Sunday, 19 March 2017

भाजपा के सभी पार्षदों के टिकट काटने पर असंतोष

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में प्रचंड जीत के बाद भाजपा का अब पूरा ध्यान दिल्ली नगर निगम चुनावों पर है। दिल्ली नगर निगमों में भाजपा सत्ता में है। बेशक नगर निगम चुनाव में मुद्दे अलग होते हैं और इनका महत्व विधानसभा चुनाव जितना नहीं होता पर दिल्ली विधानसभा चुनाव में न भूलने वाली हार के बाद इन निगम चुनावों का महत्व बढ़ जाता है। लगता है कि भाजपा हाई कमान इस बार निगम चुनाव जीतने के लिए पूरी ताकत लगा देगी। राजधानी में तीन नगर निगमों में भाजपा के 153 पार्षद हैं। इनमें से तो कई पार्षद ऐसे भी हैं जो कई बार पार्षद का चुनाव  लड़े और जीते भी। खबर है कि भाजपा आला कमान सभी पार्षदों को बदलना चाहता है। भाजपा आला कमान के फैसले पर अगर अमल हुआ तो सभी 153 पार्षदों का टिकट कट जाएगा। इससे पार्षद सकते में आ गए हैं। दिल्ली नगर निगम चुनाव में विजय पताका फहराने के मकसद से भाजपा ने पार्षदबंदी का दांव चला। भाजपा इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की न्यू इंडिया सोच बताकर नाराज वर्तमान पार्षदों के जख्मों पर मरहम लगाने की भरसक कोशिश कर रही है लेकिन हकीकत यही है कि तमतमाए पार्षदों ने नया ठोर तलाशना शुरू कर दिया है। कई मौजूदा पार्षदों ने तो कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और स्वराज इंडिया में अपनी गोटी बिठानी शुरू भी कर दी है। कांग्रेस के कई नेताओं ने भाजपा के कई पार्षदों से संबंध बिठाने शुरू कर दिए हैं। कई पार्षदों का कहना है कि पार्टी आलाकमान ने उन्हें टिकट न देने का फैसला करके एक तरह से उनके दामन पर भ्रष्ट होने का धब्बा लगा दिया है। भाजपा की दो बड़ी कमेटियों के चेयरमैन ने कांग्रेस का दरवाजा खटखटाया है। इतना ही नहीं, बसपा को एक पार्षद ने भी कांग्रेस आलाकमान से गुजारिश की है। हालांकि कांग्रेस इन पार्षदों पर दांव लगाने से हिचक रही है। भाजपा आलाकमान का यह फैसला व्यावहारिक नहीं लगता। सभी पार्षद भ्रष्ट नहीं हैं। बता दें कि नगर निगम चुनाव को लेकर कराए गए इंटरनल सर्वे में 153 में से 25 पार्षदों को उनके काम और पहचान के आधार पर अव्वल आंका गया है और चुनाव में भारी बहुमत से जीत हासिल करते बताए गए हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार सत्ता में आने के बाद निगम प्रणाली के संचालन में अनुभव का अभाव संकट ला सकता है। ऐसे में बेहतर यही होगा कि बेहतर छवि और अनुभवशील इन 25 निगम पार्षदों को टिकट दिया जाए। इससे पार्टी में टिकट काटने का विरोध और पुराने नेताओं की नाराजगी काफी हद तक दूर हो सकती है। आमतौर पर यह धारणा है कि भाजपा के 153 निगम पार्षदों में से अधिकतर एमसीडी के कामकाज में पूरी तरह से विफल हो गए हैं। भाजपा ने यह स्वीकार कर लिया है कि उसके पार्षदों ने निगम के माध्यम से दिल्ली की जनता को लूटा है, इसलिए भाजपा अब उन्हें दोबारा मौका नहीं दे रही है। आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता दिलीप पांडे ने कहा कि इन पार्षदों के खिलाफ जनता में भारी आक्रोश है। भाजपा और कांग्रेस ने पिछले 20 सालों में नगर निगम को भ्रष्टाचार का अड्डा और दिल्ली को कचरे का डिब्बा बना दिया है। भाजपा आलाकमान के लिए इस बार उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया आसान नहीं होगी। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह 19 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक रैली करके आगामी नगर निगम चुनावों के प्रचार का शंखनाद करेंगे। पार्षदों में इतना गुस्सा व चिन्ता है कि गत गुरुवार को प्रदेश कार्यालय में आयोजित पार्षदों की मासिक बैठक में 80 फीसदी पार्षद शामिल नहीं हुए। मौजूदा पार्षदों और उनके रिश्तेदारों की टिकट काटे जाने के फैसले के बाद निगम पार्षदों की यह पहली मासिक बैठक थी। उम्मीद की जाती है कि भाजपा आलाकमान इस बार यूपी की गलती नहीं दोहराएगा। नगर निगम में काबिल अल्पसंख्यकों को भी टिकट देनी चाहिए। मुसलमानों ने जो विश्वास भाजपा में जताया है उसे आगे बढ़ाना चाहिए।

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