बादल परिवार को दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीपीसी) चुनाव से दूर रखने की शिरोमणि
अकाली दल (शिअद) बादल की रणनीति कामयाब
रही। पार्टी शानदार जीत हासिल कर डीएसजीपीसी पर अपना कब्जा बरकरार रखने में सफल हुई
है। इस जीत से डीएसजीपीसी के वर्तमान अध्यक्ष मंजीत सिंह जीके का सियासी कद भी बढ़ा
है क्योंकि पार्टी ने उन्हें चेहरा बनाकर चुनाव लड़ा था और दिल्ली की संगत ने उनके
प्रति अपना विश्वास जताया है। पंथक मसलों पर विरोधियों के वार से बचने के लिए शिअद
बादल ने इस बार पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह
बादल को इन चुनावों से दूर रखा। यही कारण है कि चुनाव प्रचार के दौरान दिल्ली पहुंचे
सुखबीर, संगत के बीच नहीं गए। दरअसल हाल के दिनों में पंजाब में
गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी की कई घटनाएं हुई हैं। विरोधी पार्टियां इसके लिए बादल सरकार
को जिम्मेदार ठहरा रही हैं। प्रतिद्वंद्वी शिरोमणि अकाली दल दिल्ली को मात्र सात सीटें
मिली हैं जबकि अकाल सहाय वैलफेयर सोसायटी को दो तथा दो सीटों पर निर्दलीय विजयी रहे।
सिख राजनीति में स्थापित दलों ने एक बार फिर साबित किया कि उन्हें सिख मतदाताओं को
लुभाना बखूबी आता है। यही कारण है कि पहली बार दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी
का चुनाव लड़ रहा आम आदमी पार्टी समर्थित पंथक सेवा दल अपना खाता भी नहीं खोल सका।
इसके संयोजक कालका जी से विधायक अवतार सिंह कालका हैं। पंथक सेवा दल कुल 46
वार्डों में से 39 पर चुनाव लड़ा था पर एक भी प्रत्याशी
जीत हासिल नहीं कर सका। इसी तरह 182 निर्दलीयों में से मात्र
दो ही जीत हासिल कर सके। शिरोमणि अकाली दल बादल ने शानदार जीत दर्ज करके एक बार फिर
साबित कर दिया कि इस समुदाय पर अब भी उनकी पकड़ कायम है। पंजाब में चुनाव के बाद सिख
वोटों पर असमंजस में फंसी भाजपा को इन नतीजों ने राहत की सांस जरूर दी होगी। सिख गुरुद्वारा
प्रबंधक कमेटी के चुनाव में भाजपा, कांग्रेस और आप सक्रिय थीं।
पंजाब चुनावों के बाद से ही यह डर सता रहा था कि पार्टी का अकाली वोट बैंक भाजपा से
खिसक सकता है। भले ही ये धार्मिक संस्था से संबंधित प्रचार थे लेकिन सभी राजनीतिक दल
इन चुनावों में ताकत झोंके हुए थे। पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष कुलजीत चहल का कहना
है कि भाजपा-अकाली दल का गठबंधन था। इस चुनाव में पार्टी का सीधा
समर्थन था और यह आप और कांग्रेस पार्टी की सीधी हार है। क्या जिस तरह से दिल्ली में
बादल गुट की जीत हुई है इसी तरह पंजाब विधानसभा में सिख संगत ने वोट डाले होंगे?
अगर यही ट्रेंड रहा तो यह भाजपा-अकाली गठबंधन के
लिए शुभ संकेत है और आप पार्टी के लिए चौंकाने वाला। पर विधानसभा चुनाव में मुद्दे
अलग होते हैं। यह जरूरी नहीं कि दिल्ली और पंजाब की सिख संगत के विचार समान हों।
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