Sunday, 11 March 2012

पहले से ही पंगु यूपीए सरकार के लिए चुनौतियां मुंह फाड़े खड़ी हैं

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 11 March 2012
अनिल नरेन्द्र
यूपीए की सरकार का कार्यकाल 2014 तक का है। अब से लोकसभा चुनाव का समय मनमोहन सिंह सरकार के लिए कांटों भरा होगा। उत्तर प्रदेश के विधानसभा परिणाम ने संप्रग सरकार की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। पिछले कुछ दिनों से लगभग पंगु हुई मनमोहन सरकार अगले दो साल किस तरह काटेगी, यह कहना बहुत मुश्किल है। आमतौर पर देखा गया है कि कोई भी सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम एक-दो वर्षों में पूरी ताकत लगा देती है और लोकलुभावने कदम उठाती है ताकि पिछले सालों की जनता को आई तकलीफ वह भूल जाए पर इस सरकार के लिए अब ज्यादा लोकलुभावने कदम उठाना भी मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि अब वह लोकसभा और राज्यसभा में अपनी मनमानी इतनी आसानी से नहीं चला सकेगी। वह महत्वपूर्ण विधेयक नहीं ला सकती, क्योंकि दोनों सदनों में उसकी स्थिति पहले से भी कमजोर हो जाएगी। एक तरह से यह कहें कि यूपीए सरकार पर आचार संहिता लागू हो गई है। यूपी परिणाम से साफ है कि क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत हो रही हैं और केंद्र कमजोर। ऐसे में कांग्रेस के बहुमत वाले यूपीए के सामने भी कई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। इस समय मनमोहन सरकार के सामने कम से कम पांच चुनौतियां हैं जिनसे पार पाना उसके लिए टेढ़ी खीर साबित होगा। बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, पंजाब, उत्तर प्रदेश, गोवा, महाराष्ट्र हर राज्य में कांग्रेस की स्थिति कमजोर हुई है। जुलाई में राष्ट्रपति चुनाव होना है। क्षेत्रीय पार्टियों के मजबूत होने के बाद अब कांग्रेस के लिए अपनी पसंद का राष्ट्रपति चुनना व चुनवाना आसान नहीं होगा। निर्वाचन मंडल और राज्यों के विधायकों के वोटों को जोड़कर राष्ट्रपति चुनाव के लिए संख्याबल बनता है। यूपी में भारी जीत के बाद समाजवादी पार्टी के 83824 वोट हो गए हैं। इसके अलावा ममता के 45,640 वोट, जयललिता के 35392 वोट की ताकत कांग्रेस के खिलाफ एकजुट होगी। ये राष्ट्रपति चुनाव के लिए जरूरी कुल वोटों का 15 फीसद है। इसलिए कांग्रेस को ऐसा उम्मीदवार लाना होगा जो बीजेपी समेत क्षेत्रीय दलों को भी मंजूर हो। मार्च में होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव कांग्रेस की पहली चुनौती होगी। यूपीए के सामने संसद में एफडीआई, खाद्य सुरक्षा जैसे दर्जनों बिल पास कराने की चुनौती अब पहले से भी ज्यादा हो गई है। जोड़तोड़ के सहारे सरकार लोकसभा में बेशक महत्वपूर्ण बिल पास करवा ले पर राज्यसभा में शायद यह इतना आसान न हो। राज्यसभा में तो वैसे ही कांग्रेस अल्पमत में है और अब विपक्ष और ज्यादा मजबूत हो जाएगा। इसी महीने राज्यसभा के भी 10 सदस्यों का चुनाव होने जा रहा है। एसपी की भारी जीत के बाद उसके 5-6 नए सदस्य आ सकते हैं। ऐसे में सपा जैसी क्षेत्रीय पार्टियों की अहमियत और बढ़ जाती है। कोई भी बिल पास कराने के लिए यूपीए को मुलायम, ममता समेत भाजपा और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों का सहयोग और सुझाव लेना ही पड़ेगा। दिवालिया होने की कगार पर खड़ा देश मनमोहन सरकार की नुकसानदेय आर्थिक प्राथमिकताओं से जूझ रहा है। आर्थिक घाटे को कम करने के लिए सख्त बजट लाना और पास करवाना प्रणब मुखर्जी जैसे सुलझे नेता के लिए भी अब आसान नहीं होगा। संसद का बजट सत्र 12 को शुरू हो रहा है। विपक्षी दलों के हमलों के साथ ही तृणमूल कांग्रेस से चल रही अनबन के बीच सरकार को बजट पास करवाना है। महंगाई से जूझती जनता पर बजट में किसी भी प्रकार के सख्त कदम थोपने का भाजपा समेत यूपीए के घटक दल विरोध करेंगे। परिणाम आने से ठीक पहले सीएनजी की कीमत बढ़ा दी गई, पेट्रोल के दाम में भी वृद्धि की चर्चा है। ऐसे में मनमोहन सिंह सरकार के लिए अपनी सरकार की जनहित योजनाओं को पार करने के लिए अतिरिक्त बोझ डालना अब पहले से भी मुश्किल होगा और अगर वह धन उपलब्ध करा पाएगी तो इन लोकलुभावनी योजनाओं का क्या होगा? केंद्र और कांग्रेस ने एनसीटीसी यानि राष्ट्रीय आतंकवादी रोधी केंद्र का गठन प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है। गृहमंत्री पी. चिदम्बरम इसे पारित करवाने पर तुले हुए हैं। केंद्र के इस फैसले का ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, नवीन पटनायक, शिवराज सिंह चौहान, नरेन्द्र मोदी, रमन सिंह के विरोध में अब मुलायम सिंह और गोवा के मुख्यमंत्री भी शामिल होंगे। ऐसे में बिना इनकी सहमति के यह बिल पास नहीं हो सकता। इन विधानसभा परिणामों से साफ हो गया है कि क्षेत्रीय पार्टियों के मुकाबले कांग्रेस और भाजपा कमजोर हुई है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या एक बार फिर चौथे मोर्चे की कवायद शुरू होगी? अभी लोकसभा में सपा के 22 सांसद हैं जो सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे हैं। यूपी के नतीजों के बाद महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी इत्यादि जैसे मुद्दों पर सपा का दूसरे दलों के साथ एक चौथा मोर्चा खड़ा करने की सम्भावना से कांग्रेस की चुनौतियां और बढ़ गई हैं। अगले दो साल में मनमोहन सरकार के और ज्यादा पंगु होने की सम्भावना है। देखें, मनमोहन सिंह सरकार इन मुंह फाड़े खड़ी चुनौतियों से कैसे निपटती है।
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