Friday 22 December 2017

गुजरात में भाजपा से ज्यादा नरेंद्र मोदी की जीत है

गुजरात चुनाव में एक वक्त ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस और भाजपा की काफी करीबी टक्कर है। कांग्रेस इस चुनावी जंग में काफी मजबूती से सामने आई और राहुल गांधी की ताबड़तोड़ कोशिशें रंग लाने लगीं। शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी यह आभास हो गया था कि बाजी हाथ से निकल सकती है। भाजपा ने हिमाचल प्रदेश में भी आसान जीत दर्ज की। इसके साथ ही भाजपा ने अपने शासन के दायरे में एक और राज्य भी जोड़ लिया। बेशक भाजपा ने हिमाचल और गुजरात में जीत का सिलसिला जारी रखा पर हमारा मानना है कि यह जीत पार्टी से ज्यादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की है। हिमाचल प्रदेश में भाजपा की जीत को लेकर किसी को भी शक नहीं था। वैसे भी हिमाचल प्रदेश का इतिहास रहा है कि यहां पांच सालों में सरकारें बदलती हैं। प्रदेश के पांच सालों का स्वाभाविक रूप से भाजपा पाले में जाना था, लेकिन गुजरात में भाजपा की जीत मायने रखती है। गुजरात में भाजपा के खिलाफ कई मुद्दे थे। 22 सालों की सत्ता विरोधी लहर, हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पाटीदारों का आंदोलन, जिग्नेश मेवाणी की अगुवाई में दलितों का आंदोलन, पिछड़ी जाति ठाकोर की नाराजगी थी जिसका नेतृत्व अल्पेश ठाकोर कर रहे थे। सूरत और गुजरात के कई अन्य शहरों में जीएसटी और नोटबंदी से नाराज व्यापारी वर्ग, गुजरात में नरेंद्र मोदी का नहीं होना भी भाजपा के खिलाफ लग रहा था। लेकिन सारी विपरीत परिस्थितियों को भाजपा ने किनारा करते हुए एक बार फिर से गुजरात में जीत हासिल कर ली। हालांकि 2012 में पार्टी को 115 सीटें मिली थीं और इस बार 99 पर ही सिमट गई। बेशक इस बार भाजपा के वोट शेयर में मामूली बढ़ोतरी हुई है। 2012 में भाजपा का वोट शेयर 48.30 प्रतिशत था और इस बार 49.1 प्रतिशत है। भाजपा के पक्ष में आखिर कौन से कारक थे जिसमें उसे जीत मिली? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आखिर दो हफ्तों में काफी आक्रामक चुनाव प्रचार किया। जिन मतदाताओं ने कांग्रेस के पक्ष में वोट करने का मन शुरुआत में ही बना लिया था उसकी तुलना में बड़ी संख्या में मतदाताओं ने मतदान के ठीक पहले मोदी के पक्ष में वोट करने का फैसला किया। मोदी के कैंपेन के बाद भाजपा के पक्ष में मतदान का रुख बड़े स्तर पर शिफ्ट हुआ। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि गुजरात में करीब 35 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान के कुछ दिन पहले अपना मन बनाया। शुरुआत के कुछ हफ्तों में कांग्रेस ने आक्रामक चुनावी अभियान चलाया था। कांग्रेस के इस कैंपेन के कारण भाजपा बैकफुट पर नजर आ रही थी। लेकिन जब नरेंद्र मोदी ने भी आक्रामक कैंपेन शुरू किया तो कांग्रेस के चुनावी अभियान पर भारी पड़ने लगा। मणिशंकर अय्यर की टिप्पणी के बाद मोदी के चुनावी कैंपेन को और गति मिल गई। अय्यर की नीच वाली टिप्पणी के बाद भाजपा पूरी तरह से हमलावर हो गई थी। मोदी ने मणिशंकर अय्यर के बयान को गुजराती गौरव और पहचान से जोड़ दिया। इसके बाद कांग्रेस चुनावी अभियान में भाजपा के मुकाबले बैकफुट पर आई और उसने जो भाजपा के खिलाफ माहौल बनाया था उसे भारी धक्का लगा। कांग्रेस ने हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी, अल्पेश ठाकोर और छोटू वसाबा जैसे विभिन्न समुदाय के नेताओं के साथ गठबंधन की कोशिश की जिसके परिणामस्वरूप पिछले चुनावों के विपरीत इन समुदायों के कुछ वोट कांग्रेस को अधिक मिले। पाटीदारों के अधिकतर वोट भाजपा को मिले। हालांकि यह बदलाव कांग्रेस को जीत का स्वाद नहीं चखा पाया। कांग्रेस को आशा थी कि पाटीदारों के वोट उसके पक्ष में जाएंगे, लेकिन चुनावों के बाद हुए सर्वेक्षणों से पता चला कि पाटीदारों के 40 प्रतिशत से भी कम वोट कांग्रेस को मिले जबकि भाजपा 60 प्रतिशत पाटीदारों की वोट पाने में सफल रही। जिग्नेश मेवाणी के साथ गठबंधन भी कांग्रेस के लिए काम नहीं कर सका। 47 प्रतिशत दलितों के वोट कांग्रेस को मिले जबकि भाजपा 45 प्रतिशत दलित वोट पाने में सफल रही। इसी तरह ओबीसी वोट भी कांग्रेस और भाजपा के बीच बंट गया। पाटीदारों के गए वोटों की भरपायी भाजपा ने आदिवासी वोटों से की। 52 प्रतिशत आदिवासी वोट भाजपा को गए। वहीं केवल 48 प्रतिशत आदिवासियों के वोट कांग्रेस को गए। वैसे तो भाजपा को गुजरात में एक और चुनाव जीतने के लिए और कांग्रेस से हिमाचल छीनने के लिए खुश होना चाहिए लेकिन इन जीतों का यह मतलब नहीं है कि गुजरात में सत्ताधारी पार्टी के भीतर सब ठीक चल रहा है। कुल मिलाकर दोनों ही राज्यों में वोटरों की एक बड़ी संख्या है जो सरकार की नोटबंदी और जीएसटी जैसी नीतियों से असंतुष्ट है। किसान सरकार से खफा हैं क्योंकि वह उनकी मुश्किलों का हल करने के लिए जरूरी कोशिश नहीं कर रही। जाहिर है कि इन सबके बावजूद एक बड़ी आबादी ने कांग्रेस को वोट नहीं दिया। विपरीत माहौल के बावजूद अगर गुजरात में भाजपा जीती तो उसका सारा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है। उनकी ताबड़तोड़ मेहनत रंग लाई।

-अनिल नरेन्द्र

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