Sunday, 24 December 2017

नाबालिग छात्र पर बालिग की तरह केस

प्रद्युम्न हत्याकांड में जुवेनाइल जस्टिस (जेजे) बोर्ड ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 11वीं क्लास के आरोपी नाबालिग छात्र पर बालिग की तरह मुकदमा चलाने का जो आदेश दिया है वह निस्संदेह एक दूरगामी प्रभाव वाला फैसला है। इस फैसले को भारतीय अपराध न्याय प्रणाली के इतिहास में एक दूरगामी कदम के तौर पर देखा जाना चाहिए। यानी अपराध की गंभीरता को देखते हुए प्रद्युम्न की हत्या करने वाले नाबालिग आरोपी पर किसी बालिग की तरह मुकदमा चलाया जाएगा। निर्भया के साथ हुए सामूहिक बलात्कार में भी सर्वाधिक बर्बरता एक नाबालिग ने की थी। तब यौन हिंसा के खिलाफ कानून के साथ जुवेनाइल जस्टिस कानून को भी सख्त बनाया गया, जिसमें प्रावधान है कि जुवेनाइल जस्टिस कोर्ट चाहे तो नाबालिग के खिलाफ बालिग की तरह मुकदमा चलाने की अनुमति दे सकता है। किशोर न्याय बोर्ड ने सीबीआई की याचिका पर सुनवाई करते हुए जैसे ही यह फैसला सुनाया इसके पक्ष में और विपक्ष में बहस शुरू हो गई। एक पक्ष मानता है कि यह सही फैसला है, क्योंकि जिस तरह की हैवानियत पकड़े गए 11वीं के छात्र ने की थी, वह एक वयस्क अपराध का सदृश्य ही था। यह तर्क भी दिया जा सकता है कि अगर जघन्य अपराध में नाबालिग मानकर व्यवहार किया जाएगा तो इससे अपराध बढ़ेगा। अपराध करते समय उनके मन में यह भाव होगा कि उनके साथ नाबालिग समझकर व्यवहार होगा और साधारण सजा को बाल सुधार गृह में आराम से काट लिया जाएगा, निर्भया मामले में यही हुआ। एक अपराधी जिस पर सबसे ज्यादा हैवानियत का आरोप था उसे नाबालिग मानकर मुकदमा चला और उसे कठोर सजा नहीं दी गई। इसका फायदा बड़े अपराधी गैंग भी उठाते हैं और वह नाबालिग से अपराध करवाते हैं। उनको यह समझा देते हैं कि अगर तुम पकड़े गए तब भी तुमको बड़ी सजा नहीं हो सकती। हालांकि इसका दूसरा पक्ष भी है। वह यह कि अगर नाबालिग ने नासमझी में कोई अपराध कर दिया तो उसके साथ एक अभ्यस्त अपराधी की तरह व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए। उसे सुधरने का मौका मिलना चाहिए ताकि उसका भविष्य गैर-अपराधी का हो सके। अगर स्कूल में पेरेंट्स टीचर मीटिंग और परीक्षा टालने के लिए कोई छात्र किसी की हत्या कर दे, जैसा कि सीबीआई ने दावा किया है तो इसी मामले में अपराध की गंभीरता बताने के लिए काफी है। तात्पर्य यह कि इस फैसले को हर मामले के लिए नजीर की तरह इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। अब अदालतों को तय करना है कि नाबालिग बालिग की श्रेणी में आता है या नहीं?

-अनिल नरेन्द्र

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