Friday, 31 March 2017

लश्कर, हिजबुल की घाटी में तनाव पैदा करने की योजना

सुरक्षा एजेंसियों को मिले इनपुट के मुताबिक लश्कर--तैयबा और हिजबुल मुजाहिद्दीन ने कश्मीर घाटी को फिर दहलाने की साजिश रची है। दोनों ही आतंकी तंजीमों ने हाथ मिलाते हुए घाटी में उपचुनावों और पर्यटन सीजन के दौरान बड़ी वारदातों की व्यूहरचना की है। शोपियां, पुलवामा, कुलगांव, हंदवाड़ा, कुपवाड़ा और अनंतनाग में दोनों संगठनों के पोस्टर मिलने से सुरक्षा एजेंसियां चौकन्ना हो गई हैं। दक्षिणी कश्मीर सबसे संवेदनशील माना जा रहा है। इसका इलाका नेशनल हाइवे से बिल्कुल सटा हुआ है जिससे सुरक्षा बलों के काफिले को निशाना बनाना आतंकियों के लिए आसान हो सकता है। बुरहान वानी के मारे जाने के बाद सबसे ज्यादा 80 युवाओं ने इसी इलाके में आतंकी संगठनों का दामन थामा है। बढ़ी हिंसा के कई सबूत सामने आने लगे हैं। मध्य कश्मीर के बड़गांव जिले में सुरक्षा बलों ने 10 घंटे से अधिक चली मुठभेड़ में हिजबुल के एक आतंकी को ढेर कर दिया। इस दौरान आतंकियों को भगाने के उद्देश्य से स्थानीय नागरिकों ने प्रदर्शन किया और सुरक्षा बलों पर जबरदस्त पथराव भी किया। स्थिति पर काबू पाने के लिए सुरक्षा बलों को आंसूगैस के गोले दागने पड़े और जब उससे भी पथराव नहीं रुका तो फायEिरग करनी पड़ी। इसमें तीन पत्थरबाजों की मौत हो गई, जबकि एक दर्जन से अधिक प्रदर्शनकारी घायल हो गए। मारे गए युवकों की पहचान जाहिद रशीद गनई, आमिर वाजा और अशफाक अहमद के तौर पर हुई। कश्मीर घाटी में अचानक तेज हुई पत्थरबाजी, आगजनी उसे देखते हुए वहां से अच्छी खबर नहीं बल्कि सिर्फ खूनखराबे और निराशाजनक खबरें ही आ सकती हैं। बड़गांव के फसाद से साफ संकेत मिल रहे हैं कि पिछले साल की तरह ही हिंसक घटनाओं की शुरुआत हो चुकी है। पिछले दिनों सेनाध्यक्ष जनरल रावत ने चेतावनी दी थी कि सेना के सर्च ऑपरेशन अभियान में बाधा डालने वालों और आतंकवादियों का सुरक्षा कवच बनने वालों से सेना कड़ाई से पेश आएगी। अलगाववादी उनके इस बयान को तोड़-मरोड़कर पेश कर स्थानीय लोगों को भड़का रहे हैं। सरकार को सख्ती के साथ ही संवाद स्थापित करने की प्रक्रिया भी तत्काल शुरू करनी चाहिए। युवकों में बढ़ती बेरोजगारी एक बड़ी वजह है कि 500 रुपए प्रतिदिन लेकर गुमराह युवक पत्थरबाजी पर उतरते हैं। इन्हें रोजगार देने की गंभीरता से योजना बननी चाहिए। घाटी में मनोरंजन का भी अब कोई जरिया नहीं बचा। तमाम सिनेमा हॉल बंद हैं। युवा शाम को क्या करें? उनका ध्यान बंटाने के लिए सिनेमा हॉल इत्यादि खुलने चाहिए। कश्मीर में पिछले ढाई दशक से भी ज्यादा समय से जारी भीषण रक्तपात कब और कहां रुकेगा यह सभी के लिए चिन्ता का विषय है।
-अनिल नरेन्द्र


किसानों की आत्महत्याएं ः आपराधिक लापरवाही

किसानों की आत्महत्या को बेहद गंभीर मामला बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इसे रोकने के लिए तुरन्त कार्ययोजना बनाने को कहा है। शीर्ष अदालत ने इसके लिए चार हफ्ते का वक्त दिया है। चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पीएस नरसिम्हा से कहा कि सरकार को ऐसी नीति लेकर आना चाहिए जिसमें किसानों की आत्महत्या के मूल कारण को दुरुस्त किया जा सके। पीठ ने कहा कि यह बेहद गंभीर मामला है। केंद्र सरकार को रोड मैप तैयार करना होगा। केंद्र यह भी बताए कि किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए राज्यों को क्या कदम उठाने चाहिए। सोमवार को सुनवाई के दौरान पीएस नरसिम्हा ने कहा कि सरकार इसके लिए हर संभव प्रयास कर रही है। वे सीधे किसानों से फसल लेना, बीमा राशि बढ़ाने, ऋण देने और फसल की क्षति होने पर मुआवजे की रकम बढ़ाने सहित कई सकारात्मक कदम उठा रही है। बता दें कि यह समस्या कितनी गंभीर है कि 2015 में 8007 किसानों ने आत्महत्या की। जान देने वाले किसानों में से 73 फीसदी दो एकड़ या इससे कम जमीन के मालिक थे। आत्महत्याओं के पीछे कर्ज और दिवालियापन को मुख्य वजह बताया गया है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार किसानों द्वारा आत्महत्या करने की सबसे ज्यादा घटनाएं महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु में हुई। वर्ष 2014 में 5650 किसानों ने आत्महत्या की थी। एक साल में यह आत्महत्या का सिलसिला 5650 से बढ़कर 8007 तक पहुंच गया यानि यह लगातार बढ़ रहा है। वैसे तो किसानों द्वारा आत्महत्या करने के लिए कारण हैं पर भारतीय किसान बहुत हद तक मानसून पर निर्भर हैं। इसकी असफलता के कारण नकदी फसलें नष्ट होना आत्महत्याओं का मुख्य कारण माना जाता रहा है। मानसून की विफलता, सूखा, कीमतों में वृद्धि, कर्ज का बोझ आदि समस्याओं की शुरुआत करती है। बैंकों, महाजनों, बिचौलियों आदि के चक्र में फंसकर भारत के विभिन्न हिस्सों के किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। एक अत्यंत दुखद पहलू यह भी है कि ओलावृष्टि और बारिश से फसल को हुए नुकसान की भरपायी के लिए केंद्र और राज्य सरकारें दोनों ने ही शुरुआती तकरार के बाद किसानों को मुआवजे की घोषणा की थी। मगर उत्तर प्रदेश राज्य सरकार द्वारा इस वर्ष दिए गए 1790 करोड़ रुपए में से सिर्फ 480 करोड़ रुपए ही जरूरतमंद किसानों तक पहुंच सके हैं और अब विभिन्न जिलों के अधिकारी बाकी के 1200 करोड़ रुपए सरकारी खजाने में लौटाने की जुगत कर रहे हैं। यदि सरकारें और विभिन्न संस्थाएं अपनी जवाबदेही ठीक से समझतीं तो किसानों की इतनी दुर्दशा न होती जो आज हो गई है।

Thursday, 30 March 2017

Hindus own Big Slaughterhouses

Gauhatya (cow slaughter) is not just an issue, it is a question of our faith and belief. The cow has the status of Goddess in Hindu religion. Within the cow, the abode of Gods has been considered in our religious texts. Cows are specially worshiped on the occasion of Govardhan Puja, on the second day of Deepawali and they are adorned from peacock feathers etc. According to the Puranas, it is  believed that all the deities inhabit in the cow. Tormenting cow in any form is considered a grave sin. To kill her is like opening the door to the hell, where many lives have to suffer. According to Atharva Veda, 'Dhenu Sadanam Rainnam' i.e. cow is the main source of prosperity. Cow is a sign of prosperity and profusion. It is the source of the nurturing of creation. She is mother. Many types of products are made from cow's milk. Fuels and composts are obtained from dungs. Medicines and fertilizers are made from urine.

The cow is not so worshipful that it gives milk and its  existence meets our social fulfillment. Actually, according to the fact, the soul finally becomes a cow after taking birth in 84 lakhs Yoni (types of bodies). The scientists say that the cow is the only creature that inhales oxygen and releases oxygen only. While all creatures including humans inhale oxygen and release carbon dioxide.Trees and plants carry out reverse process of it. The cow's meat, which is called beef, everyone who sells or eat beef should abstain from it. What to do when the beef sellers themselves are related to Hindu religion?

A sensational report of Mr. Pramod Malik (BBC dot work) has been published in BBC (Hindi). This report is available in this regard. In the last few days, some slaughterhouses have been closed in Uttar Pradesh.
The government says it was being run illegally. When issue of slaughterhouses surfaces, common people make a perception that persons of a particular religion and class are involved in this profession without knowing the reality. You would be surprised to know that 10 big beef exports of India belong to the Hindu community. According to the Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority (APEDA), a body of  Ministry of Commerce, GOI, owners of 10 slaughter houses out of 74 in the country, belong to the Hindu community.

The country's largest abattoir is situated in  Rudram village in Medak district of Telangana. Spread over 400 acres, Satish Sabharwal is the owner of this slaughterhouse. This abattoir runs Al Kabir Exports Pvt. Ltd. This abattoir is run by Al Kabir Exports Pvt. Ltd. From the headquarters located at Nariman Point, Mumbai, it exports beef to many Middle East countries.

It is also India's largest beef exporter and has offices in several Middle East cities. Suresh Sabharwal, Chairman Al Kabir Middle East told the BBC in the conversation on the phone from Dubai office- Religion and business are two different things and both should not be seen together. If any Hindu remains in beef business or any Muslim lends money on interest, what is the problem? Al Kabir had a business of about Rs 650 crore last year.

Sunil Kapoor is the owner of Arabian Exports Pvt. Ltd. It has its headquarters in Mumbai's Ashir Mansions. The Company exports the meat of the sheep also besides beef. Its board of directors includes Viratan Nagnath Woodchule, Vikas Maruti Shinde and Ashok Narang.

Madan Abbott is the owner of MKR Frozen Food Exports Pvt. Company's headquarters is in Delhi. The abattoir of Abbott Cold Storage Pvt. Ltd is situated in Samgauli village in Mohali district of Punjab. Its director is Sunny Abbott.
Anil Sood, owner of Alnnur Exports. This Company's office is in Delhi. But its abattoir and meat processing plant is in Shernagar village of Muzaffarnagar in Uttar Pradesh. Apart from this, they have plants in Meerut and Mumbai also. Its second partner is Ajay Sood. This company was established in 1992 and it exports beef to 35 countries.

Abattoir of AOV Exports Pvt. Ltd. is in Unnao, Uttar Pradesh. Its director is O. P. Arora. This Company has been working since 2001. Company's headquarter is in Noida and Abhishek Arora is director of AOV Agro Foods. Plant of this company is in Mewat's Nooh.

Kamal Verma is director of Standard Foods Exports Private Limited. S Kumar is director of PN Products Exports. Slaughterhouse of Ashwini Agro Exports is in the Gandhi Nagar of Tamil Nadu. Company's Director K. Rajendran  departs religion  from business. He says that religion is a private thing and it should not be associated with his business at all. Sunny Khattar, partner of Maharashtra Foods Processing and Cold Storage, also believes that religion and business are different things, it is wrong to combine both. He says - I am a Hindu and I am in Beef business, so what has happened? There is no evil in it if any Hindu is in this business. I did not become a bad Hindu by doing this business.

Apart from this, there are many such companies of Hindus which are working only in the field of beef export. They do not have abattoir but they process, pack and export meat. Kanak Traders is such a company. Its proprietor Rajesh Swamy said that there is no discrimination between Hindus and Muslims in this business. People of both religions work together. There is no excuse for anyone being a Hindu. They also say that if slaughterhouses are closed then both Hindus and Muslims will meet loss. We believe that whether it be beef or pork (pig meat) neither should it be consumed nor its business. Most Indians refrain from these two.

The beef should be banned. Cow slaughter should be stopped, no matter whoever is involved.

-Anil Narendra

दिल्ली नगर निगम चुनाव ः दम दिखाने में कोई नहीं कम

आगामी दिल्ली नगर निगम चुनाव में दिल्ली की जनता क्या गुल खिलाएगी, इसका तो 25 अप्रैल को ही पता चलेगा, पर चुनाव जीतने के लिए सभी संबंधित दल युद्ध स्तर पर तैयारी कर रहे हैं और इसके लिए अलग से रणनीति बनाई जा रही है। दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर कांग्रेस व आम आदमी पार्टी (आप) के कार्यालय और पंडित गोबिन्दवल्लभ पंत मार्ग पर भाजपा कार्यालय पर लगने वाली उम्मीदवारों की भीड़ अब नेताओं के घरों तक पहुंचने लगी है। आप ने निगम चुनाव के लिए अपने सभी 272 उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। लेकिन जिस तरह से उम्मीदवार बदले गए हैं, उससे अन्य उम्मीदवारों को टिकट पाने की उम्मीद बढ़ी है। वहीं भाजपा और कांग्रेस भी एक-आध दिन में अपने उम्मीदवार घोषित कर देगी। पहली बार निगम चुनाव लड़ने जा रही स्वराज इंडिया पार्टी ने भी अपने ज्यादातर उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। वाम दलों के अलावा बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल (एका) ने भी इस बार जोर-शोर से चुनाव लड़ने की घोषणा की है। कांग्रेस ने सबसे पहले 5 मार्च को रामलीला मैदान में अपने उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सभा के माध्यम से चुनाव प्रचार का श्रीगणेश किया था। अब वह पंजाब के चुनाव अभियान काफी विद कैप्टन की तर्ज पर चाट पर चर्चा से चुनाव प्रचार शुरू करने की तैयारी कर रही है। वहीं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने शुक्रवार को रामलीला मैदान में सभा करके भाजपा के चुनाव प्रचार का आगाज किया। आप के सर्वेसर्वा और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 31 मार्च से चुनाव प्रचार शुरू करने वाले हैं। पंजाब विधानसभा चुनाव के नतीजे ने फिलहाल आप के आत्मविश्वास को धक्का पहुंचाया है। वहीं इन परिणामों ने कांग्रेस के हौसले बुलंद किए हैं। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भारी जीत दर्ज करने के बाद भाजपा हर हालत में दिल्ली जीतना चाहेगी। वर्तमान में भाजपा के 153 निगम पार्षद सत्ता पर काबिज हैं और यह संभव नहीं कि सभी के सभी को टिकट मिलेगा। भाजपा को भीतरघात पहुंचने का बड़ा खतरा है। जिस तरह दिल्ली की सत्ता में आप 67 विधायकों के जीतने के साथ रिकार्ड बनाकर एकतरफा सत्ता पर काबिज हुई थी, उसे देखकर क्या यह समझा जाए कि जनता में आपका भाव बरकरार है? इस दृष्टिकोण से भाजपा के समक्ष आप या कांग्रेस को कम नहीं आंका जा सकता है। आप विधायक जरनैल सिंह के इस्तीफे के बाद राजौरी गार्डन विधानसभा सीट पर नगर निगम चुनाव से पहले 9 अप्रैल को चुनाव होना है। इस सीट पर कांग्रेस ने गैर-पंजाबी मीनाक्षी चंदेला को अपना उम्मीदवार बनाया है। भाजपा और आप ने इस सीट के लिए सिख उम्मीदवार उतारे हैं। नगर निगम चुनाव से ठीक पहले इस चुनाव से दिल्ली की जनता के मूड का पता चलेगा।
-अनिल नरेन्द्र


राजधानी, शताब्दी में फ्लेक्सी योजना समाप्त होगी

लगता है कि रेल मंत्रालय का वीआईपी ट्रेनों, राजधानी और शताब्दी एक्सप्रेस में फ्लेक्सी किराया योजना कामयाब नहीं हो पाई। सामान्य से डेढ़ गुना अधिक किराया होने से रेल  यात्री अब हवाई सफर करना बेहतर विकल्प मान रहे हैं। ट्रेनों में बर्थ खाली जा रही है और ज्यादा कमाई की जगह रेलवे को नुकसान उठाना पड़ रहा है। खबर है कि रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने रेलवे बोर्ड को फ्लेक्सी किराया स्कीम हटाने का निर्देश दिया है। हालांकि रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह भी कहा कि अधिकारियों का एक वर्ग अभी भी फ्लेक्सी फेयर के फैसले पर अड़ा है। राजधानी और शताब्दी में खाली बर्थ भरने की योजना को अगर सब ठीक रहा तो 1 अप्रैल से हटाया जा सकता है। इसमें मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों में प्रतीक्षा वाले यात्रियों को बगैर अतिरिक्त किराया दिए राजधानी और शताब्दी में सफर करने का मौका दिया जाएगा। हालांकि आरक्षण फार्म भरते समय यात्री को विकल्प के तौर पर संबंधित राजधानी-शताब्दी अथवा दुरंतो ट्रेन का उल्लेख करना होगा। यात्री का टिकट कंफर्म नहीं हुआ तो विकल्प वाली ट्रेन में बर्थ खाली होने पर सफर करने का मौका मिलेगा। एक मई अथवा जून महीने में राजधानी-शताब्दी और दुंरतो से फ्लेक्सी फेयर का हटाना लगभग तय  है। बता दें कि फ्लेक्सी फेयर योजना 9 सितंबर 2015 से लागू है। 22 दुरंतो, 25 राजधानी व 38 जुड़ी शताब्दी ट्रेनें चल रही हैं। टिकट बुकिंग की शुरुआत के 10 बर्थ पर सामान्य किराया लेते हैं। हर 10 प्रतिशत बर्थ की बुकिंग के साथ 10 प्रतिशत किराया बढ़ता है। उदाहरण के लिए किसी ट्रेन में कुल 100 बर्थ हैं, तो पहली 10 बर्थ का किराया 100 रुपए (सामान्य) रहेगा। फिर 11 से 20 बर्थ का किराया 110 रुपए, 21 से 30 बर्थ का किराया 120, 31 से 40 बर्थ का किराया 130 रुपए, 41 से 50 बर्थ का किराया 140 रुपए  होगा। इसके पश्चात 51 वीं बर्थ के आगे सभी बर्थ के लिए मूल किराये से 50 फीसदी अधिक कीमत देनी होगी। रेलवे को फ्लेक्सी फेयर से सालाना एक हजार करोड़ रुपए अतिरिक्त कमाई होने का अनुमान था। लेकिन रेल यात्रियों ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। इसलिए पिछले छह माह में महज 300 करोड़ रुपए की आय हो सकी है। वहीं डेढ़ गुना किराया होने से रेल यात्रियों की संख्या में दिनोंदिन कमी आ रही है। यह रेलवे के लिए चिंता का विषय है। यात्री सुविधा  के लिए रेलवे एक अप्रैल से कई नए बदलाव भी करेगा। रेलवे बोर्ड से सभी जोन में यह आदेश भेजा गया है। अगर यह फ्लेक्सी फेयर योजना समाप्त होती है तो सभी को फायदा है, यात्रियों को भी और रेलवे को भी।

Wednesday, 29 March 2017

बीफ के बड़े कत्लखाने चलाने वाले ये हिन्दू मालिक

गौहत्या केवल एक मुद्दा ही नहीं यह हमारी आस्था व मान्यता का सवाल है। गाय को हिन्दू धर्म में देवी का दर्जा प्राप्त है। गाय के भीतर देवताओं का वास हमारे धार्मिक ग्रंथों में माना गया है। दीपावली के दूसरे दिन गोवर्द्धन पूजा के अवसर पर गायों की विशेष रूप से पूजा की जाती है और उनका मोर पंखों आदि से श्रृंगार किया जाता है। पुराणों के अनुसार गाय में सभी देवताओं का वास माना गया है। गाय को किसी भी रूप में सताना घोर पाप माना गया है। उसकी हत्या करना तो नर्क के द्वार को खोलने के समान है, जहां कई जन्मों तक दुख भोगना पड़ता है। अथर्ववेद के अनुसार `धेनु सदानाम रईनाम' अर्थात गाय समृद्धि का मूल स्रोत है। गाय समृद्धि व प्रचुरता की द्योतक है। वह सृष्टि के पोषण का स्रोत है। वह जननी है। गाय के दूध से कई तरह के उत्पाद बनते हैं। गोबर से ईंधन व खाद मिलती है। इसके मूत्र से दवाएं व उर्वरक बनते हैं। गाय इसलिए पूजनीय नहीं है कि वह दूध देती है और इसके होने से हमारी सामाजिक पूर्ति होती है। दरअसल मान्यता के अनुसार 84 लाख योनियों का सफर करके आत्मा अंतिम योनी के रूप में गाय बनती है। वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है। जबकि मनुष्य सहित सभी प्राणी ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाइ-ऑक्साइड छोड़ते हैं, पेड़-पौधे इसका ठीक उल्टा करते हैं। गाय का मीट जिसे बीफ कहते हैं खाने वाले, बीफ को बेचने वाले सभी को इससे बचना चाहिए। जब बीफ बेचने वाले खुद हिन्दू धर्म से संबंधित हों तो क्या करें? बीबीसी (हिन्दी) में श्री प्रमोद मलिक (बीबीसी डॉट काम) की एक सनसनीखेज रिपोर्ट छपी है इसी संबंध में प्रस्तुत है यह रिपोर्टöउत्तर प्रदेश में पिछले दिनों कुछ बूचड़खाने बंद कराए गए। सरकार का कहना है कि वह अवैध रूप से चलाए जा रहे थे। बूचड़खानों का जिक्र आने पर आम लोगों की जहां मान्यता है कि इस पेशे में एक खास मजहब और वर्ग के लोग ही काम करते हैं वहीं हकीकत क्या है? आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत के 10 बड़े बीफ एक्सपोर्ट का संबंध हिन्दू समुदाय से है। केंद्र सरकार के वाणिज्य मंत्रालय की संस्था कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (अपेडा) के अनुसार मौजूद देश के 74 बूचड़खानों में 10 के मालिक हिन्दू हैं। देश का सबसे बड़ा बूचड़खाना तेलंगाना के मेडक जिले में रुद्रम गांव में है। तकरीबन 400 एकड़ में फैले इस बूचड़खाने के मालिक सतीश सब्बरवाल हैं। यह बूचड़खाना अल कबीर एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड चलाता है। मुंबई के नरीमन प्वाइंट स्थित मुख्यालय से यह मध्य-पूर्व के कई देशों को बीफ निर्यात करता है। यह भारत का सबसे बड़ा बीफ निर्यातक भी है और मध्य-पूर्व के कई शहरों में इसके दफ्तर हैं। दुबई दफ्तर से फोन पर बातचीत में अल कबीर मध्य-पूर्व के चेयरमैन सुरेश सब्बरवाल ने बीबीसी से कहाöधर्म और व्यवसाय दो बिल्कुल अलग चीजें हैं और दोनों को एक-दूसरे से मिलाकर नहीं देखा जाना चाहिए। कोई हिन्दू बीफ व्यवसाय में रहे या मुसलमान ब्याज पर पैसे देने के व्यवसाय में रहे तो क्या हर्ज है? अल कबीर ने बीते साल लगभग 650 करोड़ रुपए का कुल व्यवसाय किया था। अरेबियन एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के मालिक सुनील कपूर हैं। इसका मुख्यालय मुंबई के एशियर मैनशंस में है। कंपनी बीफ के अलावा भेड़ का मांस भी निर्यात करती है। इसके निदेशक मंडल में विरतन नागनाथ कुडचुले, विकास मारुति शिंदे और अशोक नारंग हैं। एमकेआर फ्रोजन फूड एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के मालिक मदन एबट हैं। कंपनी का मुख्यालय दिल्ली में है। एबट कोल्ड स्टोरेज प्राइवेट लिमिटेड का बूचड़खाना पंजाब के मोहाली जिले के समगौली गांव में है। इसके निदेशक सनी एबट हैं। अलन्नूर एक्सपोर्ट्स के मालिक अनिल सूद हैं। इस कंपनी का दफ्तर दिल्ली में है। लेकिन इसका बूचड़खाना और मांस प्रसंस्करण संयंत्र उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के शेरनगर गांव में है। इसके अलावा मेरठ और मुंबई में भी इसके संयंत्र हैं। इसके दूसरे पार्टनर अजय सूद हैं। इस कंपनी की स्थापना 1992 में हुई और यह 35 देशों को बीफ निर्यात करती है। एओवी एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड का बूचड़खाना उत्तर प्रदेश के उन्नाव में है। इसके निदेशक ओपी अरोड़ा हैं। यह कंपनी साल 2001 से काम कर रही है। कंपनी का मुख्यालय नोएडा में है और अभिषेक अरोड़ा एओवी एग्रो फूड्स के निदेशक हैं। इस कंपनी का संयंत्र मेवात के नूह में है। स्टैंडर्ड फ्रोजन फूड्स एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक कमल वर्मा हैं। पान्ने प्रॉडक्ट्स एक्सपोर्ट्स के निदेशक साहिब कुमार हैं। अश्विनी एग्रो एक्सपोर्ट्स का बूचड़खाना तमिलनाडु के गांधी नगर में है। कंपनी के निदेशक के. राजेंद्रन धर्म को व्यवसाय से बिल्कुल अलग रखते हैं। वे कहते हैंöधर्म निहायत ही निजी चीज है और इसका व्यवसाय से कोई ताल्लुक नहीं होना चाहिए। महाराष्ट्र फूड्स प्रोसेसिंग एंड कोल्ड स्टोरेज के पार्टनर सन्नी खट्टर का भी मानना है कि धर्म और धंधा अलग-अलग चीजें हैं, दोनों को मिलाना गलत है। वे कहते हैंöमैं हिन्दू हूं और बीफ व्यवसाय में हूं तो क्या हो गया? किसी हिन्दू के इस व्यवसाय में होने में कोई बुराई नहीं है। मैं यह व्यवसाय कर कोई बुरा हिन्दू नहीं बन गया। इसके अलावा हिन्दुओं की कई ऐसी कंपनियां हैं जो सिर्फ बीफ निर्यात के क्षेत्र में हैं। उनका बूचड़खाना नहीं है पर वे मांस प्रसंस्करण, पैकेजिंग कर निर्यात करते हैं। कनक टेडर्स ऐसी ही कंपनी है। इसके प्रोप्राइटर राजेश स्वामी ने कहाöइस व्यवसाय में हिन्दू-मुसलमान का भेदभाव नहीं है। दोनों धर्मों के लोग मिलजुल कर काम करते हैं। किसी के हिन्दू होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। वे यह भी कहते हैं कि बूचड़खाने बंद हुए तो हिन्दू-मुसलमान दोनों को नुकसान होगा। हमारा मानना है कि चाहे वह बीफ हो या पोर्क हो (सूअर का मीट) न तो उसका सेवन होना चाहिए और न ही उसका धंधा। अधिकतर भारतीय इन दोनों से परहेज करते हैं। बीफ पर बैन लगना चाहिए। गौहत्या बंद होनी चाहिए, चाहे इसमें कोई भी शामिल हो।

-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 28 March 2017

अब भाजपा की नजरें हिमाचल, गुजरात और कर्नाटक चुनाव पर

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से निपटने के साथ ही भारतीय जनता पार्टी ने अपना अगला मिशन शुरू कर दिया है। अटकलें तो यह भी लगाई जा रही हैं कि गुजरात में समय से पहले विधानसभा चुनाव हो सकते हैं। पार्टी के अंदर की चर्चाओं के संकेत हैं कि गुजरात के विधानसभा चुनाव भाजपा सरकार मई या जून में करा सकती है। यह संकेत कांग्रेस अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी ने दिए हैं। सोलंकी ने कहा कि भाजपा 31 मार्च को विधानसभा भंग कर सकती है और मई-जून में राज्य में चुनाव हो सकते हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि अब हिमाचल, गुजरात और कर्नाटक के बारे में कई चीजें नजर आएंगी। उनमें दूसरे दलों के नेताओं का भाजपा में स्वागत करने का सिलसिला भी शामिल है। कर्नाटक में वरिष्ठ कांग्रेस नेता एसएम कृष्णा के आगमन से यह सिलसिला शुरू हो चुका है। हिमाचल और गुजरात में इसी साल के अंत में चुनाव हैं। कर्नाटक में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं। लगता है कि भाजपा की सेंट्रल लीडरशिप तीनों राज्यों में यूपी और उत्तराखंड को दोहराने के इरादे से काम कर रही है। इन दोनों राज्यों में भी चुनाव से पहले दूसरे दलों के कई नेता भाजपा में आए थे। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की नीति अपने पार्टी संगठन को मजबूत करने और दूसरे दलों को कमजोर करने की लगती है। यानि दो समानांतर प्रयास। संगठन को मजबूत करने हेतु देशभर में 10 करोड़ से ज्यादा सदस्य बनाए गए हैं। कमजोरी को दूर करने के लिए कई तरह के प्रयास हो रहे हैं। जहां अपने यहां मजबूती नहीं है, वहां दूसरे दल के नेताओं को लाकर कमी दूर करने की कोशिश है। यूपी और उत्तराखंड में भी यही किया गया। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली ऐतिहासिक जीत की पृष्ठभूमि में एक बात जो साफ उभरकर आई है वह यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नए हिन्दुस्तान में भाजपा मुसलमानों के लिए अछूती नहीं रही। देवबंद, बरेली और कई मुस्लिम बहुल सीटों पर भाजपा की जीत इसका प्रमाण है। तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियां अब तक मुसलमानों की ठेकेदार बनकर वोटों का सौदा करती थीं। मोदी जी ने इन ठेकेदारों का कारोबार बंद कर दिया। अब तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल शायद ही मुसलमानों को वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल कर सकें। तीन तलाक का मुद्दा मुस्लिम महिलाओं को भा गया और गुजरात और कर्नाटक में भी इसका असर दिखेगा। अंत में बता दें कि भाजपा के तीन सांसद योगी आदित्यनाथ, मनोहर पर्रिकर और केशव प्रसाद मौर्य जुलाई के अंत तक अपना इस्तीफा लोकसभा से नहीं देंगे क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव में पार्टी उनका वोट खोना नहीं चाहती।

-अनिल नरेन्द्र

अदालतों में लंबित मामलों में 46 फीसदी हिस्सेदारी सरकार की है

हमारे देश में विभिन्न अदालतों में मुकदमों का जितना बोझ है वैसा शायद ही दुनिया के किसी देश में हो। सरकार ने बताया है कि देश की विभिन्न अदालतों में सवा तीन करोड़ से ज्यादा मामले लंबित हैं। विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के मोहम्मद सलीम के पूरक प्रश्न के उत्तर में बताया कि 30 सितम्बर 2016 को उच्चतम न्यायालय में 62 हजार से ज्यादा उच्च न्यायालय में 40 लाख 12 हजार तथा जिला अदालतों में दो करोड़ 85 लाख मामले लंबित थे। रविशंकर ने कहा कि अदालतों में लंबित 3.14 करोड़ मामलों में करीब 46 फीसदी हिस्से में सरकार पक्षकार है और अब समय आ गया है कि मंत्रालय जबरन वादी न बने और वादी बनने से बचे। अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों को लिखे पत्र में रविशंकर ने कहाöसरकार जबरन वादी होना बंद करे। न्यायालय को उन मामलों के निस्तारण में अधिकतम समय खपाना पड़ता है जहां सरकार पक्षकार है। वैसे कानून मंत्रालय के अधिकारी कह चुके हैं कि सरकार अदालतों में लंबित 46 फीसदी मामलों में पक्षकार है लेकिन यह पहली बार है जब कानून मंत्री इन आंकड़ों के साथ सामने आए हैं। कानून मंत्री ने एक ऐसा ही पत्र सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी लिखा है। हम श्री रविशंकर की स्वीकृति का स्वागत करते हैं। हम अपना उदाहरण बताते हैं। हमारा जीना प्रोविडेंट फंड डिपार्टमेंट ने हराम कर रखा है। 20-20 साल पुराने केसों को खोलकर जबरन डिमांड निकाल रहे हैं। हमारे जैसे हजारों व्यवसायियों, कंपनियों से यह व्यवहार हो रहा है। एक बार डिमांड खड़ी कर दें तो या तो आप पूरा पैसा डेमेजेस का जमा कराएं या फिर अदालतों में मजबूरन जाएं। अधिकतर केसों में जिन सालों के डेमेजिस मांगे जा रहे हैं उनका असेसमेंट भी पूरा हो चुका है और डिमांड पूरी तरह से सेटल भी हो चुकी है। पर आप कोई भी दलील दें डिपार्टमेंट में कोई बात नहीं सुनता और हारकर आपको अदालत की शरण में मजबूरन जाना पड़ता है। ऐसा ही व्यवहार अन्य सरकारी विभागों में भी हो रहा है। उचित ही है कि उन्होंने हिदायत की है कि अधिकारियों को व्यर्थ व छोटे-मोटे मामलों की पहचान कर उनकी छंटनी कर लेनी चाहिए तथा उन्हें वापस लेने या शीघ्रता से निस्तारण करने के लिए कदम उठाने चाहिए। कानून मंत्री से पहले, प्रधानमंत्री भी सरकार के सबसे बड़े मुकदमेबाज होने पर चिन्ता जता चुके हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि मुकदमों की तादाद घटेगी। पर यह तभी हो सकता है जब सरकार गंभीरता से सारे मंत्रालयों व विभागों को हिदायत दे कि बिना ठोस वजह मुकदमा करने पर मजबूर न करें।

Sunday, 26 March 2017

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से तृणमूल कांग्रेस सकते में

कोलकाता हाई कोर्ट ने तृणमूल कांग्रेस को करारा झटका देते हुए सीबीआई से नारद स्टिंग मामले की जांच करने के आदेश को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है। ममता बनर्जी की अगुवाई वाली राज्य सरकार की ओर से हाई कोर्ट के 17 मार्च को आदेश के खिलाफ दायर एक अलग अपील में बताए गए आधारों को सुप्रीम कोर्ट ने बेहद दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि याचिका सिरे से खारिज करने लायक है। प्रधान न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ में उसे कोई विसंगति नजर नहीं आती। यह बंगाल के इतिहास में संभवत पहला मौका था जब किसी सरकार ने पार्टी के नेताओं के बचाव के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की हो। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने किसी नेता के बचाव में सरकार की ओर से याचिका दायर नहीं करने का फैसला किया है। बता दें कि बीते साल नारद स्टिंग ऑपरेशन के सामने आने के बाद बंगाल की राजनीति में तूफान पैदा हो गया था। इस वीडियो में तृणमूल कांग्रेस के कोई दर्जनभर सांसदों, मंत्रियों व नेताओं को रिश्वत के तौर पर लाखों की रकम लेते दिखाया गया था। ममता सरकार ने इसे फर्जी करार दिया और इस स्टिंग करने वाले नारद न्यूज की सीईओ मैथ्यू सैमुअल के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। हालांकि हाई कोर्ट ने सैमुअल को राहत दे दी है। केंद्रीय फोरेंसिक लेबोरेट्री में जांच से वीडियो फुटेज की सच्चाई भी साबित हो गई थी, लेकिन तब सरकार व पार्टी लगातार इस वीडियो को फर्जी बताती रही है। ममता शुरू से ही कहती रही हैं कि नोटबंदी के खिलाफ उनके अभियान की वजह से ही केंद्र सरकार सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसियों को तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रही है। बीते साल विधानसभा चुनावों से ठीक पहले इस वीडियो के सामने आने के बावजूद विपक्ष इसे ठोस चुनावी मुद्दा बनाने में नाकाम रहा था। ममता और उनके नेताओं ने इसे फर्जी और राजनीतिक साजिश करार देकर चुनावों में भारी कामयाबी हासिल की थी। लेकिन अब सीबीआई के हाथों में जाने के बाद अचानक तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं और मंत्रियों से पूछताछ और गिरफ्तारी का खतरा पैदा हो गया है। अब सुप्रीम कोर्ट में मुंह की खाने के बाद तृणमूल कांग्रेस इस मामले से राजनीतिक तौर पर निपटने की रणनीति तैयार करने में जुटी है। ताजा आदेश के बाद ममता व केंद्र के बीच नए सिरे से टकराव का अंदेशा है। शारदा और रोजवैली चिटफंड घोटाले के बाद अब यह तीसरा ऐसा घोटाला है जिसमें तृणमूल कांग्रेस के कई असरदार नेता सीबीआई की चपेट में आ सकते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

सकुशल वतन लौटने पर सुनाई पीरजादा ने आपबीती

उपर वाले की रहमत से और अपने अच्छे कर्मों की वजह से खुदा के बन्दे हजरत निजामुद्दीन औलिया दरगाह के पीरजादे आसिफ अली निजामी और नाजिम अली निजामी सोमवार को सकुशल भारत वापस लौट आए। लौटने के बाद दोनों ने सबसे पहले हजरत निजामुद्दीन दरगाह पर चादर चढ़ाकर दुआ मांगी। फिर परिवार के साथ विदेश मंत्रालय जाकर केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज का शुक्रिया अदा किया। सकुशल स्वदेश लौटने के बाद पीरजादा आसिफ अली निजामी और उनके भतीजे सैयद निजामी ने उनकी गुमशुदगी को लेकर पाकिस्तान की प्रचारित झूठ की पोल खोल दी। आपबीती सुनाते हुए सैयद आसिफ निजामी ने बताया कि वह और उनके भतीजे नाजिम छह मार्च को अपनी बहन कमर जहां के यहां कराची पहुंचे थे। 13 मार्च को आसिफ व नाजिम दोनों फ्लाइट से लाहौर पहुंचे। वहां बाबा फरीदगंज राकर के दरबार में जियारत करने के बाद अगले दिन दाता दरबार में जियारत की। 15 मार्च को दोनों वापस कराची के लिए निकले। लेकिन एयरपोर्ट पर कागजात में कमी बताकर खुफिया एजेंसियों ने नाजिम को हिरासत में ले लिया। यहां से उन्हें मुंह पर काला कपड़ा डालकर अज्ञात स्थान पर ले जाया गया। इधर आसिफ कराची पहुंच गए। यहां एयरपोर्ट से उन्होंने अपने घर कॉल कर निजामी के बारे में परिवार को सूचना भी दी। एयरपोर्ट से ही आसिफ व उनके पाक सहयोगी हम्माद को भी बंधक बना लिया गया। करीब तीन दिन तक दोनों को अज्ञात स्थान पर रखा गया। वहां रोजाना उनसे अलग-अलग लोग पूछताछ करते रहे। उनसे भारत-पाकिस्तान आने वाले लोगों के बारे में पूछा गया। शुक्रवार को लंबी पूछताछ के बाद उन्हें छोड़ दिया गया। बाद में उन्हें पता चला कि इस पर खूब हंगामा हुआ है। दोनों बोलेöशायद भारत के दबाव में ही उनको छोड़ा गया। सैयद आसिफ निजामी के भतीजे सैयद साजिद निजामी ने बताया कि पाकिस्तानी अखबार उम्मद में उनके चाचा आसिफ व भाई नाजिम के खिलाफ लेख छपा था। दोनों को रॉ का एजेंट बताया गया था। यही नहीं, अखबार ने कराची के पख्तून इलाके में सक्रिय एमक्यूएम पार्टी का सदस्य भी बताया गया। पीरजादों ने सुषमा व मोदी सरकार का शुक्रिया अदा किया। उन्होंने कहा कि विदेश मंत्री को घटना की पूरी जानकारी दी। उस उर्दू अखबार की कॉपी भी सौंपी जिसमें उन्हें रॉ एजेंट बताया गया था। उन्होंने कहा कि अगर मोदी सरकार इसे गंभीरता से नहीं लेती तो शायद वह हिन्दुस्तान वापस न आ पाते। पीरजादों का किस्सा हर भारतीय के लिए आंखें खोलने वाला है। जो लोग पाकिस्तान के दिन-रात गुण गाते हैं वह अब पाक की असलियत को समझें।

Saturday, 25 March 2017

जितना बड़ा अपराधी उतनी बड़ी उसकी पहुंच

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की एक टिप्पणी ने हमारी न्याय प्रणाली की विडंबना उजागर कर दी है। जस्टिस खेहर ने खुद कहा कि हमारा देश भी अजीब है, जहां अपराधी जितना बड़ा होता है उसकी पहुंच भी उतनी ही बड़ी होती है। जस्टिस खेहर ने दुष्कर्म पीड़ितों, तेजाबी हमले के शिकार या अपने घर की एकमात्र रोजी-रोटी कमाने वाले को गंवाने वालों की परिस्थितियों पर हैरानी व्यक्त करते हुए कहा कि अपराधियों की आखिरी उपाय तक न्याय के लिए पहुंच होती है। लेकिन पीड़ितों को यह सुविधा नहीं मिलती। संस्था के संरक्षक के तौर पर मेरी अपील है कि इस साल को पीड़ितों के लिए काम का वर्ष बनाया जाए। इसके लिए सहायक विधिक कार्यकर्ताओं को सभी निचली अदालत में भेजकर पीड़ितों को उनके अधिकारों के बारे में अवगत कराएं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आतंकी मामलों के दोषी के लिए कोई कानून के तहत हर जरूरी कानूनी सहायता उपलब्ध है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट में भी हर विकल्प का इस्तेमाल करने के बाद ही उन्हें कानूनी सहायता मिलती है। वास्तव में प्रधान न्यायाधीश 1993 के बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन का जिक्र कर रहे थे। हालांकि उन्होंने किसी मामले विशेष का तो जिक्र नहीं किया लेकिन उनका इशारा साफ था। जस्टिस खेहर ने कहा कि हमारा देश भी विचित्र है। अपराधी जितना बड़ा हो, असंतोष उतना ही बड़ा होता है। हम पहले देख चुके हैं कि आतंकी गतिविधियों में दोषी जिसकी पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो गई, बावजूद इसके सुप्रीम कोर्ट न्याय की उस सीमा तक गया, जहां तक पहुंचा जा सकता था। बता दें कि चीफ जस्टिस का इशारा मुंबई ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन की तरफ था जिस मामले में रात को आखिरी सुनवाई हुई थी, क्योंकि अगली सुबह उसे फांसी होनी थी। सीजेआई ने कहा कि कोई पीड़ित के कानूनी हक के लिए उसके पास जाने की बात नहीं करता। साधारण तौर पर होता यही है कि सभी आरोपियों को वकील दिया जाता है। गिरफ्तारी के बाद से ही उनके पास कानूनी सहायता पहुंचती है। दुष्कर्म पीड़ित के बारे में सीजेआई ने कहा कि उन्हें सालों से इस बात का आश्चर्य है कि पीड़ित का क्या होता होगा? उस फैमिली का क्या होता होगा जिसे देखने वाला कोई नहीं रहा। हम क्यों नहीं ऐसे विक्टिम के पास पहुंच सकते हैं? जस्टिस खेहर ने कहा कि पीड़ितों के लिए राष्ट्रीय स्तर और राज्य स्तर पर कोष तैयार करने के लिए संसद ने सीआरपीसी की धारा 357-ए शुरू की है। पीड़ितों को मुआवजे के साथ किसी भी मामले में खासकर आपराधिक मामले में प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

ब्रिटिश संसद पर आतंकी हमला

बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स पर आतंकी हमले की पहली बरसी पर बुधवार को लंदन में ब्रिटिश संसद को निशाना बनाया गया। हमलावर ने फ्रांस के नीस शहर में हुए ट्रक हमले जैसा हमला करने का प्रयास किया। कार सवार हमलावर ने तेज रफ्तार कार से संसद की ओर जाने वाले वेस्टमिस्टर ब्रिज पर दर्जनभर पैदल यात्रियों को कुचल दिया। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक कार की टक्कर इतनी जोरदार थी कि कुछ लोग टेम्स नदी में जा गिरे। याद रहे कि जुलाई 2016 में नीस में ट्रक सवार आत्मघाती हमलावर ने 84 लोगों को कुचल डाला था। ब्रिटेन की संसद को बुधवार ब्रुसेल्स के एयरपोर्ट पर हुए आत्मघाती हमले की पहली बरसी पर निशाना बनाया गया। ब्रुसेल्स हमले में तीन आत्मघाती हमलावरों ने धमाका किया था जिसमें 36 लोग मारे गए थे। बुधवार को लंदन हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) ने ली है। आतंकी संगठन की ओर से कहा गया है कि खलीफा के सिपाही ने इस हमले को अंजाम दिया। ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर टेरिजा मे ने हाउस ऑफ कामंस में बताया कि हमलावर आईएस से प्रभावित था और हमलावर ने अकेले ही घटना को अंजाम दिया था। ब्रिटिश पुलिस के मुताबिक 52 साल का खालिद मुस्तफा ब्रिटेन में ही पैदा हुआ था और चरमपंथी खतरे को लेकर एक बार उसकी जांच भी की गई थी। घटना में एक हमलावर समेत चार लोगों की मौत हो चुकी है और 40 लोग घायल हैं। ब्रिटेन की संसद पर हमले की कोशिश के बीच हाउस ऑफ कामंस में करीब 400 सांसद मौजूद थे। वह सभी आसपास हो रही वारदातों और उसके बाद की पुलिस छानबीन के बीच कई घंटों तक संसद भवन के अंदर ही बंद रहे। टेरिजा सरकार में विदेश मामलों के मंत्री टेबियस एलवुड ने संसद भवन के बाहर आकर हमलावर के चाकू से घायल पुलिसकर्मी का बेतहाशा बहता खून रोकने की कोशिश भी की। बताया जाता है कि तमाम प्रयासों के बावजूद बुरी तरह से जख्मी पुलिसकर्मी ने बाद में दम तोड़ दिया। आईएस के खिलाफ अभियान के बाद ही ब्रिटेन आतंकी हमले को लेकर दूसरे सबसे उच्चतम अलर्ट पर था। लंदन में मई 2013 में ऐसी ही घटना में दो ब्रिटिश आतंकियों ने एक सैनिक पर चाकुओं से हमला कर उसकी जान ले ली थी। जबकि जुलाई 2005 में लंदन के एक मेट्रो स्टेशन पर हुए हमले में 52 लोगों की जान चली गई थी। पिछले कुछ समय से पूरा यूरोप आईएस के निशाने पर है। कभी ब्रुसेल्स तो कभी फ्रांस तो कभी ब्रिटेन, जर्मनी। दुखद पहलू यह है कि ब्रिटेन में हो रहे आतंकी हमले ब्रिटेन में पैदा हुए नागरिक कर रहे हैं।

Friday, 24 March 2017

अयोध्या राजनीति का मसला नहीं आस्था का है

यह सही है कि राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद पर ढेरों बार समझौते के प्रयास हुए हैं पर वह सभी विफल रहे। पर इसका मतलब यह नहीं है कि वर्षों से चले आ रहे इस मसले का हल निकालने के प्रयास छोड़ दिए जाएं। सुप्रीम कोर्ट ने इस संवेदनशील और आस्था से जुड़े इस मुद्दे पर पक्षकारों से बातचीत कर मसले का हल आम सहमति से निकालने को कहा है। अगर जरूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट हल निकालने के लिए मध्यस्थता को भी तैयार है। यह टिप्पणी मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर, न्यायमूर्ति डीवाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने भाजपा नेता डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी की राम जन्मभूमि विवाद मामले की जल्द सुनवाई की मांग पर दी। स्वामी ने कोर्ट से कहा कि मामला छह वर्षों से लंबित है। इस पर रोजाना सुनवाई कर जल्द निपटारा करना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने स्वामी से कहाöसर्वसम्मति से किसी समाधान पर पहुंचने के लिए आप नए सिरे से प्रयास कर सकते हैं। अगर जरूरत पड़ी तो आपको इस विवाद को खत्म करने के लिए कोई मध्यस्थ भी चुनना चाहिए। अगर पक्षकार चाहें तो मैं दोनों पक्षों द्वारा चुने गए मध्यस्थों के साथ बैठूं तो इसके लिए मैं तैयार हूं। यहां तक कि इस उद्देश्य के लिए मेरे साथी जजों की सेवाएं भी ली जा सकती हैं। माननीय कोर्ट ने 31 मार्च को अगली तारीख लगाई है। यह पहला मौका नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए अदालती कार्रवाई की सीमा को समझा है। इसके पहले 1994 में केंद्र की नरसिंह राव सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट की राय मांगी थी। इस पर पांच जजों की खंडपीठ ने सरकार से पूछा था कि क्या उसकी राय को आदेश मानकर लागू किया जाएगा? केंद्र सरकार का कहना था कि ऐसी स्थिति में वह अपनी राय नहीं देगा क्योंकि मामला काफी संवेदनशील है। इसलिए यह माना जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जो कहा वह एक तरह से उसकी पहले की गई बात का विस्तार ही है। अंतर इतना आया है कि इस बीच इस मसले पर हाई कोर्ट का फैसला आ चुका है और उस फैसले को चुनौती देने वाली ढेर सारी याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में पहुंच चुकी हैं। साथ ही यह दबाव भी है कि अब फैसला जल्द होना चाहिए। देश की आजादी के दो-तीन साल बाद से चले आ रहे इस विवाद को सुलझाने का इससे बेहतर विकल्प नहीं हो सकता। लेकिन जैसे कि पहले से ही होता आया है, सुप्रीम कोर्ट की यह राय आने के साथ ही इस मसले पर राजनीति शुरू हो गई है। सरकार के साथ राष्ट्रीय मुस्लिम मंच ने अदालत की सलाह का स्वागत किया है। लेकिन बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के जफरयाब जिलानी और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का रुख सकारात्मक नहीं रहा। यह कोरी दार्शनिकता नहीं, व्यावहारिक बात है कि ऐसी कोई समस्या यह नहीं है जिसका समाधान न हो। आखिर दुनिया के बड़े-बड़े मसले यहां तक कि वर्षों से लड़ी जा रही जंगों का भी समाधान मेज पर बैठकर निकलता है। पर अब दिक्कत यह है कि इस मसले से एक पूरा इतिहास जुड़ गया है। विवाद का इतिहास, तनाव का, राजनीति और दुकानदारी का इतिहास जुड़ गया है। यह लड़ाई जो कभी स्थानीय हो सकती थी, भावनाओं के खेल ने उसे राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया है। ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके राजनीतिक हित अब इस मसले से जुड़ गए हैं। उनके लिए इस मसले का खत्म हो जाने का अर्थ होगा उनकी दुकानदारी व राजनीति का खत्म हो जाना। अदालत के बाहर बातचीत द्वारा समस्या के समाधान की बात तभी आगे बढ़ पाती है, जब दोनों पक्षों में ऐसा करने की सहमति हो। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के वकील जफरयाब जिलानी का बयान तो यही बताता है कि यह आसान नहीं है। 60 साल की कानूनी लड़ाई के बाद एक अक्तूबर 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि विवादित 2.77 एकड़ भूमि का एक-तिहाई हिस्सा मस्जिद बनाने के लिए वक्फ बोर्ड को दे दिया जाए। हालांकि इस फैसले पर हिन्दूवादी संगठनों के  दावे को मजबूत करने वाला माना गया, पर कोई भी पक्ष इस फैसले से संतुष्ट नहीं था। उसके बाद से मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, जहां से फैसला कब आएगा कौन बता सकता है। इसलिए बातचीत से हल निकालने के मुख्य न्यायाधीश के सुझाव की अहमियत जाहिर है। लेकिन जहां कोई भी पक्ष तनिक पीछे हटने को तैयार न हो, वहां बातचीत की पहल करना भी एक बहुत कठिन काम है। फिलहाल यह कहना कठिन है कि अयोध्या विवाद को आपसी सहमति से हल करने की कोई गंभीर कोशिश शुरू हो पाएगी या नहीं, लेकिन यह ध्यान रहे कि ऐसी कोई कोशिश तभी सफल हो सकती है जब बाबरी मस्जिद के पैरोकार राम जन्मभूमि पर अपना दावा छोड़ने को तैयार होंगे। जब ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक साक्ष्य विवादित स्थल में मंदिर होने की गवाही दे रहे हैं और उसकी कुछ हद तक पुष्टि इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले में भी हो चुकी है तब फिर विश्व हिन्दू परिषद और निर्मोही अखाड़े से ऐसी कोई अपेक्षा का मतलब नहीं कि वे सद्भाव के नाम पर मंदिर के दावे से पीछे हट जाएं। ऐसी अपेक्षा का मूल्य इसलिए भी नहीं, क्योंकि यह मान्यता सदियों पुरानी है और उससे मस्जिद समर्थक भी भलीभांति अवगत हैं कि राम का जन्म अयोध्या में हुआ था। हालांकि बाबर या फिर उसके सेनापति का अयोध्या से कोई लेना-देना नहीं था फिर भी इस प्राचीन नगरी में मस्जिद का निर्माण हो सकता है। यह ठीक है कि अयोध्या विवाद का हल निकालने की तमाम कोशिशें नाकाम रहीं, लेकिन इसी आधार पर एक और कोशिश से पीछे हटने का कोई औचित्य नहीं। सुप्रीम कोर्ट के सुझाव पर एक नए अवसर के तौर पर लिया जाना चाहिए। यह अवसर अपेक्षित परिणाम इसलिए दे सकता है, क्योंकि अयोध्या मसला अब राजनीति का मुद्दा न रहकर आस्था का मुद्दा बन गया है। अगर भगवान राम का मंदिर अयोध्या में नहीं बनेगा तो कहां बनेगा?
-अनिल नरेन्द्र


Thursday, 23 March 2017

Muslims scared of Yogi; have patience, be hopeful

Yogi Adityanath, having firebrand Hindu leader image has taken over the command of Uttar Pradesh. While there is usually an atmosphere of cheer and hope about Yogi, Muslims are anxious what will happen next? The community is afraid of Yogi's image. With the swearing in some Muslim fanatics have just started frightening the muslim community. While at present we don't see any reason for doing this. Undoubtedly Yogi has an image of intensive Pro-Hindu but in his first address after swearing in he has talked of taking everyone without any discrimination and it should be trusted. Pleasantly several Muslim intellectuals have come forward to relieve anxiety of Muslims and have appealed to welcome the new government with a positive approach. They feel that there will be no discrimination and no difference between the majority and minority community. Muslims need not be afraid and instead to move ahead with positive thinking. BJP has come to power with the slogan – With all, Progress for all. So it can be expected that Yogi will not discriminate with anyone. Muslim intellectuals have expressed that at times harsh words are used in politics but if entrusted with power one has to mallows down and wants to take everybody. Anwar Jalalpuri, famous poet and related to Urdu, says that mandate of public must be accepted in democracy. Opining about anyone with judging him is not fair. The language differs during the elections and after the elections. Being the responsibility entrusted, balance is needed. So there is no reason for Muslims to be hopeless. They say that nation runs on the constitution and hope that all is well. Sahiba Anwar, former principal of Karamat Hussain PG College and writer, says that we live in a democratic country. People's mandate is supreme. It may be expected that Yogi Adityanath changes himself before changing UP. May be Yogi a Pro-Hindu leader so far but he is the Chief Minister of UP now. He has been entrusted the responsibility of every class of the state. We can't see the Hindu-Muslims separated. I believe Yogi too will do so. Talib Zaidi, senior faculty of Shia College, says the people of UP have entrusted the power to BJP for a change. Of course, Yogi is a fanatic Hindu leader. But the person fanatic to his religion doesn't disrespect another religion since any religion doesn't talk against humanity. Muslims should move ahead with a positive thinking up above the thinking about BJP and Yogi. On swearing in by Mahant Adityanath as the Chief Minister, Devbandi ulema leaders including Islamic teaching institute Darul Uloom said that Mahant has been more responsible after being the Chief Minister. He has taken an oath to take altogether. So he must honour it. I want to say that Mahant Adityanath has an inspiring track record in this regard. His most trusted attendant is an Indian orphan Muslim living with him since childhood. Mahantji has also permitted him to follow his religion. Usually people treat Gorakhnath Temple just the Hindutva centre while the temple complex is also a centre of communal harmony. Many Muslim families reside here from generations. Dwarika Tiwari, the eldest employee of Gorakhnath Temple describes this Gorakhpeeth a part of liberal tradition and says that the people trying to understand it in their own way need to see its contribution towards the social harmony. We just say that Muslim brothers should give time to Mahant Adityanath, not to decide yet. Yogiji will also have to prove that there will be no discrimination on the grounds of religion, caste and community in Uttar Pradesh. Everybody will have equal opportunities.

* Anil Narendra


पहली बार मुस्लिम महिलाओं ने हक हकूक की आवाज उठाई

तीन तलाक के मुद्दे पर यह खुशी की बात है कि केंद्र सरकार की मुहिम रंग लाने लगी है। अब तो केंद्र सरकार को खुलकर मुस्लिम मfिहलाओं  का साथ मिलने लगा है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपने घोषणापत्र में शामिल कर जहां तीन तलाक के मुद्दे को फ्रंट पर रखा वहीं अब आरआरएस से जुड़े हुए मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने इस मामले पर बड़ी संख्या में मुस्लिम मfिहलाओं का समर्थन हासिल करने का दावा किया है। शनिवार को दिल्ली के कांस्टीट्यूशनल क्लब में मुस्लिम वेलफेयर मंच द्वारा आयोजित मुस्लिम मfिहला सम्मेलन में पहली बार सैकड़ों की संख्या में मुस्लिम महिलाएं पर्दे से बाहर निकलीं और तीन तलाक के खिलाफ अपनी आवाजें बुलंद की। मुस्लिम मfिहलाओं ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का शुक्रिया भी अदा किया। उन्होंने बराबरी के हक के साथ शिक्षा और आर्थिक निर्भरता पर जोर दिया। सम्मेलन पूरी तरह से राष्ट्रवाद के रंग में रंगा नजर आया। भारत माता की जय के नारे गूंजे और वंदे मातरम का गान हुआ। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच महिला विंग की राष्ट्रीय अध्यक्ष शहनाज हुसैन ने कहा कि उत्तर प्रदेश में जिस तरह से मुस्लिम बहनों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को समर्थन fिदया है उससे देश की अन्य मुस्लिम बहनों के हौसले बढ़े हैं। उन्होंने कहा कि हमारे समाज में महिलाएं तीन तलाक को लेकर डरी-सहमी रहती हैं पता नहीं कब शौहर तलाक-तलाक कह उन्हें अपनी जिंदगी से निकाल फेंके। अब केंद्र में एक ऐसी सरकार है जिसने मुस्लिम मfिहलाओं की दयनीय स्थिति पर ध्यान दिया  है। इससे उनका हौसला बढ़ा है। सम्मेलन में सुप्रीम कोर्ट की एडिशनल सालिसिटर जनरल पिंकी आनंद से महिलाओं ने विशेष तौर पर कानून की जानकारी ली। पिंकी आनंद ने बताया कि भारत के संविधान में पुरुष और महिलाओं को बराबरी का दर्जा हासिल है, लेकिन मुस्लिम मfिहलाओं को इस दर्जे से वंचित रखा गया है। मुस्लिम वेलफेयर मंच के संयोजक यासिर जिलानी ने कहा कि मुस्लिम महिलाएं  तीन तलाक के हक में नहीं हैं और इस मुद्दे पर वह प्रधानमंत्री के साथ हैं। वह हर स्थिति में उनके साथ खड़ी हैं। सुप्रीम कोर्ट और जिला कोर्ट में तीन तलाक के मुद्दे पर कानूनी लड़ाई लड़ने वाली सहारनपुर की आतिया साबरी ने दावा किया कि विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा को वोट दिया, अब पीएम मोदी तीन तलाक के मुद्दे पर अपना वादा निभाएं। आतिया का कहना है कि बेटा पैदा न होने पर उसके शौहर ने न केवल मुझे मारा पीटा, चरित्रहीन भी ठहरा दिया। मेरे मायके  लौटने पर शौहर वाजिद ने एक कागज पर तीन तलाक लिखकर भेज दिया। दारुल उलूम ने बिना उनकी राय जाने तीन तलाक पर  मेरे पति के रुख का समर्थन कर दिया और सही ठहराया अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है।
öअनिल नरेन्द्र

योगी से भयभीत मुसलमान, धैर्य रखें, उम्मीद रखें

फायर ब्रांड हिदुत्व नेता की छवि वाले योगी आत्यिनाथ ने उत्तर प्रदेश की कमान संभाल ली है। योगी को लेकर जहां आमतौर पर खुशी और उम्मीद का माहौल है वहीं मुस्लिम समुदाय में चिंता है कि अब आगे क्या होगा? योगी की छवि से यह तबका भयभीत है। पदभार संभालते ही कुछ मुस्लिम कट्टर पंथी नेताओं ने और डराना शुरू कर fिदया है। जबकि ऐसा करने की फिलहाल हमें तो कोई वजह नजर नहीं आती। बेशक योगी की छवि एक प्रखर हिन्दुत्ववादी की है, लेकिन शपथ लेने के बाद अपने पहले संबोधन में उन्होंने सबको साथ लेकर चलने और बगैर भेदभाव के काम करने की जो बात कही है, उस पर भरोसा करना चाहिए। यह खुशी की बात है कि मुसलमान की चिंता दूर करने के लिए कई मुस्लिम बुद्धिजीवी आगे आए हैं और उन्होंने सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़कर नई सरकार का स्वागत करने की अपील की है। उन्होंने भरोसा जताया कि बिना भेदभाव के काम होगा और बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक में कोई फर्क नहीं किया जाएगा। इनकी भी राय में मुसलमानों को खौफजदा होने की जरूरत नहीं है, बल्कि सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना होगा। भाजपा सबका साथ सबका विकास के  नारे के साथ सत्ता में आई है। इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि योगी किसी के साथ भेदभाव नहीं करेंगे। मुस्लिम बुfिद्धजीवियों का कहना है कि कई बार सियासत में कठोर शब्दों का इस्तेमाल होता है लेकिन जब जिम्मेदारी मिलती है तो फिर सबको साथ लेकर चलना पड़ता है। मशहूर शायर और उर्दू से संबंध रखने वाले अनवर जलालपुरी कहते हैं कि जम्हूरियत में जनता जो फैसला करती है उसे स्वीकार करना चाहिए। किसी के बारे में उसका काम देखे बगैर राय बना लेना गलत  है। चुनाव के समय भाषा अलग होती है और जीत के बाद अलग। जब जिम्मेदारी मिलती है तो संतुलन बनाकर रखना पड़ता है। इसलिए कोई वजह नहीं है कि मुसलमान मायूस हों। उनका कहना है कि मुल्क संविधान से चलता है, उम्मीद कीजिए कि सब अच्छा होगा। करामत हुसैन पीजी कालेज की पूर्व प्रधानाचार्य और लेखिका साहिबा अनवर कहती हैं कि हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते हैं। जनता का जनादेश सर आंखों पर है। उम्मीद की जा सकती है कि यूपी को बदलने से पहले योगी आदित्यनाथ पहले खुद को बदलेंगे। अभी तक योगी भले ही एक हिंदुत्ववादी नेता रहे हों, लेकिन अब यूपी के मुख्यमंत्री हैं। प्रदेश के हर वर्ग की जिम्मेदारी अब उनके कंधों पर है। इसमें हिंदू-मुसलमान को हम अलग करके नहीं देख सकते। मुझे यकीन है, योगी भी ऐसा ही करेंगे। शिया कालेज के वरिष्ठ अध्यापक तालिब जैदी कहते हैं कि यूपी की जनता ने बदलाव के नाम पर भाजपा को सत्ता सौंपी है। निश्चित रूप से योगी एक कट्टरवादी हिंदुत्व नेता हैं। मगर जो भी अपने धर्म के प्रति कट्टर होता है, वह दूसरे धर्म का अनादर नहीं करता क्योंकि वह भी धर्म मानवता  के खिलाफ बात नहीं करता। मुसलमान को भाजपा या योगी के प्रति सोच से ऊपर उठकर सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए। महंत आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने पर इस्लामिक शिक्षण संस्था दारुल उलूम समेत देवबंदी उलेमाओं ने कहा कि मुख्यमंत्री बनने के बाद महंत की जिम्मेदारी बढ़ गई है। सबको साथ लेकर चलने की शपथ उन्होंने ली है। इसलिए वह इसका मान रखें। बता दूं कि महंत आदित्यनाथ का ट्रैक रिकार्ड भी इस मामले में बहुत उत्साहवर्धक है। उनका सबसे विश्वासपात्र सेवक एक भारतीय अनाथ मुसलमान है जो बचपन से ही महंत के साथ रहा है। महंत जी ने उसे अपने धर्म की पद्धति करने की भी छूट दे रखी है। गोरखनाथ मंदिर को आमतौर पर लोग सिर्फ हिंदुत्व का केंद्र मानते हैं लेकिन मंदिर परिसर सांप्रदायिक सद्भावना का केंद्र भी है। परिसर में कई मुस्लिम पfिरवार पीढ़ियों से रहते हैं। गोरखनाथ मंदिर के सबसे पुराने कर्मचारी द्वारिका तिवारी इस गोरखपीठ को उदार परम्परा का हिस्सा बताते हैं और कहते हैं कि जो लोग गोरखपीठ को अपने ढंग से समझने की कोशिश करते हैं उन्हें सामाजिक समरसता के प्रति योगदान को देखना जरूरी है। हम बस इतना कहते हैं कि मुसलमान भाइयो महंत आदित्यनाथ को समय दें, अभी से कोई फैसला न करें। योगीजी को भी यह साबित करना होगा कि धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर और समुदाय के नाम पर उत्तर प्रदेश में कोई भेदभाव नहीं होगा। सभी को समान अवसर मिलेगा।

Wednesday, 22 March 2017

भारत में 2050 तक होंगे सबसे ज्यादा मुसलमान

अमेरिका स्थित प्यू रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट में वर्ष 2010 से 2050 के बीच पूरे विश्व में मुस्लिमों की आबादी में लगभग 73 फीसदी की वृद्धि होने की बात कही गई है। अगर ऐसा होता है तो वर्ष 2050 में भारत विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। भारत 2050 तक इंडोनेशिया को पछाड़ कर दुनिया की सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश बन जाएगा। साथ ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आबादी हिन्दुओं की होगी। अमेरिकी एजेंसी प्यू रिसर्च सेंटर ने गत दिनों जारी रिपोर्ट में यह दावा किया है। दुनिया में अभी सबसे ज्यादा आबादी ईसाइयों की है। दूसरे नम्बर पर मुस्लिम, तीसरे पर नास्तिक और चौथे नम्बर पर हिन्दू हैं। प्यू की रिपोर्ट में 2010 से 2050 के दौरान अलग-अलग धर्मों को मानने वालों की आबादी के बारे में जो अनुमान दिया गया है उसके अनुसार दुनिया में हिन्दू और ईसाइयों की तुलना में मुस्लिम आबादी बढ़त दोगुनी के करीब होगी। रिपोर्ट के मुताबिक सदी के अंत तक दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी मुस्लिमों की होगी। इस दौरान मुस्लिम 73 फीसद बढ़ेंगे, जबकि ईसाई 35 फीसद और हिन्दू 34 फीसद बढ़ेंगे। दुनिया में 2050 तक मुसलमानों की जनसंख्या कुल आबादी का करीब 30 फीसद (2.8 अरब) और ईसाई आबादी 31 फीसद (2.9 अरब) होगी। 2010 में दुनिया में 1.6 अरब (करीब 23 फीसद) मुसलमान जबकि 2.17 अरब ईसाई थे। लेकिन अगर वर्ष 2050 के बाद भी मौजूदा ग्रोथ इसी हिसाब से बढ़ी तो मुस्लिमों की संख्या 2070 तक विश्व में सबसे ज्यादा हो जाएगी। अभी विश्व में सबसे अधिक आबादी ईसाइयों की है। लेकिन जनसंख्या वृद्धि की यही रफ्तार बरकरार रही तो जल्द ही वे दूसरे नम्बर पर पहुंच जाएंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 2050 तक मुस्लिमों की आबादी 30 करोड़ पर पहुंच जाएगी, लेकिन वह अल्पसंख्यक बने रहेंगे। इस अवधि में अमेरिका में भी मुस्लिमों की आबादी बढ़ेगी। मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर बाकी धर्मों से ज्यादा है। सबसे ज्यादा प्रजनन दर के कारण मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ सकती है। वैश्विक स्तर पर एक मुस्लिम महिला के औसतन 3.1 बच्चे होते हैं। जबकि बाकी धर्मों में यह औसत 2.3 का है। मुस्लिम जनसंख्या में सबसे ज्यादा युवा आबादी है। 2010 में युवा मुस्लिमों की औसत आयु 23 साल थी। गैर-मुस्लिम युवाओं की औसत आयु 30 साल थी। युवा आबादी का मतलब है मुस्लिमों की बढ़ी आबादी या तो बच्चे पैदा कर रही है या भविष्य में करेगी। लेकिन बौद्ध इकलौता धर्म है जिसकी आबादी घटने की बात कही गई है। रिपोर्ट के मुताबिक बौद्ध आबादी 2050 तक माइनस 0.3 फीसद घटने का अनुमान है। चीन, जापान और थाइलैंड जैसे देशों में बड़ी आबादी बौद्ध धर्म मानने वालों की है, लेकिन यह आबादी लगातार घट रही है।

-अनिल नरेन्द्र

संघ के प्रचारक से मुख्यमंत्री बनने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत

उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में नई सरकार ने कार्यभार संभाल लिया है। संघ के स्वयंसेवक से लेकर उत्तराखंड के नौवें मुख्यमंत्री तक का सफर तय करने वाले त्रिवेंद्र सिंह के बारे में कुछ बातें बताना चाहता हूं। त्रिवेंद्र रावत पौड़ी जिले के जयहरी खाल ब्लाक के खैरासैण गांव के रहने वाले हैं। देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड ने एक नहीं, दो मुख्यमंत्री दिए हैं। त्रिवेंद्र और योगी आदित्यनाथ। योगी जी की भी पैदाइश उत्तराखंड की है। त्रिवेंद्र के पिता प्रताप सिंह रावत भारतीय सेना की बीईजी, रूड़की कोट में कार्यरत थे। त्रिवेंद्र सिंह नौ भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। शुरू से ही शांत स्वभाव वाले त्रिवेंद्र ने लैंसडाउन के जयहरी खाल डिग्री कालेज से स्नातक और गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर से स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। श्रीनगर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एमए करने के बाद 1984 में देहरादून चले गए। यहां भी उन्हें आरएसएस में अहम पदों पर जिम्मेदारी सौंपी गई। देहरादून में संघ प्रचारक की भूमिका निभाने के बाद त्रिवेंद्र मेरठ के जिला प्रचारक बने। उनके काम से संघ इतना प्रभावित हुआ कि इन्हें उत्तराखंड बनने के बाद 2002 में भाजपा टिकट पर कांग्रेस के वीरेंद्र मोहन उनियाल के सामने उतार दिया गया। 2002 में त्रिवेंद्र ने डोईवाला से पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 2017 के विधानसभा चुनाव में रावत एक बार फिर से डोईवाला विधानसभा से चुनावी मैदान में उतरे और इस बार उन्होंने कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट को करारी हार दी। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से रावत की नजदीकियों और संघ के भरोसेमंद सेवक होने के कारण रावत आज मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं। भारतीय जनता पार्टी को और प्रधानमंत्री को भरोसा है कि उत्तराखंड त्रिवेंद्र रावत के राज में तेजी से बदलेगा। इसलिए भी कि हरीश रावत की तुलना में त्रिवेंद्र एक बेलाग और तेजी से गुणात्मक बदलाव के फैसले लेने वाले नेता हैं। लो-प्रोफाइल रहते हुए काम करने में उस्ताद माने जाते हैं। फिर अजेय बहुमत के चलते उनकी स्थिति हरीश रावत जैसी डांवाडोल या विद्रोहियों की साजिशों की आशंका से भी मुक्त है। यह ठीक है कि उत्तराखंड में भाजपा की असाधारण विजय में कांग्रेस के दिग्गज विद्रोहियों की लोकप्रियता व मजबूत जनाधार का बहुत योगदान रहा है। इसी वजह से नौ सदस्यीय मंत्रिमंडल, जिसमें सात कैबिनेट और दो राज्य स्तर के मंत्री हैं, में कांग्रेस के पांच `त्यागियों' को भी स्थान मिल गया है। दरअसल इस छोटे से पहाड़ी राज्य की बहादुर जनता ने जितनी कुर्बानियां अपने एक अलग राज्य का सपना सच कराने में दी हैं। उस अनुपात में उसकी आकांक्षाएं पूरी करने का आधा-अधूरा प्रयास भी इस राज्य के नेतृत्व ने नहीं किया है। उम्मीद यह थी कि अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड का नेतृत्व यहां की भौगोलिक विशिष्टताओं के अनुरूप विकास का नया मॉडल खड़ा करेगा। मगर विकास के मोर्चे पर प्रयास तराई के क्षेत्रों में टैक्स छूट के आकर्षण में लगे कुछ एक कारखानों तक ही सीमित रहे। यहां के नेता अपनी गद्दी की चिन्ता से ही नहीं उभर पाए। जैसा कि छोटे राज्यों के साथ आमतौर पर होता है, विधायकों का छोटा-सा गुट भी सरकार अस्थिर करने की क्षमता पाकर सौदेबाजी में लग जाता है। जाति-क्षेत्र के आधार पर त्रिवेंद्र सिंह रावत मंत्रिमंडल पर रावत काल में ठहर गए उत्तराखंड को तरक्की के रास्ते पर ले जाने के साथ-साथ मोदी के परम लक्ष्य 2019 में सत्ता वापसी तय करने की दोहरी जिम्मेदारी है। शपथ ग्रहण में मोदी समेत भाजपा के तमाम दिग्गजों की समारोह में उपस्थिति का यही मतलब है। हम श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को बधाई देते हैं और उम्मीद करते हैं कि जनता ने उनमें जो विश्वास प्रकट किया है उस पर पूरे उतरेंगे।

Tuesday, 21 March 2017

People’s mandate if they win; and EVM faulty if they lose

People's mandate if they win and alleging EVM tampering if they lose. Usually such type of allegations have been made by the leaders and political parties badly defeated in the elections. The latest- case belongs to recently concluded elections to five state assemblies. First of all BSP Supremo Mayawati alleged the EVM tampering behind her defeat, Akhilesh Yadav said that whatever she has said should be investigated into. Congress also took its cognition while Arvind Kejriwal alleged that his votes were transferred to Akali Dal and Congress. However had the win and lose was by the virtue of the machine, BJP should not have lost anywhere. The Election Commission is making it clear time and again that these allegations are baseless and the voting through the EVM is fully secured. It is sad that no proof of hacking in voting through EVM within last 24 years has come forward so far. Nevertheless, these people don't hesitate to level such unrestrained, baseless charges. These people don't even bother that such allegations weaken the democratic process of the nation. People's trust and belief is the topmost in the election process. Nobody should be allowed to fragment it for EVM. I wish to submit some elementary facts before the readers. Since EVM has no connection with internet, it can't be hacked online. Which EVM should be given to which booth is decided through randomization i.e. all the EVMs are arranged Parliament-wise, then assembly-wise and finally booth-wise and the polling party comes to know the series of EVM just one day before at the time of despatching. As such the polling party is not aware of the EVM to be handed over. Basically the EVM has two machines – ballot unit and control unit. Presently a third unit VVPAT has also been added which displays a slip to the voter that to which candidate he has voted for. As such the voter is assured at the booth whether his vote is valid or not. All the EVMs are confidentially checked before the voting and the EVM is used for voting only after being assured in all respects. Most importantly before commencing the voting on the polling day, mock polling before the polling booth in-charges or the polling agents of all the candidates is held by the polling party and all the poling agents are asked to cast votes so that it may be ensured whether the votes are cast in favour of all the candidates or not. Had there been any tempering or defect in any machine, it may be noticed before the polling starts. After mock polling, polling agents of all the candidates issue a certificate of proper mock poll to the polling party. Voting in the concerned polling booth starts just after the certificate is issued. As such the candidate talking about the tempering in EVM may be assured from his polling agent in this regard. Any problem like battery down or the technical one in the polling booth after the commencement of voting is informed by the voter. A register is maintained in every polling booth which contains the details of the voters who vote and the number of details contained in the register is fed in the EVM also. These are mutually matched on the basis of report from the Returning Officer on the day of counting. No case of EVM tempering has been proved so far in the cases filed in the Supreme Court so far. The Election Commission itself invites the people to come to the Commission for submitting their claims to prove the EVM technique wrong. But for the last 24 years the EVM voting has started no claim has been proved till date. People blaming the EVM for their defeat are doing so as to mislead their supporters. Perhaps they want to escape the self-reflection as well as admitting the truth that they themselves are responsible for their defeat. These leaders should review their election strategy and avoid the unrestrained allegations on the foundation of the democracy.

* Anil Narendra

जस्टिस कर्णन ने लगाई न्यायपालिका की प्रतिष्ठा दांव पर

हमारी न्यायपालिका की उपलब्धियां निश्चित रूप से बहुत बड़ी हैं और हमारी न्यायपालिका ने कई तरह से इतिहास भी रचा है। लेकिन गत सप्ताह जो घटना घटी है वह जरूर परेशान करने वाली है। अगर इसे हास्यास्पद कहा जाए तो शायद गलत न होगा। मैं बात कर रहा हूं कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सीएस कर्णन की। जस्टिस कर्णन के खिलाफ चल रहा अवमानना का मामला ऐसे मुकाम पर पहुंच गया है जिसमें हमें समझ नहीं आ रहा कि सुप्रीम कोर्ट आगे क्या करेगा? पश्चिम बंगाल के डीजीपी सुरजीत कर पुरकायस्थ शुक्रवार को जब जस्टिस कर्णन के खिलाफ उनके घर जमानती वारंट लेकर पहुंचे तो जस्टिस कर्णन ने यह वारंट लेने से साफ इंकार कर दिया। न ही जस्टिस कर्णन ने किसी कागज पर दस्तख्त किए। न ही 31 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश होंगे। उल्टा जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ को पत्र लिखकर जमानती वारंट खारिज करने की सूचना दी। पत्र को आदेश बताते हुए उन्होंने लिखाöवैध कारणों के आधार पर वारंट (जमानती) खारिज करता हूं। एक दलित जज को परेशान करने के लिए उसे नीचा दिखाने वाले काम किए जा रहे हैं। मेरा आग्रह है कि यह प्रताड़ना बंद कर हमारी अदालतों की गरिमा और सम्मान बहाल करें। मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि मेरे खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने वारंट जारी कर खुद को मजाक का पात्र बना लिया। अब इस मामले ने सुप्रीम कोर्ट के सामने भी धर्म-संकट खड़ा कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट किसी भी हाई कोर्ट के जज को हटा नहीं सकता। किसी भी जज को हटाने को एकमात्र तरीका यही है कि उसके खिलाफ संसद से महाभियोग पारित किया जाए। अभी तक एक ही मौके पर ऐसा हुआ है, उसमें भी मामला संसद के एक सदन से दूसरे सदन पहुंचता, इसके पहले ही न्यायाधीश महोदय ने खुद ही इस्तीफा दे दिया था। मामला इतना आगे जाए यह कभी कोई नहीं चाहता। लेकिन यह मामला जिस स्तर तक पहुंच गया है उससे बेहतर तो शायद महाभियोग ही रहता। कुछ भी हो, इस मामले को जल्द ही किसी अंजाम पर पहुंचाकर खत्म करना होगा वरना खुद न्यायपालिका की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगेगी। इसका कारण इस बार कोई बाहरी तत्व नहीं, बल्कि उसका आंतरिक तंत्र ही होगा।

-अनिल नरेन्द्र

जीते तो जनता का मैनडेटö हारे तो ईवीएम दोषी

 जीते तो जनता का मैनडेट और हारे तो ईवीएम से छेड़छाड़ के आरोप। इस तरह के आरोप आमतौर पर चुनाव में बुरी तरह से पराजित हुए नेता व राजनीतिक दल लगाते ही रहे हैं। ताजा केस हाल में सम्पन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का है। बसपा प्रमुख मायावती ने सबसे पहले अपनी पराजय के पीछे ईवीएम में छेड़छाड़ को कारण बताया तो अखिलेश यादव ने कहा कि उन्होंने जो कहा है उसकी जांच होनी चाहिए। कांग्रेस ने भी इसका संज्ञान लिया तो अरविन्द केजरीवाल ने आरोप लगा दिया कि ईवीएम के माध्यम से उनके वोट अकाली दल और कांग्रेस को स्थानांतरित कर दिए गए। हालांकि अगर मशीन की कृपा से ही विजय और पराजय होती तो भाजपा को कहीं भी चुनाव हारना नहीं था। चुनाव आयोग बार-बार साफ कर रहा है कि इस तरह के आरोप बेबुनियाद हैं और ईवीएम द्वारा मतदान पूरी तरह से सुरक्षित है। दुख की बात तो यह है कि पिछले 24 साल से ईवीएम से चुनाव कराने में हैकिंग का आज तक कोई भी सबूत सामने नहीं आया है। फिर भी यह लोग ऐसे अनर्गल, बेबुनियाद आरोप लगाने से बाज नहीं आते। इन्हें इस बात की भी कतई चिन्ता नहीं कि आप के इन आरोपों से भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया कमजोर होती है। चुनाव प्रणाली में जनता का विश्वास और भरोसा सर्वोपरि है। ईवीएम के नाम पर इसे खंडित करने की अनुमति किसी को भी नहीं दी जानी चाहिए। ईवीएम के बारे में कुछ बुनियादी तथ्य मैं पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं। ईवीएम में इंटरनेट का कोई कनेक्शन नहीं होता है, इसलिए इसे ऑनलाइन होकर हैक नहीं किया जा सकता। किस बूथ पर कौन-सी ईवीएम जाएगी, इसके लिए रेड माइजेशन की प्रक्रिया होती है, अर्थात सभी ईवीएम को पहले लोकसभावार फिर विधानसभावार और सबसे अंत में बूथवार निर्धारित किया जाता है और पोलिंग पार्टी को एक दिन पहले डिस्पैचिंग के समय ही पता चलता है कि उसके पास किस सीरीज की ईवीएम आई है। ऐसे में अंतिम समय तक पोलिंग पार्टी को पता नहीं रहता कि उनके हाथ में कौन-सी ईवीएम आने वाली है। बेसिक तौर पर ईवीएम में दो मशीनें होती हैं, बैलेट यूनिट और कंट्रोल यूनिट। वर्तमान में इसमें एक तीसरी यूनिट वीवीपीएटी को भी जोड़ा गया है जो सात सैकेंड के लिए मतदाता को एक पर्चा दिखाता है जिसमें यह उल्लेख रहता है कि मतदाता ने अपना वोट किस अभ्यर्थी को दिया है। ऐसे में अभ्यर्थी बूथ पर ही आश्वस्त हो सकता है कि उसका वोट सही पड़ा है या नहीं। वोटिंग से पहले सभी ईवीएम की गोपनीय जांच की जाती है और सभी तरह से आश्वस्त होने के बाद ही ईवीएम को वोटिंग हेतु प्रयुक्त किया जाता है। सबसे बड़ी बातöवोटिंग के दिन सुबह मतदान शुरू करने से पहले मतदान केंद्र की पोलिंग पार्टी द्वारा सभी उम्मीदवारों के मतदान केंद्र प्रभारी या पोलिंग एजेंटों के सामने मतदान शुरू करने से पहले मॉक पोलिंग की जाती है और सभी पोलिंग एजेंटों से मशीन में वोट डालने को कहा जाता है ताकि यह जांचा जा सके कि सभी उम्मीदवारों के पक्ष में वोट गिर रहा है कि नहीं। ऐसे में यदि किसी मशीन में टेंपरिंग या तकनीकी गड़बड़ी होती होगी तो मतदान के शुरू होने से पहले ही पकड़ ली जाएगी। मॉक पोलिंग के बाद सभी उम्मीदवारों के पोलिंग एजेंट मतदान केंद्र की पोलिंग पार्टी के प्रभारी को सही मॉक पोल का सर्टिफिकेट देते हैं। इस सर्टिफिकेट के मिलने के बाद ही संबंधित मतदान केंद्र में वोटिंग शुरू की जाती है। ऐसे में जो उम्मीदवार ईवीएम में टेंपरिंग की बात कर रहा है वह अपने पोलिंग एजेंट से इस बारे में आश्वस्त हो सकते हैं। मतदान शुरू होने के  बाद मतदान केंद्र में मशीन की बैटरी डाउन या कोई अन्य तकनीकी समस्या होने पर मतदाता द्वारा सूचित किया जाता है। हर मतदान केंद्र में एक रजिस्टर बनाया जाता है। इस रजिस्टर में मतदान करने वाले मतदाताओं की डिटेल अंकित रहती है और रजिस्टर में जितने मतदाता की डिटेल अंकित होती है, उतने ही मतदाताओं की संख्या ईवीएम में भी होती है। काउटिंग वाले दिन इनका आपस में मिलान मतदान केंद्र प्रभारी (Presiding Officer) की रिपोर्ट के आधार पर होता है। सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम टेंपरिंग से संबंधित जितने भी मामले आज तक आए हैं उनमें से किसी भी मामले में ईवीएम में टेंपरिंग सिद्ध नहीं हो पाई है। स्वयं चुनाव आयोग आम लोगों को आमंत्रित करता है कि वह लोग आयोग जाकर ईवीएम की तकनीक को गलत सिद्ध करने हेतु अपने दावे प्रस्तुत करें। लेकिन पिछले 24 साल से जब से ईवीएम वोटिंग शुरू हुई है आज तक कोई भी दावा सही सिद्ध नहीं हुआ है। जो लोग अपनी हार के लिए ईवीएम पर दोष मढ़ रहे हैं। वह बिना प्रमाण ऐसा सिर्फ इसलिए कर रहे हैं ताकि अपने समर्थकों को गुमराह कर सकें। शायद वह आत्ममंथन करने से भी बचना चाह रहे हैं और इस सच्चाई को स्वीकार करने से भी कि अपनी पराजय के लिए वह खुद ही जिम्मेदार हैं। इन नेताओं को अपनी चुनावी रणनीति की समीक्षा करनी चाहिए और लोकतंत्र की बुनियाद पर अनर्गल आरोप से बचना चाहिए।

Sunday, 19 March 2017

निजामुद्दीन दरगाह के गद्दीनशीं पाक में लापता

विश्व प्रसिद्ध निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के गद्दीनशीं समेत दो भारतीय मौलवियों के गायब होने की खबर से कूटनीतिक धार्मिक हलकों में हलचल मचना स्वाभाविक ही है। आसिफ निजामी और नाजिम निजामी नाम के ये दो मौलवी निजामुद्दीन दरगाह के बेहद प्रतिष्ठित नाम हैं और वह पाकिस्तान में लाहौर के दाता दरबार दरगाह के बुलावे पर वहां गए थे। लाहौर से कराची के लिए फ्लाइट ली थी। उनके परिवार के मुताबिक आसिफ को कराची जाने की इजाजत दे दी गई लेकिन अधूरे यात्रा कागजातों की वजह से नाजिम को लाहौर एयरपोर्ट पर रोक लिया गया। एक सूत्र के मुताबिक इसके बाद नाजिम लाहौर एयरपोर्ट से गायब हो गए जबकि आसिफ कराची एयरपोर्ट पहुंचने के बाद लापता हैं। गौरतलब है कि आसिफ और नाजिम लाहौर में प्रसिद्ध दाता दरबार की यात्रा से पहले आठ मार्च को कराची में अपने रिश्तेदारों से मिलने गए थे। निजामुद्दीन दरगाह और दाता दरबार के गद्दीनशीनों के एक दूसरे के यहां पर यात्रा की पुरानी परंपरा रही है। दरअसल सरकार दोनों मौलवियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। हजरत निजामुद्दीन दरगाह के ये मौलवी सूफी परंपरा को मानने वाले हैं। सरकार को आशंका है कि आईएस व किसी अन्य कट्टरपंथी संगठन ने पाकिस्तान में इन्हें अगवा न कर लिया हो? गौरतलब है कि हाल में पाकिस्तान में कट्टरपंथियों ने एक सूफी दरगाह पर हमला कर 72 लोगों को मार डाला था। पाकिस्तान सरकार भी इस मामले को लेकर चिंतित है। हम हजरत निजामुद्दीन औलिया दरगाह के इन दो उम्रदराज पीरजादा आसिफ अली निजामी और नाजिम निजामी की सकुशल वापसी के लिए दुआ मांगते हैं। परिवार वालों के मुताबिक नाजिम निजामी को कुछ लोगों ने लाहौर एयरपोर्ट पर विमान से उतार लिया, जबकि आसिफ अली निजामी कराची एयरपोर्ट पहुंचने के बाद वहां से लापता हो गए। दोनों टूरिस्ट वीजा पर पाकिस्तान गए थे। सनद रहे कि पाकिस्तान में आतंकी लगातार इस्लाम की सूफी पद्धति को मानने वालों के खिलाफ हमला करते रहते हैं। दाता दरबार पर भी आतंकी हमला पहले कर चुके हैं। पिछले साल दाता दरबार में हमेशा कव्वाली गाने वाले अमजद साबरी की भी हत्या कर दी गई थी जबकि अभी हाल में सिंध प्रांत में स्थित बेहद पुराने व सभी धर्मों के लोगों में समान तौर पर लोकप्रिय लाल शहबाज मस्त कलंदर दरगाह पर आत्मघाती हमले में 100 से ज्यादा निर्दोष लोगों की हत्या की गई थी।

-अनिल नरेन्द्र

भाजपा के सभी पार्षदों के टिकट काटने पर असंतोष

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में प्रचंड जीत के बाद भाजपा का अब पूरा ध्यान दिल्ली नगर निगम चुनावों पर है। दिल्ली नगर निगमों में भाजपा सत्ता में है। बेशक नगर निगम चुनाव में मुद्दे अलग होते हैं और इनका महत्व विधानसभा चुनाव जितना नहीं होता पर दिल्ली विधानसभा चुनाव में न भूलने वाली हार के बाद इन निगम चुनावों का महत्व बढ़ जाता है। लगता है कि भाजपा हाई कमान इस बार निगम चुनाव जीतने के लिए पूरी ताकत लगा देगी। राजधानी में तीन नगर निगमों में भाजपा के 153 पार्षद हैं। इनमें से तो कई पार्षद ऐसे भी हैं जो कई बार पार्षद का चुनाव  लड़े और जीते भी। खबर है कि भाजपा आला कमान सभी पार्षदों को बदलना चाहता है। भाजपा आला कमान के फैसले पर अगर अमल हुआ तो सभी 153 पार्षदों का टिकट कट जाएगा। इससे पार्षद सकते में आ गए हैं। दिल्ली नगर निगम चुनाव में विजय पताका फहराने के मकसद से भाजपा ने पार्षदबंदी का दांव चला। भाजपा इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की न्यू इंडिया सोच बताकर नाराज वर्तमान पार्षदों के जख्मों पर मरहम लगाने की भरसक कोशिश कर रही है लेकिन हकीकत यही है कि तमतमाए पार्षदों ने नया ठोर तलाशना शुरू कर दिया है। कई मौजूदा पार्षदों ने तो कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और स्वराज इंडिया में अपनी गोटी बिठानी शुरू भी कर दी है। कांग्रेस के कई नेताओं ने भाजपा के कई पार्षदों से संबंध बिठाने शुरू कर दिए हैं। कई पार्षदों का कहना है कि पार्टी आलाकमान ने उन्हें टिकट न देने का फैसला करके एक तरह से उनके दामन पर भ्रष्ट होने का धब्बा लगा दिया है। भाजपा की दो बड़ी कमेटियों के चेयरमैन ने कांग्रेस का दरवाजा खटखटाया है। इतना ही नहीं, बसपा को एक पार्षद ने भी कांग्रेस आलाकमान से गुजारिश की है। हालांकि कांग्रेस इन पार्षदों पर दांव लगाने से हिचक रही है। भाजपा आलाकमान का यह फैसला व्यावहारिक नहीं लगता। सभी पार्षद भ्रष्ट नहीं हैं। बता दें कि नगर निगम चुनाव को लेकर कराए गए इंटरनल सर्वे में 153 में से 25 पार्षदों को उनके काम और पहचान के आधार पर अव्वल आंका गया है और चुनाव में भारी बहुमत से जीत हासिल करते बताए गए हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार सत्ता में आने के बाद निगम प्रणाली के संचालन में अनुभव का अभाव संकट ला सकता है। ऐसे में बेहतर यही होगा कि बेहतर छवि और अनुभवशील इन 25 निगम पार्षदों को टिकट दिया जाए। इससे पार्टी में टिकट काटने का विरोध और पुराने नेताओं की नाराजगी काफी हद तक दूर हो सकती है। आमतौर पर यह धारणा है कि भाजपा के 153 निगम पार्षदों में से अधिकतर एमसीडी के कामकाज में पूरी तरह से विफल हो गए हैं। भाजपा ने यह स्वीकार कर लिया है कि उसके पार्षदों ने निगम के माध्यम से दिल्ली की जनता को लूटा है, इसलिए भाजपा अब उन्हें दोबारा मौका नहीं दे रही है। आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता दिलीप पांडे ने कहा कि इन पार्षदों के खिलाफ जनता में भारी आक्रोश है। भाजपा और कांग्रेस ने पिछले 20 सालों में नगर निगम को भ्रष्टाचार का अड्डा और दिल्ली को कचरे का डिब्बा बना दिया है। भाजपा आलाकमान के लिए इस बार उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया आसान नहीं होगी। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह 19 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक रैली करके आगामी नगर निगम चुनावों के प्रचार का शंखनाद करेंगे। पार्षदों में इतना गुस्सा व चिन्ता है कि गत गुरुवार को प्रदेश कार्यालय में आयोजित पार्षदों की मासिक बैठक में 80 फीसदी पार्षद शामिल नहीं हुए। मौजूदा पार्षदों और उनके रिश्तेदारों की टिकट काटे जाने के फैसले के बाद निगम पार्षदों की यह पहली मासिक बैठक थी। उम्मीद की जाती है कि भाजपा आलाकमान इस बार यूपी की गलती नहीं दोहराएगा। नगर निगम में काबिल अल्पसंख्यकों को भी टिकट देनी चाहिए। मुसलमानों ने जो विश्वास भाजपा में जताया है उसे आगे बढ़ाना चाहिए।

Saturday, 18 March 2017

खुद तो डूबे सनम तुम्हें साथ ले डूबे

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का 27 साल का सियासी वनवास अगले बहुत से वर्षों के लिए और बढ़ गया है। सत्ता में वापसी के लिए किए गए तमाम प्रयोग उलटे ही साबित हुए। प्रदेश में पहली बार कांग्रेस अपनी न्यूनतम संख्या पर पहुंच गई है। चुनाव के नतीजों से साफ है कि जनता को अखिलेश और राहुल का यह साथ पसंद नहीं आया। दोनों के साथ को जनता ने सिरे से नकार दिया है। पहले से ही सूबे में हिचकौले खा रही कांग्रेस की नाव को गठबंधन ने और डुबा दिया है। खास बात यह है कि समाजवादी पार्टी के साथ भी मिलकर कांग्रेस अपने गढ़ रायबरेली और अमेठी तक को नहीं बचा सकी। दोनों ही जिलों में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है। वर्ष 2012 के चुनाव में कांग्रेस ने रालोद के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। उस समय कांग्रेस को 28 सीटें मिली थीं। जबकि इस बार उसकी हालत यूपी के इतिहास में सबसे ज्यादा पतली हो गई है। समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में कांग्रेस सूबे में 114 सीटों पर अपनी किस्मत आजमा रही थी। ज्यादातर जगह कांग्रेस प्रत्याशियों को जनता ने नकार दिया। इस बार के चुनाव में कांग्रेस दो-तिहाई का अंक प्राप्त नहीं कर पाई। उसे मात्र सात सीटें ही मिली हैं। कांग्रेस की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2012 के चुनाव में जहां पार्टी को 11.63 प्रतिशत वोट मिले थे इस बार उसे महज 6.2 प्रतिशत वोट ही मिले हैं। इससे पहले कांग्रेस का सबसे खराब प्रदर्शन 2007 में था। लेकिन उस समय भी कांग्रेस को 22 सीटें मिली थीं। वर्ष 2002 के चुनाव में उसे 25 सीटें मिली थीं। सपा के साथ मिलकर भी कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी तक को नहीं बचा पाए। यहां की जगदीशपुर, गौरीगंज, तिलोई व अमेठी चारों ही विधानसभा सीटों पर कांग्रेस को करारी हार मिली। अमेठी सीट पर कांग्रेस के राज्यसभा सांसद संजय सिंह अपनी दूसरी पत्नी अमिता सिंह को लाख कोशिशों के बावजूद नहीं जिता पाए। यहां उनकी पहली पत्नी गरिमा सिंह भाजपा के टिकट से चुनाव जीती हैं। सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली की छह में से चार सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है। केवल रायबरेली व हरचन्दपुर सीट ही कांग्रेस की इज्जत बचा पाईं। कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर यूपी में पूरी तरह फेल हो गए। कांग्रेस ने यूपी के लिए अपना चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को बनाया था पर मोदी की रणनीति के आगे न सिर्फ सपा ढेर हुई बल्कि कांग्रेस का भी सूपड़ा साफ हो गया।

-अनिल नरेन्द्र

फतवों से डरने वाली नहीं, गाती रहूंगी ः नाहिद

एक बार फिर इन मौलवियों की फतवों की सियासत चर्चा में है। असम में कुछ कट्टरपंथी मौलवियों ने इंडियन आइडल जूनियर की रनर-अप रही सोलह वर्षीय जूनियर गायिका नाहिद आफरीन के खिलाफ ताजा फतवा जारी किया है। नाहिद के खिलाफ 46 मौलवियों, संगठनों और लोगों के नाम से जारी फतवे में कहा गया है कि नाहिद इंडियन आइडल के फाइनल से दूर रहें। ऐसे कार्यक्रम नई पीढ़ी को भ्रष्ट करेंगे। इस तरह के मनोरंजन के कार्यक्रम जारी रखे गए तो अल्लाह का कहर बरपेगा। जादू, नृत्य, नाटक थियेटर शरीयत के खिलाफ है। शरीयत का उल्लंघन कर मस्जिद, ईदगाह, मदरसों और कब्रिस्तान से घिरे मैदान में म्यूजिकल नाइट का आयोजन किया गया तो लोगों पर अल्लाह का कहर टूट पड़ता है। नाहिद आफरीन हाल ही में सोनाक्षी सिन्हा की फिल्म अकीरा के लिए प्लेबैक सिंगिंग कर चुकी हैं। अभी 25 मार्च को असम में नाहिद का म्यूजिक शो होना है। फतवे पर नाहिद ने दो टूक कहा कि संगीत इस्लाम के खिलाफ नहीं है। उसमें गायक खुदा की सौगात है और मेरा मानना है कि इसका सही तरीके से इस्तेमाल होना चाहिए। ऐसा न करना खुदा को नजरंदाज करना होगा। मेरे पिता का कहना है कि हमारे धर्मगुरुओं ने कहा कि मेरे गाने में कोई बुराई नहीं है। असम में अल्पसंख्यकों की कई जानी-मानी हस्तियों ने नाहिद का समर्थन किया है। नाहिद ने कहा कि अल्लाह ने ही मुझे यह आवाज बख्शी है। उसी खुदा ने मुझे तोहफे के तौर पर संगीत भी दिया है। अगर मैं इसका सही इस्तेमाल न करूं तो आखिरकार खुदा की ही अनदेखी होगी। मुझे धमकी इसलिए दी गई है क्योंकि मैं लड़की हूं। लड़का होता तो उन्हें कोई दिक्कत न होती। नाहिद ने मौलवियों के जवाब में उचित ही कहा है कि अगर वह अपना संगीत जारी नहीं रखेंगी तो खुदा की अनदेखी करेगी। दरअसल खुदा की अनदेखी तो वे मौलवी कर रहे हैं जो न तो एक बच्ची की प्रतिभा का सम्मान कर रहे हैं और न ही भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लाम और संगीत के दीर्घकालिक रिश्ते की कद्र कर रहे हैं। कई बार ऐसे फतवे उन युवा प्रतिभाओं और उनके परिवारों के भीतर भय पैदा करते हैं जो मीडिया और फिल्मी दुनिया में जगह बना रहे होते हैं। ऐसी ही घटना कश्मीर की लड़की जायरा वसीम के साथ भी हुई थी जिसने आमिर खान की दंगल फिल्म में पहलवान बेटी की भूमिका निभाई थी। भारतीय उपमहाद्वीप की कला और संगीत जगत हिन्दुओं और मुस्लिमों की साझी विरासत की शानदार गवाही देता है। उस्ताद विलायत खान, उस्ताद बड़े गुलाम अली खां, उस्ताद अब्दुल करीम खां, उस्ताद बिस्मिल्ला खां और बेगम अख्तर, शमशाद बेगम, नूरजहां से लेकर आज के गायक की फेहरिस्त बेहद लंबी है जिसे बचाना होगा।

Friday, 17 March 2017

यूपी में फिसलती मुस्लिम नुमाइंदगी

उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के हक की बात करने वाली समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की इस बिरादरी के मतों को लेकर मची आपसी खींचतान कौम की नुमाइंदगी पर भारी पड़ गई। जिसके चलते इस बार की विधानसभा चुनाव में अब तक के इतिहास के सबसे कम 23 विधायक ही जीत पाने में कामयाब हो सके। जबकि उत्तर प्रदेश की विधानसभा की 147 सीटें ऐसी हैं जहां मुसलमान मतदाता किसी भी दल के उम्मीदवार की हार-जीत का फैसला करने की हैसियत रखते हैं। 2014 के लोकसभा में प्रदेश के मुस्लिमों की नुमाइंदगी शून्य होने के बाद अब विधानसभा में प्रतिनिधित्व न्यूनतम संख्या पर पहुंच गया है। प्रदेश की राजनीति में मुसलमानों की भूमिका अहम रही है। कभी कांग्रेस इस वर्ग के वोटों को अपनी थाली समझती थी। मंडल-कमंडल के दौर में सपा-बसपा ने नई सियासी गोलबंदी का सिलसिला शुरू किया और मुसलमानों को उसमें शामिल किया जिससे इस वर्ग की नुमाइंदगी बढ़नी शुरू हुई। 1996 में 39 मुस्लिमों को विधायकी मिली। 2002 में यह संख्या 44 हुई। 2007 में यह संख्या 56 तक पहुंची और 2012 के विधानसभा चुनाव में रिकार्ड 68 मुस्लिम विधायक निर्वाचित हुए। मगर 2014 के लोकसभा चुनाव में सियासी चौसर कुछ इस अंदाज में बिछी कि मुस्लिम वोट बिखर गया और भाजपा ने टिकटों की हिस्सेदारी से मुसलमानों को दूर रखकर 81 बनाम 19 का जो दांव चला उससे संसद में उत्तर प्रदेश से मुस्लिमों की नुमाइंदगी शून्य हो गई। उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से 147 पर मुसलमान मतदाता सर्वाधिक हैं। इनमें रामपुर जिला सर्वप्रथम है जहां मुसलमानों का 42 फीसद वोट है। मुरादाबाद में 40, बिजनौर में 38, अमरोहा में 37, सहारनपुर में 38, मेरठ में 30, कैराना में 29, बलरामपुर और बरेली में 28, सम्भल, पडरौना और मुजफ्फरनगर में 27, डुमरियागंज में 26 और लखनऊ, बहराइच व कैराना में मुसलमान मतदाता 23 फीसद हैं। मुसलमान मतदाताओं की इतनी बड़ी संख्या के बावजूद 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी से एक भी मुस्लिम सांसद जीत का स्वाद चख पाने में कामयाब नहीं हो सका। इस विधानसभा चुनाव में महज 23 मुस्लिम उम्मीदवार जीतकर विधायक बन पाने में सफल हो सके। मुसलमानों की इस विधानसभा चुनाव में घटी नुमाइंदगी के कई कारण नजर आते हैं। सपा और बसपा दोनों ने मुसलमान मतदाताओं की सीटों पर मुसलमान उम्मीदवार उतारे, जिसकी वजह से अधिकांश सीटों पर मुस्लिम वोट दोनों दलों में बंट गए। जबकि भारतीय जनता पार्टी ने एक भी मुसलमान को टिकट न देकर हिन्दू मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में खासी कामयाबी हासिल की और नतीजा सामने है। चुनाव परिणाम ने यह भी साबित कर दिया कि आने वाले चुनाव में मुस्लिम एक फैक्टर तो रहेगा मगर वह वोट बैंक के रूप में नहीं माना जाएगा। राजनीतिक दलों को यह समझना चाहिए कि मुसलमान सिर्फ मुसलमान नहीं है। इसको भी उतनी तरक्की करने का हक है जितना अन्य समुदायों को है। बाकी समूहों की तरह मुसलमानों में भी अगड़े-पिछड़े के बीच खासा मतभेद है। अब किसी से छिपा नहीं कि तीन तलाक के मुद्दे पर मुस्लिम महिलाओं ने खुलकर भाजपा का साथ दिया। इन मौलवियों और इमामों की अपीलों, फतवों का कोई असर नहीं रहा। नौजवान पीढ़ी अब इन दकियानूसी दलीलों से तंग आ चुकी है। वह अपने उज्ज्वल भविष्य, रोजगार के अवसर, आर्थिक तरक्की चाहती है। उसने कांग्रेस, बसपा और सपा को आजमा लिया है। तो क्यों न मोदी को एक अवसर दिया जाए? नरेंद्र मोदी को भी मुसलमानों की तरक्की, अच्छी-अच्छी योजनाओं पर ध्यान देना होगा। वह यह साबित करें कि वह पूरे देश के प्रधानमंत्री हैं सिर्फ एक समुदाय के नहीं।

-अनिल नरेन्द्र