Sunday, 31 December 2017

...ताकि एक झटके में तीन तलाक की प्रथा समाप्त हो

लोकसभा ने बृहस्पतिवार को इतिहास रचते हुए मुस्लिम महिलाओं के लिए अभिशाप बने एक साथ तीन तलाक (तलाक--बिद्दत) के खिलाफ लाए गए विधेयक को ध्वनि मत से पारित कर दिया। मुस्लिम मfिहलाओं की आजादी के लिए क्रांतिकारी कदम उठाते हुए एक साथ तीन तलाक की बुरी, अमानवीय और आदमकालीन प्रथा को आपराधिक घोषित करने वाला मुस्लिम विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2017 पारित करके प्रभावित मुस्लिम मfिहलाओं को बड़ी राहत दी है। विधेयक में प्रावधान है कि इस्लाम का कोई भी अनुयायी अपनी पत्नी को एक बार में तीन तलाक किसी भी माध्यम (-मेल, व्हाट्सएप और एसएमएस) से देता है तो उसे तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से एक झटके में दिए जाने वाले तीन तलाक को अमान्य, असंवैधानिक करार दिए जाने के बाद भी इस तरह के मनमाने तलाक के मामले सामने आने के बाद उस पर कानून बनाना आवश्यक हो गया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी तीन तलाक के मामले सामने आने से यही प्रकट हो रहा है कि तलाक की इस मनमानी प्रथा ने बहुत गहरी जड़ें जमा ली हैं। सुप्रीम कोर्ट ने बीते अगस्त में मुस्लिम मfिहलाओं के खिलाफ सदियों से चली आ रही इस अमानवीय और क्रूर प्रथा को असंवैधानिक ठहराते हुए सरकार से इस संबंध में कानून बनाने का आदेश दिया था। निसंदेह तीन तलाक के मामले सामने आने की एक वजह यह भी है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सरीखे संगठन और असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता शरीयत का गलत हवाला देकर अपने ही समाज को गुमराह करने में लगे हुए हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कई अन्य संगठनों को इस बात पर आपत्ति है कि बिल लाने से पहले सरकार ने संबंधित पक्षों से राय-मशविरा नहीं किया। यह भी कहा जा रहा है कि सजा का प्रावधान नहीं होना चाहिए। अगर पुरुष को जेल हो जाएगी तो तलाकशुदा महिला का पालन-पोषण कौन करेगा? कांग्रेस की सुष्मिता देव ने कहा कि अगर इस कानून में तीन साल की सजा के प्रावधान को देखें तो यदि दोषी पति जेल में चला गया तो तलाकशुदा महिला को गुजारा भत्ता कौन देगा? कानून विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि पति के जेल जाने के बाद पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण की समस्या पैदा हो जाएगी। पति अगर नौकरी में हुआ तो जेल जाते ही वह बर्खास्त हो जाएगा और उसकी तनख्वाह रुक जाएगी। अगर वह कारोबारी हुआ तो भी उसकी आमदनी पर असर पड़ेगा। ऐसे में पत्नी बच्चों का जीवन कैसे चलेगा? इस आशंका से महिलाएं ऐसे मामलों में सामने आने से कतरा सकती हैं। महिला पति की संपत्ति से गुजारा भत्ता ले सकती हैं या नहीं, इस बारे में प्रस्तावित कानून में कोई प्रावधान नहीं किया गया है। कांग्रेस ने इस विधेयक का समर्थन देकर एक तरह से 40 साल पुरानी अपनी भूल को सुधार लिया है। अगर राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने शाहबानो के मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटा नहीं होता तो शायद इस विधेयक की नौबत नहीं आती। अगर वोट बैंक की राजनीति को प्राथमिकता नहीं दी गई होती तो शायद मुस्लिम समाज आज तक तीन तलाक की मनमानी प्रथा के साथ ही अन्य अनेक कुरीतियों से मुक्त हो गया होता। क्या यह अपने आप में विरोधाभासी नहीं। वामपंथी समेत कुछ अन्य नेता इसको राजनीति से प्रेरित बता रहे हैं। लेकिन सच्चाई तो यह है कि सामाजिक बुराइयों का अंत भी आखिर इसी जरिए से होता रहा है। अचरज इस बात पर है कि विधेयक का सर्वाधिक विरोध उन दलों ने किया जो सामाजिक न्याय के पेरोकार होने का दावा करते हैं। इस क्रम में लोकसभा में राजद और बीजद का विरोध और टीएमसी की चुप्पी के पीछे सिवाय वोटों की राजनीति के दूसरी दृष्टि नहीं है। दरअसल कट्टरपंथी, रू]िढिवादी और यथा स्थितिवादियों की राजनीतिक दुकान किसी भी प्रगतिशील कदम के विरोध पर ही चलती है। निसंदेह मनमाने तीन तलाक के खिलाफ कानून बन जाने मात्र से यह सदियों पुरानी कुरीति समाप्त होने वाली नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि महिलाओं को असहाय बना देने वाली कुरीतियों को खत्म करने के लिए कानून का सहारा नहीं लिया जाना चाहिए। सच तो यह है कि यह विधेयक जिनके हक में है, अब उन्होंने प्रसन्नता जाहिर की है तो बाकी लोगों के विरोध का कोई मतलब नहीं रह जाता। यह एक तथ्य है कि सती प्रथा, दहेज प्रथा और बाल विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ कानून बनाए जा चुके हैं। इसी जागरुकता की जरूरत तीन तलाक के चलन को खत्म करने के मामले में भी है। इसी के साथ इस पर भी विचार होना चाहिए कि तीन तलाक के खिलाफ बनने जा रहा कानून कहीं आवश्यकता से अधिक कठोर तो नहीं और वांछित नतीजे मिलेंगे या नहीं? ऐसा इसलिए हम कह रहे हैं क्योंकि इस प्रस्तावित कानून के कुछ प्रावधानों को लेकर कुछ जायज सवाल उठे हैं। बेहतर हो कि संसद की अंतिम मुहर लगने तक यह प्रस्तावित कानून ऐसे सवालों का समुचित जवाब देने में सक्षम हो जाए।

-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 30 December 2017

2017 ने कांग्रेस में उम्मीदें जगाई हैं

कांग्रेस के लिए साल 2017 तमाम उतार-चढ़ावों से भरा रहा। उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर और हिमाचल प्रदेश में चुनावी असफलता के बीच पार्टी को पंजाब विधानसभा में मिली जीत ने थोड़ी राहत की सांस दी जबकि प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात में 22 सालों से सत्ता पर काबिज भाजपा को कड़ी चुनावी टक्कर देकर पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं में भविष्य में और बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद जगाई है। हाल ही में 16 दिसम्बर को राहुल गांधी की ओर से कांग्रेस की कमान संभालने के बाद पार्टी के नेता व कार्यकर्ता नए जोश से लबरेज हैं। कांग्रेस के रणनीतिकार गुजरात चुनाव के दौरान राहुल की अगुवाई में पार्टी के आक्रामक प्रचार और राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में पार्टी के अच्छे प्रदर्शन को पार्टी के पक्ष में बह रही बयार मान रहे हैं। साल 2017 के समापन से चन्द दिनों पहले बहुचर्चित 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला मामले में विशेष सीबीआई अदालत की ओर से पूर्व केंद्रीय मंत्री ए. राजा और अन्य सभी आरोपियों को बरी करने का फैसला पार्टी के लिए नई संजीवनी साबित हो सकता है। उधर आदर्श सोसायटी घोटाले के मामले में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक चव्हाण पर मुकदमा चलाने की राज्यपाल की मंजूरी को दरकिनार करने के बंबई हाई कोर्ट के फैसले ने भी पार्टी को राहत दी है। इस साल हमें कांग्रेस पार्टी की सोशल मीडिया में अपनी मौजूदगी को जोरशोर से दर्ज कराने के प्रयास भी दिखे। सोशल मीडिया के जरिये मोदी सरकार पर किए जाने वाले अपने हमलों की धार को कांग्रेस ने और पैना बनाया है। इस मामले में बड़ी पहल राहुल की तरफ से ही हुई जिनके ट्विटर फालोवरों की तादाद पिछले कुछ महीनों में 50 लाख के आंकड़े को पार कर चुकी है। अपनी छवि के उलट पूरे साल भर विभिन्न मुद्दों पर सरकार पर तीखे प्रहार करने के मामले में बढ़चढ़ कर कांग्रेस का नेतृत्व करते राहुल नजर आए। गुजरात चुनाव में राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस नेताओं ने जिस सक्रियता से प्रचार किया, उससे राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह आने वाले समय में पार्टी के लिए उम्मीदों के नए दरवाजे खोल सकता है। साल 2017 का दिसम्बर माह कांग्रेस के इतिहास में लंबे समय तक याद रखा जाएगा। बीते 19 साल से कांग्रेस का नेतृत्व कर रहीं सोनिया गांधी की जगह राहुल गांधी विधिवत पार्टी अध्यक्ष बने। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि 2017 कांग्रेस के लिए कुछ उम्मीदें लेकर आ रहा है।

-अनिल नरेन्द्र

पाक में 500 मीटर घुसकर लिया बदला

पाकिस्तान के कायराना हमले में अपने चार सैनिकों के शहीद होने से तमतमाई भारतीय सेना ने एक बार फिर पाकिस्तान की सीमा में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक की। सितम्बर 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारतीय सेना ने पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में घुसकर अपने चार जवानों की शहादत का बदला ले लिया। सेना की पुंछ ब्रिगेड के पांच घातक कमांडो ने सोमवार शाम करीब छह बजे एलओसी पार कर एक मेजर समेत चार पाक सैनिकों को मार गिराया और चार-पांच पाक सैनिकों को बुरी तरह घायल कर दिया। हमारे कमांडोज ने पाकिस्तान की एक अस्थायी चौकी को भी तबाह कर दिया। सैन्य सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तान के मारे गए सैनिक 59 बलों में रेजीमेंट की सैकेंड ब्रिगेड के थे। तीन दिन पहले राजौरी सेक्टर में पाकिस्तानी सेना की गोलीबारी में भारत के एक मेजर समेत तीन जवान शहीद हो गए थे। तब भारतीय सेना ने कहा था कि हम अपने जवानों का बलिदान यों ही व्यर्थ नहीं जाने देंगे। और हुआ भी यही। दरअसल पाकिस्तान ने हमेशा से कायरतापूर्ण तरीके से भारतीय सैनिकों को निशाना बनाया है। इस बार भी पाक सेना ने शनिवार को पीर पंजाल घाटी के राजौरी सेक्टर में स्नाइपर फायरिंग में भारतीय सेना के एक मेजर और तीन जवानों को मार दिया था। पाक की इस कार्रवाई के 48 घंटे के भीतर ही हमारी कमांडो टीम ने भारतीय सैनिकों की हत्या का बदला ले लिया। कार्रवाई पूरी करने के बाद 45 मिनट के अंदर पांचों भारतीय कमांडो सुरक्षित वापस आ गए। यह मानने में गुरेज नहीं कि भारत की पिछली सर्जिकल स्ट्राइक में खासा नुकसान झेलने के बाद भी तमाम आनाकानी के बावजूद पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आया है और सीमा पर युद्धविराम उल्लंघन और आतंकी वारदातों से बाज नहीं आ रहा है। इस साल पाकिस्तान ने 750 बार संघर्षविराम का उल्लंघन करते हुए भारतीय इलाकों में गोलीबारी की। पाकिस्तान की ओर से संघर्षविराम उल्लंघन की यह घटना पिछले सात सालों में सबसे ज्यादा है। पाकिस्तान को सबक सिखाने की यह अकेली कार्रवाई नहीं थी। इससे ठीक पहले भारतीय जवानों ने जम्मू-कश्मीर के झांगर में नियंत्रण रेखा के पास एक पाक स्नाइपर को ढेर किया और ठीक बाद पुलवामा में लंबे समय से वांछित आतंकी नूर मोहम्मद तांत्रे उर्फ छोटा नूर को मार गिराया। छोटा नूर का मारा जाना तो सीधे तौर पर जैश--मोहम्मद व पाक में बैठे उसके आकाओं को सख्त संदेश है। नवम्बर 2003 में जब से भारत और पाकिस्तान के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमा, नियंत्रण रेखा पर संघर्षविराम समझौता हुआ है, पाकिस्तान ने किसी भी साल इसका कायदे से पालन नहीं किया है। भारतीय सेना का यह जवाबी कदम उस वक्त सामने आया है, जब कुलभूषण जाधव की पत्नी और मां पाकिस्तान में उनसे मिलकर लौटी ही थीं और देश में उनकी मुलाकात के दौरान पाकिस्तान द्वारा बरती गई अमानवीय व्यवहार की चर्चा जोरों पर थी। पाकिस्तान ने जिस तरह जाधव की मां और पत्नी से सलूक किया उसने न केवल अपनी संवेदनहीनता का परिचय ही दिया, बल्कि अपना असली चेहरा भी दिखा दिया कि वह कहता कुछ है, करता कुछ और ही है। हमारा सवाल यहां यह है कि इन सर्जिकल स्ट्राइक से पाकिस्तान को ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा। उन्होंने हमारे चार मारे तो हमने उनके चार मार दिए। इससे न तो पाक फायरिंग रुकेगी और न ही घुसपैठ। भारत को पीओके के तमाम आतंकी लांच पैडों को नष्ट करना होगा। जब तक हम ऐसा नहीं करते तब तक पाकिस्तान सुधरने वाला नहीं। वैसे आमतौर पर भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक में अपने मरने वाले सैनिकों का पाक खंडन करता रहा है पर विलाप करते हुए ही सही पाक यह आरोप लगाकर कि भारतीय सेना ने युद्धविराम का उल्लंघन कर उसके तीन सैनिक मार दिए हैं, भारतीय उपलब्धि की पुष्टि ही कर दी है।

Friday, 29 December 2017

अब हाफिज सईद चुनाव लड़ना चाहता है

पाकिस्तान में जमात-उद-दावा प्रमुख और मुंबई आतंकवादी हमले का मुख्य षड्यंत्रकारी हाफिज सईद आतंकवाद निरोधक और जन सुरक्षा कानूनों के तहत 11 महीने की नजरबंदी से रिहाई के बाद अपना जेहादी एजेंडा सक्रियता से आगे बढ़ा रहा है। आतंकवादी संगठन लश्कर--तैयबा संस्थापक सईद के सिर पर एक करोड़ डॉलर का इनाम घोषित है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तालिबान और अन्य आतंकवादी संगठनों को अपनी धरती पर सुरक्षित पनाहगाह मुहैया कराने को लेकर पाकिस्तान को चेतावनी भी दी है। अमेरिका के उपराष्ट्रपति माइक पैंस ने अपनी अघोषित अफगानिस्तान यात्रा के दौरान यह बात कही। अमेरिकन चेतावनियों के बावजूद हाफिज सईद अपने इरादों में आगे बढ़ रहा है। सईद ने इस महीने की शुरुआत में पुष्टि की थी कि उसका संगठन जमात-उद-दावा (जेयूडी) साल 2018 के आम चुनाव में मिल्ली मुस्लिम लीग (एमएमएल) के बैनर तले चुनाव लड़ेगा। पाकिस्तान चुनाव आयोग ने एमएमएल को राजनीतिक पार्टी के रूप में पंजीकृत करने से मना कर दिया था। आयोग के इस फैसले को एमएमएल ने 11 अक्तूबर को अदालत में चुनौती दी थी। पाक गृह मंत्रालय ने एमएमएल की याचिका पर इस्लामाबाद हाई कोर्ट में अपने लिखित जवाब में कहा है कि वह इस समूह के राजनीतिक पार्टी के रूप में पंजीकरण का विरोध करता है, क्योंकि यह समूह प्रतिबंधित संस्थाओं की शाखा है। मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा कि राजनीतिक दल आदेश 2002 के तहत ऐसे संगठन जो मौलिक अधिकारों के प्रति पूर्वाग्रह रखता हो, देश की एकता को चुनौती देता है, नस्लीय अलगाव को बढ़ावा देता हो, क्षेत्रीय और प्रांतीय द्वेष फैलाता हो और जिसका नाम आतंकी समूहों से जुड़ा हो उसे राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत करने पर रोक है। पाकिस्तान का दोहरा चेहरा एक बार फिर बेनकाब हुआ है। सार्वजनिक रूप से वह सईद की आलोचना करता है और अंदरखाते महिमामंडन करता है। हाफिज सईद संयुक्त राष्ट्र तक में आतंकी घोषित है, उसके सिर पर इनाम है, अमेरिका खुलेआम उसे आतंकवाद प्रायोजित करने का आरोप लगाता है, पाकिस्तान सरकार और एजेंसियां उसे रिहा कर देती हैं और उसे अपनी गतिविधियों को आगे बढ़ाने की पूरी छूट देती है। हाफिज खुलेआम घूम रहा है और भारत के खिलाफ जहर उगलने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। इसको तो सलाखों के पीछे होना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

शपथ समारोह के बहाने शक्ति प्रदर्शन

गुजरात में मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और हिमाचल में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के शपथ ग्रहण समारोह को महाआयोजन बनाकर भारतीय जनता पार्टी ने अपनी ब़ढ़ती शक्ति का प्रदर्शन किया है। यह आयोजन उन राज्यों में भी माहौल बनाने का प्रयास है जहां अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत मंत्रिमंडल के कई सदस्यों और नीतीश कुमार सहित भाजपा व सहयोगी दलों द्वारा शासित 18 राज्यों के मुख्यमंत्रियों का भव्य प्रदर्शन एनडीए की राजनीतिक शक्ति के समक्ष बिखरे विपक्ष को शक्तिहीन बताने का प्रयास भी था। हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सर्वशक्तिमान बना दिया है। इसका असर संसद में भी खुलेआम दिखने लगा है। जीत के बाद तो संसद के हालात और उनके अनुकूल हो गए हैं, लोकसभा में तो बहुमत के चलते उनके इशारे पर सब कुछ चलता ही था अब राज्यसभा में भी वही हो रहा है जो वे चाहते हैं। शायद यह पहली बार हुआ हो कि राज्यसभा का सभापति पार्टी की ओर से जवाब दे और कहे कि संसद से बाहर के मुद्दे का सदन में जवाब देने का मतलब नहीं है। दोनों राज्यों के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस, टीएमसी के अलावा ज्यादातर बड़े दल या तो भाजपा के पक्ष में हैं या उनकी दूरी भाजपा से ज्यादा कांग्रेस से बनी हुई है। जयललिता के निधन के बाद तो 37 सदस्यों वाली अन्नाद्रमुक भाजपा के अघोषित सहयोगी जैसी सदन में दिखने लगी है। यही हाल बीजू जनता दल का है। कांग्रेस भी लोकसभा में कभी सत्तापक्ष को नहीं घेर पाई। अब राज्यसभा में भी कांग्रेस संख्याबल में भाजपा से पिछड़ती जा रही है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी राज्यसभा में पहुंच गए हैं और सबसे बड़ी बात है कि भाजपा के पूर्व अध्यक्ष एम. वेंकैया नायडू उपराष्ट्रपति के नाते राज्यसभा के सभापति बन गए हैं। आने वाले दिनों में राज्यसभा में भी भाजपा की ताकत बढ़ती जाएगी फिर तो लोकसभा की तरह राज्यसभा में भी सरकार अपने हिसाब से बिल पेश और पास करवाएगी। कांग्रेस के सदस्य हर रोज वाकआउट कर रहे हैं, लेकिन सत्तापक्ष अपने हिसाब से देर शाम तक सदन की बैठक करके सरकारी कामकाज निपटा रहा है। संसद पांच जनवरी तक चलेगी और उसके तीन हफ्ते बाद फिर संसद का बजट सत्र शुरू हो जाएगा। अभी तक तो संसद में सरकार घिरती नहीं दिख रही अलबत्ता वह विपक्ष को हाशिये पर लगाने में लगी हुई है।

Thursday, 28 December 2017

दुकानों की सीलिंग से दहशत

सेंट्रल जोन की डिफेंस कालोनी में एमसीडी ने शुक्रवार को लगभग 51 दुकानों को सील कर दिया। इससे पूरी दिल्ली के व्यापारियों में दहशत का माहौल बन गया है। दक्षिण दिल्ली की दूसरी मार्केट में भी सीलिंग की कार्रवाई का डर व्यापारियों को सता रहा है। छतरपुर एन्क्लेव में भी मार्बल के 6 शोरूम सील कर दिए गए हैं। एमसीडी  के अनुसार दुकानदारों ने काफी समय से कन्वर्जन चार्ज नहीं दिया था, जिसके कारण इन दुकानों के ऊपर रेजिडेंशल फ्लोर को सील किया गया है। साउथ दिल्ली के शापिंग सेंटर्स को कई साल पहले बसाया गया था। इन शापिंग सेंटर में लोगों को ग्राउंड फ्लोर पर दुकान खोलने और ऊपर फ्लोर को रेजिडेंशल यूनिट के रूप में इस्तेमाल करने के लिए अलॉट किया गया था, लेकिन दुकानदारों ने ऊपर रेजिडेंशल फ्लोर का भी कामर्शियल यूज करना शुरू कर दिया, जिसके कारण उन्हें 89,000 रुपए प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से कन्वर्जन चार्ज जमा करने के लिए कहा गया था, लेकिन दुकानदारों ने कन्वर्जन चार्ज का भुगतान नहीं किया। इन दुकानदारें पर करोड़ों का कन्वर्जन चार्ज बकाया है। इस मुद्दे पर डिफेंस कालोनी के दुकानदारों का कहना है कि हम यहां लंबे समय से व्यापार कर रहे हैं। एमसीडी को कार्रवाई से पहले नोटिस देना चाहिए था, ताकि व्यापारी भी अपना पक्ष रख पाते। व्यापारियों ने कार्रवाई को गलत बताते हुए कहा कि उनका कॉम्पलेक्स मिक्सलैंड यूज एरिया में है। चैंबर ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री के कन्वर्जनर ब्रजेश गोयल ने कहा कि एमसीडी की कार्रवाई पूरी तरह गलत है। सीलिंग के बावजूद डिफेंस कालोनी के दुकानदार कन्वर्जन चार्ज पर झुकने को तैयार नहीं हैं। दुकानदार अब एमसीडी से और मानिटरिंग कमेटी से पूछ रहे हैं कि 59 साल पहले जिन दुकानों को लैंड एंड डिवलपमेंट ऑफिस ने कामर्शियल तौर पर अलाट किया था, अब वे दुकानें शाप कम रेजिडेंशल कैसे हो गईं? उनका कहना है कि यह साफ किए बिना कोई भी दुकानदार कन्वर्जन चार्ज नहीं देगा। दुकानदारों का यह भी कहना है कि 89,000 रुपए वर्ग मीटर कन्वर्जन चार्ज कुछ मार्केट में ही लागू है, जिनमें सरोजनी नगर, खान मार्केट और ग्रीन पार्क एक्सटेंशन शामिल हैं। बाकी बाजारों में यह चार्ज लागू नहीं होता। मसला गंभीर है और इसमें केंद्र को हस्तक्षेप करना चाहिए। मानिटरिंग कमेटी की सक्रियता से सभी इलाकों में सीलिंग  को लेकर 2006-2008 जैसी अफरातफरी फिर पैदा हो सकती है। सरकार को चाहिए कि वह संशोधन बिल जल्द पास करवाए क्येंकि मौजूदा राहत की मियाद 31 दिसंबर तक खत्म हो रही है। सुप्रीम कोर्ट की मानिटरिंग कमेटी ने मंगलवार को तमाम स्टेकहोल्डरों के साथ मीटिंग करके तय किया है कि सीलिंग के मामले में दुकानदारों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने की बजाय उन्हें कन्वर्जन चार्ज जमा कराने का 31 मार्च तक समय दिया जाए। अगर लोकल शापिंग सेंटर के व्यापारी घटा हुआ कन्वर्जन चार्ज भी जमा नहीं कराते हैं तो उनके खिलाफ सीलिंग की कार्रवाई की जाए।    

-अनिल नरेन्द्र

शीशे की दीवार के पार से दीदार

कथित जासूसी के आरोप में करीब दो वर्ष से पाकिस्तान की जेल में बंद पूर्व भारतीय नौसैनिक कुलभूषण जाधव की अपनी मां और पत्नी से पाकिस्तानी विदेश विभाग के कार्यालय में जिस तरह से मुलाकात करवाई गई वह सिर्फ छलावे के अलावा कुछ और नहीं है। क्या आप इसे परिजनों की मुलाकात कहेंगे? पत्नी और मां किसी से मिलने जाएं और उनके बीच एक शीशे की दीवार हो- न स्पर्श, न आलिंगन, बस एक-दूसरे को देख पाना और स्पीकर के माध्यम से बात करना। कुलभूषण जाधव, उनकी मां और पत्नी के लिए यह मुलाकात एक बेहद भावनात्मक समय रहा होगा क्योंकि पता नहीं, फिर यह मौका कब आएगा, आएगा भी या नहीं? पहले तो पाकिस्तान इस मुलाकात के लिए राजी ही नहीं हो रहा था और अब इस मुलाकात के बाद वह मानवीय आधार और उदारता बरते जाने का नाटक कर रहा है। भय के माहौल में कराई गई इस मुलाकात में सुरक्षा, एहतियात के नाम पर परिवार की सांस्कृतिक और धार्मिक संवेदनाओं का अपमान भी किया गया। मंगलसूत्र, चूड़ी और बिंदी उतरवा ली गई और पहनावे में भी बदलाव किया गया। बार-बार अनुरोध के बावजूद जाधव की पत्नी का जूता मुलाकात के बाद वापस नहीं दिया गया। जाधव की पत्नी और मां मंगलवार को नई दिल्ली में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मिलीं, भारत ने कहा कि मुलाकात के बाद जो फीड बैक मिला है, उससे लगता है कि जाधव गंभीर तनाव में थे और वह दबाव के माहौल में बोल रहे थे। जो भी वह बोल रहे थे, उन्हें वैसा बोलने के लिए कहा गया था, जिससे पाकिस्तान में उनकी गतिविधियों से जुड़े झूठे आरोपें को साबित किया जा सके। उनके शरीर पर अत्याचार के कई निशान भी थे। वास्तविकता यह है कि अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और संधियों को धता बताते हुए पाकिस्तान ने अभी तक जाधव तक भारत को कूटनीतिक पहुंच नहीं दी है और भारत के दबाव के कारण ही वह जाधव की मां और पत्नी से मुलाकात करवाने को राजी हुआ। सारे कायदे-कानून को ताक पर रखकर पाकिस्तान ने जाधव को मौत की सजा सुना रखी है जिस पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने भारत के पक्ष में अपना अंतरिम फैसला सुनाते हुए अंतिम फैसले तक रोक लगा रखी है। कुलभूषण जाधव का मामला पहला ऐसा मामला नहीं है, जब पाकिस्तान ने किसी भारतीय नागरिक को पकड़कर जासूस घोषित कर fिदया और फिर फांसी की सजा सुना दी हो। इससे पहले सरबजीत का मामला तो कई साल तक चर्चा का विषय बना रहा था। एक ही सरबजीत पर पाकिस्तान में कई नाम से मुकदमे चलाए गए थे। खुद पाकिस्तान के कई मानवाधिकार कार्यकर्ता उसके पक्ष में खड़े हो गए थे। लेकिन अंतत रहस्यमय स्थितियों में उसकी जान ले ली गई। चमेल सिंह व किरणपाल सिंह नाम के दो भारतीयों को भी पाकिस्तान हाल ही में फांसी पर लटका चुका है। ऐसे भी कई लोग हैं, जो जासूसी के आरोप में पकड़े गए और फांसी से बच गए, पर न जाने कब से वहीं की जेलों में बंद हैं। यदि पाकिस्तान इस मुलाकात के जरिए दोनों देशों के रिश्तों में कुछ बेहतरी की उम्मीद कर रहा था, तो वह इसमें पूरी तरह से नाकाम हो गया है और अब भारत उसे अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय से लेकर तमाम दुनिया में घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहेगा। बस इतना संतोष जरूर है कि कुलभूषण जाधव जिंदा हैं।

Wednesday, 27 December 2017

महंगाई ने 15 माह का रिकार्ड तोड़ा

हम सरकार का ध्यान बढ़ती महंगाई की ओर आकर्षित करना चाहते हैं। महंगाई ने पिछले 15 माह का रिकार्ड तोड़ दिया है। खुदरा महंगाई नवम्बर माह में बढ़कर 4.88 प्रतिशत पर पहुंच गई जो 15 माह का सबसे उच्चतम स्तर है। पिछले साल अगस्त में महंगाई दर 5.05 प्रतिशत थी। नवम्बर 2016 में यह 3.63 प्रतिशत थी। प्रोटीन वाले अंडों के दाम पिछले साल नवम्बर की तुलना में 7.95 प्रतिशत बढ़े हैं। ईंधन में महंगाई नवम्बर में 7.92 प्रतिशत बढ़ी है, जो अक्तूबर में 6.36 प्रतिशत थी। सबसे ज्यादा असर सब्जियों पर हुआ। नवम्बर में सब्जियों की महंगाई 22.48 प्रतिशत की दर से बढ़ी जो अक्तूबर में 7.47 थी। हां दलहन की बात करें तो इसमें बहरहाल लगातार गिरावट आ रही है। पिछले साल नवम्बर की तुलना में दलहन में 25.53 प्रतिशत की गिरावट आई। एचडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्त्राr तुषार अरोड़ा ने कहा कि प्याज-टमाटर और अन्य सब्जियों की कीमतों में वृद्धि का अनुमान से ज्यादा असर पड़ा है। इससे पूरे वित्त वर्ष में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, माह के दौरान सालाना आधार पर प्याज के दाम 178.19 प्रतिशत बढ़े हैं। सीजन की अन्य सब्जियों की कीमतों में भी 59.80 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। अक्तूबर में इन सब्जियों के दाम 36.61 प्रतिशत बढ़े थे। प्रोटीन वाले उत्पादों मसलन अंडा, मांस और मछली की श्रेणी में मुद्रास्फीति 4.73 प्रतिशत रही। पिछले महीने यह 5.76 प्रतिशत थी। नवम्बर में खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति बढ़कर 6.06 प्रतिशत हो गई, जो अक्तूबर में 4.30 प्रतिशत थी। विनिर्मित वस्तुओं की मुद्रास्फीति 2.61 प्रतिशत पर लगभग स्थिर रही। पिछले महीने यह 2.62 प्रतिशत थी। इससे पहले पिछले सप्ताह जारी आंकड़ों के अनुसार नवम्बर में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति 4.88 प्रतिशत के 15 महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गई। उधर खनन और विनिर्माण क्षेत्र के कमजोर प्रदर्शन से अक्तूबर की औद्योगिक उत्पादन (आईआईपी) की वृद्धि दर घटकर 2.2 प्रतिशत आ गई है। यह तीन महीने का न्यूनतम स्तर है। पिछले साल अक्तूबर में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि 4.2 प्रतिशत थी। इस साल सितम्बर में यह 4.14 प्रतिशत थी। चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-अक्तूबर की सात माह की अवधि में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर महज 2.5 प्रतिशत रही। पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में औद्योगिक वृद्धि 5.5 प्रतिशत थी।

-अनिल नरेन्द्र

लालू को जेल होने पर उनकी पार्टी व विपक्ष पर क्या असर पड़ेगा?

चारा घोटाले के एक और मामले में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को दोषी करार दिए जाने के बाद उनके राजनीतिक सफर पर तो प्रश्नचिन्ह लगा ही है पर अदालत के इस फैसले का असर सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि केंद्र की राजनीति पर भी पड़ेगा। लालू के जेल जाने से जहां उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के भविष्य पर असर पड़ेगा। वहीं तमाम विपक्ष की धुरी बने लालू प्रसाद यादव की अनुपस्थिति में तथाकथित विपक्षी एकता पर भी असर पड़ेगा। बिहार में सत्ता से बाहर होने और तेजस्वी को आगे बढ़ाने के फैसले के बाद से ही राजद में आला नेताओं के बगावती सुर उठने लगे थे। हालांकि लालू के रहते ये नेता खुलकर सामने नहीं आ पाए। लालू के जेल जाने के बाद उनके हौंसले बुलंद हो सकते हैं और ये सीधे तेजस्वी तथा तेज प्रताप के नेतृत्व को चुनौती दे सकते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर लालू मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों को एक साथ लाने में लगे हुए थे। उन्होंने यूपी में बसपा और सपा-कांग्रेस को एक साथ लाकर महागठबंधन बनाने का प्रयास किया था बेशक वह इसमें ज्यादा सफलता नहीं पा सके। राजद के कुछ नेता सत्तारूढ़ जदयू में जा सकते हैं। राजद की सहयोगी कांग्रेस में भी उथल-पुथल मच सकती है। पार्टी के 15 से अधिक विधायकों के पहले से ही भाजपा-जदयू के सम्पर्क में होने की चर्चा है। लालू की गैर मौजूदगी और राजद के नए नेतृत्व के कम अनुभवी होने का फायदा नीतीश के नेतृत्व वाली जदयू और भाजपा उठाने की कोशिश करेगी। बता दें कि लालू की मुसीबतें अभी खत्म नहीं होंगी। दो केसों में फैसले आ चुके हैं। दोनों मामलों में लालू प्रसाद यादव दोषी करार दिए गए हैं। चार मुकदमे और चल रहे हैं। एक पटना में और तीन रांची में। चारा घोटाले की जांच अपने हाथ में लेने के बाद सीबीआई ने 1996 से  लेकर 1998 के बीच लालू प्रसाद यादव के खिलाफ एक के बाद एक कर छह मामले दर्ज किए थे। ये सभी मामले घोटाले और साजिश से जुड़े हैं। बता दें कि यह सातवीं बार है जब लालू जेल गए हैं। जेल जाने से पहले लालू ने कई ट्वीट कर फैसले को अपने खिलाफ भाजपा की साजिश बताया और कहा कि सामाजिक न्याय की लड़ाई जारी रहेगी। भाजपा को चुनौती देते हुए लालू ने कहा कि सुनो कान खोलकर, गुदड़ी के लाल को परेशान कर सकते हो, पराजित नहीं। सामंती ताकतों, जानता हूंöलालू तुम्हारी राहों का कांटा नहीं, आंखों की कील है, पर इतनी आसानी से उखाड़ नहीं पाओगे। हम जेल जाते रहेंगे पर झुकेंगे नहीं।

Tuesday, 26 December 2017

मैक्स अस्पताल का लाइसेंस किसने बहाल किया?

जिंदा नवजात को मृत घोषित करने के मामले में शालीमार बाग मैक्स अस्पताल फिर से खुल गया है। बुधवार को अपील प्राधिकरण वित्तीय आयुक्त ने अस्पताल का लाइसेंस रद्द किए जाने के दिल्ली सरकार के फैसले को पलट दिया। जब लाइसेंस बहाल ही करना था तो सरकार को यह ड्रामा करने की क्या जरूरत थी? भाजपा ने इसके पीछे सरकार और अस्पताल के बीच बड़ी डील होना बताया है। आप से बर्खास्त मंत्री कपिल मिश्रा ने इसे केजरीवाल की सोची-समझी साजिश बताया है। वहीं दिल्ली सरकार ने इस मामले को उपराज्यपाल के ऊपर डालने की बात कही है। इसे लेकर आम आदमी पार्टी ने दो बार प्रेस वार्ता बुलाई और सफाई देती रही। उधर उपराज्यपाल अनिल बैजल की ओर से पहले ही स्पष्ट कर दिया गया कि उनका इस मामले में कुछ लेनादेना नहीं है। कुछ लोग अपने निजी लाभ के उद्देश्य से इस तरह की बातें कर रहे हैं। गत आठ दिसम्बर को शालीमार बाग स्थित मैक्स अस्पताल का दिल्ली सरकार ने लाइसेंस रद्द किया था। जीवित बच्चे को मृत बताने और पैकेट में सील करके परिजनों को सौंपने के मामले में यह कार्रवाई की गई थी। उधर दिल्ली सरकार की आठ दिसम्बर को हुई कार्रवाई के बाद अस्पताल प्रशासन इस मामले को लेकर दिल्ली सरकार के वित्तीय आयुक्त के पास गया था। वित्तीय आयुक्त इस तरह के मामले में अपीलीय अथारिटी है। उसने पहली ही सुनवाई पर लाइसेंस रद्द किए जाने के सरकार के फैसले पर स्टे लगा दिया। स्टे लगने के बाद अस्पताल में सभी व्यवस्थाएं पहले की तरह बहाल हो गई हैं। दिल्ली सरकार ने अपीलीय प्राधिकरण के स्टे को कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया है। सरकार दिल्ली हाई कोर्ट में मामला लेकर जाएगी। यह दिलासा शुक्रवार को मृत बच्चों के परिजनों को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिया। उन्होंने यह भी कहा कि इस केस में सरकार के शीर्ष वकील काम कर रहे हैं। मृत बच्चों के दादा कैलाश सिंह ने बताया कि शुक्रवार को सुबह मुख्यमंत्री केजरीवाल ने उन्हें आवास पर बुलाया था। वहां मुलाकात में परिजनों से मुआवजे का एक फार्म भरवाया। साथ ही सरकार के बेहतर वकीलों को इस केस में लगाने और परिजनों की हर संभव मदद करने का आश्वासन भी दिया। बता दें कि लाइसेंस रद्द होने के फैसले पर रोक लगाने के बाद से ही परिजन मैक्स अस्पताल के बाहर बैठे हैं। उनकी मांग है कि इस मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

अध्यात्म के नाम पर यह अय्याशी के अड्डे

यह हमारे बाबाओं को क्या हो गया है? धर्म की आड़ में कुछ बाबा निर्दोष अनुयायियों का शोषण करने में लगे हुए हैं। अभी गुरमीत सिंह राम रहीम की अय्याशियों की दास्तान पुरानी भी नहीं पड़ी थी कि देश की राजधानी में एक और बाबा की काली करतूतों का पर्दाफाश हुआ है। रोहिणी के विजय विहार इलाके में आध्यात्मिक विश्वविद्यालय के नाम से आश्रम चलाने वाला वीरेंद्र देव दीक्षित खुद को कृष्ण बताता था। वह हमेशा महिला शिष्यों के बीच रहना पसंद करता था। वीरेंद्र ने 16 हजार महिलाओं के साथ संबंध बनाने का लक्ष्य रखा था। अध्यात्म की आड़ में वर्षों से चले आ रहे सेक्स रैकेट का खुलासा बेहद चौंकाने वाला है, जहां सैकड़ों लड़कियों और महिलाओं को बंधक बनाकर रखा गया था। हाई कोर्ट के निर्देश पर मंगलवार देर रात आश्रम की जांच करने पहुंची महिला आयोग व दिल्ली पुलिस की टीम को मिले वीडियो में यह बात सामने आई। कार्रवाई में कई लड़कियों को सुरक्षित निकाला गया और दो कर्मियों को हिरासत में लिया गया। संदिग्ध गतिविधियों और स्थानीय लोगों के विरोध तथा शिकायत के बावजूद दिल्ली में अब तक यह आश्रम बगैर रोक-टोक चलता रहा, तो कल्पना की जा सकती है कि देश के दूरस्थ इलाकों में क्या स्थिति होगी। सेक्स रैकेट का यह तंत्र आध्यात्मिक विश्वविद्यालय के नाम से चल रहा था जिसमें धार्मिक पुस्तकों की बजाय अश्लील किताबें व पत्र, दवा और सीरिंज मिले। धर्म की आड़ में महिलाओं के शोषण के किस्से बार-बार सामने आते हैं। इस मामले में यह भी साफ है कि ज्यादातर गरीब और अशिक्षित महिलाओं को आस्था के नाम पर बरगलाया गया, एकाधिक पुलिस वालों की बेटियां और अमेरिका में पीएचडी कर लौटी एक लड़की तक का इस आश्रम में फंस जाना धर्म से जुड़ी हमारी अधकचरी सोच का ही नतीजा है, जिसका गलत फायदा राम रहीम और वीरेंद्र देव दीक्षित जैसे लोग उठाते हैं। पुलिस टीम को मिले वीडियो से सामने आया कि वीरेंद्र खुद को कृष्ण बताता और गोपियां बनाने के लिए अनुयायी लड़कियों को संबंध बनाने के लिए आकर्षित करता। आश्रम में लड़कियों को पांच दिन तक एक कमरे में बंद रखा जाता था। इसके बाद बाबा का वीडियो दिखाकर उनका ब्रेन वाश किया जाता। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति जयहिंद ने बताया कि महिलाओं को नशे की दवा दी जाती थी। स्वाति ने महिलाओं से पूछा तो उन्होंने बताया कि वह दीक्षा ले रही हैं, लेकिन वहां कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं मिला। चार मंजिला आश्रम के अंदर बोर्ड पर लिखा थाöआपसे कोई पूछे कैसे हो तो कहना ठीक हैं और खुश हैं। पड़ोसियों ने कहाöरात में लड़कियां यहां से आती-जाती हैं। यहां देह व्यापार चलता है। उम्र ज्यादा होने के बाद महिलाओं को बाहर निकाल दिया जाता है। विभिन्न राज्यों की लड़कियां यहां रहती हैं। इनमें प्रमुख रूप से उड़ीसा, बंगाल, कर्नाटक, तमिलनाडु, यूपी और राजस्थान आदि हैं। पूरे मामले का खुलासा तब हुआ जब राजस्थान की महिला वीरेंद्र देव के आश्रम में अनुयायी बनकर रह चुकी थी। उसने अपनी चारों बेटियों को भक्ति के लिए छोड़ा था, जिसमें एक नाबालिग है। उसने मां को बताया कि बाबा ने उसके साथ दुष्कर्म किया। महिला और उसके पति ने बाबा पर दुष्कर्म का केस दर्ज कराया। बाद में पूरा मामला सामने आ गया। बाबा पर दुष्कर्म सहित कई धाराओं में 11 मामले दर्ज हैं। पुलिस इन सभी की जांच कर रही है। वीरेंद्र देव दीक्षित पर दिल्ली हाई कोर्ट ने शिकंजा कस दिया है। अदालत ने आश्रम की आठ अन्य शाखाओं की जांच का आदेश दिया है। कोर्ट ने सीबीआई को निर्देश दिया है कि आश्रम के संस्थापक वीरेंद्र देव दीक्षित को पकड़कर चार जनवरी तक अदालत में पेश करें। हाई कोर्ट के समक्ष बृहस्पतिवार को 168 फंसी महिलाओं व लड़कियों की सूची पेश की गई जो आश्रम में कथित रूप से बंधक हैं। हाई कोर्ट ने पूछाöकहां छिपा है बाबा वीरेंद्र दीक्षित? कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर की पीठ ने पूछा कि आश्रम के संस्थापक और आध्यात्मिक प्रमुख सच्चे हैं तो वह पेश क्यों नहीं हो रहे। वह कहां हैं? यह महज संयोग नहीं है कि 21वीं सदी के इस विकसित दौर में धर्म के नाम पर ठगने वाले लोगों की दुकानें भी उसी जोरशोर से चल रही हैं। हम आस्था और अध्यात्म की तो बात करते हैं, लेकिन इस पर चर्चा करने की आवश्यकता नहीं समझते कि देश की बड़ी आबादी आज भी धर्म के नाम पर ठगी का शिकार क्यों बन रही है? पिछले कुछ समय से इन बाबाओं की काली करतूतों का पर्दाफाश हो रहा है और यह अच्छी बात है कि भोलीभाली जनता को धर्म के नाम पर इस तरह गुमराह करके अपनी निजी अय्याशी का शिकार बनाने वाले इन ढोंगी बाबाओं का पर्दाफाश हो रहा है और उम्मीद की जाती है कि हमारी भोलीभाली जनता इनके शिकंजे में फंसने से बचेगी।

Sunday, 24 December 2017

नाबालिग छात्र पर बालिग की तरह केस

प्रद्युम्न हत्याकांड में जुवेनाइल जस्टिस (जेजे) बोर्ड ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 11वीं क्लास के आरोपी नाबालिग छात्र पर बालिग की तरह मुकदमा चलाने का जो आदेश दिया है वह निस्संदेह एक दूरगामी प्रभाव वाला फैसला है। इस फैसले को भारतीय अपराध न्याय प्रणाली के इतिहास में एक दूरगामी कदम के तौर पर देखा जाना चाहिए। यानी अपराध की गंभीरता को देखते हुए प्रद्युम्न की हत्या करने वाले नाबालिग आरोपी पर किसी बालिग की तरह मुकदमा चलाया जाएगा। निर्भया के साथ हुए सामूहिक बलात्कार में भी सर्वाधिक बर्बरता एक नाबालिग ने की थी। तब यौन हिंसा के खिलाफ कानून के साथ जुवेनाइल जस्टिस कानून को भी सख्त बनाया गया, जिसमें प्रावधान है कि जुवेनाइल जस्टिस कोर्ट चाहे तो नाबालिग के खिलाफ बालिग की तरह मुकदमा चलाने की अनुमति दे सकता है। किशोर न्याय बोर्ड ने सीबीआई की याचिका पर सुनवाई करते हुए जैसे ही यह फैसला सुनाया इसके पक्ष में और विपक्ष में बहस शुरू हो गई। एक पक्ष मानता है कि यह सही फैसला है, क्योंकि जिस तरह की हैवानियत पकड़े गए 11वीं के छात्र ने की थी, वह एक वयस्क अपराध का सदृश्य ही था। यह तर्क भी दिया जा सकता है कि अगर जघन्य अपराध में नाबालिग मानकर व्यवहार किया जाएगा तो इससे अपराध बढ़ेगा। अपराध करते समय उनके मन में यह भाव होगा कि उनके साथ नाबालिग समझकर व्यवहार होगा और साधारण सजा को बाल सुधार गृह में आराम से काट लिया जाएगा, निर्भया मामले में यही हुआ। एक अपराधी जिस पर सबसे ज्यादा हैवानियत का आरोप था उसे नाबालिग मानकर मुकदमा चला और उसे कठोर सजा नहीं दी गई। इसका फायदा बड़े अपराधी गैंग भी उठाते हैं और वह नाबालिग से अपराध करवाते हैं। उनको यह समझा देते हैं कि अगर तुम पकड़े गए तब भी तुमको बड़ी सजा नहीं हो सकती। हालांकि इसका दूसरा पक्ष भी है। वह यह कि अगर नाबालिग ने नासमझी में कोई अपराध कर दिया तो उसके साथ एक अभ्यस्त अपराधी की तरह व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए। उसे सुधरने का मौका मिलना चाहिए ताकि उसका भविष्य गैर-अपराधी का हो सके। अगर स्कूल में पेरेंट्स टीचर मीटिंग और परीक्षा टालने के लिए कोई छात्र किसी की हत्या कर दे, जैसा कि सीबीआई ने दावा किया है तो इसी मामले में अपराध की गंभीरता बताने के लिए काफी है। तात्पर्य यह कि इस फैसले को हर मामले के लिए नजीर की तरह इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। अब अदालतों को तय करना है कि नाबालिग बालिग की श्रेणी में आता है या नहीं?

-अनिल नरेन्द्र

एक लाख 76 हजार करोड़ का घोटाला जो कभी हुआ ही नहीं

अब तक 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले को देश का सबसे बड़ा घोटाला कहा जाता था, लेकिन सीबीआई की स्पेशल कोर्ट में यह एक रुपए का भी नहीं साबित हुआ। अदालत ने तो यहां तक कह दिया कि यह घोटाला है ही नहीं, सरकारी दस्तावेजों से निकली केवल एक अफवाह है। Šजी स्पेक्ट्रम के आवंटन से जुड़े मामलों में सीबीआई के विशेष जज ओपी सैनी ने सारे आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया। बेशक सीबीआई ने इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने की घोषणा की है। लेकिन कटु सत्य तो यही है कि वह और प्रवर्तन निदेशालय पिछले सात साल में Šजी स्पेक्ट्रम के आवंटन में हुई अनियमितताओं, भ्रष्टाचार और धन के लेनदेन के आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं जुटा सकी, नतीजतन विशेष जज ने पूर्व संचार मंत्री ए. राजा, द्रमुक सांसद कनिमोझी, पूर्व संचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा सहित तीन दूरसंचार कंपनियोंöस्वान, यूनीटेक और रिलायंस के अधिकारियों को आरोपमुक्त कर दिया। इस पूरे मामले ने यूपीए सरकार के कार्यकाल में तब भूचाल ला दिया था, जब तत्कालीन नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक विनोद राय ने अपनी रिपोर्ट में यह अंदेशा जताया था कि 2007-08 में Šजी स्पेक्ट्रम के लाइसेंसों का आवंटन 2001 की दरों पर किया गया जिससे सरकार को अनुमानित 1.76 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। हालांकि सीबीआई ने जो मामले दर्ज किए उनमें उसने 30 हजार करोड़ रुपए के नुकसान की बात की थी। डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए ने 2009 में फिर से जीत हासिल कर अपना दूसरा कार्यकाल यानी यूपीए-2 शुरू किया था। कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार का कामकाज सब ठीक चल रहा था, तभी 2जी घोटाले की गूंज ने न सिर्फ कांग्रेस, बल्कि पूरे देश की राजनीति की दशा और दिशा को हमेशा के लिए बदल दिया। ऐसे में जब गुरुवार को स्पेशल कोर्ट ने इसके आरोपियों को केस से बरी कर दिया तो उसके मायने का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आदेश आने के महज 30 मिनट के अंदर कांग्रेस की ओर से पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम, पूर्व टेलीकॉम मंत्री कपिल सिब्बल समेत पार्टी के प्रवक्ता आक्रामक होकर मीडिया के सामने आ गए। स्वाभाविक ही है कि Šजी स्पेक्ट्रम में आरोपियों के बरी होने से कांग्रेस उत्साहित है। पार्टी इस मामले को बड़ी जीत के रूप में प्रचारित भी करना चाहेगी। राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद उनकी पहली कार्यसमिति की बैठक में यह फैसला हुआ कि पूरे देश में यह संदेश दिया जाए कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के नाम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा ने पूरे देश में कांग्रेस को बिना वजह बदनाम किया। कांग्रेस Šजी स्पेक्ट्रम में एक लाख 76 हजार करोड़ रुपए के घोटाले का अनुमान लगाने वाले तत्कालीन सीएजी विनोद राय को खलनायक की तरह पेश करना चाहती है और देश को बताना चाहती है कि उन्होंने सीएजी की ड्राफ्ट रिपोर्ट लीक करके भाजपा के साथ हाथ मिला लिया था। इसी क्रम में पार्टी प्रधानमंत्री के सचिव नृपेन्द्र मिश्रा को भी नहीं छोड़ना चाहती जो 2जी स्पेक्ट्रम के वक्त ट्राई के प्रमुख थे और उनकी ही सिफारिश पर स्पेक्ट्रम का आवंटन किया गया था। 2जी स्पेक्ट्रम मामले में पूर्व मंत्री ए. राजा समेत सभी आरोपियों को बरी करते हुए स्पेशल जज ओपी सैनी ने कहा कि एक भी सबूत नहीं है जिससे इसमें कोई घोटाला नजर आए। जज महोदय ने कहाöपिछले सात वर्षों से वर्किंग डेज में, समर वोकेशन के दौरान भी मैं पूरे विश्वास के साथ सुबह 10 बजे से लेकर शाम पांच बजे तक ओपन कोर्ट में बैठा रहा और इंतजार करता रहा कि किसी के पास से कोई तो सबूत निकले। लेकिन कुछ भी निकलकर नहीं आया। इससे जाहिर होता है कि हर कोई अफवाह, गॉसिप और कल्पनाओं से बनी आम धारणा में बह रहा था। हालांकि जनता की सोच न्यायिक कार्यवाहियों में कोई महत्व नहीं रखती। उधर कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि 2जी मामले में भाजपा की पोल खुल गई। राज्यसभा में विपक्ष के उपनेता आनंद शर्मा ने कहा कि 2जी मामले के बाद इनाम के तौर पर पूर्व कैग चीफ विनोद राय को बीसीसीआई में महत्वपूर्ण पद देने के साथ-साथ बैंकों में सुधार के लिए बनी कमेटी की अध्यक्षता दी गई। वहीं गुलाम नबी आजाद ने कहा कि आज उस 2जी मामले में फैसला आया है जिसके कारण हम विपक्ष में आए और एनडीए सत्ता में आई। सीबीआई सूत्रों ने कहाöफैसले से निराशा हुई, लेकिन हमें पुख्ता विश्वास है कि हाई कोर्ट में अपनी बात साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत पेश करेंगे। पूरे केस में हमारे पास पांच ऐसे तथ्य हैं जिससे ऊपरी अदालत में केस का रुख मुड़ेगा। उधर केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि कांग्रेस फैसले को ईमानदारी का सर्टिफिकेट मान रही है लेकिन यह भ्रष्ट नीति थी। कांग्रेस इस फैसले को ईमानदारी का तमगा मान रही है जो सही नहीं है। 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पेक्ट्रम आवंटन के प्रत्येक मामले को मनमाना और अनुचित बताते हुए रद्द किया था। दूरसंचार मंत्री मनोज सिन्हा ने कहा कि आठ कंपनियों के रद्द हुए 122 दूरसंचार लाइसेंसों का भविष्य सीबीआई के अगले कदम पर निर्भर करेगा।

Saturday, 23 December 2017

पनामा पेपर्स में कार्रवाई शुरू

कुख्यात पनामा पेपर मामले में भारत के आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय ने कार्रवाई शुरू कर दी है। आयकर विभाग ने दिल्ली और एनसीआर में 25 से ज्यादा ठिकानों पर छापेमारी की। आयकर विभाग की टीम ने पटेल, खाद्य प्रसंस्करण, वित्तीय सेवा और टायर के कारोबार में शामिल तीन व्यापारिक समूहों पर छापेमारी में चार करोड़ कैश और ज्वैलरी अपने कब्जे में कर ली। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने हाल ही में कहा था कि पनामा पेपर्स मामले में 792 करोड़ रुपए की अघोषित सम्पत्ति का पता चला है और इसकी जांच तेजी से चल रही है। एक साल पहले वाशिंगटन स्थित इंटरनेशनल कंसोर्टियन ऑफ इंवेस्टीगेटिक जर्नलिस्ट ने पनामा पेपर्स का खुलासा किया था। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कारोबारी और पूर्व आईपीएल चेयरमैन चिरायु अमीन के नियंत्रण वाली कंपनी के 10.35 करोड़ रुपए के म्यूचुअल फंड को फेमा कानून के तहत जब्त किया है। यह कार्रवाई पनामा पेपर्स मामले में की गई है। पनामा पेपर्स मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने 46 और फर्मों को फेमा कानून के तहत नोटिस जारी किया है। पनामा पेपर्स में लगभग डेढ़ सौ मामलों को कार्रवाई योग्य मानते हुए ईडी अब तक संबंधित फर्मों को नोटिस जारी कर चुका है। पनामा पेपर्स मामले की जांच के लिए केंद्र सरकार ने ईडी समेत कई एजेंसियों को मिलाकर मल्टी एजेंसी ग्रुप का गठन किया है। इस मामले में अब तक सात रिपोर्ट सरकार को भेजी जा चुकी हैं। उल्लेखनीय है कि पिछले साल इंटरनेशनल कंसोर्टियन ऑफ इंवेस्टीगेटिव जर्नलिस्ट ने लगभग एक करोड़ 15 लाख गुप्त दस्तावेजों को सार्वजनिक किया था। इसके अनुसार पनामा स्थित मोसेक फोसेका फर्म ने कई देशों के नागरिकों को टैक्स बचाने में गैर कानूनी रूप से मदद की थी। इनमें भारत या भारतीय मूल के 426 लोगों अथवा फर्मों के नाम थे। उधर पड़ोसी पाकिस्तान में पनामा पेपर्स को लेकर सख्त कार्रवाई शुरू हो चुकी है। इन पेपर्स के कारण पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपने पद से हटना पड़ा। नवाज को इस मामले को लेकर पाक के राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो (एनएबी) के सामने पेश होना पड़ा। शरीफ अपनी बेटी मरियम शरीफ एवं दामाद मोहम्मद सफदर के साथ अदालत में पहुंचे। भारत अभी नोटिस ही जारी कर रहा है और पाकिस्तान में तो कार्रवाई भी शुरू हो चुकी है। यह कल्पना भारत में नहीं की जा सकती कि भ्रष्टाचार के आरोप में किसी दिग्गज को पद से हटना पड़े।

-अनिल नरेन्द्र

क्या बंद हो सकता है 2000 रुपए का नोट?

नोटबंदी का कितना घातक प्रभाव हुआ था यह जनता अभी भूली नहीं है और अब 2000 रुपए के नोट को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं। रिजर्व बैंक ने या तो बड़ी तादाद में 2000 रुपए के नोट को जारी करने से रोक दिया है या फिर इसकी छपाई बंद कर दी है। भारतीय स्टेट बैंक की इकोफ्लैश रिपोर्ट में बताया गया है कि लोकसभा में हाल में पेश किए गए आंकड़ों से यदि रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट में दिए गए आंकड़ों का मिलान किया जाए तो यह पता चलता है कि मार्च 2017 तक बैंकिंग तंत्र में जारी छोटी राशि वाले नोटों का कुल मूल्य 3501 अरब रुपए था। इस लिहाज से आठ दिसम्बर को अर्थव्यवस्था में उपलब्ध कुल मुद्रा में से छोटे नोटों का मूल्य हटाने के बाद उच्च मूल्य वर्ग के नोटों का कुल मूल्य 13,324 अरब रुपए के बराबर होना चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार लोकसभा में वित्त मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार आठ दिसम्बर की स्थिति के अनुसार रिजर्व बैंक ने 500 रुपए के 1695.7 करोड़ नोट छापे जबकि 2000 रुपए के 365.40 करोड़ नोट की छपाई की। दोनों मूल्य वर्ग के नोटों का कुल मूल्य 15,787 अरब रुपए बैठता है। एसबीआई समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष द्वारा लिखी इस रिपोर्ट के अनुसार इसका मतलब है कि उच्च मूल्य वर्ग के बाकी बचे 2,463 अरब रुपए के नोट रिजर्व बैंक ने छापे तो हैं लेकिन उन्हें बाजार में जारी नहीं किया। दिलचस्प बात यह है, इसके आधार पर यह माना जा सकता है कि 2463 अरब रुपए की मुद्रा छोटी राशि के नोटों में छापी गई हो। केंद्रीय बैंक ने इस बीच इतनी राशि के 50 और 200 रुपए के नए नोटों की छपाई की हो। रिपोर्ट के मुताबिक 2000 के नोट से लेनदेन में हो रही कठिनाई को देखते हुए ऐसा लगता है कि रिजर्व बैंक ने या तो 2000 के नोट की छपाई रोक दी है या इसकी छपाई उसने कम कर दी है। प्रचलन में उपलब्ध कुल मुद्रा में छोटी राशि के नोट का हिस्सा मूल्य लिहाज से 35 प्रतिशत तक पहुंच गया है। सरकार ने पिछले साल आठ नवम्बर को 500 और 1000 रुपए के नोटों को चलन से हटाने का फैसला किया। ये नोट तब चलन में जारी कुल मुद्रा का 86 से 87 प्रतिशत था। इससे नकदी की कमी हुई और बैंकों में चलन से हटाए गए नोटों को बदलने या जमा करने को लेकर लंबी कतारें देखी गईं। उसके बाद रिजर्व बैंक ने 2000 रुपए मूल्य के नए नोट के साथ 500 रुपए का भी नया नोट जारी किया था। उसके बाद रिजर्व बैंक ने 200 रुपए का भी नोट जारी किया।

Friday, 22 December 2017

गुजरात में भाजपा से ज्यादा नरेंद्र मोदी की जीत है

गुजरात चुनाव में एक वक्त ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस और भाजपा की काफी करीबी टक्कर है। कांग्रेस इस चुनावी जंग में काफी मजबूती से सामने आई और राहुल गांधी की ताबड़तोड़ कोशिशें रंग लाने लगीं। शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी यह आभास हो गया था कि बाजी हाथ से निकल सकती है। भाजपा ने हिमाचल प्रदेश में भी आसान जीत दर्ज की। इसके साथ ही भाजपा ने अपने शासन के दायरे में एक और राज्य भी जोड़ लिया। बेशक भाजपा ने हिमाचल और गुजरात में जीत का सिलसिला जारी रखा पर हमारा मानना है कि यह जीत पार्टी से ज्यादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की है। हिमाचल प्रदेश में भाजपा की जीत को लेकर किसी को भी शक नहीं था। वैसे भी हिमाचल प्रदेश का इतिहास रहा है कि यहां पांच सालों में सरकारें बदलती हैं। प्रदेश के पांच सालों का स्वाभाविक रूप से भाजपा पाले में जाना था, लेकिन गुजरात में भाजपा की जीत मायने रखती है। गुजरात में भाजपा के खिलाफ कई मुद्दे थे। 22 सालों की सत्ता विरोधी लहर, हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पाटीदारों का आंदोलन, जिग्नेश मेवाणी की अगुवाई में दलितों का आंदोलन, पिछड़ी जाति ठाकोर की नाराजगी थी जिसका नेतृत्व अल्पेश ठाकोर कर रहे थे। सूरत और गुजरात के कई अन्य शहरों में जीएसटी और नोटबंदी से नाराज व्यापारी वर्ग, गुजरात में नरेंद्र मोदी का नहीं होना भी भाजपा के खिलाफ लग रहा था। लेकिन सारी विपरीत परिस्थितियों को भाजपा ने किनारा करते हुए एक बार फिर से गुजरात में जीत हासिल कर ली। हालांकि 2012 में पार्टी को 115 सीटें मिली थीं और इस बार 99 पर ही सिमट गई। बेशक इस बार भाजपा के वोट शेयर में मामूली बढ़ोतरी हुई है। 2012 में भाजपा का वोट शेयर 48.30 प्रतिशत था और इस बार 49.1 प्रतिशत है। भाजपा के पक्ष में आखिर कौन से कारक थे जिसमें उसे जीत मिली? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आखिर दो हफ्तों में काफी आक्रामक चुनाव प्रचार किया। जिन मतदाताओं ने कांग्रेस के पक्ष में वोट करने का मन शुरुआत में ही बना लिया था उसकी तुलना में बड़ी संख्या में मतदाताओं ने मतदान के ठीक पहले मोदी के पक्ष में वोट करने का फैसला किया। मोदी के कैंपेन के बाद भाजपा के पक्ष में मतदान का रुख बड़े स्तर पर शिफ्ट हुआ। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि गुजरात में करीब 35 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान के कुछ दिन पहले अपना मन बनाया। शुरुआत के कुछ हफ्तों में कांग्रेस ने आक्रामक चुनावी अभियान चलाया था। कांग्रेस के इस कैंपेन के कारण भाजपा बैकफुट पर नजर आ रही थी। लेकिन जब नरेंद्र मोदी ने भी आक्रामक कैंपेन शुरू किया तो कांग्रेस के चुनावी अभियान पर भारी पड़ने लगा। मणिशंकर अय्यर की टिप्पणी के बाद मोदी के चुनावी कैंपेन को और गति मिल गई। अय्यर की नीच वाली टिप्पणी के बाद भाजपा पूरी तरह से हमलावर हो गई थी। मोदी ने मणिशंकर अय्यर के बयान को गुजराती गौरव और पहचान से जोड़ दिया। इसके बाद कांग्रेस चुनावी अभियान में भाजपा के मुकाबले बैकफुट पर आई और उसने जो भाजपा के खिलाफ माहौल बनाया था उसे भारी धक्का लगा। कांग्रेस ने हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी, अल्पेश ठाकोर और छोटू वसाबा जैसे विभिन्न समुदाय के नेताओं के साथ गठबंधन की कोशिश की जिसके परिणामस्वरूप पिछले चुनावों के विपरीत इन समुदायों के कुछ वोट कांग्रेस को अधिक मिले। पाटीदारों के अधिकतर वोट भाजपा को मिले। हालांकि यह बदलाव कांग्रेस को जीत का स्वाद नहीं चखा पाया। कांग्रेस को आशा थी कि पाटीदारों के वोट उसके पक्ष में जाएंगे, लेकिन चुनावों के बाद हुए सर्वेक्षणों से पता चला कि पाटीदारों के 40 प्रतिशत से भी कम वोट कांग्रेस को मिले जबकि भाजपा 60 प्रतिशत पाटीदारों की वोट पाने में सफल रही। जिग्नेश मेवाणी के साथ गठबंधन भी कांग्रेस के लिए काम नहीं कर सका। 47 प्रतिशत दलितों के वोट कांग्रेस को मिले जबकि भाजपा 45 प्रतिशत दलित वोट पाने में सफल रही। इसी तरह ओबीसी वोट भी कांग्रेस और भाजपा के बीच बंट गया। पाटीदारों के गए वोटों की भरपायी भाजपा ने आदिवासी वोटों से की। 52 प्रतिशत आदिवासी वोट भाजपा को गए। वहीं केवल 48 प्रतिशत आदिवासियों के वोट कांग्रेस को गए। वैसे तो भाजपा को गुजरात में एक और चुनाव जीतने के लिए और कांग्रेस से हिमाचल छीनने के लिए खुश होना चाहिए लेकिन इन जीतों का यह मतलब नहीं है कि गुजरात में सत्ताधारी पार्टी के भीतर सब ठीक चल रहा है। कुल मिलाकर दोनों ही राज्यों में वोटरों की एक बड़ी संख्या है जो सरकार की नोटबंदी और जीएसटी जैसी नीतियों से असंतुष्ट है। किसान सरकार से खफा हैं क्योंकि वह उनकी मुश्किलों का हल करने के लिए जरूरी कोशिश नहीं कर रही। जाहिर है कि इन सबके बावजूद एक बड़ी आबादी ने कांग्रेस को वोट नहीं दिया। विपरीत माहौल के बावजूद अगर गुजरात में भाजपा जीती तो उसका सारा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है। उनकी ताबड़तोड़ मेहनत रंग लाई।

-अनिल नरेन्द्र

Thursday, 21 December 2017

पाकिस्तान की हेट स्टोरी की जमीनी हकीकत

पाकिस्तान के साथ हेट स्टोरी की हकीकत आखिर क्या है? पाकिस्तान से बातचीत का रास्ता बंद है। आए दिन सीमा पर ताबड़तोड़ फायरिंग हो रही है। सीमा पर इस लड़ाई में भारत के 200 बहादुर जवान पाकिस्तान के हाथों इस साल अब तक मारे जा चुके हैं। गृह मंत्रालय के अनुसार पाकिस्तान ने इस साल 750 से अधिक बार संघर्षविराम तोड़ा है। पाकिस्तान की मानें तो भारतीय सेना ने जवाब में 1300 बार फायरिंग की है। दोनों ओर से मौतों के आंकड़े करीब 150-200 बताए गए हैं। एक साल के भीतर सीमा सुरक्षा बल ने पाकिस्तानियों को 199 विरोध पत्र भेजे हैं। जवाब में पाकिस्तानी रेंजर्स ने 215 खत थमा कर अपना विरोध जता दिया। घुसपैठ की खबरें आना बंद नहीं हो रही है। यहां तक कि हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आरोप लगा चुके हैं कि पाकिस्तान गुजरात चुनाव में हस्तक्षेप कर रहा है। इस पर भाजपा-कांग्रेस में आरोपों की जंग तक हो गई। लेकिन पाकिस्तान से भारत के रिश्तों का दूसरा पहलू भी है। कारोबार, लोगों के बीच संबंध और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के पैमानों पर पिछले तीन वर्षों में मोदी सरकार में कोई खास फर्क नहीं आया है। बल्कि मोदी सरकार ने तो पाकिस्तान से भारत आने वाले नागरिकों को सहूलियत देने के लिए भी महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इतनी कटुता के बावजूद मोदी सरकार ने पाकिस्तान के साथ आर्थिक कारोबार में कोई कमी नहीं की है। दोनों देशों के बीच कम्पोजिट डायलॉग रुका हुआ है, लेकिन ज्वाइंट बिजनेस फोरम की बैठकें जारी हैं, वैसे ही जैसे मनमोहन सिंह सरकार में होती थीं। इतना ही नहीं, भारत ने उड़ी सैन्य शिविर पर आतंकी हमले के बाद यह घोषणा की थी कि पाकिस्तान को दिया गया मोस्ट वांटेड नेशन के आर्थिक दर्जे पर नए सिरे से विचार करेगी। यूपीए सरकार के अंतिम वर्ष 2013-14 में भारत ने पाकिस्तान से 42 करोड़ डॉलर से अधिक का निर्यात किया था, जो मोदी सरकार के आने के बाद वर्ष 2015-16 में 50 करोड़ डॉलर के आंकड़े को छू गया। इस साल अप्रैल से नवम्बर तक के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान ने 33 करोड़ डॉलर का भारत को निर्यात किया और अभी दिसम्बर के आंकड़े आने बाकी हैं। मनमोहन सिंह सरकार के आखिरी वर्ष 2013-14 में दोनों देशों का कुल कारोबार 2.7 अरब डॉलर था जो मामूली कमी के साथ 2015-16 में 2.612 अरब डॉलर पर टिका है। आज भी भारत ने पाकिस्तान को मोस्ट फेवरेट नेशन का स्टेटस दे रखा है। कहा जा सकता है कि आतंकवाद प्रायोजित करना और उसी देश से तिजारत जारी रखना अलग-अलग है। पर पाकिस्तान अभी भी आतंकवाद को सरकारी नीति के तहत मानता है। क्या मोस्ट फेवरेट नेशन स्टेटस पर पुनर्विचार नहीं होना चाहिए?

-अनिल नरेन्द्र

99 का फेर...(2)

गुजरात चुनाव के दौरान विभिन्न मंदिरों में जाकर दर्शन करने के कारण कई बार सुर्खियों में आए कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल गांधी के बारे में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने रोचक दावा किया है। हरीश रावत के मुताबिक सोमनाथ मंदिर के दर्शन करने पर बाबा की कांग्रेस पर बड़ी मेहरबानी हुई और कांग्रेस सोमनाथ क्षेत्र की चार सीटों पर विजयी रही। कांग्रेस भले ही गुजरात में 22 सालों से सत्ता पर काबिज भाजपा को पराजित न कर पाई हो, लेकिन कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी ने गुजरात में स्थानीय मुद्दे और विकास का मसला कुछ यूं उठाया कि गुजरात में कांग्रेस हारकर भी नैतिक रूप से जीत गई। जिस तरह से राहुल गांधी गुजरात में लोगों का भरोसा जीतने में कामयाब रहे, उसका फायदा आने वाले समय में विपक्षी एकता को बनाए रखने और मोदी को चुनौती देने में कर सकते हैं। विपक्ष के एक सीनियर नेता का कहना था कि गुजरात चुनाव ने राहुल को स्थापित नेता बना दिया और विपक्ष को चेहरा मिल गया है। नोटा न होता तो फायदे में रहती कांग्रेस। गोधरा में भाजपा के राउतजी ने 258 वोट से कांग्रेस के राजेंद्र सिंह परमार को हराया। इस सीट पर 3050 वोट नोटा को मिले। फोलका में भाजपा के भूपेंद्र सिंह ने कांग्रेस के अश्विन भाई राठौड़ को 327 वोट से हराया, जबकि नोटा को ही मिले 2347 वोट। बो टांड में भाजपा से कांग्रेस यह सीट 906 वोट से हारी। यहां नोटा को 1334 वोट मिले। इसी तरह कम से कम चार और सीटों उमरेठ, डांग, देवदार और कपराड़ा में नोटा ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया। उधार के नेताओं के भरोसे गुजरात की चुनावी जंग जीतने निकली कांग्रेस के हाथ सत्ता की बागडोर तो नहीं लगी, लेकिन कांग्रेस के कंधे पर पांव रखने वाले इन नेताओं की राजनीति जरूर चमक गई। कांग्रेस को सहारा देकर खड़ा करने वाले अल्पेश और जिग्नेश ने खुद तो चुनाव जीत लिया पर अन्य सीटों पर कांग्रेस को कोई फायदा नहीं पहुंचाया तो क्या गुजरात विधानसभा चुनाव परिणाम ने ईवीएम विवाद को पूरी तरह खत्म कर दिया है। ईवीएम पर उठे सवालों पर नतीजे तो यही संकेत देते हैं। चुनाव आयोग ने इस बार पहली बार गुजरात में सभी 182 सीटों पर वीवीपीएटी का इस्तेमाल किया था, जिसके तहत हर वोटर को वोट डालने के बाद पर्ची मिली, विपक्षी लगातार ईवीएम की प्रमाणिकता पर सवाल उठा रहा है और चुनाव आयोग द्वारा बैलट पेपर से चुनाव करवाने की मांग पर अड़ा हुआ है। गुजरात चुनाव परिणाम के बाद यह विवाद खत्म हो जाना चाहिए। गुजरात चुनाव इस बार कई मायनों में अहम था। यह किसी एक राज्य का साधारण विधानसभा चुनाव नहीं था बल्कि इस बार बहुत कुछ दाव पर था। कांग्रेस इस बात से संतोष कर सकती है कि लोकसभा चुनाव 2014 के मुकाबले इस बार भाजपा का वोट प्रतिशत 10 फीसदी से कम करने में सफल रही तो भाजपा इस बात पर संतोष कर सकती है कि एंटी इंकमबेंसी के बावजूद वह 2012 से अधिक वोट प्रतिशत पाने में सफल रही। जिस कांटे के मुकाबले में भाजपा ने गुजरात जीत हासिल की उससे वहां की राजनीति हमेशा के लिए बदल जाएगी। सालों बाद राज्य का चुनाव धार्मिक ध्रुवीकरण से हटकर जातिगत समीकरण में बदल गया। साथ ही भले ही नतीजों के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह इस चुनाव को कांटे की टक्कर मानने से इंकार कर रहे हों लेकिन भाजपा के लिए जीत के साथ ही ये चुनाव एक चेतावनी भी है। इस रिजल्ट ने भाजपा को यह संदेश भी दिया है कि गुजरात के देहाती इलाकों में अपनी पैठ मजबूत करना उसके लिए बड़ी चुनौती है। जिस तरह कांग्रेस ने इस बार प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के गृह क्षेत्र में घुसकर अपना प्रदर्शन सुधारा है उससे यह साफ है कि अगर भाजपा गुजरात में जीती है तो वह सूरत 16 में से 15 सीट, वड़ोदरा 10 में से 9 सीट, राजकोट 8 में से 6 सीट की वजह से। इनका टोटल बनता है 55 सीटों में से 46 भाजपा जीती। अगर हम इन बड़े शहरों को निकाल दें तो शेष बची 127 सीटें। इनमें भाजपा सिर्फ 53 सीटें ही जीत पाई जबकि कांग्रेस 71 सीटों पर विजयी रही। लब्बोलुआब यह है कि सूरत, वड़ोदरा व राजकोट ने भाजपा की लाज बचाई। ग्रामीण क्षेत्रों में नोटबंदी और जीएसटी का बुरा प्रभाव साफ नजर आया है। भाजपा के लिए चिन्ता यह होनी चाहिए कि कांग्रेस ने जिस तरह से गुजरात में ठीक-ठाक प्रदर्शन किया है, उससे राज्य में उसके नेताओं के हौसले बुलंद हैं। ऐसी स्थिति में भाजपा को 2019 के लिए फौरन तैयारी शुरू करते हुए नाराज समुदायों के लिए राहत का इंतजाम करना होगा। (समाप्त)

Wednesday, 20 December 2017

पंजाब निकाय चुनाव में कांग्रेस की बम्पर जीत

राहुल गांधी के अध्यक्ष पद संभालने के बाद कांग्रेस के लिए पहली खुशखबरी पंजाब नगर निकाय चुनावों में बम्पर जीत के रूप में सामने आई है। पंजाब में रविवार को तीन नगर निगमों और 32 नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों के लिए मतदान हुआ। इस चुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी ने भारी जीत दर्ज की है। पंजाब विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल आम आदमी पार्टी का सफाया हो गया है। वहीं अकाली-भाजपा गठबंधन खाता खोलने में सफल रहे। जालंधर, अमृतसर और पटियाला नगर निगम सहित नगर काउंसिल में भी कांग्रेस ने एक दशक बाद वापसी की। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि रिजल्ट बहुत अच्छा आया है। इससे बेहतर परिणाम हो ही नहीं सकता। हमने क्लीन स्वीप किया है। स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा कि पंजाब ने राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनने पर जीत का तोहफा दिया है। जालंधर में सभी 80 सीटों के परिणाम घोषित कर दिए गए हैं। कांग्रेस ने 66, भाजपा ने आठ, शिअद ने चार व आजाद उम्मीदवारों ने दो सीट पर जीत दर्ज की। आम आदमी पार्टी यहां खाता भी नहीं खोल पाई। पटियाला में 60 सीटों में से घोषित सभी 58 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की, जबकि अमृतसर में 85 परिणामों (जो घोषित हुए हैं) में से 69 पर कांग्रेसभाजपा+शिअद 12 सीटें व चार सीटों पर आजाद उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि इस जीत ने कांग्रेस की नीतियों पर मोहर लगा दी है। उन्होंने विरोधियों के घटिया प्रचार को करारी हार बताया। उन्होंने कहा कि यह चुनाव राज्य सरकार की ओर से पिछले नौ महीने में लिए गए फैसलों का एक टेस्ट था। कांग्रेस पार्टी ने इसे पास कर लिया है। जनता ने सरकार की नीतियों पर मोहर लगाने का काम किया है। मुख्यमंत्री ने चुनाव के दौरान किसी तरह की हिंसा से इंकार किया है। पंजाब में कांग्रेस की सरकार है और प्रदेश में अकाली-भाजपा गठबंधन बुरी तरह लड़खड़ा गया है। विधानसभा में गठबंधन की हार का जो सिलसिला शुरू हुआ था वह आगे बढ़ गया है। भाजपा को पंजाब के बारे में गंभीरता से विचार करना होगा। उन्हें अकाली दल से गठबंधन करके सिर्फ नुकसान ही हुआ है। वहीं राहुल गांधी की व्यक्तिगत स्थिति मजबूत हुई है।

-अनिल नरेन्द्र

99 का फेर...(1)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की इज्जत का सवाल बने गुजरात चुनाव में भाजपा ने अंतत जीत हासिल कर ही ली। जब मतगणना शुरू हुई तो पहले रुझानों में एक बार कांग्रेस की ज्यादा सीटें आने की संभावना बन गई थी। पर जैसे-जैसे मतगणना होती रही भाजपा की सीटें बढ़ती गईं। तमाम बयानबाजियों, आशंकाओं और चढ़ते-उतरते आक्रामक प्रचार का दंगल बने गुजरात ने एक बार फिर कांग्रेस को सत्ता का स्वाद बेशक चखने से रोक दिया हो पर कांग्रेस के लिए खुशी की बात यह रही कि उसने अपने युवा अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में भाजपा को कड़ी टक्कर दी। कांग्रेस को 77 सीटों पर सफलता मिली और भाजपा को बहुमत का जादुई आंकड़ा छूने के बाद 99 तक पहुंचने में पसीने छूट गए। करीब 22 साल के शासन के बाद भाजपा ने गुजरात में लगातार छठी बार जीत का परचम लहरा दिया। पर यहां यह बताना भी जरूरी है कि अकेले राहुल गांधी का मुकाबला देश के प्रधानमंत्री, उनकी कैबिनेट के मंत्रियों, आरएसएस, राज्य सरकार और प्रशासन से था और ऐसी परिस्थितियों में राहुल ने डटकर टक्कर दी और कांग्रेस की सीटों की संख्या 61 से बढ़ाकर 77 कर दी। इस परिणाम से राहुल गांधी के नेतृत्व में एक विश्वास पैदा होगा और बार-बार हार का सिलसिला थमता नजर आ रहा है। भाजपा अगर जीती है तो वह सिर्फ प्रधानमंत्री की ताबड़तोड़ रैलियों, रोड शो, गुजरात की अस्मिता का हवाला देने से मिली। भाजपा बेशक अपनी जीत के डंके बजा रही हो पर मोदी के गांव में ही नहीं चला मोदी का जादू। पूरे गुजरात में मोदी का जलवा कायम रहा, लेकिन उनके गृह नगर की ऊंझा विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने बाजी मार ली। गुजरात में भाजपा, कांग्रेस के बाद तीसरे नम्बर पर नोटा (इनमें से कोई नहीं) रहा। 1.8 प्रतिशत लोगों ने इसे चुना। आप ने जिन 27 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, वहां नोटा को आप उम्मीदवारों से ज्यादा वोट मिले। कुल 5.51 लाख लोगों का वोट नोटा को गया, जो बसपा, एनसीपी को मिले वोटों से भी ज्यादा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुजरात और हिमाचल के चुनावों में हार स्वीकार करते हुए कहा कि वह इन नतीजों से संतुष्ट हैं, लेकिन निराश नहीं। उन्होंने कार्यकर्ताओं की हौसला अफजाई की और कहा कि आपने गुस्से के खिलाफ सम्मान की लड़ाई लड़ी। आपने दिखाया है कि कांग्रेस की सबसे बड़ी ताकत शालीनता और साहस है। वही पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा की वापसी को ईवीएम की जीत बताया है। उन्होंने कहा कि जब एटीएम हैक हो सकता है तो ईवीएम क्यों नहीं? भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने गुजरात में 150 सीटों का टारगेट रखा था, लेकिन 99 सीटें ही मिलीं। शाह ने कहा कि कांग्रेस के जातिवाद प्रचार के कारण पार्टी लक्ष्य को नहीं भेद सकी। उनसे पूछा गया कि गुजरात में भाजपा उनके लक्ष्य से इतना पीछे क्यों रह गई तो उन्होंने कहा कि कांग्रेस प्रचार को निचले स्तर पर ले गई और जाति में झांकने की कोशिश की। इससे कुछ सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा। शाह ने इसे वंशवाद, जातिवाद और तुष्टिकरण पर विकासवाद की जीत बताया। भाजपा देश के 29 में से 19 राज्यों में सरकार चला रही है। इससे पहले कभी भी किसी पार्टी ने एक साथ इतने राज्यों में सरकार नहीं बनाई थी। 24 साल पहले कांग्रेस की 18 राज्यों में सरकार थी। दलित नेता जिग्नेश मेवाणी जो कांग्रेस के सपोर्ट से जीते ने कहाöआप बात करते थे 150 सीटों की, पर मिलीं आपको 99। ये तो एक शुरुआत है। बदलाव की पूरी आंधी आने वाली है। वडगांव की जनता ने वडनगर वाले को जवाब दे दिया। दो-चार दिन में वडगांव से वडनगर का रोड शो और सफाई कर्मियों का आंदोलन प्लान किया जाएगा। गुजरात में पाटीदार आंदोलन का गढ़ माने जाने वाले मेहसाणा से डिप्टी सीएम नितिन पटेल जीत गए। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने सूरत में बड़ी रैली की थी जिसमें लाखों ने भाग लिया था। दूसरे पाटीदार नेताओं का भी फोकस सूरत पर था, पर वहां 16 में से 15 सीटें भाजपा को मिलीं। इसका मतलब है कि पाटीदारों में भाजपा की पकड़ अब भी मजबूत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत को असाधारण एवं अभूतपूर्व बताते हुए कहा कि वर्ष 1989 से लगातार 12 चुनाव में विकास के मुद्दे पर जीत एक ऐतिहासिक सच्चाई है और गुजरात की जनता ने इस पर मुहर लगाई है। कांग्रेस का प्रचार जोरों पर था तभी मणिशंकर अय्यर का विवादास्पद बयान आया। नेताओं के बिगड़े बोल से पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ। हार्दिक, अल्पेश और जिग्नेश पर ज्यादा भरोसा करना भी घातक रहा। कांग्रेस पार्टी का प्रदेश में कमजोर संगठन जमीन पर कमजोर रहा। चुनाव में नोटबंदी-जीएसटी का मुद्दा भी नजर आया। तभी तो 1.8 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया। यह सभी भाजपा के समर्थक थे पर नोटबंदी और जीएसटी से इतने नाराज थे कि समर्थक होते हुए भी उन्होंने पार्टी को वोट देना जरूरी नहीं समझा और प्रोटेस्ट के रूप में नोटा बटन दबाया। (क्रमश)

Tuesday, 19 December 2017

अमरनाथ गुफा में मंत्रोच्चारण पर प्रतिबंध नहीं

हिमालय के ऊंचे पर्वतों की कठिन यात्राओं के कष्ट बहुत सारे होते हैं। बाबा अमरनाथ की यात्रा ऐसी ही कठिन यात्रा है। बर्फीले तूफान, वायु का कम दबाव और सबसे बड़ी बात है ऑक्सीजन की मात्रा में कमी किसी भी शिवभक्त के लिए कठिन चुनौती होती है। हर शिवभक्त को तब हैरानी हुई जब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एनजीटी ने अपने फैसले में कह दिया कि अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले तार्थयात्रियों को जयकारा नहीं लगाना चाहिए या मंत्रोच्चारण नहीं करना चाहिए। इससे पता नहीं कैसे यह संदेश गया कि एनजीटी ने पूरे यात्रा पथ को शांत क्षेत्र घोषित कर दिया है। जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि आदेश में सिर्फ यह कहा गया है कि कोई भी श्रद्धालु या दर्शनार्थी महाशिवलिंग के सामने  जब पहुंचे तो वहां शांति बनाए रखे। महाशिवलिंग की प्राकृतिक अवस्था और पवित्रता को ध्वनि, गरमाहट, तरणों और अन्य चीजों से कोई नुकसान न पहुंचे इसलिए यह आदेश दिया गया है। पीठ ने कहा कि अंतिम सीढ़ी से बाबा बर्फानी की गुफा के प्रवेश द्वार के बीच की दूरी बमुश्किल 30 कदम है। कुछ एहतियातन रोक इसी सीढ़ी के  बाद है। इस सीढ़ी से पहले या नीचे किसी तरह का प्रतिबंध नहीं है। अमरनाथ दर्शन के दौरान मंत्रोच्चारण पर एनजीटी के रोक के फैसले के बाद इस पर प्रतिक्रिया होनी स्वाभाविक ही थी। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी कहा है कि वह नहीं समझ पा रहे हैं कि जयकारों से पर्यावरण को क्षति कैसे पहुंचेगी? भाजपा सांसद जुगल किशोर शर्मा ने कहा कि यह फैसला हमें स्वीकार नहीं है। हिन्दुओं की आस्था पर ठेस पहुंचाना गलत है। विश्व हिन्दू परिषद के प्रांत सह-मंत्री अजय मिन्हास ने सवाल किया कि क्या प्रदूषण के लिए सिर्फ हिन्दू ही जिम्मेदार हैं। एनजीटी का फैसला हिन्दुओं की आस्था के साथ खिलवाड़ है। बजरंग दल के प्रदेश प्रधान नवीन सूदन ने कहा कि एनजीटी सिर्फ हिन्दू समाज के खिलाफ फैसले दे रही है। चौतरफा विरोध के कारण एनजीटी ने स्पष्ट किया कि उसने गुफा के अंदर मंत्रोच्चारण और भजन गाने पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है। श्रद्धालुओं को शिवलिंग के समक्ष शांति बनाए रखना चाहिए। एनजीटी ने अच्छा किया कि यह स्पष्ट कर दिया कि उसने अमरनाथ में पूरे इलाके को ध्वनि निषेध घोषित नहीं किया है, न ही ऐसी कोई मंशा है। जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि पवित्र गुफा की तरफ जाने वाली मुख्य सीढ़ियों पर प्रतिबंध लागू नहीं किया गया है। ओउम् नम शिवाय।

-अनिल नरेन्द्र

आधार की अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम फैसला

जनसामान्य की सुविधाओं को आधार से जोड़ने का सुप्रीम कोर्ट में जमकर विरोध हुआ। याचियों ने यहां तक कहा कि आधार को बैंक खातों, मोबाइल फोन तथा अन्य योजनाओं से जोड़ने का मकसद हर आदमी की प्राइवेसी प्रभावित करना और जासूसी करना है। सरकार का यह कदम अधिनायकवाद की ओर ले जाएगा। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस कुमार सीकरी, अजय खानविलकर, धनंजय चन्द्रचूड और अशोक भूषण की संविधान पीठ के समक्ष याचिकाओं की दलीलों के सामने केंद्र सरकार बैकफुट पर नजर आई। आधार एक्ट का हवाला देकर अदालत को बताया गया कि इसमें कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि यह अनिवार्य है। इसे स्वैच्छिक बताया गया है। फिर भी केंद्र सरकार ने 139 अधिसूचनाएं जारी करके इसे लाजिमी कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का सरकार खुलेआम उल्लंघन कर रही है। केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने संविधान पीठ को सूचित किया कि सरकार विभिन्न सेवाओं और कल्याण उपायों का लाभ प्राप्त करने के लिए उसे आधार से जोड़ने की अनिवार्यता की समय सीमा अगले साल मार्च तक बढ़ाने के लिए तैयार है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि नया बैंक खाता खोलने के लिए आधार की अनिवार्यता बनी रहनी चाहिए। सरकार ने बैंक खातों और चुनिन्दा वित्तीय लेनदेन के लिए आधार और पैन की जानकारी देने की अनिवार्यता की अवधि 31 मार्च 2018 तक बढ़ाने संबंधी अधिसूचना बुधवार को जारी कर दी। पुराने बैंक खाताधारकों को 31 मार्च 2018 तक खाते से आधार नम्बर को लिंक कराना होगा। पीपीएफ खाता, बीमा पॉलिसी, म्यूचुअल फंड खाते इत्यादि 31 मार्च 2018 तक लिंक करा सकेंगे। सीजेआई दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय संविधान खंडपीठ ने शुक्रवार को अपने अंतरिम आदेश में आधार को मोबाइल सेवाओं से जोड़ने के संबंध में अपने पूर्व आदेश में भी सुधार किया और कहा कि छह फरवरी की समय सीमा को बढ़ाकर 31 मार्च 2018 किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक पीठ आधार योजना को चुनौती देने वाली याचिका पर 17 जनवरी से सुनवाई करेगी। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा था कि संविधान के तहत निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। आधार की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यह निजता के अधिकारों का उल्लंघन करता है। शीर्ष न्यायालय में कई याचिकाकर्ताओं ने आधार को बैंक खातों और मोबाइल नम्बर से जोड़ने को गैर कानूनी तथा असंवैधानिक बताया है।

Sunday, 17 December 2017

माननीयों के केस निपटाने के लिए विशेष अदालतें

सांसदों-विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों (आपराधिक) के निपटारे के लिए केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि इन मामलों को निपटाने के लिए 12 विशेष अदालतें गठित की जाएंगी। हालांकि सरकार ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ इन लंबित मामलों की जानकारी एकत्रित करने के लिए और समय की मांग भी की है। सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों-विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों के निपटारे के लिए केंद्र को विशेष अदालतें गठित करने की योजना पेश करने के लिए कहा था। यह अच्छा हुआ कि पहले दागी नेताओं के मामलों की सुनवाई की अलग से व्यवस्था करने के सुझाव से असहमत सुप्रीम कोर्ट अब यह महसूस कर रहा है कि राजनीति के अपराधीकरण पर लगाम लगाने की सख्त जरूरत है और यह काम दागी जनप्रतिनिधियों के मामलों में निस्तारण पर ध्यान देकर ही किया जा सकता है। एक आंकड़े के अनुसार इस समय करीब डेढ़ हजार सांसद और विधायक ऐसे हैं जो किसी न किसी आपराधिक मामले में घिरे हैं। यह आंकड़ा इन नेताओं के चुनावी हलफनामों के आधार पर तैयार किया गया है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि तमाम विधायक एवं सांसद ऐसे हैं जिन पर संगीन आरोप हैं, लेकिन सभी को एक ही तराजू से नहीं तोला जा सकता। एक समस्या यह भी है कि कई बार विशेष और यहां तक कि फास्ट ट्रैक अदालतें भी मामलों का निपटारा लंबा खींच देती हैं। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि न्यायिक प्रक्रिया के तौर-तरीकों में अपेक्षित बदलाव और सुधार नहीं हो पाए। इसका परिणाम है कि हर तरह के मुकदमों का अम्बार लगता जा रहा है। क्या यह विचित्र नहीं कि सबसे बड़ी मुकदमेबाजी राज्य सरकारों की ही है? बेहतर हो कि जहां सरकारें यह देखें कि नौकरशाह बात-बात पर अदालत पहुंचने से बाज आएं वहीं न्यायपालिका भी मामलों के जल्द निस्तारण के वैकल्पिक तौर-तरीके खोजें। सरकार व न्यायपालिका की तमाम चिन्ताओं के बावजूद लोगों को तेजी से इंसाफ मिलने का सिलसिला अभी दूर की कौड़ी नजर आता है। नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) के अनुसार देश के सभी 24 उच्च न्यायालयों में 2016 तक कुल 40.15 लाख मुकदमे लंबित थे। लगभग छह लाख केस तो ऐसे हैं जो एक दशक से भी अधिक समय से निस्तारण के इंतजार में हैं। चन्द दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने एक सम्मेलन में जोर दिया था कि विवादों के निपटारे की वैकल्पिक प्रणाली के तौर पर संस्थागत मध्यस्थता महत्वपूर्ण साबित होगी।

-अनिल नरेन्द्र

अध्यक्ष पद से रिटायर होंगी, राजनीति से नहीं

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी 19 साल पद पर रहने के बाद शनिवार को इस पद से रिटायर हो गईं। उन्होंने पार्टी की कमान अपने बेटे और नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल गांधी को सौंप दी। सोनिया गांधी के राजनीति से रिटायर होने की अटकलों को विराम लगाते हुए कांग्रेस ने स्पष्ट किया है कि वह सिर्फ कांग्रेस अध्यक्ष पद से रिटायर हो रही हैं। इससे पहले सोनिया गांधी ने शुक्रवार को संसद परिसर में पत्रकारों से कहा थाöमेरी भूमिका अब रिटायर होने की है। सोनिया गांधी ने अपना दायित्व राहुल गांधी को सौंपा है, लेकिन वह सदैव पार्टी का मार्गदर्शन करती रहेंगी। सोनिया गांधी आगे भी कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष बनी रहेंगी। यानी वो आगे से पार्टी की बजाय संसद में अधिक भूमिका निभाएंगी। बताया तो यह जा रहा है कि विपक्षी दलों के साथ तालमेल बनाए रखने का दायित्व सोनिया के जिम्मे होगा। सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं। सोनिया एकमात्र ऐसी कांग्रेस अध्यक्ष रहीं, जिनके नेतृत्व में कांग्रेस ने लगातार दो पूरे कार्यकाल तक केंद्र की सत्ता संभाली। 1998 में विपरीत परिस्थितियों में कांग्रेस की कमान संभालने के बाद छह साल के भीतर ही उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार से सत्ता छीन ली। उस समय उनके प्रधानमंत्री बनने की अटकलें जोरों पर थीं, लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी को ठुकरा कर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री चुना। अगले चुनाव अर्थात 2009 के चुनाव में उनके सामने भाजपा के दूसरे बड़े नेता लाल कृष्ण आडवाणी थे, लेकिन उनके नेतृत्व में भी कांग्रेस ने भाजपा को पराजित कर सत्ता बरकरार रखी। फिर से मनमोहन सिंह को ही प्रधानमंत्री चुना। यह महज संयोग है कि जब सोनिया ने कांग्रेस की कमान संभाली थी, तब वह विपक्ष में थीं और अभी जब राहुल गांधी कमान संभाल रहे हैं तब भी वह विपक्ष में हैं। उस समय कांग्रेस के पास चार राज्यों में सरकारें थीं। इस समय पांच राज्यों में सरकारें हैं। तब उनके पास लोकसभा के 141 सांसद थे और इस समय 46 सांसद हैं। पिछले तीन सालों से सभी फैसले राहुल गांधी ही ले रहे थे। गौरतलब है कि सोनिया गांधी सियासत से दूर रहना चाहती थीं। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद पार्टी संभालने के आग्रह को ठुकरा दिया था। 1997 में अंदरूनी कलह से पार्टी को बचाने के लिए वह सियासत में आने को राजी हुईं। सोनिया 1998 में कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गईं और 19 साल तक पार्टी अध्यक्ष के तौर पर काम किया। सोनिया कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटी हैं पर सियासत से नहीं। उनकी कांग्रेस और देश दोनों ही जगह भूमिका रहेगी और वह पार्टी को दिशा देती रहेंगी।

Saturday, 16 December 2017

मदरसों में छात्र या तो मौलवी बन रहे हैं या आतंकवादी ः पाक सेना प्रमुख

पाकिस्तान में कुकुरमुत्तों की तरह फैल रहे मदरसों पर सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने तीखी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि ज्यादातर इस्लाम की शिक्षा देने वाले मदरसों की अवधारणा पर एक बार फिर ध्यान देना होगा, क्योंकि पाकिस्तान के मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे या तो मौलवी बन रहे हैं या आतंकवादी। पाक अखबार डॉन में बाजवा के बयान का उल्लेख किया गया है। बलूचिस्तान के प्रमुख शहर क्वेटा में एक युवा सम्मेलन में उन्होंने कहा कि मैं मदरसों के खिलाफ नहीं हूं लेकिन मदरसों की मूल भावना कहीं खो गई है। पाकिस्तान में मदरसों की शिक्षा अपर्याप्त है, क्योंकि वह छात्रों को आधुनिक दुनिया के लिए तैयार नहीं करती है। जनरल बाजवा ने कहा कि मदरसों में करीब 25 लाख बच्चे पढ़ते हैं लेकिन वे क्या बनेंगेöक्या वे मौलवी बनेंगे अथवा आतंकवादी बनेंगे। उन्होंने कहा कि देश में इतने छात्रों को नियुक्त करने के लिए नई मस्जिदें खोलना असंभव है। जनरल बाजवा ने कहा कि पाक मदरसों पर अकसर आरोप लगाता है कि वे युवाओं को कट्टरपंथी बना रहे हैं। इधर हमारे उत्तर प्रदेश में करीब ढाई हजार से ज्यादा मदरसों में अब मजहबी किताबों के साथ-साथ राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद यानी एनसीईआरटी की पुस्तकें भी दिखाई देंगी। योगी आदित्यनाथ की सरकार ने यह फैसला मदरसों के पाठ्यक्रम को सुधारने के लिए बनी 40 सदस्यीय समिति की रिपोर्ट पर विचार करने के बाद यह निर्णय लिया है। आमतौर पर मदरसों को लेकर आम जनों में यह भ्रांति है कि यहां सिर्फ मजहबी शिक्षा दी जाती है और ऐसे केंद्र से निकले बच्चे मामूली ज्ञान अर्जित करते हैं, जिससे आगे चलकर उनके लिए रोजगार का गंभीर संकट पैदा हो जाता है। सरकार की असली चिन्ता इसी बात को लेकर है कि मदरसों की शिक्षा देने की पद्धति में बदलाव आए। वे भी समय के साथ चलें। आज जो हालात हैं, वह चिन्ताजनक इसलिए हैं कि मदरसों ने खुद को मध्ययुगीन खांचे से बाहर निकलने की नहीं सोची। सरकार इस बात का महत्व समझती है कि मदरसा शिक्षा को आधुनिक और पारदर्शी बनाना कितना जरूरी है? आज के दौर में बच्चों को विकासपरक शिक्षा की आवश्यकता है। वैश्विक माहौल तेजी से बदल रहा है और उसमें बच्चों को ज्यादा अपडेट किया जाना जरूरी है। अगर पाकिस्तान के सेना प्रमुख मदरसों में शिक्षा के सुधार की बात कर रहे हैं तो कुछ मदरसों में कट्टरपंथी तालीम को रोकना कितना जरूरी है। रोजगारपरक शिक्षा मिलेगी तो बेरोजगारी का संकट भी काफूर होगा। पाक में सेना की भूमिका सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है ऐसे में जनरल बाजवा का बयान मायने रखता है।

-अनिल नरेन्द्र

वैज्ञानिकों ने भी माना रामसेतु मानव निर्मित है

भारत में संकीर्ण राजनीति की वजह से भले ही रामसेतु को विवादित मुद्दा बना दिया गया और इसकी प्रमाणिकता पर भी सवाल उठाए गए, लेकिन भूगर्भ वैज्ञानिकों, आर्कियोलॉजिस्ट की टीम ने सैटेलाइट से प्राप्त चित्रों और सेतु स्थल के पत्थरों और बालू का अध्ययन करने के  बाद यह पाया गया है कि भारत और श्रीलंका के बीच एक सेतु का निर्माण किए जाने के संकेत मिलते हैं। दुनियाभर के वैज्ञानिक भी अब यह मानने पर विवश हैं कि भारत और श्रीलंका के बीच स्थित प्राचीन एडम्स ब्रिज यानी रामसेतु असल में मानव निर्मित है। भारत के रामेश्वरम के करीब स्थित द्वीप पमबन और श्रीलंका के द्वीप मन्नार के बीच 50 किलोमीटर लंबा अद्भुत पुल कहीं और से लाए पत्थरों से बनाया गया है। वैज्ञानिक इसको एक सुपर ह्यूमन उपलब्धि मान रहे हैं। इनके अनुसार भारत-श्रीलंका के बीच 30 मील के क्षेत्र में बालू की चट्टानें पूरी तरह से प्राकृतिक हैं, लेकिन इन पर रखे गए पत्थर कहीं और से लाए गए प्रतीत होते हैं। यह करीब सात हजार साल पुरानी है जबकि इन पर मौजूद पत्थर करीब चार-पांच हजार वर्ष पुराने हैं। बता दें कि रामसेतु पुल को श्रीराम के निर्देशन में कोरल चट्टानों और रीफ से बनाया गया था। जिसका विस्तार से उल्लेख बाल्मीकि रामायण में मिलता है। रामसेतु की उम्र रामायण के अनुसार 3500 साल पुराना बताया जाता है। कुछ इसे आज से 7000 साल पुराना बताते हैं। रामसेतु का उल्लेख कालिदास की रघुवंश में सेतु का वर्णन है। भारतीय सैटेलाइट और अमेरिका के अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान नासा ने उपग्रह से खींचे चित्रों में भारत के दक्षिण में धनुषकोटी तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिम पमबन के मध्य समुद्र में 48 किलोमीटर चौड़ी पट्टी के रूप में उभरे एक भूभाग की रेखा दिखती है, उसे ही आज रामसेतु या राम का पुल माना जाता है। प्राचीन वास्तुकारों ने इस संरचना की परत का उपयोग बड़े पैमाने पर पत्थरों और गोल आकार की विशाल चट्टानों को कम करने में किया और साथ ही कम से कम घनत्व तथा छोटे पत्थरों और चट्टानों का उपयोग किया जिससे आसानी से एक लंबा रास्ता तो बना ही साथ ही समय के साथ यह इतना मजबूत भी बन गया कि मनुष्यों व समुद्र के दबाव को भी सह सके। तत्कालीन यूपीए-1 सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया था कि कोई सबूत नहीं है कि रामसेतु कोई पूजनीय स्थल है। साथ ही सेतु को तोड़ने की इजाजत मांगी गई थी। बाद में कड़ी आलोचना के बीच तत्कालीन सरकार ने यह हलफनामा वापस ले लिया था। वैज्ञानिक इसे सर्वश्रेष्ठ मानवीय कृति बता रहे हैं। जय श्रीराम।

Thursday, 14 December 2017

नोटबंदी और जीएसटी के झटके से उबरने में अभी लगेगा समय

आठ नवम्बर 2016 को नोटबंदी का ऐलान हुआ था। रात आठ बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीवी क्रीन पर आकर इसका ऐलान करके सबको हैरान-परेशान कर दिया था। इस फैसले के कई राजनीतिक-आर्थिक, सामाजिक असर और पहलू रहे। उस दिन पीएम मोदी ने नोटबंदी को भारतीय राजनीति में गेम चेंजर क्षण कहा था। तत्काल प्रभाव से 500 और 1000 रुपए के नोट पर रोक लगाने की घोषणा की और उसे बदलने के लिए एक खास समय सीमा दी। इसके बाद शुरू हुआ आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर इस बड़े फैसले के नफे-नुकसान का आकलन का दौर। जिस समय नोटबंदी हुई उस समय शायद ही किसी को यह अंदाजा रहा हो कि इसके इतने दूरगामी असर होंगे। नोटों को बदलने के लिए लंबी-लंबी लाइनें लगने लगीं। 100 से ज्यादा लोगों ने ऐसा करते-करते दम तोड़ दिया। एक साल बाद भी लोग इस फैसले से उबर नहीं पाए हैं। रही-सही कसर जीएसटी ने पूरी कर दी है। दोनों ही कदम बगैर ठीक से होमवर्क किए लागू कर दिए गए। भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर वाईवी रेड्डी ने नोटबंदी और जीएसटी जैसे कदमों से अर्थव्यवस्था को लगे झटके को देखते हुए कहा है कि अर्थव्यवस्था को इस स्थिति से पूरी तरह उबरने और उच्च वृद्धि के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए दो साल के समय की और जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह एक झटका है जिसकी नकारात्मक धारणा के साथ शुरुआत हुई है। इसमें कुछ सुधार आ सकता है और उसके बाद ही कुछ फायदा मिल सकता है। फिलहाल इस समय इसमें परेशानी है और लाभ बाद में आएगा। कितना फायदा होगा और कितने अंतराल के बाद यह होगा, यह देखने की बात है। रेड्डी ने मुंबई में सप्ताहांत पर संवाददाताओं के एक समूह के सवालों के जवाब में कहा कि इस समय आर्थिक वृद्धि को लेकर कोई अनुमान लगाना काफी मुश्किल काम है। उन्होंने कहा कि यह कहना अभी मुश्किल है कि अर्थव्यवस्था फिर से सात से आठ प्रतिशत की संभावित उच्च वृद्धि के रास्ते पर कब लौटेगी। उन्होंने याद किया कि जब वह आरबीआई के गवर्नर थे, उसके मुकाबले पिछले तीन साल में कच्चे तेल के दाम एक-तिहाई पर आ गए थे। हालांकि इस बीच जीएसटी लागू होने, नोटबंदी का कदम उठाने और बैंकों में भारी एनपीए की वजह से आर्थिक वृद्धि के दौरान पिछली सरकार में बिना सोच-विचार के दिए गए कर्ज और भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर टेलीकॉम तथा कोयला क्षेत्र में घटे घटनाक्रम से कंपनी क्षेत्र पर काफी दबाव बढ़ गया है। इस समूचे घटनाक्रम से बैंकिंग तंत्र में फंसा कर्ज 15 प्रतिशत तक बढ़ गया है।

-अनिल नरेन्द्र

कांग्रेस में राहुल युग की शुरुआत

आखिर राहुल गांधी की ताजपोशी हो ही गई। सोमवार को राहुल ने कांग्रेस अध्यक्ष पद संभाल लिया। वे निर्विरोध चुने गए। कांग्रेस के इस शीर्ष पद के लिए केवल राहुल गांधी ने ही नामांकन किया था। राहुल 16 दिसम्बर को अपना काम संभालेंगे। इस चुनाव के साथ ही पार्टी में पीढ़ीगत बदलाव हुआ है। राहुल गांधी अब अपनी मां सोनिया गांधी की जगह संभालेंगे। बता दें कि सोनिया गांधी 19 साल तक इस पद पर रहीं। अध्यक्ष के तौर पर सोनिया के 19 साल के कार्यकाल के समापन के बाद देश की इस सबसे पुरानी पार्टी की कमान संभालना राहुल के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा। विपक्षी नेता पिछले कुछ सालों से उन्हें शहजादा और कई अन्य नामों से पुकार कर उनके महत्व को कम करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते रहे हैं। राहुल अपनी दादी इंदिरा गांधी की 1984 में हत्या के बाद उनके अंतिम संस्कार के समय राष्ट्रीय टेलीविजन और अखबारों में छपी तस्वीरों में अपने पिता राजीव गांधी के साथ प्रमुखता से दिखाई दिए थे। उसके बाद उनके पिता राजीव गांधी की 1991 में हत्या के बाद उनके अंतिम संस्कार में राहुल लगभग पूरे देश की सहानुभूति के केंद्र में रहे। राहुल का जन्म 19 जून 1970 को हुआ था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की आधिकारिक वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक राहुल ने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज, हार्वर्ड कॉलेज और फ्लोरिडा के रोलिस कॉलेज से कला में स्नातक तक की पढ़ाई की है। इसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रीनिटी कॉलेज से डेवलपमेंट स्टडीज में एम.फिल किया। नेहरू-गांधी परिवार के वारिस राहुल गांधी का अभी तक का राजनीतिक जीवन सुर्खियों का मौहताज नहीं रहा है किन्तु कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उनकी असली परीक्षा चुनावी मझधार में पिछले कुछ समय से पार्टी की डगमगाती नैया को विजय के तट तक सही सलामत पहुंचाने की होगी। राहुल को जब 2013 में पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया था उन्होंने जयपुर में भाषण के दौरान अपनी मां और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की इस बात को बड़े भावनात्मक ढंग से कहा था कि सत्ता जहर पीने के समान है। हालांकि इसके ठीक पांच साल बाद अब उन्हें यह विषपान करना पड़ेगा क्योंकि अब वह कांग्रेस अध्यक्ष निर्वाचित हो चुके हैं। कांग्रेस की कमान संभालने जा रहे राहुल नेहरू-गांधी परिवार में पांचवीं पीढ़ी के नेता हैं। यह सिलसिला आजादी से पहले मोती लाल नेहरू से शुरू हुआ था। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार गुजरात चुनाव राहुल के लिए एक कड़ी परीक्षा साबित होगी। अगर इस चुनाव में पार्टी कुछ बेहतर भी कर पाती है तो निश्चित तौर पर पार्टी के भीतर और बाहर उनकी विश्वसनीयता में इजाफा होगा। उत्तर प्रदेश के चुनाव के बाद राहुल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे मझे हुए नेता और कुशल वक्ता से मुकाबले के लिए अपनी रणनीति में काफी बदलाव किए हैं। उन्होंने जहां गब्बर सिंह टैक्स जैसे जुमले बोलने शुरू कर दिए हैं वहीं ट्विटर के माध्यम से उन्होंने भाजपा सरकार पर आक्रमण तेज कर दिया है। गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान राहुल ने अपनी छवि सुधारी है। अब लोग उन्हें न केवल गंभीरता से सुनते हैं बल्कि बड़ी संख्या में उनकी रैलियों को अटैंड भी करते हैं। कांग्रेस में अब राहुल युग की शुरुआत हो चुकी है।