Thursday, 30 September 2021
नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई निर्णायक चरण में
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने रविवार को नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से इस समस्या के समाधान के लिए प्राथमिकता देने का आग्रह किया ताकि एक साल के भीतर इस खतरे को खत्म किया जा सके। उन्होंने नक्सलियों तक धन के प्रवाह को रोकने के लिए एक संयुक्त रणनीति बनाने को कहा। एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि 10 नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों, राज्य के मंत्रियों और शीर्ष अधिकारियों को संबोधित करते हुए गृहमंत्री ने कहा कि नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई अब अंतिम चरण में पहुंच गई है तथा इसे तेज और निर्णायक बनाने की जरूरत है। शाह ने कहा कि वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) हिंसा के कारण मरने वालों की संख्या एक साल में घटकर 200 हो गई है। इस बैठक में छह मुख्यमंत्रियों और चार अन्य राज्यों के शीर्ष अधिकारियों ने भाग लिया। लगभग तीन घंटे तक चली बैठक के दौरान माओवादियों के मुख्य संगठनों के खिलाफ कार्रवाई, सुरक्षा के क्षेत्र में खालीपन को भरने और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) एवं राज्य पुलिस द्वारा ठोस कार्रवाई जैसे अन्य अहम मुद्दों पर चर्चा की गई। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगमोहन रेड्डी और केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन बैठक में शामिल नहीं हुए, लेकिन इन चार राज्यों का प्रतिनिधित्व वहां के वरिष्ठ अधिकारियों ने किया। सूत्रों ने बताया कि बैठक में नक्सलियों के खिलाफ अभियान तेज करने, सुरक्षा के क्षेत्र में पैदा हुए खालीपन को भरने, चरमपंथियों को मिलने वाली आर्थिक मदद का प्रवाह रोकने और ईडी, एनआईए और राज्य पुलिस द्वारा ठोस कार्रवाई किए जाने पर चर्चा की गई। बैठक में नक्सली मामलों की जांच करने और अभियोग चलाने, नक्सलियों से जुड़े मुख्य संगठनों के खिलाफ कार्रवाई, राज्यों के बीच समन्वय, राज्य खुफिया शाखाओं और राज्यों के विशेष बलों का क्षमता निर्माण और मजबूत पुलिस थानों के निर्माण पर चर्चा की गई। गृहमंत्री ने मुख्यमंत्रियों और अधिकारियों के साथ मिलकर नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा स्थिति और माओवादियों के खिलाफ चल रहे अभियानों तक विकास परियोजनाओं की समीक्षा की। अमित शाह ने इन राज्यों की जरूरतों, उग्रवादियों से निपटने के लिए तैनात बलों की संख्या, नक्सल प्रभावित इलाकों में किए जा रहे सड़कों, पुलों, विद्यालयों और स्वास्थ्य केंद्रों के निर्माण जैसे विकास कार्यों का जायजा लिया। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश में माओवादी हिंसा में काफी कमी आई है और यह खतरा अब लगभग 45 जिलों में है। हालांकि देश के कुल 90 जिलों को माओवादी प्रभावित माना जाता है और यह मंत्रालय की सुरक्षा संबंधी व्यय (एमआरई) योजना के अंतर्गत आते हैं। नक्सल समस्या को वामपंथी (एलडब्ल्यूई) भी कहा जाता है। यह समस्या 2019 में 61 जिलों में देखी गई। देश में 2015 से 2020 तक वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में विभिन्न हिंसात्मक गतिविधियों के कारण लगभग 380 सुरक्षा कर्मी, 1000 असैन्य नागरिक और 900 नक्सली मारे गए हैं। आंकड़ों में कहा गया है कि इसी अवधि में 4200 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण भी किया है। हम उम्मीद करते हैं कि अब गृहमंत्री अमित शाह ने खुद इनीशिएटिव लिया है तो इस ज्वलंत समस्या का जरूर कोई हल निकलेगा।
रोहिणी शूटआउट ः मौके पर चार शूटर थे
रोहिणी कोर्ट में शूटआउट की डिटेल्स धीरे-धीरे सामने आ रही है। हमलावर आई10 कार पर वकील का कोर्ट का स्टीकर लगाकर कोर्ट परिसर में घुसे थे। इसलिए उन्हें कोर्ट में प्रवेश करने में कोई परेशानी नहीं हुई। साथ ही वकील की पोषाक भी पहन रखी थी। स्पेशल सेल ने विनय और उमंग की गिरफ्तारी के साथ ही इनकी कार को जब्त कर लिया है। उमंग ने तो लॉ की प्रैक्टिस भी कर रखी थी और उसके पास वकील की ड्रेस पहले से ही मौजूद थी। वह भी कोर्ट ड्रेस में कोर्ट में गया था। स्पेशल सेल के अधिकारियों के अनुसार कोर्ट के बाद उमंग कार लेकर सीधा अपने घर गया। शूटआउट से पहले उसने दाढ़ी बढ़ा रखी थी। घर जाते ही उसने पुलिस से बचने के लिए दाढ़ी काट ली। इसके बाद वह घर में ही रहा। स्पेशल सेल में तैनात इंस्पेक्टर विनोद बडौला की टीम ने उमंग को शूटआउट के कुछ समय बाद ही पकड़ लिया था। हैदरपुर में रहने वाले उमंग ने बीए के बाद एलएलबी करना शुरू किया था। चौथे साल में वह फेल हो गया था, इसलिए उसने लॉ छोड़ दी थी। अब पता लगा है कि रोहिणी कोर्ट में गैंगस्टर जितेंद्र उर्फ गोगी की हत्या के लिए चार शूटर पहुंचे थे। इन सभी को गोगी को ठिकाने लगाने के बाद जज साहब के सामने सरेंडर करना था। लेकिन एक बदमाश के पास वकील की यूनिफॉर्म में शामिल काली पैंट नहीं होने के कारण ऐन वक्त योजना बदलनी पड़ी थी। बदली योजना के तहत दो बदमाश कोर्ट के बाहर कार में रुक गए थे जबकि दो शूटर ही अंदर दाखिल हुए जो वारदात के दौरान मारे गए। मामले में गिरफ्तार आरोपियों उमंग यादव और विनय यादव ने पूछताछ में उक्त खुलासे किए हैं। गिरफ्तार बदमाश उमंग दो वर्षों से टिल्लू गैंग से जुड़ा है। जबकि विनय इसका करीबी साथी है। दोनों आरोपी कोर्ट रूम में मारे गए। मेरठ निवासी राहुल त्यागी उर्फ नितिन और सोनीपत निवासी जगदीप उर्फ जग्गा को वारदात से पूर्व आई10 कार से कोर्ट लेकर आए थे। दोनों के रहने का इंतजाम भी उन्होंने ही किया था। आरोपी विनय ने वारदात वाले दिन शूटरों के फोन व कपड़ों को ठिकाने लगाया था। मारे गए शूटर कोर्ट से तीन किलोमीटर दूर हैदरपुर में आरोपी उमंग यादव के फ्लैट में रुके हुए थे। यहां से उन्होंने तीन दिनों तक कोर्ट की रेकी की थी। आरोपी उमंग कार से आरोपियों के साथ कोर्ट पहुंचा था। लेकिन विनय के पास वकील की पूरी यूनिफॉर्म नहीं होने से उमंग भी उसके साथ कोर्ट के बाहर ही रुक गया था। योजना तो यह थी कि चारों शूटरों को वकीलों की वेशभूषा में कोर्ट रूम में जाना था और गोगी की हत्या के बाद जज साहब के सामने सरेंडर करना था। गड़बड़ी यह हुई कि एक मॉल से चारों आरोपियों के लिए वकील की ड्रेस खरीदी गई लेकिन विनय के लिए काली पैंट की व्यवस्था नहीं हो पाई थी। ऐसे में मौके पर ही योजना बदलनी पड़ी। मौके पर बने प्लान में तय हुआ कि कोर्ट रूम में दो ही शूटर जाएंगे और दो बाहर कार में उनका इंतजार करेंगे। दोनों शूटरों को गोगी की हत्या के बाद सरेंडर करने की बजाय भागकर कार तक पहुंचना था। बदमाश उमंग और विनय कोर्ट के बाहर शूटरों का इंतजार करते रहे। लेकिन अचानक कोर्ट में अफरातफरी मच गई। पता चला कि दोनों शूटरों को पुलिस कमांडो ने मार गिराया है। इसके बाद उमंग और विनय वहां से फरार हो गए।
सेना हटी तो कश्मीर में आएगा तालिबान राज
ब्रिटिश सांसद बॉब ब्लैकमैन ने चेतावनी दी है कि कश्मीर से भारतीय सेना हटी तो इस्लामी कट्टरपंथी ताकतें घाटी का हाल अफगानिस्तान जैसा कर देंगी। उन्होंने कहाöजम्मू-कश्मीर से भारतीय सेना के न रहने पर वहां इस्लामी कट्टरपंथी ताकतों को रोकने वाला कोई नहीं रहेगा और राज्य में तालिबान राज के हालात बन जाएंगे। कश्मीर मामले पर ब्रिटिश संसद में हुई बहस के दौरान सांसद ने कहाöसेना का जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र बनाए रखने में बड़ा योगदान है। असल में ऑल पार्टी पार्लियामेंट्री ग्रुप ऑन कश्मीर की तरफ से सांसद डेबी अब्राह्म व पाक मूल की सांसद यासमीन कुरैशी ने ब्रिटेन की संसद के निचले सदन हाउस ऑफ कॉमन्स में कश्मीर में मानवाधिकारों की स्थिति पर चर्चा का प्रस्ताव रखा था। चर्चा में 20 से ज्यादा सांसदों ने भाग लिया। इस मसले पर प्रस्ताव का विरोध करते हुए लेबर सांसद बैरी गार्डिनर ने कहा कि पाकिस्तान आतंकवाद को पनाह देता है। वर्षों तक पाकिस्तान ने तालिबानियों को पनाह दी। आईएसआई ने आतंकी संगठनों की हर तरह से मदद की। नतीजतन अमेरिका और ब्रिटेन को अफगानिस्तान से हटना पड़ा।
-अनिल नरेन्द्र
Wednesday, 29 September 2021
सवाल पेगासस की निष्पक्ष जांच का
लोकतंत्र में किसी भी मोर्चे पर संदेह की गुंजाइश न्यूनतम होनी चाहिए। इसी दिशा में सुप्रीम कोर्ट की ओर से आया संकेत स्वागतयोग्य है कि पेगासस मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट एक विशेषज्ञ समिति गठित करेगा। प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ से इस मामले में स्वतंत्र जांच का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर अगले हफ्ते आदेश जारी होने की उम्मीद है। वैसे बेहतर यही होता कि केंद्र सरकार अपने ही स्तर पर मामले को आगे नहीं बढ़ने देती। इस तकनीकी विशेषज्ञ समिति के सदस्यों की नियुक्ति भी शीर्ष अदालत द्वारा की जाएगी। शीर्ष अदालत का इरादा जांच समिति के संबंध में आदेश इसी सुनवाई में पारित करने का था, लेकिन कुछ उन लोगों के जिन्हें अदालत समिति में रखना चाहती थी व्यक्तिगत कारणों से समिति का सदस्य बनने से इंकार कर देने के कारण ऐसा नहीं हो पाया। प्रधान न्यायाधीश उस पीठ का नेतृत्व कर रहे हैं, जिसके पास उन याचिकाओं का एक पूरा समूह है, जिनमें गैर-कानूनी जासूसी की जांच अदालत की निगरानी में कराने की मांग की गई थी। अदालत ने 13 सितम्बर को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। जहां तक केंद्र सरकार की बात है, तो उसने यह सार्वजनिक करने से इंकार कर दिया था कि उसकी एजेंसियों ने इजरायली कंपनी के सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया है या नहीं? सरकार के ऐसे जवाब के बाद सुप्रीम कोर्ट के पास कोई विकल्प नहीं रह गया था कि वह स्वयं जांच समिति गठित करे। अब सुप्रीम कोर्ट की इस पहल से जहां न्यायपालिका के प्रति विश्वास में बढ़ोत्तरी होगी, वहीं सरकारी एजेंसियों के साथ टकराव में भी वृद्धि हो सकती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि किसी तरह का संवैधानिक संकट पैदा न हो। ध्यान रहे, सरकार अगर जांच को रोकेगी तो उसे लोगों को जवाब देना पड़ेगा। बड़ा सवाल यह नहीं कि किन लोगों की जासूसी की गई, बड़ी चिंता यह है कि क्या विदेशी सॉफ्टवेयर का मनमाना इस्तेमाल हुआ। सॉफ्टवेयर इस्तेमाल का फैसला किसने लिया? प्रधान न्यायाधीश का संकेत इस मायने में महत्वपूर्ण है कि खुद सरकार ने 13 सितम्बर को ही सुनवाई के दौरान निजता के हनन के आरोपों की जांच करने के लिए विशेष समिति बनाने का प्रस्ताव दिया था। सरकार का कहना था कि वह जो समिति बनाएगी वो सर्वोच्च न्यायालय के प्रति जवाबदेह होगी। याचिकाकर्ता का कहना था कि सरकार को खुद जांच समिति बनाने की इजाजत क्यों दी जाए? तब सरकार ने भरोसा दिलाया था कि समिति पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होगा। सरकार की यह पेशकश तब सामने आई थी जब शीर्ष अदालत ने निजता के हनन के आरोपों पर कड़ा रुख अपनाते हुए उससे विस्तृत हलफनामा देने को कहा था। सरकार इस मामले में राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर विस्तृत हलफनामा देने से इंकार कर रही थी। इस मामले में सरकार पर इजरायली कंपनी एनएसओ के पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिये राजनेताओं, वकीलों, सरकारी अफसरों और पत्रकारों की अवैध तरीके से जासूसी करने का आरोप लगाते हुए जांच की मांग की गई थी। सरकार ने सुरक्षा का हवाला देते हुए अदालत को अधिक विवरण देने से इंकार कर दिया था। अदालत का यह विचार था कि निजता के हनन का आरोप जिन व्यक्तियों ने लगाया है, उनके आरोपों की जांच से राष्ट्रीय सुरक्षा का कोई लेना-देना नहीं है। इस मामले में संदेह तब बढ़ा जब अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बनने के बाद इजरायली कंपनी ने साफ कह दिया था कि उसने अपना सॉफ्टवेयर सरकारी एजेंसियों के अलावा किसी को नहीं बेचा।
हाथ-पैर काटने की सजा शुरू करेगा तालिबान
अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने अमानवीय तौर-तरीकों की फिर शुरुआत कर दी है। जेल मंत्री मुल्ला नूरुद्दीन तुराबी ने ऐलान किया है कि अपराधियों के हाथ-पैर काटने की सजा तय की गई है। इस बार शरीया के तहत सजा को सार्वजनिक रूप से नहीं दिया जाएगा। तुराबी ने कहा कि इस प्रकार से सार्वजनिक सजा देने पर लोगों में किसी प्रकार का कोई विरोध नहीं है। उसने चेताया कि सजा के इस तरीके पर दुनिया का कोई देश दखल न दे। क्योंकि यह इस्लाम और कुरान से जुड़ा मसला है। जब हम बाकी दुनियाभर के विभिन्न देशों में सजा देने के तौर-तरीकों में दखल नहीं देते हैं तो किसी भी देश को यह हक नहीं है कि वो हमारे यहां के कानून-कायदों में किसी प्रकार का दखल दे। तुराबी का कहना है कि फिलहाल कुछ मामलों में महिला जजों की भी नियुक्ति की जा सकती है, लेकिन सजा देने का आधार इस्लामी कानून ही रहेगा। लगभग 60 साल का तुराबी पहले भी तालिबान सरकार में कानून मंत्री रह चुका है। 1980 के दशक में सोवियत सेनाओं से संघर्ष के दौरान अपनी एक आंख और एक पैर गंवा चुका तुराबी तालिबान के संस्थापकों में से एक है। पिछली सरकार में सार्वजनिक सजा शुरू करने के पीछे उसका ही हाथ था। उसने कहाöअपराधी के हाथ-पैर काटने से अपराध का दोहराव नहीं होता है। कानून का भय बना रहता है।
जज को जानबूझ कर टक्कर मारी गई थी
धनबाद के जज उत्तम आनंद की हत्या के मामले की सुनवाई गुरुवार को झारखंड हाई कोर्ट में हुई। इस दौरान सीबीआई के ज्वाइंट डायरेक्टर ने अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहाöसीबीआई हर एंगल पर जांच कर रही है। अभी जांच जारी है और किसी भी एंगल को छोड़ा नहीं जाएगा। सीबीआई के ज्वाइंट डायरेक्टर ने कहा कि पकड़े गए दो आरोपियों में से एक प्रोफेशनल मोबाइल चोर है। वह जांच एजेंसी को हर बार नई कहानी बताकर गुमराह करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन सीबीआई के 20 अफसर उससे कड़ाई से पूछताछ कर रहे हैं। अब बिल्कुल साफ है कि जज को जानबूझ कर टक्कर मारी गई थी। इसकी साजिश करने वालों तक जल्द ही सीबीआई पहुंच जाएगी। 16 सितम्बर को हुई पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सीबीआई जांच पर नाराजगी जताई थी। कोर्ट ने सीबीआई के जोनल डायरेक्टर को कोर्ट में हाजिर होने के निर्देश दिए थे। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि सीबीआई हर सप्ताह प्रगति रिपोर्ट दे रही है, लेकिन उसमें कुछ भी नया नहीं है। इस मामले में लखन वर्मा और राहुल वर्मा को पुलिस ने 29 जुलाई को गिरफ्तार किया था। जज को टक्कर मारने के आधे घंटे बाद ही ऑटो गोविंदपुर में पेट्रोल पम्प पर देखा गया था। 16 सितम्बर को अदालत ने कहा था कि परिस्थितियां बयां कर रही हैं कि दिनदहाड़े एक न्यायिक अधिकारी की हत्या की गई है। हमें रिजल्ट चाहिए, सिर्प रिपोर्ट से काम नहीं चलेगा। सीबीआई अभी भी सिर्प दो लोगों से आगे नहीं बढ़ सकी है। ऑटो चालक ने धक्का मारकर जज की हत्या क्यों की? यह मिस्ट्री अभी तक हल क्यों नहीं हो सकी है? बता दें कि धनबाद के जज उत्तम आनंद सुबह साढ़े पांच बजे मॉर्निंग वाक कर रहे थे। इसी दौरान पीछे से एक ऑटो ने टक्कर मार दी। वह सड़क पर ही गिरे और वहीं उनकी मौत हो गई। सीसीटीवी फुटेज से यह स्पष्ट था कि ऑटो ने जज को जानबूझ कर टक्कर मारी थी।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 28 September 2021
शूटआउट एट रोहिणी कोर्ट
दिल्ली की रोहिणी जिला अदालत के भीतर हुई गैंगवार और पुलिस फायरिंग की घटना स्तब्ध कर देने वाली तो है ही, लेकिन हाल के वर्षों में राजधानी और उसके आसपास जिस तरह से आपराधिक गुटों के बीच हिंसक प्रतिद्वंद्विता बढ़ी है, उसे देखकर अप्रत्याशित नहीं है। यह घटना अपराधियों के बढ़ते मनोबल को भी रेखांकित करती है। शुक्रवार दोपहर रोहिणी कोर्ट में पेशी के लिए लाए गए गैंगस्टर जितेंद्र मान उर्प गोगी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। यह मामला उस वक्त हुआ जब गोगी की पेशी एएसजे गगनदीप सिंह के कोर्ट में हो रही थी। स्पेशल सेल द्वारा दोपहर करीब एक बजे गोगी को कोर्ट रूम में लाया गया। उस वक्त दो बदमाश यूपी बागवत निवासी राहुल और बक्करवाला निवासी जगदीश उर्प जग्गा कोर्ट रूम में वकील बनकर बैठे हुए थे, जिन्होंने गोगी को देखते ही उस पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी। अफरातफरी के बीच स्पेशल सेल की टीम के अलावा थर्ड बटालियन की टीम ने भी एके-47 से गोलियां चलाईं। कोर्ट रूम के अंदर हुए इस शूटआउट के दौरान पुलिस ने दोनों बदमाशों को मौके पर ढेर कर दिया। घायल और अचेत हालत में गोगी को नजदीकी अस्पताल में लाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। बताया जाता है कि कोर्ट परिसर के इस शूटआउट में मची भगदड़ में एक महिला वकील भी जख्मी हो गईं। हालांकि आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं हो सकी। पुलिस अधिकारी ने बताया कि तिहाड़ जेल में बंद गोगी को दिल्ली पुलिस द्वारा कोर्ट में पेशी के लिए लाया गया था। कोर्ट में वकील की ड्रेस में पहले से ही दोनों बदमाश मौजूद थे। पुलिस ने बताया कि गैंगस्टर गोगी की पेशी के दौरान सुरक्षा की दृष्टि से उक्त कोर्ट रूम को पहले से खाली करवा लिया गया था। कोर्ट रूम में सिर्प जज, जज के कर्मचारी, वकीलों और पुलिस टीम के अलावा किसी को प्रवेश नहीं करने दिया गया था। यही कारण है कि बदमाशों की फायरिंग के बाद में पुलिस फायरिंग में सिर्प तीन लोगों की मौत हुई। वरना सामान्य परिस्थिति में और भी लोगों की जान जा सकती थी। रोहिणी कोर्ट नम्बर 207 में वकील की ड्रेस पहने पहले से ही मौजूद थे दोनों बदमाश। जिन्होंने गोगी को देखते ही फायरिंग शुरू कर दी। इस फायरिंग में गोगी को करीब आठ गोलियां लगीं जिससे मौके पर ही उसकी मौत हो गई। फायरिंग के बाद दोनों बदमाश उस गेट से निकलने की कोशिश करने लगे, जिस गेट से जज कोर्ट रूम में आते हैं। कोर्ट में स्पेशल सेल के साथ ही थर्ड बटालियन के कमांडो ने बदमाशों पर फायरिंग शुरू कर दी पर पुलिस ने उन्हें मार गिराया। कुल मिलाकर जज महोदय के सामने ही लगभग 40 राउंड फायर हुए। ताजा घटना में अदालत लेकर गए पुलिस दस्ते को इस बात की आशंका जरूर रही होगी कि कोई अनहोनी घटना हो सकती है, इसलिए वह हथियारबंद होकर गए थे और हमलावरों को मार गिराने में सफल हुए। इस मामले में यह दिल्ली पुलिस की बड़ी कामयाबी कही जा सकती है। मगर उसके सामने यह चुनौतियां तो हैं ही कि ऐsसे बदमाशों में वह कैसे खौफ पैदा कर अपराध पर अंकुश लगा सके। पिछले कुछ दिनों से दिल्ली में अपराधियों का मनोबल बहुत बढ़ गया है। यह जमीनों पर कब्जा कराने, सुपारी लेकर हत्या करने जैसी घटनाओं को बेखौफ होकर अंजाम देते रहते हैं। इस पर अंकुश लगाना अत्यावश्यक है। बलात्कार, छेड़खानी, रंगदारी करने वाले भी भय नहीं खाते। पुलिस की सफलता इस बात में मानी जाएगी कि वह अपराधियों के मन में भय पैदा कर सके।
कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने की बगावत
पंजाब में सत्ता में रहने के बावजूद पिछले कुछ समय से कांग्रेस में कलह खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही। हालांकि हाल में मुख्यमंत्री पद से बड़े बदलाव कर यह प्रयास किया गया था कि कैप्टन अमरिन्दर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू का आपसी टकराव समाप्त होगा पर कैप्टन के हटने के बाद दोनों में यह टकराव उलटा बढ़ गया है। कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने गांधी परिवार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए कहा कि राहुल-प्रियंका बेहद अनुभवहीन हैं और उनके सलाहकार उन्हें गुमराह कर रहे हैं। उन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू पर भी गुस्सा निकाला। उन्होंने दोहराया कि सिद्धू देश के लिए खतरनाक हैं। उसे सीएम किसी हालत में नहीं बनने दूंगा। ऐसे खतरनाक आदमी से देश को बचाने के लिए मैं कोई भी कुर्बानी देने को तैयार हूं। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस की पंजाब इकाई में गुटबाजी और आंतरिक कलह की वजह से हाल में कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने राज्य के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। अमरिन्दर सिंह ने अपने कई साक्षात्कारों में कहाöप्रियंका और राहुल मेरे बच्चों की तरह हैं। इसका पटाक्षेप ऐसा नहीं होना चाहिए था। मैं विधायकों को विमान से गोवा या अन्य किसी स्थान पर नहीं ले गया। इस तरह से मैं काम नहीं करता। मैं तिकड़मबाजी नहीं करता और गांधी सहोदर जानते हैं कि यह मेरा तरीका नहीं है। अमरिन्दर सिंह ने जोर देकर कहाöगांधी बच्चे काफी हद तक अनुभवहीन हैं और उनके सलाहकार साफ तौर पर उन्हें बहका रहे हैं। साफ है कि अमरिन्दर सिंह ने अघोषित रूप से अपना रुख तय कर लिया, लगता है। किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में नए कृषि कानूनों के विरोध में भाजपा से अलग हुए अकाली दल के साथ बसपा का गठजोड़ हो चुका है तो दूसरी ओर आम आदमी पार्टी भी अपने वादे के साथ मैदान में है। ऐसे में कांग्रेस के लिए यह चुनौती गहरी हो गई है कि मुख्यमंत्री बदलने के बाद उपजी खींचतान के बीच वह विधानसभा चुनावों में अपने लिए कितना और क्या बचा पाती है।
पीएम केयर्स फंड सरकारी नहीं है?
पीएम केयर्स फंड भारत का सरकारी फंड नहीं है। इसके तहत जमा धन भारत सरकार की संचित निधि (कोष) में नहीं डाला जाता। यह जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने दिल्ली हाई कोर्ट में दी है। इस फंड को जमा करने के लिए प्रधानमंत्री के पद, नाम, राष्ट्रीय चिन्ह का इस्तेमाल होने से इसे सरकारी फंड घोषित करने के लिए सम्यप् गंगवाल नामक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका की सुनवाई में यह जानकारी दी गई। पीएमओ के अवर सचिव प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने हलफनामे में बताया कि वह पीएम केयर्स ट्रस्ट में अपनी सेवाएं मानद आधार पर दे रहे हैं। ट्रस्ट पूरी पारदर्शिता से काम कर रहा है और इसके सभी फंड ऑडिट ऐसे सीए द्वारा करवाया गया है, जो नियंत्रक महालेखा परीक्षक द्वारा बनाए पैनल में शामिल हैं। जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस अनिल बंसल ने उनका पक्ष सुनने के बाद मामले को सुरक्षित रख लिया है और इस पर सुनवाई जल्द होगी। केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली हाई कोर्ट में पीएम केयर्स फंड को भारत सरकार का फंड नहीं बताने के एक दिन बाद विपक्षी दलों ने अधिक पारदर्शिता की मांग उठाते हुए सवाल उठाया कि अगर ऐसा है तो सरकारी कर्मचारियों से उसमें दान करने के लिए क्यों कहा गया और सरकारी वेबसाइटों पर उसमें दान करने का लिंक क्यों है? इंडिया डॉट जीओवी डॉट इन और वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले व्यय विभाग जैसी आधिकारिक सरकारी वेबसाइटों पर पीएम केयर्स में दान करने का लिंक मौजूद है। वहीं पीएम केयर्स फंड का भी डॉट जीओवी डॉट इन अधिकारिक पोर्टल है। हालांकि केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों की कई वेबसाइटों ने अब पीएम केयर्स के लिंक हटा लिए हैं। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने सरकारी कर्मचारियों से एक दिन की सैलेरी दान करने के लिए सरकार के अप्रैल 2020 के आदेश को ट्वीट करते हुए कहा कि अगर पीएम केयर्स फंड सरकार का फंड नहीं है तो ऐसे आदेश कैसे जारी हो सकते हैं? कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि यह पीएम द्वारा पीएम का और पीएम के लिए संचालित फंड है। प्रधानमंत्री के नाम वाला फंड सरकारी फंड नहीं है? लोगों की बुद्धिमत्ता से अजीब मजाक है।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 25 September 2021
जमानत पर बाहर आके कर डालीं 52 वारदातें
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों को यह पता लगाने के लिए किसी आरोपी के पिछले जीवन की पड़ताल करनी चाहिए कि क्या उसका रिकॉर्ड खराब है और क्या वह जमानत पर रिहा होने पर गंभीर अपराधों को अंजाम दे सकता है? न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की खंडपीठ ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा हत्या और आपराधिक षड्यंत्र के आरोपों का सामना कर रहे एक व्यक्ति को दी गई जमानत को रद्द करते हुए यह टिप्पणियां कीं। पीठ ने कहा कि जमानत याचिकाओं पर फैसला करते हुए आरोप और सुबूत की प्रकृति भी अहम बिन्दु होते हैं। दोषसिद्धी के मामले में सजा की गंभीरता भी इस मुद्दे पर निर्भर करती है। अपने पहले के आदेशों का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि जमानत से इंकार कर स्वतंत्रता से वंचित रखने का मकसद दंड देना नहीं है बल्कि यह न्याय के हितों पर आधारित है। न्यायालय ने कहाöजमानत के लिए आवेदन देने वाले व्यक्ति के पिछले जीवन के बारे में पड़ताल करना तार्किक है, यह पता लगाया जाए कि क्या उसका खराब रिकॉर्ड है, खासतौर पर ऐसा रिकॉर्ड जिससे यह संकेत मिले कि वह जमानत पर बाहर आने पर गंभीर अपराधों को अंजाम दे सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश कितना सही साबित हुआ इसका उदाहरण हमें जल्द ही मिल गया। कोरोना की वजह से बेल पर आए बदमाश ने एक के बाद एक 52 चेन स्नैचिंग की वारदात कर डालीं। ज्यादातर वारदात द्वारका, पश्चिम और रोहिणी जिले में की गई हैं। बदमाश इतना शातिर है कि उसने यह सभी वारदातें एक बाइक के जरिये अंजाम दीं। इसके बावजूद वह कई दिनों तक पुलिस की पकड़ से बाहर रहा। हर चार-पांच वारदात के बाद वह बाइक का कलर स्टीकर लगवाकर चेंज करवा लेता था। द्वारका एएटीएस टीम ने बदमाश को राजस्थान के गूगामेड़ी से गिरफ्तार किया। डीसीपी संतोष कुमार मीणा ने बताया कि अर्जुन उर्फ गोपू पर कुल 26 मामले विभिन्न थानों में दर्ज हैं। अब तक गोपू 100 से अधिक चेन स्नैचिंग कर चुका है। 14 सितम्बर को पुलिस को गोपू के बारे में सूचना मिली। करीब 72 घंटे तक उसका पीछा किया गया। पुलिस को देखकर गोपू ने भागने की कोशिश की और वह खेतों में करीब दो किलोमीटर अंदर तक भाग गया, लेकिन पकड़ा गया। इसने जमानत के बाद बाहर आकर छह महीने में कर डाली स्नैचिंग की 52 वारदातें। सुप्रीम कोर्ट की हिदायत के मद्देनजर छोटी अदालतों को आरोपी का बैकग्राउंड चैक करके ही जमानत देनी चाहिए। इस पर थोड़ी-सी लापरवाही का फायदा गोपू जैसे अपराधी पूरा उठाते हैं।
पंजाब में आप व भाजपा को चुनावी रणनीति बदलनी पड़ेगी
पंजाब में कांग्रेस द्वारा दलित मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद आगामी विधानसभा चुनावों के लिए आम आदमी पार्टी और भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनाने पर मजबूर हो सकते हैं। पहले बात करते हैं आम आदमी पार्टी (आप) की। अब उसे दलित वोटरों को आकर्षित करने के लिए नए सिरे से अपनी चुनावी रणनीति का निर्धारण करना पड़ सकता है। क्योंकि पंजाब में दलितों के मत बेहद अहम हैं। राज्य में करीब 32 प्रतिशत दलित मतदाता हैं। दलितों को लुभाने के लिए आप ने सत्ता में आने पर दलित उपमुख्यमंत्री बनाए जाने का दांव चला था। इसी प्रकार की घोषणा शिरोमणि अकाली दल ने भी की थी। इसी रणनीति के तहत उसने बसपा के साथ चुनावी गठबंधन भी किया था, लेकिन कांग्रेस ने दोनों दलों की रणनीति पर पानी फेर दिया है। जानकारों का कहना है कि राज्य में मुख्य टक्कर कांग्रेस और आप में होने की संभावना है इसलिए असल झटका भी आप को ही लगा है। कांग्रेस ने इस कदम से दलितों में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है जबकि आप समेत दूसरे दलों को रणनीति बदलनी होगी। पिछले चुनाव में भी बड़े पैमाने पर दलित वोट कांग्रेस को मिले थे और ज्यादातर आरक्षित सीटें भी उसने जीत ली थीं। अब दलित को मुख्यमंत्री बनाने से उसका प्रदर्शन दलित सीटों पर पहले से बेहतर होने की उम्मीद की जा सकती है। वहीं भाजपा कांग्रेस के नेतृत्व परिवर्तन पर बारीकी से नजर रखे हुए है। कांग्रेस-अकाली दल-बसपा गठबंधन के साथ चतुर्ष्योकोणीय संघर्ष बनाने के लिए भाजपा की तरफ से जल्दी ही नई रणनीति सामने आ सकती है। पार्टी का फोकस गैर-सिख समीकरण और शहरी क्षेत्रों में ज्यादा केंद्रित रह सकता है साथ ही किसानों को उपज बेचने के लिए मिलने वाले एमएसपी पर बड़ा फैसला आने की उम्मीद है। पंजाब में चुनावी घमासान में अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद भाजपा को अपनी जमीन बचाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। राज्य की अधिकांश सीटों पर उसने लंबे समय से चुनाव नहीं लड़ा है। किसान आंदोलन का भी भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है। ऐसे में उसको हर विधानसभा सीट के लिए चुनावी टीम भी खड़ी करनी पड़ सकती है। राज्य में मौजूदा हालात में भाजपा चौथे नम्बर पर है और उसे कोई खास तवज्जो भी नहीं मिल रही है। हालांकि भाजपा के नेताओं का सोचना अलग है। उनका दावा है कि भाजपा की जमीन दिनोंदिन मजबूत हो रही है। देखते हैं आने वाले दिनों में पंजाब की सियासत क्या करवट लेती है।
शराब दुकानों की नीलामी से मिले नौ हजार करोड़
दिल्ली सरकार को अब नई आबकारी नीति के तहत निर्धारित 32 जोनों में खुदरा दुकानों के शराब लाइसेंस की नीलामी से बड़े पैमाने पर राजस्व की प्राप्ति हुई है। इस दौरान सरकार को कुछ जोन में रिजर्व प्राइज की तुलना में 50 प्रतिशत या उससे भी अधिक राजस्व की प्राप्ति हुई है। दिल्ली सरकार ने करीब नौ हजार करोड़ रुपए हासिल किए हैं। बता दें कि इससे पहले दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने 10 हजार करोड़ मिलने का अनुमान जताया था। दिल्ली सरकार ने लाइसेंस फीस के तौर पर 8911 करोड़ रुपए अर्जित किए हैं, जोकि 3039 की रिजर्व प्राइज की तुलना में 27 प्रतिशत अधिक है। कुछ जोन में इसे औसत से अधिक कमाई हुई है लेकिन कुछ जोन ऐसे भी हैं, जहां अपेक्षित कमाई नहीं हुई है। दिल्ली सरकार को एयरपोर्ट जोन अर्थात जोन संख्या 52 में बहुत अच्छी कमाई हुई है, जहां 10 शराब की दुकानों के लिए 105 करोड़ रुपए की वार्षिक रिजर्व प्राइज की तुलना में 236 करोड़ रुपए सरकार को प्राप्त हुए हैं। दिल्ली सरकार के सूत्रों के अनुसार सबसे अधिक पसंदीदा एयरपोर्ट जोन का लाइसेंस पुडुचेरी की एक कंपनी को मिला, जबकि 27 शराब दुकानों वाले जोन 17 का रिजर्व प्राइज 226 करोड़ रुपए था, लेकिन उसकी बोली 227 करोड़ रुपए ही हो पाई। इस जोन में किशन गंज, रोहिणी का हिस्सा, आदर्श नगर, घुम्मनहेड़ा, विजवासन, कोंडली आदि इलाके शामिल हैं।
-अनिल नरेन्द्र
Friday, 24 September 2021
आत्महत्या या हत्या?
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि के आकस्मिक निधन की खबर से पुंभनगरी व प्रयागराज में शोक की लहर दौड़ गई। संत समाज ने परिषद अध्यक्ष के निधन पर जहां गहरा शोक व्यक्त किया है वहीं उनकी मौत की निष्पक्ष जांच की मांग की है। संतों का कहना है कि अखाड़ा परिषद अध्यक्ष के आत्महत्या कर लेने की बात पर उन्हें बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा है, मौत की हकीकत सामने आनी चाहिए। बता दें कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की सोमवार को संदिग्ध हालात में मौत हो गई। बाघंबरी मठ के कमरे में फंदे पर उनका शव लटका मिला। मौके पर मिले सुसाइड नोट में शिष्य आनंद गिरि की प्रताड़ना से तंग आकर खुदकुशी की बात लिखी है। इसके बाद हरिद्वार से आनंद गिरि और प्रयागराज से बंधवा हनुमान मंदिर के पुजारी आद्या तिवारी व बेटे संदीप तिवारी को हिरासत में ले लिया गया है। मठ भी सील कर दिया गया है। महंत नरेंद्र गिरि बाघंबरी मठ के अध्यक्ष, निरंजनी अखाड़े के सचिव और बंधवा हनुमान मंदिर के बड़े हनुमंत भी थे। शिष्यों के मुताबिक रोज की तरह सोमवार दोपहर भी महंत ने शिष्यों के साथ बैठकर भोजन किया। फिर मठ परिसर में ही बने कमरे में यह कहते हुए चले गए कि वह आराम करने जा रहे हैं। आमतौर पर वह शाम चार बजे पदाधिकारियों के साथ चर्चा में बैठ जाते थे पर पांच बजे तक भी वह बाहर नहीं आए, तो सेवादार बबूल जगाने पहुंचा। देर तक आवाज देने पर भी बाहर नहीं आए तो उसने सुमित नामक शिष्य को बुलाया और दोनों ने धक्का देकर दरवाजा खोला, भीतर महंत फांसी पर लटके हुए थे। शोर मचाने पर बाकी शिष्य व पदाधिकारी भी पहुंच गए। उन्होंने शव को नीचे उतारा, तब तक उनकी मौत हो चुकी थी। प्रथम दृष्टया मामला खुदकुशी का लग रहा है। सूचना पर मैं (केपी सिंह, आईजी रेंज प्रयागराज) अन्य पुलिस अफसरों के संग मौके पर पहुंचा, तब तक शव नीचे उतारा जा चुका था। सुसाइड नोट मिला है। उसकी फोरेंसिक जांच कराई जाएगी। सुसाइड नोट में महंत जी ने आनंद गिरि को जिम्मेदार ठहराते हुए लिखा है कि मेरे लिए सम्मान सब कुछ है इसके बिना जीवन व्यर्थ है। अधिकारियों के अनुसार सुसाइड नोट वसीयतनामे की तरह लिखा है। महंत जी ने यह भी लिखा है कि किस शिष्य को क्या व कितना देना है। बाघंबरी मठ और निरंजनी अखाड़े की अकूत धन-सम्पदा का विवादों से पुराना रिश्ता है। सैकड़ों बीघा जमीन बेचने और सेवादारों के नाम प्रॉपर्टी खरीदने को लेकर महंत नरेंद्र गिरि व आनंद गिरि के बीच अरसे से विवाद चल रहा है। निरंजनी अखाड़े के मठ के दो महंतों की संदिग्ध मौतें पहले भी हो चुकी हैं। भूमि विवाद को लेकर राइफलें भी तन चुकी हैं। गुरु-शिष्य का विवाद मई में गौशाला भूमि की लीज निरस्त कराए जाने पर खुलकर सामने आया। आनंद को लीज पर दी इस जमीन पर पेट्रोल पम्प प्रस्तावित था। कुछ दिन बाद ही महंत नरेंद्र गिरि ने लीज निरस्त कर दी। आनंद का कहना थाöगुरु जी जमीन बेचना चाहते थे। विवाद इतना बढ़ गया कि अखाड़े और पद से आनंद को निष्कासित कर दिया गया। आनंद को हरिद्वार जाना पड़ा। हरिद्वार में भी आनंद के आश्रम को सील करवा दिया गया। उनके सुरक्षा गार्ड भी वापस ले लिए गए। महंत नरेंद्र गिरि ने आत्महत्या की या उनकी हत्या की गई? कई सवाल उठ रहे हैं। मामला खुदकुशी का है, तो क्या बड़ा कारण था कि महंत ने ऐसा आत्मघाती कदम उठाया? आत्महत्या से पहले क्या उनकी ऐसी मनोदशा थी कि इतना लंबा सुसाइड नोट लिख सकें? सुसाइड नोट में आनंद गिरि का भी नाम है, तो क्या आनंद उन्हें परेशान कर रहे थे? पुलिस के आने से पहले शिष्यों ने दरवाजा क्यों तोड़ा? शव भी फंदे से उतार लिया? पुलिस ने निर्देशित क्यों नहीं किया कि फोरेंसिक टीम पहुंचने से पहले शव को न छुआ जाए?
गुजरात के कच्छ मुंद्रा पोर्ट में आई 3000 किलो हेरोइन
अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत आने के बाद नशे के कारोबार का ठिकाना भारत को बनाने की साजिश का बड़ा मामला सामने आया है। राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने गुजरात के कच्छ के मुंद्रा पोर्ट से 3000 किलो हेरोइन जब्त की है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 21 हजार करोड़ रुपए बताई जा रही है। यह देश में ड्रग की सबसे बड़ी बरामदगी तो है ही, साथ ही अफगानिस्तान में तालिबानी कब्जे के बाद दुनिया में ड्रग्स की खेप की सबसे बड़ी जब्ती है। डीआरआई के मुताबिक ड्रग्स दो कंटेनरों से जब्त किया गया है। एक में 2000 किलो और दूसरे में 1000 किलो हेरोइन है। जब्त की गई हेरोइन को बीएसएफ के अधीन क्षेत्र में रखी गई है। अफगानिस्तान से रवाना यह खेप 13 सितम्बर को ईरान के बदार अब्बास बंदरगाह से गुजरात के लिए रवाना हुई थी। आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा पहुंचना था। गांधीनगर की सेंट्रल फोरेंसिक लैब ने इसे बहुत उच्च गुणवत्ता की हेरोइन बताया है। इस मामले में दिल्ली-एनसीआर से कुछ अफगान नागरिकों को हिरासत में लिया गया है। अहमदाबाद, दिल्ली, चेन्नई, गांधीनगर व मांडवी में तलाशी ली गई है। ईडी इस मामले में मनी लांड्रिंग की जांच करेगी। मुंद्रा से हेरोइन विजयवाड़ा की मैसर्स शशि ट्रेडिंग कंपनी के पते पर जानी थी। 17 सितम्बर को गिरफ्तार कंपनी के मालिक एम. सुधाकर और पत्नी-पुत्री डीआरआई की रिमांड पर हैं। कंपनी को पिछले साल काकीनाडा पोर्ट से चावल एक्सपोर्ट के लिए रजिस्टर्ड कराया गया था। कंसाइनमेंट प्लैकम स्टोन के नाम से मंगाया गया था। कंपनी का कहना है कि कंटेनर्स चेन्नई जाने थे। कंटेनरों पर बतौर एक्सपोर्ट कंधार से हुसैनी ट्रेडर्स का नाम दर्ज है। इस बीच अडानी पोर्ट के प्रवक्ता ने कहा कि पोर्ट में कंटेनरों की जांच पोर्ट संचालक कंपनी नहीं, सक्षम एजेंसियां ही कर सकती हैं। छह जून 2021 से लेकर 19 जुलाई तक भारत में करीब सवा सौ करोड़ की उच्च दर्जे की 18 किलो हेरोइन पकड़ी गई थी। अब करीब 3000 किलो हेरोइन का पकड़ा जाना विशेषज्ञों की इस आशंका को साबित करता है कि अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन के बाद ड्रग्स तस्करी में बेतहाशा बढ़ोत्तरी होगी। भास्कर से खास चर्चा में दुनिया की जानी-मानी काउंटर नारकोटिक्स विशेषज्ञ वैंडा फेलबाब ब्राउन ने बताया कि अफगानिस्तान में तालिबान खुद अफीम और हेरोइन की तस्करी से जुड़ा है। गृहयुद्ध से बचने के लिए और विदेशी मदद के अभाव में तालिबान अब ड्रग्स टेड को कई गुना बढ़ा सकता है। विशेषज्ञ इतनी बड़ी मात्रा में हेरोइन पकड़े जाने के अर्थ को समझने की कोशिश में जुटे हैं। टेलकम पाउडर के नाम पर कंधार से आई 21 हजार करोड़ रुपए की हेरोइन अडानी पोर्ट पर पकड़ी जानी सनसनीखेज तो है ही पर पता नहीं इससे पहले कितनी हेरोइन की खेप अडानी पोर्ट पर उतर चुकी है। इस मामले की बारीकी से जांच होनी चाहिए। इस जांच में अडानी पोर्ट के अधिकारियों की भी जांच होनी आवश्यक है।
धांधली के आरोपों के बीच जीती पुतिन की पार्टी
रूस में ब्लादिमीर पुतिन की एक बार फिर देश के मुखिया के रूप में मजबूत पकड़ होगी। संसदीय चुनावों में पुतिन की पार्टी यूनाइटेड रशिया एक बार फिर लगभग बड़ी जीत हासिल कर चुकी है। हालांकि इस बार मत प्रतिशत में कुछ कमी जरूर आई है। 80 प्रतिशत मतों की गिनती के बाद शुरुआती नतीजों में पुतिन की पार्टी को करीब 50 प्रतिशत वोट मिले हैं जबकि विपक्षी कम्युनिस्ट पार्टी को 20 प्रतिशत मत ही मिले हैं। सत्ताधारी पार्टी ने रविवार शाम को चुनाव होने के कुछ घंटे पहले ही जीत का दावा कर दिया था। इस चुनाव में पुतिन के प्रमुख और मुखर आलोचकों को हिस्सा लेने से रोक दिया गया था। आलोचकों ने चुनाव में जबरन मतदान कराने और मतपत्र से छेड़खानी तथा फर्जीवाड़े के आरोप लगाए लेकिन चुनाव आयोग ने इन दावों को खारिज कर दिया। इस चुनाव में सत्ताधारी पार्टी के 20 प्रतिशत प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा है। अब तक जो नतीजे आ चुके हैं उनसे रूस का राजनीतिक परिदृश्य बदलने की संभावना नहीं है। 68 वर्षीय पुतिन 1999 से प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के रूप में सत्ता में हैं और 2024 में अगले राष्ट्रपति चुनाव से पहले केमलिन पर अब भी उनका ही वर्चस्व होगा। संसद में आमतौर पर पुतिन की पहल का समर्थन करने वाली कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थन में आठ प्रतिशत का इजाफा देखा गया है। मौजूदा संसदीय चुनाव को 2024 के राष्ट्रपति चुनाव से पहले सत्ता पर पुतिन की पकड़ मजबूत करने के रूप में देखा जा रहा है।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 23 September 2021
पंजाब के पहले दलित गैर जाट सिख मुख्यमंत्री
आखिर पंजाब कांग्रेस में काफी समय से चली आ रही खींचतान का पटाक्षेप शनिवार को कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के साथ हो गया। पंजाब में दो दिन की मशक्कत के बाद रविवार शाम को चरणजीत सिंह चन्नी (51) का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए तय हो गया। कांग्रेस विधायक दल की बैठक में उनके नाम पर मुहर लग गई। रविवार को दिनभर सुखजिंदर सिंह रंधावा, सुनील जाखड़ और नवजोत सिंह सिद्धू के नाम पर चर्चा चलती रही। अंबिका सोनी के सीएम पद की पेशकश को ठुकराने की खबर भी आई। उन्होंने किसी सिख को ही मुख्यमंत्री बनाने की वकालत की। चमकौर साहिब विधानसभा सीट से विधायक चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब सरकार में तकनीकी मंत्री रह चुके हैं। रामदसिया सिख समुदाय से ताल्लुक रखने वाले चन्नी वर्ष 2017 में 49 साल की उम्र में कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार में कैबिनेट मंत्री बने थे। वह पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता भी रह चुके हैं। वहीं अमरिंदर सिंह ने बताया, मुझे पता चला कि कांग्रेस विधायक दल का नया नेता चुनने की बात हो रही है। तब मैंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को सुबह करीब 10 बजे फोन किया। मैंने कहा कि मेम यह सब क्या हो रहा है? मुझे लगता है कि मुझे इस्तीफा दे देना चाहिए। मैं आपको इस्तीफा भेज रहा हूं। इस पर सोनिया गांधी ने कहा कि आईएम सॉरी अमरिंदर आप अपना इस्तीफा दे सकते हैं। मैंने कहा, ओके मैम। उन्होंने कहा- सोनिया गांधी और उनके बच्चें के साथ निकटता के कारण उन्हें इस तरह से अपमानित किए जाने की उम्मीद नहीं थी। एक चिट्ठी में उन्होंने सोनिया को लिखा है कि पंजाब की बुनियादी चिंताओं को समझे बिना ही इस काम (नेतृत्व परिवर्तन) को अंजाम दिया गया है। अमरिंदर सिंह जैसे वरिष्ठ और अनुभवी नेता मुख्यमंत्री पद से ऐसी विदाई के बहरहाल हकदार नहीं थे, जिसने 2017 में विपरीत स्थिति में पंजाब में कांग्रेस को भारी बहुमत से जीत दिलाई। हालांकि मुख्यमंत्री बनने के बाद कैप्टन के रवैए से ही नहीं, जरूरी मुद्दों पर उनकी निष्क्रियता से भी उन पर सवाल उठने शुरू हो गए थे, चाहे वह चुनावी वादा पूरे न करना हो, अपने विधायकों मंत्रियों और नेताआंs से दूरी बनानी हो, बेरोजगारी और उद्योगों की बदहाली पर उनकी खामोशी और भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच उनकी चुप्पी हो। अकाली दौर में मुख्यमंत्री रहे विक्रम सिंह मजीठिया के ड्रग्स मामले की जांच की अपने ही विधायकों की मांग पर कुछ न करने से उन पर अकालियों से साठगांठ का आरोप भी लगा। पंजाब से शुरू हुआ किसान आंदोलन ने अमरिंदर सरकार की छवि पर असर डाला, तो प्रशांत किशोर के आंतरिक सर्वे ने यह निष्कर्ष निकाला कि कैप्टन के नेतृत्व में कांग्रेस पुन सत्ता में नहीं आ सकती। पंजाब में कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर दलित कार्ड चला है। इसमें दोनों आप और भाजपा बैकफुट पर जरूर आ गई हैं। वैसे कांग्रेसी कार्यकर्ता इस बात से भी खुश हैं कि आखिरकार कांग्रेस नेतृत्व ने एक महत्वपूर्ण निर्णय ले लिया। निष्क्रिय पड़ा कांग्रेस हाई कमान एक्टिव हो रहा है। कांग्रेस ने भले ही अगले विधानसभा चुनाव को देखते हुए नेतृत्व परिवर्तन का यह जोखिम उठाया है पर पंजाब जैसे सीमांत प्रदेश में जिसकी सीमा पाकिस्तान से लगती हो ऐसा कोई भी कदम उठाने से बचना चाहिए, जिससे राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो सकती है। चरणजीत सिंह चन्नी को बधाई। पर अब उनकी जिम्मेदारी होगी कि आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पुन सत्ता में लाएं।
अमेरिकी नागरिक काबुल में छिपने को मजबूर
अमेरिकी ग्रीन कार्ड धारक कैfिल्फोर्निया का यह जोड़ा अपने तीन छोटे बच्चों के साथ अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में हर रात अलग-अलग घर में गुजारता है। दोनों वयस्क बारी-बारी से सोते हैं ताकि जब एक सो रहा हो तो दूसरा बच्चों पर नजर रखे और यदि तालिबान के लोगों के आने की आहट हो तो वहां से भाग सकें। दो हफ्ते में वह सात बार स्थान बदल चुके हैं और रहने व खाने के लिए अपने संबंधियों पर निर्भर हैं। उन्हें बेसब्री से इंतजार है एक कॉल का जिसमें कोई उन्हें अफगानिस्तान से निकालने में मदद करने की बात कहे। अमेरिकी विदेश विभाग के अधिकारी ने उन्हें कई दिन पहले फोन किया था और कहा था कि उनकी जिम्मेदारी एक व्यक्ति को दी गई है लेकिन उसके बाद से किसी ने उनसे संपर्क नहीं किया। अब यहां से निकलने के लिए वह एक अंतर्राष्ट्रीय बचाव संगठन के संपर्क में है। एसोसिएटिड प्रेस को भेजे संदेश में बच्चों की मां ने कहा-हम डरे हुए हैं और छिप कर रह रहे हैं। अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के साथ अमेरिका के अनेक नागरिक, अमेरिका के स्थायी निवासी, ग्रीन कार्ड धारक, वीजा आवेदक समेत ऐसे कई लोग हैं जिन्हेंने 20 साल चले युद्ध में अमेरिकी सैनिकों की मदद की थी और वह अफगानिस्तान से नहीं निकल पाए हैं। ऐसे सभी लोगों से बात करने पर पता चला कि वह सत्तारूढ़ तालिबान से डरे हुए हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि तालिबान के लोग उन्हें खोज लेंगे, जेल में डाल देंगे या फिर मार ही डालेंगे क्योंकि वह अमेरिकी हैं और उन्होंने अमेरिकी सरकार के लिए काम किया है। इन लोगों को चिंता है कि बाइडेन प्रशासन ने उन्हें निकालने के लिए प्रयास करने का तो वादा किया था, अब वह भी रुक गए है। हाल ही में अमेरिकी सेना की मदद करने वाले को हेलीकाप्टर से लटकाकर फांसी दी गई और काबुल में पहुंचाया था।
दस डीसीपी ने दी 40 करोड़ रुपए की रिश्वत
बर्खास्त पुलिस अधिकारी सचिन वाजे ने ईडी को दिए अपने बयान में महाराष्ट्र के परिवहन मंत्री अनिल परब और तत्कालीन गृहमंत्री अनिल देशमुख पर सनसनीखेज आरोप लगाए हैं। वाजे ने कहा कि मुंबई के तब के पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह की ओर से जारी तबादले के आदेशें को रोकने के एवज में इन दो नेताओं ने शहर के 10 पुलिस आयुक्तों (डीसीपी) से 40 करोड़ रुपए रिश्वत ली थी। परमवीर सिंह ने जुलाई, 2020 में मुंबई में 10 डीसीपी के ट्रांसफर के आदेश जारी किए थे। वाजे ने अपने बयान में दावा किया कि तबादला आदेश को लेकर तत्कालीन गृहमंत्री अनिल देशमुख और परब खुश नहीं थे। वाजे ने कहा, बाद में मुझे पता चला कि आदेश में सूचीबद्ध पुलिस अधिकारियों से 40 करोड़ रुपए की राशि इकट्ठी की गई थी। इनमें से अनिल देशमुख और अनिल परब को 20-20 करोड़ रुपए दिए गए थे। वाजे को उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के पास विस्फोटक सामग्री वाली यूएसवी पाए जाने और ठाणे के कारोबारी मनसुख हिरेन की हत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया था। वाजे का बयान देशमुख के पूर्व निजी सचिव संजीव पलांडे और निजी सहायक कुंदन शिंदे के खिलाफ मनी लॉड्रिंग के मामले में दायर चार्जशीट का हिस्सा है। पलांडे और शिंदे इस मामले में न्यायिक हिरासत में हैं। जांच एजेंसी ने बताया कि उसकी जांच में खुलासा हुआ कि देशमुख बार और रेस्तरां से एकत्र धन को सौंपने को लेकर वाजे से संपर्क करते थे।
-अनिल नरेन्द्र
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