Monday 19 March 2012

बजट सत्र में संप्रग सरकार की अग्निपरीक्षा

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 19 March 2012
अनिल नरेन्द्र
यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार बिल्कुल दिशाहीन हो चुकी है। आम आदमी के नारे को लेकर सत्ता में आई यह संप्रग सकार आज आम आदमी से कितना दूर हो चुकी है यह शायद उसे खुद नहीं मालूम। आम आदमी के नारे को लेकर सत्ता में काबिज हुई यूपीए सरकार का सफर भ्रष्टाचार, घोटालों, विवादों और गड़बड़ियों के तंग रास्तों से ही थमता नजर नहीं आता। तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक जैसे दलों की बैसाखियों के सहारे कार्यकाल पूरा करने की मंजिल तक पहुंचने की जुगत में यूपीए सरकार की मुश्किल तो यह है कि उसके तंग रास्ते में आगे कुआं तो पीछे खाई नजर आ रहे हैं। सियासी विवादों के झमेले में बार-बार ऐसी फंसती है कि फिर न तो पैर वापस खींचते बनता है और न ही कदम आगे बढ़ाते। इस सरकार की हालत क्या है? यह सरकार कैसे चल रही है, कोई नहीं जानता। उत्तर प्रदेश के चुनाव के दौरान केंद्र के दो मंत्री चुनाव आयोग को ललकारते हैं, तो दूसरा मंत्री कांग्रेस के एक युवा नेता को प्रधानमंत्री पद के लिए ज्यादा काबिल बताता है। 2जी स्पैक्ट्रम मामले में खुद प्रधानमंत्री और उनके कार्यालय (पीएमओ) के बीच में सामंजस्य की कमी सामने आ चुकी है। इतना ही नहीं, सरकार में मायावती और मुलायम की मदद के लिए सीबीआई तक का इस्तेमाल किया। आज विडम्बना देखिए कि उन्हीं ममता, मुलायम और मायावती यानि तीन एम पर सरकार का भविष्य टिका है। इन तीनों में से दो ने अगर सरकार को समर्थन नहीं किया तो यह सरकार बजट सत्र पार नहीं कर सकती। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बेहद भरोसेमंद पार्टी के प्रमुख रणनीतिकार और केंद्र सरकार में एक मंत्री सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और उनके प्रमुख सलाहकार और अनुज रामगोपाल यादव से लगातार सम्पर्प बनाए हुए हैं। सपा, बसपा, कांग्रेस समेत सभी दलों में बराबर की पैठ रखने वाले कुछ उद्योगपति भी इस सियासी ऑपरेशन में जुटे हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक पहले सपा को सरकार में शामिल करने से इंकार करने वाली कांग्रेस ने मुलायम को सरकार में शामिल होकर केंद्र को स्थिर करने की पेशकश भी की है। 22 सांसदों वाली समाजवादी पार्टी को चार प्रमुख मंत्रालय देने की बात भी शुरू हो गई है। इनमें पेट्रोलियम, ऊर्जा, इस्पात और ममता के अलग होने की स्थिति में रेल मंत्रालय तक शामिल है। सपा ने अपनी ओर से कम से कम तीन कैबिनेट मंत्री पद और दो राज्यमंत्री पद की मांग रखी है। सपा को पटाने के लिए ही कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ नेता मोती लाल वोरा और पवन बंसल को अखिलेश के शपथ समारोह में भेजा। गठबंधन धर्म की दुहाई देने वाली कांग्रेस पर आज इसी को न मानने का आरोप घटक दल उसी पर लगा रहे हैं। ममता ने इस सरकार की बार-बार किरकिरी करवाकर साबित कर दिया है कि यह सरकार कितना कमजोर और असहाय है। ममता ने पहले दिन से ही तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे। प्रधानमंत्री के साथ बंगलादेश दौरे पर ही नहीं गईं बल्कि तीस्ता नदी का मामला उठाकर प्रधानमंत्री की इस यात्रा पर पानी फेर दिया। तृणमूल कांग्रेस ने इन्दिरा भवन का नाम कवि नजरुल इस्लाम परिवर्तित करके कांग्रेस की दुखती रग दबाई। कांग्रेस और ममता के रिश्ते आज टूटने की कगार पर हैं। इसी पृष्ठभूमि में तृणमूल कांग्रेस की एकाएक लोकसभा में मध्यावधि चुनाव की मांग ने सबको चौंका दिया है। इस राजनीतिक घटनाक्रम को नया मोड़ यूपीए के एक और घटक दल राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने दे दिया जब उन्होंने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की पराजय का सेहरा युवराज राहुल गांधी के सिर फोड़ दिया। उधर एक और बैसाखी द्रमुक ने अपना ड्रॉमा आरम्भ कर दिया है। तृणमूल कांग्रेस के तेवर अभी काबू में नहीं आए कि अब डीएमके ने आंखें दिखानी शुरू कर दी हैं। इस पार्टी के नेता पिछले कई दिनों से श्रीलंका के तमिल मुद्दे पर भारत सरकार को अपना स्टैंड कड़ा करने का दबाव बनाते आए हैं। सरकार के आश्वासन के बाद ही एम. करुणानिधि तुनक गए हैं। नाराजगी जताने के लिए बजट पेश होने के समय डीएमके कोटे के दो केंद्रीय मंत्री संसद में नहीं रहे। यहां तक कि केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री पलानि मणिक्कम तो दिल्ली से बाहर ही बने हुए हैं। तृणमूल कांग्रेस के बाद जिस तरह से डीएमके ने तमिल मुद्दे के बहाने सरकार को तेवर दिखाने का प्रयास कर रहे हैं उससे राजनीतिक अस्थिरता और बढ़ गई है। डीएमके के एक सांसद ने कहा कि अगर सरकार का रवैया तमिल मुद्दे पर ठीक नहीं हुआ तो उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस से भी ज्यादा दबाव बनाना जानती है। यह बात कांग्रेस नेतृत्व को नहीं भूलनी चाहिए। दरअसल संप्रग के घटक और बाहर से समर्थन देने वाली राजनीतिक पार्टियों को यह सिद्ध हो चुका है कि कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी का जादू बेअसर हो चुका है। ममता बनर्जी के समर्थन वापस लेने की स्थिति में कांग्रेस ने सपा को पटाने की कोशिशें तेज कर दी है पर दिनेश त्रिवेदी प्रकरण और उत्तराखंड में विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाए जाने से नाराज हरीश रावत इतने प्रयासों, लालचों के बाद भी लाइन पर नहीं आए, इससे सोनिया गांधी की पैठ को और धक्का लगा है। संप्रग के स्थायित्व को लेकर चारों ओर चिन्ता का माहौल बना हुआ है। यूपीए के लोकसभा में 255 सांसद हैं। तृणमूल (19), सपा (22), बसपा (21) हैं। कांग्रेस को तीन एम में से दो एम का समर्थन जरूर चाहिए। आम बजट, राज्यसभा के चुनाव और जुलाई में राष्ट्रपति के चुनाव तक की चुनौती यह सरकार कैसे पार करेगी? खासकर राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस को न केवल सपा की बल्कि तृणमूल कांग्रेस की भी जरूरत होगी। रणनीतिकारों के आकलन के मुताबिक संप्रग के पास केवल 35 फीसदी वोट हैं। इसमें प. बंगाल के वोट भी शामिल हैं। अगर ममता यूपीए से अलग होती हैं तो कांग्रेस को अपना उम्मीदवार राष्ट्रपति के पद तक पहुंचाने में काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। वैसे राष्ट्रपति चुनाव में तो अभी समय है। अभी तो बजट सत्र को सही सलामत पार करने की यूपीए गठबंधन सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इस सत्र में कांग्रेस के रणनीतिकारों की अग्निपरीक्षा होना तय है।
Anil Narendra, Daily Pratap, UPA, Vir Arjun

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