Sunday, 25 March 2012

उपचुनावों के परिणाम कांग्रेस और भाजपा के लिए चिन्ता पैदा करते हैं

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 25 March 2012
अनिल नरेन्द्र
ताजा उपचुनावों के नतीजे अगर कांग्रेस के लिए चिन्ता का विषय थे तो आंध्र प्रदेश की सात विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में उसके सूपड़ा साफ होने की खबर तो पार्टी के लिए अशुभ संकेत है। यह उपचुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए भी अच्छे संकेत नहीं दे रहे। गुजरात को भाजपा अपना गढ़ मानती है और कर्नाटक में भी वह करीब चार साल से सत्ता में है। लेकिन इन राज्यों में उसे हार का मुंह देखना पड़ा है। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस और भाजपा ही प्रमुख प्रतिद्वंद्वी हैं, इसलिए भी यह पराजय भाजपा के लिए अधिक तकलीफदेह साबित हो सकती है। कर्नाटक की उडुपी-चिकमंगलूर लोकसभा सीट मुख्यमंत्री सदानन्द गौड़ा की थी। मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया था। जाहिर है इस सीट को बरकरार रखना भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल था। मगर यहां उसे कांग्रेस के हाथों 45,000 से ज्यादा वोटों से मात खानी पड़ी। साफ है कि सत्ता की खातिर पार्टी के भीतर चल रही जोड़-तोड़, कलह, भ्रष्टाचार के आरोपों और विधानसभा में अश्लील वीडियो देखे जाने की घटना से खराब हुई छवि का खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा है। अनुशासन का दम भरने वाली पार्टी के लिए आज अनुशासनहीनता ही सबसे बड़ी समस्या बन गई है। गुजरात में मानसा विधानसभा सीट भाजपा के हाथ से निकलकर कांग्रेस की झोली में आना मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए भी झटका है। गौरतलब यह भी है कि मानसा विधानसभा सीट गांधी नगर लोकसभा क्षेत्र में आती है जिसका प्रतिनिधित्व लाल कृष्ण आडवाणी करते हैं। लेकिन यह पहला मौका नहीं जब भाजपा के इस गढ़ में सेंध लगाने में कांग्रेस को कामयाबी मिली है। पिछले साल नवम्बर में नगर निकाय चुनाव में भी भाजपा की दुर्गति हुई थी। इस साल के अन्त में राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए मानसा की हार जहां नरेन्द्र मोदी के लिए चिन्ता का विषय होना चाहिए वहीं कांग्रेस जरूर इससे उत्साहित होगी। आंध्र प्रदेश कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा गढ़ रहा है। 2009 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने यहां 95 फीसदी सीटें जीतकर राजनीति के पंडितों को चकरा दिया था। लेकिन इसके करिश्माई नेता स्वर्गीय राजशेखर रेड्डी की अकस्मात मृत्यु और उनके पुत्र जगन मोहन रेड्डी के कांग्रेस से अलग होने के बाद उसका पराभाव शुरू हो गया। इसके बाद राज्य में 17 विधानसभा और दो लोकसभा सीटों पर उपचुनाव हो चुके हैं जिसमें सत्ताधारी कांग्रेस का पूरी तरह सूपड़ा साफ हुआ है। जहां कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई वहीं भाजपा जैसी पार्टी जिसका सूबे में ज्यादा असर नहीं है वह भी तीन सीटें जीत चुकी है। केंद्र सरकार में बड़े घोटालों के खुलासे के बाद कांग्रेस को महाराष्ट्र, राजस्थान और दिल्ली में हुए उपचुनावों में भी जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा है जहां उसकी सरकारें हैं। चन्द रोज पहले ही मुंबई नगर निगम के चुनावों में भी उसे पराजय का मुंह देखना पड़ा था यानि हर उस जगह से कांग्रेस को बुरी खबर मिल रही है जहां उसके पास अच्छी ताकत है। केरल में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के सहयोगी दल कांग्रेस (जेकब) ने अपनी सीट बरकरार रखी। यह परिणाम कांग्रेस के लिए खास महत्व रखता है क्योंकि राज्य में उसके नेतृत्व वाली संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार मामूली बहुमत पर टिकी है। तमिलनाडु और उड़ीसा में भी एक-एक विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में गए हैं। वैसे उपचुनाव परिणाम को हर हाल में आम रुझान का संकेत तो नहीं माना जा सकता पर कई राज्यों से वहां के मतदाताओं के मिजाज का जरूर कुछ संकेत मिलता ही है और यह संकेत न तो कांग्रेस के लिए अच्छे हैं और न ही भारतीय जनता पार्टी के लिए।
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