Thursday 28 December 2017

शीशे की दीवार के पार से दीदार

कथित जासूसी के आरोप में करीब दो वर्ष से पाकिस्तान की जेल में बंद पूर्व भारतीय नौसैनिक कुलभूषण जाधव की अपनी मां और पत्नी से पाकिस्तानी विदेश विभाग के कार्यालय में जिस तरह से मुलाकात करवाई गई वह सिर्फ छलावे के अलावा कुछ और नहीं है। क्या आप इसे परिजनों की मुलाकात कहेंगे? पत्नी और मां किसी से मिलने जाएं और उनके बीच एक शीशे की दीवार हो- न स्पर्श, न आलिंगन, बस एक-दूसरे को देख पाना और स्पीकर के माध्यम से बात करना। कुलभूषण जाधव, उनकी मां और पत्नी के लिए यह मुलाकात एक बेहद भावनात्मक समय रहा होगा क्योंकि पता नहीं, फिर यह मौका कब आएगा, आएगा भी या नहीं? पहले तो पाकिस्तान इस मुलाकात के लिए राजी ही नहीं हो रहा था और अब इस मुलाकात के बाद वह मानवीय आधार और उदारता बरते जाने का नाटक कर रहा है। भय के माहौल में कराई गई इस मुलाकात में सुरक्षा, एहतियात के नाम पर परिवार की सांस्कृतिक और धार्मिक संवेदनाओं का अपमान भी किया गया। मंगलसूत्र, चूड़ी और बिंदी उतरवा ली गई और पहनावे में भी बदलाव किया गया। बार-बार अनुरोध के बावजूद जाधव की पत्नी का जूता मुलाकात के बाद वापस नहीं दिया गया। जाधव की पत्नी और मां मंगलवार को नई दिल्ली में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मिलीं, भारत ने कहा कि मुलाकात के बाद जो फीड बैक मिला है, उससे लगता है कि जाधव गंभीर तनाव में थे और वह दबाव के माहौल में बोल रहे थे। जो भी वह बोल रहे थे, उन्हें वैसा बोलने के लिए कहा गया था, जिससे पाकिस्तान में उनकी गतिविधियों से जुड़े झूठे आरोपें को साबित किया जा सके। उनके शरीर पर अत्याचार के कई निशान भी थे। वास्तविकता यह है कि अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और संधियों को धता बताते हुए पाकिस्तान ने अभी तक जाधव तक भारत को कूटनीतिक पहुंच नहीं दी है और भारत के दबाव के कारण ही वह जाधव की मां और पत्नी से मुलाकात करवाने को राजी हुआ। सारे कायदे-कानून को ताक पर रखकर पाकिस्तान ने जाधव को मौत की सजा सुना रखी है जिस पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने भारत के पक्ष में अपना अंतरिम फैसला सुनाते हुए अंतिम फैसले तक रोक लगा रखी है। कुलभूषण जाधव का मामला पहला ऐसा मामला नहीं है, जब पाकिस्तान ने किसी भारतीय नागरिक को पकड़कर जासूस घोषित कर fिदया और फिर फांसी की सजा सुना दी हो। इससे पहले सरबजीत का मामला तो कई साल तक चर्चा का विषय बना रहा था। एक ही सरबजीत पर पाकिस्तान में कई नाम से मुकदमे चलाए गए थे। खुद पाकिस्तान के कई मानवाधिकार कार्यकर्ता उसके पक्ष में खड़े हो गए थे। लेकिन अंतत रहस्यमय स्थितियों में उसकी जान ले ली गई। चमेल सिंह व किरणपाल सिंह नाम के दो भारतीयों को भी पाकिस्तान हाल ही में फांसी पर लटका चुका है। ऐसे भी कई लोग हैं, जो जासूसी के आरोप में पकड़े गए और फांसी से बच गए, पर न जाने कब से वहीं की जेलों में बंद हैं। यदि पाकिस्तान इस मुलाकात के जरिए दोनों देशों के रिश्तों में कुछ बेहतरी की उम्मीद कर रहा था, तो वह इसमें पूरी तरह से नाकाम हो गया है और अब भारत उसे अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय से लेकर तमाम दुनिया में घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहेगा। बस इतना संतोष जरूर है कि कुलभूषण जाधव जिंदा हैं।

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