Sunday 17 December 2017

माननीयों के केस निपटाने के लिए विशेष अदालतें

सांसदों-विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों (आपराधिक) के निपटारे के लिए केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि इन मामलों को निपटाने के लिए 12 विशेष अदालतें गठित की जाएंगी। हालांकि सरकार ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ इन लंबित मामलों की जानकारी एकत्रित करने के लिए और समय की मांग भी की है। सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों-विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों के निपटारे के लिए केंद्र को विशेष अदालतें गठित करने की योजना पेश करने के लिए कहा था। यह अच्छा हुआ कि पहले दागी नेताओं के मामलों की सुनवाई की अलग से व्यवस्था करने के सुझाव से असहमत सुप्रीम कोर्ट अब यह महसूस कर रहा है कि राजनीति के अपराधीकरण पर लगाम लगाने की सख्त जरूरत है और यह काम दागी जनप्रतिनिधियों के मामलों में निस्तारण पर ध्यान देकर ही किया जा सकता है। एक आंकड़े के अनुसार इस समय करीब डेढ़ हजार सांसद और विधायक ऐसे हैं जो किसी न किसी आपराधिक मामले में घिरे हैं। यह आंकड़ा इन नेताओं के चुनावी हलफनामों के आधार पर तैयार किया गया है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि तमाम विधायक एवं सांसद ऐसे हैं जिन पर संगीन आरोप हैं, लेकिन सभी को एक ही तराजू से नहीं तोला जा सकता। एक समस्या यह भी है कि कई बार विशेष और यहां तक कि फास्ट ट्रैक अदालतें भी मामलों का निपटारा लंबा खींच देती हैं। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि न्यायिक प्रक्रिया के तौर-तरीकों में अपेक्षित बदलाव और सुधार नहीं हो पाए। इसका परिणाम है कि हर तरह के मुकदमों का अम्बार लगता जा रहा है। क्या यह विचित्र नहीं कि सबसे बड़ी मुकदमेबाजी राज्य सरकारों की ही है? बेहतर हो कि जहां सरकारें यह देखें कि नौकरशाह बात-बात पर अदालत पहुंचने से बाज आएं वहीं न्यायपालिका भी मामलों के जल्द निस्तारण के वैकल्पिक तौर-तरीके खोजें। सरकार व न्यायपालिका की तमाम चिन्ताओं के बावजूद लोगों को तेजी से इंसाफ मिलने का सिलसिला अभी दूर की कौड़ी नजर आता है। नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) के अनुसार देश के सभी 24 उच्च न्यायालयों में 2016 तक कुल 40.15 लाख मुकदमे लंबित थे। लगभग छह लाख केस तो ऐसे हैं जो एक दशक से भी अधिक समय से निस्तारण के इंतजार में हैं। चन्द दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने एक सम्मेलन में जोर दिया था कि विवादों के निपटारे की वैकल्पिक प्रणाली के तौर पर संस्थागत मध्यस्थता महत्वपूर्ण साबित होगी।

-अनिल नरेन्द्र

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