Sunday 10 December 2017

चाबहार ः जहां बारहों माह बहार छाई रहती है

ईरान के चाबहार के पहले चरण के उद्घाटन से आवागमन का एक नया मार्ग तो खुला ही है, यह भारत-ईरान और अफगानिस्तान के बीच नए रणनीतिक सम्पर्कों की ऐतिहासिक शुरुआत भी है। चाबहार पहली विदेशी बंदरगाह है, जिसे विकसित करने में भारत की सीधी हिस्सेदारी है। भारत ने इस बंदरगाह के पहले चरण को संचालन सुविधा से लैस करने में जो तत्परता बरती उससे चीन के साथ-साथ मध्य एशिया के अन्य अनेक देशों को भी यह संदेश गया है कि आर्थिक-व्यापारिक महत्व की परियोजनाओं को भारत ही तेज गति से आगे बढ़ाने में सक्षम है। वर्ष 1947 में देश विभाजन के बाद से पूरे मध्य-पूर्व, मध्य एशिया और यूरोप से भौगोलिक तौर पर अलग हुए भारत ने इस दूरी को पाटने की दिशा में अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी हासिल कर ली है। इस बंदरगाह के जरिये भारत अब बिना पाकिस्तान गए ही अफगानिस्तान और फिर उससे आगे रूस और यूरोप से जुड़ गया है। चाबहार बंदरगाह बनने के बाद समुद्री रास्ते होते हुए भारत के जहाज ईरान में दाखिल हो जाएंगे। इसके जरिये अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक के बाजार भारतीय कंपनियों और कारोबारियों के लिए खुल जाएंगे। इसलिए चाबहार पोर्ट व्यापार और सामरिक लिहाज से भारत के लिए काफी अहम है। भारत की नजर इसके जरिये अपने उत्पादों के लिए यूरोपीय देशों के बाजार में जगह बनाने पर भी है। भारत इस पोर्ट के साथ एक विशेष आर्थिक क्षेत्र भी विकसित करना चाहता है। कुछ दिन पहले ही सड़क, राजमार्ग और जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि भारत की योजना चाबहार में कुल दो लाख करोड़ निवेश करने की है। सामरिक दृष्टि से भी देखें तो पाक-चीन को करारा जवाब मिलेगा, क्योंकि चाबहार से ग्वादर की दूरी सिर्फ 72 किलोमीटर है। पाकिस्तानी मीडिया पहले से ही शोर मचा रहा है कि चाबहार के जरिये भारत अफगानिस्तान और ईरान से मिलकर उसे घेरने में जुटा है। भारत ने इस बंदरगाह को विकसित करने के लिए 50 करोड़ डॉलर का करार किया था। इस करार की नींव 2002 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और तब के ईरानी राष्ट्रपति सैयद मोहम्मद खातमी ने डाली थी। यों भी चाबहार का वहां की स्थानीय भाषा में मतलब होता हैöऐसी जगह जहां बारहों मास बहार छाई रहती हो। उम्मीद की जानी चाहिए कि ईरान और अफगानिस्तान से भारत के संबंधों में छाई यह बहार यों ही कामयाब रहे।

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