Tuesday, 13 September 2022

हिजाब की तुलना पगड़ी से करना अनुचित

सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक हिजाब मामले की सुनवाईं के दौरान गुरुवार को न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने कहा कि हिजाब से सिख की पगड़ी की तुलना करना ठीक नहीं है। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ यह तय कर चुकी है कि पगड़ी और वृपाण सिख की धार्मिक पहचान का अनिवार्यं हिस्सा है। सिखों के 500 सालों के इतिहास और संविधान के मुताबिक भी यह सर्वविदित तथ्य है, इसलिए सिखों से तुलना करना ठीक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी हिजाब के पक्षकार याचिकाकर्ताओं के वकील निजाम पाशा की दलील के दौरान की। पाशा का कहना था कि सिख धर्म के पांच ककारों की तरह इस्लाम के भी पांच बुनियादी स्तम्भ हैं। निजाम पाशा ने कहा—हज, नमाज-रोजा, जकात, तौहीद और हिजाब को इस्लाम के पांच बुनियादी स्तम्भ बताया था। न्यायमूर्ति गुप्ता ने उन्हें टोका तो निजाम पाशा ने कहा कि हमारा भी यही कहना है कि 1400 साल से हिजाब भी इस्लामिक परंपरा का हिस्सा रहा है। लिहाजा कर्नाटक हाईं कोर्ट का निष्कर्ष गलत है। निजाम पाशा ने पहले याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील देवदत्त कॉमत ने कहा कि मूल अधिकारों पर वाजिब प्रातिबंध हो सकता है, लेकिन यह तभी मुमकिन है जब यह कानून- व्यवस्था, नैतिकता या स्वास्थ्य के खिलाफ हो। यहां लड़कियों का हिजाब पहनना न तो कानून-व्यवस्था के खिलाफ है, न ही नैतिकता और स्वास्थ्य के खिलाफ। संविधान के मुताबिक सरकार का हिजाब पर प्रातिबंध का आदेश वाजिब नहीं है। कॉमत ने कहा—हर धार्मिक परंपरा जरूरी नहीं कि किसी धर्म का अनिवार्यं हिस्सा ही हो। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सरकार उस पर प्रातिबंध लगा दे। सिर्प उस परंपरा के कानून- व्यवस्था या नैतिकता के खिलाफ होने पर ही सरकार को यह अधिकार हासिल है। कॉमत ने दलील दी—मैं जनेऊ पहनता हूं। वरिष्ठ वकील के. परासरन भी पहनते हैं। लेकिन क्या यह किसी भी तरह से अदालत के अनुशासन का उल्लंघन है? इस पर जजों ने कहा कि आप अदालत में पहनी जाने वाली ड्रेस की तुलना स्वूल ड्रेस से नहीं कर सकते। बुधवार को वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने भी पगड़ी का हवाला दिया था। लेकिन पगड़ी भी जरूरी नहीं कि धार्मिक पोशाक ही हो। मौसम की वजह से राजस्थान में भी लोग अकसर पगड़ी पहनते हैं। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने कहा कि सड़क पर हिजाब पहनने से भले ही किसी को दिक्कत न हो, लेकिन सवाल स्वूल के अंदर हिजाब पहनने को लेकर है। सवाल यह है कि स्वूल प्राशासन किस तरह की व्यवस्था बनाए रखना चाहता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यहां सवाल केवल स्वूलों में प्रातिबंध के बारे में है। किसी को भी हिजाब पहनने से मना नहीं किया गया। वकील देवदत्त कॉमत ने कहा कि अप्रीका में स्वूल में नाक की लौंग पहनने की इजाजत दी गईं थी, यह संस्वृति का हिस्सा है। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि लौंग धर्म का हिस्सा नहीं है। मंगल सूत्र है।

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