Friday 10 March 2017

तूफान से पहले की शांति क्या अंडर करंट का संकेत है?

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों का महादंगल अब अपने क्लाईमैक्स की ओर बढ़ गया है। शनिवार को जब मतपेटियां खुलेंगी तब पता चलेगा कि किसका भाग्य चमकेगा किसका डूबेगा। पांच राज्यों के चुनावों की जब घोषणा हुई थी तो लगा था कि इस बार शोर कम, शब्द ज्यादा होंगे। सोचा था कि यह चुनाव मुद्दे आधारित होंगे। पर जिस प्रकार के शब्द बाण चले, आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर चला उसकी शायद ही किसी को उम्मीद रही होगी। पूरे चुनाव में जिस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल हुआ, जिस स्तर पर चुनाव प्रचार पहुंचा वह किसी को शोभा नहीं देता। तय करना मुश्किल है कि जमीन का शोर ज्यादा खतरनाक था या आभासी दुनिया का। इस शोर की अनुगूंज देर तक महसूस की जाएगी। बहस तो तभी शुरू हो गई थी जब यूपी में मतदान के सात चरण तय हुए। कहा जाने लगा कि डिजिटल युग में जब संचार तंत्र और आवागमन इतना आसान हो चुका है तब मतदान के ऐसे विस्तार का क्या औचित्य है? अब सभी की नजरें शनिवार को वोटिंग मशीनों में गिनती पर टिकी हैं। खासकर उत्तर प्रदेश की चुनौती इतनी भारी थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीन दिनों तक अपने चुनाव क्षेत्र बनारस में डेरा डालना पड़ा, रोड शो करना पड़ा, मंदिरों-मठों के दर्शन करने पड़े। उनके विरोध में कांग्रेस-सपा गठबंधन और बसपा ने भी आखिरी दम तक पूरे दम से प्रचार किया। सच तो शायद यह है कि इस चुनाव का असली नायक उत्तर प्रदेश का यह मतदाता साबित हुआ है, जिसने अपने इशारे पर सबको नचाया, सड़क-सड़क दौड़ा दिया, लेकिन मंजिल किसी को दिखाई नहीं देने दी। चुनाव में लहर दिखने या चलने की प्रचलित परिपाटी के वरअक्स इस बार शायद यह खामोशी ही वह लहर या अंडर करंट रहा, जिसकी अब तक कोई थाह तक नहीं लगा पाया। कहने में गुरेज नहीं कि किसी देश या राज्य का चुनाव एक नई शुरुआत का प्रस्थान बिन्दु हुआ करती है। इस प्रस्थान बिन्दु के बड़े अर्थ होते हैं। अकसर यह आगे की दिशा तय करता है। इन पांच राज्यों के परिणाम देश की भावी राजनीति में महत्वपूर्ण पड़ाव होंगे। 2019 में  लोकसभा चुनाव होने हैं। इसी साल गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं। शनिवार को जब वोटों की गिनती होगी उससे पता चलेगा कि देश की भविष्य राजनीति किस दिशा में घूमती है। दांव पर जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी भाजपा की प्रतिष्ठा है वहीं यह चुनाव समाजवादी पार्टी का भी भविष्य तय करेगा। अगर अखिलेश जीतते हैं तो वह सर्वशक्तिमान बनकर उभरेंगे और अगर हारते हैं तो समाजवादी पार्टी का मौजूदा स्वरूप ही बदल जाएगा। क्योंकि यही स्थिति मायावती और बहुजन समाज पार्टी की भी है। अगर बसपा इस चुनाव में अच्छा, सम्मानजनक प्रदर्शन नहीं करती तो उसके भविष्य पर भी खतरे के बादल मंडराने लगेंगे। उत्तराखंड में पता चलेगा कि अकेले अपने दम-खम पर क्या हरीश रावत ने भाजपा की चुनौती में सफलता पाई है या नहीं? आप पार्टी का भी सियासी भविष्य इस चुनाव के परिणामों पर कुछ हद तक टिका हुआ है। पंजाब में उसके जीतने की संभावना बताई जा रही है पर कांग्रेस कड़ी टक्कर दे रही है। बेशक गोवा में भी आप पार्टी ने चुनाव लड़ा है पर यहां कोई चमत्कारी परिणाम की उम्मीद कम है। अगर पंजाब और गोवा में अरविन्द केजरीवाल अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो उसका सीधा असर दिल्ली नगर निगम के चुनावों पर पड़ सकता है। इन परिणामों का कांग्रेस पार्टी पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा। खासकर उत्तर प्रदेश परिणाम का। चुनाव प्रचार खत्म होते ही कांग्रेस में प्रचार रणनीति को लेकर सवाल उठने लगे हैं। पार्टी का एक बड़ा तबका पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की प्रचार रणनीति से खुश नहीं है। खासकर यूपी को लेकर ज्यादा नाराजगी है। पार्टी के एक नेता ने कहा कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार में जबरदस्त मेहनत की। पर दूसरे नम्बर के नेताओं की प्रचार में कोई भूमिका नहीं रही। जिला कांग्रेस के नेताओं को भी प्रचार में कोई जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई थी। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने प्रतिदिन तीन घंटे से अधिक मेहनत की। अगर वह अपने साथ दूसरे नम्बर के 50 नेताओं को जोड़ लेते तो मेहनत 150 गुणा बढ़ जाती। कांग्रेस के कई नेताओं का मानना है कि जब तक पार्टी संगठन मजबूत नहीं होता, चुनाव प्रचार में कड़ी मेहनत से कुछ हासिल नहीं किया जा सकता। पार्टी का एक बहुत बड़ा तबका मानता है कि कांग्रेस को समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने का नुकसान होगा। पहले दिन से ही कांग्रेस सपा की बी टीम बन गई और उसने अपने अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लगा दिए। लगता है कि इस बार उम्मीद है कि लोग ऐसा जनादेश सुनाएंगे, जिससे दलों और नेताओं को कुछ सबक मिले। उन्हें सही राजनीतिक दिशा में बढ़ने का संदेश मिले। उम्मीद यह भी करनी चाहिए कि वोटर निर्णायक वोट देंगे और जिस पार्टी को भी अपना कीमती मत देंगे, इतना देंगे कि वह पूर्ण बहुमत से अपने दम-खम पर सरकार बना सके। खंडित जनादेश और त्रिशंकु विधानसभाएं उल्टा समस्याएं और बढ़ाएगी और देश पीछे चला जाएगा। देखें शनिवार को जनता क्या फैसला सुनाती है।

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