हाल ही में खत्म हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार पार्टी नेतृत्व पचा नहीं पा रहा है। बावजूद कड़ी मशक्कत के पार्टी को करारी हार का मुंह देखना पड़ा। पार्टी को सबसे ज्यादा चिन्ता सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र और युवराज राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र में हार की है। इस हार के कारणों को जानने के लिए पार्टी ने कई रिपोर्टें तैयार कराई हैं। राहुल गांधी के करिश्मे का फायदा न मिल पाने के लिए जहां कांग्रेस नेतृत्व कमजोर संगठन, गलत टिकटों का बंटवारा बता रहा है वहीं हकीकत कुछ और ही उभरकर आ रही है। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी की अगुवाई में सेंट्रल इलेक्शन कमेटी के लिए बनी एक विशेष रिपोर्ट में कहा गया है कि पार्टी के युवराज राहुल गांधी की मंडली भी हार के लिए जिम्मेदार है। इसमें कहा गया है कि एक-दूसरे से बेहद ईर्ष्या करने वाले लोगों के छोटे लेकिन प्रभावशाली गुट और राजनीतिक दमखम की कमी वाले उम्मीदवारों को टिकट दिए जाने से चुनाव के नतीजे पार्टी के लिए निराश करने वाले रहे। रिपोर्ट में कहा गया है कि जातिवाद और वरिष्ठ नेताओं के अहंकार को भी हार का कारण माना गया है जिसकी वजह से जमीनी कार्यकर्ता चुनाव में पूरी ताकत लगाने के बजाय तटस्थ रहा। कांग्रेस की इस हार की `पोस्टमार्ट्म' की इस पहली रिपोर्ट में सूबे के 33 सीटों पर फोकस किया गया है। इन सभी सीटों पर कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा है, जहां राहुल के करीबियों ने दखल देकर अपनी मर्जी के उम्मीदवारों को टिकट दिलाए थे। इन सभी सीटों पर कांग्रेस के पर्यवेक्षकों द्वारा चुने गए उम्मीदवारों और स्थानीय कार्यकर्ताओं की अनदेखी की गई। फिरोजाबाद में सिरसागंज सीट का उदाहरण सामने है जहां कांग्रेस उम्मीदवार हरिशंकर यादव महज 4224 वोट लेकर पांचवें स्थान पर रहे। पर्यवेक्षकों और स्थानीय कार्यकर्ताओं की पहली पसंद ठाकुर दलबीर सिंह तोमर थीं। राहुल ने विशेष जोर देकर यादव को टिकट दिलवाया। इसी तरह एटा जिले में अलीगंज सीट पर पार्टी के उम्मीदवार रज्जन पाल सिंह 8160 मतों के साथ पांचवें स्थान पर रहे। इस सीट पर पार्टी के आब्जर्वर ने बिजनेसमैन सुभाष वर्मा को टिकट की वकालत की थी। लोध राजपूत से ताल्लुक रखने वाले वर्मा जिला पंचायत के सदस्य भी हैं। वे इस विधानसभा क्षेत्र में लोध समुदाय के एकमात्र उम्मीदवार थे, जो 27,000 लोध वोटरों के अधिकतर वोट हासिल कर सकते थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से उन्होंने पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ ही काम किया और उसे हरवाने में जुट गए। प्रदेश के एक मुस्लिम सांसद ने कहा कि जो रिपोर्टें अब मिल रही हैं हम लोगों को तो पहले से ही पता था। इस बारे में राहुल गांधी को भी सचेत किया गया था लेकिन उन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया। मुस्लिम नेता के रूप में केवल सलमान खुर्शीद को आगे बढ़ाया गया जबकि मुस्लिम उन्हें अपना नेता मानते ही नहीं हैं। इसी तरह राहुल गांधी ने समाजवादी पार्टी से आए रशीद मसूद और बेनी प्रसाद वर्मा को अहमियत दी जबकि यह लोग दूसरे दलों से आए थे और इसी वजह से कांग्रेस कार्यकर्ता इस चुनाव में दूर रहा। प्रदेश के कई सांसद और नेता यह चाहते हैं कि हार के जिम्मेदार लोगों को सजा दी जाए जिन लोगों को इस चुनाव में अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति और अल्पसंख्यकों वाली सीटों को जीतने के लिए लगाया गया था, उन पर गाज गिरनी चाहिए।
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