Tuesday, 7 March 2017

लंबी प्रक्रिया के बाद अंतिम चरण में पहुंचता यूपी चुनाव

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण की वोटिंग 8 मार्च को होगी। 11 फरवरी से आरंभ हुई वोटिंग अपने सात चरण पूरे करने जा रही है। सूबे के महासंग्राम में सातवें चरण की जंग भी बेहद रोचक होने वाली है। हर सीट पर अलग-अलग समीकरण हैं। कहीं जातीय गोलबंदी है तो कहीं पुराने समीकरण साधने की कोशिश हो रही है। यहां 7 जिलों की 40 सीटों पर 8 मार्च को वोटिंग होगी। 8 मार्च को जिन क्षेत्रों में वोट पड़ेंगे, वह हैंöगाजीपुर, वाराणसी, चंदौली, मिर्जापुर, भदोही, सोनभद्र व जौनपुर। भारत में हो रहे इन चुनावों को देखने एवं लोकतांत्रिक प्रक्रिया से रूबरू होने के लिए बांग्लादेश, मिस्र, किर्गिस्तान, नामीबिया और रूस के चुनाव प्रबंधन निकायों के प्रमुख और प्रतिनिधियों ने सूबे का दौरा किया और भारत में चुनाव प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं, वोटिंग, इलैक्ट्रॉनिक मशीनों इत्यादि का बारीकी से अध्ययन किया। यह प्रतिनिधि चुनाव तैयारियों, मतदान केंद्रों व चुनाव की पूरी प्रक्रिया देख रहे हैं। इन अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों के लिए चुनाव स्टडी टूर का आयोजन भारतीय निर्वाचन आयोग ने संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के साथ साझेदारी में आयोजित किया। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में नेताओं का कद, लोगों की पसंद, दलों के वादे और जमीनी मुद्दों का पता 11 मार्च को चल जाएगा। 18 से 25 साल के युवाओं में से ज्यादातर विकास के पक्ष में नजर आए। उनको लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के लिए अच्छा काम कर रहे हैं। हालांकि वह यह नहीं बता पाए कि मोदी ने अब तक देश के लिए कौन-कौन से अच्छे काम किए हैं। माना जा रहा था कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले हुई नोटबंदी चुनाव के दौरान बड़ा मुद्दा बनेगी। लेकिन लगता है कि ऐसा नहीं हुआ। गांवों में और शहरों में एक बड़ा तबका नोटबंदी के हक में दिखा। ज्यादातर ग्रामीणों का कहना था कि नोटबंदी से देश को बहुत फायदा हुआ है या होगा। आम राय है कि अखिलेश यादव ने काम किया है। पर सपा की अंदरूनी पारिवारिक लड़ाई ने उनका खेल बिगाड़ दिया है। ऐसा लगता है कि गांव में लोग मानते हैं कि मोदी का कद काफी बड़ा और पार्टी से ऊपर है। मजेदार बात यह है कि ज्यादातर जगहों पर महिलाएं जातिवादी ढांचे से खुद को थोड़ा बाहर रखती नजर आईं। जबकि पुरुष जातिवाद पर अड़े नजर आए। मतलब साफ है कि इस चुनाव में अधिकतर महिलाएं अपने हिसाब से फैसला कर रही हैं। गांवों में सपा-कांग्रेस गठबंधन के बाद भी कांग्रेस की कोई बात नहीं कर रहा है। चर्चा अखिलेश तक ही सीमित दिखी। चौंकाने वाली बात यह है कि यूपी के लोगों ने अपनी समस्याएं गिनाने में भी ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई। बिजली, सड़क व पानी के मुद्दे कहीं भी नहीं उठे। हां एक समस्या जो उभरकर आई वह है रोजगार की कमी। लोगों के पास वैकल्पिक रोजगार का इंतजाम भी नहीं है। अवध के हिस्से और पूर्वी यूपी की पूरे क्षेत्र में अमेठी के औद्योगिक क्षेत्र जगदीशपुर को छोड़ दें तो कहीं भी बड़ा उद्योग नहीं है। शनिवार को वारावणसी में प्रधानमंत्री का रोड शो था, उसी दिन अखिलेश-राहुल का भी रोड शो था। मायावती की सभा भी थी। पूर्वी उत्तर प्रदेश के वाराणसी नगर में भाजपा के पक्ष में मतदाताओं को गोलबंद करने के प्रयास करते हुए मोदी के रोड शो में  लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। उत्तर प्रदेश में भाजपा 15 वर्षों से सत्ता से बाहर है। भाजपा का मानना है कि एक घंटे तक चले इस रोड शो से उसे 8 मार्च को होने वाले अंतिम चरण के चुनाव में 40 सीटों पर काफी फायदा होगा जिसका अधिकांश क्षेत्रीय चैनलों ने सीधा प्रसारण किया। यूपी चुनाव में बनारस बेहद अहम बन गया है। पहली बार है जब पीएम को विधानसभा चुनाव में रोड शो करना पड़ा। वह दो दिन और बनारस को देंगे। रोड शो खत्म होने के बाद यह बहस भी शुरू हो गई कि किसका रोड शो भारी पड़ा? पीएम ने कहाöआज तो कमाल हो गया। वाराणसी में अ]िखलेश ने कहा कि हमारे रोड शो से आधा भी नहीं था पीएम का रोड शो। उधर मायावती ने रोड शो को तमाशबीनों की भीड़ बताया। प्रधानमंत्री का निर्वाचन क्षेत्र होने की वजह से यहां का चुनाव भाजपा के साथ-साथ मोदी की प्रतिष्ठा से भी जुड़ गया है। भले ही भाजपा यूपी जीत ले लेकिन बनारस में प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो यह मोदी की निजी हार मानी जाएगी। अखिलेश की रणनीति है कि आक्रामक तेवर दिखाकर विरोधी को दबाव में लाओ। इसलिए उन्होंने मोदी को घेरने में पूरी ताकत लगा दी है। अखिलेश दमखम दिखाकर आखिरी चरण के चुनाव में मनोवैज्ञानिक बढ़त लेना चाहते हैं। यहां लड़ाई भाजपा, सपा के बीच सिमटी तो बसपा के मुकाबले से बाहर होने का खतरा है, जो मायावती नहीं चाहेंगी। बनारस के माहौल से पूर्वांचल की बाकी सीटों पर माहौल बनना है। माया-मोदी से लड़ते हुए दिखनी चाहिए। कुल मिलाकर यह कहा जाएगा कि बेशक शहर से गांव तक लोग यह मान रहे हैं कि अखिलेश ने काम तो किया है पर कद में मोदी आगे हैं। वहीं राहुल गांधी की चर्चा कम ही रही। देखें कि 11 मार्च को ऊंट किस करवट बैठता है।

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