उत्तर प्रदेश चुनाव के आखिरी चरण के मतदान के अंतिम बटन दबाने के साथ ही सीबीआई ने एनएचआरएम घोटाले में आरोपी पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को गिरफ्तार करने पर गिरफ्तारी की टाइमिंग को लेकर जरूर हैरानी हुई। सीबीआई और कांग्रेस का यह तर्प शायद ही किसी समझदार के गले उतरे कि यह गिरफ्तारी महज जांच प्रक्रिया का हिस्सा है। कुशवाहा के साथ ही बसपा के विधान परिषद सदस्य राम प्रसाद जायसवाल भी इसी घोटाले में गिरफ्तार कर लिए गए। दोनों को पूछताछ के लिए सीबीआई ने दिल्ली मुख्यालय बुलाया और करीब 4 घंटे तक चली गहन पूछताछ के बाद जब अधिकारियों ने उन्हें गिरफ्तार होने की सूचना दी तो सूत्र बताते हैं कि कुशवाहा के चेहरे पर मायूसी छा गई। कुशवाहा की गिरफ्तारी लगता है कि कांग्रेस के सत्ता संग्राम का नया हिस्सा है। सीधे-सीधे कहें तो मायावती के लिए यह एक बड़ा संकेत है, उन्हें खुश करने की कोशिश भी और नतीजे का गणित गड़बड़ा जाने पर डराने का हथियार भी। गिरफ्तारी के निहितार्थ इसी तरह पढ़े जाने चाहिए और इस तरह भी कि पूरे चुनाव अभियान में कांग्रेस ने जिस तरह भांति-भांति के दांव चले, उसके नेता आरक्षण का झुनझुना दिखाकर मुसलमानों को भरमाते रहे, चुनाव आयोग तक को गरियाते रहे, दो-तिहाई बहुमत के दावों के बीच राष्ट्रपति शासन का भय दिखाते रहे, कुशवाहा की गिरफ्तारी उसी कड़ी का हिस्सा और वैसा ही दांव है। बसपा के लिए साथ आने का परोक्ष न्यौता भी, लेकिन इस चेतावनी के साथ कि उनका मोहरा उन्हीं के खिलाफ चल सकता है। देश की सियासत के सबसे महत्वपूर्ण प्रदेश का ताज हथियाने के लिए कांग्रेस की अधीरता किसी से छिपी नहीं है। वह हर तरह का विकल्प खुला रखना चाहती है, दो नावों में पांव रखकर चलने से भी उसे कोई परहेज नहीं है। सपा को अंगूठा दिखाकर कांग्रेस का दामन थामने वाले दल-बदलू समाजवादियों का ताकतवर तबका किसी कीमत पर मुलायम सिंह यादव के साथ दोस्ती नहीं होने देना चाहता। उन्हें मायावती को साथ लेने में कोई परेशानी नहीं दिखती। कांग्रेस की ओर से सीएम पद के स्वयंभू दावेदार बेनी प्रसाद वर्मा इसकी सार्वजनिक पहल कर चुके हैं। अपने पुराने साथी मुलायम को आड़े हाथों लेने का वह कोई मौका नहीं छोड़ते लेकिन हाल में चौंकाया मायावती की तारीफ करके। साथ ही ऑफ द रिकॉर्ड यह भी कहा कि चुनाव बाद सोनिया मायावती को भी चाय पर बुला सकती हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा बेसब्री से यूपी के नतीजों का इंतजार है। जहां पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा को लेकर कांग्रेस मुख्यालय आ रही सूचनाओं में बहुत ज्यादा फर्प नहीं दिख रहा, वहीं उत्तर प्रदेश के नतीजों को लेकर कांग्रेस के भीतर भारी मतभेद हैं। सोनिया के सिपहसालार जो उन्हें बता रहे हैं और राहुल गांधी के सिपाही जो दावा कर रहे हैं, दोनों आंकड़ों में खासा फर्प है। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि राहुल गांधी ने यूपी चुनाव में बहुत मेहनत की है। 200 से अधिक रैलियां-रोड शो करना आसान नहीं। यही वजह है कि राहुल कैम्प का मानना है कि कांग्रेस की सीटें बढ़ेंगी, यह बढ़त 50 से लेकर अधिकतम 70 तक हो सकती है। पार्टी के ज्यादातर वरिष्ठ नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों की भी यही राय है। कुछ विक्षुब्ध कांग्रेसी और सांसद तो पार्टी को महज 30 से 35 सीटें ही दे रहे हैं। राहुल कैम्प में ऐसे नेता भी हैं जो कह रहे हैं कि कांग्रेस अपनी सीटें कम से कम 125 तक पहुंचा सकती है। दिग्विजय सिंह तो कांग्रेस की कम से कम 125 सीटें आने की शर्त लगाने को भी तैयार हैं। वह कहते हैं कि इस बार चुनावों में जो 15 से 20 फीसदी अतिरिक्त मतदान हुआ है, उसका कम से कम 80 फीसदी से ज्यादा कांग्रेस को मिला है और यह मतदाता राहुल गांधी के आक्रामक चुनाव अभियान, लोगों के बीच उनकी विश्वसनीयता और विकास के एजेंडे पर हुआ है। दिग्विजय यह भी कहते हैं कि इस बार यूपी का मतदाता खामोश रहा है, क्योंकि उसके इर्द-गिर्द सपा और बसपा के समर्थकों का दबदबा है। इसलिए उसने चुपचाप अपना मतदान किया है, जो नतीजों के रूप में सामने आएगा। खैर! नतीजों के लिए ज्यादा देर इंतजार नहीं करना पड़ेगा, जल्द दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा। अंत में हम चुनाव आयोग और मतदाताओं को बधाई देना चाहते हैं कि 5 राज्यों और ढाई महीने लम्बी चुनावी प्रक्रिया के दौरान बिना बूथ कैप्चरिंग, हिंसा या किसी अन्य गड़बड़ से मुक्त चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न हो गया। सबसे बड़ी बात यह रही कि बिना किसी उत्तेजक या विभाजक माहौल के बावजूद सभी राज्यों में मतदान केंद्रों पर मतदाताओं ने रिकॉर्ड वोटिंग की। लोगों ने पोलिंग बूथों पर जाकर लोकतंत्र के महापर्व के प्रति न सिर्प अपनी आस्था जताई बल्कि चुनाव को बेहद दिलचस्प बना दिया।
Anil Narendra, Babu Singh Kushwaha, Bahujan Samaj Party, BJP, CBI, Daily Pratap, NRHM, Vir Arjun
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