Sunday, 18 September 2022
चुनाव लड़ने का अधिकार मौलिक नहीं है
उच्चतम न्यायालय ने राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने के मुद्दे पर एक याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि चुनाव लड़ने का अधिकार न तो मौलिक है और न ही कॉमन लॉ अधिकार है।
कॉमन लॉ अधिकार व्यक्तिगत अधिकार है जो न्यायाधीश द्वारा बनाए गए कानून से आते हैं, न कि औपचारिक रूप से विधायिका द्वारा पारित कानून होते हैं। इसके साथ ही न्यायालय ने याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया। कोर्ट ने कहा कि कोईं व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता कि उसे चुनाव लड़ने का अधिकार है। उसने कहा कि जनप्रातिनिधित्व कानून, 1950 (चुनाव आचरण नियम, 1961 के साथ पढ़ें) में कहा गया है कि नामांकन प्रापत्र भरते समय उम्मीदवार के नाम का प्रास्ताव किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के 10 जून के एक आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाईं करते हुए यह आदेश दिया। दिल्ली उच्च न्यायालय ने राज्यसभा चुनाव, 2022 के लिए अपना नामांकन पत्र दाखिल करने के लिए याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी तय करने से जुड़ी एक याचिका को खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ता ने कहा था कि 21 जून, 2022 से एक अगस्त 2022 के बीच सेवानिवृत होने से राज्यसभा सदस्यों की सीट भरने के लिए चुनाव की खातिर 12 मईं, 2022 को अधिसूचना जारी की गईं थी। नामांकन पत्र जमा करने की अंतिम तिथि 31 मईं थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्होंने नामांकन पत्र लिया था, लेकिन उनके नाम का प्रास्ताव करने वाले उचित प्रास्तावक के बिना नामांकन दाखिल करने की अनुमति नहीं दी गईं। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि प्रास्तावक के बिना उनकी उम्मीदवारी स्वीकार नहीं की गईं, जिससे उनके भाषण और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन हुआ था। उच्चतम न्यायालय ने एक लाख रुपए का जुर्माना लगाते हुए याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि चार सप्ताह के अंदर उच्चतम न्यायालय कानूनी सहायता समिति को जुर्माने का भुगतान करें।
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