ही आपकी बात पर रिएक्ट करें। हम तो समझते हैं कि अगर दिल्ली के उपराज्यपाल या कोई केंद्रीय मंत्री उन्हें आश्वासन दे कि उनकी मांगों पर गौर किया जाएगा तो यह अनशन समाप्त हो सकता है। स्वाति मालीवाल का अनशन खतरनाक स्टेज पर पहुंच रहा है और अगर जल्द इसका हल नहीं किया गया तो बुरा अंत हो सकता है।

Friday, 20 April 2018

नवाज शरीफ का राजनीतिक कैरियर समाप्त?

हमें यह मानना पड़ेगा कि हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की न्यायपालिका व कानूनी व्यवस्था व जांच एजेंसियां भारत से बेहतर हैं। आप पनामा पेपर्स का ही किस्सा ले लें। हमारे देश में तो अभी जांच ही चल रही है वह भी आधी-अधूरी। पाकिस्तान में न केवल जांच पूरी हो गई है पर वहां की अदालतों ने राजनीतिज्ञों को सजा भी देनी शुरू कर दी है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मियां नवाज शरीफ को 28 जुलाई 2017 को पनामा पेपर्स मामले में दोषी ठहराया गया था। फिर पाक सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अयोग्य ठहराया। नवाज शरीफ को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। अब अपदस्थ नवाज शरीफ के आजीवन चुनाव लड़ने पर शुक्रवार को रोक लग गई जब सुप्रीम कोर्ट ने अपने दूरगामी व ऐतिहासिक फैसलों में कहा कि संविधान के तहत किसी जनप्रतिनिधि की अयोग्यता स्थायी है। इसके साथ ही तीन बार देश के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का राजनीतिक कैरियर हमेशा के लिए खत्म हो गया। पांच न्यायाधीशों की पीठ ने संविधान के तहत किसी जनप्रतिनिधि की अयोग्यता की अवधि का निर्धारण करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वसम्मति से अपना फैसला सुनाया। अदालत संविधान के अनुच्छेद 62(1) एफ पर विचार कर रही थी जिसमें सिर्प इतना कहा गया है कि किसी जनप्रतिनिधि को विशेष परिस्थितियों में अयोग्य ठहराया जा सकता है, लेकिन अयोग्यता की अवधि नहीं बताई गई है। अनुच्छेद 62 में किसी संसद सदस्य के लिए सांदिक और अमीने (ईमानदारी और न्यायपारायण) होने की पूर्व शर्त रखी गई है। गौरतलब है कि इसी अनुच्छेद के तहत 68 वर्षीय नवाज शरीफ को 28 जुलाई 2017 को पनामा पेपर्स मामले में अयोग्य ठहराया गया था। शरीफ को एक और झटका देते हुए अदालत ने यह भी कहा है कि अयोग्य ठहराया गया कोई भी व्यक्ति किसी राजनीतिक दल का प्रमुख नहीं बन सकता है। इसके बाद उन्हें सत्तारूढ़ पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज के अध्यक्ष की कुर्सी भी गंवानी पड़ी थी। शुक्रवार को सभी पांचों जजों ने एकमत से फैसला सुनाते हुए कहा कि जो लोग देश के संविधान के प्रति ईमानदार और सच्चे नहीं हैं, उन्हें जीवनभर के लिए संसद से प्रतिबंधित रखना चाहिए। सत्तारूढ़ पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज ने इस फैसले को अस्वीकार करते हुए कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को आतंकवाद का सफाया और विकास परियोजनाओं को शुरू करने की सजा मिली है। यह फैसला एक मजाक है और पिछले प्रधानमंत्रियों के साथ भी हो चुका है। प्रधानमंत्री शाहिद खान अब्बासी ने कहा कि केवल जनता का फैसला उनके लिए मायने रखता है। जियो टीवी के मुताबिक अब्बासी ने मुजफ्फराबाद में कहा कि देश काम करने वाले को हमेशा याद रखता है। जिसके अंत में जनता द्वारा फैसला किया जाएगा।
-अनिल नरेन्द्र


एटीएम खाली ः फिर एक बार नोटबंदी जैसे हालात

नोटबंदी के करीब सवा साल बाद एक बार फिर नोटबंदी की याद ताजा हो गई जब एक बार फिर एटीएम में नो कैश के बोर्ड टंगे नजर आए। देश की राजधानी समेत 10 राज्यों में एटीएम से नकदी नहीं मिलने की खबरें आ रही हैं। इनमें दिल्ली, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र शामिल हैं। बाकी राज्यों में भी दिक्कत सामने आने लगी है। नवम्बर 2016 की तकलीफों को लोग बड़ी मुश्किल से भूलने लगे थे। तब एटीएम व बैंकों पर जो लंबी लाइनें लगी थीं और आम लोगों को जो तकलीफें हुई थीं, वह सब फिर से याद आने लगी हैं। बेशक एटीएम का संकट अभी भी गंभीर नहीं हुआ है लेकिन माना जा रहा है कि कैश के संकट से अफवाहों की भी बढ़ोत्तरी स्वाभाविक है। देश के कई हिस्सों में एटीएम पूरी तरह से खाली पड़े हुए हैं, जिनमें कुछ पैसा है भी तो उनके बाहर लंबी लाइनें हैं। 2016 के अंत में जो हुआ था, उसे आसानी से समझा जा सकता था। तब सरकार ने बाजार से ज्यादातर नकदी सोख ली थी जिससे नकदी का संकट पैदा हुआ जो कुछ हफ्तों तक चला और जैसे ही नए नोट छपकर बाजार में आए, वह संकट खत्म हो गया। अब जो हो रहा है वह लोगों को समझ नहीं आ रहा है। कारण की थाह नहीं मिल पा रही है। सरकार और रिजर्व बैंक की तरफ से जो सफाई दी जा रही है वह शायद ही आसानी से किसी के गले उतरे। नवम्बर 2016 में जो हुआ, वह तो एक नीतिगत निर्णय का नतीजा था। लेकिन अप्रैल 2018 में जो हो रहा है वह लोगों के लिए एक पहेली बनी हुई है। सरकार और रिजर्व बैंक की ओर से जो सफाई दी गई उसका मूल्य महत्व तभी है जब इस संकट को जल्दी से सुलझा लिया जाए। अगर रिजर्व बैंक और सरकार अपने वादे पर खरी नहीं उतरी तो यह संकट और गहरा सकता है और देश के उन हिस्सों को भी अपनी चपेट में ले सकता है जहां यह अभी उतना गंभीर नहीं जितना बिहार, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, दिल्ली और देश के कुछ अन्य हिस्सों में दिख रहा है। आरबीआई सफाई दे रहा है कि उसके पास पर्याप्त नकदी नहीं है। लॉजिस्टिक कारणों से कुछ राज्यों में एटीएम में नकदी भरने और कैलिब्रेशन की प्रक्रिया जारी रहने से दिक्कत है। फिर भी सभी चार प्रेसों में नोटों की छपाई तेज कर दी गई है। संदेह है कि दो हजार के नोटों की जमाखोरी हो रही है। निपटने के लिए 500 के नोटों की छपाई पांच गुना बढ़ाई जाएगी। वित्त मंत्रालय का कहना है कि तीन महीने के दौरान नकदी की मांग अप्रत्याशित बढ़ी है। अरुण जेटली का यह भी कहना है कि इस समय अर्थव्यवस्था में उपयुक्त से भी ज्यादा नकदी का प्रसार है। बैंकों के पास भी इसकी कमी नहीं है। कुछ क्षेत्रों में अचानक और साधारण तरीके से मांग में हुई वृद्धि के कारण तंगी की स्थिति बनी है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का कहना है कि देश फिर से नोटबंदी के आतंक की गिरफ्त में है। मोदी जी ने देश की बैंकिंग प्रणाली को बर्बाद कर दिया। उन्होंने हर भारतीय की जेब से 500 और हजार रुपए के नोट छीन लिए और वे नीरव मोदी को दे दिए। लेकिन इसके बारे में न तो एक शब्द बोल रहे हैं और न ही संसद आ रहे हैं। हमारा मानना है कि यह भी संभव है कि मौजूदा संकट किसी बैंकिंग कुप्रबंधन का नतीजा हो। अगर ऐसा है तो यह और भी खतरनाक बात है। हमें यह सच भी स्वीकारना होगा कि हम कैशलैस अर्थव्यवस्था की बातें चाहे कितनी भी करें लेकिन कटु सत्य तो यह है कि आज भी छोटे दुकानदारों, मजदूरों, किसानों के लिए और खासकर अनौपचारिक क्षेत्र के लिए नकदी ही सब कुछ है। अगर जल्द इसका हल नहीं निकाला गया तो यह इस चुनावी माहौल में सत्तारूढ़ दल के खिलाफ जा सकता है।

Thursday, 19 April 2018

दाऊद इब्राहिम ने वसीम रिजवी की हत्या की सुपारी दी

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने उत्तर पदेश के शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी को मारने की साजिश का पर्दाफाश किया है। शुकवार को स्पेशल सेल ने रिजवी की हत्या की सजिश में जुटे डी कंपनी के तीन शूटरों को गिरफ्तार किया है। तीनों आरोपियों को पुलिस ने यूपी के बुलंदशहर इलाके से गिरफ्तार किया। पुलिस के मुताबिक पाकिस्तान में बैठे अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम ने छोटा शकील के जरिए वसीम रिजवी को मारने के लिए इन बदमाशों को जिम्मेदारी दी थी। यह खुलासा दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के डीसीपी पमोद कुशवाहा ने किया। गत मार्च को तीनों ने रिजवी के लखनऊ स्थित कार्यालय की रेकी की थी। कुशवाहा ने बताया कि पुलिस को जानकारी मिल रही थी कि भगोड़ा दाऊद इब्राहिम भारत में बड़ी वारदात करवाने की जुगत में है। इसके बाद पुलिस ने उसके गुर्गों पर नजर रखनी शुरू की। इसी दौरान फोन पर हो रही बातचीत के आधार पर पता चला कि बुलंदशहर के कुछ बदमाश वसीम रिजवी की हत्या की साजिश रच रहे हैं। इस पर पुलिस ने 12 अपैल को बुलंदशहर इलाके में सलीम अहमद अंसारी, अबरार और आरिफ को गिरफ्तार कर लिया। इनका एक और साथी फिलहाल फरार है, गत वर्ष दिसंबर में सलीम दुबई गया था, जहां उसकी मुलाकात दाऊद के दाहिने हाथ छोटा शकील के सहयोगी से हुई थी। उसने वसीम रिजवी को मारने के लिए तीन हजार दिरहम (53 हजार रुपए) पैशगी के तौर पर दिए थे। यह रकम हवाला के जरिए सलीम को मिली थी। शकील के सहयोगी ने सलीम से कहा था कि पहला विकेट गिराओ तुम्हें मालामाल कर देंगे। इसके बाद भारत लौटकर उसने इस साजिश को अंजाम देने का काम शुरू कर दिया। सलीम अहमद ने वसीम रिजवी के लखनऊ स्थित कार्यालय की 10-12 बार रेकी की थी। उसने कार्यालय का पूरा नक्शा बना रखा था। वह अपने साथियों के साथ शिकायतकर्ता बनकर रिजवी के पास जाता और मौका मिलते ही उन्हें गोली मार देता। वारदात के बाद वह अपने दोनों साथियों के साथ दाऊद के एक रिश्तेदार के यहां जाता जहां उन्हें सुपारी की बकाया रकम मिलनी थी। दरअसल वसीम रिजवी दाऊद इब्राहिम और उनके गुर्गों की आंख में किरकिरी तभी से बने हुए थे जब कुछ दिन पहले वसीम रिजवी ने राम मंदिर बनाने को लेकर चल रहे विवाद में बयान दिया था। उनका यह बयान राम मंदिर के पक्ष में था जिसके चलते डान दाऊद इब्राहिम उन्हें सबक सिखाना चाहते थे। स्पेशल सेल के डीसीपी ने बताया कि हमारी टीम को मार्च में सूचना मिली थी कि कुछ बदमाश अंडरवर्ल्ड के इशारे पर रिजवी की हत्या करने की साजिश रच रहे हैं। इस घटना से पता चलता है कि बेशक दाऊद पाकिस्तान में बैठा हो पर वह भारत में क्या हो रहा है इस पर पैनी नजर रखे हुए है। यह पयास तो विफल कर दिया स्पेशल सेल ने पर खतरा बरकरार रहेगा।

-अनिल नरेन्द्र

मक्का मस्जिद धमाके का जिम्मेदार कौन है?

हैदराबाद स्थित मक्का मस्जिद में 18 मई, 2007 को हुए भीषण विस्फोट के मामले में ग्यारह साल बाद एनआईए ने सोमवार को स्वामी असीमानंद समेत पांच आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया जो कि न्यायिक पकिया में देरी का एक उदाहरण है ही साथ में चौंकाने वाली बात यह भी है कि फैसले के कुछ घंटे में ही एनआईए विशेष आतंकरोधी अदालत के जज रवीन्द्र रेड्डी ने इस्तीफा दे दिया। जज रेड्डी ने हालांकि बताया कि उन्होंने निजी कारणें से इस्तीफा दिया है और इसका फैसले से कोई लेना-देना नहीं है। वह कुछ समय से इस्तीफा देने पर विचार कर रहे थे। जज रवीन्द्र रेड्डी इस्तीफा देने के बाद छुट्टी पर चले गए हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक वह दो माह में रिटायर होने वाले थे। नियुक्ति के मामले में राजभवन के सामने धरना देने के लिए उन्हें दो साल पहले सस्पैंड भी किया गया था वहीं एक केस में नियमों के उलट जमानत देने को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप में सीबीआई उनके खिलाफ जांच भी कर रही है। स्वामी असीमानंद समेत पांचों आरोपियों को बरी किए जाने के बाद यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर इस मस्जिद में विस्फोट किसने किया? चूंकि अदालत ने यह पाया कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में नाकाम रहा इसलिए ऐसे सवाल भी उठेंगे कि क्या एनआईए ने अपना काम सही ढंग से नहीं किया? ऐसे सवालों के बीच इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि 11 वर्ष पुराने इस मामले की जांच के पारंभ में स्थानीय पुलिस ने हरकतुल जिहाद नामक आतंकी संगठन को विस्फोट के लिए जिम्मेदार माना और कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया, लेकिन इसके बाद जब मामला सीबीआई के पास आया तो उसने हिंदू संगठनों के कुछ सदस्यों को अपनी गिरफ्त में लिया। इसी के साथ तत्कालीन यूपीए सरकार की ओर से भगवा और हिंदू आतंकवाद का जुमला उछाल दिया गया। इस फैसले से स्वामी असीमानंद और उनके साथियों को राहत तो मिली ही है, भाजपा और संघ परिवार को कांग्रेस और यूपीए पर हमला करने का मौका भी मिल गया है, जिसके कार्यकाल में मक्का मस्जिद, अजमेर दरगाह और समझौता एक्सपेस में हुए आतंकी हमलों के बाद संघ से जुड़े संगठनों पर आरोप लगाए गए थे। भूलना नहीं चाहिए कि यूपीए सरकार के समय इन मामलों के आरोपी बनाए गए संघ परिवार से जुड़े रहे असीमानंद, कर्नल पुरोहित, साध्वी पज्ञा जैसे अनेक लोगों को एक-एक कर राहत मिलती जा रही है। क्या सीबीआई और एनआईए यूपीए सरकार के दबाव में काम कर रही थी? क्या एनआईए ने राजनीतिक दबाव में असीमानंद और अन्य लोगों के खिलाफ मामला बनाया था? वह इन लोगों के खिलाफ सुबूत क्यों नहीं जुटा पाई? असीमानंद और अन्य लोगों को 11 वर्षों तक यातनाएं और अपमान झेलना पड़ा, उसकी भरपाई कैसे होगी और भरपाई करेगा कौन? दूसरी ओर कांग्रेस का आरोप है कि एनआईए की जांच पक्षपाती है। गुलाम नबी आजाद ने कहा कि सभी जांच एजेंसी केन्द्र सरकार की कठपुतली बन गई हैं। सलमान खुर्शीद ने कहा कि दर्जनों गवाह मुकर गए हैं। इस पर सवाल तो खड़े होते ही हैं? भाजपा पवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि पी. चिदंबरम और सुशील शिंदे जैसे नेताओं ने भगवा आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल कर हिंदुओं का अपमान किया है। इसके लिए सोनिया और राहुल गांधी माफी मांगें। पर मूल सवाल अब भी वही है कि मक्का मस्जिद में बम धमाके का जिम्मेदार आखिर है कौन? इस धमाके में 9 लोगों की मौत हो गई थी और 58 घायल हुए थे। यह मामला तब तक शांत नहीं होगा जब तक कसूरवारों की पहचान नहीं होती और उन्हें अपने किए की सजा नहीं मिलती।

Wednesday, 18 April 2018

बलात्कार पीड़िता की तस्वीर न दिखाएं

हम दिल्ली हाई कोर्ट की इस हिदायत से पूरी तरह सहमत हैं कि मीडिया में चाहे वह इलैक्ट्रॉनिक मीडिया हो या प्रिन्ट मीडिया हो, हमें बलात्कार पीड़ितों की तस्वीरें नहीं दिखानी चाहिए। आए दिन प्रिन्ट मीडिया में पीड़ितों की तस्वीरें छपती रहती हैं। अभी कल ही दिल्ली के अमन विहार इलाके में 11वीं की छात्रा से दुष्कर्म की तस्वीर छपी है। तस्वीर में उसके पैरों के बांधने पर पड़े तथा मारने के निशान दिखाए गए हैं। इसी तरह कठुआ की अभागी आसिफा की तस्वीर दिखाई जा रही है। हमें पीड़ितों की जगह उन जानवरों की तस्वीरें दिखानी चाहिए जिन्होंने यह कुकर्म किए हैं। इसके अलावा कुकर्म की पूरी डिटेल्स दी जाती है। क्या इन सबकी जरूरत है? दिल्ली हाई कोर्ट ने कठुआ में सामूहिक बलात्कार के बाद मार दी गई आठ साल की बच्ची की पहचान जाहिर करने के मामले में कई मीडिया हाउसों को नोटिस जारी करते हुए कहा कि आगे से उसकी पहचान जाहिर न की जाए। मीडिया में आई खबरों पर स्वत संज्ञान लेते हुए अदालत ने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और बहुद दुखद है कि पीड़िता की तस्वीरें भी प्रिन्ट और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया में आ रही हैं। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर ने मीडिया हाउसों से जवाब मांगा है कि इस मामले में उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों न की जाए? पीठ ने कहाöपूरा-पूरा मीडिया ट्रायल चल रहा है। अदालत ने मीडिया हाउसों को निर्देश दिया है कि वे आगे से बच्ची का नाम, उसकी तस्वीर, स्कूल का नाम या उसकी पहचान जाहिर करने वाली किसी भी सूचना को प्रकाशित करने, प्रसारित करने से बचें। अदालत ने कहा कि खबरों ने पीड़ित की निजता का अपमान व उल्लंघन किया है जिसकी किसी हालत में अनुमति नहीं दी जा सकती है। पीठ ने कहा कि दंड संहिता और पॉक्सो कानून में ऐसे प्रावधान हैं जो ऐसी सूचनाओं के प्रकाशन, प्रसारण को निषिद्ध करते हैं जो बच्चों सहित यौन अपराध से पीड़ित व्यक्ति की प्रतिष्ठा और निजता को प्रभावित करता हो। हम हाई कोर्ट के निर्देश का समर्थन करते हैं। हमें पीड़िता की तस्वीर व निजी जानकारी को देने से बचना होगा पर सोशल मीडिया का क्या होगा? सोशल मीडिया में तो सब कुछ आ जाता है। उस पर कैसे नियंत्रण होगा। इस पर भी तो विचार होना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

महिला शक्ति से ही बरसा है सोना

हिन्दुस्तानी खेल लगातार नया कौशल और आत्मविश्वास हासिल कर रहा है और गोल्ड कोस्ट में सम्पन्न हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत ने कमाल कर दिखाया। कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत 66 पदकों के साथ तीसरे स्थान पर रहा ही, युवा खिलाड़ियों और महिलाओं का प्रदर्शन भी खासतौर पर बेहद उल्लेखनीय रहा। हिन्दुस्तानी खेल में आत्मविश्वास और क्ऱीड़ा क्षितिज पर नई प्रतिभाओं का उदय हो रहा है। यह बात राष्ट्रमंडल खेलों में भारत की महिला खिलाड़ियों के दमदार प्रदर्शन के साथ साबित होती है। वे घरेलू खींचतान और लैंगिंक असमानता की बाधाएं तोड़कर भारत का नाम रोशन कर रही हैं। इन गेम्स में टेबल टेनिस मुकाबले में सिंगापुर जैसी मजबूत टीम को हराना वैसा ही है जैसे ओलंपिक में चीन को परास्त करना। निशानेबाजी में सात स्वर्ण समेत 16 पदक, कुश्ती में पांच स्वर्ण सहित 12 मैडल, भारोत्तोलन में पांच स्वर्ण समेत नौ पदक, मुक्केबाजी में तीन स्वर्ण समेत नौ पदक, टेबल टेनिस में तीन स्वर्ण समेत आठ पदक, बैडमिंटन में दो स्वर्ण समेत छह पदक, एथलेटिक्स में एक स्वर्ण समेत तीन पदक आदि भारतीय खिलाड़ियों की प्रतिभा-क्षमता के ही सबूत हैं। निशानेबाजी में 15 साल के अनीश मानवाल और 16 साल की मनु भाकर ने स्वर्ण पदक जीतकर भारतीय खेल में युवा प्रतिभाओं की धमाकेदार मौजूदगी जताई तो मनिका बत्रा सबसे सफल भारतीय खिलाड़ी के रूप में उभरकर सामने आई, जिन्होंने टेबल टेनिस के महिला एकल और टीम स्पर्धा में स्वर्ण जीता तो महिला युगल और मिश्रित युगल स्पर्धा में कांस्य जीतकर सभी प्रतिस्पर्धाओं में पदक जीतने का दुर्लभ कीर्तिमान बनाया। ऐसे ही मीराबाई चानू, संजीता चानू, पूनम यादव, हीना सिद्धू, तेजस्विनी सावंत, सेमसी सिंह, विनेश फोगाट आदि ने भारतीय खेलों में महिला शक्ति के वर्चस्व को रेखांकित किया तो सुशील कुमार, मेरीकॉम और साइना नेहवाल के स्वर्ण पदकों ने दर्शाया कि उनके अनुभवों का अब भी कोई मुकाबला नहीं है। ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में सम्पन्न हुए राष्ट्रमंडल खेल सालों तक खेलप्रेमियों का सीना गर्व से चौड़ा करता रहेगा कि ज्यादातर सोना बेटियों पर बरसा है। यह देश की आधी आबादी की मजबूती और विश्व को भारतीय लड़कियों की अदम्य क्षमता को परिलक्षित करता है। हालांकि लड़कियों की लंबी छलांग में उनके संघर्ष और परिवार का जज्बा ज्यादा मायने रखता है। जहां किसी खिलाड़ी को आधारभूत सुविधाओं के बगैर प्रैक्टिस करनी पड़ी तो कइयों को परिवार को आधे पेट या भूखे रहकर गुजारा करना पड़ा। यह निजीवता ही भारत को आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। गोल्ड कोस्ट में 66 मैडल के साथ भारत तीसरे स्थान पर रहा। 2002 के मैनचेस्टर गेम्स में 69 मैडल जीकर भी भारत चौथे नम्बर पर था। यह गेम्स भारत के लिए तीसरे सबसे सफल गेम्स रहे। पहला दिल्ली (101), दूसरा मैनचेस्टर (69) और तीसरा गोल्ड कोस्ट (66)। यह तथ्य हर किसी के संज्ञान में है कि भारत में खेल की सुविधाएं किस स्तर की हैं? न तो कायदे के प्रशिक्षक हैं, न स्पोर्ट स्टाफ और न ही आधारभूत ढांचा? फिर भी हाल के वर्षों में खेल को लेकर सरकार और खेलप्रेमी, दोनों की सोच में सकारात्मक बदलाव आया है। सरकार ने भी बजट में खेल की रकम बढ़ाई है वहीं खिलाड़ियों में भी श्रेष्ठ प्रदर्शन करने का हौंसला परवान चढ़ा है। हालांकि अब भी हम शैशव अवस्था में हैं मगर इतना साफ है कि अगर यथोचित साजो-सामान और सुविधाएं मुहैया करवाई जाएं तो हम खेल की दुनिया में भी एक बड़ी ताकत बन सकते हैं। सभी खिलाड़ियों, उनके कोचों, स्पोर्ट स्टाफ को इस शानदार प्रदर्शन के लिए ढेर सारी बधाई। अलविदा गोल्ड कोस्ट अब बर्मिंघम में फिर मिलेंगे।

Tuesday, 17 April 2018

चन्दा कोचर के भविष्य पर उठने लगीं आवाजें

अपने पति व देवर की कंपनी को कर्ज देने के मामले में फंसी आईसीआईसीआई बैंक की मैनेजिंग डायरेक्टर व सीईओ चन्दा कोचर के पद पर बने रहने को लेकर सवाल उठने लगे हैं। एक तरफ जहां देश के इस दूसरे सबसे बड़े बैंक के कुछ शेयरधारकों ने कोचर की भूमिका पर सवाल उठाया है तो दूसरी तरफ केंद्र भी इस बैंकिंग संस्थान की छवि को लेकर चिंतित है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक आईसीआईसीआई बैंक की हालिया बैठक में कोचर को सीईओ पद से हटाने को लेकर मतभेद उभरने के बाद फैसला टाल दिया गया। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक बोर्ड की बैठक में बाहरी निवेशकों ने चन्दा कोचर के पद पर बने रहने को लेकर सवाल उठाए। हालांकि फिलहाल कोई आम राय नहीं बन सकी है। रही-सही कसर रेटिंग एजेंसी फिच ने पूरी कर दी। सोमवार को फिच ने आईसाआईसीआई बैंक पर रिपोर्ट में कहा है कि बैंक में गवर्नेंस को लेकर संशय पैदा हो चुका है। पहली बार है जब किसी अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी ने विवाद उत्पन्न होने पर इस बैंक के बारे में राय दी है। चन्दा कोचर के पति दीपक कोचर व उनके देवर राजीव कोचर की कंपनी वीडियोकॉन उद्योग समूह के साथ रिश्ते और इस उद्योग समूह को बैंक की तरफ से लोन देने का मामला अब बेहद उलझ गया है। सूत्रों के मुताबिक बैंक के निदेशक बोर्ड की अगली बैठक में चन्दा कोचर के भविष्य का फैसला हो सकता है। बैंक में हिस्सा लेने वाले कुछ अहम शेयरधारकों ने अपनी तरफ से बैंक की गिरती साख को लेकर चिन्ताएं जता दी हैं। उन्होंने यहां तक कहा है कि कोचर का एमडी व सीईओ के पद पर बने रहने से बैंक की खोई प्रतिष्ठा बहाल करने में परेशानी होगी। उधर वित्त मंत्रालय आईसीआईसीआई में उपजे इस विवाद को लेकर चल रही जांच पर नजर बनाए हुए है। वैसे चन्दा कोचर का कार्यकाल 31 मार्च 2019 को खत्म हो रहा है। वित्त मंत्रालय के सूत्रों ने बताया है कि आईसीआईसीआई बैंक की प्रबंध निदेशक और सीईओ चन्दा कोचर के कार्यकाल को लेकर कोई भी फैसला रिजर्व बैंक या आईसीआईसीआई बैंक के निदेशक मंडल के अधिकार क्षेत्र में आता है। वित्त मंत्रालय का मानना है कि निजी क्षेत्र के बैंक आईसीआईसीआई के मामलों को देखना और उसके बारे में कोई फैसला लेना उसका काम नहीं है। देश चाहता है कि पूरे मामले की निष्पक्ष जांच हो और कसूरवारों को न केवल सजा मिले बल्कि जो पब्लिक का पैसा इन्होंने मिलीभगत से गायब किया है उसकी पूरी रिकवरी की जाए। यही पंजाब नेशनल बैंक से भी नीरव मोदी केस में होना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

जोर-आजमाइश का अखाड़ा बन रहा सीरिया

सीरिया में संदिग्ध रासायनिक हमलों के जवाब में अमेरिका के नेतृत्व में ब्रिटेन और फ्रांस ने शनिवार सुबह चार बजे सीरिया पर हमला कर दिया। करीब एक घंटे के भीतर 120 मिसाइलें दागी गईं। सीरिया की राजधानी दमिश्क और होम्स प्रांत को निशाना बनाया गया। अमेरिका के रक्षामंत्री जेम्स मैटिस ने कहा कि हमले में हुए नुकसान का अभी आकलन नहीं किया गया। आगे और हमले करने की संभावना पर कहा कि फिलहाल यह एकमात्र हमला है। इस हमले के विरोध में और राष्ट्रपति असद के समर्थन में सैकड़ों लोग सुबह राजधानी दमिश्क की सड़कों पर उतर आए और ओमाय्याद चौक पर एकत्र होकर सीरियाई, रूसी और ईरानी झंडे फहराए। सीरियाई सरकार ने तीन लोगों के घायल होने की पुष्टि करते हुए किसी की मौत से इंकार किया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि हमने इन हमलों से सीरियाई राष्ट्रपति असद के रासायनिक हथियारों के 20 प्रतिशत जखीरे को तबाह कर दिया। उधर सीरियाई सेना और रूस ने दावा किया कि दो-तिहाई मिसाइलों को हवा में तबाह कर दिया गया। इनमें हवाई ठिकानों की तरफ आ रही 14 मिसाइलें भी हैं। हमला नाकाम रहा। यह अमेरिका का सीरिया पर एक साल में दूसरा बड़ा हमला है। सैन्य एक्सपर्ट्स के मुताबिक इस संयुक्त हमले में करीब 1700 करोड़ रुपए की मिसाइलें दागी गईं। सीरिया के राष्ट्रपति बशर-अल-असद के खिलाफ सात साल पहले शुरू हुआ शांतिपूर्ण विद्रोह गृहयुद्ध में बदल गया है। सात साल पहले सीरियाई नागरिक बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और राजनीतिक स्वतंत्रता पर अंकुश की शिकायत के साथ सड़कों पर उतरे थे। रासायनिक और मिसाइलों के हमले से दुनिया के कई देश दो धड़ों में बंट गए हैं। एक धड़ा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ खड़ा नजर आता है तो दूसरा असद के समर्थन में रूस के साथ सुर मिला रहा है। अमेरिका के साथ फ्रांस, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, तुर्की, जॉर्डन, सऊदी अरब, इटली, जापान, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, इजरायल, स्पेन समेत कई देश साथ हैं। दूसरी ओर राष्ट्रपति असद का समर्थन कर रहे रूस के साथ ईरान और चीन हैं। इन देशों ने हमले का विरोध किया है। अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन की ओर से सीरिया में शनिवार सुबह हमलों का वैसे तो एक हफ्ते पहले हुए रासायनिक हमलों के जवाब में की गई कार्रवाई बताया जा रहा है लेकिन गृहयुद्ध की आग में जल रहा सीरिया अब अमेरिका सहित पश्चिमी देशों रूस व उनके सहयोगियों के लिए जोर-आजमाइश का मैदान बनता जा रहा है। सभी देशों को अपने-अपने हथियारों का ट्रायल करने का मौका मिल गया है। अमेरिका और रूस दोनों ही अपने-अपने अत्याधुनिक हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं और यह सब सीरिया की जनता को तबाह करके किया जा रहा है। फ्रांसीसी राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रो ने कहा कि सीरियाई सरकार की रासायनिक हथियारों के उत्पादन और उनके इस्तेमाल की क्षमता को लक्ष्य बनाकर यह हमले किए गए हैं। हम रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल को बर्दाश्त नहीं कर सकते। ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने कहा कि सीरिया में सैन्य बल के इस्तेमाल के अलावा कोई विकल्प नहीं था। दूसरी ओर रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने हमले को आक्रामक कृत्य करार दिया है और कहा कि यह सीरिया में मानवीय संकट और बढ़ाएगा। ईरान के शीर्ष नेता अयातुल्लाह अली खोमैनी ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप, फ्रांस के मैक्रो और ब्रिटेन की थेरेसा मे की सीरिया में हमलों को लेकर निन्दा करते हुए उन्हें अपराधी करार दिया। ईरान के विदेश मंत्रालय ने कहाöअमेरिका और उसके सहयोगियों के पास कोई सबूत नहीं है। सीरिया के राष्ट्रपति बशर-अल-असद ने कहा कि इस हमले ने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ जवाबी संघर्ष के लिए और इच्छुक बनाया है। यह आक्रामकता सीरिया और उसके लोगों को देश में आतंकवाद को कुचलने के लिए और प्रतिबद्ध बनाएगी।

Sunday, 15 April 2018

उन्नाव-कठुआ मामलों से हुआ भाजपा की छवि को नुकसान


-आदित्य नरेन्द्र-
इसे भारतीय राजनीति की एक विडंबना ही कहा जाएगा कि यहां के राजनीतिक दल अपनी छवि गढ़ने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं क्योंकि यहां किसी पार्टी की छवि गढ़ने का काम दोतरफा होता है। एक तरफ एक राजनीतिक दल अपनी छवि अपनी राजनीति के हिसाब से बनाने का प्रयास करता है तो वहीं दूसरी ओर उसके विरोधी राजनीतिक दल साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल कर उसे कठघरे में खड़ा करके उस पर दाग लगाने का प्रयास करते हैं ताकि उन्हें पालिटिकल माइलेज मिल सके। जब से देश आजाद हुआ है भारत में इसी तरह की राजनीति बार-बार देखने में आई है। कोई भी छोटी या बड़ी राजनीतिक पार्टी इसे अछूती नहीं है। पिछले दिनों पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस मामले में अपनी पीड़ा को यह कहते हुए व्यक्त भी किया था कि कांग्रेस को मुस्लिम समर्थित पार्टी दिखाने का प्रयास किया गया जिससे कांग्रेस की छवि को नुकसान पहुंचा। केंद्र की सत्ता में आने के बाद पिछले कुछ सालों से भाजपा के नेताओं को भी यही परेशानी हो रही है। उन्हें लगता है कि गुजरात और देश के दूसरे राज्यों में ऐसी घटनाएं लगातार हो रही हैं जिससे उस पर मुस्लिम, दलित और महिला विरोधी होने का ठप्पा लगाया जा रहा है। ऐसे में अगले साल होने वाले आम चुनावों को देखते हुए भाजपा हाई कमान की पेशानी पर बल पड़ना स्वाभाविक ही है। हाल ही में घटित उत्तर प्रदेश के उन्नाव और जम्मू-कश्मीर के कठुआ में हुए दो मामलों ने भाजपा नेताओं की चिन्ता को और भी ज्यादा बढ़ा दिया है क्योंकि जहां उन्नाव मामले में एक भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को आरोपी बनाकर सीबीआई ने अरेस्ट कर लिया है वहीं कठुआ में प्रदेश सरकार के दो भाजपा मंत्रियों लाल सिंह एवं चन्द्र प्रकाश को बलात्कार एवं हत्या के मामले के आरोपियों के समर्थन में की गई एक रैली में हिस्सा लेने पर अपना इस्तीफा देना पड़ा है। इस मामले में आठ साल की पीड़ित बच्ची मुस्लिम बक्करवाल समुदाय से थी जिनका पेशा भेड़-बकरी चराने का है। यह वही बक्करवाल समुदाय है जो अकसर भारतीय रक्षा बलों एवं प्रदेश पुलिस को पाक घुसपैठियों की जानकारी देकर सतर्प करता रहा है। इन दोनों मामलों में भाजपा नेताओं का नाम उछलने से भाजपा नेता अपनी कोई भी प्रतिक्रिया देने में सतर्पता बरत रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस मौके का फायदा उठाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर यह कहते हुए निशाना साधा है कि देश इंतजार कर रहा है कि महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा पर प्रधानमंत्री कुछ बोलें। उन्होंने ट्विटर पर लिखकर पूछा है कि बलात्कार और हत्या के आरोपियों को सरकार क्यों बचा रही है। इससे एक दिन पहले ही उन्होंने कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ इंडिया गेट पर दोनों मामलों के पीड़ितों को समर्थन देने के लिए कैंडल मार्च का आयोजन भी किया था।
जाहिर है कि इससे भाजपा पर दबाव पड़ा है। अंबेडकर जयंती की पूर्व संध्या पर दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में पीएम मोदी ने इसका जवाब देते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं निश्चित तौर पर सभ्य समाज के लिए खतरनाक हैं। उन्होंने कहा कि इन मामलों में कोई भी अपराधी नहीं बचेगा। न्याय होगा और पूरा होगा। उन्नाव गैंगरेप मामला उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए भी खासा सिरदर्द बढ़ाने वाला है। इस मामले से उत्तर प्रदेश को पूरी तरह अपराधमुक्त बनाने के उनके दावों को धक्का लगा है। उन्होंने अपराधियों को खुली चुनौती देते हुए कहा था कि अपराधी या तो अपराध छोड़ दें या फिर उत्तर प्रदेश से बाहर चले जाएं। नहीं तो उन्हें ऐसी जगह जाना पड़ेगा जहां कोई भी नहीं जाना चाहता। धड़ाधड़ एनकाउंटर उनके इस संकल्प की गवाही भी दे रहे थे। लेकिन उन्नाव गैंगरेप मामले में भाजपा विधायक का नाम उछलने के बाद कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल मुख्यमंत्री के प्रदेश को अपराधमुक्त बनाने के दावे की खिल्ली उड़ाते हुए पूछ रहे हैं कि क्या भाजपा विधायकों के लिए कोई अलग कसौटी है। आखिर क्यों हाई कोर्ट को यह निर्देश देना पड़ा कि भाजपा विधायक को अरेस्ट किया जाए। उनका सवाल है कि क्यों ताकतवर आदमी के सामने कानून घुटने टेक देता है। हालांकि योगी सरकार ने इस मामले में सक्रियता दिखाने की कोशिश की थी लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पीड़िता द्वारा सीएम के आवास के बाहर आत्महत्या करने का प्रयास और उसके पिता की पुलिस हिरासत में संदिग्ध मौत ने मामले को एकतरफा मोड़ दे दिया था। मामले को एसआईटी को सौंपने और पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई से भी कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि यह मामला लगभग 10 महीने पहले शुरू हुआ था। इस मामले में भाजपा विधायक की दबंगई और पुलिस व प्रशासन का आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर अनमनेपन `हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे' वाली कहावत को चरितार्थ किया है। ऐसे में कठुआ और उन्नाव मामलों से भाजपा को सिर्प जम्मू-कश्मीर या उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर भारत में नुकसान होने की आशंका है। यदि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ डैमेज कंट्रोल में नाकामयाब रहे तो 2019 में होने वाले आम चुनाव में भाजपा के अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा उत्तर प्रदेश में अटक सकता है जहां से लोकसभा की 80 सीटें हैं।

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Saturday, 14 April 2018

सीरिया में रासायनिक हमला

आतंकवाद तो छोड़िए, उसके उन्मूलन का अभियान कितना खौफनाक हो सकता है, इसकी एक झलक दुनिया को एक बार फिर तब मिली जब कुछ दिनों पहले सीरिया में विद्रोहियों के कब्जे वाले अंतिम शहर डौमा पर रासायनिक (कैमिकल) हमले की खबर आई। निगरानी समूहों का दावा है कि इसमें 70 से ज्यादा लोग मारे गए हैं और दर्जनों की संख्या में लोगों को सांस लेने में दिक्कत आ रही है। इस तरह का यह पहला हमला नहीं है। साल 2013 में पहली बार रासायनिक हथियार का इस्तेमाल खान अल-आसल पर किया गया था, तब से लेकर अब तक इस पूरे इलाके में दर्जनों ऐसे हमले हो चुके हैं। जानबूझ कर आम लोगों को निशाना बनाने वाले हमले बताते हैं कि हमलावर मानवता से कितनी दूर और युद्ध के अंतर्राष्ट्रीय नियमों को नहीं मान रहे हैं। हालांकि सीरिया ने इस हमले की निन्दा की है और अपने ऊपर लगे आरोपों को नकार रहा है। फिर भी यह समझना आसान है कि बशर-अल-असद ने दो कारणों से रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया है। पहला, उन्होंने ऐसा किया है क्योंकि उनके पास इसकी वजह है और वह ऐसा करने की क्षमता रखते हैं और दूसरा वह यह जानते हैं कि वह दूसरों की आंखों में धूल झोंकने में सफल होंगे। हालांकि सीरियाई सरकार ही नहीं, रूस जैसे मित्र देशों ने भी इन खबरों का खंडन किया, मगर जहां-तहां पड़े शव और अस्पतालों में सांस की तकलीफ से जूझते बच्चे हमले की भयावहता का अकाट्य सबूत है। ऐसे हमलों से जानमाल और ज्यादा नुकसान के अलावा कुछ हासिल नहीं होता। अच्छा है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक इस मामले पर हो रही है। हालांकि आपात बैठक को लेकर भी बड़ी शक्तियों में एका नहीं है। अमेरिकी अनुरोध पर हो रही बैठक में कैमिकल हमले के लिए जिम्मेदारी तय करने की कोशिश होगी तो रूस की पहल पर हो रही बैठक में इस घटना से अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा पर पैदा हो रहे खतरे पर विचार जरूर होगा। निश्चित तौर पर रूस को इसके लिए बड़ा जिम्मेदार माना जाएगा। सीरियाई वायुसेना इसलिए भी डौमा पर बम बरसा सकी, क्योंकि रूस का पश्चिमी सीरिया के हवाई क्षेत्र पर नियंत्रण है। यह संभव है कि रूस ऐसे फैसलों में शामिल नहीं रहा होगा, पर वह असद सरकार को सैन्य व कूटनीतिक बचाव तो करता ही है। सीरिया की सेना ने हेलीकॉप्टरों से जहरीली एवं एटेंट सरीन से युक्त बैरल बम गिराया था।

-अनिल नरेन्द्र

योगी की कठिन परीक्षा

उत्तर प्रदेश में एक युवती द्वारा भाजपा विधायक पर बलात्कार का आरोप और उसके बाद की हुई घटनाओं ने योगी आदित्यनाथ सरकार की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया है। उन्नाव की इस घटना ने हमारी व्यवस्था के प्रति जनता के विश्वास को गहरा झटका दिया है। इसने इस प्रचलित धारणा को और बल दिया है कि ताकतवर व्यक्ति या समुदाय आज भी पूरे तंत्र को अंगुलियों पर नचा रहा है और एक साधारण व्यक्ति का सुरक्षित रहना सिर्प एक संयोग है। हालांकि प्रदेश में इस प्रकार का आरोप का यह पहला वाकया नहीं है। पूर्व सपा एवं बसपा सरकारों के दौरान भी अनेक विधायकों एवं कुछ मंत्रियों पर इस प्रकार के आरोप लगे। लेकिन भाजपा की सरकार के लिए यह पहली चौंकाने वाली घटना है। उन्नाव में एक लड़की का आरोप है विधायक कुलदीप सेंगर और उनके साथियों ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया। लड़की थाने में शिकायत कराने गई तो रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई। अदालत के आदेश पर कई दिनों बाद मामला दर्ज हुआ तो केस वापस लेने का दबाव शुरू हो गया। पीड़िता के परिजनों को इतना परेशान किया गया कि उन्होंने मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्मदाह करने की कोशिश की। इसके बाद लड़की के अभागे पिता को कुछेक आरोपों में गिरफ्तार कर लिया गया और कस्टडी में ही उनकी तबीयत खराब हुई और मौत हो गई। उत्पीड़न की शिकार किशोरी अब भी आश्वस्त नहीं है कि उसे न्याय मिल पाएगा। उसने विधायक पर दुष्कर्म के आरोप के साथ उनके परिजन पर पिता की हत्या का आरोप लगाया है। पिछले एक वर्ष से किशोरी की फरियाद थाना, पुलिस से लेकर सत्ता प्रतिष्ठानों तक दम तोड़ती रही। सच यह है कि अगर संदिग्ध परिस्थितियों में उसका पिता जेल में नहीं मरता तो यह कार्रवाई भी नहीं हो पाती। यह सवाल उठने का वाजिब कारण भी है। लड़की और उसके परिवार तो आठ अप्रैल को लखनऊ में प्रदर्शन और आत्मदाह का प्रयास करके वापस उन्नाव लौट चुके थे। लड़की के इतने बड़े आरोप के बाद भी पुलिस ने कुछ नहीं किया था। कार्रवाई के नाम पर केवल कागजी घोड़े दौड़ाए जाते रहे। सोमवार तड़के करीब साढ़े तीन बजे किशोरी के पिता की मौत हुई तो पुलिस और जेल प्रशासन गंभीर सवालों के घेरे में आ गए और तब कोई एक्शन होना पुलिस की मजबूरी हो गया। यह भी कहा जा रहा है कि हाल के राज्यसभा चुनाव में बसपा विधायक को भाजपा के पाले में लाने में कुलदीप सेंगर की भी भूमिका रही। किशोरी तो पिछले वर्ष से ही विधायक पर आरोप लगा रही थी लेकिन विधायक के रसूख के आगे पुलिस बेबस थी। विधायक सेंगर सारे आरोपों से इंकार कर रहे हैं। जिन परिस्थितियों में आरोपी के पिता की पुलिस हिरासत में मौत हुई उससे मामला कहीं ज्यादा गंभीर हो गया है। पुलिस ने आरोपी के पिता पर क्यों मुकदमा दर्ज किया उन्हें क्यों हिरासत में लिया इसकी जांच आरंभ हो चुकी है और संबंधित पुलिस वालों को निलंबित भी कर दिया गया है। सीएम ने कहा है कि किसी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। विधायक के भाई का आरोपी के पिता से मारपीट के आरोप में गिरफ्तार किया जाना इस बात का संकेत है कि जांच कार्रवाई अब ठीक दिशा में होगी। आरोपी के पिता (मृत) के शरीर पर मारपीट के निशान साफ दिखाई दे रहे हैं यानि उनकी बुरी तरह पिटाई की गई। जो भी हो मामले की गहराई से जांच होनी चाहिए और इसका हर पहलू सामने आना चाहिए। भले ही यह यूपी का मामला है पर पूरे देश की नजरें इस समय इस पर और मुख्यमंत्री योगीनाथ पर टिकी हैं क्योंकि हमारे सिस्टम के लिए भी यह टेस्ट केस है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अगर यूपी को अपराधमुक्त बनाना चाहते हैं तो इस मामले की जल्द से जल्द जांच करवाएं और कसूरवारों को सलाखों के पीछे पहुंचाएं। यह उनके लिए भी प्रतिष्ठा का केस बन गया है।

Thursday, 12 April 2018

क्या आधार बैंकों की धोखाधड़ी को रोक सकता है?

विशिष्ट पहचान नम्बर यानि आधार की अनिवार्यता का दायरा सरकार लगातार बढ़ाती जा रही है। इसके पीछे सरकार कई प्रकार के तर्प दे रही है। उदाहरण के तौर पर प्रशासनिक कामकाज, योजनाओं और वित्तीय लेनदेन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने से लेकर आतंकवाद से कारगर ढंग से निपटने जैसे तमाम तर्प दिए जा रहे हैं। पर आधार के मिसयूज होने पर सरकार कोई टिप्पणी नहीं कर रही है और न ही बता रही है कि सरकार के पास आधार के दुरुपयोग रोकने के लिए क्या कारगर योजना है? सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार के इस तर्प को खारिज कर दिया कि पहचान संख्या आधार हर भ्रष्टाचार को रोकने का एक सुनिश्चित हथियार है। कोर्ट ने कहा कि आधार हर धोखाधड़ी को नहीं पकड़ सकता। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने यह टिप्पणी आधार कानून की कानूनी वैधता का परीक्षण करने के दौरान कही। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने जब यह कहा कि आधार के जरिये हजारों करोड़ रुपए की धोखाधड़ी, बेनामी लेनदेन पकड़े गए हैं और तमाम फर्जी कंपनियों का खुलासा हुआ है। इस पर जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ ने कहा कि आधार प्रत्येक धोखाधड़ी का इलाज नहीं है। खासकर बैंकों में धोखाधड़ी रोकने में यह कामयाब नहीं है। यदि कोई व्यक्ति अलग कंपनियां शुरू कर रहा है तो यह अपने आपमें धोखाधड़ी नहीं है। समस्या तब आती है जब बैंक मल्टीपल एंट्री के जरिये लोन देता है। आधार में ऐसा कुछ नहीं है जिससे व्यक्ति को वाणिज्यिक गतिविधियों की श्रृंखला में लेनदेन करने से रोका जा सके। हम नहीं समझते कि आधार ऐसे बैंक धोखाधड़ी को रोक सकता है। हां, कल्याणकारी योजनाओं में धोखाधड़ी को रोकने की बात समझी जा सकती है। निजता को नागरिक का मौलिक अधिकार मानने के सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले से सरकार के रुख को तगड़ा झटका तो लगा, पर वह अपनी जिद पर कायम रहते हुए हर चीज को आधार से जोड़ने के नए-नए फरमान जारी करती रही है। एक बार फिर अदालत ने सरकार के रूप में प्रथम दृष्टया असहमति जताई है। देखना यह है कि क्या सरकार के रुख में कोई परिवर्तन आता है और अदालत में चल रहे मामले का अंतिम परिणाम क्या होता है? सुप्रीम कोर्ट ने केवल कुछ आतंकवादियों को पकड़ने के लिए पूरी जनता के अपने मोबाइल फोन आधार से जोड़ने पर भी केंद्र पर सवाल खड़े किए हैं। अगर कल को अधिकारी प्रशासनिक आदेशों के जरिये नागरिकों के आधार के तहत डीएनए जोड़े तो?

-अनिल नरेन्द्र

विपक्ष की तुलना जानवरों से करना अपमानजनक है

भारतीय जनता पार्टी के 38वें स्थापना दिवस समारोह में पार्टी के अध्यक्ष अमित भाई शाह के विपक्षी एकजुटता के बयान पर बवाल तो मचना ही था क्योंकि उन्होंने बात ही ऐसी कही। पचतंत्र की कहानी का उदाहरण देते हुए अमित शाह का कहना था कि जब बाढ़ आती है और सारे पेड़-पौधे बह जाते हैं तो सिर्प एक वटवृक्ष बच जाता है। ऐसे में सांप-नेवला, कुत्ता-बिल्ली, चीता सब एक हो जाते हैं और पेड़ पर चढ़कर अपनी जान बचाते हैं। कट्टर दुश्मनी का उन जीवों का चरित्र विपत्ति के वक्त बदल जाता है। हमारी राय में अमित शाह को अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करना शोभा नहीं देता। आज अगर विपक्ष के प्रति इस उदाहरण पर तमाम विपक्ष भाजपा पर हमलावर हो गया है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने विपक्ष की तुलना जानवरों के साथ करने पर अमित शाह के बयान की निन्दा करते हुए आरोप लगाया कि इस अपमानजनक बयान से उनकी मानसिकता का पता चलता है जिसमें दलित, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और यहां तक कि उनकी पार्टी के नेताओं को व्यर्थ समझा गया है। राहुल ने कहाöअमित शाह पूरे विपक्ष को जानवर कह रहे हैं और भाजपा-आरएसएस का बुनियादी दृष्टिकोण है कि इस देश में केवल दो गैर-जानवर हैं। एक श्री नरेंद्र मोदी और श्री अमित शाह। संविधान के तहत हर किसी को बोलने की आजादी का अधिकार है। लेकिन किसे कब, क्या और कैसे बोलना है, यह समझदारी आज तक ज्यादातर नेताओं में नहीं आई है। सार्वजनिक मंच पर देश पर शासन करने वाली पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का ऐसा बयान सुनकर यकीन नहीं होता, दोबारा-तिवारा सुनकर भी यकीन नहीं होता। लेकिन अमित शाह का कॉन्फिडेंस ऐसा है कि इसके बाद प्रेस कांफ्रेंस में जब उनसे यह पूछा जाता है कि उन्होंने ऐसा किन लोगों के लिए कहा तब वे कहते हैं, मैंने सांप और नेवले का उदाहरण इसलिए दिया क्योंकि वो आमतौर पर इकट्ठा नहीं होते। विचारधाराओं से परे दल मोदी जी के वेब (लहर) के कारण इकट्टा हो रहे हैं। उन्हें बुरा लगा हो तो मैं नाम बता देता हूंöसपा-बसपा, कांग्रेस-तृणमूल, नायडू और कांग्रेस। वैसे यह ठीक बात है कि सपा-बसपा एक-दूसरे के विरोध के लिए जानी जाती रही हैं, लेकिन राजनीति में एक-दूसरे का विरोध करने वाले दलों का कोई गठबंधन पहली बार तो भारत में नहीं बन रहा है। नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार और 20 राज्यों में भाजपा की सरकारों का एक सच यह भी है कि भारतीय जनता पार्टी का करीब 44 दलों से गठबंधन चल रहा है और यह जरूरी नहीं कि सभी सहयोगियों का भाजपा की नीतियों के प्रति समर्थन हो। अमित शाह को शायद यह याद नहीं रहा कि देश में इंदिरा गांधी के खिलाफ 1977 में पूरा विपक्ष एकजुट हुआ था। उस एकजुटता में जनसंघ के अटल बिहारी वाजपेयी भी थे और वामपंथी दल भी थे। राजनीति में इसकी गुंजाइश हमेशा से रही है कि लोग चुनाव जीतने लायक गठबंधन बनाते रहे हैं। अमित शाह का राजनीतिक अनुभव दो दशक से भी ज्यादा का हो चुका है। लिहाजा यह तो नहीं माना जा सकता कि यहां उनकी जुबान फिसल गई हो, वैसे भी वो जो भाषण पढ़ रहे थे वो लिखित था। हालांकि पिछले एक महीने में एक बार उनकी जुबान फिसली है, जब कर्नाटक में उन्होंने अपने ही पूर्व मुख्यमंत्री को राज्य का सबसे भ्रष्ट मुख्यमंत्री बता दिया था। इसके बाद कर्नाटक की ही एक चुनावी सभा में उनके भाषण का अनुवाद ऐसा हो गया कि मोदी जी देश को बर्बाद कर देंगे तो ऐसा लग रहा है कि 2019 के आम चुनाव की आंच अमित शाह पर पड़ने लगी है। इस आंच के ताप को विपक्षी गठबंधन की खबरों ने बढ़ा दिया है। विपक्ष की एकजुटता को दूसरे तरीके से भी समझाया जा सकता था पर शाह ने जो उदाहरण देकर समझाने की कोशिश की वह दुर्भाग्यपूर्ण है।

Wednesday, 11 April 2018

भारतीय रेलवे का तो भगवान ही मालिक है

भारतीय रेलवे का भगवान ही मालिक है। यहां तो बिन इंजन के ट्रेन चलती है। ओडिशा में लापरवाही की इंतहा हो गई। बोलांगीर जिले के टिलागढ़ में अहमदाबाद-पुरी एक्सप्रेस बगैर इंजन के पटरी पर दौड़ पड़ी। यह घटना उस समय हुई जब बोलांगीर जिले के टिलागढ़ से कालाहांडी जिले कीथेसिंग की ओर जा रही 22 डिब्बों वाली इस एक्सप्रेस ट्रेन के इंजन को दूसरी तरफ लगाने के लिए अलग किया गया था। सभी यात्री सुरक्षित हैं और सतर्प कर्मियों ने पटरी पर पत्थर लगाकर डिब्बों को रोक लिया। ईस्ट कोस्ट ओडिशा रेलवे (ईसीओआर) के एक प्रवक्ता ने बताया कि शनिवार रात बिना इंजन के पटरी पर दौड़ने के तुरन्त बाद ही दो कर्मियों को बर्खास्त कर दिया गया था और बाकी पांच को आज सुबह बर्खास्त किया गया। करीब 15 किलोमीटर पटरी पर इंजन के बगैर दौड़ी थी पुरी एक्सप्रेस। इंजन के बिना डिब्बे इसलिए चल पड़े थे क्योंकि वहां तैनात कर्मियों ने ट्रेन के पहियों पर शायद स्किड ब्रैक नहीं लगाए थे। नियमानुसार ट्रेन के पहियों पर स्किड ब्रैक लगाए जाने चाहिए। सावधान, अगर आप ट्रेन में सफर कर रहे हैं और दिल्ली से गुजरने वाले हैं तो सतर्प रहें क्योंकि यहां ट्रेनों में लूट, चोरी और झपटमारी की वारदातें बढ़ती जा रही हैं। चोर कुछ चुनिन्दा जगहों पर ट्रेन के यात्रियों को निशाना बना रहे हैं। दिल्ली में पिछले 15 दिनों में दो ऐसी वारदातें सामने आई हैं। एक में कुछ बदमाशों ने दिल्ली-अम्बाला के बीच चलने वाली पैसेंजर ट्रेन में चाकू की नोक पर लूटपाट की जबकि दूसरी कालिंदी एक्सप्रेस में यात्रियों के साथ लूट के दौरान चाकूबाजी की गई। दोनों ही वारदातों में आरोपी वारदात को अंजाम देकर मौके से फरार हो गए। ट्रेनों में क्राइम का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है। 2013 में 760 वारदातें हुई जो 2014 में बढ़कर 1879 हो गई। 2015 में यह आंकड़े 3389 हो गया और 2016 में बढ़कर 4368 हो गया। वर्ष 2017 के आंकड़े अभी तैयार किए जा रहे हैं। सूत्रों की मानें तो इस बार संख्या पांच हजार का आंकड़ा पार कर गई है। दिल्ली जोन में भी लगातार वारदातें बढ़ रही हैं। इसके चलते अब कई स्टेशनों के बीच जवानों को ट्रेनों में तैनात किया जा रहा है। रेलवे टिकटों की कीमत में लगातार बढ़ोत्तरी करती जा रही है और सुरक्षा के लिए उचित कदम नहीं उठा रही। रेलवे की इस लापरवाही का चोर फायदा उठा रहे हैं और नतीजा यह है कि रेल यात्रा करना अब जोखिम-भरा हो गया है। उम्मीद है कि रेलमंत्री व अधिकारी यात्रियों की सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान देंगे और उचित कदम उठाएंगे।

-अनिल नरेन्द्र

मामला पांच बाबाओं को राज्यमंत्री का दर्जा देने का

मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव इस साल के अंत में होने हैं। उपचुनाव में हार से मध्यप्रदेश में श्री शिवराज सिंह चौहान चिंतित हैं। अब मुख्यमंत्री तरह-तरह के हथकंडे व कदम उठा रहे हैं ताकि आगामी चुनाव एक  बार फिर से वह जीत सकें। इससे साफ जाहिर है कि उन्हें अपने 14 सालों के कामों पर पूरा भरोसा नहीं। शायद भाजपा सरकार के 14 साल के काम से जनता संतुष्ट नहीं हो पाई। किसान, दलित, व्यापारी, मध्य वर्ग और कर्मचारी भाजपा सरकार की व्यवस्था से संतुष्ट नहीं हैं। यही वजह है कि शिवराज सिंह चौहान ने पांच बाबाओं को मंत्री का दर्जा दिया है। बता दें कि कम्प्यूटर बाबा के साथ इंदौर के भैयु महाराज, अमरकंटक (नर्मदा उद्गम) के हरिहरानंद जी, डिंडोरी के नर्मदानंद जी और पंडित योगेंद्र महंत को राज्यमंत्री पद का दर्जा देने वाला आदेश जारी कर दिया गया। फैसले के बाद से इस पर सवाल खड़े हो रहे हैं। राम बहादुर शर्मा नाम के एक व्यक्ति की ओर से मध्यप्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर बैंच में जनहित याचिका दाखिल की गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि उन्होंने राज्यमंत्री की संवैधानिकता को लेकर याचिका लगाई है। फैसले के कारण बाबाओं के रुख में भी अचानक बदलाव आया है। कल तक जिन संतों ने शिवराज द्वारा विकास कार्यों की पोल खोलने के लिए नर्मदा घोटाला यात्रा शुरू करने का ऐलान किया था मंत्री पद की हैसियत मिलने के बाद वे बाबा जनजागरण करने की बात करने लगे हैं। बीते 28 मार्च को इंदौर के गोम्टगिरी स्थित कालिका आश्रम में संतों की एक बैठक में एक अप्रैल से 15 मई तक नर्मदा घोटाला महायात्रा निकालने का निर्णय लिया गया था। यह भी तय हुआ था कि इस यात्रा के दौरान उन छह करोड़ 67 लाख पौधों की गिनती का काम होगा जो मुख्यमंत्री चौहान की नर्मदा सेवा यात्रा कार्यक्रम के तहत गत वर्ष दो जुलाई से लगाए गए थे। इन बाबाओं ने इस सरकारी मेगा शो को महाघोटाला करार दिया था। कांग्रेसी नेता राज बब्बर ने पांच बाबाओं को राज्यमंत्री का दर्जा दिए जाने के फैसले को लेकर शिवराज सिंह चौहान सरकार पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि शिवराज सिंह चौहान को विधानसभा चुनाव में जीत के लिए अब बाबाओं पर भरोसा करना पड़ रहा है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस सांसद कांतिलाल भूरिया ने कहा कि संतों ने जब कहा कि वे सरकार के साढ़े छह-सात करोड़ के भ्रष्टाचार की पोल खोलने वाले हैं तो सरकार ने उनका मुंह बंद करने के लिए उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया है। देखना होगा कि बाबाओं के सहारे शिवराज सिंह चौहान की नैया पार होती है या नहीं?

Tuesday, 10 April 2018

सलमान को तीन दलीलों ने जमानत दिलाई

काला हिरण शिकार मामले में फिल्म अभिनेता सलमान खान को जमानत दिलाने में उनके वकील महेश बोरा का बड़ा हाथ रहा। वकील बोरा की जोधपुर सत्र न्यायालय में दी गई दलीलें अभियोजन पक्ष पर भारी पड़ी जिससे सलमान को जमानत मिल गई। पहली दलील में कहा कि हाई कोर्ट उनके मुवक्किल को दो अन्य मामलों में बरी कर चुका है। इसके साथ ही कोर्ट में यह साबित नहीं हो सका कि चिंकारा हिरण को सलमान ने ही अपने लाइसेंस रिवॉल्वर से मारा था। वहीं सलमान के वकील ने अपनी दूसरी दलाल में कहा कि गवाहों के बयान पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। जबकि वकील ने तीसरी दलील में कहा कि पोस्टमार्टम के लिए हिरण की हड्डियां ही भेजी गई थीं। जोधपुर सेंट्रल जेल में कैदी नम्बर 106, यानि सलमान आखिरकार 50 घंटे बाद जमानत मिलने पर बाहर निकले। गुरुवार अपराह्न 2.55 बजे सेंट्रल जेल की लाल फाटक में पहुंचने के बाद शुक्रवार का पूरा दिन जेल में गुजारा। शनिवार अपराह्न कोर्ट से जमानत मिलने की सूचना जेल स्टाफ से मिली तो सलमान भावुक हो गए और मुंह से कोई शब्द नहीं निकला। कुछ देर बाद वह सामान्य हुए और अपना सामान समेटना शुरू किया। कोर्ट से जमानत का आदेश पहुंचने तक के करीबन डेढ़ घंटे तक सलमान तैयार होकर इंतजार करते रहे। शाम 5.10 बजे कोर्ट से आदेश की कॉपी जेल प्रशासन के पास पहुंची। इसी बीच डीसीपी (ईस्ट) डॉ. अमनदीप सिंह कपूर भी सेंट्रल जेल पहुंचे और सुरक्षा व्यवस्थाओं का जायजा लेकर डीआईजी जेल विक्रम सिंह से चर्चा की। ऑर्डर की कॉपी मिलने के बाद जेल प्रशासन ने औपचारिकताएं पूरी की और ठीक 5.32 बजे सलमान जेल के मेन गेट से बाहर निकले। जेल अधिकारियों और स्टाफ से हाथ मिलाकर धन्यवाद किया और एयरपोर्ट रवाना हो गए। सलमान की रिहाई का आदेश तीन बजे आया। इससे आधा घंटा पहले दोपहर ढाई बजे ही चार्टर की बुकिंग करवाई। यह शेड्यूल एयरपोर्ट को मिल गया था। इसके अनुसार दिल्ली से चार्टर विमान को अपराह्न साढ़े चार बजे आना था और शाम पांच बजे मुंबई के लिए उड़ना था। लेकिन चार्टर की बुकिंग के साथ ही उसके पैसेंजर की सूची भी दी गई। निर्धारित समय 4.30 बजे के स्थान पर यह चार्टर 4.52 बजे जोधपुर में लैंड हुआ। निर्धारित समय साढ़े पांच बजे की बजाय सलमान को लेकर यह विमान शाम छह बजकर पांच मिनट पर उड़ा। सलमान का मुंबई पहुंचने पर जो भव्य स्वागत हुआ वह सबने देखा। सेशन कोर्ट के आदेश के अनुसार सलमान बिना इजाजत के देश नहीं छोड़ सकते। सात मई को कोर्ट में इन्हें उपस्थित होना है और उसी दिन सजा स्थगन पर भी सुनवाई होगी।

-अनिल नरेन्द्र

क्या हमें ऐसी संसद की जरूरत है भी?

सब सड़क मौन हो जाती हैं तो देश की संसद आवारा या बांझ हो जाती है, यह बात डाक्टर राम मनोहर लोहिया ने कोई छह दशक पहले कही थी, लेकिन देश के मौजूदा राजनीतिक माहौल और संसद की भूमिका पर आज भी सटीक रूप से लागू होती है। बीते पांच मार्च से शुरू हुए संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण भी लगभग पूरी तरह हंगामे की भेंट चढ़ गया, सत्र के पहले चरण में भी राष्ट्रपति के अभिभाषण, उस पर हुई कर्परा बहस और उसके जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कटाक्षों से भरे भाषण के अलावा कुछ भी उल्लेखनीय नहीं हो पाया था। संसद में आरोपों-प्रत्यारोपों की राजनीति के चलते जनता की गाढ़ी कमाई के 451 करोड़ रुपए माननीयों ने पानी में बहा दिए। दोनों सदनों में 248 घंटे की कार्यवाही हंगामे की भेंट चढ़ गई। दोनों सदनों के एजेंडे में शामिल 65 विधेयक सदन का मुंह नहीं देख पाए। संसद की एक घंटे की कार्यवाही पर डेढ़ करोड़ रुपए खर्च होते हैं। यह बजट सत्र पिछले 20 सालों में सबसे खराब सत्र रहा है। केंद्र में सरकार चाहे जिस पार्टी की हो, उसकी कोशिश संसद में काम चलाने, उसकी उपेक्षा करने या उससे मुंह चुराने या उसका मनमाना इस्तेमाल करने की रही है। इसी प्रवृत्ति के चलते देश की सबसे बड़ी पंचायत में हंगामा और नारेबाजी अब हमारे लोकतंत्र का स्थायी भाव बन चुका है। पिछले कुछ दशकों के दौरान शायद ही कोई संसद का सत्र ऐसा रहा हो, जिसका आधे से ज्यादा समय हंगामे में जाया न हुआ हो। महज खानापूर्ति देश के 70 वर्ष के संसदीय इतिहास में यह पहला अवसर है जब देश का आम बजट और वित्त विधेयक बिना बहस के पारित हो गया। ऐसा ही एक इतिहास छह महीने पहले भी रचा गया था जब संसद का शीतकालीन सत्र सरकार ने बिना किसी जायज वजह से निर्धारित समय से लगभग डेढ़ महीने बाद आयोजित किया था, वह भी विपक्ष के दबाव में और महज खानापूर्ति के लिए बेहद संक्षिप्तöमहज 14 दिन का। लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति की ओर से भी इस सिलसिले में कोई संजीदा पहल नहीं की गई, जिससे सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चल सके। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के अलावा आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों की क्षेत्रीय पार्टियों के सांसद अपने-अपने सूबों से संबंधित मसलो पर बहस की मांग पर हंगामा करते रहे और पीठासीन अधिकारी सदन को स्थगित करते रहे। विपक्ष के सवालों का सामना, दोनों सदनों में हंगामा और कार्यवाही का बार-बार स्थगित होना सरकार के लिए मनमाफिक ही था। अगर यह स्थिति नहीं बनती और संसद सुचारू रूप से चलती तो सरकार कई मोर्चों पर घिर सकती थी। सरकार को गिरती अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, नित नए उजागर हो रहे बैंक घोटालों में सत्तारूढ़ दल के शीर्ष नेतृत्व से करीबी लोगों की भूमिका और उनका विदेश भागना, लड़ाकू रॉफेल विमानों का विवादास्पद सौदा, देश के विभिन्न भागों में जातीय और सांप्रदायिक तनाव, चीनी घुसपैठ, कश्मीर के बिगड़ते हालात आदि सवालों पर विपक्ष के सवालों का सामना करना पड़ता, जो उसके लिए आसान नहीं था। इसके अलावा एससी/एसटी एक्ट के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर जो हंगामा देश की सड़कों पर हो रहा है क्या सदन में इतने बड़े मुद्दे पर बहस नहीं होनी चाहिए थी, बिल्कुल होनी चाहिए थी, लेकिन नहीं हुई। फिर विपक्ष की ओर से आया अविश्वास प्रस्ताव तथा सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की चर्चा भी सरकार की मुसीबतों में इजाफा ही करता। जाहिर है कि सरकार भी नहीं चाहती थी कि संसद चले। इन सब बातों से यह सवाल उठता है कि क्या देश में संसद की जरूरत खत्म हो गई है?

Sunday, 8 April 2018

भारतीय फिल्में चीन की दीवार फांदने में कामयाब

अगर हम राज कपूर की फिल्में छोड़ दें तो चीन भारतीय फिल्मों का कभी बड़ा बाजार नहीं रहा है, लेकिन पिछले कुछ समय से लगता है कि चीन के दर्शकों को भारतीय फिल्में भाने लगी हैं। राज कपूर की फिल्में रूस में भी बहुत लोकप्रिय थीं। पर चीन में पहले किसी भारतीय फिल्म की ज्यादा चर्चा नहीं सुनी थी। जब जैकी चैन भारत आए थे तब उन्होंने कहा था कि मैं भारत के बारे में तीन ही चीजों को जानता हूंöएक आमिर खान, दूसरा थ्री इडियट्स और तीसरा बॉलीवुड का डांस। जैकी चैन ही क्यों, विश्व के कोने-कोने में लोग भारत को उसकी फिल्मों से जानते-पहचानते आए हैं। एक समय था जब राज कपूर, मिथुन चक्रवर्ती की फिल्में सोवियत संघ में बहुत लोकप्रिय थीं। अमिताभ बच्चन की फिल्मों ने भी मध्य एशिया में बहुत लोकप्रियता पाई। शाहरुख खान को यूरोप में काफी लोकप्रियता मिली लेकिन चीन हमारी फिल्मों का कभी बड़ा बाजार नहीं रहा। लेकिन लगता है कि समय के साथ उसमें परिवर्तन आ रहा है और अब हमारी कई फिल्में चीन के बॉक्स ऑफिस पर करोड़ों की कमाई कर रही हैं। इस वर्ष रिलीज हुई सलमान खान की फिल्म बजरंगी भाईजान तीन हफ्तों में चीन के बॉक्स ऑफिस पर 250 करोड़ से ज्यादा की कमाई कर चुकी है और यह पहली फिल्म नहीं है जिसने पड़ोसी देश में रिकार्ड कमाई की हो। इससे पहले आमिर खान की थ्री इडियट्स, पीके, दंगल और सीकेट सुपर स्टार भी करोड़ों की कमाई कर चुकी हैं। इरफान खान की हिन्दी मीडियम तीसरी भारतीय फिल्म होगी जो इस साल में चीन में रिलीज होगी। हिन्दी मीडियम चार अप्रैल को रिलीज हुई। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन की यात्रा पर गए थे, तब वहां के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने उनसे दंगल फिल्म का जिक्र किया था। अब सवाल यह है कि आखिर चीन के लोगों को हमारी फिल्में इतनी पसंद क्यों आती हैं? जबकि यह जगजाहिर है कि भारत और चीन एक-दूसरे के दुश्मन हैं और समय-समय पर दोनों देशों का मामला लड़ाई के स्तर तक पहुंच जाता है। दंगल को वहां नौ हजार थियेटरों में रिलीज किया गया था। चीन में सबसे ज्यादा दंगल देखी जाने वाली हिन्दी फिल्म है। शायद इस फिल्म में चीनी दर्शकों को अपनी जिन्दगी की झलक दिखती है। यहीं सलमान खान की बजरंगी भाईजान की सफलता से पता चलता है कि वहां के दर्शक एक खास तरह की फिल्मों को देखने के भूखे हैं, जो समाज को एक खास संदेश दें। चुनिन्दा भारतीय फिल्मों को चीन में सफलता मिलने से लगता है कि भारतीय फिल्में चीन की दीवार फांदने में कुछ हद तक कामयाब हो गई हैं।

-अनिल नरेन्द्र

पिंजरे में टाइगर सलमान खान

हिन्दी फिल्मों में जैसी नाटकीयता होती है, अकसर ऐसा असल जिन्दगी में नहीं होता, इसका अहसास बॉलीवुड सितारे सलमान खान को हो रहा होगा, जिन्हें 20 साल पहले काले हिरणों के शिकार से संबंधित केस में जोधपुर की एक अदालत ने पांच साल की सजा सुनाई है। सलमान खान को सुनाई गई सजा से स्वाभाविक ही यह संदेश गया है कि देश के कानून से ऊपर कोई नहीं है। सलमान खान को हुई पांच साल की सजा जितना हैरान नहीं करती, उससे कहीं ज्यादा भारतीय न्याय-व्यवस्था के बारे में सोचने को मजबूर करती है। यह सजा उस 20 साल पुराने मामले में हुई है जब एक फिल्म हम साथ-साथ हैं, की शूटिंग के दौरान सलमान खान अपने सहयोगियों सैफ अली खान, नीलम, सोनाली और तब्बू के साथ शिकार पर निकले थे। आरोप है कि इस शिकार के दौरान उन्होंने एक चिंकारा और दो काले हिरणों का शिकार किया। चिंकारा और काले हिरण, दोनों ही दुर्लभ वन्य जीवों की श्रेणी में आते हैं और उनका शिकार करना गैर-कानूनी है। सलमान को सजा सुनाने के साथ हिरासत में ले लिया गया। अलबत्ता अदालत ने इस मामले में अन्य चार आरोपी सैफ, तब्बू, सोनाली व नीलम को बरी कर दिया। सलमान को सजा उनके चाहने वालों के साथ और तमाम फिल्म उद्योग के लिए बहुत बड़ा धक्का है। बॉलीवुड की चिन्ता का कारण है कि सलमान की तीन फिल्में पूरी नहीं हुई हैं, जिनमें करीब 400 करोड़ रुपए दांव पर लगे हैं। सलमान खान पर जोधपुर में चार मुकदमे किए गए थे। एक मामले में उन्हें निचली अदालत से पांच वर्ष की सजा सुनाई गई मगर उच्च न्यायालय से वे बरी हो गए। एक अन्य मामले में एक साल की सजा हुई जिसे उच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया। यह दोनों मामले सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हैं। 10 साल पहले भी सलमान खान इसी मामले में तीन बार छह-छह दिनों के लिए जेल जा चुके हैं। 1998, 2006 फिर अप्रैल 2006, जनवरी 2017 और अब अप्रैल 2018। सलमान खान पिछले 20 सालों में 19 दिनों के लिए जेल गए हैं। सलमान का अदालतों से पुराना संबंध रहा है। 2002 में हिट एंड रन से संबंधित एक मामले में उन्हें उच्च न्यायालय ने बरी भले ही कर दिया, मगर इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा चुकी है। आमतौर पर कामयाब और चर्चित लोग यह मानकर चलते हैं कि लोग उनकी एक झलक के लिए पागल दिखते हैं। लिहाजा वे कुछ भी कर सकते हैं। समाज और प्रशासन तंत्र उनकी गलती को अपने आप नजरंदाज कर देगा। ऐसे लोग अपने लिए हर स्तर पर विशेष छूट की अपेक्षा करते हैं, जो अकसर उन्हें मिल भी जाती है। लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि समाज उनका गुलाम नहीं है। लोग उन्हें आदर्श मानते हैं, उनके हर आचरण की नकल करते हैं, इसलिए उनकी यह जवाबदेही बनती है कि वे ऐसा कुछ न करें, जिसे लोग गलत मिसाल की तरह ग्रहण करने लगें। उन्हें नियम-कानून का पालन करना चाहिए, अपने सहयोगियों से मधुर व्यवहार करना चाहिए और सार्वजनिक रूप से ऐसा कोई बयान नहीं देना चाहिए, जिससे समाज में अशांति फैले। आशा की जानी चाहिए कि सलमान प्रकरण से देश के दूसरे सेलिब्रिटीज भी सबक लेंगे। बिश्नोई समाज ने विलुप्तप्राय जीवों की श्रेणी में रखे गए दो जानवरों का शिकार करने के मामले को तार्पिक परिणति तक ले जाने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखी। बिश्नोई समाज के लिए काले हिरणों की बड़ी मान्यता है। वे मानते हैं कि काले हिरण के रूप में ही उनके धार्मिक गुरु भगवान जमेश्वर का पुनर्जन्म हुआ, जिन्हें जबांजी के नाम से भी जाना जाता है। पता नहीं अंत में सलमान खान इन चारों मामलों में बरी होते हैं या उनको सजा मिलती है परन्तु इस फैसले का संदेश है कि हम किसी भी कारण से वन्य जीवों का शिकार न करें। केवल कानून के भय से ही नहीं, उन जीवों का पर्याप्त संख्या में जीवित रहना पारिस्थितिकीय संतुलन के लिए अपरिहार्य है। सलमान खान को शिकार करते वक्त इसके कठोर कानूनों का पता था या नहीं, कहना कठिन है। मगर इतने वर्षों में उन्हें मुकदमे का जिस तरह सामना करना पड़ा है और कुछ समय जेल में भी गुजारना पड़ा है, उसके बाद देश के एक-एक व्यक्ति को यह पता जरूर चल गया होगा कि वन्य जीवों का शिकार करना बड़ा अपराध है।

Saturday, 7 April 2018

...और अब यूएन की सूची में पाक के 139 आतंकी

एक बार फिर दुनिया के सामने पाकिस्तान का आतंकी चेहरा उजागर हुआ है। इस बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने दुनियाभर के आतंकियों की नई सूची जारी की है। इस सूची में पाकिस्तान के 139 लोगों/संगठनों का नाम शामिल है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस सूची में मुंबई हमले के सरगना लश्कर-ए-तैयबा का भी नाम है। पाकिस्तानी अखबार डॉन के अनुसार सूची में शीर्ष पर ओसामा बिन लादेन के उत्तराधिकारी अमान अल जवाहिरी का नाम है। इस सूची में उन सभी को चिन्हित किया गया है जो पाकिस्तान में रह चुके हैं, वहां से अपनी गतिविधियां चलाई हैं या फिर अपनी गतिविधियां चलाने के लिए पाकिस्तानी जमीन का इस्तेमाल करने वाले संगठनों से जुड़े रहे हैं। एलटी प्रमुख हाफिज सईद को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में शामिल किया गया है जो इंटरपोल का वांछित है और कई आतंकी गतिविधियों में शामिल है। लश्कर-ए-तैयबा ने मुंबई में कई जगहों पर आतंकी हमले कराए थे और इनमें छह अमेरिकी नागरिक सहित 166 लोग मारे गए थे। खबर के अनुसार संयुक्त राष्ट्र की इस सूची में भारतीय नागरिक दाऊद इब्राहिम कासकर का भी नाम है। रिपोर्ट के अनुसार दाऊद के पास कई पासपोर्ट हैं जो रावलपिंडी और कराची से जारी हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र का दावा है कि कराची के एबटाबाद में दाऊद का एक बड़ा बंगला है। सूची में हाजी मोहम्मद, अब्दुल सलाम और जफर इकबाल भी शामिल हैं। सूची में जैश-ए-मोहम्मद, अफगान सहयोग समिति, लश्कर-ए-झांगवी, अल अख्तर ट्रस्ट इंटरनेशनल, हरकत उल जेहाद इस्लामी, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, जमात उल अहरार और खतीबा इमाम अल-बुखारी के नाम भी शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार सूची में कुछ नाम ऐसे भी हैं जो अफगान-पाक सीमा क्षेत्र में सक्रिय हैं। यों तो यह जगजाहिर है कि पाकिस्तान सरकार और सेना की मर्जी के बिना कोई आतंकी संगठन अपनी गतिविधियां नहीं चला सकता। पाकिस्तान ने तो हाफिज सईद तक को आतंकी मानने से इंकार कर दिया था। संयुक्त राष्ट्र की इस कार्रवाई के बाद वह हाफिज जैसे आतंकी सरगनाओं को अब कैसे बचाएगा, यह देखने वाली बात होगी। हालांकि दुनिया को मूर्ख बनाने के लिए पाकिस्तान ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन साथ ही मखौटा संगठन के रूप में जमात-उद-दावा जैसा संगठन खड़ा करवा दिया। बाद में अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने जेयूडी को भी आतंकी संगठन घोषित कर दिया। यह किसी से छिपा नहीं कि हाफिज व अन्य जेहादी संगठनों को पाक सेना का पूर्ण समर्थन है और इन्हें संयुक्त राष्ट्र की सूची की ज्यादा परवाह भी नहीं। ऐसे में देखना है कि संयुक्त राष्ट्र की ताजा कवायद के बाद पाकिस्तान का क्या रुख होता है?

-अनिल नरेन्द्र

केजरीवाल टर्न नॉट अलाउड के साइन बोर्ड

कल मैं जब अपने निवास सुंदर नगर से कार्यालय (बहादुर शाह जफर मार्ग) जा रहा था तो प्रगति मैदान के सामने बिजली के खम्भे पर एक पोस्टर टंगा था। इस पोस्टर पर लिखा था यूटर्न प्राहिविटिड और उसके नीचे श्री केजरीवाल की फोटो पर काटा लगा हुआ था और लिखा थाöकेजरीवाल टर्न नॉट अलाउड। मानहानि के केस में सजा से बचने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल एक के बाद एक राजनीतिज्ञों से माफी मांग रहे हैं। इससे उनकी खूब फजीहत हो रही है। सियासी लोग उन पर तंज कस रहे हैं। इसी कड़ी में अकाली-भाजपा गठबंधन के विधायक मनजिन्दर सिंह सिरसा दिल्ली के चौराहों पर केजरीवाल टर्न नॉट अलाउड के बोर्ड लगवा रहे हैं। माफी मांगने का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए अब श्री केजरीवाल ने वित्तमंत्री अरुण जेटली से भी माफी मांग ली है। यह केजरीवाल की अब तक की सबसे बड़ी माफी मानी जा रही है। उनके साथ आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह, आशुतोष, दीपक वाजपेयी और राघव चड्ढा ने भी माफी मांगी है। जेटली ने इन सभी को माफ भी कर दिया है। इसके बाद दोनों पक्षों ने दिल्ली हाई कोर्ट और पटियाला हाउस कोर्ट में मानहानि का केस वापस ले लिया है। वहीं कुमार विश्वास ने माफी मांगने से इंकार कर दिया है। ऐसे में उन पर कानूनी प्रक्रिया चलती रहेगी। केजरीवाल ने अदालत में बहस के दौरान उनके वकील राम जेठमलानी द्वारा की गई टिप्पणी के लिए भी माफी मांग ली है। बता दें कि अब तक केजरीवाल नितिन गडकरी, कपिल सिब्बल के बेटे अमित सिब्बल और विक्रम सिंह मजीठिया से भी माफी मांग चुके हैं। वैसे अभी भी कई नेताओं पर अभद्र व विवादास्पद टिप्पणी करने के कई मामले पेंडिंग हैं। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगाए जाने के  बाद उनके विशेष कार्य अधिकारी पवन खेरा ने केजरीवाल के खिलाफ मानहानि का मामला दाखिल किया था। यह मामला अभी विचाराधीन है। अधिवक्ता सुरेंद्र शर्मा ने भी मुख्यमंत्री केजरीवाल पर अदालत में आपराधिक मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया है। मुख्यमंत्री केजरीवाल के खिलाफ दक्षिणी दिल्ली से भाजपा के सांसद रमेश बिधूड़ी की ओर से दाखिल मानहानि का आपराधिक मामला अभी निचली अदालत में लंबित है। भाजपा नेता का आरोप है कि केजरीवाल ने एक समाचार चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा कि उन (बिधूड़ी) पर आपराधिक मुकदमा लंबित है जबकि उनके खिलाफ कोई मुकदमा नहीं है। डीडीसीए और उसके पूर्व क्रिकेटर चेतन चौहान ने भी केजरीवाल के खिलाफ मानहानि का मामला दाखिल किया है। यह मामला भी डीडीसीए की वित्तीय अनियमितता से जुड़ा है। साकेत जिला अदालत में दो पुलिसकर्मियों ने भी केजरीवाल के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया है। अधिकारियों के व्यवहार को लेकर दिल्ली विधानसभा में कराई गई चर्चा के दौरान उस समय हंगामा हो गया जब विपक्ष ने मांग उठाई कि जब मुख्यमंत्री सभी से माफी मांग रहे हैं तो लगे हाथ मुख्य सचिव से भी माफी क्यों नहीं मांग लेते? जिससे सरकार में चल रहे गतिरोध को समाप्त कर दिया जाए और दिल्ली का विकास फिर लाइन पर आ जाए। विपक्ष ने आरोप लगाया कि दिल्ली की सरकार को दिल्ली के विकास की चिन्ता नहीं है। मगर केजरीवाल उसी से माफी मांगते हैं जहां वह फंसते हुए दिखाई देते हैं।