Friday 3 March 2017

क्या बैंकों के कर्ज वसूली में कभी सफलता मिलेगी?

बैंकों के फंसे कर्ज (एनपीए) की वसूली पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती का स्वागत है। कोर्ट ने कर्ज वसूली ट्रिब्यूनल (डीआरटी) में ढांचागत संसाधनों की कमी पर सरकार से सवाल किए हैं। अदालत ने पूछा है कि क्या मौजूदा संसाधनों में तय सीमा के भीतर कर्ज वसूली का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है? कोर्ट ने सरकार से कर्ज वसूली के समूचे तंत्र की जानकारी मांगी है। इसके अलावा कर्ज वसूली के पुराने लंबित मामलों और 500 करोड़ रुपए से ज्यादा देनदारी वाली कंपनियों की सूची पेश करने को भी कहा गया है। वसूली के मामलों के जल्द निपटारे के लिए ट्रिब्यूनल गठित होने के बावजूद मुकदमे वर्षों लंबित होने पर भी कोर्ट ने सवाल उठाए। डीआरटी गठन के पहले सितम्बर 1990 तक अदालतों में कर्ज वसूली के करीब 15 लाख मुकदमे लंबित थे। इनमें बैंकों का 5,622 करोड़ व वित्तीय संस्थानों का 391 करोड़ फंसा था। 1993 में डीआरटी एक्ट बना और ट्रिब्यूनल गठित हुए। देशभर में 34 डीआरटी और पांच अपीलीय ट्रिब्यूनल हैं। इनमें 2015-16 में 34,000 करोड़ की राशि से जुड़े करीब 16,000 मामले निपटे। सुप्रीम कोर्ट ने फंसे कर्जों (एनपीए) की वसूली को लेकर सरकार पर जो सख्ती दिखाई है, वह अकारण नहीं है। साल दर साल सरकारी क्षेत्र के बैंक फंसे कर्ज की दलदल में फंसते ही जा रहे हैं। इन बैंकों को उबारने के लिए आयकर दाता के पैसों का इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन रसूखदारों से कर्ज वसूली का कोई ठोस रास्ता नहीं निकाला जा सका है। पिछले पांच वर्षों के दौरान पूर्व संप्रग और अब राजग सरकार कर्ज वसूली का कोई नया तरीका नहीं खोज सकी हैं। यही नहीं, बड़े रसूखदार कर्जदारों की जब्त सम्पत्तियों को बेचने के रिकार्ड भी बेहद खराब हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण विदेश फरार हो चुके उद्योगपति विजय माल्या की सम्पत्तियों का है। बैंकों की तमाम कोशिशों के बावजूद इन्हें अब तक बेचा नहीं जा सका। 29 दिसम्बर 2016 को जारी आरबीआई की रिपोर्ट इस नाकामी की पोल फिर खोल रही है। वर्ष 2015-16 की बात करें तो लोक अदालतों व ऋण वसूली ट्रिब्यूनलों (डीआरटी) और प्रतिभूति कानून (सरफेसी एक्ट) के तहत बैंक कुल 4,429.48 अरब रुपए के फंसे कर्ज के मामले लेकर आए थे। इसमें से सिर्फ 455.36 अरब की वसूली ही संभव हो पाई थी। यही कहानी साल दर साल दोहराई जा रही है। इन वसूली तंत्रों के पास जितना राशि के फंसे कर्ज लाए जाते हैं, उसका 10 से 20 फीसदी ही वसूल हो पाता है, सितम्बर 2016 तक के आंकड़ों के मुताबिक देश के 41 बैंकों का मुद्रा एनपीए 5.65 लाख करोड़ रुपए का है।

-अनिल नरेन्द्र

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