उत्तर प्रदेश में कई ऐसी
जातियां हैं, जिन्हें सियासी तौर पर कमजोर माना जाता
रहा है। पूर्वांचल के हर विधानसभा क्षेत्र में इनकी मौजूदगी है, लेकिन इनके मतदाताओं की संख्या कम होने की वजह से बड़े सियासी दल अतिपिछड़ी
श्रेणी में आने वाली इन ज]ितयों को वोट बैंक नहीं मानते। मौजूदा चुनाव में भी ये जातियां
सियासी दलों के एजेंडे से बाहर हैं। इनसे जुड़े मुद्दे पर कोई दल न तो बात करता है
और न ही टिकट बंटवारे के समय भी इन्हें कोई खास तरजीह दी जाती है। बात दीगर है कि नाई,
बिन्द, मल्लाह, लोहार,
पाल, राजभर, चौहान,
कामी समेत कई जातियां पूर्वांचल के वाराणसी, गाजीपुर,
बलिया, सोनभद्र, मिर्जापुर,
आजमगढ़, मऊ, जौनपुर और भदोही
आदि जिलों की करीब 40 सीटों के चुनाव परिणामों पर असर डालती रही
हैं। दरअसल पूर्वांचल के कई जिलों में कई ऐसी जातियां हैं, जो
न तो संगठित हैं और न ही इनकी संख्या ही इतनी है कि ये सियासी दलों का ध्यान अपनी ओर
खींच सकें। इसका ही नतीजा है कि कोई भी दल चुनावों में इन्हें महत्व नहीं देता। मौजूदा
चुनाव में पिछड़ी जातियों पर तो सभी दलों ने फोकस किया है लेकिन कम संख्या वाली गौंड,
लोहार, कुम्हार, बिन्द,
मल्लाह जैसी जातियां इनके सियासी समीकरण में जगह नहीं बना सकीं। इनसे
जुड़े मुद्दों को लेकर भी कोई चर्चा नहीं होती। हालांकि विधानसभा क्षेत्रों के हिसाब
से देखें जहां एक-एक प्रतिशत वोट से हार-जीत का फैसला होता है। उनकी संख्या
इतनी है कि अगर बिखराव न हो तो ये चुनाव परिणाम पलट सकती हैं। पूर्वांचल के वाराणसी
समेत आसपास के जिलों में कुम्हार बिरादरी की भी छह-सात लाख तक
आबादी है, लेकिन इस बिरादरी की दशा भी अच्छी नहीं है। चंदौली,
मिर्जापुर, गाजीपुर, बलिया
व वाराणसी की करीब 32 सीटों पर मल्लाहों की संख्या सात-आठ लाख के करीब है, पर आजादी के छह दशक बाद भी इनकी दशा
में कोई सुधार नहीं हुआ। सिर्फ मछली मारने और नाव चलाने में इनका जीवन बीत जाता है।
बिन्द बिरादरी की सबसे अधिक संख्या मिर्जापुर व गाजीपुर में है। वाराणसी और चंदौली
में भी इनकी उपस्थिति है। इस इलाके में इनकी कुल संख्या छह-सात
लाख के करीब है। मूल रूप से खेतीबाड़ी में लगी इस बिरादरी के अधिकांश परिवार भूमिहीन
हैं और दूसरों की जमीन पर खेती कर रोजी-रोटी चलाते हैं। इसके
बावजूद इनके विकास का मुद्दा किसी दल के एजेंडे पर नहीं है। पूर्वांचल की अधिकांश सीटों
पर लोहार बिरादरी के तीन से सात हजार मतदाता हैं। इनकी उपेक्षा का आलम यह है कि आजादी
के बाद से ही इस बिरादरी का कोई बड़ा नेता नहीं पैदा हो सका।
-अनिल नरेन्द्र
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