पाकिस्तान में कानून व्यवस्था बद से बदतर होती जा रही है। अराजकता का यह आलम है कि आदमी सुबह घर से निकले तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि रात वापस घर सही सलामत लौटे। अज्ञात बंदूकधारियों ने मंगलवार को कराची शहर में मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) के नेता और उनके भाई को गोली मारकर हत्या कर दी। इसके बाद शहर में हिंसा भड़क उठी, दंगाइयों ने दर्जनों वाहनों को आग के हवाले कर दिया है और तीन लोग मारे गए। एमक्यूएम नेता मंसूर मुख्तार के घर में घुसकर उनको गोलियों से भूना गया। पार्टी के वरिष्ठ नेता सगीर अहमद ने हत्या के लिए अमन समिति को जिम्मेदार ठहराया है जो कथित तौर पर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेताओं से जुड़ी है। मुहाजिरों और अन्य अल्पसंख्यक जिनमें भारतीय मूल के लोग भी शामिल हैं, अकसर टारगेट बनते हैं। रविवार रात को कराची के क्लिफटन इलाके में एक मुशायरा हो रहा था। इसमें भारत के जाने-माने शायर मंजर भोपाली और इकबाल असद भी भाग ले रहे थे। मुशायरे स्थल पर अज्ञात बंदूकधारियों ने हमला कर दिया और हमले में भारत के दोनों शायर बाल-बाल बचे। मंजर भोपाली ने बताया कि जब रविवार रात को मुशायरा स्थल के बाहर वह मौजूद थे तभी अन्दर से गोलीबारी की आवाज आने लगी और देखते ही देखते वहां दहशत का माहौल बन गया, लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। उन्हें पुलिस ने घटनास्थल से सुरक्षित बाहर निकाला। कराची के इस मुशायरे को एमक्यूएम की ओर से आयोजित किया गया था। पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग का भी कहना है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति लगातर खराब हो रही है और वह अपनी सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित हैं। अपनी 2011 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल 389 अल्पसंख्यक मुसलमानों की हत्या की गई और उसमें 100 के करीब शिया भी शामिल थे। रिपोर्ट के मुताबिक जिन लोगों की हत्या की गई उनमें सबसे अधिक शिया समुदाय के थे। अहमदी समुदाय भी हिंसा के शिकार हो रहे हैं। आयोग का कहना है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय विशेषकर हिन्दू अपने आपको बहुत असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जिसमें हिन्दू समुदाय पर हिंसा की गई और उन्हें धमकियां दी गईं जबकि हिन्दू लड़कियों के अपहरण और जबरन शादी की घटनाएं सामने आई हैं। हिन्दू समुदाय के 150 से अधिक लोगों को भारत में शरण लेने पर मजबूर होना पड़ा। इन हिन्दुओं ने भारत के अधिकारियों से कहा है कि अगर उन्हें पाकिस्तान वापस भेजा गया तो उनका जीवन खतरे में होगा। लगता है कि पाकिस्तानी समाज में सहनशक्ति खत्म हो रही है। रिपोर्ट में एक उदाहरण भी दिया गया है कि एक मामले में आठवीं कक्षा के एक छात्र पर ईश निन्दा का आरोप लगाया गया वो भी महज इसलिए क्योंकि वो एक शब्द का उच्चारण सही नहीं कर पाया। रिपोर्ट में इज्जत के नाम पर महिलाओं की हत्या को भी विस्तार से बताया गया है। यह जानकारी भी दी गई कि पिछले साल करीब 943 महिलाओं और लड़कियों का इज्जत के नाम पर कत्ल किया गया। मरने वाली महिलाओं में सात ईसाई और दो हिन्दू भी शामिल थीं।
पाकिस्तान में ईश निन्दा कानून की वजह से कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने पिछले दो दशकों में देश छोड़कर विदेशों में पनाह ली है। इन्हीं लोगों में एक शख्स जेजे जार्ज हैं जिन्हें ईश निन्दा कानून की वजह से 2007 में पाकिस्तान छोड़कर फ्रांस जाना पड़ा। वह एक कामयाब वकील थे और पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग के विभिन्न मामलों पर कानूनी सलाह देने का काम करते थे। 2002 में जब उन्होंने महमूद अख्तर नाम के एक कादियानी युवक का केस लड़ा तो उन्हें तरह-तरह की धमकियां दी गईं। उनसे कहा गया कि वे या तो वकालत छोड़ दें या महमूद अख्तर का केस छोड़ दें। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान के हालात शुरू से ऐसे नहीं थे। 1986 में ईश निन्दा कानून के आने के बाद से हालात तेजी से बदले हैं। जेजे जार्ज ने बताया कि ईश निन्दा कानून की वजह से ईसाई समुदाय के लोगों को सबसे ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ा है, क्योंकि किसी भी शिकायत पर बिना सुबूतों पर विचार किए, दो लोगों की गवाही के आधार पर दोषी ठहरा दिया जाता है। आज पाकिस्तान में हिन्दू, शिया और ईसाई समेत अन्य अल्पसंख्यक जितने असुरक्षित हैं, वह पहले नहीं थे।
पाकिस्तान में ईश निन्दा कानून की वजह से कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने पिछले दो दशकों में देश छोड़कर विदेशों में पनाह ली है। इन्हीं लोगों में एक शख्स जेजे जार्ज हैं जिन्हें ईश निन्दा कानून की वजह से 2007 में पाकिस्तान छोड़कर फ्रांस जाना पड़ा। वह एक कामयाब वकील थे और पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग के विभिन्न मामलों पर कानूनी सलाह देने का काम करते थे। 2002 में जब उन्होंने महमूद अख्तर नाम के एक कादियानी युवक का केस लड़ा तो उन्हें तरह-तरह की धमकियां दी गईं। उनसे कहा गया कि वे या तो वकालत छोड़ दें या महमूद अख्तर का केस छोड़ दें। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान के हालात शुरू से ऐसे नहीं थे। 1986 में ईश निन्दा कानून के आने के बाद से हालात तेजी से बदले हैं। जेजे जार्ज ने बताया कि ईश निन्दा कानून की वजह से ईसाई समुदाय के लोगों को सबसे ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ा है, क्योंकि किसी भी शिकायत पर बिना सुबूतों पर विचार किए, दो लोगों की गवाही के आधार पर दोषी ठहरा दिया जाता है। आज पाकिस्तान में हिन्दू, शिया और ईसाई समेत अन्य अल्पसंख्यक जितने असुरक्षित हैं, वह पहले नहीं थे।
No comments:
Post a Comment