Tuesday 27 September 2022

नफरत की दीवार

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर समाचार चैनलों और सामाजिक मंचों पर बेलगाम हेट स्पीच (घृणा भाषणों) को लेकर आपत्ति जताईं है। मीडिया में नफरत भरे कार्यंव््रामों की बाढ़ पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी चिन्ता व्यक्त करते हुए मौखिक टिप्पणी की कि देश आखिर किधर जा रहा है? हेट स्पीच को वंट्रोल करने के लिए सख्त मीडिया नियमन की सख्त जरूरत है। उसने कहा कि इस मसले पर वेंद्र चुप क्यों है? पिछले दो सालों में यह तीसरी बार है जब सुप्रीम कोर्ट ने सख्त शब्दों में घृणा भाषण पर टिप्पणी की है। चैनलों और सामाजिक मंचों पर नफरत पैलाने वाली प्रास्तुतियों और पक्षपातपूर्ण समाचार परोसने की प्रावृत्ति पर जनता लंबे समय से एतराज जताती रही है। सुप्रीम कोर्ट ने वेंद्र सरकार की भूमिका पर भी सवाल उठाया और कहा कि यह सब हो रहा है और सरकार मूकदर्शक बनी हुईं है। जस्टिस केएम जोसेफ और त्रषिकेश रॉय की बेंच हेट स्पीच को रेगुलेट करने की याचिकाओं पर सुनवाईं कर रही है। इसमें यूपीएससी, लव जेहाद, धर्म संसद में मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलने वाले भाषण तथा कोरोना के दौरान सांप्रादायिकता पैलाने वाले संदेशों को लेकर दायर याचिकाएं शामिल हैं। बेंच ने कहा कि हेट स्पीच पर विधि आयोग की रिपोर्ट पर वेंद्र अपना रुख स्पष्ट करे। अब तो विपक्षी दल सार्वजनिक मंचों से सीधे सरकार की तरफ अंगुली उठाकर मीडिया के दुरुपयोग पर सवाल खड़े करते हैं। हालांकि अदालत की टिप्पणी पर एकाध बार सरकार का रुख वुछ सख्त जरूर दिखा, मगर इस प्रावृत्ति पर रोक लगाने की इच्छाशक्ति नजर नहीं आईं। वुछ महीने पहले सूचना प्रासारण मंत्रालय ने वुछ टीवी चैनलों को सख्त निर्देश जारी किए थे कि वह समाचारों की प्रास्तुति में मर्यांदा का ख्याल रखें। पर उसका भी कोईं असर नहीं दिखा। ताजा बयान के वक्त सुप्रीम कोर्ट ने उदाहरण देते हुए कहा कि इंग्लैंड में एक चैनल पर भारी जुर्माना भी लगाया गया था। मगर हमारे यहां यह प्राणाली नहीं है। हेट स्पीच या अफवाह पैलाने की कानून ने परिभाषा तय नहीं की है। बेंच ने सरकार से जवाब के बारे में पूछा और कहा—सारे घटनाव््राम पर वह मूकदर्शक क्यों बनी हुईं है? सरकार को एक संस्था का गठन करना चाहिए जिसके दिशानिर्देश का पालन करने के लिए सभी को बाध्य होना चाहिए। टीवी चैनलों के न्यूज एंकर का दायित्व है कि जैसे ही कोईं नफरतबाजी करे तो उसे रोके, लेकिन होता है इसका उलटा। यदि कोईं पैनलिस्ट अपनी बात रखना चाहता है तो उसे मौका ही नहीं दिया जाता और उसकी आवाज म्यूट कर दी जाती है। बहस पूरी तरह स्वतंत्र होना चाहिए, लेकिन लाइन कहां खींचनी है, यह भी निर्धारित करना पड़ेगा। टीवी का जनमानस पर गहरा प्राभाव पड़ता है। हेट स्पीच से समाज का ताना-बाना कमजोर होता है और नफरत की इस दीवार पर अंवुश लगना ही चाहिए।

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